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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३६१

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" 6 “तू महमूद, क्या अपना तावान कतई माफ कराना चाहता है? या कम कराना चाहता है? क्या वह बहुत ज्यादा है?" “बहुत कम है।" "तू क्या देना चाहता है?" "वह तू सोच भी नहीं सकता।" "तेरी कुछ आरजू है।' सिर्फ एक।" "क्या?" “मेरी एक दौलत है, उसे ढूंढ़कर ला।” “कहाँ से?" “यही कहीं, रन के इधर-उधर।" “क्या बहुत कीमती है?" "तेरा तावान हज़ार गुना महमूद दे सकता है, पर उस दौलत की कीमत नहीं।” "उसका अता-पता?" "वह एक नाज़नीं है।" "ओफ", ताहर खूब ज़ोर से ठहाका मारकर हँसा। उसने कहा, “वाह यार, खूब दिलफेंक है तू महमूद। मगर कह, कैसी है वह महबूबा?" “लामिसाल है, सूरत में भी और सीरत में भी।" "तो खुदा की कसम, मैं उसे अभी ढूँढ़ लाऊँगा। लेकिन इनाम क्या देगा?" "अपनी सारी दौलत, बादशाहत, और तू माँगे तो जान भी।" तो तू इत्मीनान रख, तेरी दौलत सूरज निकलने से पहले ही तुझे मिल जाएगी।” और ताहर डाकू ने अपने सैकड़ों डाकुओं को शोभना की खोज में भेज दिया।" ख्वाजा अब्बास अपने ढाई हज़ार मुस्तैद सवारों के साथ रन की बांक में पड़ा, अमीर की प्रतीक्षा कर रहा था। उसने बहुत से गोइन्दे अमीर की तलाश में भेज रखे थे। ताहर के आदमियों ने शीघ्र ही उन्हें पा लिया, और सूर्योदय से प्रथम ही उन्हें ताहर की गढ़ी में ले आए। सवारों को बाहर रख उन्होंने ताहर को सूचना दी। महमूद की अंगूठी लेकर ताहर का आदमी बाहर गया और शोभना की सांड़नी को भीतर ले आया। बाकी सवार बाहर रहे। शोभना को पाकर अमीर ने दोनों हाथ उठाकर खुदा की बन्दगी की, और कहा, “मैं महमूद, खुदा का बन्दा, वही कहूँगा, जो मुझे कहना चाहिए, मैं अपने करार का पक्का हूँ। और अपने हर एक सिपाही को हुक्म देता हूँ कि उनकी ज़ीनों में जो कुछ ज़र-जवाहर हो, ताहर के कदमों में ढेर कर दे। हर एक को गज़नी लौटने पर चार-गुना मिलेगा।" देखते-ही-देखते ताहर के सामने हीरे, मोती, सोना और अशर्फियों का ढेर लग गया। महमूद ने अपने अंग से उतारकर कीमती मोती और पन्ने के कण्ठे, दस्तबन्द और कमरबन्द ताहर के सामने रख दिए। सिर्फ लालों की तस्बीह हाथ में रख ली, जिसकी कीमत पचास लाख दीनार थी। यह देखकर शोभना ने भी अपने सब रत्नाभरण ताहर के ऊपर फेंक दिए। ताहर ने कहा-