सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/११३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५८ कविता-कौमुदी बिहार, बंगाल, आसाम, ब्रह्मा, उड़ीसा, मारवाड़, हैदराबाद, मद्रास, लंका, बद्रीनारायण, नेपाल, सिकम, भूटान, सिंध, मक्का, जद्दा, मदीना, रूम, बग़दाद, ईरान, बिलोचिस्तान, कंधार, काबुल, और कश्मीर की यात्रा की। यात्रा में ये जहाँ जहाँ गये वहाँ वहाँ के लोग इनके उपदेश से बहुत लाभ उठाते रहे। काशी में गुरू नानक और कबीर साहब से भी धर्मचर्चा हुई थी। अंत के १६ वर्ष इन्होंने कर्तारपुर में बिता - कर ६६ वर्ष १० महीना और १० दिन की अवस्था (सं० १५६५) में शरीर छोड़ा । गुरू नानक जी की शिक्षा ने पंजाब में सिखों की एक जाति ही बना दी । इनके बाद जितने गुरु हुये, सब एक से एक बढ़कर पराक्रमी, प्रतापी और बुद्धिमान थे । यह गुरू नानक जी की ही शिक्षा का फल था कि गुरु गोविन्दसिंह सरीखे शूर बीर हिन्दुओं में पैदा हुये । हम गुरू नानक जी की कविता के कुछ नमूने यहाँ उद्धृत करते हैं- सुपैदु | कलियाँ थी घडले भये धडलियों भये नानक मता मतो दियाँ उज्जरि गइया खेडु ॥ १ ॥ जागोरे जिन जागना अब जागनि की बारि । फेरि कि जागो नानका जब सेावउ पाँच पसारि ॥ २ ॥ मिश्र दोस्त माल धन छडि चले अति भाइ । संगि न कोई नानका उह हंस अकेला जाइ ॥ ३ ॥ जेही पिरीति लगं दिया तोड़ निबाहू हो । नानक दरगह जाँदियाँ ठक न सक्के कोइ ॥ ४ ॥ सूरा एकम सोई आखियन जो लड़नि दलों में जाय । नानका जो मंनणु हुकुम रजाय ॥ ५ ॥