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हिंदी में कुल ५,३८० पाठ हैं।
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अगस्त की निर्वाचित पुस्तक
"धर्म ने हज़ारों वर्ष से मनुष्य जाति को नाको चने चबाऐ हैं। करोड़ों नर नाहरों का गर्म रक्त इसने पिया है, हज़ारों कुल बालाओं को इसने जिन्दा भस्म किया है, असंख्य पुरुषों को इसने ज़िन्दा से मुर्दा बना दिया है। यह धर्म पृथ्वी की मानव जाति का नाश करेगा कि उद्धार—आज इस बात पर विचारने का समय आगया है।
धर्म के कारण ही धर्म के पुत्र युधिष्ठिर ने जुआ खेला, राज्य हारा, भाइयों और स्त्री को दाव पर लगा कर गुलाम बनाया, धर्म ही के कारण द्रौपदी को पांच आदमियों की पत्नी बनना पड़ा। धर्म ही के कारण अर्जुन और भीम के सामने द्रौपदी पर अत्याचार किये गये और वे योद्धा मुर्दे की भांति बैठे देखते रहे। धर्म ही के कारण भीष्मपितामह और गुरुद्रोण ने पांडवों के साथ कौरवों के पक्ष में युद्ध किया, धर्म ही के कारण अर्जुन ने भाइयों और सम्बन्धियों के खून से धरती को रङ्गा, धर्म ही के कारण भीष्म आजन्म कुंवारे रहे, धर्म ही के कारण कुरुओं की पत्नियो ने पति से भिन्न पुरुषों से सहवास करके सन्तान उत्पन्न कीं।"...(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक

"छह-सात सालकी अुम्रसे लेकर १६ वर्ष तक विद्याध्ययन किया, परन्तु स्कूलमे मुझे कही धर्म-शिक्षा नहीं मिली। जो चीज शिक्षकोके पाससे सहज ही मिलनी चाहिये, वह न मिली। फिर भी वायुमडलमे से तो कुछ न कुछ धर्म-प्रेरणा मिला ही करती थी। यहा धर्मका व्यापक अर्थ करना चाहिये। धर्मसे मेरा अभिप्राय है आत्म-भानसे, आत्म-ज्ञानसे।
वैष्णव सप्रदायमे जन्म होनेके कारण बार-बार वैष्णव मदिर (हवेली) जाना होता था। परन्तु अुसके प्रति श्रद्धा न अुत्पन्न हुअी। मन्दिरका वैभव मुझे पसन्द न आया। मदिरोमे होनेवाले अनाचारोकी बाते सुन-सुनकर मेरा मन अुनके सम्बन्धमे अुदासीन हो गया। वहासे मुझे कोअी लाभ न मिला।
परन्तु जो चीज मुझे अिस मन्दिरसे न मिली, वह अपनी धायके पाससे मिल गयी। वह हमारे कुटुम्बमे अेक पुरानी नौकरानी थी। अुसका प्रेम मुझे आज भी याद आता है। मैं पहले कह चुका हूं कि मै भूत-प्रेत आदिसे डरा करता था। अिस रम्भाने मुझे बताया कि अिसकी दवा रामनाम है। किन्तु रामनामकी अपेक्षा रम्भा पर मेरी अधिक श्रद्धा थी। अिसलिअे बचपनमे मैने भूत-प्रेतादिसे बचनेके लिअे रामनामका जप शुरू किया। यह सिलसिला यो बहुत दिन तक जारी न रहा, परन्तु जो बीजारोपण बचपनमे हुआ, वह व्यर्थ न गया। रामनाम जो आज मेरे लिअे अेक अमोघ शक्ति हो गया है, अुसका कारण अुस रम्भाबाअीका बोया हुआ बीज ही है।..."(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक

कपालकुण्डला बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित एक बांग्ला उपन्यास है। इसका प्रकाशन १८६६ में हिन्दी प्रचारक पुस्तकालय, वाराणसी द्वारा किया गया था।
"लगभग ढाई सौ वर्ष पूर्व माघ मासमें, एकदिन रातके अन्तिम प्रहरमें, यात्रियोंकी एक नाव गङ्गासागरसे वापस हो रही थी। पुर्तगाली और अन्यान्य नौ-दस्युओंके कारण उस समय ऐसी प्रथा थी कि यात्री लोग गोल बाँधकर नाव-द्वारा यात्रा करते थे। किन्तु इस नौकाके आरोही संगियोंसे रहित थे। उसका प्रधान कारण यह था कि पिछली रातको घोर बादलोंके साथ तूफान आया था; नाविक दिक्भ्रम होनेके कारण अपने दलसे दूर विपथमें आ पड़े थे। इस समय कौन कहाँ था, इसका कोई पता न था। नावके यात्रियोंमें बहुतेरे सो रहे थे। एक वृद्ध और एक युवक केवल जाग रहे थे। वृद्ध युवकके साथ बातें कर रहा था। थोड़ी देरतक बातें करनेके बाद वृद्धने मल्लाहोंसे पूछा—“माझी! आज कितनी दूरतक राह तय कर सकोगे?” माझीने इधर-उधर बहकावा देकर उत्तर दिया—“कह नहीं सकते।”..."पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह प्रमाणित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- हिंदी रस गंगाधर.djvu [४२८ पृष्ठ]
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- वैशेषिक दर्शन.djvu [५५ पृष्ठ]
रचनाकार
चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 – 2 फ़रवरी 1960) हिन्दी उपन्यासकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- आग और धुआं, औपनिवेशिक दौर के भारत के इतिहास पर आधारित उपन्यास
- वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली के जीवन पर आधारित उपन्यास
- देवांगना, आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का उपन्यास
- धर्म के नाम पर, धर्म के नाम पर की जाने वाली कुरीतियों पर प्रहार करता निबंध-संग्रह।
- मेरी प्रिय कहानियाँ, कहानी संग्रह
रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (७ मई, १८६१ – ७ अगस्त, १९४१) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ :
- स्वदेश – १९१४, निबंध संग्रह
- राजा और प्रजा – १९१९, निबंध संग्रह
- विचित्र-प्रबन्ध – १९२४, निबंध संग्रह
- दो बहनें' (१९५२), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।
विकिस्रोत पर उपलब्ध सभी लेखकों के लिए देखें- समस्त रचनाकार अकारादि क्रम से।
आज का पाठ
"चुनाव का दिन निकट आ गया। एक दिन एक मुसलमान कान्स्टे-बिल गश्त करता हुआ सीरामऊ भी आ निकला। मुसलमानों ने उसका स्वागत किया। खाना-वाना खाने के बाद मु० कान्स्टेबिल बोला---"तुम किसे वोट देओगे?"
"अब हम यह सब क्या जानें! जिसे आप कहें उसे दे दें।"
"मुसलिम लीग के आदमी को देना।"
"मुसलिम लीग क्या है ?"
"मुसलिम लीग मुसलमानों की एक जमात है। वह पाकिस्तान बनवायगी।"
"पाकिस्तान क्या?"
"पाकिस्तान माने मुसलमानी राज! काँग्रेस माने हिन्दू---राज।"
"अच्छा।"
"हाँ! हिन्दुओं के बहकावे में न आजाना।"
"लेकिन एक बात तो बताओ खाँ साहब! जब कांग्रेस-राज हिन्दू-राज है तब मुसलमान उसकी तरफ से कैसे खड़े होते हैं?"
"यह उनकी अकल और क्या कहा जाय। मुसलमान होकर हिन्दू- राज पसन्द कर रहे हैं।"
"यह तो बड़े ताज्जुब की बात है।"
"खैर! ताज्जुब की यह दुनिया ही है। तुम मुसलिम लीग के आदमी को वोट देना। उनका नाम है। याद रखना भूल न जाना।"..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५०४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,४६,२२२
- प्रमाणित पृष्ठ = ११,४२१, शोधित पृष्ठ = ४७,५९७
- समस्याकारक = ४६, अशोधित = ९६,१०१, रिक्त = २,४७८
- सामग्री पृष्ठ = ५,३८०, परापूर्ण पृष्ठ = ३६८५
- स्कैन प्रतिशत = १००%
विकिमीडिया संस्थान
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