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पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१०५

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गांधीजी बहुत ज्यादा सबूत हैं कि बहुतेरे कांग्रेस-कमियोंके हुवयमें काफी हिंसा भरी है और उनमें स्वार्थकी मात्रा भी बहुत ज्यादा है। अगर काँग्रेस कार्यकर्ता अहिंसाकी सच्ची भावनासे ओत- प्रोत होते, तो स्वतंत्रता हमें १९२१ मे ही मिल गयी होती और हमारा इतिहास आज कुछ दूसरा ही लिखा गया होता। लेकिन मुझे शिफायत नहीं करनी चाहिए। जो औजार मेरे पास हैं उन्हींसे मुझे काम करना है। मैं इतना ही चाहता हूं कि कांग्रेसी लोग मेरी ऊपरसे दीख पड़ने वाली अप्रियताका कारण जान लें। हरिजन-सेवक २५ मई, १९४० सत्याग्रह अभी नहीं पाठकोंको इसी अंक, अन्यत्र ऑ० राममनोहर लोहियाका लेख पढ़नको मिलेगा, जिसमें तुरंत सत्याग्रह छेड़ देनेकी दलील है। विश्व शान्ति कायम करने के लिए उन्होंने जो नुसखा बताया है मैं उसकी ताईद परता हूँ। अपने नुस्खेको स्वीकार करानेके लिए मह तुरंत सत्याग्रह छेड्याना चाहते हैं। यहाँ मेरा उनसे मतभेव है। अगर लोहिया अहिंसाको किया- की मेरी धारणाको मानते हैं, तो वह तुरंत मान लेंगे कि सत्याग्नहके जरिये अंग्रेजोंको ठीक विवा प्रभावित करनेके लिए इस वक्त वातावरण नहीं है। डॉ. लोहिया यह कबूल करते हैं कि प्रिटिश सरकारको तंग नहीं करना चाहिए। मुझे भय है कि सविनय अवज्ञाकी तरफ बढ़ाये गये किसी भी फवमसे उसको परेशानी जहर होगी। अगर मैं अभी सविनय अवज्ञा शुरू करता हूँ, तो उसका सारा तात्पर्य ही नष्ट हो जायगा। देश अगर स्पष्ट रूपसे अहिंसात्मक होता और उसमें पूर्ण अनुशासन होता, तो मैं बगैर किसी हिचकिचाहटके सत्याह शुरू कर देता। पर दुर्भाग्यवश काँग्रेसके बाहर बहुतेरे ऐसे बल हैं जिनका न तो अहिंसा और न सत्याग्रहमें विश्वास है । खुए काँग्नेसके अन्दर भी अहिंसाको सामताके विषयमें सब तरहके मत रखनेवाले लोग हैं। भारतकी रक्षाके लिए हिंसाके प्रयोग, विश्वास रखनेवाले काँग्रेसी तो अंगुलियोंपर गिने जा सकते हैं। यपि हम लोगोंने अहिंसाकी तरफ काफी लंबे अग भरे है तो भी अभीतक हम ऐसी मंजिलपर नहीं पहुंचे हैं जहाँ कि हम अजेय होनेकी MRI कर सके। इस अक्स कोई भी गलत कदम रखनेका मतीमा ' यह होगा कि काँग्रेसने जो महान् नैतिक प्रतिष्ठा प्राप्त की है उसका अंत हो जाय। हम लोगोंने काफी तौरपर यह दिखा दिया है कि कांग्रेस साम्राज्यवावका साथ छोड़ चुकी है और बह बास्म-निर्णयक निधि अधिकारसे कममें किसी तरह संतुष्ट न होगी। !