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नवम्बर की निर्वाचित पुस्तक
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सप्ताह की पुस्तक
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कुँवर उदयभान चरित इन्शा अल्ला खां द्वारा रचित सामाजिक उपन्यास है जिसका प्रकाशन १९०५ ई॰ में लखनऊ के एंग्लो-ओरियंटल प्रैस द्वारा किया गया था।


"सिर झुकाकर नाक रगड़ता हूं उस अपने बनानेवाळे के साम्हने जिस ने हम सबको बनाया और बातकी बातमें वह सब कर दिखाया जिसका भेद किसीने न पाया। आतियां जातियां जो सांसें हैं। उसके बिन ध्यान सब यह फांसें हैं॥ यह कलका पुतला जो अपने उस खिलाड़ी की सुध रक्खे तो खटाईमें क्यों पड़े और कडुवा कसैला क्यों हो। उस फलकी मिठाई चक्खै जो बड़ोंसे बड़े अगलोंने चक्खी है। देखनेको आखैं दीं और सुन्नेको यह कान दिये नाक भी ऊंची सबमें करदी मूरतोंको जी दान दिये मिट्टीके बासनको इतनी सकत कहां जो अपने कुन्हारके करतब कुछ बतासके। सच है जो बनाया हुवा हो सो अपने बनानेवालेको क्या सराहे और क्या कहे यों जिसका जी चाहे पड़ा बके।..."(पूरा पढ़ें)


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स्कंदगुप्त जयशंकर प्रसाद द्वारा १९२८ ई. में लिखा गया नाटक है। गुप्त-काल (२७५ ई०---५४० ई० तक) अतीत भारत के उत्कर्ष का मध्याह्न था। उस समय आर्य्य-साम्राज्य मध्य-एशिया से जावा-सुमात्रा तक फैला हुआ था। समस्त एशिया पर भारतीय संस्कृति का झंडाफहरा रहा था। इसी गुप्तवंश का सबसे उज्ज्वल नक्षत्र था---स्कंदगुप्त। उसके सिंहासन पर बैठने के पहले ही साम्राज्य में भीतरी षड्यंत्र उठ खड़े हुए थे। साथ ही आक्रमणकारी हूणों का आतंक देश में छा गया था और गुप्त-सिंहासन डाँवाडोल हो चला था। ऐसी दुरवस्था में लाखों विपत्तियाँ सहते हुए भी जिस लोकोत्तर उत्साह और पराक्रम से स्कंदगुप्त ने इस स्थिति से आर्य साम्राज्य की रक्षा की थी---पढ़कर नसों में बिजली दौड़ जाती हैं। अन्त में साम्राज्य का एक-छत्र चक्रवर्तित्व मिलने पर भी उसे अपने वैमात्र एवं विरोधी भाई पुरगुप्त के लिये त्याग देना, तथा, स्वयं आजन्म कौमार जीवन व्यतीत करने की प्रतिज्ञा करना---ऐसे प्रसंग हैं जो उसके महान चरित पर मुग्ध ही नहीं कर देते, बल्कि देर तक सहृदयों को करुणासागर में निमग्न कर देते हैं। ( स्कंदगुप्त पूरा पढ़ें)


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रचनाकार
रचनाकार

बालमुकुंद गुप्त (14 नवंबर 1865 — 18 सितंबर 1907) हिंदी के निबंधकार, कवि, नाटककार और संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. शिवशम्भु के चिट्ठे — पत्र शैली में लिखा गया व्यंग्य संग्रह

जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 — 15 नवंबर 1937), हिंदी भाषा के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. स्कंदगुप्त (1928), गुप्तकाल के अंतिम प्रसिद्ध शासक पर आधारित ऐतिहासिक नाटक
  2. एक घूँट (1929), हिंदी भाषा की प्रथम एकांकी
  3. आकाशदीप (1929), उन्नीस कहानियों का संग्रह
  4. ध्रुवस्वामिनी (1935), क्लीव पति से विवाहित हिंदू स्त्री के मुक्ति की गाथा पर आधारित नाटक
  5. कामायनी (1936), जल-प्लावन की गाथा पर आधारित आधुनिककालीन हिंदी का सबसे लोकप्रिय महाकाव्य
  6. काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध (1939), आठ निबंधों का संग्रह
  7. आँधी (1955), ग्यारह कहानियों का संग्रह

आज का पाठ

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उपन्यास रामचंद्र शुक्ल द्वारा रचित हिन्दी साहित्य का इतिहास का एक अंश है जिसके दूसरे संस्करण का प्रकाशन काशी के नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा १९४१ ई॰ में किया गया।

"पहले मौलिक उपन्यास लेखक, जिनके उपन्यासों को सर्वसाधारण में धूम हुई, काश के बाबू देवकीनंदन खत्री थे। द्वितीय उत्थान-काल के पहले ही ये नरेंद्रमोहिनी, कुसुमकुमारी, वीरेंद्रवीर आदि कई उपन्यास लिख चुके थे। उक्त काल के आरंभ में तो 'चद्रकांता संतति' नामक इनके-ऐयारी के उपन्यासों की चर्चा चारों ओर इतनी फैली कि जो लोग हिंदी की किताबें नहीं पढ़ते थे वे भी इन नामों से परिचित हो गए।..."(पूरा पढ़ें)

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