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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इच्छाएँ न हों। यदि पुराने मन्दिरोंमें अस्पृश्योंके प्रवेशका निषेध हो तो आप नये मन्दिर बनवाइए।

फिर सवाल एक साथ खाने-पीनेका है। मैं किसीके साथ इस आधारपर झगड़ा नहीं करूँगा। लेकिन जिस समारोह में दो वर्गोंके बीच भेद किया गया हो उस समारोहका मैं बहिष्कार करूँगा।

इसके अलावा, मैं अस्पृश्योंके साथ भाईचारा रखूँगा। और उनके साथ वैसा ही व्यवहार करूँगा जैसा कि सगे भाईके साथ। मैं जाति और बिरादरीकी दीवारोंको तोड़कर चूर-चूर कर दूँगा। इसीलिए जब मैं अपने लड़केका विवाह करूँगा तो मैं प्रयत्नपूर्वक दूसरी बिरादरीकी किसी लड़की की तलाश करूँगा। आज हम घृण्य प्रथाओंसे वास्तवमें इस तरह् जकड़े हुए हैं कि आप मुझे अपनी कोई लड़की गुजरातमें बसने के लिए नहीं देंगे और किसी गुजराती लड़कीको लाकर तमिलनाडुमें नहीं बसायेंगे।

फिर मैं अस्पृश्योंको धार्मिक शिक्षा दूँगा, हिन्दू-धर्म और नैतिकताका बुनियादी ज्ञान उन्हें दूँगा। आज वे बिलकुल जानवरों-जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मैं उन्हें निषिद्ध भोजन न करने और शुद्ध तथा स्वच्छ जीवन व्यतीत करनेके लिए समझा-बुझाकर राजी करूँगा। आप इन सवालोंको आसानीसे और व्यापक बना कर एक बड़ा रचनात्मक कार्यक्रम चला सकते हैं।

हिन्दू धर्मने हमारे लिए क्या किया है?


प्रश्न : हम देखते हैं कि आप हिन्दू-धर्मकी दुहाई देते हैं। क्या हम जान सकते हैं कि हिन्दू-धर्मने हमारे लिए क्या किया है? क्या यह भद्दे अन्धविश्वासों और भद्दी प्रथाओंकी बपौती नहीं है?
उत्तर : मेरा खयाल था कि यह बात मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ। वर्णाश्रम धर्म स्वयं में संसारको हिन्दू-धर्मकी एक अनोखी देन है। हिन्दू-धर्मने हमें भयसे बचाया है। यदि हिन्दू धर्म मेरी रक्षाको न आता तो मेरे सामने आत्महत्याके सिवा कोई रास्ता नहीं होता। मैं हिन्दू बना हुआ हूँ क्योंकि हिन्दू-धर्म एक ऐसा खमीर है जो संसारको रहने योग्य बनाता है। हिन्दू-धर्ममें से बौद्ध धर्मका जन्म हुआ। आज हम जो देखते हैं वह शुद्ध हिन्दू-धर्म नहीं है बल्कि अक्सर वह उसकी विद्रूपिका है। अन्यथा मुझे उसके पक्षमें बोलने की जरूरत नहीं होती, वह स्वयं बोलता, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार यदि मैं पूर्णतः शुद्ध होता तो मुझे आपसे बोलनेकी जरूरत नहीं पड़ती। ईश्वर अपनी जिह्वासे नहीं बोलता और जिस हदतक मनुष्य ईश्वरके निकट आता जाता है उसी हदतक ईश्वर बन जाता है। हिन्दू-धर्म मुझे सिखाता है कि मेरा शरीर तो अन्दर बसनेवाली आत्माकी शक्तिपर एक सीमाके समान है।

जिस प्रकार पश्चिमके देशोंमें लोगोंने भौतिक क्षेत्रमें आश्चर्यजनक खोजें की हैं उसी प्रकार हिन्दू-धर्मने धर्म, अध्यात्म और आत्माके क्षेत्रमें और भी अधिक आश्चर्यजनक खोजें की हैं। लेकिन हमारे पास इन महान और सुन्दर खोजोंको देखनेके लिए आँखें ही नहीं हैं। पश्चिमी विज्ञानने जो प्रगति की है उससे हम चकाचौंध हो गये हैं। वास्तवमें लगभग ऐसा लगता है कि ईश्वरने बुद्धिपूर्वक भारतको इस दिशामें प्रगति करनेसे रोक दिया है ताकि वह भौतिकवादके ज्वारका प्रतिरोध