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आल्हखण्ड/२ करिया करके देशराज बच्छराज मरण, महोबे का प्रथम युद्ध

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आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ ३७ से – चित्र तक

 

अथ पाल्हखण्ड॥ महोवे का प्रथमयुद्धवर्णन॥ सवैया॥ काको मैं ध्यावों मनावों सदा तुमको तजिकै सुनिये रघुनाथा । मेरे तो एक तुम्ही प्रभुजी अब काह बनाय लिखों बहुगाथा ।। स्वारथ साथ सबै नरदेत न देत कोऊ परमारथ साथा ।। दीन पुकार करै ललिते प्रभु बेगिकरो जनजानि सनाथा ? सुमिरन ॥ कण्ठ में बैठो तुम कण्ठेश्वरि भुजबल बैठिजाउ हनुमान ॥ बैठु शारदा मोरि जिह्वा माँ जासों करूँ आल्ह को गान १ नहीं आसरा निजभुजबलको है यहु आल्हा सिंधु अपार ।। डगमग डगमग नैया होवे माता तुही लगावै पार २ रह्यों प्रतापी में सतयुग माँ त्रेता रह्यों बहुत बरियार ॥ बड़ी बड़ाई भै द्वापर माँ जवलग रहे परीक्षित यार ३

अब बृद्धाई अति छाई है गाई जाय नहीं सो यार ।।

कलियुग बाबा की रजधानी माता तुही लगावै पार ४
जप तप भाग्यो मेरि देही ते अब मैं भयों बहुत सुकुमार॥
ताते नैया डगमग होवै बेड़ा कौन लगावै पार ५
तुही खेवैया शारद मैया माता खेय लगावै पार॥
नाहिं तो बूड़ौं मँझधारा में माता होवै हँसी तुम्हार ६
छूटि सुमिरनी गै शारद कै शाका सुनो शूरमन क्यार॥
करिया आई अब मोहबे का जो जम्वैका राजकुमार ७

अथ कथाप्रसङ्ग॥

एक समइया की बातैं हैं यारो सुनिल्यो कान लगाय।।
परब दशहरा की बुड़की रहै गंगा न्हान सबै कोउ जाय १
बड़ा महातम श्रीगंगा को गायो वालमीकि महराज॥
ब्यास बनायो महभारत जो तामें कह्यो जगत के काज २
सो सब जाने भाड़ोवाला यडु जम्बै का राजकुमार॥
हाथ जोरिकै फिरि बोलतभा ददुवा सुनिल्यो बचन हमार ३
भारी मेला श्री गंगा को ददुवा जाजमऊ के घाट॥
पुरके बाहर हम देखा है जावैं राव रङ्क सब बाट ४
हुकुम जो पावैं हम ददुवा को तो गंगा को अवैं अन्हाय॥
पाप नशावैं सब देही के गंगा चरण शरण में जाय ५
सुनिकै बातैं ये करिया की जम्बै गोद लीन बैठाय॥
चूम्यो चाट्यो गले लगायो बोल्यो बचन तुरत मुसुकाय ६
बारह बरसनका अरसा भो पैसा दीन न कनउज केर॥
नायव मन्त्री चन्देले के तुमको लेयँ वहाँ जो हेर ७
बाँधिकै मुशकै म्वरे बचुवा त्वहिं तुरतै जेहल देयँ पहुँचाय॥
पैसा देवों तो बचिजावो नाहिं तो जाय प्राणपर आय ८

त्यहि ते तुम का समुझावत हौं बचुवा मानो कहा हमार॥
राह कनौजी कै तहँते है ठाकुर समरधनी तलवार ९
हाथ जोरिकै करिया बोल्यो दोऊ चरणन शीश नवाय॥
मने न करिये म्वहिं गंगा को ददुवा बार बार बलिजायँ १०
पार लगै हैं श्री गंगाजी मेरो बार न बांको जाय॥
पकरो जइहौं जो मेला में पैसा माफ लेउँ करवाय ११
हुकुम जो पावों मैं ददुवा को तौ फिरि गंगाअवों अन्हाय॥
विनती सुनिकै बहु करिया की जम्बै हुकुम दीन फरमाय १२
हुकुम पायकै सो जम्बै को अपने कह्यो सिपाहिन बात॥
करो तयारी जाजमऊ की गंगान्हान हेतु हम जात १३
हुकुम पायकै सो करिया का तुरतै होन लागि तय्यार॥
झीलम बखतर पहिरिसिपाहिन हाथ म लीन ढाल तलवार १४
यक यक भाला दुइ दुइ बरछी लीन्हेनि कड़ाबीन सबज्वान॥
बजे नगारा त्यहि सम या माँ भारी होन लाग घमसान १५
करियो चलिभात्यहि समयामाँ माता भवन पहूँचा जाय॥
हाथ जोरिकै करिया बोल्यो माता चरणन शीशनवाय १६
मोहिं आज्ञा है ददुवा की गंगा न्हान हेतु हम जायँ॥
आज्ञा पाऊँ जो माता की तौसब काज सिद्धह्वैजायँ १७
बातैं सुनिकै ये करिया की मातैं हुकुम दीन फरमाय॥
चूम्यो चाट्यो हृदय लगायो आशिर्बाद दीन हर्षाय १८
बहिनि बिजैसिनि तब बोलत भै भैया बार बार बलिजाउँ॥
मोहिं निशानी कछु लैआयो जासों यादिकरूं तव नाउँ १९
इतनी सुनिकै करिया बोला बहिनी मानो कहा हमार॥
लवों निशानी में मेलाते बहिनी कहा न टारों त्वार २०

इतनी कहिकै करिया चलिभो फौजन फेरि पहूँचा आय॥
तुरत नगड़ची को ललकार्यो मारू डंका देय बजाय २१
बजा नगाड़ा तब माड़ो में क्षत्रिन धरा रकाबन पायँ॥
आपो चढ़िकै फिरि घोड़ापर मनमें रामचन्द्र को ध्याय २२
कूच कराय दयो माड़ो सों पहुॅचो जाजमऊ में जाय॥
राम्बू गड़िगे तहँ करिया के चकरन बिस्तर दीन बिछाय २३
उतर्यो करिया तब तम्बू में मनमें सुमिरि शारदा माय॥
लैकै धोती रेशमवाली गंगा निकट पहुँचा जाय २४
हनवन करिकै श्री गंगा में आसन तहाँ लीन बिछवाय॥
संध्या बन्दन करि प्रातः की बिप्रन तुरत लीन बुलवाय २५
दान दक्षिणा दै बिप्रन को तम्बू फेरि पहूँचा आय॥
पहिरिके कपड़ा अलबेला सो मेला फेरि पहूॅचा जाय २६
जाय दुकानन माँ देखतभा कतहुँ न मिलानीकत्यहिहार॥
तबलों माहिल उरई वाला तासों ह्वैगै राम जुहार २७
माहिल बोल्यो तब करियाते ओ जम्बै के राजकुमार॥
काह खरीदन को आयो है जो तुम घूमो सकल बजार २८
सनिकै बातैं ये माहिल की करिया बोला बचन उदार॥
हार लखौटा नीको ढूंढ़ैं सो नहिं पावा कतों बजार २९
बहिनि बिजैसिनि म्वरिमांगाहै ताते खोज करों अधिकाय॥
तुम्हरो जानों जो कतहूँ हो मोको बेगि देव बतलाय ३०
सुनिकै बातैं ये करिया की माहिल कहा वचन मुसुकाय॥
हार नौलखा है मोहवे माँ तुरतै चला तहाँको जाय ३१
बहिनि हमारी मल्हना जानों औ बहनोई रजा परिमाल॥
क्वऊ लड़ेया तिन घर नाही मानों सत्य सत्य सब हाल ३२

सुनिकै बातैं ये माहिल की करिया चरणन शीश नवाय॥
बिदा माँगिकै फिरि माहिलसों तम्बू तुरत पहूंचा आय ३३
हुकुम लगायो सब क्षत्रिनको ह्याँते कूच देव करवाय॥
करो तयारी अब मोहबे की सीताराम चरणको ध्याय ३४
सुनिकै बातैं ये करिया की क्षत्री सबै भये हुशियार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न भे असबार ३५
कूच के डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
चलिभो करिया फिरि मोहबेको मनमें किहे गंगको ध्यान ३६
त्यही समइया की बातैं हैं यारो सुनिल्यो कान लगाय॥
चारो भाई हैं बकसर के जिनका कही बनाफरराय ३७
रहिमले टोंडर बच्छराज औ चौथे देशराज महराज॥
मीराताल्हन हैं बनरस के जिनकेनौलड़िकाशिरताज३८
अली अलोमत औ दरियाखां बेटा जानबेग सुल्तान॥
मियांबिसारत औ दरियाई नाहर कारे औ कल्यान ३९
कारे बाना करे निशाना कारे घोड़न पर असवार॥
चीरा शिर पर है सुलतानी मीराताल्हन केर कुमार ४०
ये सब मिलिकै यकठौरी ह्वै डाँड़ पै किहेनि बखेड़ाजाय॥
जयचँद केरी तहँ ठकुरी है जिनका कही कनौजीराय ४१
सब फिरियादी गे कनउज को पहुँचे नगर महोबा जाय॥
नगर महोबा सों कनउज को रस्ता सीध निकरिगै भाय ४२
यक हरिकारा सों पूँछत भे चारों भई चारों भई बनाफरराय॥
जावा चाहैं हम कनउज को जहँपै रहे चँदेलोराय ४३
सुनिकै बातैं इन चारों की सोऊ कहा वचन हर्षाय॥
कौने मतलब को जावतहौ हमते सत्य देव बतलाय ४४

सुनिकै बातैं हरिकारा की ताल्हन ब्बला बनारसक्यार॥
भयो बखेड़ा है धूरेपर हुँवनाचली विषमतलवार ४५
हम फिरियादी कनउज जावैं राजा जयचँद के दरबार॥
सुनिकै बातैं ये ताल्हनि की सोऊ बोला बचन उदार ४६
उन घर नायब चंदेलो है जो परिमाल मोहोबे क्यार॥
एक महीना की छुट्टीलै आयो घरै आपने यार ४७
तुमचलिजावो परिमालिकढिग तौ सब काज सिद्धि ह्वैजाय॥
नाहिं तो बरसैं तुमका लगिहैं मानो सत्य सत्य सबभाय ४८
सुनिकै बातैं हरिकारा की ये चलिगयो जहाँ परिमाल॥
तुरतै मिलिकै परिमालिक सों अपनो गायगयो सबहाल ४९
बड़ी प्रीतिसों परिमालिक तब इनको द्वार दीन टिकवाय॥
सिधा मँगायो सब क्षत्रिन को ताल्हनि खानादीन मँगाय ५०
बनी रोसइयाँ रजपूतन की क्षत्रिन जेइँ लीन ज्यँवनार॥
अब यहु लड़िका जम्बैवाला ठाकुर माड़ोका सरदार ५१
दावतिआवै सो मोहवे को करिया करिया के अनुमान॥
बजैं नगाड़ा त्यहि फौजन माँ भारी होय घोर घमसान ५२
सुन्यो नगाड़ा के शब्दन को चकृत भयो रजापरिमाल॥
तब हरिकारा दुइ आवतभे तेसब कह्यो वहाँ परहाल ५३
सुनिकै बातैं हरिकारा की फाटक बन्द लीन करवाय॥
तवलों करिया फौजे लैकै फाटक उपर पहूँचा आय ५४
हुकुम लगायो रजपूतन को कुल्हड़न फाटक देव गिराय॥
मर्दिगर्दि करि सब मोहवे को नेका टकालेउँ निकराय ५५
तौतौ लरिका मैं जम्बै का नहिं ई डारों मुच्छमुड़ाय॥
नीके गहना ये देहैं ना कादर बंश चँदेलाराय ५६

सुनिकै बातैं ये करिया की क्षत्रिन लिह्यो कुल्हाड़ाहाथ॥
मरैं कुल्हाड़ा फिरि फाटक में नायकै रामचन्द्र को माथ ५७
यह गति चारो भाइन दीख्यो ताल्हन बनरस को सरदार॥
पांचों मिलिकै सम्मत करिकै गरुई हांक दीन ललकार ५८
जल्दी खोलो अब फाटक को सूरति द्दखों करिंगा केरि॥
जान न पाई माड़ोवाला मारों एक एक को हेरि ५९
यह कहि फाटक को खुलवायो औ फौजनमाँ परेदबाय॥
मारन लागे चारो भाई जिनका कही बनाफरराय ६०
जौनी दिशि को ताल्हन जावैं कोउ न पैर अड़ावै ज्वान॥
जौनी दिशिको बच्छराजजायँ त्यहिदिशिमारिकरैंखरिहान ६१
को गति बरणै देशराजकै सरबरि करै कौन सरदार॥
बड़ा लड़ैया रहिमलटोंडर दोऊहाथ करैं तलवार ६२
मूड़नकेरे मुड़चौरा भे औ रूंडनके लाग पहार॥
खूनकि नदिया तहँ बहि निकरी जूझे बड़े बड़े सरदार ६३
बड़ा लड़ैया माड़ोवाला यहु जम्बैको राजकुमार॥
ताल्हनकेरे यहु मुरचापर कीन्हेसि पाँचघरी तलवार ६४
जीति न दीख्यो जब ताल्हनसों तब फिरि भागा लिहेपरान॥
बचे खुचे जे माड़ोवाले तेऊ भागिगये सब ज्वान ६५
यह सुनि पावा रनिमल्हनाने चारिउ कुँवर लीन बुलवाय॥
बड़ी बड़ाई करि चारों की औ परिमालसों कहा बुझाय ६६
इन्हैं टिकावो तुम मोहबे माँ इनके ब्याह देव करवाय॥
ईजति हमरी इन राखी है औ गाढ़ेमाँ भये सहाय ६७
बातैं सुनिकै रनिमल्हना की फिरि दरबार पहूंचे आय॥
देशराज औ बच्छराज को दोउन लीन्ह्यो हृदयलगाय ६८

तिनसोंबोल्योपरिमालिकफिरि हमरी बातसुनो दोउभाय॥
दूध पूत औ धनदौलत के मालिक तुम्हीं बनाफरराय ६९
मीराताल्हन बनरस वाले तिनसों बोल्यो रजापरिमाल॥
फौजनकेरे तुम मालिकहौ हमरे बचन करी प्रतिपाल ७०
नाई बारी को बुलवायो तिनसों कह्यो वचन समुझाय॥
जाति बिरादर जहँ हमरे हैं तिनका खबरि सुनाबो जाय ७१
लरिका क्वारे परिमालिक घर ब्याहन योग भये हैं आय॥
क्वारी कन्या जिनघर होवैं टीका तुरत देयँ पठवाय ७२
सुनिकै बातैं परिमालिक की नाइन पतालगायो जाय॥
दलपतिराजा ग्वालीयर का त्यहि फिरि टीका दीनपठाय ७३
देशराज औ बच्छराज को लैकै पहुँचिगयो परिमाल॥
द्यावलि बिरमॉ दूनो कन्या इनको ब्याहिदीन नरपाल ७४
देशराज का द्यावलि सँगमें बिरमाँ बच्छराज के साथ॥
ब्याहिकैचलिभेपरिमालिकफिरि मनमें सुमिरि भवानीनाथ ७५
दोनों बहुवन को सँग में लै मोहवे आयगये परिमाल॥
खबरि जनायो यह सखियनने मल्हनाबहुतभईखुशियाल ७६
दौरति, आई फिरि द्वारेपर औ आरती उतारी आय॥
बॉह पकरिलइ दोउ बहुवन की राखी रंगमहल में जाय ७७
हार नौलखा के लेवे को आयो रहे करिंगाराय॥
स्वई हार लै रानी मल्हना औद्यावलिको दीन पहिराय७८
दूसर हार और तैसै लै विश्मागले दीन फिर डार॥
अनँद बधैया बाजन लागी घर घर होयँ मंगलाचार ७९
को गति बरणै त्यहिसमया कै हमरे बूत कही ना जाय॥
सुखसोंसोयोपरिमालिक फिरि मल्हना संग महल हर्षाय ८०

सवैया॥

सोय उठी परिमाल कि नारि तबै मनमें यह सोचन लागी।
मंदिर एक कसामसि होय नई दुलही सुलही बड़ भागी॥
दुःख मिलै इन नारिन को मन में यह सोचि उरै अनुरागी।
सोय उठे ललिते परिमाल तबै यह नारि सुनावन लागी ८१
सुनिकै परिमाल कह्योहँसिकै इनको हम आनहि ठौर टिकावैं।
उठिकै पुर दूर कछू यक जाय तहां पुरवा कर नेव डरावैं॥
नामधर्यो दशहरिपुर ताहि यहाँ दउकुँवरन फेरि बुलावैं।
ललिते द्वउबन्धु टिकेतहँजाय न गायसकों जोमहासुखपावैं ८२
को गति बरणै त्यहि पुरवा कै हमरे बूत कही ना जाय।
तहँही द्यावलि के आल्हा मे प्याट म रहे उदयसिंहराय ८३
बिरमा केरे मलखाने भे सुलखे गये गर्भ में आय॥
तबहीं करिया माड़ोवाला आधीरात पहूँचा आय ८४
सोवत मार्यो बच्छराज को काट्यो देशराज शिरजाय॥
आगि लगायो फिरि पुरवा में सबियाँ जेवर लीन मँगाय ८५
लीन्ह्यो हाथी देशराज का घोड़ा पपिहा लिह्यो खुलाय॥
लखा पतुरिया देशराज की सोऊ करिया लीन बुलाय ८६
मालखजाना परिमालिक का सबियाँ बेगि लीन लुटवाय॥
हार नौलखा को लैकै फिरि मोहबेते कूच दीन करवाय ८७
आठरोजकी मंजिल करिकै माड़ो गयो करिंगाराय॥
खबरि सुनाईती माहिलने सोऊ गयो तहाँ फिरि आय ८८
बड़ी बड़ाई भै माहिलकै राजा जम्बै के दरबार॥
अनँद बधैया माड़ो बाजी घरघरभये मंगलाचार ८९
ब्रह्मारंजित भे मल्हना के ओ द्यावलिके उदयसिंहराय॥

सुलखे पैदा भे बिरमा के ताकी खुशी कही ना जाय ९०
देवा पैदाभा भीषम के ठाकुर मैनपुरी चौहान॥
सो भा साथी बघऊदन का ज्वानों सुनो चित्तदै कान ९१
याबिधि लड़िका इकठौरी ह्वै बाँधे छोटि छोटि तलवार॥
छूटि छूटि ढालैं सोहैं पीठि में शिरपर पगिया करैं बहार ९२
छूटि छूटि कलँगी तिनपरसोहैं छोटी बैसनके सरदार॥
छूटि छूटि घोड़न के चढ़वैया बड़ बड़ ठकुरन केर कुमार ९३
रोज शिकारन को जावें ते बाँधे गूरा और गुलेल॥
जुलफै सोहैं तिन कुँवरन के जिनमाँ महकै अतरफुलेल ९४
आगे घोड़ा है आल्हा को पाले जायँ वीर मलखान॥
तिनके पीछे ब्रह्मा सोहैं पीछे उदयसिंह बलवान ९५
सुलखे भाई मलखाने का सोऊ लीन्हे हाँथ गुल्याल॥
हिरना हूँ सब जंगल माँ एक ते एक दई के लाल ९६
हिरना पायो नहिं जंगल में लौटे फेरि महोवे बाल॥
एक न लौट्यो उदयसिंह तहँ नाहर देशराजका लाल ९७
सो यह सोचै मन अपनेमाँ औ मनहीमाँ करै विचार॥
हम कहिओये हैं माता सों माता लावैं आज शिकार ९८
हिरना मारे बिन जावैं ना हमरो याही ठीक बिचार॥
यहै सोचि कै मन अपने माँ ढूंढन लाग्यो तहाँ शिकार ९९
हिरनादीख्यो इक झाबर में मारन चल्यो वनाफरराय॥
हिरना भाग्यो तहँ उरईको माहिल बाग पहूँचा जाय १००
घोड़ दुला को रपटाये पाछे चला बनाफर जाय॥
खाँई ऊंची त्यहि बगियाकी ऊदन घोड़ा दीन फँदाय १०१
मारि बेंदुला की टापन सों सबियाँ बगिया दीन खुदाय॥

छोटि दरक्खत बहु टूटत भे रौसैं पटरी दई गिराय १०२
यहगति दीख्यो जब मालिनने बोल्यो उदयसिंहते आय॥
कौने राजा के लरिकाहौ सबियाँ डार्यो बाग नशाय १०३
काह नाम है सो बतलावो आपन देश देव बतलाय॥
सुनिकै बातैं त्यहि मालीकी बोल्यो तुरत बनाफरराय १०४
देश हमारो नगर महोबा हमरो उदयसिंह है नाम॥
फिरिकै माली अब बोलेना नाहिं तो पठैदेवँ यमधाम १०५
सुनिकै बातैं बघऊदन की माली चुप्प साधि तब लीन॥
सुमिरि भवानी शिवशंकरको ह्याँते कलम बन्दकै दीन १०६
आशिर्बाद देवँ मुंशीसुत जीवहु प्रागनरायण भाय॥
कीरति तुम्हरी जो सब गावैं तौफिरि कथाबहुतबढ़िजाय १०७
माथ नवाबों पितु अपने को जिनम्बहिं बिद्यादीन पढ़ाय॥
सो सुख पावैं देवलोक में गावैंललितचरितनितध्याय १०८
अब में ध्यावों रामचन्दको जो मम इष्टदेव महराज॥
ईज्ति हमरी जग में राखैं पुरवैं सकल हमारे काज १०९

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी, आई, ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूमयागना-
रायणजीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँडरीकलांनिवासिमिश्रबंशोद्भव
बुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ ललिताप्रसादकृतमहोवायुद्धऊदनशिकार
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः १॥

महोबेकाप्रथमयुद्धसमाप्त॥


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