चन्द्रकांता सन्तति 3/11.5

विकिस्रोत से
चंद्रकांता संतति भाग 3  (1896) 
द्वारा देवकीनंदन खत्री

[ १४१ ]

5

कीमती जवाहरात के चीजों की गठरी लादे हुए मालिक को चौपट करने वाली हरामजादी भगवानी जब भागी तो उसने फिर के देखा भी नहीं कि पीछे क्या हो रहा है या कौन आ रहा है।

रात पहर भर से कुछ ज्यादा जा चुकी थी और चांदनी खूब निखरी हुई थी जब हांफती और काँपती हुई भगवानी एक घने जंगल के अन्दर जिसमें चारों तरफ परले सिरे का सन्नाटा छाया हुआ था पहुँचकर एक पत्थर की चट्टान पर बैठी और फिर इस तरह से लेट गई जैसे कोई हताश होकर गिर पड़ता है। वह अपनी बिसात से ज्यादा चल और दौड़ चुकी थी और इसीलिए बहुत सृस्त हो गई थी। इस पत्थर की चट्टान पर पहुँचकर उसने सोचा था कि अब बहुत दूर निकल आये हैं कोई धरने-पकड़ने वाला है नहीं अतएव थोड़ी देर तक बैठ कर आराम कर लेना चाहिए, मगर बैठने के साथ ही पहले जिस पर उसकी निगाह पड़ी, वह श्यामसुन्दरसिंह था जिसे देखते ही उसका कलेजा धक से हो गया और चेहरे पर मुर्दनी छा गई। उसकी तेजी के साथ चलनी साँस दो-चार पल के लिए रुक गयी और वह घबराकर उसका मुँह देखने लगी। [ १४२ ]श्यामसुन्दरसिंह-क्यों? तूने तो समझा होगा कि बस अब मैं बच कर निकल आई और जवाहरात की गठरी नरम चारे की तरह हजम हो गई!

भगवानी—(कुछ सोचकर) नहीं-नहीं, मैं इसमें से तुम्हें आधा बाँट देने के लिए तैयार हूँ। आखिर दुश्मन लोग इसे भी लूट कर ले ही जाते, अगर मैं बचाकर ले आई तो क्या बुरा हुआ? सो भी बाँट देने के लिए तैयार हूँ।

श्यामसुन्दरसिंह-ठीक है मगर मैं आधा बाँट कर नहीं लिया चाहता बल्कि सब लिया चाहता हूँ।

भगवानी—सो कैसे होगा? जरा सोचो तो सही कि मैं दुश्मनों के हाथ से कितनी मेहनत करके इसे बचा लाई हूँ, और सब तुम्ही ले लोगे तो मुझे क्या फायदा होगा?

श्यामसुन्दरसिंह-तो क्या तू कुछ फायदा उठाना चाहती है? अगर ऐसा ही है तो मालिक के नाथ नमकहरामी या दगा करने और दुश्मनों को बचाकर कैदखाने के बाहर कर देने में जो उचित लाभ होना चाहिए वह तुझे होगा!

भगवानी-(चौंक कर) आपने क्या कहा सो मैं न समझी! क्या आपको मुझ पर किसी तरह का शक है?

श्याम-नहीं, शक तो कुछ भी नहीं है या अगर है भी तो केवल दो बातों का एक तो कैदियों को बचाकर निकाल देने का और दूसरे मालिक के साथ दगा करने का।

भगवानी-नहीं-नहीं, कैदी लोग किसी और ढंग से निकल गये होंगे, मुझे तो उनकी कुछ खबर नहीं और तारा के साथ दगा करने के विषय में जो कुछ आप कहते हैं सो वह काम मेरा न था, बल्कि एक-दूसरी लौंडी का था जिसके सबब से बेचारी तारा मौत...

इतना कहकर भगवानी रुक गई। उसके रंग-ढंग से मालूम होता था कि जल्दी में आकर वह कोई ऐसी बात मुँह से निकाल बैठी है जिसे वह बहुत छिपाती थी। श्याम सुन्दरसिंह को भी उसकी आखिरी बात से निश्चय हो गया कि हरामजादी भगवानी ने दुश्मनों से मिलकर बेचारी तारा को मौत के पंजे में फंसा दिया, अस्तु बिना असल भेद का पता लगाए इसे कदापि न छोड़ना चाहिए।

श्याम–हाँ-हाँ, कहती चल, रुकी क्यों?

भगवानी-यही कि मैं ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे मालिक का नुकसान हो।

श्याम-अच्छा यह बता कि कैदियों को निकालने वाला और तारा को फंसाने वाला कौन है?

भगवानी—यह काम नमकहराम लालन लौंडी का है।

श्याम–-यदि मैं इस समय के लिए तेरा ही नाम लालन रख दूँ तो क्या हर्ज है क्योंकि मेरी समझ में बेचारी लालन निर्दोष है जो कुछ किया तू ही ने किया, कैदियों ने तुझी को अपना विश्वासपात्र समझा, तुझी से काम लिया और तेरो ही मदद से निकल भागे, इतने दुश्मनों को भी तू ही बटोर कर लाई है और इतने पर भी संतोष न पाकर बेचारी तारा को भी तू ने ही.... [ १४३ ]भगवानी-(हाथ जोड़कर) नहीं-नहीं, आप मुझे व्यर्थ दोषी न ठहरायें, भला ऐसे मालिक के साथ मैं विश्वासघात करूँगी जो मुझे दिल से चाहे?

श्याम—(कमर से एक चिट्ठी निकालकर और भगवानी को दिखाकर) और यह क्या है? क्या इसमें भी लालन का नाम लिखा है? कोई हर्ज नहीं, अपने हाथ में लेकर अच्छी तरह देख ले क्योंकि यद्यपि यह रात का समय है, फिर भी चन्द्रदेव ने अपनी किरणों से दिन की तरह बना रक्खा है।

यह चिट्ठी न तीनों चिट्ठियों में एक थी जो शिवदत्त, माधवी और मनोरमा ने लिखकर भगवानी को दी थी। न मालूम श्यामसुन्दरसिंह के हाथ यह चिट्ठी कैसे लगी। भगवनिया इस चिट्ठी को देखते ही जदं पड़ गई, कलेजा धकधक करने लगा, मौत की भयानक सूरत सामने दिखाई देने लगी, गला रुक गया, वह कुछ भी जवाब न दे सकी। अब श्यामसुन्दरसिंह बर्दाश्त न कर सका, उसने एक तमाचा भगवानी के मुह पर जमाया और कहा-"कम्बख्त! अब बोलती क्यों नहीं!"

जब भगवानी ने इस बात का भी जवाब न दिया तब श्यामसुन्दरसिंह ने म्यान से तलवार निकाल ली और हाथ ऊँचा करके कहा, "अब भी अगर साफ-साफ भेद न बतावेगी तो मैं एक ही हाथ में दो टुकड़े कर दूँगा।"

भगवानी को निश्चय हो गया कि अब जान किसी तरह नहीं बच सकती, इसके अतिरिक्त डर के मारे उसकी अजब हालत हो गई, और कुछ तो न कर सकी, हाँ एक दम जोर से चिल्ला उठी और इसके साथ ही एक तरफ से आवाज आई-"कौन है जो मर्द होकर एक स्त्री की जान लिया चाहता है?"

श्यामसुन्दरसिंह ने फिर कर देखा तो दाहिनी तरफ थोड़ी ही दूर पर एक नौजजवान को हाथ में खंजर लिए मौजूद पाया। उस नौजवान ने श्यामसुन्दरसिंह से पुनः कहा, "यह काम मर्दो का नहीं है जो तुम किया चाहते हो!" जिसके जवाब में श्यामसन्दरसिंह ने कहा, "बेशक यह काम मर्दो का नहीं मगर लाचार हूँ कि यह नमकहराम मेरी बातों का जवाब नहीं देती और मैं बिना जवाब पाये इसे किसी तरह नहीं छोड़ सकता।"

यह आदमी, जो श्यामसुन्दरसिंह के पास यकायक आ पहुँचा था, हमारा नामी प्यार भैरोंसिंह था जो कमलिनी के मकान के दुश्मनों से घिर जाने की खबर पाकर उसी तरफ जा रहा था और इत्तिफाक से यहाँ आ पहुँचा था, मगर वह श्यामसुन्दरसिंह और भगवनिया को नहीं पहचानता था और वे दोनों भी इसे सूरत बदले हुए और रात का समय होने के कारण न पहचान सके। भैरोंसिंह ने पुनः कहा--

भैरोंसिंह-यदि हर्ज न हो तो मुझे बताओ कि यह तुम्हारी किन बातों का जवाब नहीं देती?

श्याम–बता देने में हर्ज तो कोई नहीं अगर आप उन लोगों में से नहीं हैं जिन्हें हम लोग अपना दुश्मन समझते हैं, क्योंकि यह भेद की बात है और अपना भेद दुश्मनों के सामने प्रकट करना नीति के विरुद्ध है। उत्तम तो यह होगा कि हमारा भेद जानने के पहले आप अपना परिचय दें। [ १४४ ]भैरों तो तुम्हीं अपना परिचय क्यों नहीं देते?

श्याम- इसलिए कि ऐयार लोग भेद जानने के लिए समय पड़ने पर उसी पक्ष वाले बन जाते हैं जिससे अपना काम निकालना होता है।

भैरोंसिंह-ठीक है, मगर बहादुर राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों में से कोई भी ऐसा कमहिम्मत नहीं है जो खुले मैदान में एक औरत और एक मर्द से अपने को छिपाने का उद्योग करे।

श्याम–(खुश होकर) अहा, अब मालूम हो गया कि आप राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयारों में से कोई हैं। ऐसी अवस्था में मैं भी यह कहने में विलम्ब न लगाऊँगा कि मैं श्यामसुन्दरसिंह नामी कमलिनीजी का सिपाही हूँ और यह भगवानी नाम की उन्हीं की बेईमान लौंडी है जिसकी नमकहरामी और बेईमानी का यह नतीजा निकला कि दुश्मनों ने तालाब वाले तिलिस्मी मकान पर कब्जा कर लिया और किशोरी, कामिनी तथा तारा का कुछ पता नहीं लगता। अब तक जो मालूम हुआ है उससे जाना जाता है कि इसी कम्बख्त ने उन तीनों को भी किसी आफत में फंसा दिया है जिसका खुलासा भेद मैं इससे पूछ रहा था कि आपकी आवाज आई और आपसे बातचीत करने की प्रतिष्ठा प्राप्त हुई।

भैरोंसिंह-(जोश के साथ) वाह, यह तो एक ऐसा भेद है जिसके जानने का सबसे पहला हकदार मैं हूँ। मैं उन्हीं तीनों से मिलने के लिए जा रहा था जब रास्ते में मुझे यह मालूम हुआ कि उस तिलिस्मी मकान को दुश्मनों ने घेर लिया है इसलिए जल्द पहुँचने की इच्छा से जंगल ही जंगल दौड़ा जा रहा था कि यहाँ तुम लोगों से भट हो गई।

श्याम–यदि ऐसा है तो अब कृपा कर आप अपनी असली सूरत शीघ्र दिखाइये जिससे मैं आपको पहचान कर अपने दिल के बचे-बचाये खुटके को निकाल डालूँ क्योंकि राजा वीरेन्द्रसिंह के कुल ऐयारों को मैं पहचानता हूँ।

श्यामसुन्दरसिंह की बात सुनकर भैरोंसिंह ने बटुए में से सामान निकाल कर बत्ती जलाई और बनावटी बालों को अलग करके अपना चेहरा साफ दिखा दिया। श्याम सुन्दरसिंह यह कहकर कि 'अहा, मैंने बखूबी पहचान लिया कि आप भैरोंसिंह जी हैं भैरोंसिंह के पैरों पर गिर पड़ा और भैरोंसिंह ने उसे उठा कर गले से लगा लिया। इसके बाद श्यामसुन्दर सिंह ने अपनी तरफ का पूरा-पूरा हाल इस समय तक का कह सुनाया।

भैरोंसिंह-अफसोस, बात ही बात में यहाँ तक नौबत जा पहुँची। लोग सच कहते हैं कि घर का एक गुलाम वैरी बाहर के बादशाह बैरी से भी जबर्दस्त होता है जिसकी ताबेदारी में हजारों दिलावर पहलवान और ऐयार लोग रहा करते हैं। खैर जो होना था सो तो हो गया, अब इस (भगवनिया की तरफ इशारा करके) कम्बख्त से किशोरी, कामिनी और तारा का सच्चा-सच्चा हाल मैं बात की बात में पूछ लेता हूँ। यह औरत है इसलिए मैं खंजर को तो म्यान में कर लेता हूँ और हाथ में उस दुष्टदमन को लेता हूँ जिसके भरोसे ऐसे जंगल में काँटों से निर्भय रहकर चलता रहा, चलता हूँ [ १४५ ] और यदि इसकी खातिरदारी से यह बच गया तो चलूँगा! हाँ एक बात तो मैंने कही ही नहीं।

श्याम-वह क्या?

भैरोंसिंह-वह यह कि मैं यहाँ अकेला नहीं हूँ बल्कि दो ऐयारों को साथ लिए हुए कमलिनी रानी भी इसी जंगल में मौजूद हैं।

श्याम–आहा, यह तो आपने भारी खुशखबरी सुनाई, बताइये वे कहाँ हैं, मैं उनसे मिलना चाहता हूँ।

कम्बख्त भगवनिया अब अपनी मौत अपनी आँखों के सामने देख रही थी। भैरों सिंह के पहुँचने से उसकी आधी जान तो जा ही चुकी थी, अब यह खबर सुन के कि कमलिनी भी यहाँ मौजूद है वह एकदम मुर्दा सी हो गई। उसे निश्चय हो गया कि अब उसकी जान किसी तरह नहीं बच सकती। भैरोंसिंह ने जोर से जफील बजाई और इसके साथ ही थोड़ी दूर में सूखे पत्तों की खड़खड़ाहट के साथ ही घोड़ों की टापों की आवाज आने लगी और उस आवाज ने क्रमशः नजदीक होकर भूतनाथ तथा देवीसिंह और घोड़ों पर सवार कमलिनी रानी तथा लाड़िली की सूरत पैदा कर दी।