अहिसा -- अगर ब्रिटिश सरकार भारतको अपने-आप ही अपने विधान और मर्यावाका निर्णय करनेका अधिकार रखनेवाले स्वतंत्र वेशके रूपले घोषित नहीं करती, तो मेरा मत है कि मित्र-राष्ट्रोंके बीच हो रही लढाईको गर्मी शांत हो जाने और भविष्यके अधिक स्पष्ट होनेतक हमें प्रतीक्षा करनी चाहिए। हम ब्रिटेन के विनाशरो अपनी स्वतंत्रता नहीं चाहते। यह अहिंसाका तरीका नहीं है। लेकिन अगर सचमुच हममे ताकत है, तो उसका प्रदर्शन करनेके अनेक अवसर हमें मिलगे। चाहे कोई पक्ष विजयी हो, सुलह तो होगी ही। उस वक्त हम अपनी ताकतका असर डाल सकते है। क्या हममें वह ताकत है ? क्या आधुनिक सैनिक सामग्रीसे रहित होनेपर भारतके मनमें शांति है ? क्या आक्रमणके खिलाफ अपनी रकामे असमर्थ होनेके कारण भारत अपमेको असहाय नहीं महसूस करता? क्या काँग्रेसवाले तक अपने आपको सुरक्षित अनुभव करते है ? अथवा, क्या वे यह महसूस नहीं करते कि कम-से-कम अभी चंद सालोतम हिन्दुस्तानको रिटेन या किसी दूसरी शक्तिको मदनकी जरूरत पड़ेगी? अगर हमारी यह दुर्भाग्यपूर्ण दुर्दशा है। तप हम लड़ाईके बाद किसी सम्मानपूर्ण सुलह व विश्वव्यापी निशस्त्रीकरण के काममें कोई प्रभावकारक योग वेनेकी आशा कैसे कर सकते है ? इसके पहिले कि हम पश्चिमके पूर्णतः भारत्र-सज्जित राष्ट्रोंको प्रभावित करनेकी उम्मीद करें, हमें पहिले अपने ही देश में शक्तिमानोंकी अहिंसाके सामर्थ्यका प्रदर्शन करना होगा। लेकिन बहुत-से कामेसी अहिंसाफे साथ खिलवाड़ कर ऐ है। किसी भी तरह सविनय अवज्ञा शुरू कर नेकी बात सोचते है, जिससे उनका मतलब औलोको भर बेना होता है। सत्याग्रहमें मिहित महान् नापितको यह बच्चों जैसी व्याख्या है। चाहे इससे लोगोंको उबकाई आये, मगर मैं बार बार दोहराता रहूंगा कि सध्धे रचनात्मक प्रयत्नको आधार बिना अथवा अपराधीके हवषमें अभ भावना पैदा किये बगैर जेल जाना हिंसा है, अतः सत्याग्रहमें यह मना है। मनुष्यको बुद्धि अबतक जितने भी अस्त्रोका निर्माण कर सकी है उन सबको सम्मिलित शक्सिसे भी अहिंसा द्वारा उत्पन्न शक्ति कहीं बढ़-चढ़कर है। इसलिए सत्याग्रहमें अहिंसा ही प्रधान निर्मायक अंग है। भारतके इतिहास के इस अत्यात विषम क्षणमें मैं उस शक्तिसे खिलवाड़ नहीं करूंगा जिसकी अशा संभावनाओंकी खोज मेमन्नतापूर्वक लगभग ५० वर्षों से कर रहा हूँ। सौभाग्य-वश, अन्ततोगत्वा तो मैं अपनी शक्तिका सहारा लेने के लिए खुद तो हूं ही। मुझसे कहा गया है कि लोग रातो-रात हिंसात्मक नहीं बन जा सकते। मैने कभी नहीं कहा कि बम सकते है। लेकिन मैंने इसमा माना है कि अगर उनमें वसा अतमेकी बढ़ गया है तो इनित शिक्षण वे पैसे बन सकते हैं। जो लोग सत्याग्रह करना चाहें उनके लिए सक्रिय अहिंसा जरूरी है, लेकिन सस्थाग्रहके अर्थ धुने गये लोगों के साथ सहयोग करनेवालों के लिए बढ़ संकल्प और उचित शिक्षण काफी है। काँग्रेसने जो रचना- स्मक कार्य निर्धारित कर दिया है वही अधित शिक्षण है । यारी हो जानेको हालतमें शायर कांग्रेसकी वेन सही तरीकेपर लड़ाई खत्म करनेकी दिशा में सबसे अधिक प्रभावकारी होगी। ३२७
पृष्ठ:अहिंसा Ahimsa, by M. K. Gandhi.pdf/१०६
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