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३५.पत्र: मीराबहनको

२८ सितम्बर, १९२७

चि० मीरा,

यहाँ पहुँचनेपर मैं तुम्हें प्रेम-सन्देश[१] भेजे बिना नहीं रह सका। तुम्हें चला जाने देनेके बाद मुझे बहुत दुख हुआ। मैं तुम्हारे प्रति बहुत कठोर रहा हूँ लेकिन इसके अलावा मैं कुछ कर ही नहीं सकता था। मुझे मानो एक ऑपरेशन करना था और इसके लिए मैंने अपने आपको दृढ़ बना लिया था।[२] अब हमें आशा करनी चाहिए कि सब ठीक-ठाक हो जायेगा तथा सारी कमजोरी दूर हो जायेगी ।

तुम्हारे खोये हुए दो पत्र मुझे अभी-अभी मिले हैं लेकिन उनके बारेमें फिर लिखूंगा। मैं यह पत्र डाकका समय होते-होते लिख रहा हूँ। तुम्हें मेरे बारेमें किसी प्रकारकी भी चिन्ता करनेकी जरूरत नहीं है।

सप्रेम,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२७८) से।
सौजन्य : मीराबहन

३६. भाषण : मदुरैकी सार्वजनिक सभामें

२८ सितम्बर, १९२७

मित्रो,

मैं आपको अभिनन्दनपत्रों तथा थैलियोंके लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं इन हाथकते सूतकी लच्छियोंके देनेवालोंको भी धन्यवाद देता हूँ तथा आपको हाथकते और हाथ- बुने कपड़ेके उन तीन टुकड़ोंके[३] लिए भी धन्यवाद देता हूँ जिन्हें यहाँ प्रदर्शित नहीं किया गया है। ये मुझे आज सुबह भेंट किये गये थे, और मैं उनका इस समय उल्लेख किये बिना नहीं रह सकता। यदि समय रहा, और आप धीरज रखेंगे तो ये खादीके टुकड़े आपके सामने रखे जायेंगे और एक विशेष मूल्यपर उन्हें खरीदके लिए भी प्रस्तुत

  1. १. देखिए पिछला शीर्षक।
  2. २. मीराबहनने इस घटनाका वर्णन इस प्रकार किया है: "अपने कामपर वापस जाने से पहले मैं बापूको एक बार देखे बिना नहीं रह सकी। लेकिन इस समय मैंने बड़ी भारी गलती की। मुझपर काफी फटकार पड़ी और मुझे एकदम साबरमती के लिए रवाना कर दिया गया। ” देखिए द स्पिरिट्स पिलग्रिमेज |
  3. ३. इन्हें टी० सी० चेल्लम् अय्यंगारने भेंट किया था। ३५-४