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भाषण : सार्वजनिक सभा, कराइकुडीमें

पतियोंके साथ जहाँ वे जायें, वहाँ जानेका आग्रह करनेका साहस उत्पन्न करें। ईश्वर आपको वैसी शक्ति और सद्भाव प्रदान करे।

मैं अपनी बात पूरी कर चुका हूँ और जैसा कि सभी सभाओंमें सामान्य रूपसे होता है में यहां भी अपनी रीतिके अनुसार उन लोगोंसे, जिन्होंने इस थैलीके लिए कुछ नहीं दिया है, कहूँगा कि यदि उन्हें खादीमें विश्वास हो और यदि वे चाहें तो अब चन्दा दें। मैं यहाँ उपस्थित भाइयों और बहनोंसे भी कहता हूँ कि यदि वे चाहें तो जितना दे सकें दें, और इसीलिए यदि यहाँ ऐसे लोग हैं जिन्होंने सचमुच काफी नहीं दिया है, तो मैं उनसे भी कहता हूँ कि मैंने जो आँकड़े दिये हैं, उनमें और खादीके महत्त्वमें यदि उनको विश्वास हो तो वे कृपणताके साथ नहीं, बल्कि उदारताके साथ चन्दा दें ।

[ इसके बाद ] महात्माजीको भेंट किये गये गहनों, चाँदीके प्यालों और अँगूठियोंका नीलाम शुरू हुआ।... श्री षण्मुखम् चेट्टियारने देवकोट्टामें गांधीजीको जो बारीक मलमल भेंट की गई थी, उसे महात्माजी द्वारा निर्धारित १,००० रुपयेकी कीमतपर खरीदने की इच्छा घोषित की। महात्माजीको एक अँगूठी दूसरी बार उपहारमें दी गई थी, और मुश्किलसे १० रुपयेकी यह अँगूठी दूसरी बार नीलाम की जाने- पर १३५ रुपये में खरीद ली गई|

उपस्थित जनताने नीलामम जैसा उत्साह दिखाया और महात्माजीके प्रति जैसा अगाध प्रेम प्रकट किया उसने गांधीजीके मनको छू लिया और उन्होंने सामान्य नियमके विपरीत, नीलाम खत्म होनेके बाद उपस्थित लोगोंके सामने कुछ शब्द और कहे। उन्होंने कहा :

यह दृश्य मैं कभी नहीं भूलूंगा। यह मेरे जीवनकी एक सुखदतम स्मृतिकी तरह मेरे मनमें रहेगा। मुझे अपने जीवनमें बहुत से सुखद और दुखद अनुभव हुए हैं, और आजके दिनकी स्मृति मेरे जीवनकी चन्द चुनी हुई सुखद स्मृतियोंके बीच कायम रहेगी. -- विशेष रूपसे इसलिए कि जबसे मैंने चेट्टिनाडमें पैर रखा है, तबसे मैं आप लोगोंसे अनेक कड़वी बातें कहता रहा हूँ। आप मेरे शब्दों और मेरे मन्शाको चाहते तो आसानीसे गलत समझ सकते थे। लेकिन मैंने देखा है कि जितनी ही कड़ी बातें मैंने आपको कही हैं, आपने मुझपर उतना ही स्नेह बरसाया है। आपने मेरा सगे भाईकी तरह अपने बीच स्वागत किया है, और मेरी बातोंको ठीक उसी भावसे ग्रहण किया है जिस भावसे मैंने उन्हें कहा है। वास्तवमें यह मेरा सौभाग्य है । लेकिन मैं चाहूँगा कि जो बातें मैंने आपसे कही हैं, उन्हें भूल न जायें। मैं चाहता हूँ कि जो कुछ मैंने कहा है, उसका एक-एक शब्द आपके हृदय में पैठ जाये, और अगर मैं सुनूँ कि आपके हृदयमें रोपित ये शब्द कभी अंकुरित और पल्लवित हुए हैं तो मुझे जैसी खुशी होगी, वैसी खुशी आप मुझे लाखों रुपये देकर भी नहीं दे सकते। मेरे लिए आपके द्वारा दिये गये धनसे आपकी सेवा करनेके अलावा उसका कोई और उपयोग नहीं है, और यह एक अजीब किन्तु सत्य बात है कि यदि आप मुझे अपना दिल नहीं देंगे तो मैं स्वयं आपके पैसेसे भी आपकी सेवा नहीं कर सकता। मेरे हाथोंमें आपका जो पैसा है, वह खूब फलदायी सिद्ध हो, इसलिए मैं आपसे वह सब