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जनवरी की निर्वाचित पुस्तक
भारत का संविधान भारत का सर्वोच्च विधान है, जिसके अनुवादक डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद हैं। यह संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को पारित किया गया।
"हम, भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये, तथा उस के समस्त नागरिकों को : सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिये दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान-सभा में आज तारीख़ २६ नवम्बर, १९४९ ई॰ (मिति मार्गशीर्ष शुक्ला सप्तमी, संवत् दो हज़ार छः विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अङ्गीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।..."पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
चन्द्रकान्ता सन्तति 6 बाबू देवकीनन्दन खत्री द्वारा रचित उपन्यास है जिसका प्रकाशन सन् १८९६ ई॰ में दिल्ली के भारती भाषा प्रकाशन द्वारा किया गया था।
"भूतनाथ अपना हाल कहते-कहते कुछ देर के लिए रुक गया और इसके बाद एक लम्बी साँस लेकर पुनः यों कहने लगा।
भूतनाथ-मैं अपने को कैदियों की तरह और अपने सामने अपनी ही स्त्री को सरदारी के ढंग पर बैठे हुए देखकर एक दफे घबड़ा गया और सोचने लगा कि यह क्या मामला है? मेरी स्त्री मुझे सामने ऐसी अवस्था में देखे और सिवाय मुस्कुराने के कुछ न बोले! अगर वह चाहती तो मुझे अपने पास गद्दी पर बैठा लेती, क्योंकि इस कमरे में जितने दिखाई दे रहे हैं उन सभी की वह सरदार मालूम पड़ती है-इत्यादि बातों को सोचते-सोचते मुझे क्रोध चढ़ आया और मैंने लाल आँखों से उसकी तरफ देखकर कहा, "क्या तू मेरी स्त्री वही रामदेई है जिसके लिए मैंने तरह-तरह के कष्ट उठाये और जो इस समय मुझे कैदियों की अवस्था में अपने सामने देख रही है?"..."(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
कामायनी जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य है। १९३६ ई. में पहली बार प्रकाशित इस कृति को १९९२ ई. में मयूर पेपरबैक्स द्वारा प्रकाशित किया गया था।
"आर्य साहित्य में मानवों के आदिपुरुष मनु का इतिहास वेदों से लेकर पुराण और इतिहासों में बिखरा हुआ मिलता है। श्रद्धा और मनु के सहयोग से मानवता के विकास की कथा को, रूपक के आवरण में, चाहे पिछले काल में मान लेने का वैसा ही प्रयत्न हुआ हो जैसाकि सभी वैदिक इतिहास के साथ निरुक्त के द्वारा किया गया, किंतु मन्वंतर के अर्थात् मानवता के नवयुग के प्रवर्त्तक के रूप में मनु की कथा आर्यों की अनुश्रुति में दृढ़ता से मानी गयी है। इसलिए वैवस्वत मनु को ऐतिहासिक पुरुष ही मानना उचित है। प्रायः लोग गाथा और इतिहास में मिथ्या और सत्य का व्यवधान मानते हैं। किंतु सत्य मिथ्या से अधिक विचित्र होता है। आदिम युग के मनुष्यों के प्रत्येक दल ने ज्ञानोन्मेष के अरुणोदय में जो भावपूर्ण इतिवृत्त संगृहीत किये थे, उन्हें आज गाथा या पौराणिक उपाख्यान कहकर अलग कर दिया जाता है, क्योंकि उन चरित्रों के साथ भावनाओं का भी बीच-बीच में संबंध लगा हुआ-सा दीखता है। घटनाएं कहीं कहीं अतिरंजित-सी भी जान पड़ती हैं। तथ्य-संग्रह-कारिणी तर्कबुद्धि को ऐसी घटनाओं में रूपक का आरोप कर लेने की सुविधा हो जाती है। किंतु उनमें भी कुछ सत्यांश घटना से संबद्ध है, ऐसा तो मानना ही पड़ेगा।..."(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/सितंबर २०२४
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/जुलाई 2024
- शोधित की जा रही पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
जयशंकर प्रसाद (30 जनवरी 1889 — 15 नवंबर 1937), हिंदी भाषा के कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार तथा निबंधकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- स्कंदगुप्त (1928), गुप्तकाल के अंतिम प्रसिद्ध शासक पर आधारित ऐतिहासिक नाटक
- एक घूँट (1929), हिंदी भाषा की प्रथम एकांकी
- आकाशदीप (1929), उन्नीस कहानियों का संग्रह
- ध्रुवस्वामिनी (1935), क्लीव पति से विवाहित हिंदू स्त्री के मुक्ति की गाथा पर आधारित नाटक
- कामायनी (1936), जल-प्लावन की गाथा पर आधारित आधुनिककालीन हिंदी का सबसे लोकप्रिय महाकाव्य
- काव्य और कला तथा अन्य निबन्ध (1939), आठ निबंधों का संग्रह
- आँधी (1955), ग्यारह कहानियों का संग्रह
मोहनदास करमचन्द गाँधी (2 अक्टूबर 1869 — 30 जनवरी 1948) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत, दार्शनिक, लेखक एवं पत्रकार। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- हिन्द स्वराज (1907), गाँधी-दर्शन की पहली सैद्धांतिक पुस्तक
- सत्य के प्रयोग (1948), आत्मकथा
- रामनाम (1949), गाँधी के विचारों का संग्रह
आज का पाठ
"यह बात सच है कि आज भारतवर्ष में ४० हज़ार मील रेल की सड़कें हैं। परन्तु इनका कैसे निर्माण हुआ, कैसे आर्थिक सहायता मिली, कैसे इनका प्रयोग किया जाता है आदि बातों की कथा में निन्दा के अतिरिक्त और कुछ मिल नहीं सकता। भारतीय रेलवे नीति ने भारतवर्ष के हितों की कभी परवाह नहीं की। इनका मुख्य उद्देश्य केवल ब्रिटेन का युद्ध-सम्बन्धी या व्यापारसम्बन्धी स्वार्थ-साधन रहा है। भारतीय रेलों के निर्माण-कर्ता या सञ्चालक अँगरेज़ों के गुट्ट थे जिन्हें कभी किसी प्रकार का घाटा नहीं हुआ। उलटा उन्होंने भारत के कर-दाताओं के सैकड़ों रुपये मूँड़ लिये।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५१४
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६५,२८१
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,६०४, शोधित पृष्ठ = ७२,२०२
- समस्याकारक = ९, अशोधित = ९०,३००, रिक्त = २,७७०
- सामग्री पृष्ठ = ५,८५९, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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