पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२३५. हिन्दू-मुस्लिम एकता

हालमें जब मैं दिल्ली गया था, डाक्टर अन्सारीने मुझसे कहा कि मैंने कलकत्तामें विश्वस्त आदमियोंके मुँहसे सुना था कि आपको हिन्दू-मुस्लिम एकतामें न तो विश्वास रहा है और न दिलचस्पी ही, और आप अली-भाइयों जैसे मुसलमान दोस्तोंसे अलग ही अलग बचते फिरते हैं। इसलिए डाक्टर अन्सारीने सुझाया कि मैं गलतफहमी और शक दूर करनेके लिए दिल्लीकी किसी सार्वजनिक सभामें अपने विश्वासका ऐलान करूँ। मैं इस सलाहको और कुछ नहीं तो केवल इसीलिए नहीं मान सका कि हकीम साहब अजमलखाँ और स्वामी श्रद्धानन्दकी पहलेकी दिल्ली आज गुंडोंकी दिल्ली बन रही है जहाँ मेरे लिए ठहरना भी मुहाल है, भाषणकी तो बात दूर । खैर, मैंने डाक्टर अन्सारीसे वादा किया कि जितनी जल्दी हो सका मैं अपनी स्थिति साफ करनेकी कोशिश करूंगा। अब मैं वही कर रहा हूँ।

हिन्दू-मुस्लिम एकता और दूसरे सभी सम्प्रदायोंकी एकतामें मेरा विश्वास पहले ही जैसा दृढ़ है। हाँ, उसे सफल बनानेका मेरा तरीका बदल गया है। पहले मैं सभाएँ करने, प्रस्ताव रखने और स्वीकृत करानेमें शामिल होता था, और इस तरह एकता लाना चाहता था। अब इन बातोंमें मेरा विश्वास नहीं रह गया है। उनके लिए हमारे यहाँ उपयुक्त वातावरण नहीं है। मेरी समझमें अविश्वास, शक, डर और अस- हायताभरे इस वातावरणमें इन तरीकोंसे दिली एकता होनेके बदले, उसमें बाधा पड़ती है। मैं इसलिए परमात्मासे प्रार्थना करने और ऐसे दूसरे व्यक्तिगत दोस्ताना काम करनेपर भरोसा रखता हूँ जो किये जा सकें। इसलिए एकता पैदा करनेके लिए की गई सभाओंमें जानेकी मुझे कोई ख्वाहिश नहीं रह गई है। तो भी इसके मानी यह नहीं कि मैं ऐसे प्रयत्नोंको बुरा समझता हूँ । इसके विपरीत, जिन्हें ऐसी सभाओंमें विश्वास है, वे उन्हें जरूर करें। मैं उनकी पूरी सफलता चाहूँगा ।

दोनों ही जातियोंकी मौजूदा मनोवृत्तिसे मेरा मेल नहीं बैठता। अपने खयालसे दोनों ही कह सकते हैं कि मेरा तरीका असफल रहा है। मैं जानता हूँ कि जिनकी रायकी कुछ कीमत है, उन लोगोंके बीच मैं अत्यन्त ही अल्पमतमें हूँ । इन सभाओं वगैरामें शामिल होकर मैं उपयोगी सेवा तो कर नहीं सकता । और चूँकि सच्ची एकता स्थापित होती देखनेके सिवाय दूसरी किसी चीजमें मेरी दिलचस्पी नहीं है, इसलिए जहाँ मैं हाजिर होकर सेवा नहीं कर सकता, वहाँ मैं गैरहाजिर रहना ही एक सेवा समझता हूँ ।

मुझे तो सत्य और अहिंसाको छोड़कर अन्य किसी चीजसे कोई आशा नहीं है। मैं जानता हूँ कि जब सब तरीके असफल हो जायेंगे, तब इनके जरिये ही सफलता प्राप्त होगी। इसलिए चाहे मैं एक अकेला ही रह जाऊँ या मेरी ओर बहुमत हो, मगर मैं चलूंगा तो उसी रास्तेपर जो मुझे जान पड़ता है कि ईश्वरने दिखलाया है। मात्र सामयिक नीतिके तौरपर तो अहिंसा आज किसी कामकी नहीं । नीतिके तौरपर यह