अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानकोश/द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद--भौतिकवादी विचारधारा के साथ द्वन्द्वात्मक प्रणाली का सयोग। राजनीतिक दृष्टि से इसका विशेष महत्व इसलिए है कि इसका वैज्ञानिक समाजवाद से विशेष सम्बन्ध है। यह एक प्रकार से मार्क्स द्वारा प्रतिपादित समाजवाद का आधार है। उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में जर्मन आदर्शवादी दार्शनिक हैगल ने द्वन्द्वात्मक-प्रणाली का विकास किया। उसने
यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि इतिहास, मानव-विचारों के विकास में, द्वन्द्वात्मक पद्धतिकी ही प्रतिच्छाया है। कार्ल मार्क्स ने हैगल की द्वन्द्वात्मक प्रणाली को तो अपना लिया, परन्तु उसने यह स्वीकार नहीं किया कि यह द्वन्द्वात्मक प्रणाली विचारों के विकास कि प्रतिच्छाया है। इसके विपरीत मार्क्स ने यह बतलाया कि विचार ही पदार्थों की वास्तविकता की प्रतिच्छाया है। इस प्रकार मानव-समाज की प्रत्येक व्यवस्था में, भौतिक शक्तियों की प्रेरणा से, द्वन्द्वात्मक प्रणाली का विकास होता है जिससे वह स्वयं अपने में विरोध को जन्म देती है। इस विचार-प्रणाली के अनुसार सर्वहारा (प्रोलेटरियन) वर्ग का विकास पूॅजीवादी समाज का ही फल है। इन दोनों में द्वन्द्व-भाव है--विपरीतता है, विरोधाभास है। परन्तु सर्वहारा-वर्ग का जन्म पूॅजीवादी समाज से हुआ है।