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आल्हखण्ड/१० आल्हा निकासी

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आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ३५३ से – ३६६ तक

 

अथ पाल्हखण्ड॥ आल्हानिकासी॥ संवेया॥ राम औ श्याम अकाम भजै सो त जगके सब पातकमाई । बामन पद प्रक्षालनके जलसों भइ गंग पुराणन गाई ॥ ज्ञात सवै विख्यात सक्य ललिते ज्यहि भांति धरापरआई। गाई बताई न जाय कळू अब कीरति गंग धरापर छाई १ सुमिरन॥ प्याय भवानी शिवशंकर को सुमिरन करें गंगको भाय ।। सो तरिजावे भवसागर सों पावै अमर रूपको जाय । गावै नित प्रति रघुनन्दन को नरपुर फेरि न जन्मै आय॥ बड़ा महातम रघुनन्दन न नारद वालमीकि कहगाय २ गीधअजामिल शररीगणिका चारो कीरति रहे बताय ।।

कलियुग तुलसीकी समताको दूसर कौन बतावा जाय ३

तैसे कीरति यदुनन्दन की द्वापर फैलिगई अधिकाय॥
सूर औं मीराबाई कलियुग पायो स्वाद भूमिमें आय ४
ललिते चक्खन को ललचायो गायो आल्हा छन्द बनाय॥
कहौं निकासी अब आल्हा कै सुमिरन देवनको बिसराय ५

अथ कथाप्रसंग॥


एक समइया की बातैं हैं यारो मानो कही हमार॥
लिल्ली घोड़ीपर चढ़ि बैठो माहिल उरई का सरदार १
तिक्तिक्तिक्तिक्टिटुईहाँकत दिल्ली शहर पहूँचा जाय॥
लागिकचहरी दिल्लीपति की जिनका कही पिथौराराय २
आवत दीख्यो तिन माहिलका अपने पास लीन बैठाय॥
बड़ी खातिरी करि माहिल कै पूँछन लाग पिथौराराय ३
काहे आये उरई वाले आपन हाल देउ बतलाय॥
इतना सुनिकै माहिल बोले साँची सुनो पिथौराराय ४
मलखे सुलखे आल्हा ऊदन इनका दीखे देश डेराय॥
आज बनाफर की समता को ठाकुर आन नहीं दिखलाय ५
चार चौहदी के डॉड़े पर मलखे किलालीन बनवाय॥
जो कछु चाहैं आल्हा ऊदन सो सब करिकै देयँ दिखाय ६
कौन दुसरिहा है आल्हा का सम्मुख बात करै जो जाय॥
मान न रहिगे क्याहु नरेश के चारो बढ़े बनाफरराय ७
हमका मानैं भल मामा करि खातिर करैं रोज अधिकाय॥
हमहूं जानत हैं ब्रह्मा सम राजन साँच दीन बतलाय ८
अधिक पियारे पै तिनते तुम मानो कही पिथौराराय॥
तुम्हें लरिकई सों जानत हों सीधो सादो आप स्वभाय ९
तिनकी धरती का स्वामी में त्यहिका पास लिह्यो बैठाय॥

तुम अस राजा को दुनियामाँ ज्यहितेप्रीतिकरोंअधिकाय १०
इतना सुनिकै पिरथी बोले माहिल उरई के सरदार॥
यतन बतावो यहि समया में जासों जायँ बनाफर हार ११
इतना सुनिकै माहिल बोले मानो कही पिथोराराय॥
पाँच बछेड़ा मोहबे वाले तिनका आप लेउ मँगवाय १२
बेंदुल हंसामनि हरनागर पपिहा और कबूतरि पाँच॥
उड़न बछेड़ा ये पाँचों हैं इनवल लड़ैं बनाफर साँच १३
पाँचो घोड़न के पाये ते साँचो बिजय होय महराज॥
जीति न पैहौ तिन पाँचो ते साँचोसाँच पाँच शिरताज १४
इतना सुनिकै पिरथीपतिने तुरतै लीन्ही कलम उठाय॥
लिखिकै चिट्ठी परिमालिकको औ माहिलको दीनसुनाय १५
सुनिकै चिट्ठी पिरथीपतिकै माहिल बड़ा खुशी ह्वैजाय॥
तुरतै धावन को बुलवायो पिरथी चिट्ठी दीन पठाय १६
लैकै चिट्ठी धावन चलिभा पहुँचा नगर मोहोबे आय॥
जहाँ कचहरी परिमालिक कै धावन तहाँ पहूँचा जाय १७
कीन दण्डवत महराजा को चिट्ठी फेरि दीन पकराय॥
लैकै चिट्ठी पृथीराज की आँकुइआँकुनजरिकैजाय १८
तुरत बुलायो निज धावन को की आल्हा को लाउ बुलाय॥
इतना सुनिकै धावन चलिभा दशहरिपुरै पहूँचा जाय १९
तुम्हैं बुलावत महराजा हैं यह आल्हा ते कह्यो सुनाय॥
इतना सुनिकै आल्हा ऊदन पहुँचे नगर मोहोबे आय २०
जहाँ कचहरी परिमालिक की दूनों गये बनाफरराय॥
हाथ जोरिकै आल्हा ऊदन ठाढ़े भये शीश को नाय २१
आल्हा बोले परिमालिक ते राजन साँच देउ बतलाय॥

कौनसी बिपदा तुमपर आई जो सेवकको लीन बुलाय २२
इतना सुनिकै राजा बोले साँची सुनो बनाफरराय॥
बेंदुल हंसामनि हरनागर पपिहा और कबूतरि भाय २३
पाँचो घोड़ा पिरथी माँगे सो अब दीन चही पहुँचाय॥
चिट्ठी आई महराजा की धावन बैठ बनाफरराय २४
इतना सुनिकै आल्हा बोले राजन साँच देयँ बतलाय॥
अपने घोड़ा हम देबे ना चहु चढ़िअवै पिथौराराय २५
लड़ि भिड़ि लेवे हम पिरथी ते देवे समरभूमि समुझाय॥
जियत न पाई कोउ घोड़नको साँची सुनो चँदेलेराय २६
इतना सुनिकै राजा बोले मानो कही बनाफरराय॥
रारि मिटावो दै घोड़न को यामें भलापरै दिखलाय २७
घोड़ा अइहैं नहिं दिल्ली को मोहबा तुरत लेउँ लुटवाय॥
ऐसी चिट्ठी पृथीराज की सो पढ़िलेउ बनाफरराय २८
घोड़ा पैहैं जो पिरथी ना मोहबा तुरत गाँसिहैं आय॥
कितन्यो घोड़ा लड़ि मरिजै हैं ऐसे पाँच देउ पठवाय २९
अंकुश विषका तुम गाड़ो ना मानो कही बनाफरराय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ३०
काह हकीकति है पिरथी कै मोहबानगर मँझावैं आय॥
दतिया जीति उरैछा जीत्यों जीत्यों सेतुबंधलों जाय ३१
जीति पेशावर मुलतानाली बूँदी थहर थहर थर्राय॥
राज्य कमायूंका लै लीन्ह्यों झंडाअटक दिह्योंगड़वाय ३२
जितनी तिरिया हैं मेवात में संध्या समय नित्त पछितायँ॥
काह हकीकति है पिरथी कै दिल्ली काल्हिलेउँ लुटवाय ३३
एक पिथौरा के गिनती ना लाखन चढ़ैं पिथौरा आय॥

मैं हनिडारों तलवारी सों साँची सुनो चँदेलराय ३४
सुनिकै बातैं बघऊदन की जरि बरि गये रजापरिमाल॥
दशहरि पुरवाको खाली करु बेटा देशराज के लाल ३५
गऊ रक्त सम जल तू जानै भोजन गऊ माँस अनुमान॥
कर मेहरिया के संगति जो होवै बहिनी संग समान ३६
होउ पातकी तुम कलियुग में जो नहिं करो बचन परमान॥
इतना सुनिकै आल्हा ऊदन तुरतै चले वहाँ ते ज्वान ३७
अपने अपने फिरि घोड़नपर दूनों भाय भये असवार॥
तुरतै रूपन को बुलवायो बोले उदयसिंह सरदार ३८
छा हजार जो हमरी फौजें तिनयाँ खबरि सुनावोजाय॥
करैं तयारी सब नर नाहर अबहीं कूच देयँ करवाय ३९
इतना सुनिकै रुपना चलिभा सबका खबरि सुनाई जाय॥
इक हरकारा को पठवायो औ देबा को लीन बुलाय ४०
हाल बतायो आल्हा ठाकुर जो कछु कह्यो चँदेलेराय॥
इतना सुनिकै देबा बोला दादा साँच देयँ बतलाय ४१
हमहूं रहिबे ना मोहबे मा साथै चलैं तुम्हारे भाय॥
सवन चिरैया ना घर छोंड़ै ना बनिजराबनिजकोजाय ४२
यह नहिं चहिये परिमालिकको ऐसे समय निकारैंभाय॥
लिखी गोसइँयाँ की को मेटै साथै चलब बनाफरराय ४३
कौन देशमें अब चलि वसिहौ हमको साँच देउ बतलाय॥
सुनिकै बातैं ये देबाकी बोले तुरत बनाफरराय ४४
बैरी हमरे सब राजा है जावैं कौन देशकोभाय॥
तुमहूँ ऊदन सम्मत करिकै ठीहा ठीक देउ ठहराय ४५
इतना सुनिकै ऊदन बोले दादा साँच देयॅ बतलाय॥

देश देश में कानलड़ाई संकटपरा आजदिन आय ४६
जयचँदराजा कनउजवाला सोई एक मित्र दिखराय॥
दूसर कोऊ अस क्षत्री ना जो बिपदामें होय सहाय ४७
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर मनमाँ ठीक लीन ठहराय॥
चलिकै रहिये अब कनउजमें साँची कही लहुरवाभाय ४८
हमहूँ चाहत रहैं कनउज को तुमहूँ दीन स्वई बतलाय॥
पह मनभाई भल देबा के दशहरिपुरै पहूँचे आय ४९
बड़े प्रेमसों द्यावलिदौरी पूँछी कुशल दुवारेआय॥
आल्हाबोले तब द्यावलिते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ५०
मोहिं निकार्यो परिमालिकने अनुचितअनुचितकसमखवाय॥
आजु न रहिबे हम दशहरिपुर माता साँच दीन बतलाय ५१
द्यावलियोली फिरि आल्हाते काहे कह्यो चँदेलेराय॥
बात बतावो जो पूरी तुम तौ फिरि कूच देयँ करवाय ५२
इतना सुनिकै आल्हाठाकुर सवियाँ कथा गये तहँगाय॥
हाल जानिकै द्यावलि माता महलनहुकुमदीनफरमाय ५३
सुनवाँ फुलवा चित्तररेखा तीनों होवैं बेगितयार॥
मोहिं निकार्यो परिमालिक ने कीन्ह्योतनको नाहिंबिचार ५४
इतना सुनिक वॉदी दौरी महलन खबरि जनाईजाय॥
मुनवाँ फुलवा चित्तररेखा तीनों गईं सनाकाखाय ५५
होश छूटिगे ठकुरानिन के यहुका रंग भंग भो आय॥
तबतो गाथा सब आल्हाकी बाँदी तहाँ दीन समुझाय ५६
तब ठकुरानी मनसानी सब अपनो हर्ष शोक बिसराय॥
ढोलामँगायो बघऊदन ने सोऊ गयो तहाँपरआय ५७
भई तयारी फिरि जल्दी सों सबहिन कूच दीन करवाय॥

बाजे ढंका अहतंका के हाहाकार शब्दगा छाय ५८
आगे आल्हा हैं पपिहापर ऊदन बेंदुलपर असवार॥
हंसामनि घोड़े के ऊपर इन्दल आल्हाकेर कुमार ५९
आय कै पहुँचे सब मोहबे में मल्हना महल पहूँचे जाय॥
बड़ी खुशाली सों महरानी आदरभावकीन अधिकाय ६०
खबरि पायकै सब रानी फिरि मल्हना महल पहूंचीं आय॥
रोवनलागीं सब रानी तहँ दारुण बिपतिकहीना जाय ६१
मल्हनाबोली फिरि आल्हा ते साँची सुनो बनाफरराय॥
तुम्हैं मुनासिब यह नाहीं है जो अब कूचदेउ करवाय ६२
घाटि न जाना हम ब्रह्मासों चारो भाय बनाफरराय॥
कहा न मानो अब काहूको बैठो धाम आपने जाय ६३
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
अब नहिं रहिये हम मोहबे माँ माता साँचदीन बतलाय ६४
गऊरक्त सम जलको जानै भोजन गऊमाँस सममान॥
करै मेहरिया कै संगति जो होवै बहिनी संगसमान ६५
ऐसी बातैं महराजा की माता काहगई बौराय॥
जो हम बिलमैं अब मोहबेमाँ तौ सब क्षत्री धर्म नशाय ६६
तुम्हैं मुनासिब यह नाहीं है राखो हमैं फेरि जो माय॥
दर्शन ह्वैगे सब मातन के अब हमै कूच द्दहैं करवाय ६७
इतना कहिकै ऊदन ठाकुर डोला तुरत लीन मँगवाय॥
औ ललकारा फिरि माता का अब तुम कूच देउ करवाय ६८
सुनि सुनि बातैं उदयसिंह की मल्हना बार बार पछिताय॥
तुरतै धावन को बुलवायो सिरसागढ़ै दीन पठवाय ६९
लागि कचहरी मलखाने कै धावत वहाँ पहूँचा जाय॥

कही हकीकति सब आल्हाकी धावन हाथ जोरिशिरनाय ७०
सुनिकै बातैं धावन मुख की मलखे घोड़ी लीन मँगाय॥
मल्हना केरे फिरि महलन ते आल्हा कूच दीन करवाय ७१
बाजे डंका अहतंका के कनउज चले बनाफरराय॥
व्याकुल रैयत भै मोहबे के काहू धीर धरा ना जाय ७२
भोजन कीन्ह्योकोउतादिनना सोवन रात दीन बिसराय॥
जहँ तहँ गाथा बघऊदन की घर घर रहे नारिनर गाय ७३
चढ़ा कबुतरी पर मलखाने मारग मिला तुरतही आय॥
कुशल पूँछिकै आल्हा अकुर आपनिकुशलदीनबतलाय ७४
जो कछु भाषा परिमालिक ने आल्हा सत्य सत्य गे गाय॥
मलखे बोले तब आल्हा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ७५
चलिकै रहिये तुम सिरसा में करिहै काह चँदेलोराय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले दादा साँच देयँ बतलाय ७६
अब नहिं टिकि हैं हम सिरसामें चहु तुम कोटिनकरो उपाय॥
राज्य छोड़िकै परिमालिक की जयचँद पुरीजायँहमभाय ७७
जब सुधिआवै नृप बातन कै तब मन पीर होय अधिकाय॥
बात के मारे जो मरि है ना मरिहै काह लात के घाय ७८
आज तो घोड़ा पिरथी मांगा काल्हिकोतिरियालेत मँगाय॥
यहु मर्दाना को बाना ना ओपन घोड़ देयँ पठवाय ७९
इतना सुनिकै मलखे बोले मानो कही बनाफरराय॥
सवन चिरैया ना घर छोंड़े ना वनिजरावनिजकोजाय ८०
अस गति नाहीं है पिरथी की तुम्हरे घोड़ लेयँ मँगवाय॥
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर बोले फेरि वचन समुझाय ८१
लिखी विधाता की मिटिद्देना सिरसा लौटिजाउ मलखान॥

भाल्हानिकासी । ३६१

काह हकीकतिहे मानुष के सुख दुख देनहार भगवान ५२ बातें सुनिक ये आल्हा की मलखे ठीक लीन उहराय ॥ क्यड्ड समुझायेते मनिहें ना आल्हाउदयसिंह दोउ भाय ८३ मिला मेंट करि सब काहू सों मलखे कूच दीन करदाय ॥ जायकै पहुंचे सिरसागढ़ में महलन खबरि बताई जाय४ नदी बेतवा को उतरत मे दूनों भाय बनाफरराय॥ दाई दिनके फिरि अर्सा में झाबर गये बनाफर आय ८५ विजुली चमकै कउँधा लपकै कहुँ कहुँ मेघ रहे हहराय ॥ मेटुक बोलें चौगिर्दा ते वीछी साँएनकी अधिकाय ८६ न. मुरैला कहुँ जंगल में झीगुर कहूं करें झनकार ॥ किह्यो वसेरा तटयमुना के नाहर उदयसिंह त्यहिबार -७ वनी रसोई रजपूतन की सवहिन जे जीन ज्यवनार॥ भोर भुरहरे मुर्गा बोलत उतरे घाट कालपी क्यार ८८ तहते चलिकै परहुल नंचे दूनों माय बनाफदराय। दिनाद्वैक रहित्यहि मन में तहँते कूच दीन करवार१३ जायकै पहुँचे अस में जहँ पानीको काय॥ इन्दल बेंदुल दोउ प्यासे में इनके रहा न बीरा तहँ पानन का जो बनाफरमम॥ ताकि ल्यवरिषा इन्दल बेंदुल पानी लहुवाभाय २१५ श्राधा पानी आधी माटी ना तिन्हें लीन लुटदाय ॥ हाय मुसीवत अस परिगैहै सेहुकोअन्नदीनचिरकाय ११६ सुनवाँ रोई त्यहि समया में धुताफलहू दीन चलाय ॥ फाटे छाती नहिं द्यावलि के चि बापू रहे मचाय ११७

आल्हा सोचें त्यहि समया में ऊदन छप्पर दीन गिरा।

तेलि तँबोली कलवारन की दुर्गति भई तहांपर आय ११८
लैलै टेटुवा वनियां चलिभे मनमें बार बार पछिताय॥
हाय रुपैया बैरी ह्वैगा ह्याँ अवगई प्राणपर आय ११९
भा खलभल्ला औ हल्ला अति पहुंचे वहुत राज दरवार॥
रोय रोयकै बनियाॅ ब्वालैं राजन मानो कही हमार १२०
अजयपाल औ रतीभान मे एकते एक शूर सरदार॥
ऐसि दुर्दशा मैं कबहूंना जैसी भई आय यहिवार १२१
ऊदन आये मोहबे वाले तिन सब लीन बजारलुटाय॥
इतना सुनिकै जयचँद राजा लाखनिरानालीनबुलाय १२२
कहि समुझाया लखराना को तोपन आगिदेउ लगवाय॥
सुनिकै बातैं महराजा की लाखनिचलाशीशकोनाय १२३

सवैया॥


चर्खन में सब तोप चढ़ाय औ फौज तयार कियो लखराना।
बाजत डंक निशंक तहाँ औ यथा घन सावन को घहराना॥
बिज्जु छटासों कटा करने कहँ चम्कत खड्ग तहाँ मरदाना।
मौहर बाजत हाव किये ललिते यह भाव न जात बखाना१२४



भई तयारी समरभूमि की क्षत्रिनवांधि लीन हथियार॥
मीराताल्हन बनरस वाला पहुंचा तबै राजदरबार १२५
किह्यो बन्दगी महराजा को औ यह हाल कह्योसमुझाय॥
गरि मचायो नहिं कनउज में आल्हाऊदन लेउ बसाय १२६
मुर्चा फेरा इन पिरथीग द्वारे हाथी दीन पछार॥
बड़े लेड़ैया द्याबलिवाले इनते हारि गई तलवार १२७
जयचँद बोले तब सय्यद ते नाहर बनरस के सरदार॥

जौंरा भौंरा दुइ हाथिन को हमरे द्वारे देयँ पछार १२८
खता माफ करि हम आल्हाकै औ कनउज माँ लेंय बसाय॥
इतना सुनिकै सय्यद बोले धावन पठै लेउ बुलवाय १२९
तब महराजा कनउज वाला तुरतै धावन दीन पठाय॥
खबरि सुनाई त्यहि आल्हा को तुमको राजा रहे बुलाय १३०
मीरासय्यद तहँ बैठे हैं तिनहिन हमैं दीन पठवाय॥
इतना सुनिकै आल्हाऊदन दोऊ भाय बनाफरराय १३१
अपनी अपनी असवारिनचढ़ि तहँते कूच दीन करवाय॥
जौंरा भौंरा मस्ता हाथी जयचँद द्वारेदीन ढिलाय १३२
आल्हा ऊदन दोऊ भाई पहुंचे तुरत द्वारपर आय॥
जयचँद बोले तब आल्हाते मानो कही बनाफरराय १३३
हथी पछारो जो दारे पर तो तकसीर माफ ह्वैजाय॥
इतना सुनिकै उदयसिंहने मनमांसुमिरिशारदामाय १३४
ताकिकै मस्तक इक हाथी के भाला हना लहुरवा भाय॥
पैठिग भाला त्यहि हाथी के तुरतै गिरा पछारा खाय १३५
दन्त पकरिकै फिरि दुसरे के ऊदन दीन्ह्यो द्वार लिटाय॥
देखि बीरता उदयसिंह की जयचँद बहुतगयो हर्षाय १३६
बाँह पकरिकै फिरि आल्हा कै औ दरवार पहूँचा जाय॥
कीनि खातिरी भल ऊदन की खालीमहलदीनकरवाय १३७
लैकै लश्कर तव कनउज मां वसिगे तहां बनाफरराय॥
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डागड़ानिशाकोआय १३८
परे आलसी खटिया तकि तकि सन्तन धुनी दीन परचाय॥
आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय १३९
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलौं रहैं चन्द औ सूर॥

मालिक ललिते के तवलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १४०
माथ नवावों पितु अपनेको ह्याँ ते करौं तरंग को अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवो इच्छायही मोरि भगवन्त १४१

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयाग
नारायणजीकी आज्ञानुसार उन्नामप्रदेशान्तर्गत पॅड़रीकलांनिवासि
बिभवंशोद्भवबुधकपाशङ्करगनु पं॰ललितामसादकृत आल्हा
फन्नौजवासवर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥

 

आल्हा निकासी सम्पूर्ण॥

इति॥