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कामना/पुस्तक विज्ञापन

विकिस्रोत से
कामना
जयशंकर प्रसाद

वाराणसी: हिंदी पुस्तक भंडार, पृष्ठ पुस्तक-विज्ञापन से – १८ तक

 

१-विद्यापति की पदावली

अखिल-भारतवर्षीय हिन्दी-साहित्य सम्मेलन की उत्तमा-परीक्षा में स्वीकृत पाठ्यग्रंथ

सम्पादक-श्रीरामवृक्ष शर्मा बेनीपुरी, 'बालक'-सम्पादक

मासिकपत्रों की महारानी 'माधुरी' लिखती है-इस पुस्तक में मैथिल-कोकिल विद्यापति के २६५ पद्यों का संग्रह है। इसमें कोई संदेह नहीं कि शृंगारी कवियों मे उनका उच्च स्थान है। तीन-तीन प्रान्तों में उनकी कविता का आदर है। उनकी भाषा में जो माधुर्य है, वह अलंकृत-काल के अनेक कवियों में, अस्वाभाविक रूप से प्रयत्न करने पर भी, नहीं आया। उनकी कविता में स्वाभाविकता का सर्वत्र प्रमाण मिलता है। हिन्दी शृंगारी कवियों में 'हृदय-हीनता' का जो दोषारोपण किया जाता है, उससे वह सर्वथा विमुक्त हैं। प्रस्तुत पुस्तक में, आरम्भ के ५० पृष्ठों में, विद्यापति का परिचय दिया गया है। उनके सम्बन्ध में जितनी जानने योग्य बातें हैं, उन सबका बहुत अच्छी तरह विवेचन किया गया है। भारतीय कला के सुप्रसिद्ध चित्रकार धुरंधर महाशय के ९ चित्रों ने इस पुस्तक की शोभा को कई गुना बढ़ाकर काव्य और चित्रकला का परस्पर गहन सम्बन्ध पूर्ण रीति से प्रगट कर दिया है। यह संस्करण बहुत ही अच्छा निकला। पाद-टिप्पणियाँ बहुत ही उपयोगी हैं। इस संस्करण की उपयोगिता के विषय में हम केवल यही कह सकते है कि हमारे एक मित्र, जो हिन्दी-साहित्य से सर्वथा विरक्त थे, इन पाद-टिप्पणियों की सहायता से विद्यापति का अध्ययन करके ही, हिन्दी साहित्य के उपासक बन गये। Lala Lajpat Rai's world-renowned weekly 'The People wites-Vidyapati is one of the most brilliant jewels of the classical Hindi literature. His place in the History of Hindi poetry is unique. He is second to Surdas only in beautifully depicting Radha's passion His choice of words is matchless and most appropriate In sweetness and eloquence he excells all Hindı writers of his age Pandit Rama Briksha Sharma of Benipur has brought out a beautiful selection of Vidyapati's poem of concise form. The book contains a beautiful preface which gave Vidyapatı’s life and an estimate of his poetry Every reader of the beautiful selection of Vidyapatı's poems is sure to be rewarded with delight and pleasure that are the fruit of literary pursuits

सुन्दर रेशमी जिल्द, सुन्दर नौ चित्र, रेशमी बुकमार्क और चिकने आवरण आदि से सुशोभित, मूल्य २)

२-बिहारी-सतसई

टीकाकार-श्रीरामवृक्ष शर्मा बेनीपुरी

केवल छः महीने में प्रथम संस्करण बिक गया

अबतक सतसई की जितनी टीकायें निकली हैं, यह उन सबसे सुन्दर, सरल, सुसम्पादित और सस्ती है। यह परिष्कृत और सम्वर्द्धित द्वितीय संस्करण पहले संस्करण से सुन्दरता, सरलता और सस्तापन, सभी में बढ़ा-चढ़ा है। प्रत्येक दोहे के नीचे उसका स्पष्ट अन्वय, अन्वय के नीचे अत्यन्त सरल भाषा में प्रामाणिक अर्थ, अर्थ के नीचे कठिन शब्दों के सरलार्थ, नोट में दोहे की खूबियाँ और उस दोहे के समान अर्थ वाले उर्दू तथा संस्कृत भाषाओं के अवतरण दिये गये हैं। थोड़ा पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी इसे पढ़कर सतसई का पूरा मजा लूट सकता है। टीकाकार ने कवि के गूढ़ आशय की बारीक सरसता को साफ आइने की तरह झलका दिया है। आरम्भ में सरस-साहित्य-शिल्पी बाबू शिवपूजनसहाय लिखित 'सतसई का सौन्दर्य'-शीर्षक एक सरस निबन्ध है, जिसे पढ़कर बरबस मुग्ध हो जाना पड़ता है। इस नये संस्करण में दोहों की संख्या के साथ-साथ विषय-वर्णन-सूची भी जोड़ दी गई है। छपाई-सफाई की शुद्धता और सादगी देखने ही योग्य। पाकेट साइज। पृष्ठ-संख्या ४००। सुन्दर सादा कवर सहित का मूल्य १₹, कपडे की जिल्द १॥₹


सुन्दर-साहित्य माला

१-पद्य-प्रसून

रचयिता-साहित्यरत्न पं॰ अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध

'सम्मेलन-पत्रिका' लिखती है-कविवर उपाध्यायजी के सरस पद्यों का यह एक सुन्दर संग्रह है। उपाध्यायजी के कवित्व पर कौन संदेह कर सकता है। आपकी प्रतिभा वास्तव में ऊँची और मनोमुग्धकारिणी है। हिन्दी-संसार को उपाध्यायजी की रचनाओ पर अभिमान है। वास्तव मे वह एक युग के कवि हैं। उन्हीं की सुन्दर कविताओं का इस पुस्तक में संकलन किया गया है। पावन प्रसंग, जीवन-स्रोत, सुशिक्षा-सोपान, जीवनी-धारा, जातियता-ज्योति, विविध विषय आदि विषयो में कवितायें विभक्त की गई हैं। अन्त में 'बालविलास' नाम के विभाग में बाल-सम्बन्धी कविताओं का बड़ा सुन्दर संग्रह किया गया है। प्रकाशक महाशय ने उपाध्यायजी की सुन्दर कविताओं का संग्रह प्रकाशित कर वास्तव में प्रशंसनीय कार्य किया है, जिसके लिए हम उन्हें बधाई देते है। पृष्ठ-संख्या लगभग ३००, कागज मोटा, छपाई सुन्दर, जिल्द पक्की, मूल्य १॥)

२-दागे 'जिगर'

लेखक-साहित्य-भूषण श्रीरामनाथलाल 'सुमन'

कानपुर का प्रतापी साप्ताहिक 'प्रताप' लिखता है-'जिगर' महाशय उर्दू के एक प्रसिद्ध कवि हैं। कविता वह है, जिसमें कवि का हृदय प्रतिबिम्बित हो, और जिसे पढ़ते ही पाठक के दिल में एक खास तरह की गुदगुदी हो उठे। 'जिगर' प्रकृत कवि हैं। उनके कलाम लाजवाब हैं। 'जिगर' अपनी रचनाओं में बहुत ऊँचे उठे हैं और कही-कहीं तो वे 'बेखुदी' के सुखद सरोवर में इतना ऊँचे उठे हैं कि सरोवर के किनारे खड़े रहने वाले को दिखाई भी नहीं पड़ते। 'जिगर' की भावपूर्ण रचनाओं पर 'सुमनजी' की टिप्पणियाँ बहुत सुन्दर हैं। उनसे उर्दू का स्वल्प ज्ञान रखने वालों को भी 'जिगर' की रचनायें समझने में बड़ी मदद मिलेगी। 'सुमनजी' स्वयं कवि हैं। दर्द-भरे दिल की बात समझकर एक वैसा ही हृदय उस पर वास्तविक प्रकाश डाल सकता है। हमें आशा है कि यह पुस्तक हिन्दी के काव्य-साहित्य मे यथेष्ट आदर पावेगी।

छपाई-सफाई दर्शनीय। पक्की जिल्द। मू॰ १₹

३-निर्माल्य

रचयिता-कविरत्न पं॰ मोहनलालमहतो गयावाल 'वियोगी'

'सम्मेलन पत्रिका' लिखती है-पुस्तक अत्यन्त उत्तम और हिन्दी कविता-क्षेत्र की एक नई वस्तु है। कवि सहृदय हैं। आपकी कविता अति उच्च श्रेणी की होती है। 'निर्माल्य' की-सी कवितायें हिन्दी-जगत् में युगपरिवर्तन करने में सहायक हो सकती हैं। हमें आशा है, 'निर्माल्य' की गिनती उन पुस्तकों में होगी, जिन पर खड़ी बोली कुछ अभिमान कर सकती है। Mahamahopadhyay Dr Ganganath Jha, M.A., D. Lit. Vice Chancellor, Allahabad University writes-Many thanks for the copy of Nirmalya It is refreshing to find a young poet beating out a new path for himself and succeeding therein I have read the poems with great interest, I wish the writer every success in life प्रयाग की प्रसिद्ध मासिकपत्रिका 'मनोरमा' लिखती है-नवीन युग के कवियों मे श्रीमोहनलाल महतो का एक खास़ स्थान है। आपकी प्रतिभा वास्तव में प्रखर और उच्च है। हमने इस पुस्तक को आदि से अन्त तक पढ़ा। प्रत्येक छन्द दार्शनिक भावों से भरा हुआ है। पुस्तक बहुत सुन्दर छपी हुई है। हम हिन्दीवालों से सिफारिश करते है कि वे इस नवीन काव्यग्रंथ को अवश्य देखें। Dr. Sir Rabindranath Tagore's Private Secretary writes-Dr. Tagore sends his best thanks for copy of your book of verses Nirmalya He is impressed by the use you have made of new metres and rhyme combinations in your poetry The book is sent on to our library where it will be lead with interest by our scholars working on Hindi.

देशमान्य श्री बाबू राजेन्द्रप्रसादजी, एम. ए., एम. एल लिखते हैं-मैं 'निर्माल्य' को प्राय आद्योपान्त पढ़ गया, और कुछ अंशो को तो एक बार से अधिक। हिन्दी कविता मे एक बड़ा परिवर्तन होता दीख रहा है, और आपका 'निर्माल्य' भी उस परिवर्तन मे सहायता पहुँचा रहा है। भाव और भाषा में सामंजम्य है। अनेक स्थानों पर भाव और भाषा दोनों का ही बड़ा उत्कर्ष है। आशा है, आपके द्वारा मातृभाषा के पुनीत चरणों पर ऐसे ही अलौकिक 'निर्माल्य' चढ़ते रहेंगे।

सुन्दर रेशमी जिल्द, रचयिता का सचित्र परिचय, मूल्य १)

४-महिला-महत्त्व

लेखक-श्रीशिवपूजनसहाय

'ब्राह्मण सर्वस्व' (होलिकांक) लिखता है-श्रीयुक्त बा॰ शिवपूजन सहायजी सरस एवं गद्यकाव्य के लक्षणों से समन्वित भाषा लिखने में सिद्धहस्त हैं, यद्यपि इसका आभास हम उनके सम्पादित मासिकपत्रों में ही पा चुके हैं, पर इस पुस्तक को देखने से यह भाव और भी पुष्ट हो गया है। इस पुस्तक में १० महत्त्वपूर्ण आख्यायिकायें हैं। इनकी सामग्री का संग्रह टाड साहब के राजस्थान से एवं जनश्रुत घटनाओं से किया गया है, पर भाषा और भाव आदि सभी लेखक के होने से इसको लेखक की मौलिक रचना कहना सर्वथा उपयुक्त है। इसकी भाषा सरसा, सालंकारा और सानुप्रासा है। इसमें संस्कृत गद्यकाव्य कादम्बरी की छटा दिखलाई पड़ती है। हिन्दी-उर्दू के वर्तमान और प्राचीन कवियों की कवितायें भी यत्रतत्र उद्धृत की गई हैं। पुस्तक की भाषा इतनी सुन्दर है और पतिव्रता नारियों का चरित्रचित्रण इतना मनोरम हुआ है कि एक-आध दोष चंद्रमा में कलंक की तरह उसकी शोभा को बढ़ाने वाला ही है। छपाई और कागज आदि सुन्दर है। सचित्र। मूल्य २)

५-कविरत्न 'मीर'

लेखक-साहित्य-भूषण श्रीरामनाथलाल 'सुमन'

कलकत्ते का प्रसिद्ध पत्र 'मतवाला' लिखता है-'कविरत्न मीर'-मजबूत जिल्द से ढँकी हुई, छपाई-सफाई और कागज प्रशंसनीय। श्रीयुत 'प्रेमचंदजी' का दो शब्द, बाबू शिवपूजनसहायजी का 'परिचय' और फिर लेखक का लिखा 'बेहोश लहरों में' इस पुस्तक के अग्र भाग की शोभा बढ़ा रहे हैं। 'दागे जिगर' की अपेक्षा 'कविरत्न मीर' की समालोचना मे 'सुमनजी' अधिक सफल हुए हैं।...अर्थ सुमनजी ने बड़ा ही साफ और मर्मस्पर्शी किया है। पढ़कर एकाएक हृदय काँप उठता है। 'सुमनजी' वास्तव में कविता के मर्मज्ञ हैं। समालोचना सूक्ष्मदर्शिता की पराकाष्ठा तक पहुँच गई है। खटकने वाला एक शब्द भी नहीं। इस पुस्तक को पढ़कर 'सुमनजी' की कृपा से 'मीर' की कविता का जो आनन्द मिला, उसकी याद मेरी स्मृति की अन्तिम सामग्री होगी। ऐसी पुस्तकों के प्रकाशक को हजारों धन्यवाद।

ऐसी सर्वप्रशंसित पुस्तक का मूल्य केवल १॥।)

६-बिहार का साहित्य

हास्य-रसावतार पं॰ जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी, गद्य-कवि राजा राधिकारमण प्रसाद सिंहजी, सुसमालोचक बाबू शिवनंदन सहाय, साहित्यमर्मज्ञ पं॰ सकलनारायण शर्मा और भारतेन्दु के समकालीन वयोवृद्ध कवि पं॰ चन्द्रशेखरधर मिश्र के बिहार-प्रादेशिक हिन्दी साहित्य-सम्मेलन के अध्यक्ष-रूप से दिये गये भाषणों का यह सुसम्पादित संग्रह है। बिहार-रत्न बाबू राजेन्द्र प्रसाद एम॰ ए॰, एम॰ एल॰ आदि पाँच स्वागताध्यक्षो के भाषण भी इसमें संकलित हैं। देखिये, इसके विषय मे पटने का सुप्रसिद्ध अँगरेजी-द्विदैनिक 'सर्चलाइट' क्या लिखता है—The gentlemen concerned are wellknown in Hindi literary world and their addresses, both in form and matter, have certainly more than ephemeral interest attached to them. It was therefore a happy idea to bring out a collection of those addresses. We would particularly commend to the readers the remarkable address of Raja Saheb Surajpura. It is all poetry in prose We congratulate the publishers on then happy idea of bringing out this volume

पृष्ठ-संख्या ३००, पाँचो सभापतियों के चित्र, पक्की जिल्द, मू॰ १॥)

७—देहाती दुनिया

लेखक—श्रीशिवपूजनसहाय

पटने का प्रसिद्ध साप्ताहिक 'देश' लिखता है—हिन्दी-संसार में बाबू शिवपूजन सहाय को कौन नहीं जानता। आप हास्यरस के बड़े ही रसिक है। आपने जितनी पुस्तकें लिखी हैं, सब-के-सब चित्ताकर्षक एवं दिल को लोटपोट कर देने वाली हुई हैं। 'देहाती दुनिया' आपकी एक नवीन रचना है। आँखें चाहती हैं, हमेशा उलट-पलटकर देखते ही रहे। गौर कर देखने से ठेठ दिहात का साक्षात् चित्र आँखों के सामने नाचने लगता है। अखिल-भारतवर्षीय हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन की मुख पत्रिका 'सम्मेलन-पत्रिका' लिखती है—सुन्दर हृदय-प्राही और उत्कृष्ट हिन्दी-भाषा तथा देवनागरी लिपि में सुन्दर लेखन (हैंडराइटिग) के लिए जो शिवपूजन सहाय हिन्दी-संसार में प्रसिद्ध हैं, उन्हीं का लिखा हुआ यह ठेठ दिहाती घटनाओं से पूर्ण एक सामाजिक मौलिक उपन्यास है। इसकी वर्णनशैली रोचक और सजीव एवं कथानक स्वाभाविक चित्ताकर्षक है। सुन्दर और उत्कृष्ट भाषा लिखने में सिद्धहस्त बाबू शिवपूजन सहाय ने देहातियों के लिए उपयुक्त ठेठ हिन्दी मे इस उपन्यास को लिखकर अपनी लेखन-कला-कुशलता का अच्छा परिचय दिया है। मध्यप्रदेश का प्रबल साप्ताहिक 'कर्मवीर' लिखता है—शहराती मनचले अपने अधूरे आदर्शवाद और शाब्दिक ज्ञान के सहारे चाहे पुस्तक का मूल्य नहीं समझें, किन्तु उन ग्रामीणों के लिए—जिनकी जीवन-घटनाओं का अनुभव कर यह पुस्तक लेखक ने लिखी है—मनोरंजन और उपदेश का अच्छा साधन है।

सुन्दर चमकीली जिल्द पर सोने के अक्षरों में नाम, आयल पेपर का आवरण, रेशमी बुकमार्क। मूल्य १॥ )

८—प्रेम-पथ

लेखक—पंडित भगवतीप्रसाद वाजपेयी

कानपुर का प्रतापी 'प्रताप' अपनी लम्बी समालोचना में लिखता है—पुस्तक एक मौलिक सामाजिक उपन्यास

कहानी, लेखक की शैली, भाषा, चरित्र-चित्रण तथा भाव इतना सुन्दर, प्रिय, साहित्यिक और मनोहर है कि पाठक मानों भा थके उद्यान में विचर रहे है। भाषा की दृष्टि से एक बार इन फिर कहते हैं कि पुस्तक बहुत साहित्यिक और मर्मस्पर्शिनी है। अपनी आलोचनात्मक भूमिका में प्रेमचंदजी लिखते है—भगवतीप्रसादजी ने हिन्दी-संसार को यह बहुत ही अच्छी वस्तु भेंट की है। इसमे वासना और कर्तव्य का अन्तर्द्वन्द्व देखकर आप दंग हो जायेंगे।

अँगरेजी ढंग की पक्की जिल्द, सुनहला नाम, सुन्दर आवरण, रेशमी बुकमार्क, छपाई शुद्ध-सुन्दर, मूल्य २)

९—नवीन वीन

रचयिता—प्रोफेसर लाला भगवान 'दीन'

'सम्मेलन-पत्रिका' लिखती है—यह ग्रंथ प्रोफेसर लाला भगवानदीनजी की ४२ सरस कविताओं का संग्रह है। २० कविताये सचित्र हैं। दीनजी हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध समालोचक, ब्रजभाषा के मर्मज्ञ तथा सहृदय कवि है। खड़ी बोली में, उर्दू-कविता के वजन पर, कविताये लिखने मे आप सिद्धहस्त हैं। इस संग्रह में आपकी वीर-रस, प्रकृति-वर्णन, ऋतु-वर्णन तथा देशभक्तिपूर्ण अनेक कविताये बहुत सुन्दर है। आपकी लिखी ब्रजभाषा की कवितायें भी इसमें संग्रहीत है। दीनजी की स्फुट कविताओं का संग्रह अभी तक नहीं निकला था। प्रकाशक ने आपकी कविताओं का संग्रह निकालकर हिन्दी के आधुनिक ख्यातनामा कवियों की कविताओं के संग्रह-साहित्य के एक अभाव की पूर्ति की है।

कागज और छपाई-सफाई सुन्दर, पक्की जिल्द, आर्ट पेपर पर छपे चित्र, मूल्य केवल २)

१०—प्रेमिका

अनुवादक—'हिन्दूपंच'-सम्पादक पंडित ईश्वरीप्रसाद शर्मा

यह जगत्प्रसिद्ध उपन्यास-लेखिका 'मेरी कारेली' के सर्वश्रेष्ठ उपन्यास थेल्मा' का अत्यंत सरल एवं सरस अनुवाद है। इसमे आदर्श दाम्पत्य प्रेम का चित्ताकर्षक चित्र, नगर और ग्राम की युवतियों के स्वभाव के बारीक भेद, हार्दिक प्रेम का जबरदस्त आकर्षण, प्रेममयी पत्नी की पति-परायणता का अद्भुत गौरव, दिल की सच्ची लगन की अनुपम मधुरता, विलायत का पतित और घृणाजनक सामाजिक जीवन, कुसंगति का भयंकर और घातक दुष्परिणाम, विलायत का अशान्तिप्रद दाम्पत्य-सम्बन्ध, उन्नति और सभ्यता की बनावटी खाल से ढके हुए छल-दम्भ बड़े ही प्रभावशाली ढंग से अंकित हैं। लेखिका की मनोहर वर्णनशैली को भावुक अनुवादक की धारा-प्रवाह भाषा ने ऐसा सजीव बना दिया है कि देखते ही बनता है।

रेशमी जिल्द पर सुनहले अक्षर, चिकना रैपर, रेशमी बुकमार्क—सभी कुछ अनोखा और नेत्ररजक है। आरम्भ में मूल-लेखिका का समालोचनात्मक परिचय और अनुवादक का चित्र। पृष्ठ लगभग ४००; मूल्य २॥)

११—विमाता

लेखक—श्रीयुत अवधनारायण

यह एक मर्मतलस्पर्शी सामाजिक उपन्यास है। इसके ऐसा हृदयग्राही प्लाट हिन्दी के बहुत ही कम उपन्यासों को नसीब है। दो-दो संस्करणो की हजारों कापियाँ थोड़े ही समय में बिक जाना इसकी उपयोगिता का सर्टिफिकेट है। तीसरा संस्करण अत्यंत सुसज्जित एवं सुसम्पादित है। लेखक ने समाज के चरित्रों का जीता-जागता खाका सामने ला रखा है। पढ़ते जाइये और सामाजिक चरित्रों पर विचार कर देखिये कि सचमुच भारतवर्ष में यह यथार्थ घटता है कि नहीं। हम शर्तिया कह सकते हैं कि ऐसा कारुणिक मौलिक उपन्यास हिन्दी मे शायद ही कोई हो। पढ़कर आप अनायास वाहवा कह उठेंगे। इसका करुण रसात्मक वर्णन पढ़कर आँसू बहने लगते है। सरल मुहावरेदार भाषा और साहित्यिक वर्णन-छटा! सजिल्द, मूल्य २॥)


 

नवयुवक-हृदय-हार
१—प्रेम
लेखक—आचार्य अश्विनीकुमार दत्त

प्रेम क्या है? आज कल स्कूल और कालेज में, शहर और बाजार में, जो 'प्रेम' हम देखते है, प्रेम क्या वही है? नहीं, कदापि नहीं। वह प्रेम नहीं, मोह है, तृष्णा और वासना है—मृग-मरीचिका है। तो फिर प्रेम है क्या? इसकी विस्तृत व्याख्या देखनी हो, तो इसे पढ़िये। अश्विनी बाबू की सचित्र जीवनी सहित। पृष्ठ १००, द्वितीय सुसम्पादित संस्करण, मूल्य ।״)

२—जयमाल

लेखक—श्रीयुत शरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय

उपन्यास लिखने में शरत् बाबू अपना जोड़ नहीं रखते। एशिया के महान लेखकों में आपकी गिनती होती है। उन्हीं की 'परिणीता' नामक एक प्रेम-कहानी का यह सुन्दर अनुवाद है। अनुवादक हैं हिन्दी-संसार के सुपरिचित विद्वान बाबू रामधारी प्रसादजी विशारद—मंत्री, बिहार प्रादेशिक हिन्दी साहित्य-सम्मेलन। पृष्ठ १००। मूल-लेखक का चित्र। मूल्य ।״)

३—विपंची

रचयिता—साहित्य-भूषण श्रीरामनाथलाल 'सुमन'

इसमें 'सुमनजी' की चुनी-चुनाई उत्तमोत्तम कविताओं का सग्रह है। 'प्रताप' का कहना है कि 'केवल इसकी पहली कविता पर ही एक ही चवन्नी की कौन कहे, कितनी ही चवन्नियाँ—चाँदी की नहीं, सोने की—निछावर कर दी जा सकती हैं।' छपाई बिल्कुल अनूठी। सादगी में खूबसूरती! मूल्य ।)

४—कली

(तीन मधुर मस्तिष्कों का मलय-मकरन्द)

यह बिहार प्रान्त के तीन प्रतिभाशाली नवयुवक कवियों की चमत्कारपूर्ण कविताओं का संग्रह है। इसमें ऐसी-ऐसी चुभीली रचनायें हैं कि पढ़कर आप बरबस कलेजा पकड़ लेंगे। कविताओं में भावुकता और सहृदयता तथा रस-मर्मज्ञता की गहरी छाप है। छपाई-सफाई दर्शनीय। आप जेब में ही रखे फिरेंगे। मू॰ ।)

५—मधु-संचय

रचयिता—पं॰ शान्तिप्रिय द्विवेदी

यह पुस्तक नवयुवकों के हृदय को बरबस मुग्ध करने वाली है। छपाई-सफाई बिल्कुल अप-टु-डेट अँगरेजी फैशन की है। इसमें छबि, प्रेम और विरह पर प्राचीन एवं नवीन कवियों की चुनिन्दा रसीली कविताओं का संकलन किया गया है, जिससे यह एक प्रकार का अतीव मनोरंजक पद्यात्मक उपन्यास बन गया है। मूल्य ।״)

६—अन्तजर्गत

लेखक—पं॰ लक्ष्मीनारायण मिश्र

यह पुस्तक छायावाद की कविता में जागृति की नई लहर पैदा करनेवाली है। आन्तरिक वेदना का बड़ा ही कारुणिक शब्दचित्र है। भावमयी ललित रचना अत्यंत मुग्धकारिणी है। मू॰ ।)

७—मैत्रीधर्म

लेखक—श्रीयुत बाबू गुलाबराय, एम ए., एल एल. बी.

इसमें मैत्रीधर्म की अत्यन्त सरल सुबोध दार्शनिक व्याख्या की गई है। मित्र और मित्रता के गुण-दोषों की पांडित्यपूर्ण मार्मिक विवेचना ने इस पुस्तक को नवयुवको के लिए बड़ा ही उपदेशप्रद बना दिया है। झूठी मित्रता के धोखे से बचना हो तो इसे एक बार अवश्य पढ़िये। मू॰ ।)


८—यूथिका

लेखक—श्रीगोपाल नेवटिया

इसमें आठ अनूठी कहानियाँ हैं—साहित्यिक, सामाजिक और ऐतिहासिक। सभी कहानियाँ शिक्षाप्रद और सरस तथा मनोहारिणी हैं। कई कहानियाँ गद्य-काव्य की तरह अविरल आनन्द देने वाली हैं। पढ़कर और छपाई-सफाई देखकर आप निश्चय ही मुग्ध हो जायँगे। मू॰ ।״)

सरल पद्य-माला
१—बाल-विलास
रचयिता—पं॰ अयोध्यासिंह उपाध्याय

'माधुरी' लिखती है—इस छोटी सी पुस्तक में २१ विषयों को लेकर बालकोपयोगी रचना की गई है। विषय ऐसे चुने गये हैं, जिनके पढ़ने में बालकों का चित्त लगे। भला गिलहरी, बन्दर, कोयल, जुगुनू और बूँदियों के विषय में कविता पढ़ने के लिए किस बालक का मन न चाहेगा? हमारा विश्वास है, बालक-वृन्द इसे बड़े चाव से पढ़ेंगे। ऐसी प्रशंसित पुस्तिका का मूल्य ।)

२—कविता-कुसुम

सकलयिता—श्रीरामवृक्षशर्मा बेनीपुरी

हिन्दी के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध कवियों की बालोपयोगी कविताओं का इसमे सुन्दर संकलन है। समूची पुस्तक विनय-वाणी, वन-विहार, पवित्र परिवार, पुनीत पर्व, प्रकृति-पर्यवेक्षण, बुढ़ापा बनाम बचपन, वीर-विरुदावली और स्वर्गीय संदेश—इन आठ भागों में विभक्त है। कवियों में अम्बिकादत्त व्यास, प्रतापनारायण मिश्र, बदरीनाथ भट्ट, 'सनेही', अमीरअली मीर, मन्नन द्विवेदी गजपुरी, अयोध्यासिंह उपाध्याय, लाला भगवानदीन और रघुवीरनारायण मुख्य हैं। पृष्ठ-संख्या ७०, वार्डर-युक्त सुन्दर छपाई, मूल्य ।)


 

बाल-मनोरंजन-माला
'बालक'-सम्पादक द्वारा लिखित और सम्पादित
१—बगुला-भगत

लड़कों और लड़कियों के लिए बड़ी ही मनोरंजक पोथी। कई मनोरंजक चित्रों से सजाई हुई। इसमें बगुला-भगत की धूर्तता, पोठिया-देवी की चतुराई, केकड़ा-चौबे का साहस, बगुला भगत और उनकी भगतिन की चोचों का सफाया, भगत का वैराग्य, मानसरोवर के हंसों के गुरु बगुलाजी का भयानक भंडाफोड़ आदि पढ़ते ही लड़के हँसते-हँसते लोटपोट हो जाते हैं। मूल्य ।״)

२—सियार पाँड़े

'देश'—इसे पढ़ने में मन लगता है, बच्चे बड़े चाव से पढ़ेंगे। सभी पिताओं को यह पुस्तक अपने बच्चों को देनी चाहिये। 'मनोरमा'—पुस्तक बच्चों के लिए अच्छी और लाभदायक है। 'कर्मवीर'—बच्चों के मन-बहलाव के लिए यह पुस्तक है। मनोरंजन के साथ-साथ जगत का किंचित् परिचय भी बालकों को इससे होगा। मूल्य ।״)

३—बिलाई मौसी

जिस पुस्तक को देखने के लिए आज एक वर्ष से लोग होहल्ला मचा रहे थे, जिसके लिए हजारों की संख्या में माँगें आ चुकी हैं, वही पुस्तक अनोखी सजधज से छपकर तैयार हो गई है। इसमें एक दर्जन से अधिक रंग-बिरंगे मनोमोहक चित्र हैं। सुन्दर टाइप में बड़ी सफाई से छपी है। मूल्य ॥)

४—हीरामन तोता

इसका कुछ भाग तो 'बालक'-सम्पादक ने स्वयं लिखा है और कुछ भाग उनके मित्र लेखकों द्वारा लिखा गया है। प्रत्येक पृष्ठ में आकर्षण है। एक दर्जन से ऊपर सुन्दर-सुन्दर चित्र हैं, जिन्हें देखकर बालक मुग्ध हो जायँगे। ऐसी सुसज्जित, सुसम्पादित और सचित्र पुस्तक का मूल्य ॥) मात्र।

५—आविष्कार और आविष्कारक

हिन्दी-संसार में सर्वथा अपूर्व और अनूठी पुस्तक है। इसमें संसार के मुख्य-मुख्य आविष्कारों—रेल, तार, जहाज, हवाई जहाज, पनडुब्बी जहाज, ग्रामोफोन, बे-तार का तार, छापाखाना, टेलीफोन, बिज़ली—और उनके आविष्कारकों के विषय में बड़ी ही सुबोध और दिलचस्प कहानियाँ हैं, लगभग दो दर्जन चित्र हैं, जिससे विषय के समझने में जरा भी कठिनाई नहीं होती। छपाई सफाई अपूर्व! मूल्य ॥)

६—संसार के पहलवान (पहला भाग)

यदि आप चाहते हैं कि भारत के बच्चे पहलवान और वीर बनें, उनकी हड्डियाँ इस्पात-सी मजबूत और नसें विद्युद्वाही हों, तो इस पुस्तक की एक प्रति प्रत्येक बालक-बालिका के हाथ में दीजिये। यह पुस्तक शरीर को हृष्टपुष्ट बनाने की ओर उनका ध्यान आप ही खींच लेगी। संसार के नामी नामी पहलवानों के सुन्दर सुडौल शरीर देखकर बच्चे आज ही से व्यायाम की ओर झुक पड़ेंगे। लगभग डेढ़ दर्जन चित्र, तो भी मूल्य ॥)


 

महिला-मनोरंजन माला
१—दुलहिन
लेखिका—श्रीमती चन्द्रमणि देवी

'मनोरमा' लिखती है—यह नई बहुओं के लिए अत्यंत उपयोगी है। इसे प्रत्येक महिला को पढ़ना चाहिये। लेखनशैली चित्ताकर्षक और अच्छी है। आशा है, लोग इस पुस्तक का आदर करेंगे। 'कर्मवीर' लिखता है—इस पुस्तक में युवती कन्याओं को उचित उपदेश दिया गया है। पुस्तक बहुत उपयोगी है।

नई बहुओं के क्या कर्तव्य हैं, यह इसमें सरल भाषा में समझाया गया है। दूसरा संस्करण लाल बोर्डर के बीच नीली रोशनाई से मोटे अक्षरों में परम सुन्दर छपा है। मूल्य ।)

२—सावित्री

लेखिका—स्वर्गीया शिवकुमारी देवी

'प्रताप' लिखता है—छपाई-सफाई अच्छी है। पुस्तक एक बालिका—जो हिन्दी के दुर्भाग्य से अल्पायु में ही स्वर्गवासिनी हो गई—की लिखी हुई है। तथापि भाषा इतनी अच्छी है कि सहसा यह सोचकर आश्चर्य होता है कि एक बालिका इतनी अच्छी भाषा लिख सकती है। 'सम्मेलन-पत्रिका' लिखती है—पौराणिक कथानक के आधार पर इसकी रचना लेखिका ने अच्छे ढंग से की है। नवयुवतियों को इसका अध्ययन कर पतिव्रत धर्म की शिक्षा ग्रहण कर लाभ उठाना चाहिये।

नीली रोशनाई में, लाल बोर्डर के साथ, बड़ी सुन्दरता से शुद्ध छपी है। फिर भी मूल्य केवल ।)

३—अहिल्याबाई

लेखक—पं॰ जटाधर प्रसाद शर्मा 'विकल'

भारतीय नारियाँ केवल सतीत्व और वीरता ही के लिए प्रसिद्ध नहीं हैं, किन्तु समय पड़ने पर उत्कृष्ट कोटि की शासिका का काम करके भी प्रसिद्धि प्राप्त कर सकती है—इसका नमूना देखना हो तो, इस पुस्तक को पढ़िये। अहिल्या सतीत्व की साक्षात् मूर्ति और धर्म की पुण्य प्रतिमा थी। वीरता और चतुरता भी उसमें प्रचुर परिमाण में पाई जाती थी। ईश्वर-भक्तिपरायणा, प्रजावत्सला इस रमणी-शिरोमणि का चरित्र दर्शनीय है। यह भी नीली रोशनाई से बोर्डर के बीच में सुन्दरता से छपी है। भाषा सरल-सुबोध। शैली सरस और मनोरंजक। सर्वांग सुन्दर होने पर भी मूल्य केवल ।)