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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३६२

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66 "तुमसे तावान नहीं लूँगा।" “तावान नहीं, इनाम है।" शोभना ने रानी की गरिमा से कहा। “इनाम?” महमूद ने शोभना के आगे सिर झुकाया। इतने हीरे-मोती ज़र-जवाहर का ढेर देखकर ताहर खुशी से नाचने लगा। उसने कहा, “महमूद, यह तो सचमुच बहुत ज़्यादा है। तू जितना चाहे, वापस ले जा।" "लेकिन जितना मैं देना चाहता था, उतना यह नहीं है।" "तब तो तू सचमुच बादशाह है, ला, दोस्ती का हाथ दे।" महमूद ने अपना हाथ बढ़ाया। ताहर ने कहा, “अब मांग ले, दोस्ती के सिले में जो चाहता है।" "देना चाहता है तो मेरे आदमियों को घोड़े और हथियार दे दे। उनकी ज़ीनों में जो ज़र-जवाहर हैं, उन्हें बेशक ले ले।" "ताहर राज़ी हो गया। अमीर जाने लगा तो ताहर ने सदल-बल उसको दावत दी। नाच-रंग किया। और अमीर महमूद अपनी दिलरुबा शोभना देवी को सांड़नी पर सुनहरी काम की जाली में बैठाकर सवारों सहित रन की ओर बढ़ा। ताहर से उसने महारन के सम्बन्ध में बहुत बातें पूछी और पथ-प्रदर्शक साथ ले कूच बोल दिया।