गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ

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गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ  (1956) 
द्वारा मैक्सिम गोर्की

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___ गोर्की की श्रेष्ठ कहानियां लेखक: मैक्सिम गोर्की प्रतिपकमा प्रभात प्रकाशन, मथुरा. [  ]________________

प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन, मथुरा. अनुवादक: राजनाथ एम. ए. अगस्त १९५६ सर्वाधिकार सुरक्षित मूल्य . तीन रुपया मुद्रक . मुभाप प्रेस, मथुरा। [  ]________________

पालवा समुद्र हँस रहा था। हल्की गर्म हवा के झोंकों से रह-रह कर काँप उठता और छोटी-छोटी नहरों से भर जाता जिन पर सुरज की किरणें चकाचौंध उत्पन्न कर देने वाली चमक से प्रतिविम्बित हो रही थीं। वह अपनी हजारों रुपहली मुस्कानों से जे आकाश को देख कर मुस्करा रहा था। समुद्र और थाकाश के बीच केला हुमा व्यवधान समुद्र की उठती हुई लहरों के मधुर संगीत से भर उठता था, जब वे लहरें एक दूसरे के पीछे भागती हुई तट पर खड़े हुए हाद के ढलुवाँ भाग की ओर चनी जातीं। छीटे उछालती हुई लहरें और पूरन की चमक सहस्रों छोटी छोटी लहरियों में प्रतिबिम्बित होकर नेरन्तर होने वाली शान्त-गति में डूब जाती-उल्लास और प्रसन्नता से भरी ई। सूर्य प्रसन्न या क्योंकि वह चमक रहा था और समुद्र भी-क्योंकि वह सूर्य की उल्लास से परिपूर्ण चमक को प्रतिविम्बित कर रहा था। हवा प्यार से समुद्र की मखमली छाती को थपथपा रही थी, सूरज प्रपनी जलती हुई किरणों से उसे गर्मी पहुंचा रहा था और समुद्र उस स्नेहपूर्ण दुलार में पड़ा हुआ निद्रा-मग्न होकर गहरी साँस लेता गर्म हवा में एक रलौनी सुगन्धि भर रहा था। हरी लहरें पीले किनारे पर टकरा कर टूट नवीं और उसे सफेद भागों से भर देती जो गर्म बालू पर हल्की साँस लेता मा पिघलता रहता और उसे सदैव गीला रखता। यह लम्बा, संकरा, ढलुवा पहाड़ का किनारा एक विशान ऊँची नार की तरह दिखाई दे रहा था जो फिनारे से समुद्र में गिर पड़ी हो। [  ]________________

मालवा गों और सरकइधर-उधर छितराए पाती यो। नाव के उसकी पतली चोटियों चमकते हुए जल के समीप विस्तार से कट गई थीं। अधोभाग उस सुदूरवर्ती घुन्ध में सो गया था जो मुख्य भूमि भाग को छिपाए हुए थी । जहाँ से हवा के द्वारा लाई हुई दूसरी वरह की एक ऐसी गन्ध आ रही थी जो यहाँ निर्मल समुद्र के ऊपर और आकाश के चमकीले नीले गुम्बज के नीचे, अजीब सी और दुखदायी प्रतीत हो रही थी। तट पर, जहाँ मछली तौलने के कोटे छितरे पड़े थे, एक मछली पकड़ने वाला जान जमीन पर गढ़े हुए लट्ठों पर टॅगा हुआ था और जमीन पर मकड़ी के जाल जैसी छायायें ढाल रहा था । ____एक छोटी और बहुत सी बड़ी नावे एक कतार में पड़ी हुई थीं। लहरें किनारे की ओर दौड़ती हुई जैसे उनसे कुछ कह जाती थीं। नाव के काटे, पतवार, टोकनियों और पीपे इधर-उधर छितराए पड़े थे और उनके वीच में पेड़ की टहनियों और सरकन्डों से बनी हुई एक झोंपड़ी खड़ी थी, जो बड़ी-बड़ी चटाइयों द्वारा छाई गई थी । दरवाजे पर, दो गाँठदार टेढ़ी लकड़ियों पर उपर की ओर सले किए हुई, नमदे के जूतों का एक जोड़ा लटक रहा था। इस प्रस्तन्यस्तता के ऊपर एक लम्बा लट्ठा खड़ा हुआ था जिसके ऊपरी सिरे पर वधा बाल कपड़ा हवा में फड़फड़ा रहा था। एक नाव की छाया में, सट का चौकीदार वासिनी लेगोस्टयेव लेटा हुया था । यह स्थान में वेनस्चिकोष नामक मछली पकड़ने के स्थान को बाहरी चौकी पर स्थित था । वासिली पेट के बल लेटा हुआ हथेलियों पर अपनी ठोड़ी नमाए दूर समुद्र में जमीन की धुंधली सी दिग्वाई देने वाली पट्टी की भोर देख रहा था । उसको निगाहें पानी पर एक छोटी सी काली चीज पर जमी हुई थीं। और उसे यह देखकर अपार प्रसन्नता हुई कि वह वस्तु जैसे २ नजदीक पाती जा रही है उसका श्राकार बढ़ता जा रहा है। उसने समुद्र में चमकती हुई सूरज की किरणों से अपने को बचाने के। लिये हायों की छाया करते हुए आँखों को सिकोड़ कर देखा और सन्तोप से मुस्करा उठा-मालया था रहो यो । वह श्रायेगी और हंसेगी जिससे उसकी छातियों, मधुर लुभाने वाले श्राकर्षक ढग से हिलने लगेंगी। वह उसे अपनी [  ]________________

मालवा


कोमल, पुष्ट, गोल भुजाओं से प्रालिंगन में बाँध लेगी और जोर से चुम्बन करते हुए उसे वधाई देगी जिसे सुनकर समुद्री चिड़ियाँ भयभीत हो उठेगी। फिर वह उसे तट पर होने वाली हलचलों का समाचार सुनायेगी। साथ २ वे दोनों बढ़िया खाना बनाऐंगे, बोदका पीएंगे और वालू पर लेट कर वा करते हुए एक दूसरे को प्यार करेंगे और फिर जब शाम की छायायें लम्बी हो उठेंगी केतली चढ़ा देंगे, जायकेदार विस्कुटों के साथ चाय पियेंगे और फिर सोने चले जायेंगे । हर इतवार और प्रत्येक छुट्टी वाले दिन वहाँ यही होता था । वड़के ही वह से हमेशा की तरह किनारे पर ले जायगा-शान्त, चिकने समुद्र के पार ऊषा के उज्ज्वल प्रकाश में वह नाव के पिछले हिस्से में बैठी हुई झपकियाँ लेती रहेगी और वह नाव खेते हुए उसे देखता रहेगा । ऐसे अवसरों पर वह कितनी विचित्र दिखाई देवी यो-विचित्र परन्तु थाकर्पक, प्यार करने लायक एक स्वस्य मोटो ताजी विल्ली की तरह । सम्भव है वह अपनी सीट से नीचे सरक कर नाव के पेड़े में लेटकर गहरी नींद में सो जायगी। वह अक्सर ऐसा करती थी.........। उस दिन समुद्री चिड़ियां भी गर्मो से न्याकुल हो उठी थीं । कुछ बालू पर एक कवार में अपने ढ़ने लटकाए और चोर्चे खोले बैठी हुई थीं। कुछ लहरों पर चुपचाप अपनी स्वाभाविक लालची आदतों को काबू में रख, धीरे धीरे तैर रही थीं। वासिली को ऐसा लगा कि नाष में मालवा के पास कोई और बैठा है। क्या सोझका ने पुनः उसे जाल में फंसा लिया है ? वासिलो ने चालू पर गहरी करवट ली, उठकर बैठ गया और खिों पर हाथ को छाया करते हुए समुद्र की तरफ चिन्तत होकर देखने लगा कि नाव में दूसरा और "कोन है। मालवा पिछले हिस्से में बैठी हुई पहिए को घुमा रही थी। पतवार चलाने वाला सर्योमका नहीं था। उसे खेने का अभ्यास नहीं था। अगर सोझका उसके साथ होता तो मालवा पहिया नहीं घुमाती । "एहो!" वासिनी अधीर होकर चिल्लाया। [  ]________________

मालवा इस आवाज से चौंककर बालू पर बैठी हुई समुद्री चिनियाँ चौकन्नी होकर खड़ी होगई। "ए-हो-श्रो !" नाव से मालवा की गूंजती हुई आवाज आई। "तुम्हारे साथ वह कौन है ?" जवाब में एक ही हसी सुनाई दी। "खूबसूरत बला!" नफरत से थूकते हुए-वासिली सॉस रोकक बड़बड़ाया। वह यह जानने के लिए मरा जा रहा था कि मालवा के साथ ना में कौन है । सिगरेट बनाते हुए वह गौर से पतवार चलाने वाले की गर्दन और पीठ को देखने लगा। उसे पतवारों की छपछपाहट की आवाज साप सुनाई दे रही थी। उसके पैरों के नीचे वालू खिसकने लगी। "वह तुम्हारे साथ कौन है ?" वह चीखा, जव उसने मालवा के सुन्दर चेहरे पर एक विचित्र और अपरिचित मुस्कराहट देखी। "इन्तजार करो और देखो!" वह हंसती हुई चिरुलाई । पतवार चलाने वाले ने किनारे को ओर अपना चेहरा मोदा और वासिनी को देखकर हंस पड़ा । __चौकीदार घुर्राया और यह सोचने की कोशिश करने लगा कि यह अजनवी कौन हो सकता है। उसका चेहरा तो परिचित सा लग रहा है। "जोर से चलाश्रो!" मालवा ने श्राज्ञा दो। खहरे नाव को आधी के लगभग किनारे पर खींच लाई । नाव एक तरफ को सुकी और बालू में अब गई । लहरें वापस समुद्र को खौट गई। पतवार चलाने वाला नाव से बाहर कूदा और बोला : "हलो, फादर" "याकोव !" वासिनी घुटती हुई आवाज में बोला, जिसमें सन्तोष के स्थान पर आश्चर्य की ध्वनि अधिक थी। दोनों ने एक दूसरे का प्रालिङ्गन और चुम्बन किया-तीन बार-होठों और गालों पर । वासिनी के चेहरे के भावों में खुशी और परेशानी दोनों की झलक थी। [  ]________________

मालवा ....... ."मैंने देखा और देखता चला गया...."थौर मेरे हृदय में मनमनी सी उठने लगी। मुझे श्राश्चर्य हुआ कि यह क्या है.............. अच्छा, तो तुम थे ? यह कौन सोच सकता था ? पहले मैंने सोचा कि यह सयेमिका है परन्तु फिर मैंने देखा कि वह नहीं है। और वह तुम निक्ले" कहते हुए वासिलो ने एक हाथ से अपनी दाढ़ी थपयपाई और मरे से इशारे करने लगा। वह मालवा को देखने के लिए भरा जा रहा था परन्तु उसके बेटे की हंसती हुई श्रीखें उसकी ओर घूमी और उनकी चमक ने उसे सन्देह में डाल दिया। उसका वह सन्तोप, जो इतने सुन्दर और स्वस्थ लड़के को अपने बेटे की शकल में पाकर उसे हुआ था अपनी नी फी उपस्थिति से उत्पन्न हुई वेचैनी से नष्ट हो गया। यह याकोव के सामने खड़ा एक पैर से दूसरे पैर पर भार देता हुघा, विना जयाय का इन्तजार किए उससे सवाल पर सवाल पूछता चला जा रहा था। उस समय सब चीजें जैसे उसके दिमाग में ठलट-पलट हो रही थीं, जब उसने मालवा को हंसते हुए मजाक के स्वर में कहते सुना : ___"वहाँ खुशी से नाचते हुए मत खड़े रहो । उसे झोपड़ी में ले जाकर कुछ खिलायो पिलायो!" वह उसको भोर मुड़ा । मालवा के होठों पर एक चिदाने पालो मुस्कान खेल रही थी। यामिली ने उसे इससे पहले इस तरह मस्कराते कभी नहीं देना था। उसका सारा शरीर भी जो गोल-मटोल, कोमल और हमेशा की तरह गाजा था, कुछ दूसरी सरह का दिखाई दे रहा था। वह बड़ी अजीब सी लग रही थी। अपने सफेद दाँतों से तरबूज के बीज कुटकते हुए उसने अपनी फंजी ऑखें पिता से हटा कर पेटे पर जमा दी। याकोष टन दोनों की तरफ मुस्कराता हुश्रा पारी-बारी से देख रहा था। और बहुत देर तक, जो पामिलो को बखर रहा था, पे वीनों पामोश सटे रहे। सभी लो, एक मिनट में!" शामिलो ने अचानक झोंपड़ी की मोर जातफहा। "तुम लोग भूप में से हट जायो तर तस में जान योदा [  ]मालवा • - - - - - - -- सा पानी ले आऊँ । हम लोग कुछ शोरवा बनाएंगे .. ..... मैं तुम्हें ऐसा शोरवा खिलाऊँगा याकोव, जैसा कि तुमने पहले कभी भी नहीं खाया होगा । वय तक तुम दोनों श्राराम करलो । मैं एक मिनट में अभी आया । " उसने झोपड़ी के पास जमीन से एक केतली उठाई , तेजी से जान की ओर बढ़ा और शीघ्र ही उसकी भूरी पतों में प्रोमल होगया । मालवा और याकोव दोनों झोंपड़ी की ओर चले । " अब तुम यहां हो , मेरे सुन्दर बच्चे ! मैं तुम्हें तुम्हारे पाप के पास ले श्राई हूँ ! " मालवा ने बगल में याकोव के सशक शरीर , छोटी सी घुघराली भूरी दाढ़ी से भरे हुए चेहरे और चमकती हुई आँखों की तरफ देखते हुए कहा । " हाँ , हम लोग आ गए ” उत्सुकतापूर्वक उसकी ओर चेहरा धुमाते हुए उसने जवाब दिया -- " यह कितना अच्छा है । और समुद्र ! यह सुन्दर नहीं है " ___ " हाँ , यह एक चौड़ा सागर है - " अच्छा, क्या तुम्हारे बाप की उमर ज्यादा लगने लगी है । " " नहीं , बहुत ज्यादा तो नहीं । मैं तो उन्हें और भी ज्यादा भूरे बालों वाला देखने की उम्मीद कर रहा था । अभी तो उनके कुछ ही बात सफेद हुए हैं .. ..... . . और वह अब भी कितने स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई देते हैं । " " तुम कहते थे, सुम्हें उन्हें देखे हुए किवने दिन होगए ? " “पाँच साल के करीव, मैं सोचता हूँ . .. " जब से कि उन्होंने घर छोड़ा है । मैं तब सत्रहवीं में चल रहा था .. .. " वे झोपड़ी में घुसे । अन्दर घुटनी थी । जमीन पर पढ़े हुए सन के बोरों से मछली की गन्ध भा रही थी । वे बैठ गए । याकोव एक मोटे पेड़ तने पर बैठा और मालवा एक वोरों के ढेर पर । उनके बीच में एक पीपा rd हुआ था जिसका ऊपर की भोर उलटा हुआ पेंदा मेज का काम देता 4 । वे चुपचाप एक दूसरे की ओर देखते हुए बैठे रहे । " श्रच्छा तो तुम [ १० ]________________

मालवा यहाँ काम करना चाहते हो"-मालवा ने चुप्पी भन्न करते हुए कहा । "हाँ 'मैं नहीं जानता""अगर मुझे यहाँ कोई काम मिल जाय तो मैं पसन्द करूंगा।" "तुम्हें यहाँ प्रासानी से काम मिल जायगा।" उसकी तरफ अपनी कंजी, प्रश्न सी पूछती, अधमुदी खिों से देसते हुए, विश्वासपूर्वक मालया बोली। . याकोव ने उस स्त्री की तरफ से अपनी प्रासे हटा ली और अपनी ___ कमीज की चाह से माथे का पसीना पांछा । अचानक यह हम उठी । ____ "मेरा ख्याल है तुम्हारी माँ ने तुम्हारे पाप के लिए शुभ-कामनाएँ और संदेश अवश्य भेजा होगा," वह बोली। याकोव ने उसकी तरफ देखा, माथे पर बल डाले और कटुता से जवाब दिया : “भेजा है • तुम क्यों पूछ रही हो ?" "ओह, वैसे ही!" याकोव को वह हंसी अच्छी नहीं लगी वह परेशान करने वाली यो। उसने उस औरत की तरफ से मुंह मोड़ लिया और अपनी मां के द्वारा भेजे गए सन्देश को याद करने लगा। उसकी मां उसे गांव के बाहर तक छोड़ने भाई थी । सरपत को चनी हुई एक दोवाल के सहारे खड़े होकर उसने जल्दी २ बोलते हुए और तेजी से अपनी सूसी धासें झपकाते हुए कहा था : "उससे कहना, याशा... .. .. ईश्वर के लिए उससे कहना कि वह फिर भी एक बाप है ! • तुम्हारी माँ विएल घरेली है, उससे कहना...... यह पिरले पाँच पा से विपुल शरे ली । उनसे काहना बुद्धी होती जा रही है। ईश्वर के लिए उमसे कहना, गशा! तुम्हारी नो पदी श्री गुटो कोपायेगी... और यह चिकुल वंक्षी है । रस्त मेहनत करनी है। रियर के लिए उससे यह कहना ' ...." और अपने आंचल में मुंह छिपाकर चुपचार रोने लगी थी। याकोष को तर उसके लिए दूर नहीं दुघा या परन्तु प्रय होने लगा।

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