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"जब मनुष्य ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग में पैर रखता है तो सबसे कठिन बात जो इस शिष्य को मालूम होती है वह मन को अपने वश में रखना है। यह कितना क्लिष्ट और कष्टसाध्य कार्य है, इसका केवल वे ही मनुष्य अनुभव कर सकते हैं जिन्होंने इसके लिए कुछ परिश्रम किया है। जब हम विचारों को अपने आधीन रखने के सम्बंध में सोचते हैं तब हमें कुछ अनुभव होता है कि मन सदैव कितना उद्दंड और अशासित अवस्था में रहता रहा है और वह कैसे हर प्रकार की और हर विषय की विचार तरंगों का पात्र रहा है और कैसे सब प्रकार के संकल्प विकल्पों का द्वार रहा है। इस बात को देखकर हमें बड़ा विस्मय होता है और साथ ही साथ लज्जा भी आती है कि हम ने कितना अमूल्य समय व्यर्थ चंचल विचारों में नष्ट कर दिया है। वह समय जिसको यदि हम उचित रीति से उपयोग में लाते और उसको किसी अभीष्ट के सिद्ध करने में लगाते तो निस्संदेह हम शक्तिशाली और दृढ़ चारित्रवान बन जाते। ऐसा समय यदि हम शुभ विचारों और शुभ भावनाओं में लगाते तो हमारा जीवन सुधर जाता, हमारी अंतरात्मा पवित्र हो जाती, हम प्रभावशाली बन जाते और हम में आत्मिक शक्ति का महत्व आ जाता।"...(पूरा पढ़ें)

आकाश-दीप लीडर प्रेस, इलाहाबाद द्वारा १९२९ ई. में प्रकाशित जयशंकर प्रसाद का कहानी संग्रह है। इसमें १९ कहानियाँ हैं- आकाश-दीप, ममता, स्वर्ग के खँड़हर में, सुनहला साँप, हिमालय का पथिक, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, देवदासी, समुद्र-संतरण, वैरागी, बनजारा, चूड़ीवाली, अपराधी, प्रणय-चिह्न, रूप की छाया, ज्योतिष्मती, रमला तथा बिसाती।
""बन्दी! "
"क्या है? सोने दो।"
"मुक्त होना चाहते हो?"
"अभी नहीं, निद्रा खुलने पर, चुप रहो।"
"फिर अवसर न मिलेगा।"
"बड़ा शीत है, कहीं से एक कम्बल डाल कर कोई शीत से मुक्त करता।"
"आँधी की सम्भावना है। यही अवसर है। आज मेरे बंधन शिथिल हैं।”
“तो क्या तुम भी बन्दी हो?"
“हाँ, धीरे बोलो, इस नाव पर केवल दस नाविक और प्रहरी हैं।”
“शस्त्र मिलेगा?”
"मिल जायगा। पोत से सम्बद्ध रज्जु काट सकोगे?”
"हाँ। "
समुद्र में हिलोरें उठने लगीं। दोनों बंदी आपस में टकराने लगे। पहले बंदी ने अपने को स्वतंत्र कर लिया। दूसरे का बंधन खोलने का प्रयत्न करने लगा। लहरों के धक्के एक दूसरे को स्पर्श से पुलकित कर रहे थे। मुक्ति की आशा--स्नेह का असम्भावित आलिंगन। दोनों ही अन्धकार में मुक्त हो गये। दूसरे बंदी ने हर्षातिरेक से, उसको गले से लगा लिया। सहसा उस बंदी ने कहा--“यह क्या? तुम स्त्री हो?"
"क्या स्त्री होना कोई पाप है?"--अपने को अलग करते हुए स्त्री ने कहा।..."(पूरा पढ़ें)
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अहिल्याबाई होलकर गोविन्दराम केशवराम जोशी द्वारा रचित मराठा मालवा साम्राज्य की होलकर साम्राज्ञी अहिल्याबाई होलकर की जीवनी है जिसका प्रकाशन १९१६ ई. में हुआ था।
"महाराष्ट्र देश भारत के दक्षिण भाग में है। इसके उत्तर की ओर नर्मदा नदी, दक्षिण में पुर्तगीजो का देश, पूर्व में तुंगभद्रा नदी और पश्चिम में अरब की खाड़ी है। इस देश के रहने वाले महाराष्ट्र अथवा मरहठे कहलाते हैं। जिस समय औरंगजेब बादशाह सारे भारतवर्ष में हिंदू राज्यों का नाश करने में लगा हुआ था, उस समय इसी महाराष्ट्र कुल के एकमात्र वीरशिरोमणि जगतप्रख्यात महाराज शिवाजी ने सारे भारत में एक नवीन हिंदू राज्य स्थापित किया था। इनके साथ ही महाराष्ट्र देश में और भी अनेक वीर हुए थे और वे वीर भी शिवाजी की नाई अति सामान्य वश में जन्म लेकर अपने अपने उद्योग और वाहुबल से एक एक राज्य और राजवंश की प्रतिष्ठा कर गए हैं। इन अनेक वंशों में से आज दिन तक भारतवर्ष में कई राज्य वर्तमान हैं। इनही वीर पुरुषों में एक साहसी बहादुर और योद्धा मल्हारराव होलकर भी हुए हैं और “श्रीमती महारानी देवी हिल्याई” इन्हीं मल्हारराव होलकर की पुत्रवधू थी।..."(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- इस माह प्रमाणित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
- हिंदी रस गंगाधर.djvu [४२८ पृष्ठ]
- इस माह शोधित करने के लिए चुनी गई पुस्तक:
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (१५ अप्रैल, १८६५ - १६ मार्च, १९४७) हिन्दी के कवि, निबंधकार तथा संपादक थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- प्रियप्रवास (१९१४) खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य जो कृष्ण के गोकुल से मथुरा प्रवास की घटना पर आधारित है।
- चोखे चौपदे, (१९२४), हरिऔध हजारा नाम से भी प्रसिद्ध इस पुस्तक में एक हजार चौपदे हैं।
- वेनिस का बाँका (१९२८) अंग्रेजी नाटक मर्चेंट ऑफ वेनिस का अनुवाद है।
- रसकलस (१९३१) मुक्तकों का संग्रह है।
- रस साहित्य और समीक्षायें, (१९५६), आलोचनात्मक निबंधों का संग्रह।
- हिंदी भाषा और उसके साहित्य का विकास,
विकिस्रोत पर उपलब्ध सभी लेखकों के लिए देखें- समस्त रचनाकार अकारादि क्रम से।
आज का पाठ
"भोला महतो ने पहली स्त्री के मर जाने के बाद दूसरी सगाई की, तो उसके लड़के रग्घू के लिए बुरे दिन आ गये। रग्घू की उम्र उस समय केवल दस वर्ष की थी। चैन से गाँव में गुल्ली-डंडा खेलता फिरता था। माँ के आते ही चक्की में जुतना पड़ा। पन्ना रूपवती स्त्री थी और रूप और गर्व में चोली-दामन का नाता है। वह अपने हाथों से कोई मोटा काम न करती। गोबर रग्घू निकालता, बैलों को सानी रग्घू देता। रग्घू ही जूठे बरतन माँजता। भोला की आँखें कुछ ऐसी फिरीं कि उसे अब रग्धू में सब बुराइयाँ-ही-बुराइयाँ नज़र आतीं। पन्ना की बातों को वह प्राचीन मर्यादानुसार आँखें बन्द करके मान लेता था।.."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- सभी विषय देखें
- कुल पुस्तकें = ५०४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,५०,४६६
- प्रमाणित पृष्ठ = ११,८४७, शोधित पृष्ठ = ५१,७१३
- समस्याकारक = ५१, अशोधित = ९६,१८५, रिक्त = २,५१७
- सामग्री पृष्ठ = ५,४८३, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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