चन्द्रकान्ता सन्तति 5/20.14
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भूतनाथ के बेहोश हो जाने पर दोनों नकाबपोशों ने भूतनाथ के साथियों में से एक को पानी लाने के लिए कहा और जब वह पानी ले आया तो उस नकाबपोश ने जिसने अपने को दलीपशाह बताया था, अपने हाथ से भूतनाथ को होश में लाने का उद्योग किया। थोड़ी ही देर में भूतनाथ चैतन्य हो गया और नकाबपोश की तरफ देखकर बोला, "मुझसे बड़ी भारी भूल हुई जो आप दोनों को फंसाकर यहाँ ले आया हूँ! आज मेरी हिम्मत बिलकुल टूट गई और मुझे निश्चय हो गया कि अब मेरी मुराद पूरी नहीं हो सकती और मुझे लाचार होकर अपनी जान देनी पड़ेगी।"
नकाबपोश––नहीं-नहीं भूतनाथ, तुम ऐसा मत सोचो, देखो हम कह चुके हैं और तुम्हें मालूम भी हो चुका है कि हम लोग तुम्हारे ऐबों को खोलना नहीं चाहते, बल्कि राजा वीरेन्द्रसिंह से तुम्हें माफो दिलाने का बन्दोबस्त कर रहे हैं। फिर तुम इस तरह हताश क्यों होते हो? होश करो और अपने को सम्हालो।
भूतनाथ––ठीक है, मुझे इस बात की आशा हो चली थी कि मेरे ऐब छिपे रह जायेंगे और मैं इसका बन्दोबस्त भी कर चुका था कि वह पीतल वाली सन्दूकड़ी खोली न जाय, मगर अब वह उम्मीद कायम नहीं रह सकती, क्योंकि मैं अपने दुश्मन को अपने सामने मौजूद पाता हूँ।
नकाबपोश––बड़े ताज्जुब की बात है कि दरबार में हम लोगों को कैफियत देख सुनकर भी तुम हमें अपना दुश्मन समझते हो! यदि तुम्हें मेरी बातों का विश्वास न हो तो मैं तुम्हें इजाजत देता हूँ कि खुशी से मेरा सिर काटकर पूरी दिलजमई कर लो और अपना शक भी मिटा लो। तब तो तुम्हें अपने भेदों के खुलने का भय न रहेगा?
भूतनाथ––(ताज्जुब से नकाबपोश की सूरत देखकर) दलीपशाह, वास्तव में तुम बड़े ही दिलावर, शेर-मर्द, रहमदिल और नेक आदमी हो। क्या सचमुच तुम मेरे कुसूरों को माफ करते हो?
नकाबपोश––हाँ-हाँ, मैं सच कहता हूँ कि मैंने तुम्हारे कसूरों को माफ कर दिया, बल्कि दो रईसों के सामने इस बात की कसम खा चुका हूँ।
भूतनाथ––वे दोनों रईस कौन हैं?
नकाबपोश––जिनके कब्जे में इस समय हम लोग हैं और जो नित्य महाराज साहब के दरबार में जाया करते हैं।
भूतनाथ––क्या राजा साहब के दरबार में जाने वाले नकाबपोश कोई दूसरे हैं आप नहीं, या उस दिन दरबार में आप नहीं थे जिस दिन आपकी सूरत देखकर जयपाल घबराया था?
नकाबपोश––हाँ, बेशक वे नकाबपोश दूसरे हैं और समय-समय पर नकाब डालने के अतिरिक्त सूरतें भी बदलकर जाया करते हैं। उस दिन वे हमारी सूरत बनकर दरबार में गये थे।
भूतनाथ––वे दोनों कौन हैं?
नकाबपोश––यही तो एक बात है जिसे हम लोग खोल नहीं सकते, मगर तुम घबराते क्यों हो? जिस दिन उनकी असली सूरत देखोगे खुश हो जाओगे। तुम ही नहीं, ल्कि कुल दरबारियों को और महाराजा साहब को भी खुशी होगी, क्योंकि वे दोनों नकाबपोश कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं।
भूतनाथ––मेरे इस भेद को वे दोनों जानते हैं या नहीं?
नकाबपोश––फिर तुम उसी तरह की बातें पूछने लगे।
भूतनाथ––अच्छा अब न पूछूँगा, मगर अंदाज से मालूम होता है कि जब आप उनके सामने भेद छिपाने की कसम खा चुके हैं तो वे इस भेद को जानते जरूर होंगे। खैर, जब आप कहते ही हैं कि मेरा भेद छिपा रह जायगा तो मुझे घबराना न चाहिए। मगर मैं फिर भी यही कहूंगा कि आप दलीपशाह नहीं हैं।
नकाबपोश––(खिलखिलाकर हँसने के बाद)तब तो फिर मुझे कुछ और कहना पड़ेगा। वाह, तुम्हारी स्त्री बड़ी ही नेक थी, जो कुछ तुमने उसके सामने किया
भूतनाथ––(नकाबपोश के मुँह पर हाथ रखकर) बस-बस-बस, मैं कुछ भी नहीं सुनना चाहता! यह कैसी माफी है कि आप अपनी जुबान नहीं रोकते! इतने ही में पत्थरों की आड़ में से एक आदमी निकलकर बाहर आया और यह कहता हुआ भूतनाथ के सामने खड़ा हो गया, "तुम उन्हें भले ही रोक दो। मगर मैं उन बातों की वाद दिलाये बिना नहीं रह सकता!"
हम नहीं कह सकते कि इस नये आदमी को यहाँ पर आये कितनी देर हुई या यह कब से पत्थरों की आड़ में छिपा हुआ इन दोनों की बातें सुन रहा था, मगर भूतनाथ उसे यकायक अपने सामने देखकर चौंक पड़ा और घबराहट तथा परेशानी के साथ उसकी सूरत देखने लगा। यह देखकर उस आदमी ने जानबूझकर रोशनी के सामने अपनी सूरत कर दी जिसमें पहचानने के लिए भूतनाथ को तकलीफ न करनी पड़े।
यह वही आदमी था जिसे भूतनाथ ने नकाबपोशों के मकान में सूराख के अन्दर से झाँक कर देखा था और जिसने नकाबपोशों के सामने एक बड़ी-सी तस्वीर पेश करके कहा था कि "कृपानाथ, बस मैं इसी का दावा भूतनाथ पर करूँगा।"
इस आदमी को देख कर भूतनाथ पहले से भी ज्यादा घबरा गया। उसके बदन का खून बर्फ की तरह जम गया और उसमें हाथ-पैर हिलाने की ताकत बिल्कुल न रही। उस आदमी ने पुनः कड़क कर भूतनाथ से कहा, "ये नकाबपोश साहब तुम्हारी बात मान कर चाहे चुप रह जायँ, मगर मैं उन बातों को अच्छी तरह याद दिलाए बिना न रहूँगा जिन्हें सुनने की ताकत तुममें नहीं है। अगर तुम इनको दलीपशाह नहीं मानते हो तो मुझे दलीपशाह मानने में तुम्हें कोई उज्र भी न होगा।"
भूतनाथ यद्यपि आश्चर्यमय घटनाओं का शिकार हो रहा था और एक तौर पर खौफ, तरद्दुद, परेशानी और नाउम्मीदी ने उसे चारों तरफ से आकर घेर लिया था, मगर फिर भी उसने कोशिश करके अपने होश-हवास दुरुस्त किये और उस नए आये दलीपशाह की तरफ देख कर कहा, "बहुत खासे! एक दलीपशाह ने तो परेशान कर ही रखा था, अब आप दूसरे दलीपशाह भी आ पहुँचे, थोड़ी देर में कोई तीसरे दलीपशाह भी आ जायेंगे, फिर मैं काहे को किसी से दो बातें कर सकूँगा। (पुराने दलीपशाह की तरफ देख कर) अब बताइये, दलीपशाह आप हैं या ये?"
पुराना दलीपशाह––तुम इतने ही में घबरा गये! हमारे यहाँ जितने भी नकाबपोश हैं, सभी अपना नाम दलीपशाह बताने के लिए तैयार होंगे, मगर तुम्हें अपनी अक्ल से पहचानना चाहिए कि वास्तव में दलीपशाह कौन है।
भूतनाथ––इस कहने का मतलब तो यही है कि आप लोग सच नहीं बोलते?
पुराना दलीपशाह––जो बातें हमने तुमसे कहीं, क्या वे झूठ हैं?
नया दलीपशाह––या मैं जो कुछ कहूँगा वह झूठ होगा! अच्छा सुनो, मैं एक दिन का जिक्र करता हूँ। जब तुम ठीक दोपहर के समय उसी पीतल वाली सन्दूकड़ी को बगल में छिपाये रोहतासगढ़ की तरफ भागे जा रहे थे। जब तुम्हें प्यास लगी तब तुम एक ऊँची जगत वाले कुएँ पर पानी पीने के लिए ठहर गये जिस पर एक पुराने नीम के पेड़ की सुन्दर छाया पड़ रही थी। कुएँ की जगत में नीचे की तरफ एक खुली कोठरी थी और उसमें एक मुसाफिर गर्मी की तकलीफ मिटाने की नीयत से लेटा हुआ तुम्हारे ही बारे में तरह-तरह की बातें सोच रहा था। तुम्हें उस आदमी के वहाँ मौजूद रहने का गुमान भी न था। मगर उसने तुम्हें कुएँ पर जाते हुए देख लिया, अस्तु, वह इस फिक्र में पड़ गया कि तुम्हारी छोटी-सी गठरी में क्या चीज है इसे मालूम करे और अगर उसमें कोई चीज उसके मतलब की हो तो उसे निकाल ले। उस समय उस आदमी की सूरत ऐसी न थी कि तुम उसे पहचान सकते, बल्कि वह ठीक एक देहाती पंडित की सूरत में था क्योंकि वह वास्तव में एक ऐयार था, अस्तु, वह हाथ में लोटा लिए हुए कोठरी के बाहर निकला और उस ठिकाने पर गया, जहाँ तुम झुक कर पानी खींच रहे थे। तुम्हें इस बात का गुमान भी न था कि वह तुम्हारे साथ दगा करेगा। मगर उसने पीछे से तुम्हें ऐसा धक्का दिया कि तुम कुएँ के अन्दर जा रहे और उसने तुम्हारे ऐयारी के बटुए पर कब्जा करके जो कुछ अन्दर था, उसे अच्छी तरह देख और समझ लिया, बल्कि कुछ ले भी लिया। क्या तुम्हें आज तक भी मालूम हुआ कि वह कौन था!
भूतनाथ––(ताज्जुब से) नहीं, मैं अभी तक न जान सका कि वह कौन था, मगर इन बातों के कहने से तुम्हारा मतलब ही क्या है?
नया दलीपशाह––मतलब यही है कि तुम जान जाओ कि इस समय वह आदमी तुम्हारे सामने खड़ा है।
भूतनाथ––(क्रोध से खंजर निकाल कर) क्या वह तुम ही थे?
नया दलीपशाह––(खंजर का जवाब खंजर ही से देने के लिए तैयार होकर) बेशक मैं ही था और मैंने तुम्हारे बटुए में क्या-क्या देखा सो भी इस समय बयान करूँगा।
पहला दलीपशाह––(भूतनाथ को डपट कर) बस खबरदार! होश में आओ और अपनी करतूतों पर ध्यान दो। हमने पहले ही कह दिया था कि तुम क्रोध में आकर अपने को बर्बाद कर दोगे। बेशक तुम बर्बाद हो जाओगे और कौड़ी काम के न रहोगे, साथ ही इसके यह भी समझ रखना कि तुम दलीपशाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते और न उसे तुम्हारे तिलिस्मी खंजर की परवाह है।
भूतनाथ––मैं आपसे किसी तरह तकरार नहीं करता, मगर इसको सजा दिए बिना भी न रहूँगा। क्योंकि इसने मेरे साथ दगा करके मुझे बड़ा नुकसान पहुँचाया है और यही वह शख्स है, जो मुझ पर दावा करने वाला है, अत: हमारे इसके बीच में इसी जगह सफाई हो जाय तो बेहतर है।
पहला दलीपशाह––खैर, जब तुम्हारी बदकिस्मती आ ही गई है तो हम कुछ नहीं कह सकते, तुम लड़ कर देख लो और जो कुछ बदा है भोगो, मगर साथ ही इसके यह भी सोच लो कि तुम्हारी तरह इसके और मेरे हाथ में भी तिलिस्मी खंजर हैं और इन खंजरों की चमक में तुम्हारे आदमी तुम्हें कुछ भी मदद नहीं पहुँचा सकते।
भूतनाथ––(कुछ सोचकर और फिर रुक कर) तो क्या आप इसकी मदद करेंगे?
पहला दलीपशाह––बेशक!
भूतनाथ––आप तो मेरे सहायक हैं?
पहला दलीपशाह––मगर इतने नहीं कि अपने साथियों को नुकसान पहुँचावें।
भूतनाथ––आखिर ये जब मुझे नुकसान पहुँचाने के लिए तैयार हैं तो क्या किया जाए?
पहला दलीपशाह––इनसे भी तुम माफी को उम्मीद करो क्योंकि हम लोगों के सरदार तुम्हारे पक्षपाती हैं। भूतनाथ––(खंजर म्यान में रख कर) अच्छा, अब हम आपकी मेहरबानी पर भरोसा करते हैं, जो चाहे कीजिये।
पहला दलीपशाह––(नये दलीप से) आओ जी, तुम मेरे पास बैठ जाओ।
नया दलीपशाह––मैं तो इससे लड़ता ही नहीं मुझे क्या कहते हो? लो, मैं तुम्हारे पास बैठ जाता हूँ। मगर यह तो बताओ कि अब इसी भूतनाथ के कब्जे में पड़े रहोगे या यहाँ से चलोगे भी?
पहला दलीपशाह––(भूतनाथ से) कहो अब मेरे साथ क्या सलूक करना चाहते हो? तुम्हें मुनासिब तो यही है कि हमें कैद करके दरवार में ले चलो।
भूतनाथ––नहीं, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है, बल्कि आप मुझे माफी की उम्मीद दिलाइये तो मैं यहाँ से चला जाऊँ।
पहला दलीपशाह––हाँ, तुम माफी की उम्मीद कर सकते हो, मगर इस शर्त पर कि अब हम लोगों का पीछा न करोगे!
भूतनाथ––नहीं, अब ऐसा न करूँगा। चलिए मैं अब आपको ठिकाने पहुँचा दूँ।
नया दलीपशाह––हमें अपना रास्ता मालूम है, किसी मदद की जरूरत नहीं।
इतना कहकर नया दलीपशाह उठ खड़ा हुआ और साथ ही वे दोनों नकाबपोश भी जिन्हें भूतनाथ बेहोश करके लाया था उठे और अपने मकान की तरफ चल पड़े।