कोड स्वराज/सूचना का अधिकार, ज्ञान का अधिकार:डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

विकिस्रोत से
कोड स्वराज
द्वारा कार्ल मालामुद

[ ७३ ]सूचना का अधिकार, ज्ञान का अधिकार:डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

(सार्वजनिक भाषणः अतिथि ज्ञान द्वारा), न्यूमा (NUMA) बेंगलुरु, 15 अक्टूबर, 2017

नमस्कार दोस्तों! मेरे लिए आपसे मिलना काफी गौरव की बात है।

मुझे मालूम नहीं था कि मैं किस चीज से जुड़ने जा रहा था। जब मैं यहाँ आया, तो कार्ल ने मुझे बताया कि आज दोपहर में हमारी एक बैठक है। उन्होंने मुझे कल ही बताया कि हम क्या करने जा रहे हैं, इसलिए मैं यहाँ न्यूमा (NUMA) आया और उनसे पूछा, “क्या तुम ठीक से जान रहे हो कि हम सही जगह पर आए हैं?”

लेकिन, मैं आप सभी को देखकर बहुत प्रसन्न हूँ। आज भारत में युवा वर्ग जो कर रहा है उसे देखकर मुझे आश्चर्य होता है। मुझे आप पर बहुत गर्व है। मैं एक ऐसे व्यक्ति से मिला हूँ जो आदिवासी लोगों पर काम कर रहे हैं। मैं ऐसे एक अन्य व्यक्ति से मिला जो कानन पर काम कर रहे हैं। मैं आप जैसे कई लोगों से मिला हूँ, जो वास्तव में नए भारत के निर्माण में बहुत रुचि ले रहे हैं।

जब मैं आप जैसे कुछ लोगों से मिलता हैं, तब मैं भारत के भविष्य के बारे में बहुत उत्साहित हो जाता हूं। मेरा जन्म 1942 में हुआ था। आज में 75 वर्ष का हो गया हूं। वे दिन स्वतंत्र भारत के शुरुआती दिन थे।

जैसे-जैसे हम बड़े हुए, हमारे लिये गांधी, नेहरू, पटेल, कलाम आजाद, सुभाष चंद्र बोस जैसे लोग, असली आदर्श व्यक्ति थे। हम गांधी के आदर्शों के साथ बड़े हुए हैं और हमें, मिल-जुलकर रहने, सत्य, विश्वास, आत्म-निर्भरता, सरलता, बलिदान और साहस की शिक्षा दी गई थी।

बचपन में हमारे लिए इन शब्दों का बहुत महत्व था। मेरे पिताजी अनपढ़ थे। लेकिन हमारे घर में पांच बड़ी तस्वीरें थी। ये बड़ी तस्वीरें इन पांच नेताओं की थी। स्कूल-कॉलेज जाने के दिनों में, भारत के बारे में उनलोगों के विचार प्रमुख रूप से हमारे ध्यान में रहते थे।

मैं, वर्ष 1964 में संयुक्त राज्य अमरीका चला गया था और मैंने उन 60 के दशक में जो कुछ वहाँ सीखा उससे मुझे यह महसूस हुआ कि भारत में तीन मूल मुद्दे हैः असमानता, जनसांख्यिकी, और विकास। मैंने यह भी महसूस किया कि इन समस्याओं का समाधान करने के लिए, पहली जो सबसे बड़ी आवश्यकता है वह है आपसी संपर्क के साधनों की।

वर्ष 1979 में, मैं दिल्ली आया और यहाँ से, शिकागो में रह रही अपनी पत्नी के साथ टेलिफोन पर बात नहीं कर सका। उस समय मैं, एक पांच सितारा होटल में ठहरा हुआ था।

इसलिए मैं कुछ नाराजगी और अंजाने में कहा कि “मैं इस टेलिफोन सिस्टम को दुरुस्त करने जा रहा हूं।” फिर मैंने, भारत में टेलिफोन लगाने के प्रयास में, अपने जीवन के 10 वर्ष व्यतीत किए। [ ७४ ]राजीव गांधी ने मुझे राजनीतिक इच्छा-शक्ति दी और मुझे ऐसा महसूस हुआ कि कनेक्टिविटी के अभाव में, यहां कोई भी काम शुरु नहीं किया जा सकता है। उसके बाद हमने बीस लाख टेलिफोन लगवाए, जब कि इसके पहले एक टेलिफोन कनेक्शन लगवाने में लगभग 15 वर्ष लग जाया करते थे। हो सकता है कि यह बात आज न आप जानते हैं, न आपके पिता जी, लेकिन आपके दादाजी यही जानते थे। आज हमारे पास 1.2 अरब फोन कनेक्शन हैं। आज हमारा देश सौ करोड़ लोगों का एक जुड़ा देश है।

मूल प्रश्न यह है कि कनेक्टिविटी हमारे लिए किस प्रकार उपयोगी है?

दूसरी चुनौती ज्ञान की है। और ज्ञान को सार्वजनिक अधिकार क्षेत्र (पब्लिक डोमेन) में लाने के लिए, और सूचना का लोकतंत्रीकरण करने के लिए, आपको कनेक्टिविटी की जरूरत है। इसीलिए हमने ज्ञान आयोग, सूचना का अधिकार, ज्ञान का अधिकार, आदि की शुरुआत की। और जिन लोगों के साथ हम कार्य कर रहे हैं उनके लिए इनका कोई अधिक महत्व नहीं था। वे नहीं समझ रहे थे कि हुम किस बारे में बात कर रहे हैं। मुझे याद है जब मैंने टेलिफोन पर काम करना शुरु किया, तो उस समय भारत में कई मोर्चे पर टेलिफोन को अनुपयोगी बताया जा रहा था। वे यह कह रहे थे कि ये विदेश से लौटने वाले युवागण (foreign return guys) भोजन और कृषि की चिंता छोड़कर भारत में फोन लगाने पर क्यों तुले हैं।

मेरा उनको जवाब था कि “मुझे नहीं मालूम कृषि की समस्याओं को कैसे सुलझाना है और कृषि के काम को कैसे सुलझाया जाय इसके लिये किसी और को ढूढ़े। मैं अपना काम करना जानता हूं। मैं फोन की मरम्मत करने की कोशिश कर सकता हूं, लेकिन मैं गारंटी नहीं दे सकता कि मैं यह कर पाऊंगा। लेकिन भारत में हर छोटे से छोटे प्रयासों का भी मूल्य है। जो आप सबसे अच्छा कर सकते हैं, वह करते रहें, कोई और किसी काम में निपुण होगा, वह वो काम करेगा। हम सभी के थोड़े-थोड़े सहयोग से बड़े उद्देश्य की प्राप्ति होगी।”

सालों पहले हमने जो सपने देखे थे, आप उन्हें सच में साकार कर रहे हैं। आपकी मदद के बिना, हमारे सभी काम बेकार हो जायेंगे। और यह, कोई नहीं समझेगा।

मेरे लिए पारदर्शी सरकार बहुत महत्व रखती है, और ओपन डाटा इसकी नींव है। जब ओबामा यहां आए थे, तो मुझे उनसे साथ आधे घण्टे का समय बिताने का अवसर मिला। मैंने उन्हें स्पष्ट करने का प्रयास किया कि हम ग्रामीण भारत की कनेक्टिविटी बढ़ाते हुए हम क्या करना चाहते हैं। हमने उनसे राजस्थान में सम्पर्क किया और उन्हें जब हमने बताया कि हम किस तरह का कनेक्टिविटी प्लेटफोर्म बना रहे हैं, जैसे कि जी.आई.एर डाटा सेंटर्स, साइबर सिक्योरिटी एप्लिकेशन इत्यादि, तो यह सब सुनकर वे बहुत विस्मित हुए।

उन्होंने कहा, “सैम, तुम सभी इन सब बारे में कैसे सोचते हो?” मैंने उनसे कहा, “अगर हम इस तरह नहीं सोच सकते तो हम नए भारत का निर्माण नहीं कर पाएंगे। पुरानी तकनीकों से नए भारत का निर्माण करना काफी कठिन होगा। [ ७५ ]

डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

नई तकनीकें और हमारी युवा प्रतिभा पर ही हमारी आशा है । भारत की युवा प्रतिभा में मेरा दृढ़ विश्वास है। 1984 में जब हमने सी.डॉट. (C-DoT) की स्थापना की, तब संगठन में भर्ती हुए लोगों की औसत आयु 23 वर्ष थी। वे काफी प्रतिभाशाली, मेहनती, ईमानदार, प्रतिबद्ध,साहसी, समर्पित, राष्ट्रवादी लोग थे, और उन्होंने ही सभी चीजें बनाई।

लोग कहते थे, “आप सिर्फ युवाओं को ही क्यों ले रहे हैं?” मैने कहा “ क्योंकि वे फ्रेशर, ऊर्जावान, उत्साहित और मानसिक तौर पर भ्रष्ट नहीं हैं।”

भारत में बहुत-सी समस्याएं और चुनौतियां हैं, इसलिए जब लोग मुझे भारत की समस्याओं के बारे में बताते हैं, तो मैं उनसे कहता हूं, “भारत में समस्याओं को खोजने के लिए आपको विशेष प्रतिभा की जरूरत नहीं है।” और न ही उनके समाधान करने के लिए आपको प्रतिभा की जरूरत है। आपको सिर्फ साहसी लोगों की जरूरत है, जो आपको कुछ कर के देने को तैयार हैं, और जो भारत के लोगों के लिए कुछ करना चाहते हैं।

अभी हमें मीलों चलना है। अगले 50 साल के लिए काम पड़े हुए हैं। मैं पिछले 40 सालों से में कहता आ रहा हूं, “दुनिया के प्रतिभाशाली लोग अमीरों की समस्याओं का निराकरण करने में व्यस्त, वास्तव में जिनके पास कोई समस्या है ही नहीं।”

फलतः गरीबों की समस्याओं का निराकरण करने के लिए उपयुक्त प्रतिभा की सेवा (Self-Employed Women's Association of India) नहीं मिल पाती है। भारत ही एक ऐसा देश है। जो अन्य देशों की तुलना में ऐसे प्रतिभा से भरा हुआ है, जिससे गरीबी दूर की जा सकती है। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसमें 40 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं और यहाँ के सफल हुए समाधान के तरीकों को दूसरे देशों की गरीबी मिटाने के लिए भी किया जा सकता है।

हमारा देश विषमताओं का देश है। भारत के बारे में मैं जो भी कहूँ, आप उससे बिलकुल विपरीत कह सकते हैं, और आप फिर भी 100% सही माने जाएंगे। यही भारत की विशेषता है। सामाजिक विविधता, नवप्रवर्तन (इन्नोवेशन) के लिये बहुत ही उपजाऊ जमीन है। सबसे ज्यादा विविधता भारत में ही पाई जाती है। हो सकता है कि भारत के विभिन्न राज्यों में रहने वाले लोग दिखने में वैसे न हो, जैसा कि एक आम भारतीय दिखता हो।

मुझे याद है एक बार जब मैं मेक्सिको में भारत के राजदूत से मिलने की प्रतीक्षा कर रहा था। जहां मैं मुख्य वक्ता था, 500 व्यक्तियों को संबोधित करने के लिये। तभी किसी ने मुझसे कहा, “ भारतीय राजदूत आ रहे हैं ” मैं उनसे मिलने पहुंचा, लेकिन वे मुझे नहीं मिले। अखिकार मैंने कहा, “कहाँ हैं वे?” तब एक व्यक्ति ने बताया, “ वे सामने की लाइन में बैठे हैं और आपका ही इंतजार कर रहे हैं।”

चूंकि वे पूर्वोत्तर भारत से थे, इसलिए कुछ चीनी की तरह दिख रहे थे। और मैंने अपने इतने अनुभव के बावजूद, मैं यह सोंच रहा था कि भारतीय राजदूत मेरी तरह ही दिखना चाहिए। [ ७६ ]भारत की यही विशेषता है। यहां कई त्योहार और उत्सव मनाए जाते हैं। लेकिन आज मैं, भारत की ओर देखता हूँ तो मुझे कई बार चिंताएं घेर लेती हैं।

जब लोग सूचनाओं को पहरे में सीमित रखना चाहते हैं, जब लोग सोशल मीडिया पर झूठ को फैलाते हैं, किसी की स्वतंत्रता पर प्रहार करते हैं, इससे बुरा असर पड़ता है। ये सभी के जीवन से जुड़े मामले हैं जहाँ आपकी जरुरत है। सभी के हित के लिए आपको कम से कम साइबरस्पेस में तो यह विश्वास बनाकर रखना ही होगा। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि प्रोग्राम एक क्षेत्रविशेष का है, या ब्राह्मण या हिंदू या मुस्लिम का है, इसमें कोई अस्पृश्यता या विभेद नहीं करना चाहिए।

हम हर प्रकार से समावेशी हैं। सचनाओं पर सभी का अधिकार है। आज भारत में, आजकल जिस तरह की परिचर्चाएं चल रही वे निम्न स्तर की है। हमें सच में भारत में संवाद के स्तर को ऊपर उठाने की जरूरत है।

मैं, आजकल एक किताब लिख रहा हूँ। कुछ साल पहले मैंने अपने जीवन पर एक किताब लिखी थी। मैंने वह किताब अपनी पोती के लिए लिखी थी, जो अभी सिर्फ 6 साल की है। और सैन फ्रेन्सिस्को में रहती है। जो एक दिन बड़ी होगी और पूछेगी, “यह बूढ़ा व्यक्ति कौन है जो 100 साल या 75 साल पहले अमरीका आया था?”

और उसके पिता, जिसका जन्म और जिसकी परवरिश संयुक्त राज्य अमरीका में हुई, जो कुछ भी उसे कहेंगे वह बिलकुल ही अलग होगा, क्योंकि उसके पिता नहीं जानते है कि मैंने किस तरह की गरीबी देखी है। वह यह भी नहीं समझ सकता कि मेरा जन्म भारत के छोटे दिवासी गांव में हुआ था, जहां उसकी मां ने अपने घर पर ही अपने 8 बच्चों को जन्म दिया। उस समय न कोई डॉक्टर, न नर्स, न हॉस्पिटल या फॉर्मेसी, कुछ भी नहीं था। न कोई स्कल था। अगर मैं उनसे यह बताऊँ भी तो, वे मेरा विश्वास नहीं करेंगे।

यह वास्तविकता और नहीं रह सकती। इसी भारत को हमें बदलना है। यदि हम 40 करोड़ गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को, उनकी गरीबी से मुक्त कराने के लिए तकनीकी का उपयोग नहीं करते, तो हमने अपना काम नहीं किया।

हम ऐसा भारत नहीं चाहते हैं, जहाँ कई अरबपति हों। यदि वे हैं, तो वे और भी शक्तिशाली होंगे। मैं उनके विरुद्ध नहीं हूँ। लेकिन मैं भारत में हर चीज बदलने के लिए तकनीकी का उपयोग करना चाहता हूँ, जो सिर्फ ज्ञान से ही संभव है।

सिर्फ आप जैसे लोग ही यह कर सकते हैं, जो केवल खुलेपन/उदारता से ही हो सकता है। मेरे अनुसार सूचना से खुलापन आता है, पहुँच बढ़ती है, दायित्व, नेटवर्क, लोकतांत्रीकरण, विकेंद्रीकरण आता है। ये सभी बातें गांधीवाद पर आधारित हैं।

यदि आज गांधीजी होते, तो वे आप से मिलकर बहुत खुश होते। मैं अहमदाबाद में परसों एक व्याख्यान देने जा रहा हूँ। दरअसल कार्ल और मैं पिछले 2 अक्टूबर को साबरमती आश्रम में थे और हमने, इस सूचना और कनेक्टिविटी के युग में, गांधीजी के विचारों पर [ ७७ ]ध्यान केन्द्रित किया और लोगों को यह बताया कि गांधीजी के विचार, मानवजाति के पूरे इतिहास के वनिस्पत, आज के संदर्भ में ज्यादा ज्यादा प्रासंगिक हैं।

जब मैं आपको दूसरी किताब के बारे में बता रहा था तो मैं कुछ भूल गया। मैं दुनिया की पुनर्रचना पर किताब लिख रहा हूं। हमने जो दुनिया रची है वह आज बिलकुल पुरानी हो चुकी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमरीका ने यू.एन, विश्व बैंक, नाटों, । आई.एम.एफ, जी.डी.पी, जी.एन.पी, व्यक्ति की वार्षिक आय, भुगतान संतुलन, लोकतंत्र, मानवाधिकार, पूंजीवाद, उपभोग और युद्घ आदि जैसे संस्थओं और सिद्धांतों का गठन किया।

इन सभी चीजों का अब कोई अर्थ नहीं है। जी.डी.पी अब कुछ महत्व का नहीं है। लेकिन हम आज भी इसका अनुसरण करते हैं। आज के सभी प्रकार के मेजरमेंट्स बिग डाटा, क्लाऊड कम्प्यूटिंग, डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठा सकते हैं। तब यह संभव नहीं था, इसलिए आपने इसे ‘सकल घरेलू उत्पाद’ कहा (gross domestic product) और सभी लोग भी खोज सकते हैं, और कई छोटी-छोटी सूचनाओं तक पहुच । सकते हैं, क्योंकि आपके पास विश्लेषण करने के लिए बहुत डाटा हैं।

मुझे इस बात की बहुत खुशी है कि कोई है जो कोर्ट से डाटा लेकर उन्हें वेब पर डाल रहा है। मैं सात साल तक अपने सभी मुख्य न्यायाधीशों से झगड़ा। जब भी किसी नए न्यायाधीश की नियुक्ति होती, तो मैं उन्हें अगले दिन ही कॉल करता और उनके घर पर जाता। हमने चाय पी और उन्हें विश्वस्त करने की कोशिश कि न्याय प्राप्त करने में 15 साल क्यों लग जाते हैं? हम सभी रिपोर्टों को कम्प्यूटराइज़ क्यों नहीं कर सकते हैं और सिर्फ 3 साल में हीं न्याय क्यूँ नहीं दिला सकते हैं? वे कहते, “बिल्कुल सैम, मैं आपसे सहमत हूँ; पिट्रोदा जी, हम सभी आपके साथ हैं, इसे करते हैं, यह विचार शानदार है।” लेकिन इसका बाद कुछ भी नहीं होता।

औसतन हर आठ महीन में दूसरे नए मुख्य न्यायाधीश आते हैं। तो मैं उनके पास दुबारा । जाता और वे कहते, * आप सही कहते हैं, हम यह जल्द ही करेंगे।” सभी अच्छे मनसूबों के साथ यह कहते। उनकी मंशा तो सही होती थी, लेकिन वे कुछ नहीं कर पाते थे।

भारत में एक कोर्ट केस के निपटान में 15 साल क्यों लग जाते हैं? आपकी विशेषज्ञता के अनुसार यह एक वर्ष में, या दो वर्ष में, या तीन वर्ष में निपटाया जा सकता है। अतः बदलाव के लिए आपको हर स्थान पर आई.टी. का उपयोग करने की जरूरत होगी। आप यहाँ, इस समाज के, पूरे ताना-बाना बदलने के लिए हैं। घर से ऑफिस, पुलिस से कोर्ट, सरकार से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, कृषि और मौलिक तौर पर आपका एकमात्र औजार “सूचना” होगा। सूचना में हुमें, ज्ञान, प्रज्ञता और कर्म जोड़ना होगा और साथ साथ इसके लिए, साहसिक और युवा लोगों को भी जोड़ना होगा।

भारत में आप मुझे या किसी को भी जो संभवतः 45 से अधिक है, खारिज कर सकते हैं। दरअसल उनमें इस दुनिया को संभालने का सामर्थ्य नहीं बचा है। भारत में सभी बीते हुए वक्त की बात करते हैं, भविष्य की बात कोई भी नहीं करता। यहाँ राम के इतिहास की [ ७८ ]बहुत बात की जाती है, तो कोई तुरंत हनुमान की बात करने लगता है और कोई किसी और भगवान की बात करने लगेगा, सब कहते हैं कि यह हमारी विरासत है।

कोई भी भविष्य की बात नहीं करता है। हमारी विरासत महत्वपूर्ण है। हमें हमारी विरासत, कला, संस्कृति, संगीत पर गर्व है, और हम इनमें से बहुत कुछ को कम्प्यूटराइज़ करने के कोशिश कर रहे हैं।

15 साल पहले हमने 10 लाख पांडुलिपियों (मेनुस्क्रिप्ट्स) को डिजिटाइज़ किया। 15 साल, 40 साल, या 37 साल पहले, हमने कपिला वत्सायन के साथ इंदिरा गांधी संस्थान में लघु फ़िल्म (माइक्रोफिल्म) में अपनी कला को स्टोर किया। अब ये सभी कृतियां एक ऐसे स्थान पर सुरक्षित है, और जहां इन पर और अनेक कार्य हो सकते हैं। पहले हमारे पास उपयुक्त औजार / टूल्स नहीं थे, लेकिन अब चीजों को स्टोर करना बहुत ही सस्ता हो चुका है।

एक उदाहरण देता हूँ, एक समय मैंने 6-bit RAM 16 डॉलर में खरीदा था। आशा है कि आपमें से कुछ इसे समझ पाएंगे। मैंन चार-इनपुट नैंड (NAND) गेट्स खरीदे थे, जिनमें प्रत्येक की कीमत 37 डॉलर थी। जब इंटेल ने पहला माइक्रोप्रोसेसर डिजाइन किया, तब मैं वहीं पर था। इंटेल के सभी फाऊंडर्स, बॉब नॉसे, लेस्टर, होगन, गोर्डन मूर, मेरे मित्र हैं। पहला फोर-बिट-प्रोसेसर (four-bit processor) का इस्तेमाल हमने टेलीफोन के लिए किया था।

हमने सोचा था कि यह एक चमत्कार है। हमने सोचा, “हे भगवान, यह कितना शक्तिशाली यंत्र है। "

अब देखिये कि आपके पास क्या है। आपके पास गीगाबिट्स (Gigabits) और टेराबिट्स (Terabits) है, और आपके सेल फोन में भी बहुत सारी प्रोसेसिंग पावर है, और यही सेल फोन की प्रोसेसिंग पावर है जो आज भारत को बदल रही है। लेकिन आपको इसे उसी तरह बदलना चाहिए जिस तरह से आप इसे बदलना चाहते हैं, न किसी संयुक्त राज्य अमरीका में बैठे ऐसे व्यक्ति के अनुसार जो इसे अपने अनुसार बदलवाना चाहता है। हमें स्थानीय (लोकल) विषय वस्तु (कंटेंट), स्थानीय एप्लिकेशन, स्थानीय समाधान, और विकास के प्रारूप की आवश्यकता है। हमें विकास के उस प्रारूप की आवश्यकता है जो भारत के लिए प्रासंगिक हो, न कि विकास के उस प्रारूप की जो पश्चिमी देशों से अतीत में हमें मिला है या हमने लिया है।

यह बहुत ही दुर्भाग्यशाली है कि हर कोई संयुक्त राज्य अमरीका की तरह बनना चाहता है। यह मॉडल, न तो बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा सकता है, न टिकाऊ है, न इसे अपने । लिये पुनः डिजाइन किया जा सकता है, न यह दीर्घ काल तक चल सकता है। हमें विकास का भारतीय मॉडल गढ़ना चाहिए और गांधीजी यही चाहते थे। जब मैं युवाओं से बात कर रहा था, तो मैंने कहा, “क्या आप सभी जिलों के लिए डाटा सेट ला सकते हैं?” मैं सभी जिलों के लिए बस यह चाहता हूं कि सब कुछ ऑनलाइन उपलब्ध हों। न्यायालय के मामलें, पुलिस, अध्यापक, स्कूल, अस्पताल, डॉक्टर सभी के। मुझे [ ७९ ]

डॉ.सैम पित्रोदा की टिप्पणियां

भारत के राष्ट्रीय डाटाबेस की उतनी परवाह नहीं है। हां, यह बहुत महत्वपूर्ण है, मैं यह नहीं कहता कि यह जरूरी नहीं है। लेकिन मैं जिला स्तर पर काम करना चाहता हूं। यदि जिला स्तर पर मुझे 500 अध्यापकों की जरूरत है, तो मुझे दिल्ली जाकर यह पूछने की जरूरत नहीं होनी चाहिए, “मैं उनकी नियुक्ति कहां से करें?” मुझे उन्हें उसी वक्त नियुक्त करना है।

हमें बड़े स्तर पर विकेंद्रीकरण करने की जरूरत है। आज भारत में सत्ता दो लोगों के पास है, प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री।

आज सुबह मेरी मीटिंग बैंगलोर के मेयर के साथ थी, और मैंने कहा, “पहली बात तो यह कि हमें मेयर को और ज्यादा पावर देना चाहिए।” भारत में मेयर के पास कोई अधिकार नहीं होता है। कोई नहीं जानता की मेयर कौन है। वे सिर्फ एक साल के लिए मेयर होते हैं। सुनने में थोड़ा अजीब लगता है। एक साल में तो यह भी पता नहीं चलता कि बाथरूम कहां है। आपको पता लगाने में तीन से चार साल लगते हैं कि आपका काम क्या है। यह एक साल वाली नीति के पीछे कारण यह है कि हम आपको चीजों को समझने के लिए समय नहीं देते हैं। हम सिर्फ वही कर सकते हैं, जो हम कर रहे हैं और इसलिये सभी चीजें ऐसी हैं। इसलिए मैंने उनसे यह कहा कि मेयर का कार्यकाल पांच वर्ष के लिए निश्चित किया जाए, इसके लिए प्रयास किया जाना चाहिए। जिले में भी यही बात लागू होती है। जिला प्रमुख कौन है? जिलाधीश। जिला स्तर पर कोई निर्वाचित सदस्य नहीं होता। शक्ति का वास्तव में विकेंद्रीकरण करने के लिए जो कुछ भी आप कर रहे हों उसके माध्यम से हम जिला स्तर विकास मॉडल को क्यों नहीं अपनाते हैं?

मैं आपका ज्यादा समय नहीं लूंगा, लेकिन मेरे पास कई सुझाव हैं, जो मैं आपसे साझा करना चाहता हूं, मैं आपसे जुड़ा रहना चाहता हूँ। आप जो कर रहे हैं उस पर मुझे बहुत गर्व है। मैं आपकी सहायता करना चाहता हूं। मैं यह जानता और पहचानता हूं कि मैं बीता हुआ कल हूँ, मैं इसका सम्मान करता हूं, लेकिन मैं फिर भी काम करना चाहता हूँ और व्यस्त रहना चाहता हूं। मेरा दिन सुबह 8 बजे शुरू होता है और मैं शनिवार, रविवार हर दिन 11, 12 बजे रात तक काम करता है, क्योंकि मैं जानता हूं कि यह कैसे किया जाता है। मैं कभी छुट्टी नहीं लेता, मैंने पिछले 50 वर्ष में छुट्टी नहीं ली हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां भारत में बहुत काम है। समुद्र तट पर जाकर शराब पीने से अच्छा है, काम में व्यस्त रहना है। छुट्टियां लेना मुझे पसंद नहीं है।

रविवार दोपहर आप सभी से मिलकर मुझे बहुत अच्छा लगा। और मुझे बहुत अच्छा लगा कि आप रविवार दोपहर यहां आएं, क्योंकि यही समय मेरे लिये उपलब्ध था। इसलिए मैंने कार्ल को कहा, जो मेरा दोस्त है और एक दिलचस्प व्यक्ति है। मुझे नहीं मालूम कि आप कार्ल को जानते हैं या नहीं, लेकिन आपको उन्हें गुगल पर सर्च करना चाहिए। कार्ल मेरा बहुत करीबी मित्र है, और वह और मैं सभी तरह की जुनूनी चीजें करते रहते हैं।

हमने हाल ही मैं ब्रिउस्टर काहे के साथ, सेन फ्रेनसिस्को में एक इंटरनेट आर्काइव शुरु की है, जहां हमने भारत की 4.5 लाख किताबों को नेट पर डाला है। भारत सरकार ने घबरा कर कहा, “रुकिये, आप यह कैसे कर सकते हैं? यह अभी भी कॉपीराइट के अधीन है।” हमने कहा, “चिंता न करें। जब वे हम पर मुकदमा करेंगे तब हम निर्णय लेंगे कि हम क्या करें।” [ ८० ]क्योंकि भारत सरकार को हमें यह नहीं बताने का अधिकार है कि हमें क्या पढ़ना चाहिए और क्या नहीं पढ़ना चहिए।

आपको, ऐसे लोगों की जरूरत है जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सिस्टम का सामना कर सके। एक समय कार्ल और मैंने भारतीय मानक ब्यूरो का सारा डाटा ऑनलाइन करने का निर्णय लिया। मुझे नहीं पता कि क्या आप जानते हैं कि भारतीय मानक ब्यूरो का एक मानक, भारत में 14 हजार रुपए और विदेश में 1.4 लाख रुपए पर खरीदना पड़ता है। ये हमारे सुरक्षा मानक है, अग्नेि मानक, जो हमारे कानून है, लेकिन एक नागरिक के तौर पर आ पहुंच इन तक नहीं हैं, लेकिन आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप इनका पालन करें। यह थोड़ा विचित्र है।

जब आप इन सूचनाओं को ऑनलाइन करते हैं, तो सरकार कहती है, इंतजार करें, आप ऐसा अभी नहीं कर सकते। उत्तर, दुर्भाग्यपूर्ण है। हम यह करने जा रहे हैं।

मैं चाहता हूं कि युवा वर्ग ऐसा नजरिया अपनाएं और योद्धाओं की तरह बर्ताव करें। अपने को कम न आंके। कोई भी आपको यह न कहे कि आप अमुक कार्य नहीं कर सकते हैं। आप गांधी की तरह संघर्ष करें।

फर्क केवल इतना है कि आप अपने भाई-बंधु (देशवासियों के लिए लड़ रहे हैं, और यह लड़ाई तो और भी मुश्किल है। आपको मेरी शुभकामनाएं, आपने अपना किमती समय देने के लिए शुक्रिया।

मैं कार्ल से यह सुनने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, उसके बाद हम विस्तृत चर्चा करेंगे। मुझे मालूम है कि मुझे 15 मिनट दिए गए थे, संभवतः मैंने 5 मिनट अधिक लिए। लेकिन मुझे आप जैसे दर्शक कहाँ मिलेंगे? मुझे आपसे स्नेह है। [ ८१ ]

सी.डब्लू.एम.जी, खण्ड 84 (1946), p. 161, जवाहरलाल नेहरू एवं सरदार पटेल के साथ।
सी.डब्लू.एम.जी, खण्ड 86 (1947), p. 224, ‘ऑवर ए बैम्बू ब्रिज अक्रोस ए लगून'
[ ८२ ]
सी.डब्लू.एम.जी, खण्ड 38 (1928-1929), फ्रंटिसपीस.
[ ८३ ]
सी.डब्लू.एम.जी, खण्ड 86 (1946-1947), फ्रंटिसपीस, कैप्शन रीड्स एकला चलो।
[ ८४ ]
सी.डब्लू.एम.जी, खण्ड 100, फ्रंटिसपीस,' गांधी चिन्तनशील भाव में', साबरमती आश्रम, 1931.

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।