सामग्री पर जाएँ

आल्हखण्ड/७ उदयसिंह का विवाह

विकिस्रोत से
आल्हखण्ड
जगनिक

पृष्ठ २३९ से – २८२ तक

 

अथ पाल्हखण्ड॥ उदयसिंहकाबिवाह अथवा नरवर की लड़ाई। सवैया॥ भो प्रभु दीनदयाल गुपाल सदा नंदलाल दोऊ पदध्यावों । सागर कीर्ति सबै गुण आगर नागर मोहनलाल बतावों ।। स्वर्ग शो नर्क रहूँ कतहूं पै सदा शुचिसों तुम्हरो गुणगावों। याँच यही ललिते कर साँच मिलें रघुनन्दन सो बर पावों ? सुमिरन ॥ दोउपद ध्यावों बड़े प्रेम सों स्वामी कृष्णचन्द्र महराज ।। काज सँवास्यो धर्मराज के राख्यो द्रुपदसुता की लाज ? कंस पछारयो यदुनन्दन तुम दीन्यो उग्रसेन को राज। सदा पियारे तुम भवन के हमरे माननीय शिरताज २ भक्त तुम्हारे सुखी न देखे आवत नाम वतावत लाज ।।

भक्त सुदामा जग में जाहिर दूसर जनकपुरी दिजराज ३

लक्ष्मीपति तुमको सब जानत चाहत सरन आपनो काज॥
भूप युधिष्ठिर की गति देखी बनमाँ रहे छूटिगै राज ४
वस्त्र न देखा जिन देहीमां केवल चढ़ी भस्म सब अङ्ग॥
रावण वाणासुर को देखा जिन सों जुरी आपसों जङ्ग ५
छूटि सुमिरनी गै देवन कै औ ऊदन का सुनो विवाह॥
घोड़ खरीदन कावुल जैहैं पई मोहवे का नरनाह ६

अथ कथाप्रसङ्ग॥


एक समैया परिमालिक का भारी लाग राजदरवार॥
बैठे क्षत्री सब महिफिल हैं एकते एक शूर सरदार १
पारस पत्थर ज्यहि के घरमा लोहा छुये सोन ह्वैजाय॥
कौन बड़ाई तिनकै करिकै शोभा बरणि पार लै जाय २
माहिल शाले परिमालिक के सोऊ गये तहां पर आय॥
देखि बनाफर उदयसिंह को माहिल पीर भई अधिकाय ३
माहिल बोले तहँ राजा सों मानो कही चँदेलेराय॥
नाम तुम्हारो देश देश में तुम पर कृपा कीन रघुराय ४
एक बात की अब कमती है सो बिन कहे रहा ना जाये॥
घोड़ तुम्हारे घर कमती हैं बूढ़े घोड़ भरे अधिकाय ५
रुपिया पैसा की कमती ना थोड़े घोड़ लेउ मँगवाय॥
अवैं बछेड़ा कावुलवाले तौ फिरि नामहोय अधिकाय ६
इतना सुनिकै राजा बोले कावुल कौन खरीदन जाय॥
हाथ जोरिक ऊदन बोले कावुल हमैं देउ पठवाय ७
सुनिकै बातैं बघऊदन की राजा गये सनाका खाय॥
बोलि न आवा परिमालिक ते मुहँका बिरागयो कुम्हिलाय ८
कलँगी गिरिगै फिरि पगड़ी ते काँपन लाग चँदेलोराय॥

रोंवाँ ठाढ़े भे देही के नैनन दीन्ह्यो झरी लगाय ९
माहिल बोले परिमालिक ते काहे शोच कीन अधिकाय॥
लड़िका बाउर ऊदन नाहीं जो तुम डरो चँदेलेराय १०
इनते बढ़िकै को मोहबेमाँ घोड़ा जौन खरीदन जाय॥
है गर्दाना इनको बाना कालौ लड़ै न सम्मुख आय ११
कहिकै पलटत नहिं ऊदन हैं जानो भली भांति महराज॥
भय नहिं लावो अपने मनमाँ करि हैं सिद्धकाज रघुराज १२
बातैं सुनिकै ये माहिलकी बोले फेरि रजापरिमाल॥
तुम भल जानत हौ ऊदन को कलहा देशराजको लाल १३
रारि मचाई यहु मारग में आई फेरि व्याधि कछु भाय॥
बात चलाई तुम ऐसी है जासों शोचभयो अधिकाय १४
सुनिकै बातैं परिमालिक की बोला उदयसिंह सरदार॥
शपथ शारदा शिवशङ्कर की हम काबुल को खड़े तयार १५
भली बताई माहिल मामा राजाकरो बचन बिश्वास॥
यक अवलम्बा जगदम्बा का सोई पूरि करैं सब आश १६
क्षत्री ह्वैके समरसकावै त्यहि को बार बार धिक्कार॥
बाँझै होवै सो नारी जग नाहक रखै पेटमें भार १७
बेद यज्ञ औ दान युद्ध ये क्षत्री केर रूप श्रृंगार॥
ये नहिं होवैं ज्यहि क्षत्री के त्यहि को बार बार धिक्कार १८
एक ऋचा गायत्री जानै सोऊ बेद पढ़ैया ज्वान॥
ब्राह्मण क्षत्री बनिया तीनों यासोंविमुखश्वानअनुमान १९
वा सुनिकै वघऊदन की बोले फेरि रजापरिमाल॥
कहा न मनिहौ तुम बच्चा अब कलहा देशराज के लाल २०
देवा ठाकुर को सँग लैकै कावुल घोड़ खरीदो जाय॥

१६

रारि मचायो कहुँ मारग ना मान्यो कही बनाफरराय २१
इतना कहिकै परिमालिकने फिरि यह हुकुम दीन फरमाया॥
पंद्रह खबर मुहरै लैकै कावुल जाउ लहुरवा भाय २२
सुनिकै बातैं परमालिक की दोऊ हाथ जोरि शिर नाय॥
बिदा मांगिकै परिमालिकते मल्हना महल पहूँचाजाय २३
कही हकीकति सब मल्हनाते ऊदन बार बार शिरनाय॥
करतब जान्यो जब माहिलकै मल्हना बारबार पछिताय २४
पै भलजानै अपने मनमाँ मानी नहीं लहुरवाभाय॥
तासों रोंक्यो महरानी ना आशिर्वाद दीन हर्षाय २५
बिदा मांगिकै ऊदन चलिभा दशहरिपुरै पहूँचा जाय॥
हालबतायो सब माता को ऊदन बार बार समुझाय २६
सुनिकै बातैं बघऊदन की भौजी माता उठीं रिसाय॥
तुम नहिंजावो अब काबुलको ऊदन काह गये बौराय २७
आल्हा बरज्यो मल ऊदन को नीक न करो लहुरवाभाय॥
तुम्हैं पठावत नहिं राजा हैं तुमहीं कौन हेतु को जाय २८
बातैं सुनिकै ये आल्हा की ऊदन कहा वचन शिरनाय॥
हम तो जैवे अब कावुल को बहुतनधजीधजीउड़िजाय २९
हम को वरजो अब भाई ना इतना प्यार करो अधिकाय॥
बातैं सुनिकै बधऊदन की आल्हा चुप्पसाधि रहिजाय ३०
पायॅ लागिकै फिरि माता के औ सुनवाँ को शीशनवाय॥
बिदा मांगिकै बड़भाई सों ऊदन कूच दीन करवाय ३१
घोड़ मनोहर देवा बैठा ऊदन बेंदुलपर असवार॥
चला काफिला फिरिकाबुलको दोऊ चले शूर सरदार ३२
एक कोस जब नरवर रहिगा ऊदन बोले वचन सुनाय॥

कौन शहर है देबा ठाकुर हमको साँच देउ बतलाय ३३
देबा बोला तब ऊदन ते जानो नहीं हमारो भाय॥
इतना कहिकै दूनों चलि भे रहिगा पावकोस फिरिआय ३४
तहँ चरवाहन को देखत भो तिनसों कह्यो बनाफरराय॥
कौन शहर औ को राजा है हमको साँच देउ बतलाय ३५
सुनिकै बातैं बघऊदन की बोला अहिरपूत तब भाय॥
नरपति राजा नरवरगढ़ है ओ परदेशी बात बनाय ३६
इतना सुनिकै दूनों चलिभे पुर के पास पहूंचे जाय॥
तहाँ जखेड़ा बहु नारिन को खैंबैं बारिकप में आय ३७
को गति बरणै तिन नारिन के पतली कमर तीनिबलखाय॥
दाँत अनारन के बीजासम भीसी हँसत परै दिखलाय ३८
परी बतीसी है पानन कै आननकमलखिलाजसभाय॥
छाती सोहैं नवरंगी सम घुण्डी भौंर सरिस दिखरायँ ३९
गजकीशुण्डा सम भुजदण्डा अजंघा कदलिथम्म अनुमान॥
रूप देखिकै तिन नारिन का हा होय अनेकन ज्वान ४०
ऐसी बाला सब आला हैं नाभी यमुन भँवरसम भाय॥
रूप देखिकै तिन नारिन का पहुंचा पास बनाफरराय ४१
मनमाँ सोचा उदयसिंह तब औ यह ठीक लीन ठहराय॥
जौने पुरकी अस नारी हैं रानिनरूप बरणि ना जाय ४२
यह सोचिकै बघऊदन फिरि बोला एक नारिके साथ॥
पूरब तेनी पश्चिम आये बाबा सूर्य चराचर नाथ ४३
घोड़ पियासा अति हमरो है याको पानी देउ पियाय॥
बातैं सुनिकै ये ऊदन की बोली तुरत नारि रिसियाय ४४
करन दिल्लगी हमसो आयो क्षत्री घोड़े के असबार॥

पनी पियावन अब घोड़े का फेरि न कह्यो दूसरीबार १५
नरपति राजा यहि नगरी का सबविधि शूरबीर सरदार॥
टरिजा टरिजा अब जल्दी सों क्षत्री घोड़े के असवार ४६
इतना सुनिकै उदन बोले अब ना बोले फेरि गवाँरि॥
ऐसी बातैं जो फिरि बोलै तो मुहँ घाँसिदेउँ तलवारि ४७
नरपति खरपति कै गिनतीना बर बर करै बैलनी नारि॥
काह हकीकति है नरपति कै हमरे साथ करै तलवारि ४८
सुनिकै बातैं ये ऊदन की सहमी तहाँ तुरत सो नारि॥
औरी नारी त्यहि सों बोलीं आई संग भरन जे बारि ४९
रूप उजागर सब गुण सागर नागर घोड़े को असवार॥
करूई वाणी नाहक बोलिउ बहिनी मानों कही हमार ५०
यहु बर लायक है फुलवा के सबविधि रूपशील गुणवान॥
वह तो बोली भल धीरज में परिगई बनाफर कान ५१

सवैया॥


ऊदन बोलिउठा त्यहि नारियाँ कौनअहै फुलवा सहिदानी।
देहु बताय न राखु छिपाय चुभी मनमें सुनिबे को कहानी॥
कोमल बैन सुन्यो जब भामिनि बोलिउठी तबहीं यह बानी।
नरपतिकी कन्या लखिकै ललिते रतिहू मनमें सकुचानी ५२



त्यहि की समता सुन्दरता की यहिपुर नारिकौन वहिकाल॥
काह बतावों परदेशी मैं फूलन शयनकरै वह बाल ५३
त्यहिमुख फुलवाकी गाथामुनि ऊदन आगम गयो जनाय॥
दक्षिण बाहू फरकन लाग्यो दहिने भई शारदा माय ५४
यादि आयगें फिरि माड़ो कै जो कछुकहानिबिजैसिनिवाल॥

बाण लागिगा उर मन्मथ का घायल देशराजका लाल ५५
आदर करिकै फिरि देबा का बोला उदयसिंह सरदार॥
अब दिन थोड़ा अतिबाकी है देखो चलैं शहर को यार ५६
आखिर सोना है बिस्तातर सबदिन मारग में सरदार॥
भागि भरोसे शहर जो पावा तौकस त्यागि चलैंयहिवार ५७
सुनिकै बातैं ये ऊदन की देबा मैनपुरी चौहान॥
ज्योतिष बिद्या के परचय से जाना कुशलकरी भगवान ५८
देबा बोला फिरि ऊदन सों मानो कही लहुरवाभाय॥
द्रब्य बांधिकै पर पुर जैये यहनाहिं हृदयमोर पतियाय ५९
तासों रहिबो तर बिरवा के नीकी बात बनाफरराय॥
द्रव्य प्राण की घातक जानो मानो साँच बचन तुमभाय ६०
इतना सुनिकै ऊदन बोले दाँची मानो कही हमार॥
भय उर सखो कछु जियरे ना चलिये टिकैं यहाँ सरदार ६१
इतना कहिकै बघऊदन ने आगे दीन्ह्यो घोड़ बढ़ाय॥
पाछे चलिभा देबाठाकुर मनमें बार बार पछिताय ६२
जायकै पहुंचे फुलबगिया में मालिन भीर दीखअधिकाय॥
तहाँ पै उतरे बघऊदन जब माली पास पहूँचा आय ६३
माली बोला बघऊदन ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
चलिकै उतरो चहु मोरे घर ह्याँनहिंटिको मुसाफिरभाय ६४
यह फुलवाई महराजा की ह्याँसों मेख लेउ उखराय॥
सुनिकै बातैं त्यहि माली की चुप्पै मुहरै दीन गहाय ६५
पांच अशर्फी माली पायो मनमाँ बड़ा खुशी ह्वैजाय॥
हाथ जोरिकै माली बोला द्वारे टिको चलै तुम भाय ६६
द्वारे कुइँयाँ मीठा पानी नींबी वृक्ष तहाँ अधिकाय॥

हाटक निकटै म्बरे द्वारे के सीधा घास लिह्यो मँगवाय ६७
सुनिकै बातैं त्यहि माली के ऊदन कूच दीन करवाय॥
द्वारे पहुंचे फिरि माली के मेखै तहाँ दीन गड़वाय ६८
मांगिकै पलँगा माली लायो द्वारे तुरत दीन डरवाय॥
गद्दा परिगा मखमलवाला आला बैठ बनाफरराय ६९
माली चलिभा फुलवगियाका मालिनि द्वार पहूँची आय॥
मालिनि बोली उदयसिंह ते ठाकुर हाल देउ बतलाय ७०
कहाँ ते आये औ कहँ जैहौ तुम्हरो काह नाम है भाय॥
बातैं सुनिकै ये मालिनि की बोले तुरत बनाफरराय ७१
नाम हमारो उदयसिंह है हमरो देश मोहोबा जान॥
छोटे भैया हम आल्हा के साँचे बचन हमारे मान ७२
सुनिकै बातैं ये ऊदन की मालिनि फेरि कहा शिरनाय॥
आल्हा बेहे कौन शहर में साँची साँची देउ बताय ७३
सुनिकै बातैं ये मालिनि की बोला उदयसिंह सरदार॥
भैया ब्याहे नैनागढ़ माँ सुनवाँभौजी आय हमार ७४
बड़ी खुशाली भै मालिनिके बोली हाथ जोरि शिरनाय॥
हमहूँ सुनवाॅ साथै खेलीं हिरिया नाम हमारो भाय ७५
मैको हमरो है नैनागढ़ सुनवाँ बहिनी लगै हमारि॥
चलिकै बैठो म्बरे मन्दिर में देवर सेवा करों तुम्हारि ७६
बातैं सुनिकै ये हिरिया की भा मन खुशी बनाफरराय॥
दिह्योअशर्फी दश मालिनिको औयहबोल्योवचनसुनाय ७७
सीधा लावो तुम लरिकनको भोजन बेगि पकावो जाय॥
दिना चारि यहि पुरमा रहिकै पाछे कूच देव करवाय ७८
बातैं सुनिकै ये ऊदन की मालिनि बैठि धाम में जाय॥

माली आवा जब बगिया ते तबसब हाल कहे समुझाय ७९
देबा बोला ह्याँ ऊदन ते अब रंग और परै दिखराय॥
काहे अटक्यो तुम नरवर में साँचे हाल देव बतलाय ८०
बातैं सुनिकै ये देबा की बोला उदयसिंह सरदार॥
फुलवा बेटी जो नरपति की तामें लाग्यो चित्त हमार ८१
कीनि प्रतिज्ञा हम अपने मन साँची तुम्हैं देयँ बतलाय॥
नैनन दीखे बिन फुलवा को ना हम धरब अगाड़ीपायँ ८२
सुनिकै बातैं ये ऊदन की देबा बोला बचन बनाय॥
ऐसी करिहौ जो बधऊदन तौ सब जैहैं काम नशाय ८३
घोड़ खरीदन को आये तुम नरवर नैन खरीदे आय॥
काह बतैहौ तुम राजा ते सोऊ कहो लहुरवाभाय ८४
तुमका सोंप्यो महसजा म्बहि ऊन तुम्बाह गयो बौराय॥
तनिक मिहिरिया के देखै का आमफुलदेहौ लाज गावाँय ८५
अबै न बिगरा कछु बघऊदन ह्याँ ते कूच देव करवाय॥
सुनिकै बातैं ये देबा की बोला फेरि बनाफरराय ८६
मोहिं भरोसा है शारद को देबा मैनपुरी चौहान॥
घोड़ खरीदन फिरि हम जैहैं करि हैं कुशलमोरिभगवान ८७
पै मन भटको है फुलवा में हटको मानै नहीं हमार॥
खटको भटको पटको झटको सोवो आज यहाँ सरदार ८८
इतना कहतै बघऊदन के दोऊ नैन गये अलसाय॥
देबा ऊदन दोऊ सोये चकरन पहरादीन बिठाय ८९
सोयकै जागे जब बघऊदन प्रातःक्रिया कीन हर्षाय॥
फेरिकै पहुँचे मालिनि घरमाँ मालिनि हरवा रही बनाय ९०
ऊदन बोले तह मालिनि सों हिरिया भौजी बात बनाय॥

लाव मलाई अब जल्दी सों दौरति चली बजारै जाय ९१
इतना सुनिकै हिरिया बोली साँची सुनो बनाफरराय॥
हार छोंड़िकै जाउँ बजारै तौ तकसीर बड़ी ह्वैजाय ९२
तनकिउ देरी हमका लागी फुलवा जाई बेगि रिसाय॥
बातैं सुनिकै ये हिरिया की बोले फेरि बनाफरराय ९३
हार तुम्हारो हम गूंथत हैं मालिनि जाउ बजरिया धाय॥
पांच अशर्फी ऊदन दीन्ह्यो मालिनिचली तड़ाकाजाय ९४
बेला चमेली औ निवारिको ऊदन हार कीन तय्यार॥
मालिनि आई जब बजारते देखा चार लरिनको हार ९५
हिरिया बोली तब ऊदन ते देवर मानो कही हमार॥
हार दुलरिया रोज बनावों चौलर आज भयो तय्यार ९६
कर्री गांठी तुम्हरी की फूलन खूब सटा है यार॥
हाल जो पूँछी फुलवहर में उत्तर काह देब सरदार ९७
बातैं सुनिकै ये मालिन की बोला उदयसिंह त्यहिबार॥
बिटिया आई म्बरि बहिनी कै ताने हार कीन तय्यार ९८
इतनासुनिकै हिरियामालिनि तुरतै डिलिया लीन उठाय॥
जहँना बेटी रह नरपति कै मालिनि तहाँ पहूंची जाय ९९
बैठि पलँगरा फुलवा बेटी मालिनि हार दीन पहिराय॥
चार लरिन को हरवा दीख्यो फुलवा बोलीवचनरिसाय १००
रोज दुलरिया ले आवति थी कौने गुँधा चौलंराहार॥
साँच बतावै री मालिनि अब नाहीं पेट फरैहौं त्वार १०१
इतना सुनिकै मालिनि बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
बिटिया आई म्बरि बहिनी कै ताने हार बनायो आय १०२
वह तो ब्याही है मोहबे माँ जहँपर बसें रजापरिमाल॥

पारस पत्थर तिनके घरमाँ उनकी रय्यति सबै निहाल १०३
बातैं सुनिकै ये मालिनि की फुलवा हुकुमदीन फरमाय॥
हार बनायो ज्यहि मालिनि है मोको बेगि दिखावै आय १०४
इतना सुनिकै मालिनि चलिभै मनमाँ बार बार पछिताय॥
ज्यों त्यों आई घर अपने को तहँपर मिले बनाफरराय १०५
हाल बनायो सब फुलवाको मालिनि बार बार समुझाय॥
मारे डरके पिंडुरी काँपैं जर्दी आनन परै दिखाय १०६
ऊदन बोले तब मालिनि ते काहे शोच करो अधिकाय॥
नई पुरानी जेवर लैकै हमको देउआय पहिराय १०७
देखन जैसे हम फुलवा को मालिनि मानो कही हमार॥
शंका लावो कछु जियरे ना तुम्हरो जाय न बांकोबार १०८
कौन दुसरिहा जग हमरो है जो तुम्हरे तन करै निगाह॥
निश्चय जानो अपने मनमाँ हमफलवाते करव बिवाह १०९
बातैं सुनिकै उदयसिंह की मालिनि शंका दीन भुलाय॥
तुरतै गहना को लै आई पहिरनलागलहुरवाभाय ११०
मिस्सी रगरी सब दाँतन में तापर लीन्ह्यो पान चवाय॥
काजल आँज्यो दोउ नैनन में शोभा कही बूत ना जाय १११
बेंदी बँदनी टीका तीनों मस्तक ऊपर धरा सँवार॥
करनफूल कानन में पहिरा तामें गुज्झी करैं बहार ११२
मोहनमाला मोतिनमाला पहिरे और फुलनके हार॥
बाजू जोसन टाड़ै तीनों दोऊभुजा पहिरि सरदार ११३
नीले रँगकी चुरियाँ पहिरी गोरे हाथनका शृङ्गार॥
अगे अगेला पिछे पछेला तिनबिचककनाकरैंवहार ११४
छल्ले पहिरे सब अँगुरिन में अँगुठा लीन आरसी धार॥

पहिरि करधनी ली कम्मर में पायँन पायजेब झनकार ११५
कड़ाके ऊपर छड़ा बिराजै नीचे मेंहदी करै बहार॥
बिछवापहिरे सब अँगुरिन में अनवटअँगुठनकाश्रृंगार ११६
बेष जनाना ऊदन धरिकै तुरतै पलकी लीन मँगाय॥
बैठ पालकी में नरनाहर मनमें सुमिरिशारदामाय ११७
हिरिया मालिनि को सॅगलैकै फुलवा महल गयेनगच्याय॥
उतरि पालकी सों नरनाहर शारदचरणकमलफिरिध्याय११८
आगे हिरिया पाछे ऊदन फुलवा पास पहूँचे जाय॥
फुलवा दीख्यो जब ऊदन को मनमाँ बड़ी खुशी ह्वैजाय ११९
रूप देखिकै त्यहि मालिनिको मनमाँ गई सनाकाखाय॥
कै पैताना खाली दीन्ह्यो आदरकीनफेरिअधिकाय १२०
बैठि उसीसे जब ऊदनगे फुलवा बोली बचन रिसाय॥
कैसी मालिनि यह लाई है मालिनिहालदेयबतलायं १२१
मालिनि बोली तब फुलवाते बेटी साँची देयँ बताय॥
बेटी प्यारी परिमालिक की नौकरितासुपासकीआय १२२
राजनीति का यह जानति है राखति स्वऊ सखी का भाय॥
बैठि उसीसे यह जावै जो तौ वह क्षमा करै हर्षाय १२३
सुनिकै बातैं ये मालिनि की फुलवा क्षमा कीन सुखपाय॥
हँसिकै बोली फिरि मालिनिते साँची साँची देउ बताय १२४
कौन बहादुर परिमालिक घर कारो राजपुत्र यहिकाल॥
बातैं सुनिकै ये फुलवाकी बोला देशराजका लाल १२५
आल्हा ब्याहे हैं नैनागढ़ पथरीगढ़ै वीर मलखान॥
पिरथी घरमाॅ ब्रह्मा ब्याहे ठाकुर दिल्लीके चौहान १२६
कारो इकलो बघऊदनहै ज्यहिकै बेंड़ि बहै तलवार॥

बड़ा लड़ैया जगमाँ जाहिर ठाकुर बेंदुलका असवार १२७
इतना सुनिकै फुलवा बोली मालिनि साँच देउ बतलाय॥
हाथ पैर पुरूषन के ऐसे कर्रे कर्रे परैं दिखाय १२८
इतना सुनिकै मालिनि बोली साँचे बचन करों परमान॥
भैंसि चराई बालापनमाँ माता पिता दरिद्रीजान १२९
परी व्यवस्था लरिकाई में ताको करी कहाँलगगान॥
जैसी गुजरी हमरे ऊपर ऐसी परै न काहू आन १३०
फुलवा बोली फिरि हिरिया ते मालिनि जाउ घरै यहिबार॥
काल्हि सबेरे यहि लैजायो साँची मानो कही हमार १३१
इतना सुनिकै हिरिया चलिभै अपने घरै पहूँची आय॥
फुलवा बाँदी को बुलवायो तासों चौपरिलीन मँगाय १३२
खेलन लागी मालिनि सँगमाँ आधी राति गई नगच्याय॥
लैकै पंखा बाँदी हाँकै ऊदन केर वस्त्र उड़िजाय १३३
कब्जा झलकै तलवारी का सो फुलवा के परा निगाह॥
फुलवा बोली तब मालिनिते झलकैं बगल तुम्हारे काह १३४
तुम नहिं बेटीहौ मालिनिकी औ छल किह्यो यहाँपर आय॥
सुनि मकरन्दा तुमका पाई तुरतै खोदि लेइ गड़वाय १३५
अब पहिंचाना हम तुमको है बेटा देशराज के लाल॥
जियत न जैहौ तुम महलनते औपरिगयोकालके गाल १३६
नाम तुम्हारो उदयसिंह है तुमही बेंदुल के असवार॥
इतना सुनिकै मालिनि बोली कीन्ह्योनीकीआजचिन्हार १३७
कहँ पै दीख्यो तुम ऊदन को साँचे हाल देउ बतलाय॥
इतना सुनिकै सब बाँदिनको फुलवा तुरतै दीन हटाय १३८
औ फिरि बोली बदऊदन ते मानो कही बनाफरराय॥

रानी कुशला के महलन में योगीरूपधरा तुम जाय १३९
घर घर लूटा तुम माड़ो मॉ हमसों शपथकीन फिरिआय॥
भेद बतावा घर अपने का तब तुमलीन बापका दायँ १४०
ब्याह हमारो जब तुम कीन्हा मलखे हना मोहिं ततकाल॥
मिलन आपनो तुम्हैं बतावा नाहर देशराज के लाल १४१
साँचो चाहत जो जाको है ताको स्वई मिलै सबकाल॥
यह सुनि राखा हम बिप्रन सों सो सबसाँचाभयो हवाल १४२
पै गति तुम्हरी ह्याँ नाहीं है हमसों ब्याह करो सरदार॥
बड़ा लड़ैया मकरन्दा है ज्यहिते हारिगई तलवार १४३
सुनिकै बातैं ये फुलवा की बोला उदयसिंह सरदार॥
काह हकीकति मकरन्दा कै साँची मानो कही हमार १४४
भल पहिचान्यो तुम मोका है अब सब पूर भये मम काम॥
ब्याह तुम्हारो अब कीन्हे बिन लौटि न जायँ आपनेधाम १४५
इतना सुनिकै फुलवा बोली मानो कही बनाफरराय॥
काठक घोड़ा बाण अजीता जादू सेल शनीचर भाय १४६
पापी जियरा अति मेरो है ताते धीर धरा ना जाय॥
करो बियारी तुम महलन में सोवो सेज बनाफरराय १४७
ऊदन वोले तब फुलवा ते तुमको साँच देयँ बतलाय॥
क्वारी कन्या की शय्यापर कबहुँ न धरैं बनाफर पायँ १४८
धीरज राखो अपने मनमाँ सोवो तुरत सेज में जाय॥
भयो भरोसा तब फुलवा के सोई विकट नींदको पाय १४९
तारागण सब चमकन लागे सन्तन धुनी दीन परचाय॥
उये निशाकर आसमान में बिरहिनिपीरभईअधिकाय १५०
माथ नवाबों पितु अपने को ह्याँ ते करों तरँग को अन्त॥

राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १५१

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मज बाबूप्रयागना-
रायणनीकी आज्ञानुसारउन्नामपदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भवबुध
कृपाशंकरसूनु पं॰ ललिनाप्रसादकृत ऊदनफुलवामिलाप
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥१॥


सवैया॥

कौन कि आश सुपासमिलै नितहोत मनैमन याहि बिचारा।
आशकि पाश सुपास कहाँ यह सोचत मोचत दुःख अपारा॥
भीरपरी यहि लोकहिकि शिर शास्त्र औ वेद पुराण निहारा।
बाम भये रघुनाथ सों साँच करै ललिते फिरि कौन उबारा १

सुमिरन॥


मैं पद बन्दौं रिपुसूदन के लवणासुरै पराजय कीन॥
मानों शत्रुन के जीतै को साँचो जन्म शत्रुहन लीन १
काटिकै मधुवन पुरी बसायो मथुरापुरी परा त्यहि नाम॥
अश्वमेध में सब जग जीत्यो कीन्ह्यो शम्भु साथ संग्राम २
छोटे भाई लपणलाल के साँचे भये भरत के दास॥
इन यश बरणा अश्वमेध में पूरण भई हमारी आश ३
मातु सुमित्रा के बालक ये जग में भये सुयश की राश॥
जो कोउ सुमिरै रिपुसूदन का साँचो करै प्रेम विश्वास है
प्यारो होवे रघुनन्दन का सॉचो स्वई रामको दास॥
छूटि सुमिरनी गै ह्याँते अब ऊदन ब्याह करों परकाश ५

अथ कथाप्रसंग॥


उये दिवाकर जब पूरब में बालकरूप विम्ब अतिलाल॥

बेटी फुलवा के महलन में जागा देशराजका लाल १
देबा बोला ह्याँ हिरियाते मालिनि मानो कही हमार॥
देर लगावो अब घरमाँ ना लावो उदयसिंह सरदार २
लैकै पलकी मालिनि चलि भै फुलवा पाम पहूँची जाय॥
फुलवा बोली तब हिरियाते अब यहि जावो तुरत लिवाय ३
इतना सुनिकै ऊदन चलिभे पहुँचे तुरत द्वार में आय॥
बैठ पालकी में बघऊदन मनमें सुमिरि शारदामाय ४
आयकै पहुँचे जब मालिनिघर देबा बोला वचन सुनाय॥
साथ जनाना का करिवे ना जैबे जहाँ चँदेलाराय ५
बन्यो जनाना तुम नरवर में कैहौं हाल जाय दरवार॥
बाना छोड़े रजपूती का ऊदन जीवेका धिक्कार ६
इतना सुनतै कायल ह्वैगा नाहर उदयसिंह सरदार॥
पेट मारने के कारण सों ऊदन लीन्ही हाथ कटार ७
हाथ पकरिकै देबाठाकुर बोला सुनो बनाफरराय॥
चरचा करिये ना मोहबेमाँ ऊदन साँच देवँ बतलाय ८
भई लालसा हमरे मनमाँ फुलवा देखनको अधिकाय॥
करु अभिलाषा पूरण हमरी आल्हाकेर लहुरवा भाय ९
ऊदन बोले तब देबाते तुमको कैसे लवैं दिखाय॥
जैसी बतावो देवा ठाकुर तैसे साँचो करैं उपाय १०
इतना सुनिकै देबा बोले योगी बनो बनाफरराय॥
अलख जगावैं पुर घर घर में याही सीधोसाद उपाय ११
गह मनमाई बधऊदन के दूनों लीन्ह्यो भस्म रमाय॥
करगें माला औ मृगछाला आला योगीरूप बनाय १२
गुदड़ी लोन्ही दोऊ ठाकुर तामें छिपी ढाल तलवार॥

डमरू लीन्ह्यो देबा ठाकुर बंशी उदयसिंह सरदार १३
धुरपद, सोरठ, जैजैवन्ती, गावैं पूरराग कल्यानऽ
टप्पा ठुमरी भजन रेखता तोरैं गजल पर्ज पर तान १४
को गति वरणे तिन योगिनकै एकते एक रूप गुणवान॥
ड्योढ़ी दावे दोउ नरपति कै योगी चले तुरत बलवान १५
देखि तमाशा तिन योगिनका मारग भीर भई अधिकाय॥
ता ता थेई ता ता थेई थेई थेई दीन मचाय १६
बाजै डमरू भल देबा का ऊदन बंशी रहा बजाय॥
मोर कि नाचन ऊदन नाचै मारग भूलि गये सबभाय १७
मोही तिरिया भल नरवर की चढ़िचढ़ि लखैं अटारिआय॥
एक एक सों बोलन लागीं जैसे नारिन केर स्वभाय १८
धन्य बखानों इन मातन को जिनकी कोखिलीनअवतार॥
देखो आली इन योगिन को कैसो रूप दीन करतार १९
ये दोउ बालक क्यहु राजा के बारे लीन योग को धार॥
सब गुण आगर दोउ नागर हैं योगी कामरूप अवतार २०
क्यहू पियासे लरिका घर में भोजन करैं क्यहू भरतार॥
पै ते भूलीं दोउ योगिन में तन मन केरो नहीं सँभार २१
गावत नाचत दोऊ योगी पहुँचे नरपति के दरबार॥
बाजा डमरू तहँ देवा का नाचा बेंदुल का असवार २२
कमर झुकावै भाव बतावै गावै देशराज का लाल॥
देखि तमाशा यहु योगिन का भा मनबड़ा खुशीनरपाल २३
नरपति बोला तब योगिन ते साँचे हाल देउ बतलाय॥
कहाँ ते आयो औ कहँ जैहौ चाहौ काह लेनको भाय २४
हम तो आये बंगाले ते जावैं हिंगलाज महराज॥

द्रव्य न चाहैं कछु महराजा केवल उदरभरनसों काज २५
सुनिकै बातैं ये देबा की बोला नरवरका सरदार॥
धुरपद गावो यहि समया में भोजन अवै होय तय्यार २६
बातैं सुनिकै महराजा की बोला देशराज का लाल॥
ब्याही नारी के हाथे का भोजन करैं नहीं नरपाल २७
इतना सुनिकै राजा बोले योगी मानो कही हमार॥
है जो कन्या उपरोहित कै भोजन सोई करी तैयार २८
देबा बोला तब राजा ते यह नहिं ठीक भूमिभरतार॥
जरिजा अँगुरी जो वाम्हनिकै हमरो योगहोय सब छार २९
शास्त्र पुराणन को जानैं हम मानैं लिखा ठीक महराज॥
मारै शापै गारी देवै तबहूँ बिप्र पूजने काज ३०
होय जो कन्या तुम्हरे घर की भोजन करै स्वई तैयार॥
तौ तौ योगी भोजन करि हैं नाहीं मांगैं और दुवार ३१
इतना सुनिकै फिरि बोलत भा राजा नरवर का सरदार॥
बेटी हमरी जो फुलवा है सोई भोजन करी तयार ३२
इतना सुनिकै योगी बोले यहही ठीक रहा महराज॥
धर्म न जैहै कछु योगिन का रहि है द्वऊ दिशाकीलाज ३३
पुत्र आपने मकरन्दा को तवहीं बोलि लीन नरपाल॥
फुलवा बहिनी जो तुम्हरी है तासों कहौजाय यह हाल ३४
इतना सुनिकै मकरँद चलिभा औ फुलवा ते कहा सुनाय॥
बातैं सुनि है मकरन्दा की माता पास पहूँची आय ३५
आयसु लैकै महतारी की भोजन करन लागि तैयार॥
नाचैं गावैं दोऊ योगी मोहित भयो राजदरबार ३६
भयो बुलौवा फिरि महलन में योगी करें चलें ज्यँउनार॥

इतना सुनिकै योगी चलिभे पीढ़न बैठिगये सरदार ३७
भोजन परसन फुलवा लागी देवा चितय दीन कइबार॥
बैठे पाटापर बघऊदन मनमाँलाग्यो करनबिचार ३८
किह्यो रसोई कारी कन्या भोजन केर नहीं अधिकार॥
बनि बौराहा जो हम जावैं तौ रहिजावै धर्म हमार ३९
देबा बोला फिरि ऊदन ते यहही फुलवा है सरदार॥
इनही कारण नाक छिदायो धार्यो बेष जनाना यार ४०
किह्यो बहाना ह्याँ ऊदन ने औ गिरि गयो पछाराखाय॥
रानी चंपा दौरति आई योगिन पास पहूँची आय ४१
कौर डारिकै देबा योगी तहँपर बार बार पछिताय॥
देखिकै सूरति लघुयोगी कै चंपा बोली बचन सुनाय ४२
पाप आयगा यहिके मनमाँ ताते गिरा पछाराखाय॥
योगी नाहीं यहु भोगी है यहिका डारों पेट फराय ४३
मकरँद लरिका का बुलवावों यहिका योग सिद्ध ह्वैजाय॥
इतना सुनिकै देबा बोला रानी काह गई बौराय ४४
भूत चुरैलै यहि महलन में की क्यहु नजरि लगाई आय॥
जो कछु होई यहिके जीका तौ फिरि योग देयँदिखराय ४५
ऐसे वैसे हम योगी ना ना हम मँगें खेत खरिहान॥
हमतो योगी संतोषी हैं जाने काह नारि बैलान ४६
सुनिकै बातैं ये देवा की रानी गई सनाकाखाय॥
जल के छीटा फुलवा मारे जागा तुरत बनाफरराय ४७
बड़ी खुशाली देबा कीन्ह्यो लीन्यो तुरत ताहि लपटाय॥
ऊदन बोले तब रानी ते तुमका साँचदेयँ बतलाय ४८
परिगै छाया क्यहु ब्याही के ताते गई मूरछा आय॥

फुलवा बोली तब माताते योगी साँचरहा बतलाय ४९
परिगै छाया जब बाँदी के तबहीं गिरा मूरछाखाय॥
ऊदन बोले तब रानी ते ह्याँते जान चहैं हम माय ५०
इतना सुनिकै चम्पा बोली योगी मानो कही हमार॥
भोजन दूसर हम परसावैं योगी जेंयलेउ ज्यवनार ५१
देबा बोला तब रानी ते साँचे बचन करो परमान॥
फिरिकै बैठैं हम चौकाना पूरण नियम हमारो जान ५२
ऐसे योगी आगे ह्वै हैं भोगिहँ भोगस्वादवश आय॥
तैसे योगी हम नाहीं हैं अपनो डारैं नियम नशाय ५३
योगी ह्वैकै भोगी होवै शोचन योग सोय अधिकाय॥
इतना कहिकै दोऊ योगी माँगिकै बिदा चले हर्षाय ५४
आयकै पहुँचे मालिनि घरमाँ योगिनवाना धरे उतार॥
पाग बैंजनी शिरपर बाँधी नाहर उदयसिंह सरदार ५५
ऊदन बोले फिरि देबा ते ठाकुर मैनपुरी चौहान॥
कई महीना ह्याँपर गुजरे ना अब रहिगा द्रव्यठिकान ५६
घोड़ खरीदन कासों जावें यहंही शोच होय अविकाय॥
पै कछु औषधि ह्याँ सूझैना कैसी करी यहांपर भाय ५७
का लै जावैं अब मोहबे को कावुल काह खरीदैं जाय॥
इतना सुनिकै देबा बोले धीरज धरो लहुरवाभाय ५८
गत नहिंशोचैं कहुँ पण्डितजन मत यह ठीक हृदय ठहराय॥
कूच करावो अब नखरते चलिये नगरमोहोबे भाय ५९
यह हम कहिबे परिमालिकते नरवर टिक्यन चॅदेलेराय॥
भूत चुरैलै इनके लागीं ऊदन तहां गये बौराय ६०
कछु नहिं आशा तहँ बचनेकी निश्चय गई प्राणपै आय॥

कीन दवाई हम ऊदन की सब धन आये तहाँ गँवाय ६१
यह मन भाई उदयसिंह के तुरतै कूच दीन करवाय॥
कीरतिसागर के डाँड़े पर पहुंचे फेरि बनाफर आय ६२
उतरि बेंदुला ते भुइँ आये तम्बू तुरत दीन गड़वाय॥
परिगा पलँगा तहँ ऊदन का लेटे तहाँ बनाफरराय ६३
उबटन लाग्यो भल हल्दी का पीली देह परै दिखराय॥
भोजन कमती कैदिन खायो तासोंबदनगयो कुम्हिलाय ६४
करिकै सूरति बीमरिहा कै बोला उदयसिंह सरदार॥
बात बनावो परिमालिक ते तौ रहिजावै धर्म हमार ६५
गंगा कीन्ही हम फुलवा सँग तुम्हरो ब्याह करब ह्याँ आय॥
टरै प्रतिज्ञा जो क्षत्री कै तौफिरि जहरखाय मरिजाय ६६
मित्र साँकरो फिरि ऐसो अब परिहै बार बार नहिं आय॥
इतना सुनिकै देबा चलिभा पहुंचा जहाँ चँदेलोराय ६७
सूरति दीख्यो जब देबा की भा मन खुशी रजापरिमाल॥
हाथ जोरिकै देबा बोल्यो औ ऊदनके कह्यो हवाल ६८
लगीं चुरैले नखरगढ़ में ऊदन ह्वैगे हाल बिहाल॥
रुपिया पैसा सब खर्चा भे रहिगा कछू नहीं नरपाल ६९
कीरतिसागर तम्बू भीतर ब्याकुल परा लहुरवाभाय॥
इतना सुनिकै परिमालिक जी तुरतै गये सनाकाखाय ७०
लिखिकै पाती आल्हाजी को तुरतै धावन लीन बुलाय॥
दैकै पाती फिरि धावन को बाकी हाल कह्यो समुझाय ७१
लेकै पाती धावन चलिभा दशहरिपुरै पहूंचा जाय॥
दीन्ह्यो पाती जब आल्हा को बाँचा आंकु आंक निरताय ७२
पढ़िकै पाती आल्का ठाकुर तुरतै हाथी तीन मँगाय॥

चढ़िकै हाथी आल्हा चलिभे मनमाँसुमिरि शारदामाय ७३
कीरतिसागरपर पहुंचत भा यह रणबाघु बनाफरराय॥
चढ़े पालकी परिमालिकजी सोऊ अटे वहाँपर जाय ७४
पौढ़ा पलँगापर बघऊदन पागल बना बनाफरराय॥
देखि सनाका परिमालिक भे मनमाँ बार बार पछिताय ७५
ऊदन ऊदनकै गोहरायो आल्हा बैठि पलँगपर जाय॥
जब नहिं बोले बघऊदन हैं आल्हा बोले बचन रिसाय ७६
तुमहीं पठयो है ऊदन को साँची सुनो चँदेलेराय॥
जो कछु जीका यहिके होइहै मोहबा तुरत द्याव फुॅकवाय ७७
बोलि न आवा परिमालिक ते हाँ अरु हूँव बन्दमा भाय॥
ऊदन ऊदन कै गोहरायो बारम्बार चँदेलेराय ७८
तबहूं ऊदन कछु बोले ना आल्हा बहुत गये घबड़ाय॥
उठिकै चुप्पे चढ़ि हाथीमाँ दशहरिपुरै पहूंचे आय ७९
हाल बतायो सब सुनवाँ को सुनतै गई सनाकाखाय॥
सोचन लागी अपने मनमाँ साँची बात गई जिय आय ८०
ऑखि लागिगै तहँ फुलवाकै व्याकुल भये लहुरवाभाय॥
पूरि गवाही मन यह दीन्ह्यो साँची ठीक लीन ठहराय ८१
यह सोचिकै सुनवाँ बोली लीजै ऊदन यहाँ बुलाय॥
करब दवाई हम ऊदन कै नीको होय बनाफरराय ८२
यह मन भायगई आल्हा के तुरतै पलकी दीन पठाय॥
सौंपिकै देबा को ऊदन का औ चलिभयो चँदेलोराय ८३
सवारि फैलिगै यह मोहवेमॉ ब्याकुल उदयसिंह सरदार॥
जितनी रानी परिमालिक की रोई छाँड़ि सबै डिंडकार ८४
जितनी रय्यत रह मोहबे की कीरतिसागर चली बिहाल॥

जायकै देखैं जब ऊदन को रोवैं तहाँ बृद्ध औ बाल ८५
गई पालकी जब आल्हा की चकरन जाय कहा सब हाल॥
सुनवाँ भौजीने बुलवायो चलिये देशराज के लाल ८६
हमसोंफिरिफिरि यह समुझायो आवैं यहाँ लहुरवाभाय॥
करब दवाई हम नीकी बिधि चंगे होयँ बनाफरराय ८७
सुनिकै बातैं ये चकरन की ऊदन ठीक लीन ठहराय॥
हाल बतावब जो भौजीते ह्वैहैं काम सिद्धि तहँ जाय ८८
यहै सोचिकै मन अपने माँ पलकी चढ़ा लहुरवाभाय॥
चारि कहरवा हुँकरत चलिभे दशहरिपुरै पहूंचे आय ८९
उतरि पालकी ते भुइँ आवा द्दावलि देखिगई घबड़ाय॥
रानी सुनवाँ तहँ चलिआई औ करगहिकै गईलिवाय ९०
जायकै पहुंची निजमहलन में पलँगा उपर दीन बैठाय॥
पूँछन लागी बघऊदन ते साँचे हालदेउ बतलाय ९१
आँखि लागिगै का फुलवा कै द्यावर बिकलभयो अधिकाय॥
सुनिकै बातैं ये भौजीकी बोला तुरत बनाफरराय ९२
जैसे साँची तुम पुछती हौ तैसे साँच देयँ बतलाय॥
किरिया कीन्ही हम फुलवा ते भौंरी करब तुम्हारी आय ९३
काह बतावैं हम भौजी ते नाकछु सूझा और उपाय॥
तब बौराहा बनिकै आयन तुमते साँचदीन बतलाय ९४
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली साँची सुनो लहुरवामाय॥
काठक घोड़ा वाण अजीता उनघर सेल शनीचर आय ९५
कैसे किरिया तुम कै लीन्ही देवर भूल भई अधिकाय॥
तेहिते चुप्पे घरमाँ बैठो मानो कही बनाफरराय ९६
वैसी फुलवा लाखन मिलि हैं भापन साँच लहुरवा भाय॥

यह नहिं भाई मन ऊदन के सुनतैबदनगयोकुम्हिलाय ९७
जब रुख दीख्यो यह ऊदन का सुनवाँ चली महलते धाय॥
जायकै पहुँची आल्हाढिगमाँ औसबहालकहा समुझाय ९८
सुनिकै बोले आल्हा ठाकुर तिरिया काहगई बौराय॥
बेढव राजा है नरवर का तहँ शिर कौन कटावै जाय ९९
इतना सुनिकै सुनवाँ वोली क्षत्री पूत बनाफरराय॥
तुमका बातैं ये छाजैं ना कन्ता बार बार बलिजायँ १००
इतना सुनिकै आल्हा बोले तिरिया बिना बुद्धिकी आय॥
नाहक हिंसा हम करिहैं ना मरिहैंजीवजन्तुअधिकाय १०१
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
यह नहिं हिंसा है क्षत्री कै कीन्हेनियुद्धकृष्णयदुराय १०२
सोलह सहस आठ कन्यन को लड़िकै लीन कृष्ण महराज॥
तिनकी बहिनी के पति अर्जुन कीन्हेनियुद्धद्रौपदीकाज १०३
धर्म धुरंधर भीषम ह्वैगे लड़िगे काशिराज घरजाय॥
अम्बा अम्बे अम्बालिका को लायेजीतिनृपनसमुदाय १०४
पैकछु हिंसा तिन मानी ना जानैं धर्म कर्म अधिकाय॥
पढ़िकै भूल्यो तुम महराजा कीयहिअवसरगयोडेराय १०५
लड़नो मरनो समरभूमि में यहही क्षत्री को बयपार॥
लहँगा लुगरा हमरो पहिरो अपनी देउ ढाल तलवार १०६
मैं चढिजाऊँ नरवरगढ़ को ब्याहूं जाय लहुरवाभाय॥
किरिया कीन्ही बघऊदन ने भौंरी करव यहाँपर आय १०७
झूँठी किरिया जो ह्वैजैहै तौ मरि जाय जहर को खाय॥
ऐसो वैसो बघऊदन ना गंगा झूँठ उलीचै जाय १०८
उदय दिवाकर हों पश्चिम में चन्दा चहौ रसातल जाय॥

सोंकि समुन्दर चहु महि लेवै बिल्ली लड़ै सिंहसों आय १०९
ये अनहोनी चहु ह्वैजावैं ना झूंठ न कहै लहुरवा भाय॥
इतना सुनिकै आल्हा बोले अब तू चुप्पसाधिरहिजाय ११०
टरिजा टरिजा री सम्मुख ते काहे बार बार बर्राय॥
ब्याहन जैबे हम नरवर में तहदिल होयँ बनाफरराय १११
इतना सुनिकै सुनवाँ चलि भै आल्हा रुपना लीन बुलाय॥
लिखिकै चिट्ठी मलखानेको सिरसा तुरतदीन पठवाय ११२
खबरि पायकै मलखे गकुर दशहरिपुरै पहूँचे आय॥
हाथ जोरिकै द्वउ आल्हा के बोले चरणन शीश नवाय ११३
काह आज्ञा है दादा कै जो सेवक का लीन बुलाय॥
सुनिकै बातैं मलखाने की आल्हाहाल कहासमुझाय ११४
घोड़ खरीदन गे काबुल को नरवर नैन खरीद्यनि जाय॥
बनि बौगहा ऊदन बैठे चलियेब्याहकरनअबभाय ११५
बड़ी खुशाली भै मलखे के बोले हाथ जोरि शिरनाय॥
न्यवत पठावो सब राजन को दादा भली बनी यह आय ११६
इतना सुनिकै आल्हा ठाकुर तुरतै धावन लीन बुलाय॥
पाती लिखिकै सबराजन को तुरतै न्यवत दीनपठवाय ११७
यक हरिकारा गा झुन्नागढ़ यक नैनागढ़ दीन पठाय॥
यक हरिकारा गा बौरीगढ़ दिल्ली एक पहूँचा जाय ११८
उरई कनउज सिरसा मोहबे सबते न्यवत दीन पठवाय॥
खबरि पायकै सब राजागण दशहरिपुरै पहूंचे आय ११९
कीनि खातिरी सबकै आल्हा डंका तुरत दीन बजवाय॥
बाजे डंका अहतंका के हाहाकार शब्दगा छाय १२०
द्दावलिबोली फिरि आल्हा ते मानो कही बनाफरराय॥

रीती भाँती मल्हना करि है पाल्यो बारे दूध पिलाय १२१
कौन हितैषी है मल्हना सम ह्याँते कूच देउ करवाय॥
सुनिकै बातैं ये माता की आल्हा कूचदीन करवाय १२२
कीरतिसागर मदनताल पर डेरा गड़े नृपन के आय॥
आल्हा ऊदन मलखे सुलखे मल्हना महल पहूँचेजाय १२३
द्यावलि बिरमा सुनवाँ आदिक येऊ गई तहाँ पर आय॥
बड़ी खुशाली भै मल्हना के हमरे बूत कही ना जाय १२४
चूड़ामणि पण्डित को तुरतै आल्हा लीन तहां बुलवाय॥
तेल कि साइति सो बतलायो सुवरणकलशलीनमँगवाय १२५
घृतको दीपक धरि कलशापर चौकी तहाँ दीन डरवाय॥
ऊदन बैठे फिरि चौकी पर मनमें सुमिरि शारदामाय १२६
एक कुमारी तेल चढ़ावै गावन लगीं तहाँ सब गीत॥
आई बिरिया फिरि नहखुर की पगियाधरी शीशपरपीत १२७
कङ्कण बांधा गा हाथेमाँ शिरपर मौरदीन धरवाय॥
ब्याहके कपड़ा फिरि पहिरायो पलकीतुरतलीनमँगवाय१२८
सुमिरि भवानी मइहरवाली पलकी बैठ बनाफरराय॥
बेटी बैठी चन्दावाल तहँ राईलोन उतारति जाय १२९
चली पालकी बघऊदन की कुँवना पास पहूँची आय॥
इन्द्रसेन चन्द्रावलि दुलहा सोकुँवनापरगयोलिवाय १३०
रानी मल्हना त्यहि समयामें दीन्ह्यो कुँवाँ पैर लटकाय॥
पहिली भॉवरि के घूमत खन ऊदन लीन्ह्यो पैर उठाय १३१
प्राणनेग मैं तुमको दीन्हे माता काढु पैर हरपाय॥
याबिधि कहिकै सातों भॉवरि घुमे तहां बनाफरराय १३२
बेठे पलकी फिरि बघऊदन आल्हा नेगदीन चुकवाय॥

भये अयाचक सब याचकगण जयजयकार रहे तहँगाय १३३
कूच के डंका बाजन लागे घूमन लागे लाल निशान॥
बैठे हाथी आल्हा ठाकुर करिकै रामचन्द्रको ध्यान १३४
मलखे सुलखे देबा ब्रह्मा मन्नागूजर भयो तयार॥
औरो राजा न्योते आये तिनहुनबाँधिलीनहथियार १३५
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बाँके घोड़न मे असवार॥
कूच कराय दबो मोहबेते चलिभे सबै शूर सरदार १३६
खर खर खर खर कै रथ दौरे चह चह धुरी रहीं चिल्लाय॥
चलिभैं फौजैं दल बादल सों शोभाकही बूत ना जाय १३७
झम्झम्झम्झम् झीलमबोलैं मर्मर होयँ गैंड़की ढाल॥
मारु मारु के मौहरि बाजैं बाजैं हाव हाव करनाल १३८
छाय अँधेरिया गै मारग में छिपिगे अन्धकार सों भान॥
को गति बरणौ शहजाद्यन कै एकते एक रूप गुणखान १३९
तेगा लीन्हे बर्दवान के कोता खानी लिहे कटार॥
यक यक यक भाला दुइ दुइ बरछी कम्मर परी एक तलवार १४०
आठरोज का धावा करिकै नरवर पास गये नगच्याय॥
पांचकोस जब नरवर रहिगा मलखे डेरा दीन डराय १४१
ऊंची टिकुरिन तम्बू गड़िगे नीचे लागीं खूब बजार॥
हौदा उतरे तहँ हाथिन के क्षत्रिन छोरिधरा हथियार १४२
जहँना तम्बूहै आल्हा का तहँना लाग खूब दरवार॥
चूड़ामणि पण्डित तहँ बैठे साइतिलागे करनविचार १४३
ऐपनवारी की साइति है पण्डित कहा सुनो मलखान॥
मलखे बोले तब रूपना ते हमरे करो वचन परमान १४४
ऐपनवारी बारी लैकै नरपति द्वार देउ पहुँचाय॥

इतना सुनिकै रूपन बोले दोऊ हाथजोरिशिरनाय १४५
ऐपनवारी बारी लैकै दूसर जाय आज महराज॥
नैना झुन्ना औ दिल्ली में कीन्हे हमीं अकेले काज १४६
मुड़ कटावन हम जैवै ना मानो कही वीर मलखान॥
इतना सुनिकै मलखे बोले हारीबात कहौ तुम ज्वान १४७
गदका वाना पटा बनेठी अइहैं कौन दिवस ये काज॥
पहिले मुर्चा तुमहीं कैकै राख्यो देशदेशमें लाज १४८
उदन बियाहे का रहिहैं ना बतियाँ कहिबे का रहिजायँ॥
यहु दिनमिलिहै फिरिकबहूंना तातेसोचिसमझिबतलाय १४९
इतना सुनिकै रूपन बोला ठाकुर सिरसा के सरदार॥
घोड़ बेंदुला हमको देवो ऊदन केरि देउ तलवार १५०
घोड़ बेंदुला को मँगवायो औ दैदीन ढाल तलवार॥
ऐपनवारी बारी लैकै बेंदुल उपर भयो असवार १५१
एँड़ा मसक्यो जब बेंदुलके तुरतै चला हवाकी चाल॥
राजा नरपति के द्वारेपर रूपनपहुँचिगयोततकाल १५२
द्वारपालने तब ललकार्यो नाहर घोड़े के असवार॥
कहाँ ते आयो औ कहँ जैहौ कहँ है देश राबरे क्यार १५३
इतना सुनिकै रूपन बोले तुम सुनि लेउ हमारो हाल॥
देश हमारो नगर मोहोबा जहँपर बसैं रजा परिमाल १५४
छोटो भइया जो आल्हा को बेटा देशराज को लाल॥
क्वारी कन्या जो नरपति कै ब्याहनअयेरजापरिमाल १५५
ऐपनवारी हम लै आये रूपन बारी नाम हमार॥
खबरि जनावो तुम राजा को बारी खड़ा तुम्हारे द्वार १५६
नेग आपने को झगरतहै सो अब पठै देयँ सरदार॥

{{block center|

इतना सुनिकै द्वारपाल कह बारी घोड़े के असवार १५७
नेग बतावो तुम द्वारे का राजै स्वऊ सुनावैं जाय॥
इतना सुनिकै रूपन बोला तुमसों साँचदेयँ बतलाय १५८
चार घरीभर चलै सिरोही द्वारे बहै रक्तकी धार॥
नेग हमारो यह साँचाहै याँचा आय तुम्हारे द्वार १५९
सुनिकै बातैं ये रूपन की बोला ललिपाल ततकाल॥
पीकै दारू द्वारे आये टेढ़ी बात कहै मतवाल १६०
टरिजा टरिजा अब द्वारे ते ओ मतवाले जाति गँवार॥
असगति नाहीं क्यहुराजा की द्वारे करै आय तलवार १६१
काल गाल माँ तू बैठाहै मानै साँच बात यहिबार॥
हवा खायकै ठंढे ह्वैकै बोलै घोड़े के असवार १६२
इतना सुनिकै रूपन बोला गरूई हाँक दीन ललकार॥
हाथ सिपाही पर डारैं ना जबलग मिलै ढूंढ़िसरदार १६३
हमका जानैं दिल्ली वाले जिनके द्वारकीन तलवार॥
झुन्नागढ़ औ नैनागढ़ में द्वारे बही रक्तकी धार १६४
चारि रुपल्ली का नौकर तू टिलटिलटिलटिल रहामचाय॥
इतना सुनिकै द्वारपाल चलि राजै खबरि सुनाई जाय १६५
जितनी गाथा रूपन बोले गासो यथातथ्य सब गाय॥
सुनिकै बातैं द्वारपाल की नरपति तुरतै उठा रिसाय १६६
हुकुम लगायो मकरन्दा ते बारी पकरि दिखावै आय॥
विजयसिंह बिजहट को राजा मकरँदसाथचलारिसियाय१६७
द्वारे दीख्यो जब रूपन को गरूई हाँक दीन ललकार॥
खबरदार हो खबरदार हो बारी घोड़े के असवार १६८
काल गाल माँ तू बैठा है अवहीं जान चहत यमद्वार॥

इतना सुनिकै विजयसिंहने अपनी खैंचिलई तलवार १६९
खैंचि सिरोही रूपन लीन्यो द्वारे होन लगी तब मार॥
अगल बगल में बेंदुल मारै रूपन खूब कीन तलवार १७०
घायल ह्वैगे विजयसिंह जब तब सब बढ़े लड़ैया ज्वान॥
दांतन काटै टापन मारै बेंदुल खूब कीन मैदान १७१
कोगति बरणै तहँटा बनेकै दोऊ हाथ करै तलवार॥
रंग बिरंगे क्षत्री ह्वैगे मानो होलीख्यलैं गँवार १७२
कितन्यों क्षत्री घायल ह्वैगे कितन्यों गिरिगे खाय पछार॥
मूड़न केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डनके लगे पहार १७३
बड़ी लड़ाई भै रूपन ते द्वारे बही रक्तकी धार॥
देखि तमाशा त्यहि बारीका क्षत्री गये मनैमन हार १७४
ऍड़ा मसक्यो फिरि बेंदुलके फाटक पार पहूँचा जाय॥
मारो मारो हल्ला कैकै क्षत्री चले पछारी धाय १७५
रूपन पहुॅचा त्यहि तम्बू में जहँपर बैठि बनाफरराय॥
जितने क्षत्री नरवरगढ़के आयेलौटि सबैखिसियाय १७६
जितनी गाथा रह द्वारे की रूपन यथातथ्य गा गाय॥
रूपन बारी की बातैं सुनि भे मन खुशी बनाफरराय १७७
खेत दूटिगा दिननायक सों झंडा गड़ा निशा को आय॥
तारागण सब चमकन लागे संतनधुनी दीन परवाय १७८
माथ नवाबों पितु अपने को ह्याँ ते करों तरँगको अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं माँगों यही भवानीकन्त १७९

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवलकिशोरात्मज बाबू
प्रयागनारायणजीकीआज्ञानुसारउनाममदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासि
मिश्रवंशोद्भवबुधकृपाशंकरसनुपं॰ललिताप्रसादकृवरूपनबिजन
वर्णनोनामद्वितीयस्वरंगः ॥२॥

सवैया॥

दीनदयाल कृपाल भुवाल तुम्हीं सब काल करो रखवारी।
मारीच सुबाहु सुरासुरनाहु तुम्हीं पल एकहि में संहारी॥
बालिवली खरदूपण रावण आप हन्यो सबको धनुधारी।
काम औ क्रोध औ लोभ हटाय करो ललिते रघुनाथ सुखारी१

सुमिरन॥


दोउ पद वन्दौं भरतलालके जिनसम धन्यजगतकोआन॥
बड़े पियारे रघुनन्दन के इनयशबालमीकि करगान १
भायप निबह्यो जस भारत जग आरत भये रामसों जाय॥
राज्य न लीन्ही रघुनन्दन जब आपौ कीन योग घर आय २
सब जग ध्यावै रघुनन्दन को रघुवर करैं भरतको याद॥
रघुवर लछिमन भरत शत्रुहन चहु ज्यहि भजैं छांड़िकै बाद ३
जो ज्यहि भावै सो त्यहि ध्यावै आवै सबै आपने काज॥
क्यहू न ध्यावे सो दुखपावै औ बड़ होवै तासु अकाज ४
हमरे सर्वोपरि एकै हैं स्वामी रामचन्द्र महराज॥
तिन्हैं बिसारैं तो दुखपावैं यह मन सदा हमारे राज ५
छूटि सुमिरनी गै रघुवर के सुनिये नरवर केर हवाल॥
ब्याह बखानै उदयसिंह का लड़िहैं बड़े बड़े नरपाल ६

अथ कथाप्रसंग॥


नरपति राजा नरवरगढ़ का भारी लाग राजदरबार॥
बैठे क्षत्री अलबेला तहँ एकते एक शूर सरदार १
नरपति बोला मकरन्दा ते तुम सुत मानो कही हमार॥
बड़े लड़ैया मोहबेवाले बारी भली कीन तलवार २
काह तुम्हारे अब मनमाँ है हमते साँच देउ बतलाय॥

रारि बचैहौ की लड़िजैहौ तैसो जल्दी करी उपाय ३
इतना सुनिकै मकरँद बोला दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
हुकुम जो पावैं महराजा को सबको बांधि दिखावैं आय ४
सुनिकै बातैं मकरन्दा की राजै हुकुम दीन फरमाय॥
तुरत नगड़ची को बुलवायो पुरमें डौंड़ी दीन पिटाय ५
हुकुम पायकै मकरन्दा का फौजै होन लगीं तय्यार॥
रण की मौहरि बाजन लागी रणका होन लाग ब्यवहार ६
बाजे डंका अहतंका के क्षत्री सबै भये हुशियार॥
ढाढ़ी करखा बोलन लागे बिप्रन कीन बेद उच्चार ७
पहिल नगाड़ा में जिनबन्दी दुसरे बांधि लीन हथियार॥
तिसर नगाड़ा के बाजत खन क्षत्री सबै भये तय्यार ८
मारु मारु करि मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल॥
बैठ्यो घोड़ा पर मकरन्दा मनमें सुमिरि यशोदालाल ९
कूच करायो नरवरगढ़ ते पहुँच्यो समरभूमि मैदान॥
गर्दा दीख्यो आसमान में बोल्यो यहां बीर मलखान १०
यहु दल आवतहै नरपति का गर्दा छाय रही असमान॥
सँभरो सँभरो ओ रजपूतौ हमरे करो बचन अब कान ११
इतना सुनिकै मोहबेवाले तुरतै बाँधि लीन हथियार॥
हथी चढ़ैया हाथिन चढ़िगे बॉके घोड़न भे असवार १२
बड़ि बड़ि तोपैं अष्टधातु की सो चरखिन में दीन चढ़ाय॥
दुहूँ ओर ते गोला छूटे हाहाकार शब्द गा छाय १३
गोला लागै ज्यहि क्षत्री के आधे सरग लिहे मड़राय॥
गोला लागै ज्यहि घोड़े के धुनकततूलसरिसउड़िजाय १४
गोला लागै ज्यहि हाथी के मानो गिरा धौरहर आय॥

गोला लागै ज्यहि सँड़िया के तुरतै गिरै भूमि अललाय १५
जौने बैलके गोला लागै मानो मगर झुल्याचै खायँ॥
जौने रथमाँ गोला लागै ताके टूक टूक ह्वैजायँ १६
बड़ी दुर्दशा भै तोपन में धुवना रहा सरग में छाय॥
दूनों दल आगे को बढ़िगे तोपन मारु बन्द ह्वैजाय १७
उठीं बँदूखै बादलपुर की जो नब्बे कै याक बिकाय॥
मघा के बूंदन गोली बरसैं झरसैं सबै शूर त्यहि घाय १८
दूनों दल आगे को बढ़िगे रहिगा एक खेत मैदान॥
भाला बरछी तलवारिन का लाग्यो होन घोर घमसान १९
अपन परावा कछु चीन्हैंना मारैं एक एक को ज्वान॥
सूंढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे घोड़न भिरी रान में रान २०
कउँधालपकनिबिजुलीचमकनि कहुँ कहुँ देखि परै तलवार॥
दूनों दिशिके रजपूतन ने कीन्ह्यो तहां भड़ाभड़मार २१
चलै कटारी बूँदी वाली ऊना चलै बिलाइति क्यार॥
तेगा धमकैं बर्दवान के कटि कटि गिरैं शूरसरदार २२
मुण्डन केरे मुड़चौरा भे औ रुण्डन के लगे पहार॥
रुधिर किसरितातहँ बहिनिकरी जूझे क्षत्री अमित अपार २३
हाथी सोहैं त्यहि सरिता माँ छोटे द्वीपण के अनुमान॥
परे बछेड़ा त्यहि नदिया माँ तिनको नदी कगाराजान २४
छुरी कटारी मछली ऐसी ढालै कछुवा परैं दिखाय॥
बहैं सेवारा जस नदिया माँ तैसे बहेब्यार तहँ जायँ २५
नचैं योगिनी खप्पर लीन्हे मज्जैं भूत प्रेत बैताल॥
परी लहासैं जो मनइन की तिनकाखावैं श्वानश्रृगाल २६
बड़ी सनेही नरदेही में कहुँ कहुँ चढ़े काक खगजायँ॥

नदी नेवारा जस नर ख्यालैं तैसे काक कंक गतिभाय २७
को गति बरणे समरभूमि कै हमरे बूत कही ना जाय॥
जितने कायर रहैं फौजन में तर लोथिन के रहे लुकाय २८
हेला आवै जब हाथिन का तब बिन मरे मौत ह्वैजाय॥
छाती धड़कै रण कायर कै सायरखुशीहोयअधिकाय २९
परम पियारी जिनके नारी आरी भये समर में आय॥
कीरति प्यारी जिन क्षत्रिन के सम्मुख सहैं खड्ग के घाय ३०
मकरँद ठाकुर मलखाने का परिगा समर बरोबरि आय॥
दोऊ मारैं दोउ ललकारैं दोऊ लेवैं बार बचाय ३१
मकरँद बोले मलखाने ते ठाकुर लौटि धामको जाय॥
बार हमारी ते बचिहै ना नाहक फँसे समर में आय ३२
सुनिकै बातैं मकरन्दा की बोला बच्छराज को लाल॥
बहिनि बियाहै तो वचिजइहै नाहीं परे काल के गाल ३३
ज्यहिकी बिटिया सुन्दरि द्याखै त्यहिपर चढ़ै वीर मलखान॥
बिना बियाहे घर नहिं जावै तजिकै कबों समर मैदान ३४
इतना सुनते मकरॅदठाकुर तुरतै खैंचि लीनि तलवार॥
ऐंचिकै मारा मलखाने को मलखे लीन ढालपर बार ३५
सुमिरि भवानी शिवशङ्करको मारी साँग बीरमलखान॥
मूड़ विसानी सो घोड़ा के घोड़ा भाग्यो लिहे परान ३६

सवैया॥


भागिगयो गोल्द तबै अरु जायकै धाममें वेगि बिराजा।
काठक घोड़ औ सेल शनीचर वाण अजीत लियो जय काजा॥
मालिनि धाम गयो फिरि धाय बुलाय चल्यो रण साजिसमाजा।
आयग्यो रणखेतन में ललिते मकरन्द बली फिरि गाजा ३०

ऊदन मारैं तलवारी सों बेंदुल हनैं टाप के घाय ४८
यकइस हाथी असवारन को ऊदन दीन्ह्यो तुरत सुलाय॥
ऊदन ठाकुर के मुर्चापर क्वउ रजपूत न रोंकै पायँ ४९
देखि बीरता बघऊदन की मकरँद दौरा गुर्ज उठाय॥
यह गति दीख्यो मकरन्दा कै हिरियाबोली शीशनवाय ५०
हमका लाये तुम काहे को जो अब दौरे गुर्ज उठाय॥
जादू डारों बङ्गाले की इनकी कैद लेउ करवाय ५१
इतना कहिकै हिरिया मालिनि औ ऊदनपर डरा मशान॥
मकरँद ठाकुर त्यहि समया में तुरतै बांधि लीन तहँ आन ५२
गा हरकारा तव आल्हा ढिग औ रण हाल बतावा जाय॥
आल्हा बोले तब देबा ते तुम इन्दलका लवो बुलाय ५३
इतना सुनतै देबा ठाकुर अपने घोड़ भयो असवार॥
माथ नवायो सो आल्हा को अपनी लई ढाल तलवार ५४
देबा चलिभा ह्याँ तम्बू ते दशहरिपुरै पहूँचा जाय॥
जीति के डंका बाजन लागे मकरँद कूच दीन करवाय ५५
बड़ी खुशाली नरपति कीन्ह्यो हिरिये द्रब्यदियो अधिकाय॥
देबा भेंटा ह्याँ सुनवाँ का सवियाँहालगयोफिरिगाय ५६
देबा भेंटा फिरि द्यावलि को दोऊ चरणन शीशनवाय॥
कही हकीकति सब नरवर की देवलि गिरी मूर्च्छा खाय ५७
कैदी ह्वैगे बघऊदन जो पकरे गये सबै सरदार॥
मोहिंअभागिनि के बेड़ा को अवधौं कौन लगावै पार ५८
इतना देवलि के कहतै खन इन्दल तहाँ पहूँचाआय॥
हाथ जोरिकै सो देबा के बोल्यो चरणनशीशनवाय५९
कहौ हकीकति तुम चाचा की नरखर हाल देउ बतलाय॥

देबा बोला तहँ इन्दल ते बेटा कही बूत ना जाय ६०
हिरिया मालिनि की जादूते पकरे गये उदयसिंहराय॥
जे व्यवहारी तुम्हरे दिशि के मकरँद कैद लीन करवाय ६१
घोड़ी जखमी भै मलखे के आल्हा पठयो तुम्हैं बुलाय॥
इतना सुनिकै इन्दल बोले सबकी कैद देउँ छुड़वाय ६२
हुकुम जो पावों महतारी को दादा चरण बिलोकों जाय॥
काह हकीकति है मालिनि कै सम्मुख लड़ै हमारे आय ६३
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली बेटै बार बार समुझाय॥
पिता आज्ञा रघुनन्दन करि चौदह वर्ष रहे बनजाय ६४
कौन सिखाई सुत अपने को तुम ना करो पिताके बैन॥
कही न मानैं पितु अपने की तेई गिरैं नरकके ऐन ६५
जैसे देवता पति नारी को तैसे पिता पुत्र को देव॥
नीके जानैं धर्म शास्त्र जे ते नित करैं पिता की सेव ६६
तेई सपूते नर बाजत हैं जिनके पिता बचन विश्वाश॥
कौन भरोसा नरदेही का कलियुगकौनजियनकीआश ६७
पिताहितैषी जग सब कोहै अपनो हुनर देय बतलाय॥
रहै लालसा पितु उरमाहीं हमसों पुत्रहोय अधिकाय ६८
जे नहिं मानैं पितु अपने को तेई नीच जगत में भाय॥
येई कुलीने अकुलीने के लक्षण साफपरैं दिखलाय ६९
निन्दक होवै रघुनन्दन को तासों कौन हमारो नात॥
नेही गेही नरदेही का जगमें साँचो राम लखात ७०
इतना सुनिकै इन्दलठाकुर देबी चरण शरण गा धाय॥
बिनय सुनाई भल देबी को पढ़िपढ़िवेदत्र्पृचनकोभाय ७१
बरंब्रूहिभै तब मठिया ते इन्दल बोल्यो शीश नवाय॥

विजय हमारी नरवर होवै तुम सुनिलेउ शारदामाय ७२
एवमस्तु भा फिरि मठिया माँ इन्दल चलिभा शीशनवाय॥
आयसु माँग्यो फिरि माता ते सुनवाँलीन्ह्यो हृदयलगाय ७३
यन्त्र वांधिकै भुजदण्डन में मस्तक रुचना दियोलगाय॥
पढ़ि पढ़ि रक्षाके मन्त्रन को भूली जादू दीन बताय ७४
घोड़ करिलिया आल्हावाला इन्दल तुरत लीन कसवाय॥
बिदा मांगिकै महतारी सौं देबा साथ चले हरषाय ७५
देबी चलिकै मठभीतर सों नखर गढ़ै पहूंची आय॥
काठक घोड़ा बाण अजीता लीन्ह्योसेल शनीचरजाय ७६
किरपा करिकै जगदम्बा तहँ चेतन कीन फौजको जाय॥
इन्दल पहुंचे जब तम्बू में आल्हालीन्ह्यो गोदबिठाय ७७
चूम्यो चाट्यो हृदय लगायो औ सब दीन्ह्यो कथासुनाय॥
इन्दल बोल्यो तब आल्हा ते दादा सत्य देयँ बतलाय ७८
करो तयारी अब नरवर की सबकी कैद लेयँ छुड़वाय॥
ठाढो हाथी पचशब्दा था आल्हातुरत लीन सजवाय ७९
बैठे हाथी आल्हाठाकुर इन्दल तुरत भये तय्यार॥
बैठे कबुतरी पर मलखाने देबा भयो घोड़ असवार ८०
मारु मारु करि मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल॥
खर खर खर खर के रथ दौरे रब्बा चले पवनकी चाल ८१
कूचकराये आल्हा ठाकुर नरवरगढ़ै चले ततकाल॥
क्वउ क्वउ घोड़ा हिरनवाल पर क्वउ क्वउ चलें मोरकी चाल ८२
क्वउ क्वउ घोड़ा हंस चालपर क्वउ क्वउ सरपट रहे भगाय॥
कदम चालपर कोऊ घोड़ा केहू टाप न परै सुनाय ८३
या बिधि छैला अलबेला सब पहुँचे समरभूमि में जाय॥

गा हरिकारा तब नरवरमें राजै खबरि दीन बतलाय ८१
गाफिल बैठे का महराजा शिरपर फौज पहूँची आय॥
सुनिकै बातैं हरिकारा की राजा गये सनाकाखाय ८५
आज्ञा दीन्ह्यो मकरन्दा को जावो समरभूमि तुम धाय॥
इतना सुनतै मकरँद चलिभा तुरतै राजै शीश नवाय ८६
बाण अजीता सेल शनीचर ढूँढ्यो घोड़ काठको जाय॥
पता न पायो इन काहूका लाग्यो बार बार पछिताय ८७
हिरिया मालिनि के घर पहुँचा लीन्ह्यो ताको संग लिवाय॥
चलि मकरन्दा भा नरवरते पहुँचा समरभूमि में आय ८८
आगे घोड़ा मकरन्दा का पाछे सकल सेन समुदाय॥
ऐसी आगे इन्दल ठाकुर पहुँच्यो समरभूमिमें आय ८९
इन्दल बोल्यो मकरन्दा ते मामा काह गयो बौराय॥
भाँवरि कैद्यो म्बरे चाचाकी चाची घरै देउ पठवाय ९०
जीति न पैहो कुल पूज्यनते मामा साँच दीन बतलाय॥
सुनिकै बातैं ये इन्दल की मकरँद बोला बचनरिसाय ९१
सुनवाँ भौजी के बालकतुम इन्दल बेटा लगो हमार॥
समर जो करिहौ तुम फूफा ते जैहौ अवशि यमनके द्वार ९२
इतना कहिके मकरँद ठाकुर तुरतै खैंचिलीन तलवार॥
रान रान सों घोड़ा भिड़िगे ऊंटन भिडिगै ऊंट कतार ९३
सूंढ़ि लपेटा हाथी भिड़िगे अंकुश भिड़े महौतन क्यार॥
तेगा छूटे बर्दवान के कोताखानी चलीं कटार ९४
भाला बलछिनकी मारुइ कहुँ कहुँ कहुँ कड़ाबीन की मार॥
चलैं भुजाली कहुँ कहुँ गह्वर कहुँकहुँकठिनचलैतलवार ९५
टूटे भाला बलछी सोहैं पै जस खेत बाजरे क्यार॥

मुण्डन केरे मुड़ चौरा भे ओ रुण्डनके लगे पहार ९६
बड़ी लड़ाई भै नरवर में मकरँद इन्दल के मैदान॥
बड़े लड़ैया दूनों ठाकुर रणमाँ करैं घोर घमसान ९७
मकरँद बोला तहँ हिरिया ते यहिपर छाँड़ो घोर मशान॥
इतना सुनतै इन्दल ठाकुर हिरिया पास पहूँचा ज्वान ९८
पकरिकै जूरा त्यहि हिरियाको इन्दल काटिलीन ततकाल॥
जादू झूठी भइँ हिरिया की तुरतै ह्वैगै हाल बिहाल ९९
देखि दुर्दशा यह हिरिया के मकरँद खैंचि लीन तलवार॥
ऐंचिकै मारा सो इन्दल के इन्दल लीन ढालपर वार १००
बचा दुलरूवा आल्हावाला त्यहिका राखिलीन भगवान॥
औ ललकारा मकरन्दा को मामा मौत आपनी जान १०१
ढाल कि औझरि इन्दलमारा मकरँद गिरा मूरछाखाय॥
उतरिकै घोड़ी ते मलखाने तुरतै मुशकलीन बँधवाय १०२
मकरॅद बँधिगे समरभूमि में भगिगे सबै सिपाही ज्वान॥
कोउन रहिगा त्यहि समया में जो क्षण एक करै मैदान १०३
कूच करायो आल्हा ठाकुर तम्बुन फेरि पहूँचे आय॥
खवरि पाय कै नरपति राजा तुरतै गयो सनाकाखाय १०४
कछू न सूझी तब नरपति को अपने मंत्री लये बुलाय॥
मंत्र पूँछिकै तिन मंत्रिन सों आल्हा पास पहूॅचे आय १०५
हाथ जोरिकै नरपति बोले मानो कही बनाफरराय॥
कैद छुड़ावो सुत हमरे की अपने शूर लेउ छुड़वाय १०६
बेटी ब्याहे हम ऊदन को सुख सों लौटि मोहोबे जाउ॥
दगा जो राखें तुम्हरे सँग मॉ खरपति कह्यो हमारोनाउॅ १०७
सुनिकै बातैं ये नरपति की आल्हा मकरँद दीन छुड़ाय॥

जायके छोंड़्यो राजा सबको तम्बू गयो यऊ सब आय १०८
साइति शोधी चूड़ामणि ने आल्है खबरि दीन पहुँचाय॥
काल्हि सबेरे भौंरी ह्वैहें नरपति खबरिंगये यहपाय १०९
इतना सुनिकै माहिल चलिभा लिल्ली घोड़ीपर असवार॥
जायकै पहुँचा नखरगढ़ में जहँपर नरपति का दरबार ११०
बड़ी खातिरी राजा कीन्ह्यो अपने पास लीन बैठाय॥
माहिल बोले तहँ राजा ते मानो कही हमारी भाय १११
शूर छिपावो तुम महलन में भौंरिन कटा देउ करवाय॥
जाति बनाफर की नीची है हल्ला देशदेश अधिकाय११२
पानी पीहै कोउ तुम्हरे ना मानो नरवर के महराज॥
पगिया अरझी नहिं माहिलकै भावै तौन करो तुमकाज ११३
इतना कहिकै माहिल चलिभे तम्बुन फेरि पहूँचे आय॥
तैसे कीन्ह्यो नरपति राजा जैसे माहिल गये बताय ११४
माड़ो छायो मालिन तुरतै राजै खम्भ दीन गड़वाय॥
गऊ के गोबर आँगन लीप्यो बारिनि तुरततहांपरआय ११५
चौक बनावन प्रोहित लाग्यो आईं नगर सुहागिल धाय॥
ब्याह गीत सब गावन लागीं उत्सवदेखिपरै अधिकाय ११६
तब मकरन्दा को बुलवायो नरपति हालकह्यो समुझाय॥
लैकै नेगी तुम चलिजावो घरके ठाकुर लवो बुलाय ११७
इतना सुनिकै मकरँद चलिभा नाई बारी सङ्ग लिवाय॥
जायकै पहुँच्यो त्यहि तम्बू में जहँपर बैठि बनाफरराय ११८
हाथ जोरिकै मकरँद बोल्यो जो कछु राजै दीन सिखाय॥
दशै आदमी भौंरिन आवैं यह जब सुन्यो बनाफरराय ११९
विस्मय कीन्ह्यो आल्हा मनमाँ मकरँद फेरि कहा समुझाय॥

रारि करैया को तुमते है हमहूँलड़िभिड़िगयनअघाय १२०
इतना सुनिकै मलखे बोले मानी बात तुम्हारी भाय॥
दशही चलिहैं अब भौंरिन में आल्है हुकुम दीन फर्माय१२१
मलखे सुलखे देवा आल्हा इन्दल तुरत भयो तय्यार॥
जोगा भोगा मन्ना ब्रह्मा जगनिक भैनचँदेलेक्यार १२२
चढ़ि चढ़ि घोड़ा हाथिन ठाकुर मड़येतर को भये तयार॥
सुमिरि शारदा मइहवाली ऊदनपलकी भे असवार १२३
नरपति राजा के द्वारेपर पहुँचे तुरत बनाफरराय॥
मकरँद ठाकुर सब वीरन को घरके भीतरगयो लिवाय १२४
फाटक बन्दीकरि नरपति ने कन्या तुरत लीन बुलवाय॥
वर औ कन्या इकठोरी भे भौंरिनसमयगयोतहँआय १२५
फुलवा ऊदन का गठिबन्धन नाइनि वारिनि दीन कराय॥
पग परछाल्यो नरपति राजा कन्या दान दीन हरषाय १२६
पहिली भाँवरिके परतै खन सबियाँ शूर गये तहँ आय॥
मारु मारु का हल्ला ह्वैगा येऊ उठे तड़ाका धाय १२७
आधे आँगन भाँवरि होवैं आधे चलन लागि तलवार॥
मारे मारे तलवारिन के आँगन बही रक्तकी धार १२८
कोगति बरणै रजपूतन कै मानैं नहीं नेकहू हार॥
ना मुँह फेरै नरवलवाले नाई मोहबे के सरदार १२९
बड़ी गचापच भै आँगन में मुण्डन लागे ऊंच पहार॥
जोगा भोगा दोनों भाई दोनों हाथ करैं तलवार १३०
बड़ा लड़ैया मकरँद ठाकुर आँगन भली मचाई रार॥
जीति न दीख्यो इन दशहू ते नरपति गयो हियेसोंहार १३१
हाथ जोरिकै नरपति बोल्यो मानो कद्दी बनाफरराय॥

पाजी लरिका मकरन्दा है ज्यहियहदीन्ह्योरारिमचाय १३२
स्याबसिस्याबसि तुमकाआल्हा काहे न बिजयहोय सबकाल॥
मलखे सुलखे जिनके भाई नामी बच्छराजके लाल १३३
मेलजोल भा दुहुँ तरफा ते ह्वैगै मारु बन्द त्यहिकाल॥
सातों भाँवरि फुलवा सँगमें घूमी देशराज के लाल १३४
राजा नरपति के महलन में तुरतै भात भयो तय्यार॥
भयो बुलौवा फिरि क्षत्रिनको पहुँचे मोहबे के सरदार १३५
जेंवन बैठे आल्हा ऊदन तबहूँ चलनलागि तलवार॥
गेडुवा पाटन की मारुन में सबियाँ शूरगये तहँ हार १३६
कीनि नम्रता फिरि नरपतिने बेटी बिदा दीन करवाय॥
दायज दीन्ह्यो भल नरपतिने आल्हासबधनदीनलुटाय१३७
उठी पालकी नृप द्वारेते तम्बुन फेरि पहूँची आय॥
कूचको डङ्का बाजन लाग्यो हाहाकार शब्द गोछाय १३८
खीमा उखरे रजपूतन के सो छकरन में लिये लदाय॥
कूच करायो नखरगढ़ते मोहबे चले शूर समुदाय १३९
बारा दिनका धावाकरिकै दशहरिपुरै पहूँचे आय॥
दगैं सलामी तहँ आल्हाकी सुनवाँचढ़ी अटापरधाय १४०
दीख कबुतरी पर मलखाने बेंदुल चढ़ा लहुरवाभाय॥
आल्हा इन्दल इक हौदा पर सुनवाँ गई द्वारपर आय १४१
पलकी आई तहँ फुलवा की नारिन कीन नेग सबगाय॥
घर के भीतर के जानेकी पण्डितसाइतिदीनबताय १४२
बधू पुत्र घर भीतर गमने द्यावलि रूपन लीन बुलाय॥
जल्दी जावो तुम मोहबे को मल्हनैखबरिजनाबोजाय १४३
इतना सुनिकै रुपना चलिभा मल्हना महल पहूँचाआय॥

खबारि सुनाई सब मल्हना को रुपना बारबार शिरनाय १४५
बारह रानी परिमालिक की अपने कीन सबन श्रृंगार॥
मनियादेवन को सुमिरन करि पलकी उपरभईं असवार १४६
आल्हा ऊदनके महलन में रानी गई तड़ाका आय॥
रूप देखिकै तहँ फुलवा को रानिनखुशीभईअधिकाय १४७
विदा माँगिकै न्यवतहरी सब अपने नगर चले ततकाल॥
बाजत डङ्का अहतङ्का के पहुँचतभयेनगरनरपाल १४८
पूर मनोरथ भे ऊदन के घर घर भयो मंगलाचार॥
ब्याह पूरमा अब फुलवा का सोये सबै शूरसरदार १४९
खेत छूटि गा दिननायक सों झंडा गड़ा निशाकरकेर॥
तुम सों ब्रह्मा यह मागतहौं सबबिधिअपनिदीनताहेर १५०
नदी औ परबत चहु जंगल में कतहूँ जाय लेउॅ अवतार॥
तहँ तहॅ स्वामी रघुबर होबैं चाहौं यही सृष्टि कर्त्तार १५१
करों वन्दना पितु अपने की दोऊ हाथ जोरि शिरनाय॥
आशिर्बाद देउॅ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायणभाय १५२
बढ़ै साहिवी दिन दिन दूनी औ कविकरैं मुसुयशकोगान॥
ललिते ऐसे नर दुर्बल को करतो, मकौनऔर सनमान १५२
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललितेके तबलों तुम यशसोंरहौ सदा भरपूर १५३
माथ नवाबों शिवशंकर को ह्याँते करों तरँग को अन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देखैं इच्छा यही भवानीकन्त १५४

इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूरप्रयागनारायण
जीकी आज्ञानुसार उआआमप्रदेशान्तर्गातपँड़रीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भव बुधकृपा-
सूंनु पण्डितललिताप्रसादकृतउदनपाणिग्रहणवर्मनानामतृतीयस्तरंगः॥३॥

इति उदयसिंहका बिवाह सम्पूर्ण॥