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पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/७८

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देशव्यापक लिपि



अतएव इन ग्रन्थों को जो लोग पढ़ सकते हैं उनको नागरी लिपि से काम लेने में बहुत सुभीता होगा। एक लिपि का होना इस देशके लिए बहुत आवश्यक है और बहुत उपयोगी है। अतएव ऐसे काम के लिए श्रम, कष्ट और खर्च आदि का विचार एक तरफ़ रख कर उसे सिद्ध करना इस देश में रहनेवाले प्रत्येक आदमी को अपना कर्तव्य समझना चाहिए । बहुत सी लिपियों के होने से अनेक हानियां हैं। इस दशा में एक प्रान्तवाले दूसरे प्रान्त की भाषा में छपी हुई पुस्तकों से लाभ नहीं उठा सकते। पर यदि सब प्रान्तों में एक ही लिपि प्रचलित हो जाय तो एक प्रान्त के आर्य भाषा बोलनेवाले दूसरे प्रान्त की आर्या भाषा की पुस्तकें सहज ही में पढ़ सकें, और,ऐसी सब भाषायें संस्कृत-मूलक होने के कारण, उनका बहुत कुछ अंश वे समझ भी सकें। ऐसा होने से भिन्न भिन्न भाषाओं को अच्छी तरह जानने में भी बहुत सुभीता होगा।

अगरेजों में से किसी किसी का मत है कि हिन्दुस्तान में रोमन अक्षरों का सार्वदेशिक प्रचार होना चाहिए। पर रोमन अक्षर यहां के लिए बिलकुल ही अयोग्य हैं। यहां की भाषाये इन अक्षरों में शुद्धता पूर्वक लिखी ही नहीं जा सकतीं। उनका अनुपयोगी होना इसीसे सिद्ध है कि गवर्नमेंट ने कचहरियों में कई बार उनके प्रचार का विचार किया। पर उनकी सदोषता और अनुपयुक्तता के कारण उसे अपने विचार को छोड़ना पड़ा। अंगरेज़ अफसर इन अक्षरों से परिचित होते हैं। अतएव अपने सुभीते के लिए यदि वे इनके प्रचार का