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आल्हखण्ड/१९ बेलाके गौनेका द्वितीय युद्ध

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आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ५४३ से – ५६४ तक

 

अथ आल्हखण्ड ॥

बेला के गौने की दूसरी लड़ाई में रानालाखनिसिंह

तथा उदयसिंह जी की चढ़ाई का वर्णन ॥


सवैया ॥

हे विधि दे बरदान यही पद पंकज ईश सदा हम ध्यावैं ।
होवैं जहाँ जलहू थल में रघुनन्दन को तहँ शीशनवावैं ॥
और न काम कछु हमको इक राम को नाम नितै हम गावैं ।
याँच यही ललिते कर साँच मिलैं रघुनाथ तबै सुखपावैं १

सुमिरन ॥


तुम्हें बिधाता हम ध्यावतहैं धाता कृपा करौ अब हाल ॥
परम पियारे रघुनन्दनजी जाते दरशदेयँ यहिकाल १
युक्ति बतावो स्वइ धाता तुम जाते मिटै सकल भ्रमजाल ।।
दशरथ नन्दन रघुनन्दन को बन्दन करों सदासबकाल २
चन्दन अक्षत औ पुष्पन सों पूजों शम्भु भवानी लाल ।।
करउ हलाहल भल सोहत है सोहै बाल चन्द्रमा भाल ३

जटा के ऊपर सुरसरि सोहै तापर बैठ भुजग बिकराल ।।
श्वेत वरण तन भस्म रमाये धारे हृदय मुण्ड के माल ४
को गति बरणे शिवशङ्कर कै बटतर नित्त करें विशराम ॥
भाँग धतूरन को भोजन करि ध्यावैम नित्त राम को नाम ५
छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
चढ़ी कनौजी अब दिल्लीपर चढ़ि है उदयसिंह सरदार ६

अथ कथाप्रसंग ॥


बेला बैठी निज महलन माँ मनमा धरे राम को ध्यान ।।
कन्त जूझिगे रणखेतन मा फिरि यह करन लागि अनुमान १
नैनन आँसू ढारन लागी पागी महादुःख भ्रमजाल ।।
मुर्च्छा जागी जब बेला की चिट्ठी लिखन लागि त्यहि काल २
लिखी हकीकति यह ऊदन का बेटा देशराज के लाल ।।
तुम्हैं मुनासिब यह नाहीं थी जैसी कीन आप यहि काल ३
वादा कीन्ह्यो ब्याहे मा गौने विदा लेव करवाय ।।
कन्त जूझिगे रण खेतन माँ अन्तौ मिलन कठिन दिखराय ४
भये जनाना तुम द्यावलि के ऊदन बार बार धिक्कार ।।
नालति तुम्हरी रजपूती का नाहक लेउ ढाल तलवार ५
होतिउ बिटिया तुम द्यावलिके करतिउ बैठि महल शृङ्गार ।।
शोच न होते तब बेला के ठाकुर उदयसिंह सरदार ६
होत जो बेटा बच्छराज का ठाकुर शूर वीर मलखान ।।
तो का करतीं दिल्ली वाले बिल्ली रूप सबै चौहान ७
गिल्ली ह्वैकै आल्हा ठाकुर दिल्ली देखि डरे यहि काल ।।
ऐसी पिल्ली हैं मोहबे मा तौ का करें रजा परिमाल
टिल् टिल् टिल्ली खलभल्ली ई लल्ली देशराज के लाल।

होन इकल्ली ज्यहि पल्ली मा बेटा बच्छराज को बाल ९
करत दुपल्ला सो छाती के घाती समर शूर मलखान ।।
तुम्हैं मुनासिब अब याही है आवो उदयसिंह चढ़िज्वान १०
प्रथम मिलावो मोहिं प्रीतम को बदला लेउ बन्धुको आन ।।
जो नहिं अइहौ उदयसिंह तुम मरि हैं गदा वीर चौहान ११
शोक समानी अलसानी सो मानी प्रथम यौवना नारि ।।
पूरी पाती लय छाती में थाती यौवन के उनहारि १२
यौवन केरे मदमाती सो घाती समय दीख त्यहिबार ।।
फरकत यौवन भुज दक्षिण है करकत हृदय करेजाफार १३
धड़कन अनवट बिछिया अँगुरिन कड़कत चोलीबन्द निहार ।।
तड़कत तनियाँ चौतनियाँसब रनियाँ दुखितभई त्यहिबार १४
दुख मदमाती रस बिसराती आती यार घांघरा धार ॥
फिर सतराती पछताती मनघाती समय दीख त्यहिबार १५
थर थहराती लहराती मन आती मन्द मन्द त्यहिबार ।।
लखि कर पाती दुख घाती को ढाहत नैनन नीर अपार १६
थाहत आई द्वारपाल ढिग पाती दुःख करेजा फार ।।
सो दै दीन्ही द्वारपाल को मुद्रा दीन्हे एक हजार १७
मुद्रा रुद्रा के तुल्या जो मुल्या बिका सबै संसार ।।
राम न लीन्ह्यो इक मुद्रा को त्यागे लंक अवध सरदार १८
अनुचित वानी हम ठानी है रामै कहा जौन सरदार ॥
तीन लोक के आनँद करता हरता दुःख जगत भरतार १९
तिन सरदार कहब जग अनुचित नहिं यह देव वाणि निरधार ।।
बेद शास्त्रन के भागत खन आल्हा जीतिलीन संसार २०
परम पवित्र चरित्र हैं जिनके तिनके नाम लेय संसार ।।

आल्हा ऊदन मलखे सुलखे कलियुग धरम ध्वजा सरदार २१
इनकी कीरति अतिपवित्र है जो कोउ देखै हृदय उघार ॥
परम पवित्र चरित्र जिनके हैं तिनके नाम लेय संसार २२
यहतो ललिते के ध्वनि बोलै खोलै और हाल यहिबार ॥
पाती लैकै धावन चलिभा पहुँचा नगर मोहोबा द्वार २३
बिपदा छाई ह्याँ मोहबे में कोउन मसा सरिस भुन्नाय ।।
यहि गति देखी द्वारपाल ने ठाढ़े लोग रहे सन्नाय २४
चुप्पे चलिभा दशहरिपुर का जहँ पर बैठि बनाफरराय ॥
पाती दीन्ही तहँ धावन ने ठाकुर उदयसिंह को जाय २५
चुप्पे पाती ऊदन पढ़िकै तुरतै डरी तड़ाकाफार ।।
आल्हाठाकुर तब बोलत भे साँचे धर्म्मरूप अवतार २६
कहाॅ कि पानी यह आई थी डारी जौनि तड़ाकाफार ।।
बातैं सुनिकै ये आल्हा की बोले उदयसिंह सरदार २७
अड़बड़ पाती थी बेला की गड़बड़ लिखी दुःख के भार ।।
जो नहिं जावं हम दिल्ली को बेला देय बहुत धिक्कार २८
आयसु पावैं हम दादा को जावैं युक्ति सहित यहिबार ।
जो नहिं जावैं हम दिल्ली को हमरे जीबे को धिक्कार २९
सुनिकै बातैं आल्हा बोले मानो कही लहुरवा भाय ॥
तुम नहिं जावो अब दिल्ली को चहु मरि जाय चँदेलाराय ३०
दोप न देई कउ दुनिया मा ब्रह्मा लीन्ह्यो पान छिनाय ।।
अबहीं भूले त्यहि बघऊदन कैसी कहै लहुरवा भाय ३१
सुनिकै बातैं ये आल्हा की बोले उदयसिंह सरदार ।।
दूधपियायो बालापन में मल्हना कीन बड़ा उपकार ३२
कैसे जैवे हम दिल्ली ना दादा जियत मोहिं धिक्कार ।।

कारो बाना कार निशाना सब कोउ करैं आज सरदार ३३
बनै गँजरिहा सबदल हमरो दिल्ली हेतु होय तय्यार ।।
मैं अब जावत हौं तहँना पर जहँना कनउज के सरदार ३४
इतना कहिकै ऊदन चलिभे तम्बुन फेरि पहूँचे आय ।। ॥
सम्मत करिकै लखराना सों उत्तर पत्र दीन पठवाय ३५
लाखनि ऊदन मिलि आल्हाते फौजै तुरत लीन सजवाय ।।
भई तयारी फिरि दिल्ली की लश्कर कूच दीन करवाय ३६
पाँच सात दिन के अरसा मा दिल्ली शहर गये नगच्याय ।।
दिल्ली केरे फिरि डाँडे़मा परिगे जाय कनौजीराय ३७
चौड़ा बकशी त्यहि समयामा तम्बुन पास पहूँचा आय ॥
मिले बनाफर तहँ ऊदन जब पूँछन लाग चौंड़ियाराय ३८.
कहाँ ते आयो ओ कहँ जैहौ आपन हाल देउ बतलाय ।।
सुनिकै बातैं ये चौड़ा की बोला तुरत बनाफरराय ३९
हिरसिंह बिरसिंह हम विरियाके गाँजर देश हमारो जान ।।
सुनी नौकरी घर बेलाके आयन करन स्वई हम ज्वान ४०
इतना सुनिकै चौड़ा बोला ठाकर बचन करो परमान ।।
काह दरमहा तुम चाहत हो हमते सत्य बतावो ज्वान ४१
हम बतलावैं दिल्लीपतिका नौकर तुम्हैं देयँ कवाय ।।
करो नौकरी जो औरत की तौ रजपूती धर्म नशाय ४२
इतना सुनिकै ऊदन बोले नाहर साँच देयँ बतलाय ।।
एकलाख ते कम नहिं लेवैं यहु नितखर्च हमारो आय ४३
देय महीना तीसलाख को ताकी करैं नौकरी भाय ।।
बारह बरसै हमते लरिकै जयचँद कूचदीन करवाय ४४
दीन न पैसा हम कनउज का सो यश रहा जगत में छाय ।।

चढ़ा बनाफर उदयसिंह जब हमरी लूट लीन करवाय ४५
तंगी आई जब हमरे घर तब दरबार जुहारा भाय ।।
महिना कमती कछु लेहैं ना तुमते साँच दीन बतलाय ४६
इतना सुनिकै चौंड़ा चलिभा आयो जहाँ पिथौराराय ।।
खबरि गँजरिहन की बतलाई चौंड़ा बार बार समुझाय ४७
खबरि पायकै पिरथी बोले मानो कही चौड़ियाराय ।।
कहाँ खजाना घर इतना है देवैं तीस लाख जो भाय ४८
पारस पत्थर चन्देले घर तिनकी करैं नौकरी जाय ।।
म्वहिं अभिलाषा नहिं नौकर की देवैं तीस लाख जो भाय ४९
इतना सुनिकै चौंड़ा बोला मानो कही पिथौराराय ।।ऊ:
बड़े लडैया गाँजर वाले मोहबा आपु लेउ लुटवाय ५०
दश औं पन्द्रा दिन नौकर करि करिये काज पिथौराराय ।।
फिरि मन भावै महराजा के दीजै सब के नाम कटाय ५१
यह मन भायी पृथीराज के तुरतै हुकुम दीन फरमाय ॥
हुकुम पिथौरा को पावत खन हिरसिंह बिरसिंह लीन बुलाय ५२
लाखनि ऊदन दोऊ आये चेहरा अपन दीन लिखवाय ॥
कीन नौकरी घर पिरथी के क्षत्री गये शहर में आय ५३
हुकुम लागिगा यह पिरथीका हाथी घोड़ा देउ दगाय ।।
सुनिकै बातैं महराजा की लाखनि बहुत दीन समुझाय ५४
लिखी न हिंसा कहुँ बेदन में गीता पाठ कीन अधिकाय ।।
बिनय हमारी यह राजन है यहु मंसूख हुकुम ह्वैजाय ५५
नहीं फायदा कछु याते है ओ महराज पिथौराराय ॥
सुनिकै बातैं ये लाखनि की खारिज हुकुम दीन करवाय ५६
लानि ऊदन देवा सय्यद धनुवाँ यई पाँचहू ज्वान ।।

बेला बेटी के द्वारे की रक्षा करो कह्यो चौहान ५७
हुकुम पाय कै महराजा को पांचो चले शीश को नाय ॥
बेला बेटी के द्वारे पर ह्वैगे द्वारपाल फिरि आय ५८
चौपरि बिछिगै तहँ लाखनि कै खेलन लाग बनाफरराय ।।
चर्चा कीन्ही तहँ बेला की यहु अलबेला लहुरवाभाय ५९
गुप्त बार्ता बाँदी सुनिकै बेलै खबरि जनाई जाय ॥
द्वारपाल गाँजर के आये तुम्हरी कथा रहे ते गाय ६०
इतना सुनिकै बेला बेटी आपै गयी द्वारढिग आय ॥
लाखनि ऊदन की बातैं सुनि जान्यो गये बनाफर आय ६१
रूपा बाँदी ते बोलति भै पूँछो द्वारपाल सों जाय ।।
कहाँ के ठाकुर ये आये हैं आपन हाल देयँ बतलाय ६२
सुनिकै बातैं ये बेला की बाँदी चली तड़ाका धाय ।।
जहाँ बनाफर उदयसिंह हैं बाँदी अटी तहाँपर आय ६३
कही हकीकति सब बेला की बाँदी हाथ जोरि शिरनाय ।।
सुनिकै बातैं त्याही बाँदी की चिट्ठी दीन बनाफरराय ६४
लैकै चिट्ठी बाँदी चलिभै बेलै दीन तडाकाधाय ॥
पढ़ी बनाफर की चिट्ठी जब महलन तुरतलीन बुलवाय ६५
परदा कीन्ह्यो उदयसिंह ते कुरसी अलग दीन डरवाय ।।
गुप्त बार्ता बेला पूछी ऊदन सबै दीन बतलाय ६६
तब विश्वास भई जियरे मा आँहीं ठीक बनाफरराय ।।
तब तो पूँछन बेला लागी साँची कहौ लहुरवाभाय ६७
संग न आये तुम बालम के जूझे खेत चँदेलेराय ।।
कहाँ मंसई तब तुम्हरी गै ऊदन साँच देउ बतलाय ६८
उन बोले तब बेला ते भौजी मोर कीन अपमान ।।

बिरा धरावा गा गौने का रहिगा चार घरी लों पान ६९
कोऊ खावा जब बीरा ना ता मैं उठा शारदा ध्याय ।।
करसों हमरे बीरा लीन्ह्यो तुम्हरे कन्त चँदेलेराय ७०
माहिल भूपति तहँ मुसकाने हमरो मरण समय गो आय ॥
कछु नहिं बोले परिमालिक जी दादा हमरे उठे रिसाय ७१
कहा हमारो तुम मान्यो ना ऊदन गयो मोहोबे आय ।।
सवन चिरैया ना घर छोंड़ै नाबनिजरा बनिज को जाय ७२
तबै निकारयो परिमालिक जी दीन्ही बहुत तलाकै माय ।।
गे जगनायक जब लेने को तब नहिं अवै बनाफरराय ७३
बहु समुझाये ते आये ते लाखनिराना संग लिवाय ॥
भरी कचहरी परिमालिक की ब्रह्मा लीन्ह्यो पान छिनाय ७४
वासरि करिकै द्वासरि कीन्ही दूनों भाय गयन अलगाय ।।
दादा रोंका मोहिं अबतीखन तुम नहिं जाउ लहुरवाभाय ७५
वादा तुमते हम कीन्हा था तुम्हरी बिदा लेब करवाय ॥
गड़बड़ि चिट्ठी तुम अति लिखिकै धावन हाथ दीन पठवाय ७६
सो दिखलावा नहिं दादा को कण्ठै हाल दीन बतलाय ॥
दूध पियावा मल्हना रानी स्यावामोहिं बहुत दुलराय ७७
ब्याह हमारे मल्हना रानी कुँवना पाँच दीन लटकाय ॥
प्राण नेग दै मैं मल्हना को टारयों पैर तहाँ ते माय ७८
प्राण निछावरि तुमपर करिकै बिछुरे कन्त देब मिलवाय ।।
इतना सुनिकै बेला बोली यह नहि आश परि दिखलाय ७९
कुटुँब हमारो सब बैरी ह्वै हमको राँड़ दीन करवाय ।।
जियत पिथौरा औ ताहर के कैसे मिलब पियाको जाय ८०
प्रभुता ऐसी क्यहि क्षत्री मा प्रीतम मिलन देय करवाय ।।

शब्द कान सुनि तीर चलावैं हमरे पिता पिथौराराय ८१
लाखनि ऊदन कै गन्ती का हमरी बिदा लेयँ करवाय ।।
डोला लाये संयोगिनि का तब कहँ हते कनौजीराय ८२
सोई लाखनि की दूसर हैं हमरी बिदा लेयँ करवाय ।।
रहे आसरा तुम्हरो जदन सोऊ नहीं पूर दिखलाय ८३
भारी फौजै महराजा की डोला कौन भांति सों जाय ।।
यहै अँदेशा है जियरे मा लाखनिराना लेउ बुलाय ८४
हुकुम पायकै यह बेला को बाँदी चली तड़ाका धाय ।।
है मर्दाना ज्यहिका बाना सुन्दर सुघर कनौजीराय ८५
सो चलिआवा सँग बाँदी के पहुँचा रंग महल में आय ।।
आवत दीख्यो लखराना को खातिर कीन लहुरवाभाय ८६
बैठि कनौजी गे महलन मा बेला बोली बैन सुनाय ।।
विदाकरावन तुम कस आये दिल्ली शहर कनौजीराय ५७
तुम्हरे घरते संयोगिनि का लाये दिल्ली के सरदार ॥
त्यही वंश के तुम लाखनि हौ की कहुँ अन्त लीन अवतार ८८
सुनिकै बातैं ये बेला की यहु अलबेला कनौजीराय ।।
लाली लाली आँखी करिकै दाढ़ी वार दीन बिखराय ८९
एक हाथ धरि तहँ मुच्छन मा नंगी एक हाथ तलवारि ।।
लाखनि बोले तो बेला ते कैसी बातैं बकै गँवारि ९०
काह हकीकत थी पिरथी की बिटिया लेत चँदेले केरि ।।
बिटिया लाये घर चेरी की रानी कहा गँवारिनि देरि ९१
त्यहिके बदले कहु अगमा का डोला लेउँ आज निकराय ।।
तौ तौ लरिका रतीभान का नहिं ई मुच्छ डरों मुड़वाय ९२
ऊदन बोले फिरि बेला ते भौजी काह गयी बौराय ॥

दीख मंसई तुम ऊदन की हाथी द्वार पछारा आय ९३
करो तयारी तुम महलन ते बिछुरेकन्त देयँ मिलवाय ।।
इतना सुनिकै बेला बोली मानो कही लहुरवाभाय ९४
चोरी चोरा हम जैहैं ना नेगिन नेगुदेउ चुकवाय ॥
लेउ अधकरी अब ब्याहे की पाछे बिदालेउ करवाय ९५
यह मनभाई लखराना के बोले सुनो बनाफरराय ॥
चारि रुपैयन के तोड़ालै नेगिन नेगु देउ चुकवाय ९६
इतना सुनिकै ऊदन ठाकुर नेगिन तुरत लीन बुलवाय ।।
चारिउ तोड़ा रूपयन वाले तहँ पर तुरत दीन बँटवाय ९७
रानी अगमा के महलन को बेला चली तड़ाकाधाय ।।
देवा ऊदन धनुवाँ सय्यद ये दरवार पहूँचे जाय ९८
द्वारे ड्योढ़ी के महराजा गढ़े ठाढ़े रहैं पिथोराराय॥
सय्यद देवा धनुवाँ सँगमें पहुँचा तहाँ बनाफरराय ९९
गाथनायकै महराजा को बोला सुनो पिथौराराय ॥
नेगु चुकावा हम नेगिन का दायज आप देउ मँगवाय १००
बेला जैहैं अब श्वशुरेको राजन साँच दीन बतलाय ॥
हिरसिंह विरसिंह हम आहिनना हमहैं छोट बनाफरराय १०१
इतना सुनिकै माहिल भूपति बोले सुनो पिथौराराय ।।
बैठक करिये दरवाजे पर दायज उचित देउ मँगवाय १०२
माहिल बोले फिरि चुप्पे से राजन सॉच देय बतलाय ।।
उतरै घोड़ा ते जब ऊदन तुरतै मूड़लेउ कटवाय १०३
यह मन भाई महराजा के बैठक तहाॅ दीन करवाय ॥
बड़े कीमती दुइ कुण्डल को तुरतै तहाॅ दीन रखवाय १०४
कह्यो पिथौरा फिरि उदन ते बैठो आय बनाफरराय ।।

दायज दीन्ह्यों परिमालिक को कुण्डल यहाँ दीन रखवाय १०५
इतनी सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥
राजा नौकर की समता ना बैठैं कौन भाँति से आय १०६
नोक लगायो फिरि भाला की कुण्डल दोऊ लीन उठाय ॥
सजग देखिकै फिरि क्षत्रिन को घोड़ा तुरत दीन दौराय १०७
बेला पहुँची जब महलन मा माता लीन्ह्यो कण्ठ लगाय ॥
भल समझायो रानी अगमा बेटी शोक देउ बिसराय १०८
लिखी विधाता की मेटै को कीन्ह्यों घाटि चौंड़ियाराय ।।
दुलहिनि बोली तब ताहर की ननदी रोवै तोरि बलाय १०९
ब्याह तुम्हारो कहुँ अनतै अब करि हैं श्वशुर पिथौराराय॥
राजपाट सब तुम्हरे घरमा दौलत भरी पुरी अधिकाय ११०
संग न कीन्ह्यों ननदोई का ननदी रोवै तोरि बलाय ।।
ब्याह न अनुचित कछु दूसरहै ननदी काह गयी बौराय १११
मेरे चँदेले मरि जावैदे ननदी रोवै तोरि बलाय ।।
सुनिकै बातैं ये भौजीकी बेला बोली क्रोध बढ़ाय ११२
उचित न बातें कछु तेरी हैं अनुचित बात रही बतलाय ।।
भाँवरि फिरिकै चंदेले सँग करि वेब्याह और सँग जाय ११३
कउने गवारे की बिटियाहै ऐसी टोढ़ि मेढ़ि बतलाय ।।
नहिं सुखस्वइहै तुइ महलन में डरिहौं अपशि रॉड़ करवाय ११४
राँड़ अभागिनि की बातैं सुनि भौजी चुप्प साधि रहिजाय ॥
तब तो बेला अलबेला यह भूषण वस्त्र सजे अधिकाय ११५
रूप उजागरि सब गुण आगरि शोभा कही वून ना जाय ।।
कटि लचकीली लो मटकीली पीली दुःख देह दिखलाय ११६
माँग सॅवारी सो सुकुमारी मानो इन्द्रधनुप समुदाय ॥

कारी अलकैं नागिन झलकैं पलकैं मूँदै औ रहिजाय ११७
व्यला भवानी बनि महरानी पलकी चढ़ी तड़ाका धाय ।।
चलिभै पलकी फिरि बेलाकै लाखनिपास पहूँची आय ११८
लैकै पलकी लाखनि राना तुरतै कूच दीन करखाय ।।
सय्यद देवा धनुवाँ लैकै पहुँचा आय बनाफरराय ११६
मठी शारदा की डांड़े पर डोला तहाँ दीन धरवाय ।।
बेला पहुँची तहँ मठिया मा पूजन हेतु शारदामाय १२०
चन्दन अक्षत औ पुष्पन सों बेला पूज्यो मोद बढ़ाय ॥
धूप दीप दी तहँ देवी की मेवा मिश्री भोग लगाय १२१
फुलवा मालिनि ते फिरि बोली ताहर खबरि जनावो जाय ॥
बहिनि तुम्हारी के डोला को लीन्हे जाँय कनौजीराय ९२२
बदला लेहैं संयोगिनि का तुम्हरे जीवेका धिक्कार ॥
जल्दी आवो अब मारग में डोला रोंकि लेउ यहिबार १२३
मालिनि चलिभै तब मठिया ते दिल्ली अटी तड़ाका धाय ।।
खबरि सुनाई सब ताहर को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय १२४
सुनिकै बातैं त्यहि मालिनि की ताहर फौज लीन सजवाय ।।
वाजत डंका अहतका के तुरतै कूच दीन करवाय १२५
यहु निरशंका दिल्लीवाला ताहर अटा तड़ाका आय ।।
औ ललकारा लखराना को ठाढ़े होउ कनौजीराय १२६
धरि कै डोला अब बेला का तुरतै कूच देउ करवाय ॥
नही तो बचि हौना कनउज लग जो विधि आप बचावै आय १२७
भूरी हथिनी के ऊपर ते लाखनि गरू दीन ललकार।।
मर्द सराहों में ताहर को डोला पास आउ सरदार १२८
बेला मिलिहें अब ब्रह्मा को ताहर कूच जाउ करवाय ।।

ब्याह बनाफर ऊदन कीन्ह्यो लाखनि बिदा लीन करवाय १२९
काह हकीकति है ताहर कै डोला पास जाय नगच्याय ।।
जितने सँगमा तुम लै आये सब के मूड़ लेउँ कटवाय १३०
तौ तौ लरिका रतीभान का नहिं ई मुच्छ डरों मुड़वाय ।।
जीवन चाहौ ताहर नाहर तौ अब कूच जाउ करवाय १३१
सुनिकै बातैं ये लाखनि की ताहर बोले बचन सुनाय ॥
मारो मारो ओ रजपूतो डोला लेवो तुरत छिनाय १३२
सुनिकै बातैं ये ताहर की तुरतै चलन लागि तलवार ।।
एक सहस दल पैदल सेना दुइशत बीस साथ असवार १३३
अभिरे क्षत्री अरव्झारा सों बाजै छपक छपक तलवार ।।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकीधार १३४
को गति बरणै तहँ ताहर कै नाहर दिल्ली का सरदार ।।
पैदल सेना धुनकत आवै मारत अवै घोड़ असवार १३५
यहु दलगंजन की पीठी मा सोहै दिल्ली का सरदार ॥
जहॅ पर भूरी है लाखनि के ताहर आय गयो त्यहिबार १३६
एँड़ लगायो दलगंजन के हौदा उपर पहुंचा जाय ।।
गुर्ज चलाई लाखनिराना मस्तक परी घोड़केआय १३७
हटि दलगंजन तब दलतेगा वलते थहर थहर थर्राय ।।
जितनी सेना थी ताहर की तुरतै भागिचली भर्राय १३८
ताहर हटिगे जब मुर्चा ते लाखनि कूचदीन करवाय ॥
बाजत डंका अहतंका के निर्भयजात कनौजीराय १३९
बेला बोली तहँ ऊदन ते साँची कहौ बनाफरराय ।।
दायज दीन्ह्यों का महराजा हमते साँच देउ बतलाय १४०
सुनिकै बातैं ये बेला की कुण्डल तुरत दीन दिखलाय ।।

देखि कीमती दोउ कुण्डल को बेला बड़ी खुशी ह्वैजाय १४१
चले पालकी के संगै मा यहु रणवाघु लहुरवाभाय ॥
ताहर चलिभा राजमहल में जहँपर बैठ पिथौराराय १४२
खबरि सुनाई सब लाखनि की डोला जौन भांति लैजायँ ॥
सुनिकै बातैं ये ताहर की तब जरि उठा पिथौराराय १४३
तुरत चौंड़िया को बुलवायो नाहर हुकुम दीन फरमाय ॥
लैकै फौजे जल्दी जाबो बेला डोला लेउ छिनाय १४४
जान न पावैं कनउज वाले सबके मूड़ लेउ कटवाय ॥
इतना सुनिकै चौंड़ा चलिभा डंका तुरत दीन बजवाय १४५
बाजत डंका अहतंका के चौड़ा कूत्र दीन करवाय ॥
भा भटमेरा फिरि लाखनि ते द्वउ दल गये बरो बरि आय १४६
भाला बरछी कड़ावीन की लागी होन भडाभड़ मार ।।
पैदल के सँग पैदल सेना औ असवार साथ असवार १४७
सूंड़ि लपेटा हाथी भिड़िगे अंकुश भिड़े महौतन केरि ।।
हौदा हौदा यकमिल ह्वैगे मारै एक एक को हेरि १४८
ना मुँह फेरै दिल्ली वाले ना ई कनउज के सरदार ।।
तेगा चमकै वर्दवान का ऊना चलै विलाइति क्यार १४९
मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार ।।
मूड़ करन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार १५०
रुण्डन लेकै तलवारी को अद्भुत कीन तहॉपर मार ।।
बड़े लड़ैया दोऊ ठाकुर मानैं नहीं तहाँ कछुहार १५१
यहु यकदन्ता हाथी ऊपर चौड़ा गरू देय ललकार ।।
भूरी हथिनी के उपर ते राजा कनउज का सरदार १५२
भा भटमेरा द्वउ शूरन ते दोऊ खैंचि लीन तलवार ।।

दोऊ मारैं तलवारी ते दोऊ लेयँ ढालपर वार १५३
कोऊ काहू ते कमती ना द्वउ रणपरा बरोबरि आय ॥
गुर्ज चलाई फिरि चौड़ा ने हौदा झुके कनौजीराय १५४
ताकिकै भाला लाखनि मारा हाथी मस्तक गयो समाय ।।
हाथी गिरिगा यकदन्ता तहँ पैदलभयो चौंड़िया राय १५५
भागि सिपाही दिल्ली वाले अपने डारि डारि हथियार ॥
लैकै डोला आगे चलिभा लाखनि कनउज का सरदार १५६
गाहरिकारा फिरि दिल्ली मा जहँ पर भरी लाग दरबार ॥
ताहर धाँधू तहँ बैठे हैं अंगद नृपति ग्वालियर क्यार १५७
तहँ हरिकारा बोलन लाग्यो दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥
जुझि ग हाथी इकदन्ता है लश्कर सबैगयो भर्राय १५८
डोला जावत है मोहबे को साँची खबरि दीन बतलाय ॥
सुनिकै बातैं हरिकारा की लश्कर तुरत लीन सजवाय १५९
आदि भयङ्कर चढ़ि गज ऊपर तुरतै कूच दीन कवाय ।।
बाजैं डंका अहतंका के हाहाकार शब्दगा छाय १६०
तुरही मुरही तहँ बाजत भइँ पुप्पू पुप्पू ध्वनी लगाय ॥
धम् धम् धम् धम् बजै नगारा मारा मारा परै सुनाय १६१
को गति बरणै त्यहि समया कै हमरे बूत कही ना जाय ॥
पहिले मारुइ भइँ तोपन की गोला चलन लागि हहराय १६२
बड़ी दुर्दशा भइँ तोपन में तब फिरि मारुवन्द ह्वैजाय ॥
मघा के बूँदन गोली बरपी क्षत्रीगये बहुत भहराय १६३
तीर तमंचा भाला बरछी कोताखानी चलीं कटार ॥
भा भटभेरा दल पैदल का घोड़नलड़ें घोड़असवार १६४
है दलगंजन के उपर मा ताहर पिरथी राजकुमार ।।

घोड़ बेंदुला की पीठी मा ठाकुर उदयसिंह सरदार १६५
मुर्चाबन्दी भै दूनों मा दूनों लड़ै लागि त्यहिकाल ।।
अभिरे क्षत्री अरव्झारा सों भिड़िगै तहाँ ढाल में ढाल १६६
धाँधू धनुवाँ का मुर्चा भा सय्यद नृपति ग्वालियर क्यार ॥
को गति बरणे रजपूतन कै मारैं द्वऊ हाथ तलवार १६७
जैसे भेड़िन भेड़हा बैठै जैसे अहिर बिडारै गाय ।।
तैसे मारे ताहर नाहर शूरन दीन्ह्यो समर वराय१६८
धाँधू धमकै तहँ तेगा को चमके चमाचम्म तलवार ।
अली अली कहि सय्यद दौरै रणमा होत जात गलियार १६९
बड़ा लड़ैया अंगद राजा गारै ढूँढ़ि ढूँढ़ि सरदार ।।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार १७०

सवैया॥


करहत शूर गिरैं रणखेतन पूरि रही ध्वनि मारू अपारा ।
मत्त मतंग गिरैं भहराय सो हाय दयी यह होत पुकारा ।।
छूटत तीर सो पूरि रहे तन धूरि उड़ै नहिं कीच अपारा ।
मीच भई रण शूरन की ललिते मन कायर जात दरारा १७१
कायर भागि चले ललिते अकुलात महामन दुःखन छाये।
मोद बढ़यो रणशूरन के बलपूरन के कछु दुःख न आये ।।
कूर कुपूत रहे रजपूत ते मूत भये रण नाम धराये ॥
पूत सुपूत महामजबूत सो बूतलड़ैं नहिं पाउँ डिगाये १७२



बड़ी लड़ाई भै मारग में पिरथी लाखनि के मैदान ।।
मारे मारे तलवारिन के गिरिगे बड़े सुघरुवा ज्वान १७३
मान न रहिगे क्यहु क्षत्रिन के सब के छूटि गये अभिमान ।।

आदि भयंकर के ऊपर ते गरुई हाँक देय चौहान ७४
मारो मारो ओ रजपूतो डोला लेवो तुरत छिनाय ।।
जान न पावैं द्यावलिवाले इनके देवों मूड़ गिराय १७५
गरुई हाँकै सुनि पिरथी की जूझन लागि सिपाही ज्वान।
उड़ै बेंदुला बघऊदन का खाली होत जात मैदान १७६
धाँधू धनुवाँ के मुर्चा में बाजै घूमि घूमि तलवार ।।
अंगद राजा के मुर्चा मा सय्यद बनरस का सरदार १७७
औरो क्षत्री समरभूमि मा दूनों हाथ करैं तलवार ।।
को गति बरणै त्यहि समया कै अद्भुत होय तहाँ परमार १७८
पैग पैग पै पैदल गिरिगे दुइ दुइ कसी गिरे असवार ।
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्ककी धार १७९
सोहैं लहासैं तहँ हाथिन की छोटे पर्वत के अनुहार ।।
परी लहासैं जो घोड़न की तिनको जानों नदी कगार १८०
मुण्डन केरे मुड़चौड़ा भे औ रुण्डन के लगे पहार ॥
डोला सौंप्यो फिरि धनुवाँको चलिभा कनउज का सरदार १८१
जौनी दिशिको लाखनि जावैं तादिशि होय घोरघमसान ।।
बड़े लड़ैया दिल्ली वाले ताहर समर धनी चौहान १८२
हनि हनि मारै रजपूतन का घायल होयँ अनेकन ज्वान ।।
मान न रहिगा क्यहु क्षत्रीका सब के टूटिगये अरमान १८३
फूटि फूटि शिर चरण ह्वै गे पूरण भयो समर मैदान ।
कहँलग गाथा त्यहि समया कै ललिते करै यहां पर गान १८४
सो भल जानत हैं नीकी बिधि जो यह दीख्यो युद्ध ललाम ॥
सम्मुख जूमैं जे मुर्चा में ते सब जायँ राम के धाम १८५
यही तपस्याहै क्षत्री के सम्मुख लड़ै समर मैदान ।।

तन धन अप्पैं समरभूमि मा पावै सदा जगत में मान १८६
सज्जन मानै के भूखे हैं दुर्जन सहैं सदा अपमान ।।
मान न पावै नरदेही गा जीवतजानोश्वान निदान १८७
मान के भूखे लाखनिराना ना कठिन तहाँ संग्राम ।।
जौनी दिशि को लाखनि जावैं ता दिशि होत जात हंगाम १८८
लाखनिराना के मारुन मा आरी भये सिपाही ज्वान ।।
कायर भागे समरभूमि ते शूरन कीन घोर घमसान ९८९
यहु महराजा कनउज वाला मारत चला अगारी जाय ।।
आदिभयङ्कर जहँ हाथी पर सोहत बैठि पिथौराराय १९०
तहँ कनवजिया कनउज वाला आला अटा तड़ाका जाय ।।
आदिभयङ्कर ते ललकारा यहु महराज पिथोराराय १९१
लाखनि पगिया ना अटकीहै रण मा प्राण गँवावो आय ॥
प्यारे बेटा तुम ताहर सम मानो कही कनौजीराय १९२
निमक चँदेले का इन खावा दूनों भाय बनाफरराय ।।
ये मरिजावै सँग डोला के उनके नमक अदा ह्वैजायँ १९३
तुम्हें मुनासिब यह नाहीं है अनहक प्राण गँवावो आय ।।
बारह रानिन में इकलौता यह हम सुना कनौजीराय १९४
त्यहिते तुमका समुझाइत है चुप्पै कूच जाउ करवाय ॥
इतना सुनिकै लाखनि बोले साँची सुनौ पिथौराराय १९५
तीनि महीना औ त्यारादिन ऊदन कठिन कीन तलवार ।।
लैक पैसा सब गाँजर का पठवा कनउज के दरबार १९६
गंगा कीन्हीं हम ऊदन ते देबे साथ बनाफरराय ।।
हमैं मुनासिब यह नाहीं है जो अब कूच जायँ करवाय १९७
करब प्रतिज्ञा अब हम पूरी लड़िवे खूब पिथौराराय ।।

पाँव पिचारी का धरिवे ना चहुतन धजी२ उड़िजाय १९८
पता लगावै ह्याँ लाखनि का आल्हा केर लहुवा भाय ॥
मारत मारत रजपूतन को पहुँचा जहाँ पिथौराराय १९९
तीर कमनिया ले हाथेमा मारन हेतु भयो तैयार ॥
तब ललकारा नर नाहर यहु ठाकुर उदयसिंह सरदार २००
तुम्हें मुनासिब यह नाहीं है राजा समरधनी चौहान ॥
नहीं वरोवरिके लखाना जोतुम लीन्ही तीरकमान २०१
सुनिकै बातैं बघऊदन की कायल भये बीर चौहान ॥
चुप्पै होदा पर रख दीनी राजा अपनी तीर कमान २०२
यहु दलगंजन की पीठी मा ताहर आय गयो त्यहिवार ॥
भये कनौजी त्यहिके सम्मुख लागे करन तहाँ पर मार २०३
ऊदन अंगद का मुर्चा भा दोऊ लड़न लागि सरदार ॥
दोऊ मारे तलवारी सों दोऊ लेयँ ढाल पर वार २०४
तब ललकारयो फिरि धाँधू को यहु महराज पिथौराराय ।।
जाय न डोला अब मोहबे का लावो जाय तडाकाधाय २०५
इतना सुनिकै धाँधू चलिमे डोला पास पहूँचे जाय॥
तब ललकारा तहँ धनुवाँने क्षत्री खबरदार ह्वैजाय २०६
पाँव अगाड़ी का डारेना नहिं यमपुरी देउँ दिखलाय ।।
कहा न माना कछु धनुवाँका धाँधू चला तड़ाका धाय २०७
तेलि के बच्चा कचा खैहौं लुच्चा ठाढ़ होय यहिवार ।।
सच्चा लड़िका जो क्षत्रीका तौ मुख धाँसि देउँ तलवार २०८
इतना कहिके धांधु क्षत्री अँगुरिन भालालीन उठाय ॥
ताकि के मारा सो धनुवाँ का परिगा घाव जाँघ पर आय २०९
गिरिगा धतुवाँ जब खेतन मा डोला तुरत लीन उठवाय ।।

डोला उठिगा जब बेला का सय्यद गयो तड़ाका आय २१०
औ ललकारा त्यहि धाँधू का अब ना धरयो अगारी पाँय ।।
जान न पैहौ तुम सय्यद ते क्षत्री साँच दीन बतलाय २११
इतना सुनिकै अंगद राजा तहँ पर गयो तड़ाका आय ।।
भूरी हथिनी के चढ़वैया आये तहाँ कनौजीराय २१२
ताहर नाहर दलगंजन पर सोऊ बेगि पहूँचा आय ।।
कठिन लड़ाई भै डोला पर हमरे बूत कही ना जाय २१३
को गति बरणै त्यहि समया कै बाजै घूमि घूमि तलवार॥
सुनि सुनि गाजै रजपूतन की कायर डारि भागि हथियार २१४
को गति बरणै रण शूरन की दूनों हाथ करैं तलवार ॥
कीरति प्यारी जिन क्षत्रिन को तिनको भलाकरैं करतार २१५
कीरति वाले लाखनि ताहर ठाना घोर शोर घमसान।
यहु महराजा कनउज वाला लीन्ही गुर्ज तड़ाका तान २१६
ऐंतिकै मारा सो ताहर के मस्तक परी घोड़के जाय ।।
घोड़ा भाग्यो तहँ ताहर का डोला लीन कनौजीराय २१७
बिना नृपति के सब सेना तहँ रणमा कौन भांति समुहाय ॥
बिन बर कन्या ज्यों मड़ये मा भौरी कौन करावन जाय २१८
दुलहिन दुलहा की समता मा ममता कौन खवैया भात ।।
मिलै रूपैया वरतौनी ना तबलग देखिपरै तहँलात २१९
तैसे मुर्चा की बातैं हैं यारो जानि लेउ सब घात ।।
घोड़ा भाग्यो जब ताहर का लाग्योनहीं क्यहूकी लात २२०
डोला चलिभा तब बेला का जहॅ पर रहै चँदेलाराय ।।
ब्रह्मा ठाकुर के तम्बू मा ह्वैगा भीरमार अधिकाय २२१
बाजै डंका अहतका के शङ्का सबन दीन बिसराय ॥

देवा सय्यद ऊदन लाखनि सबको मिला चँदेलाराय २२२
मिला भेट करि सब काहुन सों तम्बू बैठिगये सब आय ।।
कीन बड़ाई लखराना की तहँ पर ग्वूब बनाफरराय २२३
सच्ची बातैं उदयसिंह की नहिं कहुँ लसरफसर ब्यवहार ॥
बड़ा प्रतापी रण मण्डल मा ठाकुर उदयसिंह सरदार २२४
पाग बैंजनी शिरपर सोहै दिहुनन धरी ढाल तलवार ॥
चढ़ा उतारू भुजदण्डै हैं आनन पङ्कजके अनुहार २२५
सत्य बड़ाई की लाखनि की भे सब खुशी तहाँ सरदार ।।
जा बिधि चलिकै सब मोहबे ते पहुँचे दिल्ली के दरबार २२६
कीनि नौकरी ज्यहि प्रकार ते कुण्डल जौन भांतिसों लीन ।।
सो सब गाथा तबँ ब्रह्मा ते ठाकुर उदयसिंह कहि दीन २२७
खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाको आय ॥
तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय २२८
राम राम की मन रटलाये लीन्ह्यनि अंग बिभूति रमाय ॥ ॥
डारि बघम्बर या मृगछाला आला परब्रह्म को ध्याय २२९
तपनि मिटाई सब देही की रघुबर नाम औषधी पाय ।।
यह सुखदायी सब संतन को या बलदेवैं निशा बिताय २३०
जब लग रैहै संजीवनि यह तबलग धर्मध्वजा फहराय ॥
माथ नवावों पितु माता को जिन बल गाथ गयों सब गाय२३१
आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय ॥
हुकुम तुम्हारो जी पावत ना ललिते कहत कौन विधि गाय २३२
रहैं समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औं सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर २३३
विपति निवारण जगतारण के दूनों धरों चरणपर माथ ॥

बेलारानी के गौने की पूरण भई दूसरी गाथ २३४
पूरि तरंग यहाँ सों ह्वैगै तब पद सुमिरि भवानीकन्त ।।
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही मोरि भगवन्त २३५

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण

जीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपड़रीकलानिवासि मिश्रवंशोद्भव

बुधकृपाशङ्करसूनु पण्डितललिताप्रसादकृत बेलागमन

द्वितीययुद्धवर्णनोनामप्रथमस्तरंग: १ ।।

बेलागानद्वितीय युद्धसमाप्त॥

इति ।।