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भाषण : मदुरैकी सार्वजनिक सभामें

व्यापारी मुवक्किलोंके सम्पर्कमें आया और मैं ऐसे एक भी व्यापारीसे नहीं मिला जिसकी बहियोंमें वसूल न हो सकने लायक कुछ-न-कुछ लेनदारियाँ दर्ज नहीं रही हों। और यह मेरा दृढ़ विश्वास है कि जहांतक प्रबन्धका प्रश्न है, यह खादी संगठन दुनियाकी अच्छीसे अच्छी और बड़ीसे बड़ी व्यापारिक फर्मकी तुलनामें बराबर बैठेगी। यह संगठन करीब दो लाख रुपयेकी पूंजीसे चल रहा है। यह सारे भारतमें पन्द्रह सौ गाँवोंकी सेवा कर रहा है, और करीब ५० हजार कतैयोंको भोजन मुहैया कर रहा है। यह कतैयोंको औसतन एकसे डेढ़ रुपये प्रतिमाह उपलब्ध कराता है। और यह संगठन इन कतैयोंके केवल उस फालतू समयका ही इस्तेमाल करता है जब उनके पास कोई और काम नहीं होता। खादीके कामके विकासके लिए आवश्यक पाँच हजार बुनकरों, रंगरेजों और घोबियोंको यह काम देता है। प्रान्तीय तथा केन्द्रीय हिसाबका लेखा-जोखा समय-समयपर एक सार्वजनिक लेखा परीक्षक करता है। और इन हिसाबोंकी जाँच चन्दा देनेवाले या न देनेवाले, दोस्त या दुश्मन सभी कर सकते हैं। और यदि अब आपको यह भरोसा हो गया हो कि यह अनुष्ठान अच्छा है और जो लोग इस अनुष्ठानका संचालन कर रहे हैं वे विश्वसनीय और भरोसेके योग्य हैं तो मैं आपसे कहता हूँ कि आप थैलियोंके मुँह खोलिए और कमसे कम नहीं, बल्कि ज्यादासे-ज्यादा जो दे सकते हैं, वह दीजिए। और कृपया याद रखिए कि आपके चन्दे ही सब-कुछ नहीं हैं। आपके चन्दे कितने ही उदार क्यों न हों, लेकिन जबतक आप खादी नहीं पहनते, वे चन्दे बेकार हैं। मैं खादी पहननेका आपसे आग्रह करता हूँ, क्योंकि वह इन कतैयों और बुनकरोंकी मेहनतसे बनी चीज है।

अब मैं विद्यार्थियोंके अभिनन्दनपत्रका संक्षेपमें उत्तर दूंगा। छात्र मुझे बताते हैं कि वे हिन्दी नहीं सीख सकते, क्योंकि उनके पास समय नहीं है और क्योंकि वे शिक्षाको केवल व्यवसायकी दृष्टिसे ही देखते हैं अतः उन्होंने हिन्दी न जाननेके लिए तथा अपना अभिनन्दनपत्र अंग्रेजीमें ही देनेके लिए क्षमा मांगी है। जिस तरह खादीकी संकल्पना करोड़ों लोगोंके हितको ध्यानमें रखकर की गई है, उसी तरह हिन्दीकी संकल्पना भी करोड़ों लोगोंकी सुविधाको ध्यान में रखकर की गई है। अतः मुझे छात्रोंके अभिनन्दनपत्र में यह निराशावादी भावना देखकर दुःख हुआ है। जिस देशके नौजवान आशा छोड़ बैठें, उस देशका भविष्य खराब ही समझिए। छात्रोंको समझ लेना चाहिए कि सच्ची शिक्षा कालेजकी पढ़ाई या हाई स्कूलके अहातेमें नहीं मिलती, बल्कि बाहर मिलती है। संसारमें जितने भी सफल व्यक्ति हुए हैं, यदि आप उनका इतिहास जाँचें तो पायेंगे कि उन्होंने जीवनकी जरूरी बातें वास्तवमें स्कूलके बाहर सीखी थीं। और यद्यपि भारत एक गरीब देश है, फिर भी मैं यह बात स्वीकार करनेसे इनकार करता हूँ कि शिक्षाको व्यवसायको दृष्टिसे देखना चाहिए। छात्र यह याद रखें कि वे इस मानव-रूपी समुद्र में एक बूंदके समान हैं। वे यह भी याद रखें कि करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिन्होंने कभी स्कूल या कालेजमें कदम नहीं रखा है, फिर भी वे ईमानदारी- से सम्मानपूर्वक जीविका कमा रहे हैं। उन्हें यह भी समझ लेना चाहिए कि लोग छात्रोंके लिए यह एक कलंककी बात मानते हैं कि स्कूलों या कालेजोंसे निकलकर