अप्सरा/अगला भाग १

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[ २६ ]अप्सरा बड़ा बाजार थाने में एक पत्र लेकर नौकर दारोगाजी के पास गया। दारोगाजी बैठे हुए एक मारवाड़ी को किसी काम में शहादत के लिये समझा रहे थे कि उनके लिये और खास तौर से सरकार के लिये यह इतना-सा काम कर देने से वे मारवाड़ी महाशय को कहा तक पुरस्कृत कर सकते हैं, सरकार की दृष्टि में उनकी कितनी इज्जत होगी, और आर्थिक उन्हें कितने बड़े लाम की संभावना है। मारवाड़ी महाशय बड़े नन शब्दों में, डरे हुए, पहले तो इनकार कर रहे थे, पर दारोगाजी की वक्त ता के प्रभाव से अपने भविष्य के चमकते हुए भाग्य का काल्पनिक चित्र देख-देख, पीछे से हाँ-ता के बीच खड़े हुए मन-ही-मन हिल रहे थे, कभी इधर, कमी उधर । उसी समय कनक के जमादार ने खत लिए हुए ही घुटनों तक झुककर सलाम किया। दारोगा साहब ने "आज तखत बैठो दिल्लीपति नर" की नजर से क्षुद्र जमादार को देखा । बढ़कर उसने चिट्ठी दे दी। दारोगाजी उसी समय चिट्ठी को फाड़कर पढ़ने लगे। पढ़ते हुए मुस्किराते जाते थे। पढ़कर जेब में हाथ डाला । एक नोट पाँच रुपए का था। नौकर को दे दिया । कहा तुम चलो। कह देना, हम अभी आए । अँगरेजी में पत्र यों था- ३, बहूबाजार स्ट्रीट, कलकत्ता, ३-४-१८ प्रिय दायेगा साहब, आपसे मिलना चाहती हूँ। जब से स्टेज पर से आपको देखा- आहा ! कैसी गजब की आपकी आँखें-दोबारा जब तक नहीं देखती, मुझे चैन नहीं क्या आप कल नहीं मिलेंगे? आप ही की कनक थानेदार साहब खूबसूरत नहीं थे। पर उन्हें उस समय अपने सामने शाहजादे सलीम का रंग भी फीका और किसी परीजाद के [ २७ ]असर आखें भी छाटी जान पड़ी। तुरंत उन्होंने मारवाड़ा महाशय का विद्या कर दिया । तहकीकात करने के लिये मछुआ बाजार जाना था, काम छाटे थानेदार के सिपुर्द कर दिया, यद्यपि वहाँ बहुत-से रुपए गुंडो से मिलनेवाले थे। उठकर कपड़े बदले और सादी सफेद पोशाक में वह बाजार की सैर करने चल पड़े। पत्र जेब में रखने लगे, तो फिर उन्ने अपनी आँखों की बात याद आई । झट शीशे के सामने जाकर खड़े हा गए, और तरह-तरह से मुंह बना-बनाकर, आँखें फाड़-फाड़कर देखने लगे। उनके मन को, उस सूरत से, उन आँखों से, तृप्ति न थी; पर जबरन मन को अच्छा लगा रहे थे। दस मिनट तक इसी तरह सूरत देखते रहे। शीशे के सामने वैसलीन ज्यादा-सा पात लिया। मुँह धोया । पाउडर लगाया। एसेंस छिड़का। फिर आईने के सामने खड़े हो गए। मन को फिर न अच्छा लगा। पर जोर दे-देकर अपने को अच्छा साबित करते रहे । कनक के मंत्र ने स्टेज पर ही इन्हे वशीभूत कर लिया था। अब पत्र भी आया, और वह भी प्रणय- पत्र के साथ-साथ प्रशंसा-पत्र, उनकी विजय का इससे बड़ा और कौन-सा प्रमाण होता ? कहाँ उन्हें ही उसके पास प्रणय की मिक्षा के लिये जाना था, कहाँ वही उनके प्रेम के लिये, उनकी जादू-भरी निगाह के लिये पागल है। उस पर भी उनका मन उन्हे सुंदर नहीं मानता। यह उनके लिये सहन कर जानेवाली बात थी ? एक कांस्टेबुल को टैक्सी ले आने के लिये भेज दिया था। बड़ी देर से खड़ी हुई टैक्सी हार्न कर रही थी, पर उस समय वे अपने बिगड़े हुए मन से लड़ रहे थे। कांस्टेबुल ने आकर कहा, दारोगाजी, बड़ी देर से टैक्सी खड़ी है। आपने छड़ी उठाई, और थाने से बाहर हो गए। सड़क पर टैक्सी खड़ी थी। बैठ गए, कहा, बहूबाजार । ड्राइवर बहूबाजार चल दिया। जब जकरिया स्ट्रीट के बराबर टैक्सी पहुंची, तब आपको याद आई कि टोपी भूल गए। कहा, अरे ड्राइवर, भई पारा फिर थाने चलो। गाड़ी फिर थाने आई। आप अपने कमरे से टोपी लेकर फिर टैक्सी पर पहुँचे। टैक्सी बहूबाजार चली। [ २८ ]तान नबर के पालाशान मान के नाच टक्सापड हा २ पुरस्कृत नमादार न लाटकर अपन पुरस्कार का हाल +1 स कह दिया था। कनक ने उसे ही द्वार पर दारोगा साहब के स्वागत के लिये रक्खा था. और समझा दिया था, बड़े अदब से, दो मंजिलेवाले कमरे में. जिसमे मैं पढ़ती थी, बैठाना, और तब मुझे खबर देना। जमादार ने सलाम कर थानेदार साहब को उसी कमर में ले जाकर एक कांच पर बैठाया, और फिर ऊपर कनक को खबर देने के लिये गया। उस कमरे में, शीशेदार अलमारियों में, कनक की किताबें रक्खी थीं। उनकी जिल्दों पर सुनहरे अक्षरों से किताबों के नाम लिखे हुए थे। दारोगाजी विद्या की तौल में कनक को अपने से जितना छोटा, इसलिये अमान्य समझ रहे थे, उन किताबों की तरफ देखकर उसके प्रति उनके दिल में कुछ इज्जत पैदा हो गई। उसकी विद्या की मन- ही-मन बैठे हुए थाह ले रहे थे। ____कनक ऊपर से उतरी । साधारणतः जैसी उसकी सजा मकान में रहती थी, वैसी ही थी. सभ्य तरीके से एक जरी की किनारीदार देशी साड़ी, लेडी मोजे और जूते पहने हुए। कनक को आते देखकर थानेदार साहब खड़े हो गए । कनक ने हँसकर कहा-"गुड मॉर्निंग।" थानेदार कुछ मेंप गए । डरे कि कहीं बातचीत का सिलसिला अँगरेजी में इसने चलाया, तो नाक ही कटेगी। इस व्याधि से बचने के लिये उन्होंने स्वयं ही हिंदी में बात- चीत छेड़ी-"आपका नाटक कल देखा, मैं सच कहता हूँ, ईश्वर जाने, ऐसा नाटक जिंदगी-भर मैंने नहीं देखा। ___ "आपको पसंद आया, मेरे भाग्य । माजो तो उसमें तरह-तरह की त्रुटियाँ निकालती हैं। कहती हैं, अभी बहुत कुछ सीखना है-तारीफ- वाली कोई बात नहीं हुई।" __ कनक ने रुख बदल दिया। सोचा, इस तरह व्यर्थ ही समय नष्ट करना होगा। "श्राप हम लोगों के यहाँ जलपान करने में शायद संकोच करें ?" [ २९ ]सय ___माटी हँसी हँसफर दारोगा ने कहा-"संकोच ? संकोच का तो यहाँ नाम नहीं और फिर तु-आ-आपके यहाँ । _____ कनक ने द्वारासाजो को पहचान लिया। उसने नौकर को अावाज दी। नीकर आया। उससे खाना लाने के लिये फहकर, आलमारी से, खुद उठकर एक रेडलेब्ल और दो बोतलें लेमोनेड की निकाली। शीशे के एक ग्लास में एक पेग शराब ढालते हुए फनक ने कहा- "आप मुझे तुम ही कहें। कितना मधुर शब्द है तुम ! 'तुम मिलाने- वाला है, 'आप' शिष्टता की तलवार से दो जुड़े हुओं को काटकर जुदा कर देनेवाला।" गरोसाजी बारा-बारा हो गए। बादल से काले मुंह की हँसी में साह दांतों की कतार बिजली की तरह चमक उठी। कनक ने बड़े जोर से सिर गड़ाकर हँसी रोकी। ____ थानेदार साहब को तरफ अपने जीवन का पहला ही कटाक्ष कर कनक ने देखा, तीर अचूक बैठा। पर उसके कलेजे में बिच्छू डंक मार रहे थे। कनक ने ग्लास में लेमानेड कुछ डालकर थानेदार साहब का दिया। उन्होंने हाँ-ना विना किए ही लेकर पी लिया। कनक ने दूमय पंग डाला । उसे भी पी गए। तीसरा ढाला, उसे भी पी लिया। तब तक नौकर खाना लेकर आ गया । कनक ने सहूलियत से मेज पर रखवा दिया। थानेदार साहब ने कहा-'अब मैं तुम्हें पिलाऊँ ? कनक ने मौहें चढ़ा ली। "आज शाम को नवाब साहब मुर्शिदाबाद के यहाँ मेरा माजरा है, माक कीजिएगा। किसी दूसरे दिन पाइएगा, तब पिऊगी। पर मैं शराब नहीं पीती, पोर्ट पीती हूँ! आप मेरे लिये एक लेने आइएगा। ____ थानेदार साहब ने कहा-"अच्छा, खाना तो साथ खानो।" कनक नेपा ऋड़ा उठाकर खा लिया। थानेदार भी खाने लगे। कनक ने कहा-"मैं नाश्ता कर चुकी हूँ माफ फर्माइएगा बस।" उसने वहीं, [ ३० ]असरा नीचे रक्खे हुए, ताँबे के एक बड़े से बर्तन में हाथ-मुँह धोकर डब्बे से निकालकर पान खाया। दारोगाजी खाते रहे । कनक ने डरते हुए चौथा पेग तैयार कर सामने रख दिया । खाते-खाते थानेदार साहब उसे भी पी गए । कनक उनकी आँखें देख रही थी। ___ थानेदार साहब का प्रम धीर-धीर प्रबल रूप धारण करने लगा। शराब की जैसी दृष्टि हुई थी, उनकी नदी में वैसी ही बाद भी आ गई। कनक ने पाँचवाँ पेग तैयार किया। थानेदार साहब भी प्रेम की परीक्षा में फेल हा जानेवाले आदमी नहीं थे। उन्होंने इनकार नही किया। खाना खा चुकने के बाद नौकर ने उनके हाथ धुला दिए । धीरे-धीरे उनके शब्दों में प्रेम का तूफान उठ चला । कनक डर रही थी कि वह इतना सब सहन कर सकेगी या नहीं। वह उन्हें माता की बैठक में ले गई । सर्वेश्वरी दूसरे कमरे में चली गई थी। ____ गढ़ी पर पड़ते ही थानेदार साहब लंबे हो गए। कनक ने हार- मानियम उठाया। बजाते हुए पूछा-"वह जो कल दुष्यंत बना था, उसे गिरफ्तार क्यों किया आपने, कुछ समझ में नहीं आया।" ____ "उससे हैमिल्टन साहब सख्त नाराज हैं। उस पर बदमाशी लगाई गई है।" करवट बदलकर दारोगाजी ने कहा। "ये हैमिल्टन साहब कौन हैं ?" “य सुपरिटेंडेंट पुलिस हैं।" "कहाँ रहते हैं ?" कनक ने एक गत का एक चरण बजाकर पूछा। "रौडन स्ट्रोट नं०५ इन्हीं का बँगला है। "क्या राजकुमार को सजा हो गई ?” "नहीं, कल पेशी है, पुलिस की शहादत गुजर जाने पर सृजा है जायगी।" "मैं तो बहुत डरी, जब आपको वहाँ देखा।" आँखें मूंदे हुए दारोगाजी मूछों पर ताव देने लगे। कनक ने कहा-"पर मैं कहूँगी, आपके जैसा खूबसूरत जवान बना चुना मुझे दूसरा नहीं नजर आया।" [ ३१ ] दारोगाजी उठकर बैठ गए। इसी सिलसिले में प्रासंगिक अप्रासंगिक सुनने लायक, न सुनने लायक बहुत-सी बातें कह गए । धीरे-धीरे लड़-कर आए हुए मैंसे की आँखों की तरह आँखें खून हो चली । भले-बुरे की लगाम मन के हाथ से छूट गई। इस अनर्गल शब्द-प्रवाह को बेहोश होने की घड़ी तक रोक रखने के अभिप्राय से कनक गाने लगी।

गाना सुनते-ही-सुनते मन विस्मृति के मार्ग से अंधकार में बेहोश हा गया।

कनक ने गाना बंद कर दिया। उठकर दारोगाजी के पॉकेट की तलाशी ली।कुछ नोट थे, और उसकी चिट्ठी । नोटों को उसने रहने दिया, और चिट्ठी निकाल ली।

कमरे के तमाम दरवाजे बंद कर ताली लगा दी।

             ( ७ )     

कनक घबरा उठी। क्या करे, कुछ समझ में नहीं पा रहा था। राजकुमार को जितना ही सोचती, चिंताओं की छोटी-बड़ी अनेक तरंगों, श्रावतों से मन मथ जाता। पर उन चिंताओं के भीतर से उपाय की कोई भी मणि नहीं मिल रही थी, जिसकी प्रभा उसके मार्ग को प्रकाशित करती। राजकुमार के प्रति उसके प्रेम का यह प्रखर बहाव, बँधी हुई जल-राशि से छूटकर अनुकूल पथ पर बह चलने की तरह, स्वाभाविक और सार्थक था । पहले ही दिन, उसने राजकुमार के शौर्य का जैसा दृश्य देखा था, उसके सबसे एकांत स्थान पर, जहाँ तमाम जीवन में मुश्किल से किसी का प्रवेश होता है, पत्थर के अक्षरों की तरह उसका पौरुष चित्रित हो गया था। सबसे बड़ी बात जो रह-रहकर उसे याद आती थी, वह राजकुमार की उसके प्रति श्रद्धा थी। कनक ने ऐसा चित्र तब तक नहीं देखा था। इसीलिये उस पर राजकुमार का स्थायी प्रभाव पड़ गया। माता की केवल जबानी शिक्षा इस प्रत्यक्ष उदाहरण के सामने पराजित हो गई। और, वह जिस तरह की शिक्षा के भीतर से आ रही थी, परिचय के पहले ही प्रभाव में किसी मनोहर दृश्य पर उसकी दृष्टि का बँध जाना, अटक [ ३२ ]जाना, उसके उस जीवन की स्वच्छ अबाध प्रगति का उचित परिणाम ही हुआ । उसकी माता शिक्षित तथा समझदार थी। इसीलिये उसने कन्या के सबसे प्रिय जीवनोन्मेष को बाहरी आवरण द्वारा ढक देता उसकी बाढ़ के साथ ही जीवन की प्रगति को भी रोक देना समझा था।

सोचते-सोचते कनक को याद आया, उसने साहब की जेब से एक चिट्ठी निकाली थी, फिर उसे अपनी फाइल में रख दिया था। वह तुरंत चलकर फाइल की तलाशी लेने लगी। चिट्ठी मिल गई।

साहब की जेब से यह राजकुमार की चिट्ठी निकाल लेना चाहती थी, पर हाथ एक दूसरी चिट्ठी लगी। उस समय घबराहट में वहीं उसने पढ़कर नहीं देखा । घर में खोला, तो काम की बातें न मिली। उसने चिट्ठी को फाइल में नत्थी कर दिया । उसने देखा था, युवक ने पेंसिल से पत्र लिखा है। पर यह स्याही से लिखा गया था। इसकी बातें भी उस सिलसिले से नहीं मिलती थीं। इस तरह, ऊपरी दृष्टि से देखकर ही, उसने चिट्ठी रख दी। आज निकालकर फिर पढ़ने लगी। एक बार, दो बार, तीन बार पढ़ा। बड़ी प्रसन्न हुई। यह वही हैमिल्टन साहब थे । वे हों, न हों, पर यह पत्र हैमिल्टन साहब ही के नाम लिखा था, उसके एक दूसरे अँगरेज मित्र मिस्टर चर्चिल ने । मजमून रिश्वत और अन्याय का, कनक की आँखें चमक उठीं।

इस कार्य की सहायता की बात सोचते ही उसे श्रीमती कैथिरिन की याद आई। अब कनक पढ़ती नहीं, इसीलिये श्रीमती कैथरिन का आना बंद है। कभी-कभी श्राकर मिल जाती, मकान में पढ़ने की किताबें पसंद कर जाया करती हैं। कैथरिन अब भी कनक को वैसे ही प्यार करती हैं । कभी-कभी पश्चिमी आर्ट, संगीत और नृत्य की शिक्षा के लिये साथ योरप चलने की चर्चा भी करती हैं। सर्वेश्वरी की उसे योरप मेजने की इच्छा थी। पर पहले वह अच्छी तरह उसे अपनी शिक्षा दे देना चाहती थी।

कनक ने ड्राइवर को मोटर लगाने के लिये कहा । कपड़े बदलकर चलने के लिये तैयार हो गई। [ ३३ ]_ मोटर पर बैठकर ड्राइवर से पार्क स्ट्रीट चलने के लिये कहा।

कितनी व्यग्रता ! जितने भी दृश्य आँखों पर पड़ते हैं, जैसे विना प्राणों के हों । दृष्टि कहीं भी नहीं ठहरती । पलकों पर एक ही स्वप्न संसार की अपर कल्पनाओं से मधुर हो रहा है। व्यग्रता ही इस समय यथार्थ जीवन है, और सिद्धि के लिये वेदना के भीतर से काम्य साधना । अंतर्जगत् के कुल अंधकार को दूर करने के लिये उसका एक ही प्रदीप पर्याप्त है। उसके हृदय की लता को सौंदर्य की सुगंध से भर रखने के लिये उसका एक हो फूल बस है। तमाम भावनाओ के तार अलग-अलग स्वरों में झंकार करते हैं। उसकी रागिनी से एक ही तार मिला हुआ है। असंख्य ताराओं की उसे आवश्यकता नहीं, उसके झरोखे से एक ही चंद्र की किरण उसे प्रिय है। तमाम संसार जैसे अनेक कलरखों के बुबुद-गीतों से समुद्वेलित क्षब्ध और पैरों को स्खलित कर बहा ले जानेवाला विपत्ति-संकुल है। एक ही बए को हृदय से लगा तैरती हुई वह पार जा सकेगी। सृष्टि के सब रहस्य इस महाप्रलय में डूब गए हैं, उसका एक ही रहस्य, तपस्या से प्रास अमर वर की तरह, उसके साथ संबद्ध है। शंकित दृष्टि से वह इस प्रलय का देख रही है। __पाक स्ट्रोट आ गया। कैथरिन के मकान के सामने गाड़ी खड़ी करवा कनक उतर पड़ी। नौकर से खबर भेज दी । कैथरिन अपने बँगले से निकल आई, और बड़े स्नेह से कनक को मीतर ले गई। कैथरिन से कनक की अँगरेजी में बातचीत होती थी। आने का कारण पूछने पर कनफ ने साधारण कुल किस्सा बयान कर दिया ।

कैथरिन सुनकर पहले कुछ चिंतित हो गई। फिर क्या सोचकर मुस्किराई। प्रेम की सरल बातों से उसे बड़ा आनंद हुआ। "तुम्हारा विवाह चर्च में नहीं, थिएटर में हुआ; तुमने एक नया काम किया। उसने कनक को इसके लिये धन्यवाद दिया। .

"कल पेशी है। कनक उत्तर-प्राप्ति की दृष्टि से देख रही थी। "मेरे विचार से मिस्टर हैमिल्टन के पास इस समय जाना ठीक [ ३४ ]अप्सरा नहीं । वे ऐसी हालत में बहुत बड़ा जोर कुछ दे नहीं सकते। और, उन पर इस पत्र से एक दूसरा मुक्कदमा चल सकता है। पर यह सब मुफ्त ही दिक्कत बढ़ाना है। अगर आसानी से अदालत का काम हो जाय, तो इतनी परेशानी से क्या फायदा ?" ___"आसानी से अदालत का काम कैसे ?" ___ "तुम मकान जाओ, मैं हैमिल्टन को लेकर आती हूँ, मेरी उनकी अच्छी जान-पहचान है। खूब सजकर रहना और अँगरेजी तरीके से नही, हिंदोस्तानी तरीके से।" कहकर कैथरिन हँसने लगी। ___ आचार्या से मुक्ति का अमोघ मंत्र मिलते ही कनक ने भी परी की तरह अपने सुख के काल्पनिक पंख फैला दिए । ____ कैथरिन गैरेज में अपनी गाड़ी लेने चली गई, कनक रास्ते पर टहलती रही। ____ कैथरिन हँसती हुई, “जल्दी जाओ" कहकर रोडन स्ट्रीट की तरफ चली; कनक बहूबाजार की तरफ। घर में कनक माता से मिली। सर्वेश्वरी को दारोगा की गिरफ्तारी से कुछ भय था। पर कनक की बातों से उसकी शंका दूर हो गई। कनक ने माता को अच्छी तरह, थोड़े शब्दों में, समझा दिया। माता से उसने कुल जवर पहना देने के लिये कहा, सर्वेश्वरी हँसने लगी। नौकर को बुलाया। जेवर का बाक्स उठवा तिमंजिले पर कनक के कमर को चली। ___ सब रंगों की रेशमी साड़ियाँ थीं । कनक के स्वर्ण-रंग को दोपहर की आभा में कौन-सा रंग ज्यादा खिला सकता है, सर्वेश्वरी इसके जांच कर रही थी। उसकी देह से सटा-सटाकर उसकी और साड़ियो की चमक देखती थी। उसे हरे रंग की साड़ी पसंद आई। पूछा- 'बता सकती हो, इस समय यह रंग क्यों अच्छा होगा ?" ___“उहूँ" कनक प्रश्न और कौतुक की नजर से देखने लगी। "तेज धूप में हरे रंग पर नजर ज्यादा बैठती है, उसे आराम मिलता है। [ ३५ ]अप्सरा उस बेशकीमत कामदार साड़ी को निकालकर रख लिया । कनक नहाने चली गई। माता एक-एक सब बहुमूल्य, हीरे-पन्ने-पुखराज के जड़ाऊ जेवर निकाल रही थी ; कनक नहाकर धूप में चारदीवार के सहारे, पीक के बल खड़ी, बाहर बालों को खोले हुए सुखा रही थी। मन राजकुमार के साथ अभिनय के सुख की कल्पना में लीन था। वह अभिनय को प्रत्यक्ष की तरह देख रही थी, उन्होंने कहा है, सोचती, मैं तुम्हें कभी नहीं मूलगा। अमृत से सर्वाग तर हो रहा था। बाल सूख गए, वह खड़ी ही रही। मावा ने बुलाया । ऊँची आवाज से कल्पना की तंद्रा छूट गई । वह धीरे-धीरे माता के पास चली। सर्वेश्वरी कन्या को सजाने लगी। पैर, कमर, कलाई, बाजू, वक्ष, गला और मस्तक अलंकारों से चमक उठे। हरी साड़ी के ऊपर तथा भीतर से रनों के प्रकाश की छटा, छुरियों-सी निकलती हुई, किरणो के बीच उसका सुंदर, सुडौल चित्र-सा खिंचा हुआ मुख, एक नजर आपाद-मस्तक देखकर माता ने तृप्ति की सांस ली। कनक एक बड़े आईने के सामने जाकर खड़ी हो गई। देखा, राजकुमार की याद आई, कल्पना में दोनोकी प्रात्माएँ मिल गई। देखा आईने में वह हँस रही थी। नीचे से प्राकर नौकर ने खबर दी, मेम साहब के साथ एक साहब पाए हुए हैं। कनक ने ले आने के लिये कहा। कैथरिन ने हैमिल्टन साहब से कहा था कि उन्हें ऐसी एक सुंदरी भारतीय पढ़ी-लिखी युवती दिखाएँगी, जैसी उन्होंने शायद ही कही देखी हो, और वह गाती भी लाजवाब है, और अँगरेजों की ही तरह उसी लहजे में अँगरेजी भी बोलती है। हैमिल्टन साहब, कुछ दिल से और कुछ पुलिस में रहने के कारण. सौंदर्योपासक बन गए थे। इतनी खूबसूरत पढ़ी-लिखी समझदार [ ३६ ]अप्सरा २६ युवती से, विना परिश्रम के ही, कैथरिन उन्हें मिला सकती हैं, ऐसा शुभ अवसर छोड़ देना उन्होंने किसी सुंदरी के स्वयंवर में बुलाए जाने पर भी लौट आना समझा । कैथरिन ने यह भी कहा था कि आज अवकाश है, दूसरे दिन इतनी सुगमता से भेंट भी नहीं हो सकती। साहब तत्काल कैथरिन के साथ चल दिए थे। रास्ते में कैथरिन ने समझा दिया था कि किसी अशिष्ट व्यवहार से वह अँगरेज-जाति का फलंकित नहीं करेंगे, और यदि उसे अपने प्रेम में ला सकें, तो यह जाति के लिये गौरव की बात होगी। साहब दिल-ही-दिल प्रम की परीक्षा में कैसे उत्तीर्ण होंगे, इसका प्रश्न-पत्र हल कर रहे थे। तब तक ऊपर से कनक ने बुला भेजा। ___ कैथरिन आगे-आगे, साहब पीछे-पीछे चले । साहब भी मर्दानी पोशाक से खूब लैस थे। चलते समय चमड़े के कलाई-बंद में बँधी हुई घड़ी देखी। बारह बज रहे थे। ___ नौकर दोनो को तिमंजिले पर ले गया। मकान देखकर साहब के दिल मे देख सुंदरी के प्रति इज्जत पैदा हुई थी, कमरा देखकर साहब आश्चर्य में पड़ गए । सुंदरी को देखकर साहब के होश उड़ गए। दिल में कुछ घबराहट हुई । पर कैथरिन कनक से बातचीत करने लगी, तो कुछ सँभल गए। सामने दो कुर्सियाँ पड़ी थीं। कैथरिन और साहब बैठ गए । यों दूसरे दिन उठकर कनक कैथरिन से मिलती थी, पर आज वह बैठी ही रही । कैथरिन इसका कारण समझ गई । साहब ने इसे हिंदोस्तानी कुमारियों का ढंग समझा । कनक ने सूरत से साहब को पहचान लिया। पर साहब उसे नहीं पहचान सके। तब से इस सूरत में साज के कारण बड़ा मत था। साहब अनिमेष आँखों से उस रूप की सुधा पीते रहे। मन-ही-मन उन्होंने उसकी बड़ी प्रशंसा की। उसके लिये, यदि वह कहे तो, साहब सर्वस्व देने को तैयार हो गए । श्रीमती कैथरिन ने साहब को समझा दिया था कि उसके कई अँगरेज प्रेमी हैं, पर अभी उसका किसी पर प्यार नहीं हुआ, यदि वे उसे पास कर सके, तो राजकन्या के साथ [ ३७ ]अप्सरा ही राज्य भी उन्हें मिल जायगा; कारण, उसकी मा की जायदाद पर उसी का अधिकार है। कैथरिन ने कहा-"मिस, एक गाना सुनाओ, ये मि० हैमिल्टन पुलिस-सुपरिटेंडेंट, २४ परगना, हैं, तुमसे मिलने के लिये आए हैं।" कनक ने उठकर हाथ मिलाया । साहब उसकी सभ्यता से बहुत प्रसन्न हुए। ___ कनक ने कहा- हम लोग पृथक-पृथक् श्रासन से वार्तालाप करेगे, इससे आलाप का सुख नहीं मिल सकता। साहब अगर पतलून उतार डालें, मैं उन्हें धोती दे सकती हूँ, तो संग-सुख की प्राप्ति पूरी मात्रा मे हो । कुर्सी पर बैठकर पियानो, टेब्ल हारमोनियम बजाए जा सकते हैं, पर आप लोग यहाँ हिंदोस्तानी गीत ही सुनने के लिये आए हैं, जो सितार और सुर-बहार से अच्छी तरह अदा होंगे, और उनका बजाना बराबर जमीन पर बैठकर ही हो सकता है।" कनक ने अँगरेजी में कहा । कैथरिन ने साहब की तरफ देखा। नायिका के प्रस्ताव के अनुसार ही उसे खुश करना चाहिए, साहब ने अपने साहबो ढर्रे से समझा, और उन्हें वहाँ दूसर प्रेमियों से बढ़- कर भी अपने प्रेम की परीक्षा देनी थी। उधर कैथरिन की मौन चितवन का मतलब भी उन्होंने यही समझा । साहब तैयार हो गए। कनक ने एक धुली ४८ इंच की बढ़िया धोती मँगा दी । साहब को कैथरिन नेधोती पहनना बतला दिया। दूसरे कमरे से साहब धोती पहन आए, और कनक के बराबर, गढ़ी पर, बैठ गए; एक तकिए का सहारा कर लिया। कनक ने सुर-बहार मँगवा लिया। तार स्वर से मिलाकर पहले एक गत बजाई । स्वर की मधुरता के साथ-साथ साहब के मन में उस परी को प्राप्त करने की प्रतिक्षा मी दृढ़ होती गई। कैथरिन ने बड़े स्नेह से पूछा-"यह किससे सीखा ?-अपनी मा से १" “जी हाँ।" कनक ने सिर मुक्का लिया। ___ "अब एक गाना गाओ, हिंदोस्तानी गाना; फिर हम जायेंगे, हमको देर हो रही है। [ ३८ ]कनक ने एक बार पर हाथ फेर लिया। फिर गाने लगी- गामा (सारंग) याद रखना, इतनी ही बात । नहीं चाहते, मत चाहो तुम, मेरे अयं सुमन-दल नाय । मेरे वन में भ्रमण करोगे जब तुम, अपना पथ-श्रम श्राप हरोगै जब तुम, । ढक लूगी मैं अपने इंग-मुख, छिपा - रहूँगी गाव- याद रखना, इतनी ही बात। सरिता के उस नीरव निर्जन तट पर, प्रायोगे जब मंद चरण तुम चलकर, मेरे शल्य घाट के प्रति करुणाकर, __ हेरोगे नित प्रात- याद रखना, इतनी ही बात । मेरे पथ की.हरित लताएँ, तृण-दल, मेरे भम-सिंचित, देखोगे, अचपल, पलकहीन नयनों से तुमको प्रतिपक्ष हेरेंगे अशात- याद रखना, इतनी ही बात। मैं न रहूँगी जब, सूना होगा जग, समझोगे तब यह मंगल-कलरव सब, था मेरे ही स्वर से सुंदर जगमग; ' चला गया सब साथ- याद रखना, इतनी ही बात । साहब एकटक मन की आँखों से देखते, हृदय के कानों से सुनते रहे उस स्वर की सरिता अनेक तरंगभंगों से बहती हुई जिस समुद्र [ ३९ ]से मिली थी, वहाँ तक सभी यात्राएँ पर्यवसित हो जाती थीं । श्रीमती कैथरिन ने पूछा--"कुछ आपकी समझ में आया?" साहब ने अनजान की तरह सिर हिलाया, कहा-"इनका स्वयें से खेलना मुझे बहुत पसंद आया। पर में गाने का मतलब नहीं समझ सका।"

कैथरिन ने मतलब थोड़े शब्दों में समझा दिया। "हिंदोस्तानो भाषा में ऐसे भो गाने हैं ?" साहब तअज्जुब करने लगे।

कनक को साहब देख रहा था, उसकी मुद्राएँ, मंगिमाएँ, गाने के समय, इस तरह अपने मनोभावों को व्यजित कर रही थीं, जैसे वह स्वर के स्रोत में बहती हुई, प्रकाश के द्वार पर आगई हो, और अपने प्रियतम से कुछ कह रही हो, जैसे अपने प्रियतम को अपना सर्वख पुरस्कार दे रही हो । संगीत के लिये कैथरिन ने कनक को धन्यवाद दिया, और साहब को अपने चलने का संवाद साथ ही उन्हें समझा दिया कि उनकी इच्छा हो, तो कुछ देर वह वहाँ ठहर सकते हैं । कनक ने सुर-बहार एक बगल रख दिया। एकांत की प्रिय कल्पना से, अभीप्सित की प्राप्ति के लोम

से साहब ने कहा-"अच्छा, श्राप चलें, मैं कुछ देर बाद आऊंगा।

कैथरिन चली गई। साहब को एकांत मिला । कनक बातचीत करने लगी। . . . ____साहब कनक पर कुछ अपना भी प्रभाव जतलाना चाहते थे, और दैवात् कनक ने प्रसंग भी वैसा ही छेड़ दिया, “देखिए, हम हिंदोस्तानी हैं, प्रेम की बातें हिंदी में कीजिए। आप २४ परगने के पुलिस- सुपरिटेंडेंट हैं।"

"हाँ ।” ठोढ़ी ऊँची करके साहब से जहाँ तक तनते बना, तन गए।

"आपकी शादी तो हो गई होगी ?" साहब की शादी हो गई थी। पर मेम साहब को कुछ दिन बाद आप पसंद नहीं आए, इसलिये इनके भारत आने से पहले ही वह इन्हें तलाक दे चुकी थी, एक साधारण से कारण को बहुत बढ़ाकर, पर यहाँ साहब साफ इनकार कर गए, और इसे ही उन्होंने प्रेम बढ़ाने का उपाय सममा [ ४० ]“अच्छा, अब तक आप अविवाहित हैं ? आपसे किसी का प्रेम नहीं हुआ? "

हमको अभी टक कोई पसंड नई आया ! हम टुमको पसंड करटा है।" साहब कुछ नज़दीक खिसक गए।

कनक डरी । उपाय एक ही उसने आज़माया था, और उसी का उपयोग वह साहब के लिये भी कर बैठी।

"शराब पीजिएगा ? हमारे यहाँ शराब पिलाने की चाल है।"

साहब पीछे क़दम रखनेवाले न थे। उन्होंने स्वीकार कर लिया। कनक ने ईश्वर को धन्यवाद दिया।

नौकर से शराब और सोडावाटर मँगवा लिया।

"तो अब तक किसी को नहीं प्यार किया?--सच कहिएगा।"

"हम सच बोलटा, किसी को नहीं।"

साहब को तैयार कर एक ग्लास में उसी तरह दिया। साहब बढें अदब से पी गए। दूसरा, तीसरा, चौथा । पाँचवें ग्लास पर इनकार कर गए। अधिक शराब जल्दी में पी जाने से नशा बहुत तेज होता है । यह कनक जानती थी । इसीलिये वह फुर्ती कर रही थी। उधर साहब को भी अपनी शराब-पाचन शक्ति का परिचय देना था, साथ ही अपने अकृत्रिम प्रेम की परीक्षा।

कनक ने सोचा, भूत-सिद्ध की तरह, हमेशा भूत को एक काम देते रहना चाहिए । नहीं तो, कहा गया है, वह अपने साधक पर ही सवारी कस बैठता है।

कनक ने तुरंत फ़र्माया-"कुछ गाओ और नाचो, मैं तुम्हाय नाच देखना चाहती हूँ।"

"टब टुम बी आओ, हिंया डांसिंग-स्टेज कहाँ ?"

“यहीं नाचो, मुझे नाचना नहीं पाता, मैं तो सिर्फ़ गाती हूँ।"

"अच्छा, टुम बोलटा, दो हम नाच सकटा।"

साहब अपनी भोंपू-आवाज में गाने और नाचने लगे। कनक देख-
[ ४१ ]अप्सरा देखकर हँस रही थी। कभी-कभी साहब का उत्साह बढ़ाती-बहुत अच्छा हो रहा है। साहब की नजर पित्रानो पर पड़ी। कहा-"डेक्सो, आबी हम पिआनो बजाटा, फिर टुम कहेगा, दो हम नाचेगा।" ___ "अच्छा बजाओ।" ___ साहब पित्रानो बजाने लगे। कनक ने तब तक अँगरेजी गीतों का अभ्यास नहीं किया था। उसे, कविता के यतिमंग की तरह, सब स्वरों का सम्मिलित विद्रोह असह्य हो गया। उसने कहा-"साहब, हमे तुम्हारा नाचना गाने से ज्यादा पसंद है।" साहब अब तक औचित्य की रेखा पार कर चुके थे। आँखें लाल हो रही थीं । प्रेमिका को नाच पसंद है, सुनकर बहुत ही खुश हुए, और शीघ्र ही उसे प्रसन्न कर वर प्राप्त कर लेने की लालसा से नाचने लगे। नौकर ने बाहर से संकेत किया। कनक उठ गई। नौकर को इशारे से आदेश दे लौट आई। धड़-घड़-घड़, कई आदमी जीने पर चढ़ रहे थे। आगंतुक बिलकुल कमरे के सामने आ गए। हैमिल्टन को नाचते हुए देख लिया। हैमिल्टन ने भी देखा, पर उस दूसरे की परवा न की, नाचते ही रहे। “ो ! टुम दूसरे हो, रॉबिसन।" हैमिल्टन ने पुकारकर कहा । "नहीं, मैं चौथा हूँ" रॉबिंसन ने बढ़ते हुए जवाब दिया। तितलियों-सी मूळे, लंबे तगड़े रॉबिंसन साहब मैजिस्ट्रेटे थे। कैथरिन के पीछे कमरे के भीतर चले गए। कई और आदमी साथ थे। कुर्सियाँ खाली थीं, बैठ गए। कैथरिन ने कनक से रॉबिंसन साहब से हाथ मिलाने के लिये कहा। कहा- यह मैजिस्ट्रेट हैं, तुम अपना कुल किस्सा इनसे बयान कर दो। हैमिल्टन को धोती पहने नाचता हुआ देख रॉबिंसन बारूद हो गए थे। कनक ने हैमिल्टन की जेब से निकाली हुई चिट्ठी साहब को दे दी। पहले ही आग में पेट्रोल पड़ गया। कनक कहने लगी-एक दिन मैं इडेन गार्डन में गलाब के किनारेवाली बेंच पर अकेली बैठी [ ४२ ] थी। हैमिल्टन ने मुझे पकड़ लिया, और मुझे जैसे अशिष्ट शब्द कहे, मैं कह नहीं सकती। उसी समय एक युवक वहाँ पहुँच गया। उसने मुझे बचाया । हैमिल्टन उससे बिगड़ गया, और उसे मारने के लिये तैयार हो गया। दोनों में कुछ देर हाथापाई होती रही। उस युवक ने हैमिल्टन को गिरा दिया, और कुछ जमाए, जिससे हैमिल्टन बेहोश हो गया। तब उस युवक ने अपने रुमाल से हैमिल्टन का मुंह धो दिया, और सिर में उसी की पट्टी लपेट दी। फिर उसने एक चिट्ठी लिखी, और इनकी जेब में डाल दी। मुझसे जाने के लिये कहा। मैने उससे पता पूछा । पर उसने नहीं बतलाया। वह हाईकोर्ट की राह चला गया। अपने बचानेवाले का पता मालूम कर लेना मैंने अपना फर्ज समझा । इसलिये वहीं फिर लौट गई। चिट्ठी निकालने के लिये जेब में हाथ डाला। पर भ्रम से युवक की चिट्ठी की जगह यह चिट्री मिली। एकाएक कोहनूर स्टेज पर मैं शकुंतला का अभिनय करने गई। देखा, वही युवक दुष्यंत बना था। थोड़ी ही देर में दारोगा सुंदरसिंह उसे गिरफ्तार करने गया, पर दर्शक बिगड़ गए थे। इसलिये अभिनय समाप्त हो जाने पर गिरफ्तार किया। राजकुमार का कुसूर कुछ नहीं, अगर है, तो सिर्फ यही कि उसने मुझे बचाया था।" _अक्षर-अक्षर साहब पर चोट कर रहे थे। कनक ने कहा-"और देखिए, यह हैमिल्टन के चरित्र का दूसरा पत्र। ___कनक ने दारोगा की जेब से निकाला हुआ दूसरा पत्र भी साहब को दिखाया। इसमें हैमिल्टन के मित्र, सुपरिटेंडेंट मिस्टर मूर ने दारोगा को बिला धजह राजकुमार को गिरफ्तार कर बदमाशी के सुबूत दिला- कर सजा करा देने के लिये लिखा था। उसमें यह भी लिखा था कि इस काम से तुम्हारे ऊपर हम और हैमिल्टन साहब बहुत खुश होगे। मैजिस्ट्रेट रॉबिंसन ने उस पत्र को भी ले लिया। पढ़कर दोनो की तिथियाँ मिलाई। सोचा। कनक की बातें बिलकुल सच जान पड़ी। रॉबिंसन कनकं से बहुत खुश हुए। [ ४३ ]३० अप्सरा ____ कनक ने उमड़कर कहा-"वह दारोगा साहब भी यहीं तशरीफ रखते हैं। आपको तकलीफ होगी। चलकर आप उनके भी उत्तम चरित्र के प्रमाण ले सकते हैं।" ____ॉर्विसन तैयार हो गए । हैमिल्टन को साथ चलने के लिये कहा। कनक आगे-आगे नीचे उतरने लगी। ___ सुंदरसिंह के कमरे की ताली नौकर को दी, और कुल दरवाजे खोल देने के लिये कहा । सब दरवाजे खोल दिए गए। भीतर सब लोग एक साथ घुस गए। दारोगा साहब करवट बदल रहे थे। रॉबिंसन ने एक की छड़ी लेकर खोद दिया। तब तक नशे में कुछ उतारा आ गया था। पर फिर भी वे सँभलने लायक नहीं थे। रॉबिंसन ने डाँटकर पुकारा। साहबी आवाज से वह घबराकर उठ बैठे। कई आदमियों और अँगरेजों को सामने खड़ा हुआ देख चौंककर खड़े हो गए । पर समलने की ताब न थी। काटे हुए पेड़ की तरह वहीं ढेर हो गए। होश दुरुस्त थे। पर शक्ति नहीं थी। दारोगा साहब फूट- फूटकर रोने लगे। "साहब खड़े हैं, और आप लेटे रहिएगा ?" कनक के नौकर खोद- खोदकर दायेगा साहब को उठाने लगे। एक ने बाँह पकड़कर खड़ा कर दिया । उन्हें विवश देख रॉबिंसन दूसरे कमरे की तरफ चल दिए, कहा-"इसको पड़ा रहने दो, हम समझ गया।" ___ यह वही कमरा था, जहाँ कनक पढ़ा करती थी। पुस्तकों पर नजर गई ; रॉबिंसन खोलकर देखने के लिये उत्सुक हो गए । नौकर ने आलमारियों की वाली खोल दी । साहब ने कई पुस्तकें निकाली, उलट- पुलटकर देखते रहे । इज्जत की निगाह से कनक को देखकर अँगरेजी में कहा-"अच्छा मिस," कनक मुस्कियई, "तुम क्या चाहती हो?" ___ "सिर्फ इंसाफ कनक ने मॅजे स्वर से कहा। साहब सोचते रहे । निगाह उठाकर पूछा- क्या तुम इन लोगों पर मुकदमा चलाना चाहती हो ?" [ ४४ ] साहब कनक को देखते रहे । आँखों में तअज्जुब और सम्मान था। पूछा--"फिर कैसा इंसाफ ?" "राजकुमार को बिला बजह के तकलीफ दी जा रही है, वह छोड़ दिए जायँ । कनक की पलकें मुक गई। ___ साहब कैथरिन को देखकर हँसने लगे। कहा-"हम कल ही छोड़ देगा। तुमसे हम बहुत खुश हुआ है।" कनक चुपचाप खड़ी रही। "तुम्हारी पतलून क्या हुई मिस्टर हैमिल्टन ?" हैमिल्टन को घृणा से देखकर साहब ने पूछा। ___ अब तक हैमिल्टन को होश ही नहीं था कि वह धोती पहने हुए है। नशा इस समय भी पूरी मात्रा में था। जब एकाएक यह मुक्रमा पेश हो गया, तब उनके दिल से प्रेम का मनोहर स्वप्न सूर्य के प्रकाश से कटते हुए अंधकार की तरह दूर हो गया। एकाएक चोट खाकर नशे में होते हुए भी वह होश में आ गए थे। कोई उपाय न था, इस- लिये मन-ही-मन पश्चात्ताप करते हुर यंत्र की तरह रॉबिंसन के पीछे- पीछे चल रहे थे। मुकदमे के चक्कर से बचने के अनेक प्रकार के उपायों का आविष्कार करते हुए वे अपनी हालत का भूल ही गए थे। अब पतलून की जगह धोती होने से, और वह भी एक दूसरे अँगरेज के सामने, उन्हें कनक पर बड़ा गुस्सा आया । मन में बहुत ही सुन्ध हुए। अब तक वीर की तरह सजा के लिये तैयार थे, पर अब लज्जा में ऑखें मुक गई। ____एक नौकर ने पतलून लाकर दिया। बाल के एक दूसरे कमरे में साहब ने पहन लिया। कनक को धैर्य देकर रॉबिंसन चलने लगे। हैमिल्टन और दारोगा को शीघ्र निकाल देने के लिये एक नौकर से कहा । ____ कनक ने कहा-"ये लोग शायद अकेले मकान तक नहीं जा सकेंगे। आप कहें, तो मैं ड्राइवर से कह दूं, इनको छोड़ आये।" रॉबिंसन ने सर झुका लिया, जैसे इस तरह अपना अदब जाहिर