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अणिमा/३१. स्नेह-मन तुम्हारे नयन बसे

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लखनऊ: चौधरी राजेन्द्रशंकर, युग-मन्दिर, उन्नाव, पृष्ठ ६१

 
 

स्नेह-मन तुम्हारे नयन बसे,
जीवन-यौवन के पाश कसे।

पल्लवित प्रणय के, निरावरण,
खिल गये लता-द्रम नभस्तरण,
चुम्बित समीर-कुङ कुम क्षण-क्षण,
सिहरे, बिहरे; फिर हँसे, फँसे।

रंग गया प्रेम का अन्तराल,
खुल गया हेम का जगजाल,
तुल गई किरण, धुल गई झाल,
जीवन-सकाल से सकल गसे।

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