कपालकुण्डला/द्वितीय खण्ड/४

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[ ५३ ]

:४:

पालकी सनारीसे

—“खुलिन् सत्वरे,
कंकण, वलय, सींथि कण्ठमाला,
कुण्डल, नूपुर, काँची।”

—मेघनाद वध
[१]

अब उन गहनोंकी क्या दशा हुई सुनो। मोती बीबीने गहना रखनेके लिए हाथीदाँतका बना एक बक्स भेज दिया। उस सन्दूकपर चाँदी जड़ी हुई थी। डाकुओंने बहुत थोड़ी ही चीजें लूटी थीं। पासमें जो कुछ था वही लूटा; इसके अतिरिक्त पीछे सेवकोंके पास जो था, वह बच गया था।

नवकुमारने दो एक गहने कपालकुण्डलाके शरीरपर छोड़कर शेष सबको सन्दूकमें रख दिया। दूसरे दिन सबेरे मोतीबीवीने वर्द्धमानकी तरफ और नवकुमारने सप्तग्रामकी तरफ यात्रा की। नवकुमारने कपालकुण्डलाको पालकीपर बैठा गहनोंका सन्दूक साथ ही रख दिया। कहार सहज ही नवकुमारको पीछे छोड़ आगे बढ़ गये। कपालकुण्डला पालकीका दरवाजा खुला रख चारो तरफ देखती जा रही थी। एक भिक्षुक उसे देख दौड़ लगाकर भीख माँगता हुआ पालकीके साथ-साथ चलने लगा।

कपालकुण्डलाने कहा—“मेरे पास तो कछ भी नहीं है, तुम्हें क्या दूँ?” भिक्षुकने कपालकुण्डलाके अंगपरके गहने दिखाकर कहा—यह क्या कहती हो माँ! तुम्हारे पास हीरे-मोतीके गहने हैं—तुम्हारे पास क्यों नहीं?”

[ ५४ ]कपालकुण्डला ने पूछा—“गहना पा जानेसे तुम सन्तुष्ट हो जाओगे?”

भिक्षुक कुछ विस्मित हुआ। भिक्षुककी आशा असीमित होती है। और बोला—“क्यों नहीं, माँ।”

कपालकुण्डला ने अकपट हृदयसे कुल गहने, मय सन्दूकके भिखमंगेको दिए। शरीरके गहने भी उतारकर दे दिए।

भिक्षुक विह्वल हो गया। दास-दासी कोई भी जान न सका। भिक्षुक का विह्वल भाव क्षणभरका था। इधर-उधर देखकर एक साँससे एक तरफ भागा। कपालकुण्डलाने सोचा—“भिक्षुक भागा कयों?”

 


  1. अनुवादक की भ्रान्ति। मूलमें है:

    —“खुलिनु सत्वरे,
    कंकण, वलय, हार, सींथि, कण्ठमाला,
    कुण्डल, नूपुर, काँची।”
    मेघनादवध