अप्सरा/अगला भाग ९

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अप्सरा साथ उसके मकान जायगी। पर इस भाव-परिवर्तन को देख वह कुछ घबरा गई थी। इसलिये उसी जगह खड़ी रही। गाड़ी चल दी. चंदन के कहने पर। (२३) राजकुमार ने अपने कमरे में पहुँचकर देखा, उसके संवाद-पत्र पड़े थे। कुलियों से सामान रखवा दिया। पारिश्रमिक दे दिया। उन्हीं पत्रों में खोजने लगा, उसके पत्र भी आए हैं या नहीं। उसकी सलाह के अनुसार उसके पत्र भी पोस्टमैन झरोखे से डाल जात थे। कई पत्र थे। अधिकांश मित्रों के। एक उसके घर का था। खोलकर पढ़ने लगा। उसकी माता ने लिखा था, गर्मियों की छुट्टी में तुम घर आनेवाले थे, पर नहीं आए, चित्त लगा है-आदि-आदि । अभी कॉलेज खुलने के बहुत दिन थे। राजकुमार बैठा सोच रहा था कि एक बार घर जाकर माता के दर्शन कर आवे। राजकुमार ने 'टी को पीछा करते हुए देखा था, और यह भी देखा था कि उसकी टैक्सी के रुकने के साथ हीटी की टैक्सी भी कुछ दूर पीछे रुक गई । पर वह स्वभाव का इतना लापरवाह था कि इसके बाद उस पर क्या विपत्ति होगी, इसकी उसने कल्पना भी नहीं की। जब एकाएक माता का ध्यान आया, वो स्मरण पाया कि चंदन की किताबे यहाँ हैं, और यदि तलाशी हुई, वो चंदन पर विपत्ति आ सकती है। वह विचारों को छोड़कर किताबें उलट-उलटकर देखने लगा। दराज से रबर और छुरी निकालकर जहाँ कहीं उसने चंदन का नाम लिखा हुआ देखा, घिसकर काटकर उड़ा दिया । इस पर भी किसी प्रकार की शंका हो, इस विचार से, बीच-बीच, ऊपर के सफों पर, अपना नाम लिख देता था। अधिकांश पुस्तकें चंदन के नाम की छाप से रिक्त थीं । कारण, उसे नाम लिखने की लत न थी । जहाँ कहीं था भी, वह भी बहुत सष्ट । और, इतनी मैली वे किताबें थीं, जिनमें यह छाप होती थी, कि देखकर यह अनुमान लगा लेना सहज होता था कि यह "परहस्ते, गता" की दशा है, और दूसरे लोग आक्रमण से स्वयं बचे रहने के [ १५९ ]________________

१५० अप्सरा लिये किताबों पर मालिक का नाम लिख देते थे, इस तरह अपने यहाँ छिपाकर पढ़ते थे। राजकुमार जब इस कृत्य में लीन था, तब चंदन कनक के मकान में था। राजकुमार के यहाँ से सामान ले आने और टो के संबंध की बातें जानने के लिये और उत्सुक हो रहा था। वह सीधे राजकुमार के पास ही जाता, पर कनक को बहू के भाव न समझ सकने के कारण कष्ट हो, इस शंका से पहले कनक के हो यहाँ गया । कनक चंदन को अपने यहाँ पाकर बड़ी प्रसन्न हुई। चालाक चंदन ने बहू का भीतरी मतलब, जिससे बहू उसके मकान नहीं गई, कुछ सच और कुछ रँगकर खूब समझाया। चंदन के सत्य का वो कुछ असर कनक पर पड़ा, पर उसकी रँगामेजी से कनक के दिल में दीदी का रंग फीका नहीं पड़ा। कारण, उसने अपनी ही आँखों दीदी की उस समय की अनुपम छवि देखी थी.जिसका परनसर खयाल बह किसी तरह भी न छोड़ सकी। वह दीदी पुरानी बादतों से मजबूर है, यह सिर्फ उसने सुन लिया, और सभ्यता की खातिर इसके बाद एक हाँ कर दिया । चंदन ने समझा, मैंने खूब समझाया । कनक ने दिल में कहा, तुम कुछ नहीं समझे। चंदन की इच्छा न रहने पर भी कनक ने उसे जल-पान कराया, और फिर यह जानकर कि वह राजकुमार के यहाँ जा रहा है, उससे आग्रह किया कि वह और राजकुमार आज शाम चार बजे उसके यहाँ आ जायँ, और वहीं भोजन करें। अंदन ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। एवरकर अपनी मोटर पर राजकुमार के यहाँ चला। राजकुमार ने नया मकान बदला था, इसका पता तो चंदन को मालूम था, पर कहाँ है, नहीं जानता था। अकः दो-एक जगह पूछकर, रुक-रुककर जाना पड़ा। राजकुमार अपने किताबी कार्य से निवृत्त होकर चाय मँगवाकर पायम से पी रहा था। . चंदन पहले सीधे मकान के मैनेजर के पास गया। पूछा, १०० कमरे का कितना किराया बाकी है , [ १६० ]________________

अप्सरा मैनेजर ने श्रागंतुक को देखे विना अपना खाता खोलकर बतलाया"चालीस रुपए, दो महीने का है ; आपको वो मालूम होगा। चंदन ने बिलकुल सज्ञान की तरह कहा-"हाँ, मालूम था, पर मैंने कहा, एक दुका जाँच कर लूँ। अच्छा, यह लीजिए।" चंदन ने चालीस रुपए के चार नोट दे दिए। ___“अच्छा, आप बवला सकते हैं, आज मेरे नाम की यहाँ किसी ने जॉच की थी?" चंदन ने गौर से मैनेजर को देखते हुए पूछा। "हाँ, एक आदमी आया था। उसने पूछ-ताछ की थी, पर इस तरह अक्सर लोग आया करते हैं, पूछ-पछोरकर चले जाते हैं। मैनेजर ने कुछ विरक्ति से कहा। ___"हाँ, कोई गैरजिम्मेदार आदमी होंगे, कुछ काम नहीं, तो दूसरों की जाँच-पड़ताल करते फिरे।". व्यंग्य के खर में कहकर चंदन वहाँ से चल दिया । मैनेजर को चंदन का कहना अच्छा नहीं लगा। जब उसने निगाह उठाई, तब चंदन मुँह फेर चुका था। राजकुमार के कमरे में जाकर चंदन ने देखा, वह अखबार उलट रहा था। पास बैठ गया। "तुम्हारा न्योता है, रक्खो अखबार ।" "तुम्हारी बोबी के यहाँ।। "मैं घर जाना चाहता हूँ। अम्मा ने बुलाया है। कॉलेज खुलने तक लौटूंगा।" "तो कल चले जाना, न्योता वो आज है।" "गाढ़ी तो ले आए होंगे ?" "अरे रमजान !" राजकुमार ने नौकर को बुलाया। इसका नाम रामजियावन था । पर राजकुमार ने छोटा कर लिया था। रामजियावन सामान उठाकर मोटर पर रखने लगा। . , "कमरे की कुंजी मुझे दे दो।" चंदन ने कहा। [ १६१ ]________________

अप्सरा राजकुमार ने कुंजी दे दी। कुछ पूछा नहीं, कहा- मैं कल चला जाऊँगा । लौटकर दूसरी कुंजी बनवा लूँगा। न्योते में तुम तो होगे "जहाँ मुफ्त माल मिलता हो, वहाँ मेरी बेरहमी तुम जानते हो।" "तुमने मुफ्त माल के लिये काकी गुंजाइश कर ली। आसामी मालदार है।" ___ "दादा, किस्मत तो तुम्हारी है, जिसे यस्ता चलते जान-च-माल दोनो मिलते हैं। यहाँ तो ईश्वर ने दिखलावे के लिये बड़े घर में पैदा किया है, रहने के लिये दूसरा ही बड़ा घर चुना है, रामबान कूटतेकूटते जान जायगी देखो अब ! कपाल क्या मशाल जल रही है।" चंदन ने राजकुमार को देखते हुए कहा। नौकर ने कहए जल्दी जाइए, सामान रख दिया बावू ! राजकुमार और चंदन भवानीपुर चले । राह में चंदन ने उसे कनक के यहाँ छोड़ जाने के लिये पूछा, पर उसने पहले घर चलकर अम्मा और बड़े भैया को प्रणाम करने की इच्छा प्रकट की। चंदन ड्राइव कर रहा था। सीधे भवानीपुर चला। राजकुमार को देखकर चंदन की माता और बड़े भाई नंदन बड़े खुश हुए। बहू ने मकान जाते ही पति से राजकुमार के नए ढंग के विवाह की कथा को, अपनी सरलता से रंग चढ़ा-चढ़ाकर, खूब चमका दिया था। नंदन की वैसी स्थिति में राजकुमार से पूरी सहानुभूति थी। तारा ने अपनी सास से इसकी चर्चा नहीं की। नंदन ने भी मना कर दिया था। तारा को कुछ अधिक स्वतंत्रता देने के विचार से नंदन ने उसके जाते ही खोदकर माता के काशी-वास की कथा उठा दी थी। अब तक इसी पर बहस हो रही थी, उन्हें कौन काशी छोड़ने जायगा, वहाँ कितना मासिक खर्च संभव है, एक नौकर और एक ब्राह्मण से काम चल जायगा या नहीं, आदि-आदि। इसी समय राजकुमार और चंदन वहाँ पहुँचे। राजकुमार ने मित्र की माता के चरण छूकर धूलि सर से लगा ली, [ १६२ ]________________

१५५ अप्सरा बड़े भाई को हाथ जोड़कर प्रणाम किया। अँगरेजी में नंदन ने कहा, तुम्हारी बहूजी से तुम्हारे अजीब विवाह की बातें सुनकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई । राजकुमार ने नजर झुका ली। अँगरेजी का मर्म शायद काशी-वास की कथा हो, जो अभी चल रही थी, यह समझकर चंदन की मा ने कहा, "देखो न भैया, न जाने कब जीव निकल जाय, करारे का रूख, कौन ठिकाना, चाहे जब महराय के बैठ जाय, यही से अब जितनी जल्दी बाबा विश्वनाथजी की पैर-पोसी मा हाजिर हुसकी, वतनै अच्छा है।" ___"हाँ, अम्मा, विचार तो बड़ा अच्छा है।" राजकुमार ने जय स्वर ऊँचा करके कहा। ले जाय की फुर्सत नाही ना कोहू का, यह छिबुलका पैदा होयके साथै आफत बरपा करै लाग," चंदन की तरफ देखकर माता ने कहा, "यहि के साथ को जाय !" ___ "अम्मा, मैं कल घर जाऊँगा, अम्मा ने बुलाया है, आप चलें, तो आपको काशी छोड़ दूं।" राजकुमार ने कहा। वृद्धा गद्गद हो गई। राजकुमार को आशीर्वाद दिया। नंदन से कल ही सब इंतजाम कर देने के लिये कहा। ___ तो तुम लौटोगे कब ?" तारा ने राजकुमार को व्यग्रता से देखते हुए पूछा । “चार-पाँच रोज में लौट आऊँगा।" भोजन तैयार था। ताराने राजकुमार और चंदन को नहाने के लिये कहा। महरी दोनो की धोतियाँ गुसलखाने में रख पाई। राजकुमार और चंदन नहाने के लिये गए। ____ भोजन कर दोनो मित्र आराम कर रहे थे। तारा आई । राजकुमार से कहा-"रज्जू बाबू, अम्मा को मिलने के लिये पड़ोसिनों के यहाँ भेज दूंगी, अगर कल तुम लिए जाते.हो; आज शाम को उसे यह ले आओ।" ____ अच्छी बात है।' राजकुमार ने शांति से कहा । चंदन ने पेट में उँगली कोंच दी। राजकुमार हँस पड़ा। [ १६३ ]________________

१५६ अप्सरा ____ बनते क्यों हो ? चंदन ने कहा, 'मुझे बड़ा गुस्सा लगता है, अब मियाँ बनकर लोग गाल फुलाने लगते हैं,. वाहियात, दूसरों को जनाते हैं कि मेरे बीवी है। बोवो कहीं पढ़ी-लिखी हुई, तब तो इन्हें बीवी के बोलते हुए विज्ञापन समझो; मियाँ लोग दुनिया के सबसे बड़े जोकर हैं।" ___तारा खड़ी हँस रही थी- आपके भाई साहब ?" "वह सब साहब पर एक ही ट्रेडमार्क है।" "अच्छा-अच्छा, अब आपकी भी खबर ली जाती है।" तारा ने हँसते हुए कहा। "मुझसे कोई पूछता है, तुम ब्याहे हो, गैर-ब्याहे. तो मैं अपने को ब्याहा हुआ बतलाता हूँ।" चंदन ने राजकुमार को फाँसकर अकइते हुए कहा-बदन बहुत टूट रहा है।" __ "सोनोगे तो ठीक हो जायगा । किस तरह ब्याहा हुआ बतलाते हो ?” राजकुमार ने पूछा। ___"किसी ने कहा है, मेरी शादी कानून से हुई है। किसी ने कहा है, मैं कविता कुमारी का भर्ता हूँ; किसी ने कहा है, मेरी प्यारी बोची चिकित्सा है ; मैं कहता हूँ, मेरी हदयेश्वरी, इस जीवन की एक मात्र संगिनी, इस चंदनसिंह की सिंहिनी सरकार है।" तारा मुस्किराकर रह गई। राजकुमार चुपचाप सोचने लगा। महरी पान दे गई । तारा ने सबको पान दिए । पाँच बजे ले आने के लिये एक बार फिर याद दिला भीतर चली गई। दोनो पड़े रहे। (२४) चार का समय हुआ। चंदन उठा । राजकुमार को उठाया। दोनो ने हाथ-मुँह धोकर कुछ जल-पान ! किया। चंदन ने चलने के लिये कहा । राजकुमार तैयार हो गया। तारा ने सास को कल जाने की बात वाक-छल से याद दिला दी। पड़ोस की वृद्धाओं का जिक्र करते हुए पूछा, वह कैसी हैं, उनका लड़का विलायत से लौटनेवाला था, लौटा या नहीं, उनके पोते की शादी [ १६४ ]________________

अप्सरा होनेवाली थी, किसी कारण से रुक गई थी, वह शादी होगी या नहीं आदि-आदि । वृद्धा को स्वभावतः इनसे मिलने की इच्छा हुई। जल्द जाने के विचार से तारा के प्रश्नों के बहुत संक्षिप्त उत्तर दिए । चलने लगों, तो तारा से अपनी जरूरत की चीजें बतलाकर कह दिया कि सब सँभालकर इकट्ठी कर रक्खे । तारा ने बड़ी तत्परता से उत्तर दिया कि वह निश्चित रहें । तारा जानती थी, यह सब दस मिनट का काम है, चलते समय भी कर दिया जा सकता है। तारा की सास मोटर पर गई । राजकुमार और चंदन ट्राम पर चले । राजकुमार मीतर-ही-भीतर अपने जीवन के उस स्वप्न को देख रहा था, जो किरणों में कनक को खोलकर उसके हृदय की काव्य-जन्य रूप-तृष्णा तृप्त कर रहा था। बाहर तथा भीतर वह सब सिद्धियो के द्वार पर चकर लगा चुका था। बाहर अनेक प्रकार से सुंदरी लियों के चित्र देखे थे, पर भीतर ध्यान नेत्रों से न देख सकने के कारण अब कभी उसने काव्य-रचना की, उसके दिल में एक असंपूणवा हमेशा खटकती रही। उसके सतत प्रयत्न इस त्रुटि को दूर नहीं कर सके। अब, वह देखता है, आप-ही-आप, अशब्द ऋतु-वर्तन की तरह, जीवन का एक चक्र उसे प्रवर्तित कर परिपूण चित्रकारिता के रहस्यद्वार पर ला खड़ा कर गया है । दिल में आप-ही-आप निश्चय हुआ, संदरी स्त्री को अब तक मैं दूर से प्यार करता था, केवल इंद्रियाँ देकर, आत्मा अलग रहती थी, इसलिये सिर्फ उसके एक-एक अंग-प्रत्यंग लिखने के समय आते थे, परिपूर्ण मूर्ति नहीं ; पूर्ण प्राप्ति पूर्ण दान चाहती है ; मैंने परिपूर्ण पुरुष-देह देकर संपूर्ण खो मूर्ति प्राप्त की, आत्मा और प्राणों से संयुक्त, साँस लेती हुई, पलकें मारती हुई, रस से ओत-प्रोत, चंचल, स्नेहमयी। तत्व के मिलने पर जिस तरह संतोष होता है, राजकुमार को वैसी ही तृप्ति हुई। राजकुमार जितनी भीतर की उधेड़बुन में था, चंदन उतनी ही बाहर की छानबीन में । चौरंगी की रंगीन परकटी परियों को देख जिस नेमि से उसके विचार के रथ-चक्र बराबर चार लगाया करते थे, [ १६५ ]________________

१५८ अप्सरा उसी देश की दुर्दशा, भारतीयों का अर्थ-संकट, संपत्ति-वृद्धि के उपाय अनेकता में एकता का मूल सूत्र आदि-आदि सविनों की अनेक उक्तियों की एक राह से गुजर रहा था। इसी से उसे अनेक चित्र, अनेक भाव, अपार सौंदर्य मिल रहा था। संसार की तमाम जातियाँ उसके एक तागे से बँधी हुई थीं, जिन्हें इंगित पर नचाते रहनेवाला वही सूत्रधार था। "उतये जी।" राजकुमार की बाँह पकड़कर चंदन ने झकझोर दिया। तब तक राजकुमार कल्पना के मार्ग से बहुत दूर गुजर चुका था, जहाँ वह और कनक आकाश और पृथ्वी की तरह मिल रहे थे; जैसे दूर भाकाश पृथ्वी को हृदय से लगा, हृदय-बल से उठाता हुआ, हमेशा उसे अपनी ही तरह सीमा-शून्य, अशून्य कर देने के लिये प्रयत्न तत्पर हो, और यही जैसे सृष्टि की सर्वोत्तम कविता हो रही हो। राजकुमार सजग हो धीरे-धीरे उतरने लगा। तब तक श्याम बाजारवाली ट्राम आ गई । खींचते हुए चंदन ने कहा-'गृहस्थी की फिर चिंता करना, चोट खाकर कहीं गिर जाओगे।" ___ दोनो श्याम बाजारवाली गाड़ी पर बैठ गए। बहू-बाजार के चौराहे के पास टाम पहुँची, तो उतरकर कनक के मकान की तरफ चले। चंदन ने देखा, कनक तिमंजिले पर खड़ी दूसरी तरफ चित्तरंजनऐवेन्यू की तरफ देख रही है। . राजकुमार को बड़ी खुशी हुई। वह मर्म समझ गया। चंदन से कहा, बतला सकते हो, आप उस तरफ क्यों देख रही हैं ? ___“अजी, ये सब इंतजारी के नजारे, प्रेम के मजे हैं, तुम मुझे क्या समझाओगे ?" ___ 'मजे तो हैं, पर ठीक वजह यह नहीं; बहू को मैं इसी तरफ से लेकर गया था।" __"अच्छा ! लड़ाई के बाद ?" राजकुमार ने हँसकर कहा-"हाँ" "अच्छा, आपने सोचा, मियाँ इसी राह मसजिद दौड़ते हैं।" [ १६६ ]________________

अप्सरा १५६ दाना कनक क मकान पर आ गए । नौकर से पहले ही कनक ने कह रक्खा था कि दीदी के यहाँ के लोग आवे, वो साथ वह विना खबर दिए ही उसके पास ले जायगा। नौकर दोनो को कनक के पास ले गया । कनक राजकुमार को जरासासर झुका, हँसकर चंदन से मिली। हाथ पकड़ गद्दी पर बैठाया। ___ चंदन बैठते हुए कहता गया, "पहले अपने-अपने उनको उठायो बैठाओ ; मैं तो यहाँ उन्हीं के सिलसिले से हूँ।" ___“उनका तमाम मकान है, जहाँ चाहें, उठे-बैठे।" कनक होंठ काटकर मुस्किराती जाची थी। . . राजकुमार भी चंदन के पास बैठ गया। तत्काल चंदन ने कहा"उनका तमाम मकान है, और मेय?" ___ "तुम्हाय ? तुम्हारी मैं और यह ।" चंदन मेंप गया। कनक भी उसी गद्दी पर बैठ गई। चंदन ने कहा-"तुम मुझसे बड़ी हो, पर आप-आप कहते मुझे बड़ा बुरा लगता है। मैं तुम्हारे इन्हीं को आप नहीं कहता ! तुम चुन दो, तुम्हें क्या कहूँ " "तुम्हारी जो इच्छा।" कनक स्नेह से हँस रही थी। "मैं तुम्हें जी कहूँगा।" "तुमने जीजी को एक बटे दो किया । एक हिस्सा मुझे मिला, एक किसके लिये रक्खा?" ___वह इनके लिये है। क्यों जी, इस तरह "जीजी" यन्न व्यति वदव्ययम् कही जायगी, या कहा जायगा ?" राजकुमार कुछ न बोला । कनक ने बराल से उठाकर घंटी बजाई नौकर के आने पर पखावज और वीणा बढ़ा देने के लिये कहा। खुश होकर चंदन ने कहा- हाँ जी-तुम्हारा गाना तो सुनूंगा।" "पखावज लीजिए।' कनक ने कहा । "गाना लौटकर हो, तो अच्छा होगा। अभी बहू के पास जान.. है।" राजकुमार ने साधारण गंभीरता से कहा। [ १६७ ]________________

१६० अप्सरा "हॉ हॉ, मैं भूल गया था। भाभी ने तुम्हें बुलाया है।" कनक ने वीणा रख दी। गाड़ी तैयार करने के लिये कहा । इनकी प्रतीक्षा से पहले कपड़े बदल चुकी थी। उठकर खड़ी हो गई। जूते पहन लिए । आगे-आगे उतरने लगी। पति का अदब-कायदा सब भूल गया।बोच में राजकुमार था, पीछे चंदन। चंदन मुस्किराता जाता था। मन-ही-मन कहता था, इस आकाश की पक्षी से पोंजड़े में 'राम-राम' रटाना समाज की बेवकूफी है; इसका तो इसी रूप में सौंदर्य है। ____गाड़ी तैयार थी। आग डाइवर और अदली बैठे थे। पीछे दाहनी ओर राजकुमार, बाइ पार चंदन, बीच में कनक बैठ गई। . ___ गाड़ी भवानीपुर चली। ___ कुछ साचते हुए चंदन ने कहा-'जी-मुझे एक हजार रुपए दो, मैंने हरदोई-जिले में, देहात में, एक राष्ट्रीय विद्यालय खोला है, उसकी मदद के लिये। ___“आज तुमको अम्मा से चेक दिला दूंगी" कनक ने कुछ सोचे विना नहीं, मुझे चेक देने की जरूरत नहीं, मैं तुम्हें पता बतला दूंगा, अपने नाम से उसो पते पर भेज देना।" सोचत हुए चंदन ने कहीं। ___ "तुम भीख माँगने में बड़े निपुण देख पड़ते हो।" राजकुमार ने कहा। ___"तुम जी-को उपहार नहीं दोगे ?" चंदन ने पूछा। "क्यों ? वक्तता के प्रभाव से बेचवाने का इरादा है ?" "नहीं, पहले जब उपन्यासों की चाट थी, कॉलेज-जीवन में, देखता था, प्यार के उबाल में उपहार ही इंधन का काम करते थे। "पर यह ता देवी संयाग है।" राजकुमार ने मुस्किराकर कहा।। ___ अनेक प्रकार की बातों से रास्ता पार हो गया। चंदन के गेट के सामने गाड़ी पहुँची । तारा प्रतीक्षा कर रही थी। नीचे उतर आई। बड़े स्नेह से कनक को ऊपर ले गई। राजकुमार और चंदन को भी बुलाया। ये भी पीछे-पीछे चले। [ १६८ ]________________

अप्सरा ११ ___ तारा ने पहले ही से कनक की पेशवाज निकाल रक्खी थी । दिया सलाई और पेशवाज लेकर सीधे छत पर चढ़ने लगी। ये लोग पीछेपीछे जा रहे थे। छत पर रखकर, दियासलाई जला, आग लगा दी। कनक गंभीर हो रही थी । पेशवाज जल रही थी। निष्पंद पलके, अंतष्टि। ___ तारा ने कहा- प्रतिज्ञा करो, कहो, अब ऐसा काम कभी नहीं करूंगी।" अब ऐसा काम कभी नहीं करूंगी।" कनक ने कहा। "कहो, सुबह नहाकर रोज शिव-पूजन करूंगी।" कनक ने कहा-"सुबह नहाकर रोज शिव-पूजन करूंगी।" उस समय की कनक को देखकर चंदन तथा राजकुमार के हृदय मे मर्यादा के भाव जग रहे थे। __तारा ने कनक को गले लगा लिया। कहा-"अपनी मा से दूसरी जगह रहने के लिये कहो, मकान में एक यज्ञ कराओ, एक दिन गरीबो को भोजन दो, मकान में एक छोटा-सा शिव-मंदिर बनवा लो, जब तक मंदिर नहीं बनता, तब तक किसी कमरे में, अलग, जहाँ लोगों की आमदरफ्त ज्यादा न हो, पूजास्थान कर लो। आज आदमी भेजकर एक शिव मूर्ति मैंने मँगा ली है। चलो, लेती जाओ।" _ 'भाभी, चंदन ने रोककर कहा, “यह सब सोना, जो मिट्टी में पड़ा है, कहो तो मैं ले लूँ।" राजकुमार ह्सा। ले लीजिए।' कहकर तारा कनक को साथ ले नीचे उतरने लगी। वह चंदन को पहचानती थी। राजकुमार खड़ा देखता रहा। चंदन राख फूंककर सोने के दाने इकट्ठ कर रहा था। एकत्र कर तज्जुब की निगाह से देखता रहा। सोना दो सेर से ज्यादा था। "ईश्वर करे, रोज एक पेशवाज ऐसी जले, सोना गरीबों को दिया [ १६९ ]________________

१६. अप्सरा जाय।" कहकर, अपनी धोती के छोर में बाँधकर, चंदन अपने कमरे की तरफ उतर गया। राजकुमार बहू के पास रह गया। चंदन के बड़े भाई भी आ गए थे, कहीं बाहर गए हुए थे । तारा से उन्होंने बहू देखने की इच्छा जाहिर की थी । तारा ने कह दिया था कि कुछ नजर करनी होगी। शायद इसी विचार से बाजार की तरफ गए थे। नीचे बैठे प्रतीक्षा कर रहे थे, कब बुलावा भावे । बहू ने दरबान से राक रखने के लिये कह दिया था। ___ तारा ने अपनी खरीदी हुई एक लाल रेशमी साड़ी कनक को पहना दी। सुबह की पूजा का पुष्प चढ़ाया हुआ रक्खा था, सिर से छुला चलते समय अपने हाथों गंगा में छोड़ने का उपदेश दे सामने के आँचल में बाँध दिया, जिसकी भट्टी गाँठ चाँद के कलंक की तरह कनक को और संदर कर रही थी। इसके बाद नया सिंदूर निकाल मन-ही-मन गौरी को अर्पित कर कनक की माँग अच्छी तरह भर दी। राजकुमार से कहा, जाओ, अपने भाई साहब को बुला लाओ, वह देखेंगे । कनक का चूंघट काढ़ दिया । फर्श पर बैठा, दरवाजा बंद कर, दरवाजे के पास खड़ी रही। ___ नंदन ने भेंट करने की बड़ी-बड़ी कल्पनाएँ की, पर कुछ सूझा नहीं। सारा से उन्हें मालूम हो चुका था, कनक ऐश्वर्यवती है । इसलिये हजार-पाँच सौ की भेंट से उन्हें संतोष नहीं हो रहा था । कोई नई सूझ नहीं आ रही थी। तब तक उनके सामने से एक आदमी लेकर गुजरा चर्खा । कलकत्ते में कहीं कहीं, जनेऊ केलिये शुद्ध सूत निकालने के अभिप्राय से, बनते और बिकते थे। स्वदेशी आंदोलन के समय कुछ प्रचार स्वदेशी वस्त्रों का भी हुआ था, तब से बनने लगे थे। खोजकर एक अच्छा चर्खा उन्होंने भी खरीद लिया । इसके साथ उन्हें शांतिपुर और बंगाल-कैमिकल की याद आई । एक शांतिपुरी कीमती साड़ी और कुछ बंगाल-कैमिकल से तेल फुलेल-एसेंस पौडर आदि खरीद लिए, पर ये सब बहुत साधारण कीमत पर आ गए थे। उन्हें संतोष नहीं हुआ। वह जवाहरात की दूकान पर गए। [ १७० ]________________

अप्सरा २६३ बड़ी देख-भाल के बाद एक अँगूठी उन्हें बहुत पसंद आई। हारजड़ी थी। कीमत हजार रुपए । खरीद लिया । उसमें खूबी यह थी कि 'सती' शब्द पर, नग की जगह, हीरक-चूर्ण जड़े थे, जिनसे शब्द जगमगा रहे थे। राजकुमार से खबर पा भेंट की चीजें लेकर नंदनसिंह बहू को देखने ऊपर चले । तारा कमरे के दरवाजे पर खड़ी थी। एक बार कनक को देखकर दरवाजा खोल दिया। नंदन ने वस्तुएँ तारा के सामने टेबिल पर रख दीं। अँगूठी पहना देने के लिये दी) अँगूठी के अक्षर पढ़कर, प्रसन्न हो, तारा ने कनक को पहना दी, और कहा, वहू, तुम्हारे जेठ तुम्हारा मह देखेंगे। राजकुमार नीचे चंदन के पास उतर गया। तारा ने कनक का मुँह खोल दिया। जिस रूप में उसने बहू को सजा रक्खा था, उसे देखकर नंदन की तबियत भर गई। प्रसन्न होकर कहा, बहू बहुत अच्छी है । कनक अचंचल पलकें झुकाए हुए बैठी रही। हमारी एक साध बहू, और तुम्हें पूरी करनी है, हमें एक भजन गाकर सुना दो, याद हो तो गुसाइजी का।" नंदन ने कहा। तारा ने कनक से पूछा, उसने सिर हिलाकर सम्मति दी। __ तारा ने कहा, उस कमरे से सुनिएगा, और छोटे साहब को बुला दीजिएगा। ____राजकुमार और चंदन श्राप ही तब तक ऊपर आ गए । तारा चंदन से तबला बजाने का प्रस्ताव कर मुस्किराई। चंदन राजी हो गया। कमरे में एक बॉक्स हारमोनियम था । चंदन तबलों की जोड़ी ले आया। राजकुमार बाहर कर दिया गया। भीतर तारा, कनक और चंदन रहे। स्वर मिलाकर कनक गाने लगी भीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरन भव-भय दारुनम् । . नव-कंन लोचन, कंज मुख, कर कंज, पद कंजारनम् । कंदर्प अगनित-अमित छवि नव-नील नीरज सुंदरम् । पर पीत मानहु तहित सुचि रुचि नौमि अनकसुतावरम् । [ १७१ ]________________

१६४ प्रासय _____एक-एक शब्द से कनक अपने शुद्ध हुए हृदय से भगवान् श्रीराम चंद्रजी को अर्घ्य दे रही थी। चंदन गंभीर हो रहा था। तारा और नंदन रो रहे थे। ____ नंदन ने राजकुमार को अप्सरा-विवाह के लिये हार्दिक धन्यवाद दिया। कनक के रुपहले तार से चमचमाते हुए भावना-सुंदर बेफॉस स्वर की बड़ी तारीफ थी। ___ तारा ने चंदन की ठेकेबाजी पर चुटकियाँ कसी, कनक का अमित, शांत-मुख चूमकर, परी-बहू श्रुति-सुखद शब्द सुना कुछ उभाड़ दिया। ____ नंदन ने छोटे भाई से कहा--"अब तुम्हारे लखनऊ जाने की जरूरत न होगी। वकील की चिट्री श्राई है, पुलिस ने लिखा-पढ़ी करके तुम्हारा नाम निकाल दिया।" चंदन ने भी सिकोड़कर सुन लिया। ___ नंदन और राजकुमार बातचीत करते हुए नीचे उतर गए। नंदन राजकुमार को कुछ उपदेश दे रहे थे। .. ___तारा ने चंदन से बहू के पुष्प-विसर्जनोत्सव पर गंगाजी चलने के लिये कहा । यह कार्य अंत तक अपने ही सामने करा देना उसे पसंद आया। कनक के मोजे उतरवा दिए, और देव-कार्य के समय सदा नंगे-पैर रहने का उपदेश भी दिया। गंगाजी में कनक के आँचल का फूल छड़वा, कालीजी के दशन करा जब वह लौटी, तब आठ बज रहे थे। कतक ने चलने की आज्ञा मॉगी। बिदा हो, प्रणाम कर, चंदन और राजकुमार के साथ घर लौटी। सर्वेश्वरी बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी। उसने सोच लिया है. अब इस मकान में उसका रहना ठीक नहीं। जिंदगी में उपार्जन उसने बहुत किया था। अब उसकी चित्त-वृत्ति बदल रही थी। कलकत्ता आना सिर्फ उपार्जन के लिये था। अब वह भी अपने हिदूविचारों के अनुसार जीवन के अंतिम दिवस काशी ही रहकर बाबा विश्वनाथ के दर्शन में पार करना चाहती थी। बैंकों में चार लाख से [ १७२ ]________________

अप्सरा ६५ कुछ अधिक रुपए उसने जमा कर रक्खे हैं। यह सब कनक की संपत्ति है। राजकुमार को दहेज के रूप में कुछ देने के लिये कुछ रुपए उसने आज निकाले हैं। बैठी हुई इसी.संबंध में सोच रही थी कि कनक की गाड़ी पहुंची। ____ कनक राजकुमार और चंदन को लेकर पहले माता के कमरे में गई। दोनो को वहीं छोड़कर ऊपर अपने कमरे में चली गई। कनक को माता के विचार मालूम थे। सर्वेश्वरी ने बड़े आदर से उठकर राजकुमार और चंदन को एकएक सोफे पर बैठाया । गट्टी छोड़कर खुद फर्श पर बैठी । अपने भविष्य के विचार दोनो के सामने प्रकट करने लगी। ___कनक भोजन पका रही थी। जो कार्य उसका अधूरा रह गया था, आज चंदन के आने की वजह दूने उत्साह से पूरा कर रही थी। इंतजाम इनके आने से पहले ही कर रखा था। मड़द करनेवाले नौकर थे। उसे घंटे भर से ज्यादा देर नहीं लगी। एक साथ कई चूल्हें जलवा दिए थे। ___सर्वेश्वरी ने कहा-'पहले मेरा विचार था, कुँवर साहब पर मुकदमा चलाऊँ कुछ रोज कनक को गायब करके, पर कनक की राय नहीं, इसलिये वह विचार रोक देना पड़ा। वह कहती है, ( राजकुमार की तरफ़ इंगित कर) आपकी बदनामी होगी।" __"इस समय सहन करने की शक्ति बढ़ाना ज्यादा अच्छा है।" चंदन ने कहा, और अनेक बातें लुप्त रखकर, जिससे उसके शब्दों का प्रभाव बढ़ रहा था। "मैं अब काशी रहना चाहती हूँ, यह मकान भैया के लिये रहेगा।" "यह तो बड़ी अच्छी बात है। चंदन ने कहा, "मैया तो कल ही बनारस जा रहे हैं। लेकिन शायद आपको न ले जा सकें, और आपको साथ की जरूरत भी नहीं; मेरी मा को लिए जा रहे हैं। अंत समय काशी रहना-धर्म और स्वास्थ्य, दोनो के लिये फायदेवर है।" चंदन की चुटकियों से सर्वेश्वरी खुश हो रही थी, उसके दिल के [ १७३ ]________________

१६ अप्सरा ताड़कर । कुछ देर तक कनक की नादानी, उसके अपराधों की क्षमा, अब राजकुमार के सिवा उसके लिये दूसरा अवलंब-मनोरंजन के लिये और विषय नहीं रहा, उसका सर्वस्व राजकुमार का है, आदि आदि बातें सर्वेश्वरी अपने को पतित सास समझ उतनी ही दूर रहकर. उतनी ही अधिक सहानुभूति और स्नेह से कहती रही। चंदन भी पूरे उदात्त स्वरों से राजकुमार की विद्या बुद्धि, सञ्चरित्रता और सबसे बढ़कर उसकी कनक-निष्ठा की तारीफ करता रहा, और समझाता रहा कि कनक-जैसी सोने की जंजीर को राजकुमार के देवता भी कभी नहीं तोड़ सकते, और चंदन के घरवाले, उसके भाई और भाभी इस संबंध को पूरी सहानुभूति से स्वीकार करते हैं। चंदन ने कुल मकान नहीं देखा था, देखने की इच्छा प्रकट की। सर्वेश्वरी खुद चलकर दिखाने लगी। मकान की सुंदरता चंदन को बहुत पसंद आई । तिमंजिले पर घूमते हुए कनक को भोजन पकाते हुए देखा । तब तक भोजन पक चुका था। राजकुमार उसके पढ़नेवाले कमरे में रह गया था। मकान देखकर चंदन भी वहीं लौट आया। सर्वेश्वरी अपने कमरे में चली गई। कनक अपने कमरे में थालियाँ लगाकर दोनो को बुलाने के लिये नीचे उतरी । देखा, दोनो एक-एक किताब पढ़ रहे थे। कनक ने बुलाया। किताब से आँख उठा बड़ी इज्जत से चंदन ने उसे देखा । उठकर खड़ा हो गया। राजकमार भी उसके पीछे चला। हाथ-मुँह धोकर दोनो बैठ गए । कनक ने कहा, छोटे साहव, उस रोज यहीं से तकरार की जड़ पड़ी थी। ____ "तुम लोगों की बेवकूकी थी", चंदन ने प्रास निगलकर कहा, "और यज्ञ, यह नरमेध-यज्ञ, विना मेरे पूरी किस तरह होती ?" ___ कनक ने सर्वेश्वरी को बुला भेजा था। सर्वेश्वरी और उसके नौकर जोड़े लिए कमरे में आए। दोनो के पास पाँच-पाँच तोड़े रखवाकर सर्वेश्वरी ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। चंदन गौर से तोड़ों को देखता रहा। समझ गया, इसलिये कुछ कहा नहीं। [ १७४ ]________________

अप्सरा १६७ ____ कनक ने कहा, अम्मा, छोटे साहब को एक हजार रुपए और चाहिए, मुझे चेक दे दीजिएगा। सर्वेश्वरी सुनकर चली गई। सोचा, शायद छोटे साहब इज्जत में बड़े साहब हैं। राजकुमार ने कहा- पेट तो अभी क्यों भरा होगा ?" . ___“पाकट कहो, साहित्यिक हो, बैल ?' उठते हुए चंदन ने कहा। राजकुमार मेंपकर उठा । कनक ने दोनो के हाथ धुला दिए । तौलिया दिया, हाथ पोंछ चुकने पर पान । अब तक दस का समय था । चंदन ने कहा- ये रुपए जो मेरे हक मे श्राए हैं, रखवा दो, मैं जरूरत पर ले लूँगा।" राजकुमार ने कहा-"मैंने अपने रुपए भी तुम्हें दिए।" "तो इन्हें भी रक्खो जी, कितने हैं सब कनक ने धीमे स्वर से कहा-"दस हजार।" "अच्छा, हजार-हजार के तोड़े हैं। सुनो, अब मैं जाता हूँ। राजकुमार से कहा, "श्राज तो तुम अपनी तरफ से यहाँ रहना चाहते ____ कनक लजाकर कमरे से निकल गई। राजकुमार ने कहा-"नही, मै तुम्हारे साथ चलता हूँ।" ____ "अब आज मेरी प्रार्थना मंजूर करके रह जाओ, क्योंकि कल तुमसे बहुत बातें सुनने को मिलेंगी।" ____“तो कल स्टेशन पर या भवानीपुर में मिलना, मैं सुबह चला जाऊँगा।" ___ अच्छी बात है, जी सलाम।" चंदन उतरने लगा। कनकरे पकड़ लिया--"तुम भी रहो। "और कई काम हैं, तुम्हारे पैर पडू छोड़ दो।" "अच्छा चलो, मैं तुम्हें छोड़ आऊँगी।" गाड़ी मँगवा ली। चंदन को चढ़ाकर कनक भी बैठ गई। चोरबापान चलने के लिये चंदन ने कहा। [ १७५ ]________________

१८ अप्सरा ____ इस समय चंदन भविष्य के किसी सत्य चित्र को स्पष्ट कर रहा था। एक तूफान उठनेवाला था। ___ गाड़ी चोरबागान पहुँची। राजकुमार के मकान के सामने लगवा चंदन उतर पड़ा । कहा-'अपने पतिदेव का कमरा देखना चाहती हो, तो आओ, तुम्हें दिखला दें। ___ कनक उतर पड़ी । भीतर जा राजकुमार का कमरा खोलकर चंदन ने बटन दबाया, बत्ती जल गई। कनक ने देखा, सब सामान विखल था। ___ चंदन ने कहा-यह देखो, जली बीड़ियों का ढेर है। यह देखो, कैसी साफ किताबें हैं, जिल्दों का पता नहीं; वे उधरवाली मेरी हैं।" राजकुमार के स्वभाव के अनुरूप उसका कमय बन रहा था। "इधर बहुत रोज से रहे नहीं, इसलिये कुछ गंदा हो गया है।" कनक ने कहा। "अब मुझे मालूम हुआ, तुम्हारी-उनकी अच्छी निभेगी, क्योकि उनके स्याह दारा तुम बड़ी खूबसूरती से धो दिया करोगी।" . "अच्छा छोटे साहब." ___“हाँ चला, वह प्रतीक्षा करते होंगे, बेचारे की आँखें कड़ा रही होंगी, आँखों को रोशनी मिले।" हँसकर कनक ने एक किताब चंदन की उठा ली। चंदन ने कनक को मोटर पर बैठाल दिया, और हरदोई का पता लिखकर दिया। ____लौटकर लेटा, तब ग्यारह बजने पर थे। सोचता हुआ सो गया। ___ आँख खुली बिलकुल तड़के दरवाजे की भड़भड़ाहट से। दरवाजा खोला, तो मकान के मैनेजर और कई कांस्टेबुल खड़े थे। ___ चंदन ने देखा, एक दारोगा भी है, सबसे पीछे, फ्रेंच-कट दाढ़ी मुसलमान होने की सूचना दे रही है। , यही है ?" दारोगाजी ने मैनेजर से पूछा। मैनेजर चकराया हुआ था। . [ १७६ ]________________

अप्सरा १६९ चंदन ने तुरंत कहा-'कल जो चालीस रुपए मैंने दिए थे, श्रमी उक आपने रसीद नहीं दी। ___यही हैं। नए मैनेजर ने कहा। . ___ दारोगाजी आज्ञापत्र दिखलाकर तलाशी लेने लगे। किताबें सामने ही रक्खी थीं। देखकर उछल पड़े। उलटते हुए नाम भी उन्हें मिल गया-राजकुमार । दूसरा मजबूत मुकदमा सूमा। सब किताबें निकाल ली। ___ चंदन शांत खड़ा रहा। दारोगाजी ने इशारा किया, कांस्टेबुलों ने हथकड़ी डाल दी। अपराधी को प्रमाण के साथ मोटर पर लेकर, कॉलेज स्ट्रीट से होकर, दारोगाजी लालडिग्गी की तरफ ले चले। प्रातःकाल था। मोटर कनक के मकानवाली सड़क से जा रही थी। तिमंजिले से टेबिल-हारमोनियम की आवाज आ रही थी । दूर से चंदन को कनक का परिचित स्वर सुन पड़ा । नजदीक आने पर सुना, कनक गा रही थी"आजु रजनि बहभागिनि लेख्यन, पेख्यउँ पिक भुख-चंदा।" (२६) चार रोज बाद राजकुमार लौटा, तब कनक पूजा समाप्त कर निकल रही थी। दोनो एक साथ कमरे में गए, तो नीचे अखबार-बालक आवाज लगा रहे थे-राजकुमार वर्मा को एक साल की सख्त कैद : दोनो हँसकर एक साथ नीचे झाँकने लगे। नौकर ने कनक को अखबार लाकर दिया।