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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अधिकांश छात्र किसी सरकारी विभाग या व्यावसायिक फर्ममें क्लक करनेका ही स्वप्न देखते हैं। मैं इसे शिक्षाका दुरुपयोग मानता हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि शिक्षा प्रणाली बिलकुल सड़ी हुई है। लेकिन स्थितिको यथावत् स्वीकार करते हुए मैं छात्रोंको यह समझानेका प्रयत्न करता रहा हूँ कि यदि वे समय रहते विचार करें तो उनके लिए इन विपरीत परिस्थितियोंमें भी अपनी सहायता आप कर सकना सम्भव है। इसीलिए मैं उनसे कहता हूँ कि करोड़ों लोगोंसे प्राप्त करें, बल्कि वास्तवमें राजस्वके उस अनैतिक आबकारी-कर – के बलपर चलनेवाले इन स्कूलोंमें जाते हुए भी वे लोग खादी और चरखेको अपनाकर ग्रामवासियोंको थोड़ा प्रतिदान दे सकते हैं। इसी प्रकार मैं कहता हूँ कि यदि वे अपनेको विध्य-पर्वतमालाके दक्षिणमें पड़नेवाले भू-भागका ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण भारतका नागरिक समझते हैं और यदि वे विध्यपर्वतके उत्तरमें रहनेवालोंके साथ जीवन्त सम्बन्ध रखना चाहते हैं तो उन्हें हिन्दी सीखनी चाहिए। इसपर वे जवाब देते हैं कि मद्रास विश्वविद्यालयकी सिनेटको सभी स्कूलों और कालेजों में हिन्दीकी शिक्षा अनिवार्य कर देनी चाहिए। मैं इस जवाबकी सचाईको स्वीकार करता हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि सभी पाठ्यक्रमोंमें हिन्दीको एक दूसरी भाषाके रूपमें लागू करना सिनेटका कर्त्तव्य है। लेकिन मैं इस कथनका समर्थन करनेसे कतई इनकार करता हूँ कि छात्र बिलकुल साधनहीन और लाचार महसूस करें और जबतक सिनेट यह आवश्यक सुधार लागू न कर दे तबतक हाथपर-हाथ धरे बैठे रहें । यहाँ मदुरैमें आपके यहाँ एक हिन्दी प्रचार कार्यालय है। आपमें से किसीके लिए भी हिन्दी सीखनेकी पूरी छूट है, और यदि आप दिनमें एक घंटा भी देंगे तो देखेंगे कि आपके लिए हिन्दी सीखना आश्चर्यजनक रूपसे सरल है। और यदि आपको अपनी शिक्षाका व्यावसायिक उपयोग ही करना है तो आपमेंसे कुछ लोग देखेंगे कि जिस प्रकार अंग्रेजीका व्यावसायिक उपयोग है उसी प्रकार इस देशमें हिन्दीका भी व्या- वसायिक उपयोग है। लेकिन मुझे मालूम हुआ है कि हिन्दी कार्यालयको भी आप स्वावलम्बी नहीं बना सके हैं। मैं इस कमीकी ओर मदुरै नगरपालिका और यहाँके नागरिकोंका ध्यान आकृष्ट करता हूँ। निश्चय ही यह एक ऐसा कार्य है जिसके लिए प्रतिवर्ष कुछ सौ रुपयेका प्रबन्ध कर पाना आपके लिए कठिन नहीं होना चाहिए।

अब मुझे उन अन्य समस्याओंकी चर्चा करनी चाहिए, जो इस देशके सामने खड़ी हैं। मैं नगरपालिकाको यह कह सकनेके लिए बधाई देता हूँ कि जहाँतक उसके स्कूलों और कार्यालयोंका सम्बन्ध है, अस्पृश्यता नामकी कोई चीज उनमें नहीं है। और मुझे यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि आपके स्कूलोंमें कुछ हजार आदिद्रविड़ लड़के और कुछ सौ आदिद्रविड़ लड़कियाँ भी पढ़ती हैं। लेकिन क्या मैं यह भी कह सकता 1 कि नगरपालिकाके लिए उनके हितार्थ और भी बहुत कुछ कर सकना सम्भव है। क्या आपने उनके लिए अच्छे आवासोंकी व्यवस्था की है ? क्या आप उनके घर- बार की देख-रेख करते हैं, क्या आप उनकी उन बुरी आदतोंकी फिक्र करते हैं जो उन्हें इसीलिए लग गई हैं कि हम उन लोगोंकी घोर उपेक्षा करते रहें? क्या आप उन्हें शराब पीनेकी लतसे मुक्त करनेकी कोशिश कर रहे हैं ? और जो एक बात में तमिल-