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  • न तो सुश्रुत ही महाराज ने लिखा, न उनके टीकाकार डल्लन ही ने। इसके बाद शान्तिपाठ सुनकर मित्र जनो से सेवा किया गया वह मनुष्य कुश-शय्या* के ऊपर काला मृगचर्म...
    ४५३ B (५,२४४ शब्द) - १८:१२, २७ नवम्बर २०२१
  • आपका बड़ा उपकार मानूंगा (“ओं शान्तिः शान्तिः शान्तिः”) इसमें तीन वार शान्तिपाठ का यह प्रयोजन है कि विविधताप अर्थात् इस संसार में तीन प्रकार के दुःख हैं...
    ७०६ B (६,८८१ शब्द) - ०३:२६, ४ अगस्त २०२३