अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/जापान

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अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश  (1943) 
द्वारा रामनारायण यादवेंदु

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जापान-–जापान-साम्राज्य, मुख्य जापान देश का क्षेत्रफल १,४८,८०० वर्गमील। समुद्र पार के अधीनस्थ देश कोरिया, फारमोसा, दक्षिणी साखालिन का क्षेत्रफल १,१४,६०० वर्गमील। जापान देश की जनसंख्या ७,३०,००,००० तथा इन देशो की ३,००,००,००० है। सन् १९०० से १९२२ तक जापान की ब्रिटेन से मित्रता रही और वह भी इसलिये कि सोवियट रूस के विरुद्ध गुटबन्दी
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स्थापित होजाय। अमरीका ब्रिटिश-जापान-मैत्री को पसंद नहीं करता था। इसलिये सन् १९२२ मे यह मित्रता भंग होगई। जापान ने, सैनिक नेतृत्व में, चीन की विजय की योजना बनाई। सबसे पहले उसने मन्चूरिया पर १९३१ ई० में अधिकार जमाया, जो अब मचूको कहलाता है। मन्चूरिया में भूमि तो बहुत है, किन्तु जापानियो के लिये वहाँ की जल-वायु अनुकूल नहीं। इसलिये वे वहाँ उपनिवेश नहीं बसा सकते। सिर्फ २,००,००० जापानी मञ्चूको में रहते हैं। दक्षिणी चीन, जहाँ आजकल युद्ध हो रहा है, जापानियो के लिये अधिक अनुकूल है, परन्तु उसमे चीनियों की ही अपनी घनी आबादी है।

अतः जापान चीन को अपना उपनिवेश बनाने के लिए नहीं प्रत्युत् कच्चे माल तथा तय्यार माल की मडी के लिये चाहता है। १ करोड़ २१ लाख जापानी उद्योग-धंधा करते हैं, और आबादी का ५० प्रतिशत कृषि। जापान में जमीदारी प्रथा का जोर है। ज़मीन की कमी की वजह से किसान बहुत गरीब हैं। मजदूरो की आर्थिक दशा भी बहुत हीन हैं, मज़दूरी बहुत सस्ती है, इसी कारण पिछले वर्षो जापान ने प्रतियोगिता में अन्य देशो को हराकर संसार के, विशेषकर भारत के, बाजार को सस्ते माल से भर दिया था। तीकोकू-गिकाई (जापानी पार्लमेण्ट) में दो सभाएँ हैं : छोटी सभा (शूगिन) में ४६३ सदस्य हैं जो ४ वर्ष के लिये चुने जाते हैं। बड़ी (किज़ोक्किन) में ४११ सदस्य हैं जिनमे १९२ आजीवन सदस्य और शेष ७ वर्ष के लिये चुने जाते हैं। यह सम्पत्ति और सत्ताशालियों की सस्था है। प्रत्येक क़ानून का दोनों सभाओं द्वारा स्वीकृत होना ज़रूरी है। परन्तु सरकार सम्राट् के प्रति उत्तरदायी होती हैं। सरकारी नीति सरकार निर्धारित करती है। तीकोकू-गिकाई की छोटी सभा मे दो मुख्य दल थे : देहाती और श्रमजीवी समुदाय का प्रतिनिधि मिन्सीतो, जिसकी सख्या १७९ है। सीयूकाई नामक खेतिहर-दल भी था जिसके प्रतिनिधि १७६ हैं। शकाई तैशूतो नामक समाजवादी (सख्या ३५) दल भी था। कोकुमिन डोमी नामक ११ फासिस्ट और तोहोकाई नामक दल के १२ क्रान्तिकारी सदस्य हैं।

जापान में सार्वजनिक चुनाव ३० अप्रैल १९३७ को हुआ था और १९४० के अगस्त और सितम्बर में सब दलो ने, गवर्नमेन्ट के दबाव से,
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अपने अस्तित्त्व को एकसत्तावादी सरकार में मिला दिया। एशिया में साम्राज्य-विस्तार के सम्बन्ध में सब दल एकमत हैं। जापान का चीन से युद्ध छिडे, जुलाई १९४२ मे पॉच वर्ष हो चुके। इस युद्ध में जापान अबतक, चीनी युद्ध-प्रवक्ताओं के अनुसार, २५ लाख जाने होम चुका है।

जापानी सेना मे ५०,००,००० सीखे हुए सैनिक हैं। संसार की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं में इसकी गणना की जाती है। चीन-संघर्ष मे २०,००,००० सेना संलग्न है। जापानी नौ-सेना का संसार में तीसरा स्थान है। उसके पास युद्धायुध मे ९ युद्ध-पोत, १४ भारी युद्ध-पोत, २४ हलके क्रूज़र, ११२ ध्वंसक, ६० पनडुब्बियॉ, ६ बम-वर्षको को ले जानेवाले जहाज़ सन् १९३९ में बताये गये थे। । किन्तु तब से तो जापान अपने युद्ध-प्रयत्नो को चुपचाप आशातीत रूप मे बढा चुका प्रतीत होता है। अपने युद्ध-प्रयत्नो को गुप्त रूप से बढ़ाने के लिये ही वह लन्दन की नौ सेना-सन्धि में सम्मिलित नही हुआ। जापान अब तक बरतानवी साम्राज्य के मलय, हांग्कांग्, ब्रह्मा, अन्दमनद्वीप-समूह प्रदेश तथा सिगापुर के विख्यात समुद्री अड्डे को जीत चुका है। अमरीकी प्रदेशों में फिलिपाइन्स द्वीप, हवाई तथा हालैन्ड के डच पूर्वी द्वीपसमूह और जावा, सुमात्रा को भी वह हथिया चुका है। प्रशान्त महासागर मे, इस प्रकार, जापान बहुत भूमि प्राप्त कर चुका है। आस्ट्रेलिया पर उसने मार्च '४२ मे हमले किये थे। सितम्बर १९४२ के दूसरे सप्ताह से प्रशान्त महासागर में, सोलोमन्स आदि द्वीपसमूह पर, अमरीका और ब्रिटेन ने जापान के मुकाबले मोर्चा अडा रखा है, वहाँ ज़ोरो की लड़ाई जारी है और मित्र-राष्ट्र जीत रहे हैं। फ्रान्सीसी हिन्द-चीन को भी जापान हडप चुका और स्याम (थाईलैण्ड) को उसने अपने प्रभाव में ले लिया है। भारत को भी उसकी साम्राज्यवादी लिप्सा का प्रतिक्षण ख़तरा है।

१८९४-९५ ई० मे जापान चीन से लड़ चुका है। १९०५ मे रूस को हरा चुका है। पिछले महायुद्ध मे मित्रराष्ट्रो की ओर से लड़ चुका है। सन् १९१८ मे सोवियट रूस में हस्तक्षेप कर चुका है। १९३१ में मंचूरिया को ले लेने के बाद, १९३७ के जुलाई मास से चीन

के साथ उसने फिर युद्ध छेड़ रखा है। यही कारण हैं जिनसे उसके
[ १३४ ]हौसले बहूत बढ गये प्रतीत होते हैं;

और चूॅकि जापानी एक सामरिक जाती हैं, जापान आज एशिया का सिरमौर बनने सूखस्वप्न देख रहा है। (विशेष जानकारी के लिये देखिये--चीन, तोजो, थाईलेंड, प्रशान्त महासागर का युद्ध)।