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पृष्ठ:Vivekananda - Jnana Yoga, Hindi.djvu/३२६

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ज्ञानयोग

वह इस सूक्ष्म शरीर अर्थात् मन के परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुई एक मृगमरीचिका मात्र है। यह, बराबर चल रहा है। यह आकाश पर तैरते हुये बादल के एक टुकड़े के समान है। जैस जैसे यह चलता जाता है वैसे ही एक भ्रम उत्पन्न हो सकता है कि आकाश चल रहा है। कभी कभी जब चन्द्रमा ही के ऊपर से बादल निकलते हैं तो भ्रम होता है कि चन्द्रमा ही चल रहा है। जब आप गाड़ी में बैठे रहते हैं तो मालूम होता है कि पृथ्वी चल रही है और नाव पर बैठने वाले को पानी चलता हुआ सा मालूम होता है। वास्तव में न आप जा रहे हैं, न आ रहे हैं, न आप ने जन्म लिया है, न फिर जन्म लेंगे। आप अनन्त हैं, सर्वव्यापी हैं, सभी कार्य-कारण-सम्बन्ध से अतीत, नित्य मुक्त, अज और अविनाशी। जन्म और मृत्यु का प्रश्न ही गलत है, महामूर्खतापूर्ण है। मृत्यु हो ही कैसे सकती है जब जन्म ही नहीं हुआ।

किन्तु तर्कसंगत सिद्धान्त लाभ करने के लिए हमें अभी एक पग और बढ़ाना पड़ेगा। मार्ग के बीच में रुकना नहीं है। आप दार्शनिक हैं, आपके लिये बीच में रुकना शोभा नहीं देता। तो यदि हम नियम के बाहर हैं तो निश्चय ही सर्वज्ञ भी हैं और नित्यानन्द स्वरूप भी। सभी ज्ञान हमारे अन्दर और सभी शक्ति तथा आनन्द भी हमारे अन्दर ही है। हाँ, अवश्य ही है। आप ही जगत् के सर्वव्यापक सर्वज्ञ आत्मा हैं। परन्तु इस प्रकार की सत्ता या पुरुष क्या एक से अधिक हो सकते हैं? क्या लाखों करोड़ों पुरुष सर्वव्यापक हो सकते हैं? कभी नहीं। तब फिर हम सबका क्या होगा? हम सब एक ही हैं; इस प्रकार की आत्मा एक ही है और वह एक आत्मा ही आप सब