अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/ख़ाकसार आन्दोलन

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अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश  (1943) 
द्वारा रामनारायण यादवेंदु

[ ९३ ] खाकसार आन्दोलन–अगस्त १९३२ से इस आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ा। इसके संस्थापक इनायतुल्ला ख़ाॅ 'मशरिक़ी' साहब ने कहा कि मिस्र, ईरान, ब्रह्मा तथा अफग़ानिस्तान में भी ख़ाकसार है, और हिन्दू भी इस आन्दोलन में सम्मिलित हुए हैं। भारत के नवावी तथा मुस्लिम रियासतों से काफी धन इस आन्दोलन के लिए मिला। 'ख़ाकसार' का अर्थ है सेवा और इस नाम से ऐसा प्रकट होता है कि यह कोई समाज सेवा के
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आन्दोलन था। परन्तु वास्तव में इस आन्दोलन का अभिप्राय भारत में मुसलमानो का प्रभुत्व स्थापित करना था। इस्लाम की प्रभुता तथा मुसलमानी राज्य की स्थापना ही इसका मुख्य उद्देश्य था। राज्य की स्थापना के लिए सेना की आश्यकता होती है। इसीलिए ख़ाकसारो को सैनिक ढंग से जीवन बिताना पड़ता था। वे शिविरो में रहते थे तथा फौजी पोशाक पहनते और बेलचा धारण करते थे। ख़ाकसारो की पताका लाल रंग की थी, जिस पर सफेद निशान था। ख़ाकसारो के चार दर्जे क़ायम किये गये थे--(१) जॉबाज़-जो अपने जीवन का भी बलिदान करने को तैयार रहे। (२) पाकवाज़-यह आन्दोलन को आर्थिक सहायता देते थे। (३) ख़ाकसार—यह साधारण सैनिक बनकर काम करते थे। इनकी संख्या सबसे ज्यादा थी। (४) मुआवनीन्–इनको वर्ष में ३ मास तक फौजी शिक्षा लेनी पड़ती थी। यह एक प्रकार की स्थायी (रिजर्व) सेना थी। यह आन्दोलन प्रजातत्र, अहिंसा तथा साम्प्रदायिक एकता के विरुद्ध था। ख़ाकसार आन्दोलन जर्मनी के नाज़ी आन्दोलन से कई बातो मे मिलता था। इसका आधार, नाज़ी आन्दोलन की भॉति, हिंसात्मक तथा फौजी था। इसकी कार्य-प्रणाली भी शान्ति, व्यवस्था तथा वैधानिक सरकार के अस्तित्व के लिए ख़तरनाक थी।

ख़ाकसारो के उत्पातों से पंजाब तथा भारत सरकार बहुत चिंतित होने लगी। अतः फरवरी १९४० में पजाब सरकार ने एक आर्डर जारी किया जिसके अनुसार सभी अर्द्ध-सैनिक दलों को अपने शस्त्रो को धारण कर परेड करने की मनाही कर दी गई। १५ मार्च १९४० को 'अल-इस्लाह' में एक वक्तव्य प्रकाशित हुआ, जिसमे ख़ाकसारो को आदेश था कि उपर्युक्त प्रतिबन्ध का वे लाहोर मे जमा होकर जवाब दे। २१ मार्च १९४० को लाहोर में अखिल-भारतीय मुस्लिम लीग का अधिवेशन होनेवाला था। उससे दो दिन पूर्व लाहोर के डब्बी बाज़ार में अचानक ३१३ बावर्दी ख़ाकसार बेलचे लेकर आगये। उन्होने क़वायद भी की। जब पुलिस अफसर उन्हे समझाने लगे, तो उन्होने बेलचो से उन पर हमले किये। सीनियर पुलिस कप्तान के सख्त चोटे आई। अतः पुलिस ने गोली चलाई। २९ ख़ाकसार तो घटनास्थल पर ही मारे गये, १०-११ अस्पताल में जाकर मरे। इसके बाद ख़ाकसार आन्दोलन
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पंजाब में गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया गया। देहली में अल्लामा ‘मशरिक़ी' भारत सरकार द्वारा गिरफ्तार किये गये। लाहोर में मुस्लिम-लीग के अधिवेशन में श्री मुहम्मदअली जिन्ना ने ख़ाकसारों के प्रति सहानुभूति प्रकट की और पंजाब सरकार की आलोचना की तथा घटना की निष्पक्ष जॉच के लिए प्रस्ताव पास हुआ। परन्तु ख़ाकसार फिर भी लीग से अलग ही रहे। श्री जिन्ना यह चाहते थे कि वे मुस्लिम-लीग में शामिल होजायॅ। परन्तु ८ मई १९४० के वक्तव्य में श्री जिन्ना ने स्पष्ट शब्दो मे यह कह दिया--"मैं यह बतला देना चाहता हूँ कि ख़ाकसार आन्दोलन लीग से बिल्कुल स्वतंत्र है और उसका लीग से कोई सबंध नही है। लीग उनके संबंध में कुछ भी नहीं कर सकती, क्योकि उनके संगठन की काररवाइयो पर हमारा कोई नियंत्रण नही और न हमारे पास ऐसा कोई अधिकार है जो उनकी ओर से कोई समझौता कर सके।”