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भाषण : मदुरैकी सार्वजनिक सभामें

को कह रहा था तो एक या एकाधिक गरीब लोगोंने मुझसे रोष व्यक्त किया और मुझे बताया कि उनके पास खादी खरीदनेको पैसा नहीं है। हालाँकि जहाँतक मुझे अब याद है, मैं ऐसा नहीं मानता कि हर व्यक्तिने जो उत्तर मुझे दिये, वे ईमानदारी से दिये थे, लेकिन मैंने उन कुछ गरीब लोगोंकी बातकी सचाईको स्वीकार किया जिनके तन चिथड़ोंसे ढँके हुए थे। तब मैंने अपने साथ यात्रा करनेवाले साथियोंसे उस परिवर्तनके औचित्यपर चर्चा की, जिसके बारेमें मैं आपको बताने जा रहा हूँ। वह रात मैंने, क्या करना चाहिए, इसीका निश्चय करते और ईश्वरसे मार्गदर्शनकी प्रार्थना करते हुए बेचैनीसे गुजार दी। और अगली सुबहसे मैंने मनमें निश्चय कर लिया कि कमसे-कम एक वर्षके लिए मैं साधारण कुरता और धोतीका त्याग कर दूंगा, जिसे मैं उस समय पहना करता था, और जितनी छोटी लँगोटीसे अपना काम चला सकूंगा उतनी छोटी लँगोटीसे सन्तोष करूँगा।[१] वह वर्ष तो खत्म हो गया, लेकिन परिवर्तनकी आवश्यकता देखते हुए वह परिवर्तन बना ही हुआ है। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि उस परिवर्तनका तबतक कोई महत्त्व नहीं है जबतक वह अन्दर होनेवाले परिवर्तन- का प्रतीक न हो। लेकिन मैं भारतमें जितना ही घूमा हूँ और जितना ही मैंने इस प्राचीन देशके सात लाख गाँवोंमें फैले करोड़ों ग्रामवासियोंकी गरीबी और कंगाली- पर विचार किया है, अपने अन्दर इस प्रकारके परिवर्तनको अपनानेकी आवश्यकताको मैंने उतना ही अधिक महसूस किया है, क्योंकि मैं जन-साधारणका प्रतिनिधि होनेका दावा करता हूँ। और यदि आप मेरे साथ इन गाँवोंमें चलें, जहाँ कंगालीका नंगा रूप आप देखेंगे तो आप मेरी तरह स्वीकार करेंगे कि आपके वस्त्रोंमें बहुत कुछ ऐसा फाजिल है, जिसे त्याग देनेकी आवश्यकता है।

नगरपालिकाके अभिनन्दनपत्रमें[२] मुझे बताया गया है कि आपके स्कूलोंमें काफी हदतक कताई सफल रही है। नगरपालिकाको मैं इस सफलताके लिए बधाई देता हूँ, लेकिन मैं आपके प्रति ईमानदारी बरतनेके खयालसे आपको बता दूं कि इससे मुझे कोई सन्तोष नहीं है। यदि भारतके चन्द नगरों और कस्बोंमें रहनेवाले लोग यह अनुभव कर लें कि उनका जीवन, उनकी सुख-सुविधाएँ, बल्कि उनका सारा अस्तित्व इन करोड़ों अर्द्ध-क्षुधित लोगोंपर निर्भर है तो वे खादी और चरखेको महज वक्त गुजारनेका एक शग़ल नहीं समझेंगे, ऐसी चीज नहीं मानेंगे जिसके लिए यदि वे कुछ करते हैं तो किसीपर मेहरबानी करते हैं। याद रखिए कि भारतका शहरी जीवन अन्य देशोंसे प्राप्त धनके भरोसे नहीं चलता। भारत चूंकि एक कृषि प्रधान देश है, इसलिए अपने शहरोंको बनाये रखनेके लिए उसे गाँवोंसे ही प्राप्त होनेवाली चीजोंपर पूरी तरह निर्भर रहना पड़ता है। और भारतकी गरीबीकी समस्याका तथा इस गरीबीकी समस्याको आंशिक रूपसे भी हल करनेके लिए सुझाये गये विविध उपायोंका ध्यानपूर्वक अध्ययन करनेके बाद मैं इस नतीजेपर आया हूँ कि कोई भी तरीका उपयोगिताकी दृष्टिसे चरखेके पासतक नहीं पहुँचता । और मेरी विनम्र रायमें शहरोंमें रहने-

  1. १. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ २३४-३६ ।
  2. २. इससे पूर्व गांधीजीको मदुरैको नगरपालिकाकी ओरसे एक अभिनन्दनपत्र दिया गया था और उसका उत्तर उन्होंने सार्वजनिक सभामें दिया।