कोड स्वराज/परिशिष्टः पारदर्शिता कब उपयोगी होती है?
परिशिष्टः पारदर्शिता कब उपयोगी होती है?
"पारदर्शिता" एक अनिश्चित शब्द है, यह "सुधार (रिफौर्म)" शब्द जैसा होता है, जो सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन वास्तव में उसका जुड़ाव उस अनियमित राजनीतिक बात से होता है जिसे कोई बढ़ावा देना चाहता है। लेकिन इस विषय पर बात करना मूर्खतापूर्ण है कि क्या "सुधार" शब्द उपयोगी है (यह सुधार पर निर्भर करता है), आमतौर पर पारदर्शिता पर बात करके हम किसी खास निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाएंगे। सार्वजनिक से लेकर पुलिस द्वारा पूछताछ की प्रक्रिया का वीडियो टेप करने की मांग को पारदर्शिता के अंतर्गत कहा जा सकता है - इतने बड़े केटोगरी के बारे में बात करना ज्यादा उपयोगी नहीं होता है।
सामान्यतः, जब कोई व्यक्ति आपको “सुधार” या “पारदर्शिता” शब्दों का अर्थ समझाने की कोशिश करता है तो आपको उस पर संशय होना चाहिए। लेकिन विशेष रूप से, प्रतिक्रियावादी राजनीतिक आंदोलन का, स्वयम् को इस तरह के बढिया शब्दों के आवरण से ढक लेने का, एक लम्बा इतिहास है। उदाहरण के लिए, बीसवी सदी के प्रारंभिक वर्षों में हुए ‘अच्छे शासन' (गुड गवर्नमेंट: गु-गु) आंदोलन को ही देखें। इसे प्रतिष्ठित प्रमुख प्रतिष्ठानों (फाउन्डेशन्स) द्वारा वित्तीय सहायता दी गई थी और इसने यह दावा किया कि यह व्यवस्था से भ्रष्टाचार मिटायेगा और राजनीतिक तंत्र की बुराईयों को दूर करेगा, जो लोकतंत्र के विकास में बाधक बन रहे हैं। ऐसा होने के बजाय यह लोकतंत्र के लिये ही बाधा बन गया। यह उन वामपंथी उम्मीदवारों के लिये, जो अब निवाचित होने के कगार पर थे, उनके निर्वाचन में बाधक बन गये।
गु-गु सुधारकों ने कई सालों तक चुनावों को संचालित किया। उन्होंने शहरी राजनीति को राष्ट्रीय राजनीति से अलग करने का दावा किया लेकिन इनका वास्तविक प्रभाव था मतदाताओं को हतोत्साहित कर मतदान में उनकी उपस्थिति को कम करना। उन्होंने राजनेताओं को वेतन देना बंद कर दिया था। यह भ्रष्टाचार को कम करने की उम्मीद से लिया गया कदम था लेकिन इससे केवल यह सुनिश्चित हो सका कि सिर्फ धनी लोग ही चुने जाने के लिये आगे आयेंगे। उन्होंने चुनावों में पक्ष (पार्टी) की भूमिका को हटा दिया। शायद ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि शहरी चुनावों का संबंध स्थानीय मुद्दों से था, न कि राष्ट्रीय राजनीति से। लेकिन इसका प्रभाव व्यक्ति विशेष के नाम की शक्ति को बढ़ाना था, पर मतदाताओं के लिए यह समझना मश्किल हो गया कि कौन-सा उम्मीदवार उनकी तरफ का है। और उन्होंने मेयरों की जगह, अनिवार्चित शहरी प्रबंधकों को नियुक्त कर दिया जिससे चुनाव में विजयी होने पर भी विजयी उम्मीदवार कोई प्रभावी बदलाव नहीं ला पाते थे।1
स्वाभाविक रूप से, आधुनिक पारदर्शिता आंदोलन प्राचीन ‘अच्छे शासन’ (गु-ग) आंदोलन से काफी भिन्न है। लेकिन इसकी कहानी से यह स्पष्ट होता है कि हमें लाभ-निरपेक्ष (नान-प्रौफिट) प्रतिष्ठानों की सहायता से सतर्क रहना चाहिए। मैं पारदर्शिता सोच की एक और कमी को ओर ध्यान दिलाना चाहता हूँ और यह दिखाना चाहता हूँ कि कैसे यह काम को बिगाड़ सकता है। इसकी शुरूआत ऐसी चीज के साथ होती है जिससे आपको असहमत होना मुश्किल होता है।
आधुनिक समाज में नौकरशाही का जन्म हुआ है और आधुनिक नौकरशाही का संचालन कागजों-पत्रों, ज्ञापनों, रिपोर्टो, फौर्मों और फाइलों की प्रणाली पर होता है। जनता को इन आंतरिक दस्तावेजों को देखना वास्तव में अच्छा लगता है और वास्तव में इन दस्तावेजों के प्रकाशन से अच्छे परिणाम भी प्राप्त हुए हैं। भले ही ये दस्तावेज़ राष्ट्रीय सुरक्षा अभिलेखागार (नेशनल सिक्युरिटी आर्काइव) के हों, जिसे सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम । (एफ.ओ.आई.ए) के चलते प्रकाशित किया जा सका, और जिससे इस बात का पता चल सका है कि दशकों से हमारी सरकार पूरे विश्व में अनेक गलत काम कर रही थी। अथवा ये दस्तावेज वो हों जिसे कार्ल मालामुद और उसके स्कैनिंग के चलते हमें मिले हों, जिसने बहुत ही ज्यादा मात्रा में, सरकार के उपयोगी दस्तावजों को, कानून से लेकर फिल्मों तक के दस्तावेजों को, इंटरनेट के माध्यम से सभी लोगों को उपलब्ध करा दिया है।
मुझे ऐसा संदेह है कि कुछ लोग अपनी राजनीतिक प्राथमिकताओं की सूची में “सरकारी दस्तावेजों को वेब पर प्रकाशित करने” को उपर रख सकते हैं, लेकिन यह बहुत ही सहज परियोजना है (यह एक प्रकार से कई सामाग्रियों को स्कैनरों से गुजारना ही है) और इसमें बहुत अधिक खतरा भी नहीं है। सबसे बड़ी चिंता की बात है- निजित्व (प्राइवेसी) की -जिसको बचाये रखने के लिये उचित कदम उठाये जा चुके है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, एफ.ओ.आई.ए और निजत्व अधिनियम (प्राइवेसी एक्ट, पी.ए) इस संबंध में स्पष्ट दिशा-निर्देश देता है कि लोगों के निजित्व की रक्षा करते हुए, दस्तावेजों के प्रकाशन को कैसे सुनिश्चित किया जा सकता है।
संभवत: सरकारी दस्तावेजों को ऑनलाइन करने की अपेक्षा यह अधिक उपयोगी होगा कि कॉर्पोरेट और लाभ-निरपेक्ष रिकॉर्डों तक की पहुंच, सार्वजनिक बनाई जा सके। औपचारिक सरकार से बाहर, कई राजनीतिक क्रिया-कलाप होते हैं और इस प्रकार वे एफ.ओ.आई.ए कानून के कार्य क्षेत्र से बाहर होते हैं। लेकिन ऐसी चीजें, पारदर्शिता पर कार्य करने वाले । कार्यकर्ताओं से रडार से पूर्णत: बाहर होती हैं। इसके बजाय बड़े-बड़े निगम, जिन्हें सरकार से अरबों डॉलर के अनुदान प्राप्त होते हैं, अपने दस्तावेजों को पूर्णत: गुप्त रखते हैं।
निगम है, जिसने आपके चुनाव अभियान के लिए धन की व्यवस्था की है। वास्तव में ऐसी स्थिति में आप, किसी भी एक पक्ष की अत्यधिक नाराज़गी, सम्हाल नहीं सकते हैं। इसलिए, कांग्रेस समझौता कराने का प्रयास कराती है। इस तरह की समझौता का उदाहरण है, ट्रांसपोर्टेशन रिकॉल एन्हांसमेंट, अकांउटबिलिटी, एंड डॉक्मेंटेशन (टी.आर.ई.ए.डी) अधिनियम। सुरक्षित कारों की मांग के बजाय, कांग्रेस कार कंपनियों से यह अपेक्षा करती है कि उनकी कार की किन किन स्थितियों में लुढ़कने की संभावना है इसका वे रिपोर्ट करें और यह है पारदर्शिता की फिर से जीत!
या, एक और ज्यादा प्रसिद्ध उदाहरण यह है: वाटरगेट कांड के बाद, लोग इस बात से काफी खिन्न थे कि राजनेताओं को बड़े निगमों से लाखों डॉलर मिलते हैं। लेकिन, दूसरी ओर निगम, राजनेताओं को धन उपलब्ध कराने में काफी तत्पर रहते हैं। इसलिए इस परिपाटी पर रोक लगाने के बजाय, कांग्रेस ने केवल यह मांग की कि राजनेता ऐसे सभी लोगों पर नज़र रखें, जो उन्हें धन मुहैया कराते हैं, और वे इसका एक रिपोर्ट सार्वजनिक निरीक्षण के लिए पेश करें।
मुझे इस तरह की परिपाटी बहुत ही हास्यास्पद लगती है। जब आप एक नियामक (रेगुलेटरी) एजेंसी बनाते हैं, तो आप ऐसे लोगों का समूह बनाते हैं जिनका कार्य कुछ समस्याओं का हल करना होता है। उन्हें उन लोगों की जांच करने का अधिकार दिया जाता है, जो कानून तोड़ रहे हों और उन्हें ऐसा प्राधिकार (आथोरिटी) दिया जाता है कि वे उन । लोगों को दंडित कर सकें। दूसरी ओर, पारदर्शिता ऐसे कार्यों को सरकार को देने के बजाय औसत नागरिकों को सौंप देती है, जिनके पास ऐसे प्रश्नों को जांच करने के लिए, न तो समय है और न ही क्षमता। और उनेके द्वारा इसके बारे में कुछ कदम उठाना तो दूर की बात होगी। यह एक तमाशा है। जिससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस इस महत्वपूर्ण मुद्दे के बारे कुछ कार्य कर रही है, लेकिन निगम प्रायोजकों (स्पोन्सस) को बिना किसी खतरे में डाले।
यह वह स्थिति है जब बीच में प्रौद्योगिकीविद आते हैं। “कुछ चीजों के बारे में आम जनता को ठीक से समझना जरा मुश्किल होता है?” उनसे यह सुनने को मिलता है कि “हमलोग जानते हैं उसे कैसे ठीक करना है” इसलिए वे डाटाबेस की एक कॉपी डाउनलोड करते हैं और आम जनता के उपयोग के लिए इसे इन्टरनेट पर डाल देते है - इसके सारांश आंकड़े तैयार कर के, उसके आस-पास सुंदर चित्रों को डाल कर के, और इसमें कुछ खास सर्च और विजुअलाइजेशन की विशेषता के साथ। अब जांच करने वाले नागरिक, इंटरनेट पर जाकर इस बात का पता लगा सकते हैं कि उनके राजनेताओं को वित्तीय सहायता कौन कर रहा है, और उनकी कार कितनी खतरनाक हैं।
सुस्त लोग इसे पसंद करते हैं। हाल ही के अनेक विनियमनहीनता (डीरेगुलेशन) से प्रभावित और सरकार विरोधी भावना से ओतप्रोत लोग, सरकार के प्रति शंकित रहते हैं। उनका कहना है कि “हम नियामकों (रेगुलेटरों) पर विश्वास नहीं कर सकते हैं”। “हमें स्वयम् उन आंकड़ों की विवेचना करनी होगी”। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रौद्योगिकी कोई सटीक समाधान निकालेगी। आपको केवल इसे ऑनलाइन करना है - लोग कम से कम डेटा का तो निरीक्षण तो कर सकते हैं, भले ही वे किसी और पर विश्वास न करें।
केवल एक समस्या है। यदि आप नियामकों पर विश्वास नहीं कर सकते हैं, तो आप डेटा पर विश्वास करने के बारे में कैसे सोच सकते हैं?
डेटाबेस तैयार करने की समस्या यह नहीं है कि उसे पढ़ना कठिन होता है, बल्कि यह है कि उसकी ठीक से विवेचना नहीं की जा सकती है और ना ही उसे अमल किया जा सकता है,और इसमें वेबसाइट से भी कोई मदद नहीं मिलती है। क्योंकि इसके सत्यापन की जाँच । करने का कोई प्रभारी नहीं होता है इसलिए पारदर्शिता वाली डेटाबेस में दी गई अधिकांश बातें झूठी होती हैं। कभी-कभी वे इतनी भंयकर झूठ होती हैं, जैसे कुछ कारखाने कार्यस्थल पर लगने वाली चोटों के बारे में अपने पास दो खाते रखते हैं। जिनमें से एक सही होता है। जिसमें प्रत्येक चोट की घटना को दर्ज किया जाता है, और दूसरा सरकार को दिखाने के लिए होता है जिसमें केवल 10% चोटों की घटनाओं को दर्शाया जाता है। उन्हें और भी चालाकी से दिखाया जाता है : कुछ फार्म तो गलत तरीके से भरे रहेंगे, कुछ में टाइपिंग । गलत किया रहेगा, या कुछ डेटा को इस तरीके से बदल दिया गया होगा कि उसे फ़ॉर्म में दर्शाया ही न जा सके। इन डेटाबेसों को पढ़ने के लिये सरल बनाने का परिणाम हो जाता है। इन्हें सरलता से पढ़ने योग्य बनाना, पर केवल झूठी बातों का।
तीन उदाहरण:
• कांग्रेस के कामकाज जनता को देखने के लिए खुले हैं, लेकिन यदि आप सदन की मंजिल पर जाते हैं (या यदि आप इन पारदर्शिता साइटों में से किसी एक पर जाते हैं) तो आप पाते हैं कि वे अपने सभी समय बिताते हैं, डाकघरों के नाम देने पर। सभी वास्तविक कार्य, आपातकालीन प्रावधानों के माध्यम से पारित किये जाते हैं, और किसी साधारण बिलों के उप-भागों में छुपे रहते हैं। (बैंक को बचाने का कार्य, पॉल वेल्स्टोन के मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के अन्दर रखा गया था। मैट टैब्बी (Matt Taibbi) की ‘द ग्रेट डिरेंजमेंट' (स्पाइजेल एंड ग्राऊ) इस कहानी को बताती है।
• इन साइटों में से कई साइटें आपको यह बताते हैं कि आपके निर्वाचित आधिकारिक कौन हैं, लेकिन आपके निर्वाचित आधिकारिकों का वास्तव में क्या प्रभाव पड़ा है इसके बारे में कुछ नहीं रहता है? 40 वर्ष तक, न्यूयॉर्क के लोगों ने यह समझा था कि उन्हें अपने निर्वाचित अधिकारीगण - नगर परिषद, महापौर, गवर्नर द्वारा शासित किया गया था। लेकिन रॉबर्ट कैरो ने ‘द पावर ब्रोकर (विंटेज)' में बताया कि, वे सभी लोग गलत थे। न्यूयॉर्क में शक्ति केवल एक ऐसे व्यक्ति द्वारा नियंत्रित था, जो हर बार चुनाव में असफल रहा, ऐसा व्यक्ति जिसके बारे में किसी को भी मालुम नहीं था कि उसके पास पूरा नियंत्रण है; और वह व्यक्ति था पार्को का आयुक्त, रॉबर्ट मोज़ेज़।
• इंटरनेट पर बहुत सारी साइटें आपको यह बताएगी कि आपके प्रतिनिधि को किससे पैसा मिलता है, लेकिन उनका अनावृत (डिसक्लोज्ड) अभिदान (कनट्रीब्यशन) उन्हे मिले वास्तविक अभिदान का बहुत ही छोटा भाग होता है। जैसा कि कैन सिल्वरस्टीन ने हार्पर प्रकाशक के लिये अपने लेखों की श्रृंखला में उल्लेख किया है कि कैसे एक कांग्रेस का सदस्य होने के कारण ऐसे लोगों को अनेक तरीके से अनुलाभ (पक्सी और नकदी बड़ी मात्रा में मिलती है जबकि यह बात छिपाई जाती है कि यह आया कहां से। इनमें से कुछ लेख उनकी पुस्तक ‘तुर्कमेनिस्कैम (रैंडम हाउस)' में शामिल हैं।
पारदर्शिता के प्रशंसक, इस शब्द के चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। वे कहते हैं, “ठीक है। लेकिन कुछ तो डेटा सही होंगे। अगर ऐसा न भी हो तो क्या हम ये नहीं सीखते कि लोग किस प्रकार झूठ बोलते हैं?” संभवत: यह सही है, हालांकि इस बारे में कोई अच्छा उदाहरण मिलना मुश्किल है (वास्तव में ऐसे पारदर्शी कार्य का कोई अच्छा उदाहरण सोचना मुश्किल है, जिसमें कुछ भी प्रमाणित हुआ हो, सिवाय इसके कि उसमें पादर्शिता अधिक हुई है)। लेकिन हरेक चीज की अपनी एक कीमत होती है।
विश्व भर में पारदर्शिता परियोजनाओं के लिए सैकड़ों लाख डॉलर खर्च किए जाते हैं। वह पैसा आसमान से नहीं आत है। प्रश्न यह नहीं है कि पारदर्शिता बिल्कुल न होने के बजाय कुछ पारदर्शिता तो बेहतर है। बल्कि यह कि क्या इन संसाधनों को खर्च करने के लिए, पादर्शिता ही सबसे उपयोगी है। यदि इन संसाधनों का उपयोग अन्यत्र किया जाए तो क्या इसका प्रभाव अपेक्षाकृत बेहतर नहीं होगा।
मुझे ऐसा ही लगता है। यह सारा पैसा, सीधे उत्तर प्राप्त करने के लक्ष्य से खर्च किया गया, न कि सिर्फ कुछ काम करने के लिये। अमल करने की शक्ति के अभाव में, विश्व के अधिकांश पठनीय डेटाबेसों से कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा, भले ही ये पूर्णत: सही भी हों तो भी। इसलिए लोग ऑनलाइन पर जाते हैं और देखते हैं कि सभी कारें खतरनाक हैं, और सभी राजनेता भ्रष्ट हैं। यह जानने के बाद भी वे क्या कर सकते हैं?
निश्चित रूप से, वे छोटे बदलाव कर सकते हैं - इस राजनेता को शायद दूसरे की तुलना में कुछ कम तेल-धनराशि मिलती है, इसलिए मैं उसे अपना वोट दूंगा (दूसरी ओर, हो सकता है कि वह बेहतर तरीके से झूठ बोलती हो, और तेलधनराशि को वह किसी पी.ए.सी या अन्य प्रतिष्ठानों (फाउन्डेशन) या अन्य प्रचारकों (लौबिइस्ट) के माध्यम से लेती हो)- लेकिन इससे वे किसी बड़े मुद्दे का समाधान नहीं कर सकते हैं जो सरकार कर सकती है: वेबसाइट पढ़ने वाले थोड़े से लोग, कार कंपनी को बाध्य नहीं कर सकते हैं कि वे सुरक्षित कार बनाएं। आपने अपनी वास्तविक समस्या के समाधान करने के लिए कुछ नहीं कर पाये हैं। आपने इसे और अधिक निराशाजनक बना दिया है: सभी राजनेता भ्रष्ट हैं, सभी कारें खतरनाक हैं। आप कर ही क्या सकते हैं? विडंबना यह है कि इंटरनेट कुछ ऐसा भी उपलब्ध कराता है जिसमें आप कुछ कर सकते हैं। इसने लोगों को अपना समूह बनाना और एक साथ मिलकर सर्वमान्य कार्य करना पहले से कहीं ज्यादा आसान कर दिया है। और इसके माध्यम से लोगों को एक साथ आने से - न कि वेबसाइट पर पड़े डेटा के विश्लेषण से - वास्तविक राजनीतिक प्रगति हो सकती है।
अभी तक हमने छोटे मुद्दों को देखा है कि - लोग इटंरनेट पर जो भी देखते हैं उसकी नकल कर उसे राजनीति में लागू करने की कोशिश करते हैं। यदि वीकिपीडिया अच्छा काम कर रहा है, तो आप राजनीतिक वीकिपीडिया बना देते हैं। सभी लोग सोशल नेटवर्क को पसंद करते हैं इसलिए आप राजनीतिक सोशल नेटवर्क बना देते हैं। लेकिन ये उपकरण अपनी मूल सेटिंग में तो काम करते हैं क्योंकि उस में वे एक विशिष्ट समस्या का समाधान करने की कोशिश करते है न कि इस कारण कि वे कोई जाद की छड़ी हैं। राजनीति में प्रगति करने के लिए, हमें यह सोचने की आवश्यकता है कि इसकी समस्याओं का समाधान कैसे किया जा सकता है, न कि वैसे तकनीकों को नकल करके, जो अन्य क्षेत्रों में सफल हुए हैं।
डेटा विश्लेषण इसका एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन यह एक बड़ी तस्वीर का हिस्सा है। लोगों के उस समूह के बारे में सोचें, जो किसी खास मुद्दे का सामना करने के लिए साथ मिलकर काम करने के लिये आये हैं, जैसे कि खाद्य सुरक्षा का मुद्दा। आपके पास ऐसे । प्रौद्योगिकीविद हो सकते हैं, जो सुरक्षात्मक रिकॉर्डों पर नजर रखते हैं, संवादाताओं की फोन कॉलों की जांच करते हैं, इमारतों में घुसपैठ करते हैं, ऐसे वकील हो सकते हैं जो दस्तावेजों से संबंधित सम्मन जारी करते हैं और मुकदमा दायर करते हैं, ऐसे राजनैतिक आयोजक हो सकते हैं जो परियोजना का समर्थन करते हैं और स्वयंसेवकों का संयोजि करते हैं, ऐसे कांग्रेस के सदस्य हो सकते हैं जो आपके मुद्दों पर सुनवाई करने के लिए। दबाव डालते हो और आपकी समस्याओं को सुलझाने के लिये कानून पारित कराते हो, और आपसे संबंधित ऐसे स्वाभाविक ब्लॉगर और लेखक हो सकते हैं जो आपकी कहानी की, जैसे जैसे यह विकसित होती रहती है, उसे सुनाते रहते हैं।
कल्पना कीजिए: एक जांच दल एक महा पर कार्यवाही कर रहा है सच का पता लगा रहा है और सुधार के लिए जोर दे रहा है। स्वाभाविक रूप से वे प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हैं। लेकिन इसके साथ में राजनीति और कानून का भी उपयोग करते हैं। सबसे अच्छी स्थिति में, पादर्शिता कानून आपको अन्य डेटाबेस देखने की क्षमता प्रदान करता है। लेकिन एक मुकदमा (या कांग्रेस संबंधी जांच) आपको सभी डेटाबेस के देखने के लिये और उसके पीछे के सोर्स रिकॉर्ड को भी देखने के लिए अधिकार मिलता है, और उसके बाद लोगों को शपथबद्ध करा कर उनसे पूछताछ करने का अधिकार भी मिलता है। इन सभी का जो भी। अर्थ हो, यह आपको अपनी जरूरत के अनुसार पूछ ताछ करने का अधिकार मिलता है, न कि उस चीज का पूर्वानुमान करने के लिये जिसकी कभी भविष्य में आपको जरूरत पड़ेगी।
यह वह जगह है जहां पर डेटा विशलेषण वास्तव में उपयोगी हो सकता है। इसका उपयोग, न तो कि किसी रैंडम सर्फर को वेब पर निश्चित उत्तर प्रदान करने के लिये होगा बल्कि इसका उपयोग विसंगतियों, और प्रतिमानों (पैटर्न) को पहचानने के लिये, और ऐसे प्रश्नों का
उत्तर खोजने के लिये जिसकी जांच दूसरे लोग कर रहे हों। इसका उपयोग कोई उत्पाद बनाने के लिये नहीं होगा बल्कि यह किसी अन्वेषण की प्रकिया में भाग लेने के लिये उपयोगी होगा।
लेकिन इसे तभी किया जा सकता है जब इस जांच दल के सदस्य अन्य लोगों के साथ मिलकर काम करते हैं। वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सब कुछ कर सकते हैं, बशर्ते कि वे “प्रौद्योगिकी”, “पत्रकारिता” और “राजनीति” के श्रेणियों में बंटे न हों।
अभी, प्रौद्योगिकीविज्ञ इस बात पर जोर देते हैं कि वे किसी भी मुद्दे पर डेटा का पता लगाने के लिए निष्पक्ष मंच का निर्माण कर रहे हैं। पत्रकार इस बात पर जोर देते हैं कि वे तथ्यों पर नजर रखने के लिए प्रवेक्षक रहते हैं। राजनीति से संबंधित लोग यह सोचते हैं कि उन्हें पहले से ही उत्तर पता है और उन्हें किसी ओर प्रश्नों की जांच करने की आवश्यकता नहीं है। ये सभी अपनी अपनी सीमाओं तक सीमित हैं, और वे बड़ा परिदृश्य नहीं देख पा रहे हैं।
मैं भी था। मैं इन मुद्दों के बारे में काफी गंभीर हूँ - मैं भ्रष्ट राजनेता नहीं चाहता हूँ; मैं नहीं चाहता था कि कारे लोगों की जान लें, और एक प्रौद्योगिकीविज्ञ के रूप में मुझे इनका समाधान करने में खुशी मिलेगी। इसलिए मैं पारदर्शिता की मांग की बहाव में बह गया। मैं उन चीजों को करने जैसा लगा, जिसे मैं बहुत अच्छे तरीके से कर सकता हूँ - जैसे कि कोड लिखना, डेटाबेस की जांच करना- मुझे लगा कि इससे मैं दुनिया को बदल सकता हूँ।
लेकिन यह कुछ ज्यादा काम नहीं करता है। डेटाबेस को ऑनलाइन डालने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता है क्योंकि पारदर्शिता शब्द सुनने में जितना अच्छा लगता उतना वास्तव में नहीं होता है। लेकिन यह स्वयं को भ्रम में डालने के लिए अच्छा था। मुझे सिर्फ यह करना था कि चीजों को ऑनलाइन कर देना, और फिर यह सोचना कि कहीं न कहीं कोई व्यक्ति उसे जरुर उपयोगी पायेगा। आखिरकार, प्रौद्योगिकीविज्ञ तो ऐसे ही काम करते हैं, है ना? वर्ल्ड वाइड वेब की खबरों का प्रकाशन करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया था बल्कि इसे निष्पक्ष प्लेटफोर्म के रूप में डिजाइन किया गया था, जो किसी भी तरह के प्रकाशन के लिये, वैज्ञानिक प्रकाशन से लेकर अश्लील साहित्य तक के प्रकाशन के लिये, सहायक होगा।
राजनीति इस प्रकार से काम नहीं करती है। एक समय था जब “न्यूयॉर्क टाइम्स” नामक समाचार पत्र के फ्रंट पेज पर किसी समस्या का विवरण इस बात की गांरटी होती थी कि अब उसे सुलझा लिया जाएगा, लेकिन यह सब अब पुरानी बात हो चुकी है। किसी मामले के सामने आना, उसकी जांच होना, उसकी रिपोर्ट आना और फिर उसे सुलझा देने की प्रक्रिया अब पूरी तरह खंडित हो चुकी है। प्रौद्योगिकीविज्ञों का पत्रकारों पर भरोसा नहीं रहा है ताकि वे उनकी सामाग्रियों का उपयोग कर सकें; पत्रकारों का राजनैतिज्ञों पर भरोसा नहीं रहा है कि वे उनके द्वारा उजागर किये गये समस्याओं का समाधान कर सकेगें। बदलाव हजारों लोगों के काम करने से नहीं होता, यदि वे सभी अपने अपने अलग तरीके अपनाते हैं। बदलाव के लिए, लोगों को एक सर्वमान्य उद्देश्य के लिए, साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। ऐसा प्रौद्योगिकीविज्ञ द्वारा स्वयम् करना बहुत ही मुश्किल है।
लेकिन यदि वे सभी इसे अपने एकमात्र लक्ष्य के रूप में लेते हैं, तो वे इस समस्या के प्रति अपनी पूर्ण प्रतिभा और विदग्धता (इन्जेन्युटी) लगा सकते हैं। वे अपनी सफलता को, उन लोगों की संख्या से माप सकते हैं, जिनमें इस बदलाव के कारण सुधार हुआ हो, न कि वे अपनी सफलता को, अपने वेबसाइट पर आने वाले लोगों की संख्या से मापें। वे यह सीख सकते हैं कि कौन सी प्रौद्योगिकियाँ वास्तव में बदलाव ला रही हैं और कौन सी केवल तुष्टि देती हैं। वे इसे पुनरावृत्त कर सकते हैं, इसमें और सुधार कर सकते हैं और फिर इसे बड़े पैमाने पर कर सकते हैं।
पारदर्शिता एक शक्तिशाली चीज हो सकती है, लेकिन यह एक पृथक कार्य नहीं हो सकता है। इसलिए यह कहना बंद करें कि हमारा काम केवल वहां से डेटा को निकालना है, और यह देखना दूसरे लोगों का काम है कि डेटा का किस तरह उपयोग किया जाय। आइए हम तय करें कि हमारा काम है, दुनिया में अच्छाई के लिए लड़ना। मैं इन सभी अद्भुत संसाधनों पर काम करना चाहता हूँ।
नोट्स
1. अधिक जानकारी के लिए, http://sociology.ucsc.edu/whorulesamerica/power/local.html वेबसाइट देखें।
2. फास्ट फूड नेशन, एरिक श्लोसेर, हॉफ्टन मिफ्लिन, 2001
यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।
यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।