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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/११२

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गुरू नानक ५५ धरमदास यह अरज करतु हैं सुमिरन दै गैलो | सार सबद गुरु नानक रू नानक का जन्म सं० १५२६ वि० कार्तिक की पूर्णिमा के दिन चार घड़ी रात रहे कल्यान- चन्द खत्री की धर्मपत्नी तृप्ता के गर्भ से हुआ । कल्यानचन्द, जिला लाहौर, तहसील शरक- पुर के तलवंडी नगर के सूबाराय बुलार पठान के कारकुन थे । गुरु नानक ने बालकपन ही में अपनी विलक्षण बुद्धि के अपूर्व चमत्कार दिखाये । ये बहुत सीधे सादे और संत स्वभाव के थे । सं० १५४५ वि० में इनका विवाह गुरुदासपुर के मूलचन्द खत्री की कन्या सुलक्षणी से हुआ । संवत् १५५१ और १५५३ वि० में सुलक्षणी देवी के गर्भ से क्रमशः श्रीचन्द्र और लक्ष्मीचंद्र, दो पुत्रों का जन्म हुआ । आगे चल कर श्री चंद्र उदासी साधू सम्प्रदाय का मूल पुरुष हुआ । और लक्ष्मी- चंद के वंश के लोग अब तक वर्त्तमान हैं । गुरु नानक जी के समय में मुसलमानों के अत्याचार हिन्दू जाति त्राहि त्राहि कर रही थी। गुरू नानक जी के सदु पदेश से हिन्दुओं में एक ऐसा सिखसमुदाय पैदा हो गया जिस ने हिन्दुओं की मान मर्यादा ही नहीं बचाई बल्कि मुसल- मानी सलतनत की जड़ तक हिला दी । विचार करके देखा जाय तो गुरू नानक जी ने हिन्दुओं का बड़ा भारी उपकार किया ! गुरु नानक जी मे संवत् १५५६ से १५७६ तक भागा