सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६३
सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला ६३ अच्छा सम्बंध कायम रखने के लिए मै इस खास विषय में भी तुम लोगों की तसल्ली कर देने की कोशिश करूंगा। "तुम ईसाई हो और जानते हो कि किसी झगड़े को बनाए रखने की निस्वत उसे आपस में नय कर डालना कितना ज़्यादा अच्छा है। किन्तु यदि तुम यह सङ्कल्प ही कर चुके हो कि अपनी लडाई की इच्छा के सामने अपनी कम्पनी के हित और अलग अलग व्यापारियों के फायदे दोनों को करवान कर दो, तो इसमें मेरी कोई ज़िम्मेदारी न होगी। इस तरह की लडाई बरबाद कर देने वाली होती है, उसके नतीजे घातक होते हैं, इन धातक नतीजों को रोकने के लिए ही मैं यह पत्र लिख रहा हूँ।"* निस्संदेह यह पत्र सिराजुद्दौला की दूरदर्शिता, उसकी शांति- प्रियता, उसकी बरदाश्त, उसकी उदारता और उसकी प्रजापालकता, इन सब का पूरी तरह घोतक है। किन्तु अभी तक उसे इस बात का काफ़ी तजरबा न हुआ था कि इन विदेशी व्यापारियों के साथ किसी तरह का भी समझौता कहाँ तक टिक सकता है। अंगरेज़ों ने जब नवाब को सुलह के लिए उत्सुक पाया तो नीचे लिखी शर्ते पेश की:- छल से सिराजुद्दौला हाला (१) अंगरेज़ों का जितना नुकसान हुआ है का कलकत्ते बलाया जाना उस सव का पूरा पूरा हरजाना दिया जाय ! (२) कम्पनी को बंगाल में जितनी रियायते मिली हुई थी वे सब पूरी तरह फिर से दे दी जावें। -- --


...-.-- --- .. - ...- -

Ihes tryinges, p 109