पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३९३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६५
भाषण : रामनाडकी सार्वजनिक सभामें

फिर चरखेके पक्षमें अर्थशास्त्रीय तर्क जुटानेकी, उसे सिद्ध करनेकी कोई जरूरत ही नहीं रह जाती। तब तो हमारे लिए इतना ही जानना काफी होगा कि चरखेसे कोई हानि नहीं हो सकती और उपयोगकर्ताओंके लिए चरखा एक उपयोगी वस्तु है, क्योंकि चरखेने कुछ महिलाओंको जीविका जुटाई है। अगर ये तथ्य हो हमारी आस्थाको दृढ़ बनाने में और करोड़ों लोगोंको चरखा अपनाने के लिए प्रवृत्त करने में समर्थ हो जायें तो पर्याप्त है। इसलिए कि एक बड़ी सीधी-सी बात है जिसे हर कोई आसानीसे समझ सकता है और वह यह है कि जब देशके करोड़ों जन ऐसी किसी वस्तुपर अपनी आस्था जमा देंगे तो सारे राष्ट्र में एक जबर्दस्त शक्ति पैदा हो जायेगी, एक सम्मिलित शक्ति जो अदमनीय होगी। मुझे चरखेपर ऐसी ही आस्था है और इसलिए मुझमें इतना धैर्य है कि मैं इस महान परन्तु विपदग्रस्त देशकी जनतामें चरखेके प्रति एक सामान्य जागृति पैदा होने और उस जागृतिके फलस्वरूप सामान्य आस्था पैदा होनेके दिनका इन्तजार कर सकता हूँ ।

आपने अपने मानपत्रमें शाही आयोगका उल्लेख किया है। लगभग १७ दिनसे, बल्कि ठीक हिसाब लगाया जाये तो इधर २३ दिनसे मुझे भारतके घटनाक्रम के बारेमें लगभग नहींके बराबर जानकारी रही है, क्योंकि उस सुन्दर, सुवासित द्वीपमें जाकर मेरे पास जानकारी प्राप्त करनेका ऐसा कोई साधन नहीं रह गया था। हाँ, कोलम्बोके स्थानीय समाचारपत्रोंमें कुछ छुटपुट खबरें मिल जाती थीं। अब देशमें लौटनेपर मैं सारी घटनाओंका सिलसिला समझनेकी कोशिश करूँगा । और तबतक तो मैं वही दोहरा जो मैंने लंकामें समाचारपत्रोंके प्रतिनिधियोंसे कहा था -- यह कि शाही आयोगके मामले में मैंने तय कर लिया है कि अपनी अन्तरात्माकी बात न सुनकर मैं कांग्रेस के अध्यक्ष और कांग्रेसके सामान्य सदस्योंकी इच्छाके मुताबिक ही चलूँगा ।[१]


आपका अनुरोध है कि यहाँ एक खादी-केन्द्र खोल दिया जाये । यदि यह किसी भी तरह सम्भव होता तो मुझे भरोसा है कि अखिल भारतीय चरखा संघकी परिषद अबतक यहाँ एक शाखा कबकी स्थापित कर चुकी होती । मैं जानता हूँ कि कताई और बुनाईके लिए यह स्थान अनुकूल है। परन्तु देशके भिन्न-भिन्न भागोंमें केन्द्र स्थापित करने के लिए संघ तीन चीजें देखता है -- अमुक स्थानपर ठीक ढंगके कार्य- कर्ता हों, उपयुक्त वातावरण हो और धन सुलभ हो । घनकी कठिनाई नहीं है और होती भी तो आप अब थैली भेंट कर ही चुके हैं। अनुकूल परिस्थितियाँ भी मौजूद हैं। लेकिन सबसे बड़ी कठिनाई तो ठीक ढंगके कार्यकर्त्ता पानेकी और यह कठिनाई देशमें हर जगह महसूस की जा रही है। देशमें ऐसे कार्यकर्त्ताओंकी संख्या अँगुलियोंपर गिनने लायक ही है जो आत्मत्यागी हों, मेहनतसे काम करें और चरखे तथा करघे और खादी व्यवसायके तरीकोंका अध्ययन करनेमें दिमाग लगायें। अगर आपके यहाँ इन गुणोंसे युक्त कार्यकर्ता मौजूद हों, तो मैं कहूँगा कि आप अखिल भारतीय चरखा संघकी तमिलनाडु शाखाके मन्त्री श्रीयुत रामनाथनसे तुरन्त लिखा-पढ़ी शुरू कर दें।

  1. १. देखिए “भेंट: पत्र-प्रतिनिधियोंसे ", १३-११-१९२७ ।