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  • यह भाव उदित होता है कि यह सब बनावट है। इसी से मन मुदित नहीं होता। नल की अयाचकता की प्रशंसा— स्मरोपतप्तोऽपि भृशं न स प्रभु- ⁠र्विदर्भराजं तनयामयाचत ; त्यजन्त्यसून्...
    ३७८ B (७,२८० शब्द) - १६:०७, १ नवम्बर २०२१