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अनुवाद:पृथ्वी और ईथर की सापेक्ष गति

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पृथ्वी और ईथर का सापेक्ष गति

प्रकाश के विपथन की व्याख्या करने के लिए फ्रेनल (Fresnel) द्वारा यह माना गया कि ईथर माध्यम पृथ्वी की तरह वार्षिक गति नहीं करती, इसका अर्थ यह हुआ कि अपना ग्रह इस माध्यम के लिए पूर्णतः पारगम्य है। बाद में स्टोक्स (Stokes) ने यह व्याख्या दी कि ईथर को पृथ्वी द्वारा अपने साथ कर्षण (घसीटा) किया जाता है और इसी से पृथ्वी के पृष्ठ के निकट प्रत्येक बिन्दू पर ईथर की गति, पृथ्वी की गति के समान होती है।

इन्हीं सिद्धान्तों पर मैंने कुछ वर्ष पूर्व व्यापक रूप में काम किया है।[] मुझे यह देखने को मिला कि इसकी व्याख्या करने वाली अन्य विधायें, जिनमें उपर उल्लिखीत के मध्य में गिना जा सकता है, वो कम या अधिक झूठ दिखाई देती हैं। इसी कारण से वो इतनी सरल नहीं हैं और वो कम ध्यान देने योग्य हैं। इन दो चरम विचारों में से मेरे अनुसार स्टोक्स की व्याख्या को निरस्त किया जा सकता है क्योंकि उसमें वेग प्रवणता की आवश्यकता होती है जो पृथ्वी और इसके सलंग्न (निकटवर्ती) ईथर के वेगों के मध्य असंगत है।

दूसरी तरफ, सभी ज्ञात घटनाओं को फ्रेनल के सिद्धान्त से समझाना सम्भव है, यदि हम पारदर्शी विचारणीय पदार्थ के लिए फ्रेनल द्वारा दिये गए "कर्षण गुणांक" को मानते हैं। मैंने हाल ही में इसके (कर्षण गुणांक) मान को प्रकाश के विद्युत्चुम्बकीय सिद्धान्त व्युत्पन्न किया था।[]

दोनों सिद्धान्तों में से किसी एक का चयन करने में माइकलसन (Michelson) द्वारा किये गए व्यतिकरणमापी प्रयोग द्वारा एक बड़ी कठिनाई उत्पन्न हुई थी।[]

मैक्सवेल (Maxwell) ने यह निर्धारित किया था कि ईथर विरामावस्था में रहता है तब पृथ्वी पर स्थिति किसी निश्चित बिन्दू के सापेक्ष किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य प्रकाश के एक तरफ और विपरीत दिशा में गति में लगने वाले समय पर प्रभाव होना चाहिए। यदि दोनों बिन्दुओं के मध्य की दूरी है, प्रकाश का वेग है और पृथ्वी का वेग है, तब सम्बंधित समय निम्नलिखीत होगा (यदि बिन्दुओं को मिलाने वाली रेखा गति के समान्तर है):

(1)

और यदि यह लम्बवत है तो समय

(2)

होगा और दोनों में अन्तर निम्नलिखित होगा

(3)

माइकलसन ने ऐसे उपकरण को काम में लिया जिसके एक दूसरे के लम्बवत दो क्षैतिज भुजायें थी और उनके शीर्ष पर लम्बवत दिशा में दर्पण लगे हुये थे। जब दोनों भुजायें के प्रतिच्छेदन बिन्दु के मध्य से एक कीरण एक भुजा की तरफ जाती है और दर्पण से परावर्तित होकर वापस आती है तथा दूसरी भुजा की ओर उसी समय दूसरी कीरण जाती है और दूसरे दर्पण से परावर्तित होकर वापस आती है तो हमें व्यतिकरण की घटना देखने को मिलती है। प्रकाश स्रोत और प्रेक्षण दूरदर्शी सहित पूरा उपकरण उर्ध्वाधर अक्ष के सापेक्ष घुमाया जा सकता है एवं प्रेक्षण सम का चयन किया जा सकता है जिससे इसपर प्रयोग करते समय आवश्यकता के अनुसार पहली अथवा दूसरी भुजा को आवश्यकतानुसार पृथ्वी की गति की दिशा में संरेखित किया जा सकता है। सुगतमता के लिए मान लेते हैं कि इस स्थिति में - यदि फ्रेनल का सिद्धान्त यदि सत्य - तो पृथ्वी की गति के अनुसार आगे और पिछे की दिशा में किरण की गति में एक निश्चित विलम्ब देखने को मिलेगा जिसे (3) द्वारा ज्ञाता किया जा सकता है। जब इसे 90° घुमाया जाता है तो सभी कला विस्थापनों के मान एक दूसरे से बदल जाने चाहिए और उन्हें समय की ईकाई में उल्लिखीत किया जा सकता है और (3) के परिमाण को दो गुणा हो सकते हैं। लेकिन इससे व्यतीकरण फ्रिंज में विस्थापन प्रेक्षित नहीं हो सकता।

इस प्रयोग पर ये प्रश्न पूछा जा सकता है कि फ्रिंजों में विस्थापन प्रेक्षण के लिए ये भुजायें बहुत छोटी हैं। लेकिन माइकलसन ने मोरले Morley के साथ प्रयोग को बड़े स्तर पर दोहराया।[] प्रकाश किरणें आगे और पिछे परस्पर प्रसामान्य दिशाओं में कई बार चलती रही क्योंकि वो हर बार दर्पण से परावर्तित हुई। उपकरण को एक पत्थर पर रखा गया गया था, जो पूरा पारे के में रखा गया था और इसे क्षेतिज दिशा में घुमाया जा सकता था। हालांकि फ्रेनल के सिद्धान्त के लिए आवश्यक परिवर्तन देखने में प्रयोग असफल रहा।

मैंने इस प्रयोग के परिणामों को समझने की लम्बे समय तक कोशिश की लेकिन कोई सफलता रहित ही रहा और अंततः मुझे फ्रेनल के सिद्धान्त को स्वीकार करने का एक ही तरिका मिला। इसमें यह मानना पड़ा कि ठोस निकाय के दो बिन्दुओं को जोड़ने वाली रेखा जब पृथ्वी की गति की दिशा में और इसके प्रसामान्य अवस्था में रखी जाती है तो वह रेखा अपनी लम्बाई को सरंक्षित नहीं रखती है। यदि बाद वाली स्थिति में इसकी लम्बाई है और पहली स्थिति में यह है तो व्यंजक (1) और (2) को से गुणा करना पड़ता है। को छोड़ने पर

अतः

लिखकर व्यंजक (2) का अन्तर इसे समझा जा सकता है।

माइकलसन के पहले प्रयोग में भुजाओं की लम्बाई में ऐसे परिवर्तन और दूसरे में ठोस निकाय के आकार में परिवर्तन मुझे वास्तव में अकल्पनीय नहीं दिखाई देता।

वास्तव में ठोस निकाय के आकार और रूप को क्या निर्धारित करता है? आभासी तौर पर आण्विक बलों की तीव्रता को किसी भी कारण से संशोधित किया जा सके, तो यह उसी रूप में इसके आकार और रूप को बदल सकता है। अब हम अभी के लिए मान लेते हैं है कि विद्युत् और चुम्बकीय बल ईथर के प्रभाव में अलग व्यवहार दिखाते है। इसी तरह आण्विक बलों के लिए भी यह मानना अप्राकृतिक नहीं है लेकिन इससे दो कणों को जोड़ने वाली रेखा ईथर माध्यम से गुजरते हुये गति की दिशा के समान्तर और लम्बवत दिशा में अलग-अलग हो सकती है। इसे आसानी से देखा जा सकता है कि की कोटि का प्रभाव अपेक्षित नहीं है लेकिन कोटि के प्रभाव अपवर्जित नहीं हैं और हमें ठीक इसी की आवश्यकता है।

चूँकि हम आण्विक बलों की प्रकृति के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं अतः इस परिकल्पना को सत्यापित करना असम्भव है। हम वास्तव में कुछ अभिधारणाओं के साथ विद्युत् और चुम्बकीय बलों पर विचारणीय पदार्थ की गति के प्रभाव की गणना कर सकते हैं। प्रायः यह उल्लेख करना उचित रहेगा कि जब विद्युत् बलों से प्राप्त परिणाम आण्विक बलों पर स्थानान्तरित किये जाते हैं तो यह का उपर वर्णित मान देता है।

माना पदार्थ बिन्दुओं का निकाय है जिसमें प्रत्येक बिन्दू का निश्चित मात्रा में विद्युत आवेश है और वो ईथर के सापेक्ष नियत है तथा इन्हीं बिन्दुओं का निकाय है, जब वो -अक्ष की दिशा में ईथर माध्यम में सामूहिक वेग से गति करते हैं। मेरे द्वारा व्युत्पन्न समीकरणों[] से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि निकाय में कण एक दूसरे पर कौनसे बल लगाते हैं। परिणाम को बहुत सरल तरीके से व्यक्त किया जा सकता है, यदि एक तीसरा निकाय माना जाता है जो निकाय की तरह विराम अवस्था में है लेकिन बिन्दुओं की पारस्परित स्थिति वाले बाद वाले निकाय से भिन्न है। निकाय को निकाय में पारस्परिक विस्तार से प्राप्त किया जा सकता है जिसमें -अक्ष की दिशा में गतिशील सभी विमाओं को गुणा बढ़ा दिया जाता है जबकि लम्बवत दिशायें अपरिवर्तित रहती हैं।

निकाय और में बलों के मध्य सम्बंध ज्ञात करने के लिए -अक्ष की दिशा के घटक में समान रहते हैं हैं जबकि -अक्ष के लम्बवत घटक निकाय के मान के गुणा हो जाते हैं।

हम इसे आण्विक बलों पर स्थानान्तरित करना चाहते हैं और पारस्परिक आकर्षण और प्रतिकर्षण बलों के प्रभाव में पदार्थ के बिन्दुओं के निकाय के एक पिंड की कल्पना करते हैं। निकाय ईथर माध्यम में गतिशील पिंड होगा। पदार्थ के बिन्दुओं पर लगने वाले बदल एक दूसरे को विलोपित करते हैं। इसके अनुसार यह स्थिति निकाय में नहीं होगी, हालांकि निकाय से में जाने पर निकाय C में -अक्ष के लम्बवत बल-घटक परिवर्तित हो जाते हैं लेकिन इससे साम्य नहीं प्राप्त होगा कजैसे वो समान अनुपात में परिवर्तित नहीं हुये। इस स्थिति में यह देखा जा सकता है कि जब ईथर माध्यम में पिंड के विस्थापन के साथ की अवस्था साम्य में रहती है, उस अवस्था में साम्य में रहता है जाब विस्तापन नहीं होता है। अतः विमाओं पर गति का प्रभाव ठीक उसी मात्रा में होगा जो इससे पहले माइकलसन के प्रयोग को समझाने के लिए आवश्यक द्खाय गया।

वास्तव में हम इस परिणाम को बहुत महत्त्व का प्रदर्शित नहीं कर सकते; आण्विक बलों का स्थानान्तरण हमें विद्युत् बलों के रूप में प्राप्त होता है, जो किसी के लिए बहुत प्रभावी हो सकता है। इसके अतिरिक्त यदि हम ऐसा मान लेते हैं जिसके अनुसार पृथ्वी की गति की दिशा में लम्बाई में कोई परिवर्तन नहीं होता - जैसा हमने उपर माना है - अथवा लम्बवत दिशा में लम्बाई को दीर्घ कर देता है, तब इस अभिधारणा के साथ हम समान परिणाम प्राप्त करते हैं।

फिर भी इससे नहीं नकारा जा सकता कि आण्विक बलों में परिवर्तन होता है और इसके परिणामस्वरूप पिंड आकार में कोटि का परिवर्तन सम्भव है। माइकलसन के प्रयोग इस स्थिति में अपनी उस सत्यापन क्षमता को खो देता है जो इसका उद्देश्य था। यदि कोई फ्रेनल के सिद्धान्त को मानता है तब इसका अर्थ यह हुआ कि हम यह भी सीख सकते हैं कि इससे विमाओं में परिवर्तन होता है।

यदि होगा तब बीस करोड़वाँ होगा। पृथ्वी के व्यास में इसी अनुपात का संकुचन 6 सेमी होगा। हम मीटर पैमाने से तुलना करते हुये लम्बाई में 20 करोड़वें हिस्से के परिवर्तन को प्रेक्षित नहीं कर सकते और यदि हमारी प्रेक्षण विधि इसकी अनुमति देती है तो विधि में प्रयुक्त स्कैल भी उसी अनुपात में संकुचित होगी और हम इस परिवर्तन को कभी संसुचित नहीं कर सकते, जब दोनों समान रूप से परिवर्तन को प्राप्त करते हैं। इसका एकमात्र उपाय यह हो सकता है कि हम लम्बाइयों की तुलना दो लम्बवत पैमानों से करें, और यदि हम यह प्रेक्षण व्यतीकरण परिघटना से करना चाहें (जिसमें प्रकाश किरण आगे जाती है और फिर उसी तरह वापस आती है तथा दूसरी भुजा पर भी यही प्रक्रिया होती है) तो हमें पुनः माइकलसन के प्रयोग पर आना होगा। लम्बाई में परिवर्तन के प्रभाव को हालांकि कला विस्थापन से प्रतिकारित किया जा सकता है जो व्यंजक (3) से ज्ञात किया जाता है।

  1. Verslagen en Mededeelingen. 3de Reeks, Deel II, पृ॰ 297, 1886. Archives néerlandaises, T. XXI, पृ॰ 103. 1887.
  2. Archives néerlandaises, T. XXV, पृ॰ 363. 1892.
  3. American Journal of Science, 3d Ser. Vol. XXII, पृ॰ 120.
  4. American Journal of Science, 3d Ser. Vol. XXXIV, पृ॰ 383. 1887.
  5. Archive néerlandaises, T. XXV. पृ॰ 498.