अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/किसान सभा

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[ ८४ ] किसान सभा--यहाँ सबसे पहले स्पष्ट कर देना उचित होगा कि किसान-आन्दोलन और किसान-सभा आन्दोलन--यह दो पृथक् आन्दोलन हैं। किसान-आन्दोलन का सूत्रपात तो सन् १९१५-१६ में हो चुका था, जब 'प्रताप' के यशस्वी सम्पादक अमर शहीद श्रीगणेशशङ्कर विद्यार्थी ने अवध के किसानो के कष्टो को सबसे प्रथम देश के समक्ष रखा और फैज़ाबाद, रायबरेली आदि जिलो में हुए किसान-आन्दोलन मे पूर्ण सहयोग दिया। उन्हीके सहयोग-साहाय्य और आदेश से श्रीविजयसिंह 'पयिक' ने उदयपुर, बूँदी, कोटा आदि तेरह देशी रियासतो की किसान-प्रजा में आर्दश सत्याग्रह आन्दोलन का सङ्गठन-संचालन किया। किसानो के प्रति देश का ध्यान आकर्षित करने का प्रथम श्रेय इन्ही दो को है। इसीका प्रतिफल था कि महामना मालवीयजी का ध्यान देश के इस दुःखी अङ्ग की ओर गया और १९१८ की कांग्रेस मे, जो दिल्ली मे मालवीयजी की अध्यक्षता में हुई थी, सबसे पहले किसानो को कांग्रेस अधिवेशन मे निःशुल्क प्रवेश मिला। इसके बाद सन् १९२० से इस आन्दोलन की एक रूपरेखा बन गई जब महात्मा गान्धी तथा सरदार वल्लभभाई पटेल ने असहयोग-आन्दोलन में गुजरात के बारदोली में सत्याग्रह छेड़ने के अभिप्राय से किसानो का संगठन करने का प्रयत्न किया। पीछे सन् १९२७-२८ में वारदोली में सरदार वल्लभभाई ने किसानो का ज़ोरदार संगठन किया, आन्दोलन चलाया और उसमे विजय प्राप्त की। इसके बाद बिहार प्रान्त में स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने किसानो का ज़बरदस्त संगठन किया। इतने व्यापक क्षेत्र मे किसान-सङ्गठन अब तक किसी ने नही किया। इन संगठनो से कांग्रेस ने लाभ उठाया और इससे कांग्रेस की शक्ति बढ़ी। परन्तु अभी तक किसानो का कोई निजी संगठन नही था।

किसानो को व्यावसायिक-वर्ग के आधार पर संगठित किये जाने की आवश्यकता थी। सन् १९३८ में प्रो० एन० जी० रग, एम० एल० ए० (केन्द्रीय), तथा स्वामी सहजानन्द सरस्वती और अन्य समाजवादी कार्यकर्ताओ के प्रयत्न से
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लखनऊ काग्रेस के समय, प्रथम अखिल-भारतीय किसान सम्मेलन हुआ। दूसरा अधिवेशन, दिसम्बर १९३९ मे, फैज़पुर काग्रेस आधिवेशन के साथ, हुआ। इस प्रकार ३-४ वर्षों मे सारे देश में किसान सभाएँ स्थापित हो गई। वह वास्तव मे किसानो का अपना विशुद्ध संगठन है। इसके मूल उद्देश्य निम्न प्रकार हैं--

(१) आर्थिक शोषण से पूर्ण मुक्ति प्राप्त करना और किसान, मज़दूर तथा अन्य शोषित वर्गों को राजनीतिक एवं आर्थिक मुक्ति दिलाना।

(२) किसानो को सगठित करना और तत्कालीन आर्थिक तथा राजनीतिक माँगों के लिये लड़ना, जिससे अन्त में वे सब प्रकार के शोषण से वरी हो जायँ।

(३) स्वाधीनता के राष्ट्रीय-युद्ध में भाग लेकर अन्त में उत्पादन करनेवालें वर्गों को आर्थिक और राजनीतिक मुक्ति दिलाना।

काग्रेस के प्रमुख गान्धिवादी नेता

ओर स्वय गान्धीजी किसान सभाओं के इस कार्यक्रम के विरुद्ध हैं।