अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/त्रिराष्ट्र-सन्धि

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अन्तर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश  (1943) 
द्वारा रामनारायण यादवेंदु

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त्रिराष्ट्र-सन्धि—२७ सितम्बर १९४० को जर्मनी, इटली और जापान के बीच, दस वर्षों के लिये, हुई सन्धि। इसके अनुसार जापान ने योरप में नवीन विधान (न्यू आर्डर) की स्थापना में जर्मनी और इटली की प्रधानता को स्वीकार किया है। इसी प्रकार जर्मनी और इटली ने एशिया में जापान द्वारा नवीन राजनीतिक-रचना में उसके नेतृत्व को माना है। सन्धि-कर्ता तीनों राष्ट्र, किसी पर भी ऐसे राष्ट्र द्वारा आक्रमण होने पर, जो वर्तमान योरपीय अथवा चीन-जापान युद्ध से सम्बन्धित नहीं है, एक-दूसरे की, पूर्ण राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक रूप से, सहायता करेंगे। सोवियत रूस के सम्बन्ध में तीनों राष्ट्रों की अपनी-अपनी नीति पर इस सन्धि का कोई प्रभाव नहीं है। यह सन्धि वास्तव में संयुक्त-राष्ट्र अमरीका के विरुद्ध की गई है, किन्तु परोक्ष रूप से यह रूस के विरुद्ध भी है। हंगरी, स्लोवाकिया और [ १५५ ]
रूमानिया इस सन्धि में तत्काल ही शामिल होगये। ११ दिसम्बर '४१ को यह सन्धि पूर्ण सामरिक गुट में परिवर्तित होगई। यह सन्धि कामिन्टर्न विरोधी समझौते का ही एक प्रतिरूप है। <section end="1" {{Rule|height=2px}}

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थाईलैण्ड--(देखिये ‘स्याम')।


दण्डाज्ञा--अन्तर्राष्ट्रीय सधि-शतों के पालन के लिए उपाय। राष्ट्रसंघ के विधान की १६वी धारा मे, राष्ट्रसघ के विधान के विरुद्ध, युद्ध करनेवाले राष्ट्र के ख़िलाफ आर्थिक तथा सैनिक दण्डाज्ञाओ का उल्लेख है। इटली-अबीसीनिया युद्ध के बाद इटली के विरुद्ध इनका प्रयोग किया गया।


दरेदानियाल (Dardanelles)--यह डमरूमध्य दक्षिण मे काले-सागर तथा भूमध्य-सागर को मिलाता है। १८४१ ई० से यह तुर्की के अधिकार मे है। १८वी तथा १९वी शताब्दी में रूस इस पर अपना अधिकार करके भूमध्य-सागर में अपना आधिपत्य जमाना चाहता था। परन्तु ब्रिटेन, फ्रान्स और तुर्की ने इसका विरोध किया और, इस कारण, क्रीमियन युद्ध छिड़ा। विगत विश्व-युद्ध तक यह तुर्की के अधिकार में रहा। युद्ध के बाद मित्र-राष्ट्रो ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया और गैलीपोली प्रायद्वीप, जिसमें इस जल-डमरूमध्य का योरपियन-तट पडता है, यूनान को दे दिया गया। उपरान्त यह निरस्त्र कर दिया गया और हर प्रकार की जहाज़रानी के लिए इसे खोल दिया गया तथा इसका नियत्रण एक अन्तर्राष्ट्रीय कमीशन के हाथ मे दे दिया गया। परन्तु कमाल के नेतृत्व मे, तुर्की के यूनान पर विजय प्राप्त करने के बाद, गैलीपोली फिर तुर्की को दे दिया गया और, ४ अगस्त १९२३ के लौसेन-समझौते के अनुसार, इस पर अन्तर्राष्ट्रीय-नियन्त्रण हलका कर दिया गया, और तुर्की का इस पर आंशिक प्रभुत्व