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जहाँगीरनामा

विकिस्रोत से
जहाँगीरनामा  (1905) 
जहाँगीर, अनुवादक मुंशी देवीप्रसाद

कलकत्ता: भारतमित्र प्रेस, पृष्ठ आवरण से – ३१८ तक

 

॥ श्रीः॥

जहांगीरनामा ।

जिसको

जोधपुरनिवासी

मुन्शी देवीप्रसादजीने

फारसी तुजुकजहांगीरीसे

हिन्दीमें अनुवादित किया।

जहाँगीर।


कलकत्ता।

९७ मुक्तारामबाबूष्ट्रीट, भारतमित्र प्रेससे

पण्डित कृष्णानन्द शर्मा द्वारा

मुद्रित और प्रकाशित।

सन् १८०५ ई।

 

मुंशी देवीप्रसाद।

अनुवादकर्ताका परिचय।


इस पुस्तकके अनुवादकर्ता श्रीयुक्त मुंशी देवीप्रसाद महोदयका कुछ परिचय पाठकोंको देना चाहता हूं। आप हिन्दीभाषा और देवनागरीके प्रचारक बड़े पक्षपाती है। यद्यपि आप फारसी और उर्दूदी विद्वान हैं तथापि हिन्दौके तरफदार बहुत दिनसे हैं। बहुत दिन पहले हिन्दीमें राजस्थानका खप्न नामको पुस्तक लिखकर आपने अपने हिन्दौप्रेमका परिचय दिया था और राजस्थानको रियासतों में देवनागरी अक्षरोंके प्रचार के लिये जोर दिया था। मुसलमान बादशाहों और हिन्दू राजाओंका इतिहास जानने में आप अद्वितीय पुरुष हैं। राजस्थानको एक एक रियामतहीकी नहीं एक एक गांव और एक एक कसबेकी सब प्रकारको बातोंको आपने इम सरह खोज खोजकर निकाला है कि आपको यदि राजस्थानका सगौव इतिहास कहें तो कुछ भी अत्युक्ति नहीं होती। राजस्थान के इतिहासको खोजमें आपने जैसा श्रम किया है उससे आपका नाम सुवरिखे राजपूताना पड़ गया है। पर सच पूछिये तो वह राजस्थान के केवल इतिहास लेखकही नहीं वरच वहांके रोफार्मर या सुधारक भी हैं। बहुतसे देशो रजवाड़ोंमें उनकी लेखनौसे बहुत कुछ सुधार हुआ है। हिन्दीके प्रेमियों के लिये यह एक बड़े हर्षका विषय है कि इस प्रवीणावस्थामें वह हिन्दौके मुरब्बी हुए हैं और हिन्दीभाषाके इतिहासभाण्डारको पूर्ण करनेको और उनका ध्यान हुआ है।

मुंशी देवीप्रसादजी गौड़ कायस्थ हैं। आपके पूर्वपुरुष दिल्लौसे भूपाल गये थे। उनमेंसे एक मुंशी नरसिंहदास थे। उनके पुत्र मुंशी आलमचन्द थे उनके बेटे घासीराम मुंशी देवीप्रसादके परदादा थे जो बड़े मुंशी और खुशनवीस थे। उनके बेटे मुंशी किशनचन्द जौका संबंध टौंकके नवाब अमीरखांके बख्यो दौलतरायजौको कन्यासे हुना था। इससे वह भूपाल छोड़कर सिरोंजमें आबसे थे जो भूपालसे १८ कोस पर नवाब अमीरखांको अमलदारीमें था। वहीं मुंशी देवीप्रसादके पिता मुंथी नत्थनलालजौका जन्म भादों बदी 2 संवत् १८७६ को हुना। उसी साल अमीरखांने प्रकरणों से सन्धि होजाने पर टौंकमें रहना खौकार किया। इससे देवीप्रसाद जौके दादा सकुटुम्ब टौंको पावसे। जब आपके पिता लिख पढ़ कार होशियार हुए तो वह अमौरखांके छोटे बेटे साहबजादे अब- दुलकरीमखांको सरकारमें नौकर होकर संवत् १९०० विक्रमाव्दमें उनके साथ अनमेर चले पाये। क्योंकि साहबजादेको उनके बड़े आई नवाब वजीरद्दौलासे नहीं बनती थी इससे धंगरेजोंने उनको अजमेर में रहनेको प्राज्ञादी। मुंशी देवीप्रसादका जन्म माघ सुदी १४ संवत् १८०४ को जय- पुरमें नानाके घर हुआ। नाना इकोम शंकरलाल नयपुर राज्यके चौकोनवौस भैया होरालालजीने पुत्र थे। देवीप्रसादजौने फारसी हिन्दी अपने पितासे पढ़ी और नौकरी भी 'टौंकहोको सरकादमें संवत् १८२० से संवत् १८३४ तक को। इस बीच में उनका रहना कभी अजमेर में और कभी टौंकमें हुआ। क्योंकि उक्त साहबजादे के पुत्र पिताके बाद कभी अजमेर में और कभी टौंकमें रहने लगे थे। मुसलमानी राज्य होमानेसे टौंको हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार होने लगा। इससे संवत् १८३५ के आरम्भमें मुंशी देवीप्रसादजी को नौकरीही नहीं छूटी वरञ्च उन्हें टौंक छोड़देनेका भी हुमहुआ। मुंशोजीने अजमेर में आकर कोहेनूर आदि अखबारोंमें उन अत्या- चारोंको बात लिखना आरम्भ को। परिणाम यह हुआ कि टौंक दरबारको कुछ सुध हुई। अत्याचार कुछ कम किये गये और

  • ढूंढारदेश और हाडोती (कोटाबूंदी) में कायस्थीको भैयाजी

कहते हैं और मारवाड़ मेवाड़में पंचोली। . (ग) लखनऊके अवधअखबार में रियासतको ओरसे विज्ञापन प्रकाशित हुश्रा कि अब पिछली बातें रियासतमें नहीं होने पावेंगी। मुंशीजीके छोटेभाई बाबू विहारीलाल जोधपुरको एजण्टीमें सेकेण्ड क्लार्क थे। उनकी चेष्टासे पापको एक नौकरी संवत् १८३६ में जोधपुर दरबार में मिली। पहले कई साल तक आप अपोलकोर्टके नायब सरिश्तेदार रहे। संवत् १८४० में महकमे खासके सर- दफ्तर होगये। १८४२ में आप मुंसिफ हुए। १८४६ में महकमें तवारीखके मेस्बर हुए। संवत् १८४८ में मनुष्यगणनाके डिपटी सुपरिटेण्ड ण्ट और १९५५ में महकमे बाकियात और खासी दुकानातके सुपरिण्टे ण्ड ण्ट हुए। अढ़ाई सौ रुपये मासिक तक बेतन पाते रहे। संवत् १८५६ के अकालमें रियासतको मुन्सिफी टूट गई तब आपने कुछ दिन तक फेमिन विभागमें काम किया। संवत् १९५७ में फिर जोधपुर परगने में मनुष्यगणनाके सुपरिण्ट - ण्ड ण्ट हुए। आजकल रियासतके बड़े काम छोडकर गुजारके लायक कुछ काम आपने अपने पास रखे हैं और साहित्यसेवामें लगे हैं। दुनिया में धन जोड़नेको इच्छा अधिक लोगोंको रहती - है पर धन अमर, नहीं हैं। : मुंशी साहब इस समय वह धन जोड़ रहे है जो..सदा अमर रहे।..... .. ...अङ्गारेजी में छपी हुई मुंशी देवीप्रसादजीको मार्टीफिकटीको एक पुस्तक मेरे दृष्टिगोचर हुई। उसके देखनेसे विदित होता है. कि वह जिस विभागमें गये हैं उसी में उनके कामको इज्जत और उनकी सेवाको सराहना हुई है। नौकरके लिये यही बड़ी इज्जत है. कि उसके कामको प्रशंसा हो: . पर जिनके दृष्टि है उनको समझमें आजाता है कि मुंशी देवीप्रसाद मामूली काम करनेवालोंके सदृश नहीं थे। उनको प्रतिभाने हर जगह अपना. चमत्कार दिखाया है। इतिहासके समझने पढ़ने और पुरानी बातोंको खोज खोज कर निकालनेको जो बुद्धि भगवानने उनको दी है उसने हर जगह अपनी तेजी दिखाई है। मनुष्यगणनामें जाकर आपने जोधपुर राज्यको प्रजाको वह सुन्दर रिपोर्ट लिखी है कि बैंसी रिपोर्ट देशी रियासतों में तो कहां आरसके अंगरेजी इलाकोंकी भी बहुत कम है। ... अब कुछ बातें उनके साहित्यसेवा संवंधकी लिखी जाती है। उप्तको दो विभाग हैं एक उर्दू विभाग जिसमें उन्होंने बहुत पुस्तके लिखी हैं। उनमेसे अधिक इतिहास नीति और स्त्रोशिक्षाके विषय में हैं। गुलदस्तवेअदब, तालीमउन्निया और तवारीख मारवाड़ नामको पुस्तकों के लिये उन्हें युक्त प्रदेशको सरकारसे इनाम मिला । एक पुस्तक उन्होंने उर्दू में कविता करनेवाले हिन्दूकवियोंके विषय में बहुत सुन्दर लिखी है। हिन्दीमें आपने जो पुस्तकें लिखी हैं । उनके भो दो विभाग है-एक तो वह जो मारवाड़ दरबारके लिये उता दरबारको आज्ञासे बनाई गई हैं। वह मारवाड़ में भी काम आती हैं और बाहर भी जाती हैं। उनमेंसे तीन तो मारवाड़ राज्यको तीन सालको रिपोर्ट हैं जिनमें सन १८८३-८४ ईखोसे १८८५-८६ तकका वर्णन है। एक सन् १८८१ ईखोकी मर्दुम- शुमारीको रिपोर्ट है जिसके लिये उन्हें ५००) इनाम मिला। इसके पहले भागमें उमर, जाति और पेशे सहित मनुष्यगणना लिखी गई है। दूसरे भागमें मालाणी मारवाड़के कुल गांवों को परगनेवार लिष्ट अकारादि क्रमसे मनुष्य गणना मालिकोंके नाम और स्थानों का फासिला लिखा गया है। तीसरे भागमें मारवाड़में बसनेवाली सब जातियोका हाल उनके पेथे और उनके चालचलनको जरूरी बातें कितनेही कामके चित्रों सहित दी हैं। उसमें एक एक मांव को सूची, मनुष्यगणना आदि बहुतसी कामको बातें लिखी हुई हैं। तेरह अलग अलग पुस्तकों में मारवाड़ राज्यके दीवानी फौजदारी और दूसरे प्रवन्ध संबंधी कायदे कानून लिखे हैं। . • दूसरे विभागको हिन्दी पुस्तके वह हैं जो आपने अपनी रुचिसे लिखी हैं। यह हिन्दी साहित्यको सेवाके लिये लिखी गई हैं। इनमें से कुछ छपी हैं कुछ लहीं छपी और कुछ अधूरी हैं। इनकी सूची इस लेखके अन्त में दोगई है। . हिन्दी की ओर आपका ध्यान थोड़ेही दिनसे हुआ है। कई एक विद्वानों ने आपसे आग्रह किया कि हिन्दौके भाण्डारमें इति- हातको बहुत कमी है। आप इस कमीको दूर करते तो बड़ा . उपकार होता। इतिहासका आपको सदासे अनुराग है। उसको बड़ी सामग्री उन्होंने एकत्र की है। इसका कुछ परिचय उन्होंने अपनो सन् १८०५ ईखोको जन्तोमें दिया है। यह अनुरोध उन्होंने अङ्गीकार किया और तबसे बराबर वह उस काममें लगे हुए हैं। इसके सिवा आप बहुतसे विहानोंको साहित्यसेवामें यथाशक्ति सहा- यता देनेसे भी नहीं रुकते हैं। भारतवर्षके नाना स्थानोंसे कितनी ही इतिहास संबंधी बातोंको जांच पड़तालके लिये उनके पास पत्र पहुंचते हैं। उनके उत्तरमें मुंशी साहब जोधपुरसे उनको अभीष्ट सामग्री भेज देते हैं। इतना परिश्रम करने पर भी वह साहित्य और इतिहासके संबंधके लेख समाचारपत्रोंको भेजते हैं। आपने विज्ञापन दे रखा है कि मुसलमानों और राजपूतोंके इतिहासके विषयमें कोई बात पूछना हो या किसी पुस्तकको जरूरत हो तो उनसे पत्रव्यवहार करें। ... जब जब उन्होंने अपने या रियासतौ कामों के लिये यात्रा को है सब तब कुछ समय निकालकर पुरानी बातें, पुराने ग्रन्थ, पुराने शिलालेख, पुराने पट्टे कागज और पुराने सिक्कों के ढंढ़ने में बड़ा श्रम किया है। दो साल पहले काशीको नागरौप्रचारिणी सभाके लिखने पर एक हजारके लगभग पुरानो हस्तलिखित हिन्दी पुस्तकों का पता मारवाड़ जैसे वियाहोन देशमेंसे झटपट लगा दिया था। . ___ आप पुश्तैनी कवि हैं। आपके पिता उर्दू फारसीके अच्छे कवि थे, फारसी कवितामें उनको बनाई भक्तमाल मैंने पढ़ी है। आप खयं भी पहले उर्दूको कविता करते थे और कितनेही कवि संशो- धनके लिये अपनी कविता आपके पास भेजते थे। हिन्दौमें आपने कविता नहीं की पर पुरानी कविताका उद्धार किया है। “महिला । मृदुवाणी” प्रकाशित कर आपने कविता करनेवाली स्त्रियोंको जीवनी और उनकी कविताको रक्षित किया है। राजरसनामृत नामसे आपने कविता करनेवाले राजा लोगोंको कविता और जीवनौका एक अच्छा संग्रह किया है जो अभी छपा नहीं है। इसी प्रकार हिन्दी कवियोंनी एक रत्नमाला गूंथी है। स्वर्गीय अजान कवि डुमरावं निवासी पण्डित नकछेदी तिवारीने जिनको मृत्युका शोक अभी बहुत ताजा है (जो गत मासमें इस प्रसार संसारको छोड़ गये हैं) कवि पद्माकरको जीवनी लिखकर उसको. इतिहास संबंधी बातोंको एकबार जांच जाने के लिये आपके पास भेजी थी। इसी प्रकार और बहुतसी बातोंको खोज तलाश आपके द्वारा होती है। आपके पुत मुंशी पीताम्बरप्रसाद जिनकी उमर इस समय कोई ३० सालको है उर्दूके बहुत अच्छे और होनेहार कवि हैं। उनको बनाई नीतिको कई पुस्तकें मैंने देखी हैं। साहित्य संबंधमें राजस्थानको इस समय दो उज्वल रत्न प्राप्त हैं एक मुंशी देवीप्रसाद जोधपुर में और दूसरे. पण्डित गौरीशंकरजी ओझा उदयपुरमें। पहलेने मुसलमानो समयके आरतके इतिहास को खोजा है और दूसरीने संत और अंगरेजौके विद्वान होनेसे हिन्दुओंके प्राचीन इतिहासको। सब साहित्यप्रेमियोंको इच्छा है कि इन दो रत्नोंको चमक दमक खूब बढ़े और सबको आशा है कि भारतके विद्याभाण्डारको इनके द्वारा बहुत कुछ पूर्ति हो। कलकत्ता कार्तिक शला १९ संवत् १९६२ विक्रमाव्द।)

बालमुकुन्द गुप्त।

मुंशीजीकी बनाई हिन्दीभाषाकी पुस्तकोंकी सूची।


१ अकबर बादशाहको जीवनी।

२ शाहजहांकी जीवनौ ।

३ हुमायूं बादशाहकी जीवनी।

४ ईरानके बादशाह तुहमास्यकी जीवनी।

५ बाबर बादशाहकी जीवनौ

६ शेरशाह बादशाहकी जीवनी।

७ उदयपुरके महाराणा सांगाजीकी जीवनी ।

८ राणा रतनसिंह विक्रमादित्य और बनवीरजीकी जीवनी।

९ महाराणा उदयसिंहकी जीवनी।

१० महाराणा प्रतापसिंहकी जीवनी।

११ भामेरके राजा पृथ्वीराज, पूरणमल, रतनसिंह, आसकरण, राजसिंह, भारमल और भगवानदासकी जीवनी।

१२ महाराज मानसिंहकी जीवनी।

१२ बीकानेरके राव बीकाजी और नराजीका चरित।

१४ राव लूणकरणकी जीवनौ।

१५ राव जैतसीकी जीवनी।

१६ राव कल्याणमलकी जीवनी।

१७ मारवाड़के राठ मालदेवका चरित ।

१८ राजा बीरबलकी जीवनी पहला भाग।

१८ राजा बीरबलकी जीवनी दूसरा भाग ।

२० मीरांबाईकी जीवनी।

२१ भाषाभूषणके की महाराज श्रीजयवन्तजीकी जीवनी ।

२२ जसवन्त स्वर्गवास ।

२३ सरदार सुख समाचार।

२४ विद्यार्थी विनोद

२५ खप राजस्थान। २६ मारवाड़का भूगोल।

२७ मारवाड़का नकशा।

२८ प्राचीन कवि।

२८ बीकानेर राज पुस्तकालय ।

३० इन्साफ संग्रह।

३१ लारो नवरत्न।

३२ महिला मृदुवाणी।

३३ मारवाड़के प्राचीन शिलालेखोंका संग्रह।

३४ अन्य सन १८८८ से १८०५ तक वर्ष १८ को १८ ।


॥श्री॥

जहांगीरनामा ।


भूमिका।

मैंने पहले अकबर बादशाहका संक्षिप्त इतिहास लिखा था और पीछे शाहजहां बादशाहका, उन दोनों बादशाहोंके बीच में जहांगीरने बादशाही की है उसका इतिहास बाकी था। वह अब लिखकर हिन्दुस्थानके उत्ता तीन नामो मुगल बादशाहोंके इतिहास का सिलसिला पूरा कर दिया जाता है।

अकबर और शाहजहांके इतिहास उनके नौकरोंके लिखे हुए हैं। उनमें कुछ कुछ खुशामद और अत्युक्ति भी है। पर जहांगीर ने अपना इतिहास आप लिखा है और ठीक लिखा है। क्योंकि नौकर लोग कभी किसी बादशाहके घर दरबार राज्यकार्य स्वभाव आदिको बातें वैसी खुलकर नहीं लिख सकते जैसी जहांगीरने अपनी आप लिखी हैं। लिखी भी ऐसी हैं कि पढ़कर आनन्द आता है। क्योंकि केवल इतिहासही नहीं किन्तु न्याय नीति लौकिक रीती विद्याविनोद और नये संस्कारोंको कितनीही बातें भी इसमें आगई हैं। आश्चर्य है कि जो बादशाह आजतक लोगों में मौजी विलासी शराबी शिकारी आदि कहलाता है वह ऐसा विद्वान बुद्धिमान और लिखने पढ़ने में सावधान हो कि उसको लेखनीका एका एक अक्षर ध्यान देनेके योग्य हो। अधिक. क्या लिखें पढ़नेवाले पढ़कर स्वयं देख समझ लेंगे। यदि कुछ खेदकी बात है तो इतनी है कि इस इतिहासके अन्तिम तीन वर्षों का हाल स्वयं जहांगीरका लिखा या लिखाया हुआ नहीं था। पोथी अधूरी थी शाहजहांके समय में मिर्जा हादी(१) ने पिछला हाल संक्षिप्त रीतिसे लिखकर पूरी की। इस पोथीको भूमिका भी उसी मिर्जा हादीको लिखीहुई है। उसमें जहांगीरके बादशाह होनेसे पहलेका हाल है।

अपना रोजनामचा आप लिखनेको चाल जहांगीरके घराने में ९ पीढ़ी पहलेसे चली थी। अमीर तैमूर साहिबकिरां जहांगीर का आठवीं पीढ़ीमें दादा था। उसने अपनी दिनचर्य्या जन्मकालसे मरण पर्य्यन्त लिखकर अपने सिरहाने छोड़ी थी। वह तुर्कीभाषा में है। उसका अनुवाद फारसी और उर्दू में भी होगया है। उसका नाम तुजुकतैमूरी है।

दूसरी दिनचर्य्या बाबर बादशाहकी है जो तुजुकबाबरी और वाकआत बाबरीके नामसे प्रसिद्ध है। बाबर जहांगीरका परदादा था। उसका तुजुक भी तुर्कीभाषामें है। उसके फारसीमें दो अनु- वाद हुए हैं एक ईरानमें मौलाना जैनुहीन खवाफीन किया और दूसरा हिन्दुस्थानमें मिर्जा अबदुर्रहीम खानखानांने किया।

तीसरी दिनचर्य्या यह जहांगीर बादशाहकी है। इसका ढङ्ग तुजुक बाबरीसे बहुत मिलता जुलता है। इतिहासके सिवा विद्या विज्ञान खगोल भूगोल काव्य कला राजनीति और लौकिक रीति आदि दूसरी दूसरी उपयोगी बातें जैसी बाबरके तुजुकमें हैं वैसीही वरञ्च उससे भी बढ़कर जहांगीरके तुजुकमें हैं। कारण यह कि हिन्दुओंको धर्म्मनीति चालढाल आचार व्यवहार तथा भारतको रीति भांति और प्रकृतिसे, अपने परदादाको अपेक्षा जहांगीर अधिक जानकार होगया था। इसीसे उसने इन सब बातोंका वर्णन यथा प्रसङ्ग बाबरसे अच्छा किया है।


(१) पिछला हाल जो मिरजाहादीने लिखकर लगाया है "इक- बाल नामये जहांगीरी" से लिया हुआ जान पड़ता है। इकबाल- नामा भी मोतमिदखां बखशीने शाहजहांके समयमें पूरा किया था। जहांगीर बादशाहकी इस किताबका नाम तुजुका जहांगीरी अर्थात् जहांगीर प्रवन्ध है। तुर्कीभाषामें प्रवन्धको तुजुक कहते हैं। पर इस पुस्तकको भोजप्रवन्ध या कुमारपाल प्रवन्ध आदिको समान न समझना चाहिये। क्योंकि उन पोथियों में बिना संवत् मिती और पते ठिकानेको कथाएं हैं और यह पोथी सप्रमाण रोजनामचा है। विस्तारभयसे हमने इस जहांगीरनामेका अक्षर अक्षर अनुवाद नहीं किया है, अधिक स्थानों में सारांशसे काम लिया है और जहां अच्छा देखा है उसका पूरा आशय ले लिया है। तथा कहीं कहीं बादशाहको लेखका यथावत अनुवाद भी किया है।

बहुत जगह नोट भी लिखे हैं तथा मुसलमानी और इलाही तारीख और सनीके साथ हिन्दी तिथि और संवत् गणित करके लिखे हैं। इसमें हमें अपनी ३५० वर्षकी इतिहाससहायक जन्त्री से बहुत सहायता मिली है।

इस प्रकार यह काम जो १ अप्रैल सन् १९०१ ईस्वीमें छेड़ा गया था अब चार सालके परिश्रमके पश्चात् पूरा हुआ है। पर इतने पर भी जबतक यह काम बिद्वानोंके पसन्द न आवे तबतक मैं अपनेको कतार्थ नहीं समझ सकता। ग्रन्थ बनाना सहज नहीं है फिर एक भाषासे दूसरी भाषामें अनुवाद करनेके लिये बहुतही समझ चाहिये। उसका मुझमें घाटा है। पर इतने पर भी अपनी मातृभाषामें इतिहासका घाटा देखकर इतना साहस करना पड़ा है।

तुजुक जहांगीरीमें तारीख महीने और सन् हिजरी भी लिखें हैं और इलाही भी। हिजरी मुसलमानोंका पुराना सन् है और इलाही अकबरने चलाया था। मैंने दोनों के अनुसार हिन्दी तिथि महीने और वर्ष चण्ड पञ्चाङ्गसे गणित(२) करके इस पुस्तकामें यथा स्थान रख दिये हैं। यह श्रम न किया जाता तो पाठक ठीक तिथि न समझ सकते।


(२) इस गणितसे मैंने एक जन्त्री बना डाली है जो तारीखोंके मिलाने में बहुत काम देती है। जहांगीरनामा। पाठकोंके जाननेके लिये दोनों सनोंके महीने नीचे लिख दिये जाते हैं। हिजरी महीने। इलाही महीने। १ मुहर्रम १ फरवरदौन २ मफर . २ उर्दीवहित ३ रबौउलअब्बल ३ खुरदाद ४ रवीउस्मानी ४ तौर ५ जमादिउलअव्वल ५ अमरदाद ६ जमादिउस्मानी ६ शहरीवर ७रजब ७ महर ८ शाबान ८ आबान र रमजान 2 आजर १० शब्बाल १० दे ११ जीकाद ११ बहमन १२ जिलहिज १२ असफन्दयार हिजरी महीना चन्द्रदर्शनसे लगता है और इलाही सूर्यको राशि बदलेनेसे। मेखेभानुके दिन फरवरदौनकी पहली तारीख होती है। देवीप्रसाद,

. . जोधपुर।
जहांगीर बादशाहके तख्त पर बैठनेसे पहिलेका हाल

जबकि वह शाहजादा सलीम, सुलतान सलीम

और बादशाह सलीम कहलाता था।

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जहांगीर बादशाह १७ रबीउलअव्वल सन ९७७ हिजरी बुधवार (आखिन बदी ५ संवत् १६२६) को सीकरीमें शेख सलीम चिश्तीके घर पैदा हुआ था। उसका नाम इसी प्रसंगसे शाह सलीम रखा गया था। अकबर बादशाहने आगरेमें यह मङ्गलसमाचार सुनकर बहुतसा धन लुटाया और जितने कैदी किले और शहरमें थे उन सबको छोड़ दिया। फिर सीकरीमें शहर बसाकर फतहपुर नाम रखा और उसे राजधानी बनाकर आप भी वहां रहने लगा। .

जब शाह सलीमको उमर ४ वर्ष ९ महीनेको हुई तो बादशाह ने २४ रज्जब सन ९८१ (अगहन बदी ११ संवत १६३०) को उसे पढ़ने बिठाया। उसका अतालीक पहिले कुतुबमोहम्मदखां अंगा और फिर मिरजाखां खानखानां रहा।

सन ९८५ में बादशाहने उसको १० हजारी, १० हजार सवार का मनसब दिया जिससे बड़ा उस वक्त कोई पद नहीं था। जब उसको उमर १५ वर्षको हुई तो ९८३ (१६४२) में पहिला व्याह राजा भगवन्तदासको बेटीसे दूसरा सन ९९४ (संवत १६४३) में उदयसिंहको लड़कीसे, तीसरा जेनखां कोकेके चचा खाजाहसनको बेटीसे और चौथा केशव मारूको लड़कीसे हुआ।

पहिली बेगमसे पहिले सुलतान निसार बेगम और फिर २४ अमरदाद सन ९९५ (श्रावण सुदी १३ संवत् १६४४) को सुलतान खुसरो पैदा हुआ।

तीसरी बेगमसे १९ आबान सन ९९७ (कार्तिक सुदी ४ संवत् १६४६) को सुलतान परवेज जनमा। चौथी वेगमसे २३ शहरेवर सन ९९८ (आखिन बदी २ सवत् १६४७) को बहारबानू बेगम पैदा हुई।

दूसरी बेगमसे २९ रवीउलअब्बल गुरुवार सन १००० (माघ सुदी १ संवत् १६४८) को सुलतान खुर्रमका जन्म हुआ।

ता० ६ महर सन १००७ (आश्विन बदी १४ संवत् १६५५) को अकबर वादशाह तो दक्षिण फतह करनेके लिये गया और अजमेर का सूबा शाहसलीमको जागीरमें देकर राणाको सर करनेका हुक्म देगया।

शाहकुलीखां महरम और राजा मानसिंहकी नौकरी इनके पास बोली गई।

बङ्गालेका सूबा जी राजाको मिला हुआ था राजा अपने बड़े बेटे जगतसिंहको सौंपकर शाहको सेवामें रहने लगा।

शाह सलीलने अजमेर आकर अपनी फौज राणाके ऊपर भेजी और कुछ दिनों पीछे आप भी शिकार खेलता हुआ उदयपुर तक गया जिसको राणा छोड़ गया था और सिपाहको पहाड़ोंमें भेजकर राणाको पकड़नेकी कोशिश करने लगा।

यहां खुशामदी और स्वार्थों लोग जो चुप नहीं बैठा करते हैं उसके कान भरा करते थे कि बादशाह तो दक्षिणको लेने में लगे हैं वह मुल्क एकाएकी हाथ आने वाला नहीं और वह भी बगैर लिये पीछे आनेवाले नहीं। इसलिये हजरत जी यहांसे लौटकर आगरसे परेके आबाद और उपजाऊ परगनोंको लेलें तो बड़े फायदे की बात है। बंगालेका फसाद भी जिसकी खबरें आरही हैं और जो राजा मानसिंहके गये बिना मिटनेवाला नहीं है जल्द दूर हो जायगा। यह बात राजा मानसिंहके भी मतलबकी थी क्योंकि उसने बंगालेको रक्षाका जिम्मा कर रहा था। इससे उसने भी हां में हां मिलाकर लौट चलनेको सलाह दी।

शाह सलीम इन बातोंसे राणाकी मुहिम अधूरी छोड़कर इला- हाबादको लौट गया। जब अगरेमें पहुंचा तो वहांका किलेदार कुलीचखां पेशवाईको आया। उस वक्त लोगोंने बहुत कहा कि इसकी पकड़ लेनेसे आगरका किला जो खजानोंसे भरा हुआ है सहज ही हाथ आता है। मगर उसने कबूल न करके उसको रुखसत कर दिया और जमनासे उतरकर इलाहाबादका रास्ता लिया। उसकी दादी हौदे में बैठकर उसे इस इरादेसे रोकनेके लिये किलेसे उतरी थी पर वह नाव में बैठकर जल्दौसे चलदिया और वह नाराज होकर लौट आई।

१ सफर सन १००९ (द्वितीय श्रावण सुदी ३ संवत १६५७) को शाह सलीम इलाहाबादके किले में पहुँचा और आगरेसे इधरके अकसर परगने लेकर अपने नौकरीको जागीरमें देदिये। बिहारका सूवा कुतुबुद्दीनखांको दिया, जीनपुरको सरकार लालावेगको और कालपौकी सरकार नसीमबहादुरको दी। घनमूर दीवानने ३० लाख रुपयेका खजाना सूवे बिहारके खालसेमेंसे तहसीलकरके जमा किया था वह भी उससे लेलिया।

जब यह खबरें बादशाहको दक्षिणमें पहुंची तो उसने बड़ी महरबानीसे उसको अपने पास बुलानेका फरमान लिखा। जब अबदुस्समद मुंशीका बेटा शरीफ यह फरमान सलीम पास लेकर आया तो उसने पेशवाई करके फरमानको बड़े अदबसे लिया और जानेका भी इरादा किया। लेकिन फिर किसी खयालसे नहीं गया और शरीफको भी अपने पास रख लिया। वह खुशा- मद दरामदसे इनके दिल में जगह करके वजीर बन गया।

बादशाह इन खबरोंके सुननेसे घरका फसाद मिटाने के लिये दक्षिणकी फतह अधूरी छोड़कर १५ उर्दीबहिश्त सन् १००९ (चैत सुदी २ संवत्:१६५९) को आगरको तरफ लौटा खानखानां और शैख अबुलफजलको वहांका काम पूरा करनेके लिये, छोड़ आया। २० अमरदाद (श्रावण सुदी ३) को आगरेमें पहुंचा।

सन १०१० (संवत् १६५८) में शाहसलीम ३००० सजे हुए सवारों और जंगी हाथियोंसे आगरेको रवाना हुआ। जाहिरमें वापसे मिलनेकी बात थी। पर दिलमें इरादा औरही था।

बादशाह भी इस धूमधड़ाकेसे उसका आना सुनकर बहुत घबराया ।

इटावा आसिफखां दीवानको जागीरमें था। सलीम जब वहां पहुंचा तो दीवानने एक लाल सलीमको नजरके लिये भेजा। आसिफ खां अकबरको सलोमको ओरसे बहकाया करता था इससे सलीम का आना सुनकर मारे डरके वह घबरा गया। पर लालसे बला टल गई। क्योंकि वहीं बादशाहका फरमान पहुंचा। उसमें लिखा था कि बापके घर बेटेका इतने हाथी और सेना लेकर आना बापके जीको औरही विचारमें डालता है। यदि अपने लशकरको हाजिरी देना चाहते हो तो हाजिरी होगई। अपने आदमियोंको जागीरके इलाकोंमें भेजकर अकेले आओ। यदि इधरसे पूरी तसल्ली न हो तो इलाहाबादको लौट जात्रो। जब दिलजमई हो जावे तब आना।

यह फरमान पढ़कर सलीमने अकबरको अर्जी भेजी कि यह गुलाम बड़े चावसे चौखट चूमने आता था। फसादियोंने गुलाम की ओरसे हजरतको बदगुमान करके कुछ दिनके लिये सेवासे अलग रखा। खैर मेरी अधीनता हजरतके दर्पणसे साफ हृदय में आपही दरस जावेगी।

सलीम कुछ दिनों तक इटावे में रहकर इलाहावादको कूच कर गया। पीछेसे अकबरका दूसरा फरमान पहुंचा कि हमने बिहार और बंगालेके सूबे भी तुम्हारी जागौर में दे दिये हैं अपने आदमी भेजकर अमल दखल करलो। पर सलीमने उधर लशकर भेजना उचित न देखकर इनकार लिख भेजा और इलाहाबाद पहुंचकर बादशाही करनी शुरू करदी। अपने नौकरोंको खान और सुल- तानक ताब देदिये । उससे और तो सब बादशाही नौकर मिले हुए थे पर शैख अबुलफजल वजीर नहीं मिला हुआ था। बादशाह भी उसको अपना इकरंगा खैरखाह समझता था इसलिये अकबरने उसको बुलानेका फरमान भेजकर लिखा कि फौज और लशकर अपने बेटे अबदुर्रहमानको सौंपकर आप बहुत जल्द हाजिर हो।

जब सलीमको शैखके बुलानेको खबर पहुँची तो उसके आने में अपनी बात बिगड़ती देखकर उसने सोचा कि जो वह आजावेगा तो फिर और कुछ फसाद उठावेगा और जबतक वह रहेगा हमारा जाना दरगाहमें न होगा इसलिये इसका इलाज पहिलेसेही करना चाहिये।

दक्षिण और आगरेका रास्ता राजा बरसिंहदेवके सुल्कमें होकर था और यह बहादुर राजा बादशाहसे अकसर बिगड़ाहुआ रहता था इसलिये शाहने इसीको शैखके मारनेका हुक्म दिया। राजा जाकर घातमें बैठ गया। जब शैख गवालियरसे १० कोस पर पहुंचा तो राजाने बहुतसे सवार प्यादोंके साथ जाकर शैखका, रास्ता रोका और उसको मारकर उसका सिर इलाहाबादमें भेज दिया।

शैखक मारे जानेसे उधर तो बादशाहको बड़ा दुःख हुआ और इधर सलीम भी बहुत लज्जित हुआ।

बादशाहने सलीमको तसल्ली देकर लेआनेके लिये अपनी लायिक बेगम सलीमासुलतानको रवाने किया। फतहलशकर नामका हाथी खिलअत और खासेका घोड़ा साथ भेजा।

सलीम दो मंजिल आगे बढ़कर बेगमको बड़े अदब और धूम धड़क्केसे इलाहाबादमें लाया। और फिर उसके साथही बापकी सेवामें रवाना हुआ। जब आगरेके इलाकों में पहुँचा तो बादशाहको अर्जी भेजी जिसमें लिखा था कि जब हुजूरने इस बन्दे के कसूर माफ कर दिये हैं तो हजरत मरयममकानीचे अर्ज करें कि वे तशरीफ लाकर गुलामको हुजूरको खिदमतमें लेजावें और हुजूरी ज्योतिषियोंको सुहर्त देखनेका हुक्म होजावे ।

बादशाहने अपनी मांके दौलतखाने में जाकर पोतेको अर्ज दादी को सुनाई और उसके कबूल करलेने पर जवाब में लिखा कि मिलने के वास्ते मुहूर्त्तका क्या बहाना करते हो मिलनाही स्वयं मुहर्त्त है।

इस फरमानके पहुंचतेही सलीमने जल्दीसे कूच करदिया। इधर से मरयममकानी वेगम एक मंजिल आगे जाकर पोतेको अपने दौलतखाने में लेआई। वहां बादशाह भी आगया। वेटेने बापको कदमों में सिर रख दिया बाप बेटेको छातीसे लगाकर अपने घर ले आया।

सलीमने १२ हजार मुहरें और ९७७ हाथी अकबरको भेंट किये। उनमेंसे ३५० अकबरने रख लिये बाको वापिस करदिये। दो दिन पीछे अपनी पगड़ी उतार कर सलीमके सिर पर रखदी। और राणाकी मुहिम पूरी करने का हुक्म दिया। दशहरेके दिन सलीमने उधर कूच किया। निम्नलिखित अमौर वादशाहके हुक्म से उसके साथ गये।

जगन्नाथ, राय रामसिंह, माधवसिंह, राय दुर्गा, राय भोज, हाशमखां, करोवेग, इफ्तखार वेग, राजा विक्रमाजीत, मोटाराजा के वेटे शक्तसिंह, और दलीप, खाज हिसारी, राजा शालिबाहन, मिरजा यूसुफखांका बेटा लशकरी, आसिफखांका भाई शाहकुली, शाहबेग कोलाबी।

शाहने फतहपुरमें ठहरकर इस मुशकिल कामके लायिक लश- कर और खजाना मिलने की अर्जी भेजी मगर दीवानीने बेजा ढील करदी। तब शाहने फिर बादशाहको अर्जी लिखी कि यह गुलाम तो हजरतके हुक्मको खुदाके हुक्मका नमूना समझकर बड़े चावसे इस खिदमतको करना चाहता है मगर किफायती लोग इस मुहिम का सामान जैसा चाहिये नहीं करते हैं तो फिर वेफायदा अपनेको हलका करके वक्ता खराब करना ठीक नहीं है। हजरतने कई दफे सुना होगा कि राणा पहाड़ोंसे बाहर नहीं निकलता है और हर रोज एक नये बिकट स्थानकी ओटमें चला जाता है और जहां तक उससे होसकता है लड़ता नहीं है। उसके कामकी तो यही तदबीर है कि लशकर हर तरफसे जाकर उन पहाड़ोंको हाकेके शिकारकी तरह घेर ले और लशकर इतना चाहिये कि जब उसके सामने पड़ जावे तो काल पूरा कर सके। दौलत- खाहोंने इसके सिवा जो और कोई सलाह देखी है तो बन्देको हुक्म होजावे कि सलाम करके अपनी जागीरमें चला जावे और . वहां इस मुहिमका पूरा सामान करके राणाकी जड़ उखाड़नेको रवाना हो क्योंकि अभी बन्देके सिपाही बहुत टूटे हुए हैं।

बादशाहने यह अर्जी पढ़कर अपनी बहन बखतुन्निसा वेगमको सलीमके पास भेजा और यह कहलाया कि तुम अच्छे मुहूर्त में बिदा हुए हो और ज्योतिषी लोग मिलनको शुभघड़ी नजदीकके दिनों में नहीं बताते हैं इसलिये अभी तो तुम इलाहाबादको सिधार जाओ फिर जब चाहो खिदमतमें हाजिर होजाना।

शाह सलीम यह फरमान पहुंचतेही मथुरा होकर इलाहाबाद चला गया। वहां कुछ दिनों पीछे खुसरोको मा अपने बेटेके कपूतपनसे अफीम खाकर मर गई। इससे शाहको बहुतही रञ्ज हुआ बादशाहने यह सुनतेही फरमान भेजकर उसको तसल्ली दी।

बादशाहने सलीमको इलाहाबाद जानेको आज्ञा दे तो दी थी मगर दिलसे उसका दूर रहना नहीं चाहता था बल्कि उसको इस दूरीसें बहुत दुःखी था। तोभी फसादी लोग उसका दिल वेजार करनेके लिये हर रोज कोई न कोई शिगूफा छोड़ा करते थे और शाहके हमेशा नशे में रहनेका गिल्ला खैरखाहीको लपेट में किया करते थे। इन्हीं दिनों शाहका एक वाकाआनवीस और दो खिदमतगार एक दूसरेके इशकमें फंसकर सुलतान दानियालको पनाहमें जानेके लिये भागे थे पर रस्तेसे पकड़े आये। शाइने गुस्सेसे वाकिया नवीसकी खाल अपने सामने खिंचवाई एक खिदमतगारको खस्सी करा डाला और दूसरेको पिटवाया। इस सजासे उसकी धाक लोगों के दिलों में बैठ गई और भागनेका रस्ता बन्द होगया।

जब खार्थी लोगोंने इस मामलेको खूब नमक मिरच लगाकर बादशाहसे अरज किया तो बादशाहने बहुतही नाराज होकर के वास्ते मुहर्त्तका क्या वहाना करते हो मिलनाही स्वयं मुहर्त है।

इस फरमानके पहुंचतेही सलीमने जल्दीसे कूच करदिया। इधर से मरयममकानी वेगम एक मंजिल आगे जाकर पोतेको अपने दौलतखाने में लेग्राई। वहां बादशाह भी आगया। बेटने बाप कदमों में सिर रख दिया बाप बेटेको छातीसे लगाकर अपने घर ले आया।

सलीमने १२ हजार मुहरें और ९७७ हाथी अकवरकी भेंट किये। उनमेंसे ३५० अकबरने रख लिये बाको वापिस करदिये। दो दिन पीछे अपनी पगड़ी उतार कर सलीमके सिर पर रखदी। और राणाकी मुहिम पूरी करनेका हुक्म दिया। दशहरेके दिन सलीमने उधर कूच किया। निम्नलिखित अमौर वादशाहके हुक्म से उसके साथ गये।

जगन्नाथ, राय रामसिंह, माधवसिंह, राय दुर्गा, राय भोज, हाशमखां, करोबेग, इफ्तखार वेग, राजा विक्रमाजीत, मोटाराजा के बेटे शतासिंह, और दलीप, खाज हिसारी, राजा शालिबाहन, मिरजा यूसुफखांका वेटा लशकरी, आसिफखांका भाई शाहकुली, शाहबेग कोलाबी।

शाहने फतहपुरमें ठहरकर इस मुशकिल कामके लायिक लश- कर और खजाना मिलनेकी अर्जी भेजी मगर दीवानोंने बेजा ढील करदी। तब शाहने फिर बादशाहको अर्जी लिखी कि यह गुलाम तो हजरतके हुक्मको खुदाके हुक्मका नमूना समझकर बड़े चावसे इस खिदमतको करना चाहता है मगर किफायती लोग इस मुहिम का सामान जैसा चाहिये नहीं करते हैं तो फिर वैफायदा अपनेको हलका करके वक्ता खराब करना ठीक नहीं है। हजरतने कई दफे सुना होगा कि राणा पहाड़ोंसे बाहर नहीं निकलता है और हर रोज एक नये विकट स्थानको ओटमें चला जाता है और जहां तक उससे होसकता है लड़ता नहीं है। उसके कामकी तो यही तदबीर है कि लशकर हर तरफसे जाकर उन पहाड़ोंको हाकेके शिकारकी तरह घेर ले और लशकर इतना चाहिये कि जब उसके सामने पड़ जावे तो काम पूरा कर सके। दौलत- वाहोंने इसको सिवा जो और कोई सलाह देखी है तो बन्देको हुक्म होजावे कि सलाम करके अपनी जागीरमें चला जावे और वहां इस मुहिमका पूरा सामान करके राणाको जड़ उखाड़नेको रवाना हो क्योंकि अभी बन्देके सिपाही बहुत टूटे हुए हैं।

बादशाहने यह अर्जी पढ़कर अपनी बहन बखतुन्निसा बेगमको सलीमके पास भेजा और यह कहलाया कि तुम अच्छे मुहर्त्तमें बिदा हुए हो और ज्योतिषी लोग मिलनेको शुभघड़ी नजदीकके दिनों में नहीं बताते हैं इप्सलिये अभी तो तुम इलाहाबादको सिधार जाओ फिर जब चाहो खिदमतसें हाजिर होजाना।

शाह सलीम यह फरमान पहुंचतेही मथुरा होकर इलाहाबाद चला गया। वहां कुछ दिनों पीछे खुसरोकौ मा अपने बेटेके कपूतपनसे अफीम खाकर मर गई। इससे शाहको बहुतही रञ्ज हुआ बादशाहने यह सुनतेही फरमान भेजकर उसको तसल्ली दी।

बादशाहने सलीमको इलाहावाद जानेको आज्ञा दे तो दी थी मगर दिलसे उसका दूर रहना नहीं चाहता था बल्कि उसको इस दूरीसे बहुत दुःखी था। तोभी फसादी लोग उसका दिल बेजार करनेके लिये हर रोज कोई न कोई शिगूफा छोड़ा करते थे और शाहके हमेशा नशेमें रहनेका गिल्ला खैरखाहीकी लपेटमें किया करते थे। इन्हीं दिनों शाहका एक वाकानवौस और दो खिदमतगार एक दूसरेके इश्कमें फंसकर सुलतान दानियालको पनाहमें जानेके लिये आगे थे पर रस्तेते पकड़े आये। शाहने गुस्से से वाकिआ नवीसकी खाल अपने सामने खिंचवाई एक खिदमतगारको खस्सी करा डाला और दूसरेको पिटवाया। इस सजासे उसकी धाक लोगों के दिलों में बैठ गई और भागनेका रस्ता बन्द होगया।

जब खार्थी लोगोंने इस मामलेको खूब नमक मिरच लगाकर बादशाहसे अरज किया तो बादशाहने बहुतही नाराज होकर कहा कि हमने आजतक एक जहानको तलवारसे फतह किया है मगर कभी अपने हजूरमें बकरेकी भी खाल उधेड़नेका हुक्म नहीं दिया और हमारा बेटा अजब सङ्गदिल है जो अपने सामने आदमीकी खाल खिचवाता है।

इन्हीं लोगोंने यह भी अर्ज की थी कि शाह अफीमको शराब में घोलकर इतनी जियादा पीते हैं कि जिसको तबीअत भी वर- दाश्त नहीं कर सकती है और फिर जब नशा चढ़ता है तो ऐसेही ऐसे शर्मिन्दा करनेवाले हुक्म देते हैं। उस वक्त किसीको कुछ कहने को मजाल नहीं होती अकसर लोग तो भागकर छुप जाते हैं और जिनको हाजिर रहनाही पड़ता है वह बेचार दीवारकी तसवीरसे वने रहते हैं। बादशाहको बेटेसे बहुत मुहब्बत थी इसलिये इन बातोंसे घबराकर उसने यही मुनासिब समझा कि खुद इलाहाबाद जाकर बेटेको साथ आवे।

इस इरादेसे ४ शहरेवर सन् १०१२ (भादों वदी १३) की रात को नावमें बैठकर रवाने हुआ। मगर नाव जमीनमें बैठ गई मल्लाह बहुत पचे पर नावको उस आधीरातमें पानीके अन्दर न लेजा सके इसलिये लाचार तड़के तक जमनामें ठहरना पड़ा। दिन जिकलते निकलते बड़े बड़े अमीर अपनी अपनी नावोंको बढ़ाकर सलाम करने आये। अक्सर स्याने आदमियोंको समझमें यह शकुन अच्छा न था तोमी बादशाहके डरसे कोई लौट चलनेको अर्ज नहीं कर सकता था।

बादशाह यहांसे चलकर डेरोंमें आये जो ३ कोस पर जमनाके किनारे लगे थे। उस समय मेह बड़े जोरसे बरसने लगा और साथही मरयममकानी वेगमके बीमार होजानेकी खबर आई जो बादशाहके जाने पर राजी नहीं थी। मह दो तीन दिन तक लगातार बरसता रहा जिससे किसीका भी डेरा खड़ा न होसका। बादशाह तथा पासके और कई नौकरोंके सिवा किसीकी कनात नजर नहीं आती थी। बुधवारकी रातको खबर आई कि मरयममकानीका हाल बिगड़ गया है हकीमोंने निरास होकर इलाज छोड़ दिया है। बादशाह फौरन लौटकर उसके पास आया अगर उसको जबान तब बन्द होगई थी।

१८ शहरेवर सोमवारको रातको मरयममकानीका देहान्त होगया। बादशाह और कई हजार अमीर, मनसबदार, अहदी और शामिर्दपेशोंने मुण्डन कराया। हजरत अपनी मांकी लाशको कंधे पर उठा कर कई कदम गये फिर ताबूतकों दिलो रवाने करके लौट आये। दूसरे दिन आपने मातमी कपड़े उतारकार पोशाक बदली और सबलोगोंको खिलबत पहिनाये क्योंकि दसहरे, का उत्सव था।

बेगमको लाश १५ पहर में दिल्ली पहुंची और वहां हुमायूं बादशाहके मकबरे में दफनको गई।

शाह सलीम यह खबर सुनतेही बापके रंजमें शरीक होनेके लिये आगरेमें पहुंच कर आदाब और तोरेका दस्तूर बजा लाया। बादशाह उसको छाती से लगाकर मिला खुशीको नौबतें झड़ीं सब लोगोंका दिल खुश हुआ। शाहने २०० मुहरें सौ सौ तोलेकी ९ मुहरे पचास पचास तोलेकी १ सुहर २५ तोलेकी और पांच दो दो तोलेकी नजर कीं। एक हीरा लाख रुपयेका और ४ हाथी पेशकश किये। फिर बादशाह खासोनाम दरगाह से उठकर महल में गया और कुछ बातें मेहरबानीको करके सलीमसे कहनेलगा बाबा ऐसा मालूम होता है कि जियादा शराब पीनेसे तुम्हारे दिमाग में खलल आगया है तुम कुछ दिन हमारे दौलतखानेमें रहो तो उसको दुरुस्तीका इलाज करें। यह कहकर उसको इवादतखानों बिठा दिया और भरोसेके खिदमत गारोंको निगहबानीपर मुकर्रर किया। सलीमकी मा बहनें हर रोज उसके पास आया करती थीं और तसल्ली देती थीं। जब१०दिन बीत गये और शराब पीने की आदतसे उसका कुछ पागलपन नहीं

[ २ ]
 
पाया गया जैसा कि बादशाहसे कहा गया था तो उसको अपने

दौलतखाने में जानेको छुट्टी होगई और उसके कुछ नौकर जो वादशाहके डरसे इधर उधर छुप गये थे फिर आकर अपना अपना काम करने लगे।

शाह सलीम रोज वापसे सलाम करने जाताथा और बाद- शाह भी उस पर बहुत मेहरवानी करता था।

इन्हीं दिनों में शैख हुसैन जामके खत शाहके पास पहुंचे जिनमें लिखा था कि मैंने शैख बहाउद्दीन वलीको खाब में देखा, कहते थे कि सुलतानसलीम अव जल्द तख्त पर बैठेगा और दुनियाको लाभ पहुंचावेगा।

एक अजब बात और हुई कि शाहसलीमके पास परांवार नाम एक हाथी बड़ा लड़ने वाला था। उससे लड़ सके ऐसा कोई हाथी वादशाही फीलखानेसें न था। मगर खुसरोके पास आपरुप नाम हाथी लड़ने में इक्का था। बादशाहने हुक्म दिया कि इन दोनोंको लड़ावें और खासके हायियोंसेंसे रणथंभण हाथीको मददके वास्ते लेआवें। जो हाथो हारे उसोको मदद वह करे। ऐसे हाथीको महावत लोग "तपांचा" कहते थे। यह बात भी लड़ाईके वक्त लड़ाके हाथियोंको अलग करनेके लिये बादशाहकीही निकाली हुई थी। ऐसेही चरखी उचारी, और लोहलंगर भी उन्होंने निकाले थे।

शाहसलीम और खुसरोने अर्जकी कि घोड़ोंपर सवार होकार पाससे तमाशा देखें। बादशाह भरोकेमें बैठा और शाहजादे खुर्म को अपने पास बिठा लिया।

जब लड़ते लड़ते गरांबार हाथीने आपरूपको दबा लिया तो रणथंभण उसकी मददको बढ़ाया गया। शाहके आदमियोंने महावतको रोका और कई पत्थर भी मारें जिनसे उसकी कनपटी में खून निकला पर वह हुक्मके मुवाफिक हाथीको बढ़ा ले गया। खुसरो और कई चुगल खोरोंने जाकर बादशाहसे शाहके आदमियोंको गुस्ताखी और महावतके जखमी करनेका हाल बहुत बढ़ाकर कहा। जिससे बादशाहने बिगड़कर शाहजादे खुर्रमको फरमाया कि तुम शाह माईके पास जाकर कहो—शाह बाबा फरमाते हैं कि यह हाथी भी हकीकतमें तुम्हाराही है फिर इतनी जियादती करनेका क्या सबब है ?

शाहजादे खुर्रमने जाकर दादाका हुक्म बापसे इस खूबीके साथ कहा कि सलीमको जवाब में कहना पड़ा,--मुझे हरगिज इस बातकी खबर नहीं है। मैं हाथी और महावतको मारने से भी राजी नहीं हुआ हूं और न मैंने हुक्म दिया।

खुर्रमने अरज की कि यदि ऐसा है तो मुझे हुक्म होजावे मैं खुद जाकर आतिशबाजी और दूसरी तदबीरोंसे हाथियोंको अलग करदूं।

सलीमने खुशीसे उसको इजाजत देदी और उसने चरखी और बान छोड़ने का हुका दिया। और भी कई दूसरी तरकीबें कोगईं मगर कुछ न हुआ। आखिर रणथंभण भी हारकर भागगया और अब वह दोनों हाथो लड़ते लड़ते यमुनामें चले गये ! गरांबार आपरूपसे लिपटा हुआ था और किसी तरहसे उसे नहीं छोड़ता था। अन्तको एक बड़ी नाक्के बीचमें आजानेसे अलग होगया।

शाहजादे खुर्रमने दादाके पास जाकर विनयको कि शाहभाईने जो ऐसी जुरअत और गुस्ताखीका हुक्म नहीं दिया था न उनके जानते ऐसा काम हुआ। असल बात हुजूरके सामने कुछ फेरफार से अर्ज कीगई है।

२० जमादिउलअब्बल (कार्तिक वदी ७) को बादशाह बीमार हुआ। पहिले वुखार हुआ फिर दस्त आनेलगे हकीम अलीने बहुत इलाज किया पर कोई दवा न लगी। उस वक्त दरबारमें राजा मानसिंह और खानआजम कर्त्तमकर्ता थे। खुसरो राजाका भानजा और खान आजमका जमाई था इस- लिये ये दोनों बादशाहके पोछे खुसरोको तखत पर बिठानेके जोड़ तोड़ में लगे हुए थे और जो लोग शाह सलीमको नहीं चाहते थे वह सब इनके पेटेमें थे! शाहने यह सब हाल देखकर किले से आना जाना छोड़ दिया, पर शाहजादे खुर्रमने दादाकी पाठौं नहीं छोड़ी। उसकी माने बहुत कहलाया कि इस वक्त में दरबार दुशमनोंसे भरा हुआ है वहां रहना अच्छा नहीं है बल्कि शाहके आज्ञासे उसकी माने खुद भी आकर यही बात उससे कहो पर उसने जवाब दिया कि जब तक दादा साहिबका दम है मैं उनकी खिदमतसे अलग होना नहीं चाहता।

इन्हीं दिनोंमें सलीमको लौंड़ियोंसे दो बेटे जहांदार और शहरयार नामक और पैदा हुए। जो लोग सलीमको जगह खुसरोको बादशाह बनाना चाहते थे उन्होंने सलीमको मौजूदगी में जब अपनी बात चलती न देखी तो लजाकर सलीमकी सेवा में आये। तब सलीम दूसरे दिन बापको देखने गया और शाहजादे खुर्रमको शाबाशी देकर अपने दौलतखानेमें लेआया।

१३ जमादिउस्मानी (कार्तिक सुदी १५ संवत् १६६२) बुधवार को रातको बादशाहका देहान्त होगया। दूसरे दिन वह सिक- न्दरेके बागमें दफन किया गया और शाह सलीम अपना नाम जहांगीर बादशाह रखकर आगरेके किलेमें तख्त पर बैठा। आगे जो कुछ हुआ वह जहांगीरने खुद अपनी कलमसे लिखा है।

नूरजहां बेगम।

नूरजहांका दादा खाजा सुहम्मद शरीफ तेहरानी था वह खुरा- सानके हाकिम मुहम्मदखांका वजीर था। फिर ईरानको बादशाह तेहमास सफवीका नौकार होकर सर्वके सूबेका वजीर हुआ। उसके दो बेटे आका ताहिर और मिरजागयासबेग थे । मिरजा गयासवेग बापके मरे पीछे दो वेटों और एक लड़की समेत हिन्दुस्थानको रवाना हुआ। कन्धारमें उसके एक लड़की और हुई।

मिरजा गयासबेग फतहपुरमें पहुँचकर अकबर बादशाहकी खिदमतमें रहनेलगा। बादशाहने उसको लायक देखकर बादशाही कारखानोंका दीवान कर दिया। वह बड़ा मुन्शी, हिसाबी और कवि था। फुरसतका वक्त कवितामें बिताता था काम वालोंको खूब राजी रखता था। मगर रिशवत लेने में बड़ा बहादुर था।

जब अकबर बादशाह पञ्जाबमें रहा करता था तो अली कुली- बैग अस्तंजलू जो ईरानके बादशाह दूसरे इसमाईलके पास रहने वालोंमसे था ईरानसे आकर नौकर हुआ और तकदौरस बादशाहने उसकी शादी मिरजा गयासवेगकी उस लड़कीसे करदी जो कन्धार में पैदा हुई थी। फिर अलोकुलीबेग जहांगीर बादशाहके पास जा रहा और शेरअफगनखांके खिताबसे सरफराज हुआ।

जब जहांगीर गद्दी पर बैठा तो उसने मिरजा गयासको एतमा- दुद्दौला खिताब देकर आधे राज्यका दीवान बनाया। और शेर- अफगनखांको बंगालेमें जागीर देकर वहां भेज दिया। उसने बंगाले में जाकर दूसरेही साल वहांके सूबेदार कुतुबुद्दीनखांको मारा और आप भी मारा गया। वहांके कर्मचारियोंने मिरजा गयासको लड़कोको जहांगौरके पास भेज दिया। जहांगौर कुतु- बुद्दीनखांके मारे जानेसे बहुत नाराज था। क्योंकि कुतुबुद्दीनखां उसका धाय भाई था। इससे उसने वह लड़की अपनी सौतेली माता रुकैया सुलतानको देदी। वहां वह कई वर्ष साधारण दशा में रही। जब उसका भाग्य उदय होने पर आया तो एक दिन नौरोजके जशनमें जहांगीरको नजर उस पर पड़ गई और वह पसन्द आगई। बादशाहने उसे अपने महलको लौंडियों में दाखिल कर लिया। फिर तो जल्द जल्द उसका दरजा बढ़ने लगा। पहले नूरमहल नाम हुआ फिर नूरजहां बेगम कहलाई। उसके सब घरवाले और नौकर चाकर बड़े बड़े पदों और अधिकारों पर पहुंच गये। उसका बाप एतमादुद्दौला कुल मुखतार और बड़ा भाई अबुलहसन एतकादखांका खिताब पाकर खानसामान हुआ। एतमादुद्दौलाके गुलामों और खाजासराओं तकने खान और 'तर- खान' के खिताब पाये। दिलाराम दाई जिसने बेगमको दूध पिलाया या हाजी कोकाको जगह औरतोंको "सदर" (१) हुई। औरतोंको जो जीविका मिलती थी उसको सनद पर वह अपनी मुहर करती थी जिसको सदरुत्सु दूर (२) भी मंजूर रखता था।

"खुतबा" तो बादशाहके नामकाही पढ़ा जाता था बाकी जो कुछ बादशाहीको बातें थीं वह सब नूरजहां बेगमको हासिल हो गई थीं। वह कुछ अरसे तक झरोकेमें बादशाहको जगह बैठती और सब अमीर उसको सलाम करने आते और उसके हुक्म पर कान लगाये रहते थे। यहां तक कि सिक्का (३) भी उसके नामका चलने लगा था जिसका यह अर्थ था—

जहांगीर बादशाहके हुक्म से और नूरजहां बादशाहके नामसे सोनेने सौ गहने पाये अर्थात् सौगुनी इज्जत पाई।

फरमानोंके ऊपर भी बेगमका तुगरा इस प्रकार होता था—

हुक्म उलियतुल आलिया नूरजहां बेगम बादशाह ।

यहां तक हुआ कि जहांगीर बादशाहका नामही नाम रह गया। वह कहा भी करता था कि मैंने सलतनत नूरजहां बेगमको देदी है। मुझे सिवा एक सेर शराब और आध सेर गोश्तके और कुछ नहीं चाहिये।

बेगमकी खूबी और नेकनामीकी बात क्या लिखी जाय उसमें बुराई थोड़ी और भलाई बहुत थी। जिस किसीका काम अड़ जाता और वह जाकर बेगमसे अर्ज करता तो उसका काम निकाल देती


(१) दानाध्यक्ष (२) प्रधान दानाध्यक्ष।
(३) इस सिक्केमें सन् २१ और अलूस हिजरी सन् १०३० हैं। जहांगीर बादशाहके वजीर आदि।

थी और जो कोई उसकी दरगाहको पनाहमें आजाता था फिर उस पर कोई जुल्म नहीं कर सकता था। उसने अपनी साहबौमें कोई ५०० अनाथ लड़कियोंका ब्याह कराया और उनको यथायोग्य दहेज भी दियो। नूरजहांके घरानेसे लोगोंको बहुत कुछ लाभ पहुंचा। जहांगीर बादशाहके वजौर। १ राय घनसूर-(बादशाह होनेसे पहिले) २ बायजीदबेग काबुली (तथा ) ३ खाजा मुहम्मददोस्त काबुली (बादशाह होनेके पीछे वजीर हुत्रा ' और खाजाजहांका खिताब पाया।) ४ जानबेग (बजीरुल भुमालिक) ५ शरीफखां (बादशाह होनेके पीछे अमीरुलउमराका खिलाब पाया) ६ वजीरखां मुहम्मद सुकोम।। ७ मिरजा गयास तेहरानी खिताब एतमातुद्दौला। ८ जाफरबेग कजवीनी (आसिफखां) ८ खाजा अबुलंहसन। १० आसिफखां यमीनुद्दौला नं० ७ का बेटा। बड़े बड़े मौलवी। १ मुल्लारोज बहाय तबरेजी। .२ मुन्ना शुक्रउल्लाह शोराजी। ३ मौर अबुलक सिम गोलानी।। ४ मुल्लाबाकर शमौरी। लामाकाशमारा। . ५ मुलामुह सीसतानी। ६ मुल्ला अली। ७ काजो हाह। । ८ मुल्ला काबुली। 2 मुख हकीम स्यालकोटी। जहांगीरनामा। १० मुल्ला अबदुल लतीफ सुलतानपुरी। ११ मुल्ला अवदुर्रहमान। १२ मुला फाजिल कावुलो। १३ मुल्ला मन मुरागी। २४ मुल्ला महमूट, जौनपुरी। १५ भूरा गुजराती। १६ सुन्नानफमाय, मोमतरी। बादशाहके हकीम। १ हकीम रुकनाय, काशी। २ हकीम सदरा, (ममोहुज्जमां) ३ हकीम अवुलकासिम गौलानी (हकीमुलमुल्क) ४ हकीम मोमनाई, शौराजी। ५ हकीम रूहउल्लह, काबुली। ६ हकीम वैद्य गुजराती। ७ हकीम तकी. चौलानी। ८ हकीम हमीद, गुजराती। बादशाहके कवि । १ बाबा तालिब इसफहानी । २ हयाती, गोलानी। ३ मुला नजौरी, नेशापुरी। ., ४ मुला मुहम्मद सूफी, माजिन्दरानी। । ५ तालिबेमिली, (मलिकुश्शोरा)। (. ६ सईदाय गौलानी, जरगरबाशी। म्मद कास ७ मौर मासूम, काशी। ८ कौलशूरा, काशो। 2 मुल्ला हैदर, चगताई। फाजिल १. शैदा। IT अबदुल्न् १०३० कसूदम निक जहांगीर बादशाहको वजीर आदि। हाफिज या कुरानको कण्ड करने वाले । हाफिज अलौ। । २ हाफिज अबदुल्लाह।

  • उस्ताद मुहम्मदमानो (शादी)।

} हाफिज चेला (हाफिज बरकत)। हिन्दुस्तानी गवैये। .. र चतुरखां। ५ खुसरोखां . २ माखू। ६ परवेजदाद।

३ खूमरा।

७ खुर्रमदाद। • ४-जहांगीरदाद। ८ नाचूंजी। maratoromजहांगीर बादशाह। पहला वर्ष । सन् १०१४। अगहन बदी १ गुरुवार संवत् १६६२ से वैशाख सुदी १ चन्द्रवार सं० १६६३ तक। बादशाह लिखते हैं कि मैं ईश्वरके अति अनुग्रहसे गुरुवार ८ (१) जमादिउस्मानी सन् १०१४ को एक घण्टा दिन चढ़े ३८ वर्षको अवस्था में राजधानी आगर में तख्त पर बैठा। मेरे बापके २८ वर्षको आयु होने तक कोई पुन जौता न था। इस लिये वह सन्तानके वास्ते फकीरों से प्रार्थना किया करते थे और उन्होंने अपने मनमें यह प्रतिज्ञा की थी कि अब जो कोई लड़का होगा तो पैदल खाजाजीको यात्राको जाऊंगा। उस समय शैख सलीम नाम एक महात्मा सोकरौके पहाड़में रहता था। उधरके मनुष्योंको उसमें बहुत श्रद्धा थी। मेरे पिता भी उसके पास गये और एक दिन उसको अपने अनुकूल देखकर पूछा कि मेरे कितने पुत्र होंगे ? उसने कहा कि परमेश्वर आपको तीन पुत्र देगा । पिताने कहा कि मैं प्रथम पुत्रको तुम्हारे चरणों में डालूंगा। शैखने कहा हमने उसको अपना नाम दिया। (१) ८ गुरुवारको तिथि लेखके दोषसे या और किसी भूलसे मूलमें गलत लिखी गई है। क्योंकि जब अकबर बादशाहको मृत्यु १४को हुई थी तो सलीम उससे पहलेही ८ को किस रीतिसे तख्त पर बैठ सकता था। इकबालनामये जहांगौरीमें १५ जमादिउस्मानी गुरुवार लिखी है, यह तारीख सही मालूम देती है। पञ्चांगके हिसाबसे १३ या १४ होती है सो यह चन्द्रदर्शनका "जब मेरा जन्म समय आया तो पिताने मेरी माताको शैखके घर भेज दिया और वहां तारीख १७ रबीउलअब्वल बुधवार सन् ९७७ को ७ घड़ी दिन चढ़े पीछे तुलाराशिक २४ वें अंशमें मेरा जन्म हुआ और सुलतान सलीम नाम रखा गया। परन्तु मैने पिता के श्रीमुखसे उन्मादमें भी कमी नहीं सुना कि उन्होंने मुझे मुहम्मद सलीम या सुलतान सलीम कहा हो। वह सदा शैखू बाबा कहा करते थे। मैं जब बादशाह हुआ तो मेरे मनमें आया कि अपना नाम बदल देना चाहिये क्योंकि उस नाममें रूमके बादशाहों के नामका धोखा होसकता था। बादशाहीका काम जहांगीरी अर्थात् जगत् जीतनेका है इस लिये जहांगीर नाम रखनको देवसे प्रेरणा मेरे हृदयमें हुई। मेरा राज्याभिषक सूर्य निकलतेही हुआ था जब कि पृथ्वी प्रकाशमयी होगई थी इस हेतु मैंने उप- नाम नरूद्दीन रखना चाहा और भारतके विद्वानोंचे सुना भी था कि जलालुद्दीनके पीछे नरुद्दीन बादशाह होगा इन बातोंसे मैंने नाम और उपनाम नूरुद्दीन जहांगीर बादशाह रखा। यह बड़ा काम पागरेमें हुआ उसका कुछ हाल लिखना जरूरी है।"

"आगरा हिन्दुस्थानके बड़े शहरोंमेंसे है। वह यमुनाके किनारे बसता है। यहां पुराना किला था। मेरे पिताने मेरे जन्म लेने से पहले उसको गिराकर तराशे हुए लाल पत्थरीका किला बनाया। वैसा किला पृथ्वी पर्यटन करनेवाले कहीं नहीं बताते हैं। यह १५-१६ वर्षों में तय्यार हुआ था। उसके चार दर- वाजे बड़े और दो छोटे हैं। ३५ लाख रुपये इस पर खर्च हुए थे। जो ईरानके १ लाख १५ हजार तूमान और तूरानको १ करोड़ ५ लाख खानीके बराबर थे।


अन्तर है क्योंकि मुसलमान लोग तारीख पंचांगसे नहीं मानते चन्द्रदर्शनसे मानते हैं।

जहांगीर अगहन बदी १ गुरुवारको तख्त पर बैठा था। "इस नगर को बस्ती जमुना के दोनो ओर है। पश्चिम को अधिक है। इसका घेरा ७ कोस का है। लम्बाई २ और चौड़ाई कोस है। जो बस्ती पूर्व को नदी के उधर है वह २॥ कोस को है लम्बी १ कोस और चौड़ी आध कोस। पर इतने मे इमारतें इतनी अधिक है कि उनसे ईरान, खुरासान और तुरनाके शहरों के समान कई शहर बस सकते हैं। बहुधा लोगों ने तीन तीन और चार चार खण्डकी मकान बनाये है और आदमियोंकी इतनी अधिक भीड़ रहती है कि गलियों और बाजारों मे मुशकिलाते हो सकते हैं।

"आगरा दूसरी "अकलीन"(१) के अन्त मे है इसके पूर्व में कन्नौज की विलायत पश्चिममें नागौर उत्तर में सन्मल दक्षिण चन्देरी हैं।"

"हिन्दुओं की किताबों में लिखा है कि यमुना का सोता क्लन्द नाम का एक पहाड़ है जहां ठंड अधिक होने के कारण मानव नहीं जा सकते हैं। और जहां यमुना प्रकट होती है वह एक पहाड़ परगने खिजराबादी पान है।"

"आगरेकी हवा गर्म और खुश्क है। हकीम कहते हैं कि वह जान्दारों को बुलाती और निर्वल करती है। वहुधा लोग उसे सह नहीं सकते। परन्तु जिनकी प्रज्ञति कफ और वायु की होती हैं वह इसके अवगुणसे बचे रहते हैं। यही कारण है कि जिन पशुओं को ऐसी प्रजाति है जैसे कि भैंस और हाथी आदि यह इल जलवायु में अच्छे रहते हैं।

"लोदी पठानों के राज्य से पहले आगरा बड़ा नगर था किला भी था "मसऊदसाद" सुलेखानने सुलतान महमूद गजनवीके पड़- पोते मसऊदसाके पोते इब्राहीम ने बेटे महमूद को प्रशंसा के कसौदे


(१) सुमलमान भूगोलवेत्तात्रोंने पृथ्वीं के ७ खण्ड ठहराकर हिन्दुस्थान को दूसरे तीसरे और चौथि खण्ड में माना है यह ७ खण्ड ८ लबी रेखाओं के भीतर जो पूर्व से पश्चिम के भूमि को नकशे मे दिखाई जाती है ठहराये गये हैं। (काव्य) में इस किले के जीतने का वर्णन किया है जिसमें लिखा है कि--

आगरे का किला गर्द में प्रकट हुआ,
जिसके ऊपर कंगूरे पहाड़ों के समान थे।

"सिकन्दर लोदी का विचार गवालियर लेने का था इस लिये वह हिन्दुस्थान को बादशाहों की राजधानी दिल्ली मे आगरे में आया और वहां रहा। उस दिन से आगरे मे बस्ती बढ़ने लगी और वह दिल्ली के बादशाहों का "पायलखत" हो गया ।"

"जब परमात्माने हिन्दुस्थान के बादशाही इस बड़े घराने को दी तो बाबर बादशाह ने सिकन्दर लोदी के बेटे इब्राहीम को मारने और राना सांगा को जो हिन्दुस्थान के राजों और जमींदारी में सबसे बड़ा था हराने के पीछे यमुना के पूर्व को एक भूमि पसन्द कर के एक बाग बनाया जिसके समान सुन्दर बाग दूसरी जगह कम ही होगे। उसका नाम गुलअफशां रखा। एक छोटीप्ती मसजिद भी उसके कोने में तराशे हुए लाल पत्थरी की बनवाई और भी बड़ी इमारत बनवाने के विचार में थे परन्तु आयु शेष होजाने से नहीं बनवा सके।"

"खरबूजे आम और दूसरे मेवे आगरे में खूब होते हैं सब मेवो से आम में मेरी रुचि अधिक है। विलायत के कितने ही मेवे जो हिन्दुस्थान मे नहीं होते थे स्वर्गवासी श्रीमान (अकबर) के समय मे होने लगे हैं। साहियो हबशी और किशमिशी जातिके अंगूर बड़े बड़े शहरों में होने लगे हैं। लाहोर के बाजारों से अंगूर के मौसम में जितनी जाति के चाहें मिल सकते हैं।

"एक मेवा अनवास नामक फरंगके टापुओं में होता है जो बहुत सुगन्धित और स्वादिष्ट होता है, वह गुलअफशां बाग से हर साल कई हजार उत्पन्न होता है।"

"हिन्दुस्थान के सुगन्धित फूलों को दुनिया भरके फूलों से उत्तम कहना चाहिये। कितने ही फूल ऐसे हैं जिनका किसी जगह पृथ्वी मे नामो निशान नहीं है। प्रथम चम्पा का फूल, बहुत कोमल और

[ ३ ]
 
सुगंधसम्पन्न केसर के फूल के आकार का है। पर चपा रंग पीला

सफेदी लिये हुए है उसका वृक्ष बहुत सुडौल बड़ा पत्तोंसे हरा भरा और छाया फैलानेवाला होता है। फूलों के दिनों में एक झाड़ ही सारी बाग को महका देता है। उससे उतर कर केवड़ेका फूल है। जो आकार और डौल में अनोखाही है। उसकी सुवास ऐसी तीव्र और तीक्षण है कि कस्तूरी के सुगन्ध से कुछ कम नहीं है।"

"फिर रायवेलका फूल खेत चमेली के जाति का है जिसके पत्ते दो तीन गुच्छों के होते हैं और एक फूल मौलसरीका है उसका झाड़ भी बहुत सुन्दर सुडौल और छायादार होता है। उसके फूल का सौरभ खूब हलका होता है।"

"एक फूल सेवतीका केवड़े की किस्म से है केवड़े में कांटे होते हैं सेवती में नहीं। उसका फूल पीलाई लिये होता है और केवड़ेका खेत--इन फूलों और चमेलो के फूलों से सुगन्धित तैल बनता है। और से फूल हैं जिनका वर्णन बहुत कुछ हो सकता है।"

"वृक्षों में सर्व सनूबर चिनार, सफेदार और बेदमूला जिनका हिन्दुस्थान में किसी ने खयाल भी नहीं किया था बहुत होने लगे हैं। चन्दन का वृक्ष जो टापुओं में होता था बागों में लगाया गया है।"

"आगर के रहनेवाले विद्याओं और कलाओं के सीखने में बहुत परिश्रम करते हैं विविध धर्म और पंथकी अनेक जातियों के लोग इस नगर में बसते हैं।"

न्याय की सांकल।

सिंहासनारूढ़ होते ही जहांगीर बादशाह ने पहला हुक्म न्याय की सांकल बांधने का दिया जो ४ मन(१) खरे सोने की बनाकर किले में शाहबुर्ज से लटकाई गई थी। उसका दूसरा सिरा कालिन्दी को कूल पर पत्थर को एक स्तम्भ पर रुपा था। यह सांकल ३० गज लम्बी थी। उसके बीच में ६० घण्टे लगे थे कि यदि किसी का


(१) ईरान का ३२ मन। न्याय अदालत में न हो तो बादशाह को सूचना करने के लिये उसको हिला दिया करे।

बादशाह के बारह हुक्म।

फिर बादशाह ने यह बारह हुक्म अपने तमाम मुल्कोंमें कानून के तौर पर काम में लाने के वास्ते भेजे थे।

१—जकात(१) तमगा(२) मीरबहरी(३)के कर तथा और कितने ही कष्टदायक कर जो हर एक सूबे और सरकार के जागीरदारों ने अपने लाभ के लिये लगा रखे हैं सब दूर किये जावें।

२—जिन रास्तों में चोरी लूट मार होती हो और जो बस्ती से कुछ दूर ही वहां के जागौरदार सराय और मसजिद बनावें, कुए खुदावें, जिससे सराय में लोगों के रहने से बस्ती हो जावे । यदि वह जगह बादशाही खालिस के पास हो तो वहां का कर्म्मचारी काम करावे । व्योपारियोंका माल रास्तों में बिना उनकी मरजी और आज्ञा के नहीं खोला जावे।

३—बादशाही मुल्कों में जो कोई हिन्दू या मुसलमान मर जावे तो उसका माल असबाब सब उसके वारिसों को देदेवें कोई उसमें से कुछ न ले और जो वारिस न हो तो उस माल को सम्हाल के वास्ते पृथक भाण्डारी और कर्म्मचारी नियत कर दें। वह धर्म्म के कामों अर्थात् मसजिदों सरायों कूओं और तालाबोंके बनाने तथा टूटे हुए पुलों के सुधारने में लगाया जावे । ४—शराब और दूसरी मादक चीजें न कोई बनावे न बेचे।


(१) महसूल सायर (२) सुहराना (३) नदियों और समुद्र का कर।

  • इस जगह बादशाह लिखता है कि मैं आप शराब पीता हूं

१८ वर्ष के अवस्था से अब तक ३८ साल का हुआ पंसदा होता रहा।पहले पहले तो जब कि अधिक तृष्णा उसके पीने की थी कभी कभी बीस बीस प्याले दुआतिशा के पीजाता था। जब होते होते उसने मुझे दबा लिया तो मैं कम करने लगा। ७ वर्षसे १५ प्यालों से ५-६ तक घटा लाया हूं। पीने के भी ५—किसी के घर को सरकारी न बनावें।

६—किसी पुरुष के नाक कान किसी अपराध में न काटे जावें और मैं भी परमेश्वर से प्रार्थना कर चुका है कि इस दण्ड से किसी को दूषित नहीं करूंगा।

७—खालिसे के और जागीरदारों के बेचारी प्रजाकी पृथ्वी अन्यायसे न लें और न आप उप्तको वोवें।

८—खालिसेके और जागीरदारों के कर्म्मचारी जिस परगनेमें हो वहां के लोगों में बिना आज्ञा सम्बन्ध न करें।

९—बड़े बड़े शहरों में औषधालय बनाकर रोगियों के लिये वैद्यों को नियत करें और जो खरच पड़े वह सरकारी खालिसे से दिया करें।

१०—रबीउलअव्वल महीने की १८ तारीखसे जो मेरे जन्मकी तिथि है मेरे पिता की प्रथाके अनुसार प्रतिवर्ष एक दिन गिनकर इन दिनों में जीव हिंसा न करें प्रत्येक सप्ताह में भी दो दिन हिंसा न ही, एक तो वृहस्पतिवार को जी मेरै राज्याभिषेक का दिन है और दूसरे रविवार को जो मेरे पिता का जन्मदिवस है। वह इस दिनको शुभ समझ कर बहुत माना करते थे क्योंकि उनके जन्मदिन होने के अतिरिक्त सूर्य्य भगवान का भी यही दिन है और यह जगत्को उत्पत्तिका पहला दिन है। सो बादशाही देशों में जीवहिंसा न होने के दिनों में से एक दिन यह भी था।

११—यह स्पष्ट आज्ञा है कि मेरे पिता के सेवकों के समसब और जागीरें ज्यों को त्यों बजी रहे। वरंच यथायोग्य हरे एक का पद बढ़ाया जावे(१)। और सब सुलकीके माफीदारीको माप्तियां


पहले काई समय थे। कभी कभी पिछले ३-३ घण्टे दिन से प्रारम्भ कर देता था और कभी दिन में ही पीने लगता था। ३० वर्षको अवस्था तक तो यही ढंग रहा फिर रात का समय स्थिर किया। अब तो केवल भोजन का स्वाद लेने के वास्ते पीता हूं।

(१) बादशाह लिखता है कि फिर मैंने यथायोग्य सबके मनसब wwwA जहांगीर बादशाह संवत १६६२ । बिलकुल उन पट्टोंके अनुसार जो उनके पास हो स्थिर रहें और मोरानसदरजहां (धर्माधिकारी) पालना करनेके योग्य लोगोंको नित्य प्रति मेरे सम्मुख लाया करें। १२-सब अपराधी जो वर्षों से किलों और काराग्टहोंमें कैद हैं छोड़ दिये जावें। सिका। फिर बादशाहने एक शुभमुहर्त में अपने नामको छाप सोने चांदी पर छपवाई और अनेक तौलके रुपये मोहरें और पैसे चलाये जिनके नाम पृथक पृथक रखे गये। यथा- सिक्का तौल नाम मोहर १०० तोला नूरसुलतानी ५० , नूरशाही नूरदौलत नूरकरम नूरमहर . -F नूरजहांनी रुपया आधा तोला नूरानो पाव तोला रिवाजी १०० तोला कोकवताला ५० , कोकवेइकबाल २० , कौकबेमुराद १० , कौकबेबखत बढ़ाये । १० के १२ से कम नहीं और अधिक १० के ३० और ४० (अर्थात् सवाये तिगुने और चौगुने) कर दिये। सब अहदियोंका खाना द्योढ़ा और कुल शागिर्दपेशोंका महीना, सवाया कर दिया। अपने पूज्य पिताको महलवालियोंका हाथखर्च उनकी. दशा और व्यवस्थाके अनुसार १० से १२ और १० से २० तक सवाया और दूना बढ़ा दिया। जहांगीरनामा। . . ५ , कोकवसफेद जहांगौरी सुलतानी ....... । निसारौ - , तोलेका १०वां भाग खैरकबूल इन सिक्कों पर बादशाहका नाम, मुसलमानो कलमा, सन् जुलूम और टकसालका स्थान छापा जाता था। नूरजहांनी मोहर सौ जगह चलता था और जहांगीरी रुपयको जगह । बादशाहको उदारता और न्यायनीति । ___ बादशाहने एक लाख रुपये खुसरोको देकर फरमाया कि जिलेके बाहर जो मुनइमखां खानखानांका मकान है उसको अपने वास्ते सुधरा लो। ___पंजाबको सूबेदारी सईदखां मुगलको दी पर उसके नाजिरीका अन्यायी होना सुनकर कहला दिया कि हमारी न्यायशीलता किसी ते अनाचारका सहन नहीं करती है जो उप्तके अनुचरोंसे किसी पर अन्याय हुआ तो अप्रसन्नताका दण्ड दिया जायगा। ___ फरीद बखशीको मौरबखशौके पदपर स्थिर रखा और सिरोपाव वे सिवा जड़ाऊ दवात कलम और जड़ाऊ तलवार भी उसको दी और उसका मन बढ़ानेको कहा कि मैं तुमको तलवार और कलम का धनी (सिपाही और मुंशो) जानता हूं। वजीरयों जो वजीर था और फतहंउन्नह जो बखशी था वह दोनो अब भी उन्हीं कामों पर रहें। . अबदुलरज्जाक मामूरी जो बिना कारणही बादशाहके पाससे उसके बापको सेवामें भाग आया था बादशाहने उसका अपराध । क्षमा करके बखशौके पद पर बना रेखा और खिलअत दिया। ___ अमीनुद्दौला जो जहांगीरका बखशी था और फिर बिना आज्ञा उनके पिताके पास आकर तोपखानेका अध्यक्ष होगया था। उसी काम पर बना रखा गया। इसी तरह जो लोग बाहर और भौतर बापकी सेवामें थे जहांगीरने उन सबको उन्हीं कामों पर से बहने दिया।

४ रज्जब अगहन सुदी ६ को शरोफखां जो बादशाहके भरोसे का आदमी था और जिसको तुमन और तोग मिला हुआ था विहारके सूबेसे आकर उपस्थित हुआ। बादशाहने प्रसन्न होकर उस को वकील और बड़े वजीरका उच्च पद अमौकलउमराकी पदवी और पांच हजार सवारका मनसब दिया। इसका बाप ख्वाजा अबदुस्ममद बहत अच्छा चित्रकार था और हुमायूं बादशाहको पाम प्रतिष्ठापूर्वक रहता था जिससे अकबर बादशाह भी उसका बहुत मान रखता था।

घंगालेको सूवेदारी राजा मानसिंहके पासही बनी रही। बादशाह लिखता है--"उसे इस बातका जरा गुमान न था कि मैं उसके साथ ऐसा उदार बरताव करूंगा। मैंने उसको चारकुब्बकका सिरोपाव जड़ाऊ तलवार खासा घोड़ा देकर उस देशको बिदा किया जो ५० हजार सवारोंके रहने की जगह है। उसका बाप अगवान दास(१) और दादा भारमल था। भारमल उन कछवाहे राजपूतों में पहला पुरुष था जो मेरे बापको सेवामें आकर रहे थे। सचाई राजभति और वीरतामें अपनी जाति वालोंसे बढ़कर था।

उदयपुर पर चढ़ाई।

जहांगीर लिखता है--

राज्यतिलकके पीछे सब अमीर अपनी अपनी सेना सहित दरबारमें उपस्थित थे। मैंने सोचा कि यह सेना अपने पुत्र परवेज के साथ देकर रानासे लड़ने भेजूं। वह हिन्दुस्थानके दुष्टों और कई काफिरोंमेंसे है। पिताके समय भी कई बार उसपर सेनाएं भेजी गई पर उसका पाप नहीं कटा। मैंने शुभमुहर्त्तमें पत्न परवेजको भारी खिलअत जड़ाऊ परतला जड़ाऊ पेटी मोतियोंकी माला जो कीमती रत्नोंकी बनी ७२ हजारको थौ अरबो एराकी घोड़े और


(१) भगवन्तदास। हाथी देकर बिदा किया। बीस हजारके लगभग हथियार- बन्द सज हुए सवार अच्छे सरदारों सहित लड़ाई में भेजे ।

आसिफखां दीवानको खिलअत जड़ाऊ कमरपेटी हाथी घोड़ा और शाहजादेको "अतालोकी" का काम मिला और सब छोटे बड़े अमीरोंको उसकी सलाह पर चलने का हुका दिया गया।

अबदुलरज्जाक मामूरी बखशी और मुखतारबेग शाहजादेका दीवान हुआ।

राजा भारमलके बेटे जगन्नाथको जो पांच हजारी था खिलअत और जड़ाऊ परतला मिला।

राजा सगर, राना(१)का चचा था और अकबर बादशाह उसको राना पदवी देकर खुसरोके साथ रानाके ऊपर भेजना चाहता था पर इसी बीच में मर गया। जहांगीरने उसे भी खिलअत और जड़ाऊ पट्टा देकर परवेजके साथ कर दिया।

राजा मानसिंहके भतीजे माधवसिंह(२) और सेखावत रायसाल दरबारीको इस हेतु कि वह दोनों उसके पिताका विश्वासपात्र और तीन हजारी मनसबदार थे झंडे दिये।

इनके सिवा शेरखां पठान, शेख अबुलफजलका बेटा शैख अब- दुर्रहमान, राजा मानसिंहका पोता महासिंह, वजीर जमील और कराखां जो दो दो हजार सवारोंके मनसबदार थे घोड़े और सिरोपाव पाकर शाहजादेके साथ बिदा हुए और राजा मनोहर भी गया।

बादशाह मनोहरके विषय में लिखता हे--"राजा मनोहर


(१) तुजुक जहांगीरीमें इसका नाम शंकर और रानाका चचेरा भाई लिखा है। पर यह राना अमरसिंहका चचा था क्योंकि

राना उदयसिंहना बेटा और प्रतापसिंहका भाई था।

(२) माधवसिंह मानसिंहका भाई था भतीजा न जाने कैसे

तुजुकमें लिखा है। शेखावत जातिके कछवाहोमिस है। मेरे बाप बचपन में उससे बहुत मोह रखते थे। यह फारसी बोलता था। उससे लेकर आदम तक उस घरानिके किसी आदमी में भी समझका होना नहीं कहा जा सकता है। परन्तु वह समझसे शून्य नहीं है और फारसीकी कविता भी करता है।"

यह लिखकर बादशाहने उसकी बनाई एक बैत भी लिखी है जिसका अर्थ यह है--छायाकी उत्पत्तिसे यही प्रयोजन है कि कोई सूर्य भगवानके प्रकाश पर अपना पांव न धरे।

इस लड़ाई में बहुतसे अमीरों, खानीक बेटी और राजपूतोंने अपनी इच्छासे जानेको प्रार्थना की थी। एक हजार अहदियों (इक्कों) को नौकरी भी उक्त लड़ाई के लिये बोली गई थी।

बादशाह लिखता है--"सारांश यह है कि यह ऐसी फौज तय्यार हुई है कि काम पड़े तो बड़े बड़े शक्तिमान श्रीमानोंमेंसे हरेकका सामना करे।

दान पुण्य और प्रदवृद्धि ।

बादशाहने २० हजार रुपये दिल्लीके गरीबों के लिये भेजे।

सब बादशाही राज्यकी विजारत [माल] का काम आधा आधा वजीरुलमुल्क और वजीरखांको बांट दिया।

शेख फरीद बखशीको चार हजारीसे पंज हजारी किया।

रामदास कछवाहेका मनसब दो हजारीसे तीन हजारी कर दिया वह अकबर के कृपापात्र सेवकोंमेंसे था ।

कन्दहारके हाकिम मिरजा रुस्तम, अबदुर्रहीम खानखाना, उत्तके बेटों परच, दाराब और दक्षिणमें रखे हुए दूसरे अमीरों के वास्ते सिरोपाव भेजे गये।

बाज बहादुरको चार हजारी मनसब बीस हजार रुपये और उड़ीमेको सूवेदारी मिली। उमका बाप निजाम, हुमायूं बादशाह को किताबें रखा करता था। सदरजहांका मनसब दो हजारीसे चार हजारी कर दिया। वह बादशाहके साथ पढ़ा था और उसके बापकी बीमारी में जब सब अमीर पलट गये थे तब भी वह नहीं पलटा था।

केशवदास मारूका मनसब बढ़कर डेढ़ हजारी होगया। यह मेढ़तिया राठोड़ोंमेंसे था और खामिभक्ति में अपने बराबरवालोंसे बढ़ गया था।

गयासवेगको जो कई वर्षोंतक ब्यूतात [कारखानों] का दीवान या सात सदीसे डेढ़ हजारी करके वजीरखांकी जगह आधे राज्यका वजीर किया और एतमादुद्दीलाका खिताब दिया। वजीरखांको सूवे बंगालका दीवान करके जमाबन्दी तय्यार करनेके लिये भेजा।

कुलीचखांको एक लाख रुपये और गुजरातका सूबा इनायत हुआ।

पितरदासको जिसे अकबर बादशाहने रायरायांकी पदवी दी थी। इस बादशाहने राजा विक्रमादित्यकी उपाधि देकर मीर- आतिश अर्थात् तोपखानेका अध्यक्ष बनाया और हुक्म दिया कि हमेशा अरदलीके तोपखाने में ५० हजार तोपची और ३ हजार तोपें तैयार रखे। वह खत्री था अकबर बादशाहने उसे हाथी- खानेको मुशरफी अर्थात् कामदारीसे बढ़ाकर अमौरीके पद तक पहुँचाया था सिपाही भी था और प्रवन्धकर्ता भी।

खान आजमके बेटे बैरमका मनसब दो हजारीसे अढाई हजारी होगया।

लाल छाप ।

बादशाहको यह इच्छा थी कि अपने और अपने पिताके सेवकों के परममनोरथ पूरे करे । इससे आज्ञादी कि उनमसे जो कोई अपनी जन्मभूमिको जागीर में चाहता हो वह प्रार्थना करें। उसे चंगेज खानी तौर और कानूनके अनुसार लाल छापका पट्टा कर दिया जावेगा जिससे फिर कुछ हेरफेर न हो।

बादशाह लिखता है कि हमारे बाप दादे जिस किसीको शासन देते थे। उसके पट्टे पर लाल छाप कर देते थे। यह लाल छाप शिगरफसे लगाई जाती थी। मैने हुक्म दिया कि छाप लगानेको जगह पट्टे पर सोना चढ़ा दिया करें। अब इस छापका नाम "आलतमगा" रख दिया है। (१) ।

अमीरोंके इजाफे ।

बदखशांक मिरजासुलेमानके पोते और शाहरुखके बेटे मिरजा सुलतानको बादशाहने बेटोंकी भांति पाला था। उसे एक हजारी मनसब दिया।

भावसिंहका सनसब बढ़कर डेढ़ हजारी होगया। यह राजा मानसिंहको सन्तानमें बहुत योग्य था।

गयूरबेग काबुलीके बेटे जमानावेगको डेढ़ हजारी मनसब, महाबतखांका खिताब और शागिर्दपेशेके बखशीका पद मिला (२) यह पहले अहदी था फिर पानसदी हुआ था।

राजा बरसिंह देव ।

राजा बरसिंहदेव (३) बुन्देलेको तीन हजारी मनसब मिला। बादशाह लिखता है कि यह बुन्देला राजपूत मेरा बढ़ाया हुआ है। बहादुरी भलमनसी और भोलेपनमें अपने बराबरवालोंसे बढ़कर है। इसके बढ़नेका यह कारण हुआ कि मेरे पिताक पिछले समय में शैख अबुलफजलने जो हिन्दुस्थानके शेखों में बहुत पढ़ा हुआ और बुद्धिमान था स्वामिभक्ता बनकर बड़ेभागे सोल में अपनेको


(१) जहांगीर बादशाहके कई फरमान इस लाल छापके हमारे

देखने में आये आये हैं।

(२) कर्नल टाडने भूलसे इसको रजपूत लिख दिया है यह

मुगल था।

(३) फारसी तवारीखमें नरसिंहदेव भूलते लिखा है यह भूल

एक नुकतेको है क्योंकि 'बे' और 'नून' को शक्लमें एक नुकतेका फर्क है नीचे नुकता लग जावे तो 'ब' और ऊपर लगे तो 'नून' होजावे । फारसी लिपिमें नुकतोंके हेर फेरसे अर्थका अनर्थ होजाता है। इसके कई दृष्टान्त मैं स्वप्न-राजस्थान ग्रन्थ में लिम्ब चुका है। मेरे बापके हाथ बेच दिया था। उन्होंने उसको दक्षिणसे बुलाया। वह मुझसे लाग रखता था और हमेशा ढके कुपे बहुतसी बातें बनाया करता था। उस समय मेरे पिता फसादी लोगोंसे मेरी चुगलियां सुनकर मुझसे नाराज थे। मैं जान गया था कि शेखके आनेसे यह नाराजी और बढ़ जावेगी जिससे मैं हमेशाके लिये अपने बापसे बिमुख होजाऊंगा। इस बरसिंहदेवका राज्य और के मार्ग में पड़ता था और यह उन दिनों बागी भी होरहा था। इसलिये मैंने इसको कहला भजा कि यदि तुम उस फसादौको राहमें मार डालो तो मैं तुम्हारा बहुत कुछ उपकार करूंगा। राजाने यह बात मानली। शैख जब उसके देशसे होकर निकला तो इसने मार्ग रोक लिया और थोडीसी लड़ाई में उसके साथियोंको तितर बितर करके शेखको मारा और उसका सिर इलाहाबादमें मेरे पास भेज दिया। इस बातसे मेरे पिता ना राज तो हुए परन्तु परिणाम यह हुआ कि मैं बेखटके उनके चरणों में चला गया और वह नाराजी धीरे धीरे दूर हो गई।

३० घोडोंका दान।

बादशाहने तवेलेके कर्मचारियोंको हुक्म दिया कि नित्य ३० घोड़े दानके लिये लाया करें।

मिरजाअली अकबरशाहीको चार हजारी मनसब और संभल की सरकार जागीरमें मिली।

अमीरुलउमराको एक उत्तम बात।

बादशाह लिखता हैं-- "एक दिन किसी प्रसङ्ग से अमोल्लउमरा ने एक बात अर्ज की जो मुझे बहुत पसन्द आई। उसने कहा कि ईमानदारी और बेईमानी कुछ धन मालहीमें नहीं देखी जाती है, वरन यह भी बेईमानी है कि जो गुण अपनों में न हो वह दिखाया जावे और जो गुण दूसरों में हो वह छिपाया जावे। वेशक यह बात सही है। पास रहनेवालोंको चाहिये कि अपने और पराये का राग द्वेष छोड़कर हरदा मनुष्यको जैसी व्यवस्था हो वैसी अर्ज करते रहें।"

तूरान जीतनेका विचार।

"मैंने परवेजले जाते समय कह दिया था कि जो राणा अपने पाटवीपुत्र कर्ण समेत हाजिर होजावे और अनुचर्य्या स्वीकार करे तो उसके देशको मत बिगाड़ना। इस सिफारिशके दो प्रयोजन थे एक तो यह कि तूरानकी विलायत जीतनेका विचार मेरे पिताके मनमें रहा करता था। परन्तु जब कभी उन्होंने यह इरादा किया तभी कोई न कोई विघ्न पड़ गया। अब यदि राणाको लड़ाई एक तरफ होजाय और यह खटका जोसे निकल जाय तो मैं परवेजको हिन्दुस्थानमें छोड़कर अपने बाप दादोंके देशको चला जाऊं। वहां अभी कोई जमा हुआ हाकिम नहीं है। बाकीखां भी जो अब- दुल्लाखां और उसके बेटे अबदुलमोमिनखांके पीछे जोर पकड़ गया था मर चुका है। उसके भाई वलीमुहम्मदका जो इस समय उस देशका अधिपति है राज्य नहीं जमा है।"

"दूसरे दक्षिण जीतनेको तय्यारी करना जिसका कुछ भाग मेरे पिताके समयमें लिया गया था अब मैं उस देशको एक बार अपने राज्य में मिलाया चाहता हूं परमेश्वर मेरे यह दोनो मनोरथ पूरे करे।"

मिरजा शाहरुख।

बदखशांके हाकिम मिरजा सुलेमानके पोते मिरजा शाहरुख, को अकबरने पांच हजारौ मनसब और मालवेका सूबा दिया था जहांगीरने सात हजारी करके उसे उसी सूर्वमें स्थिर रखा। अकबर भी इस मिरजाका बहुत मोन रखता था। जब अपने बेटोंको बैठने का हुक्म देता तो इसको भी बिठाता।

ख्वाजा अबदुल्लंह नकशबन्दीका कसूर माफ होकर जागीर और मनसब बहाल रहा। यह बादशाहको छोड़कर उसके बापके पास चला आया था।

[ ४ ]
 
अबुलनबी उजबकका सनसब अढाई हजारी होगया। यह तूरान

का रहनेवाला था और अबदुलमोमिनखांके राज्यमें मशहदका हाकिम था।

सुलतान दानियालके बेटोंका बुलाना।

बादशाहने अपने विश्वासी सेवक शैख हुसैनको जो बड़ा शिकारी और जर्राह भी था अपने आई सुलतान दानियालके बाल- बच्चोंको लानेके लिये बुरहानपुर भेजा था। खानखानांको भी कुछ ऊंची नोचौ बातें कहलाई थौं वह उसका और वहां भेजे हुए दूसरे अमीरोंका समाधान करके सुलतान दानियालके घरवालों को लाहौर में बादशाहो पास ले आया।

नकीबखां इतिहासवेत्ता।

नकीबखांका पद बादशाहने बढ़ाकर डेढ़ हजारी कर दिया। यह बड़ा इतिहासवेत्ता था। बादशाह लिखता है-"सृष्टिकी उत्पत्तिसे आजतक सारी दुनियाका हाल इसको जबान पर है। ऐसी धारणाशक्ति परमेश्वर बिरलेही मनुष्यको देता है। मेरे पिता ने बादशाह होनेसे पहले इससे कुछ पढ़ा था इस लिये इसको उस्ताद कहते थे। यह इतिहास और परम्पराको ठीक ठीक जानने में अद्वितीय है।

अखयराज कछवाहके बेटे ।

२७ शाबान (माघ वदी १४) को राजा मानसिंहके काका भग- वानदासके पुत्र अखयराजके बेटों अभयराम, विजयराम और श्याम रामने विलक्षण उपद्रव किया! अभयरामले अपराधोंसे बादशाह कई बार आनाकानी कर गये थे। उस दिन अर्ज हुई कि वह अपने कबीलोंको देशमें भेजते हैं पोळसे आप भी भागकर रानाके पास जाना चाहते हैं। बादशाहने रामदास और दूसरे राजपूत सरदारोंसे कहा कि कोई इनका जामिन हो जावे तो इनके मनसब और जागीरें बहाल रखकर इनके पिछले कसूर माफ कर दिये जावें। पर दुर्भाग्यसे कोई उनका जामिन न हुआ। तब बाद शाहने अमीरुलडमरासे कहा कि जबतक इनकी जामिनी न हो तबतक वह किसीके हवाले कर दिये जावें। अमीरुलउमराने उन को इब्राहीमखां काकड़ और शाहनवाजखांको सौंप दिया। उन्होंने इनके हथियार लेना चाहा तो यह लड़नेको तय्यार हुए। अमी- रुल उमराने यह बात बादशाहसे कही। बादशाहने दण्ड देनेका हुक्म दिया। जब अमौललउमरा गया तो पीछेसे बादशाहने शैख फरीदको मी भेजा।

दो राजपूतोंने अमीरुलउमराका सामना किया। एकके पास तो तलवार थी और दूसरेके पास जमधर । जमघरवालेसे अमी- लउमराका एक नौकर जिसका नाम कुतुब था लड़ा और मारा गया। इधर यह जमधरवाला मी काम आया और तलवारवाले को अमीरलउमराके एक पठानने मार डाला। फिर दिलावर अभयरामके ऊपर गया जो दो राजपूतोंसे संजा खड़ा था और उन की तलवारोंसे घायल होकर वहीं खेत रहा। पीछे कुछ अहदियों और अमोल्लउमराके नौकरीने मिलकर उनको मार डाला। एक राजपूत तलवार निकालकर शैख फरीदके ऊपर दौड़ा। पर शैख के एक हबशी गुलामने उसको भी ठिकाने लगाया।

यह मारामारी आमखास दौलतखाने में हुई और इस दण्ड से बहुतसे बण्ड डर गये। अबुलनंबो उजबकने बादशाहसे निवेदन किया कि जो ऐसा अपराध उजबकोंमें होता तो अपराधियोंका सपरिवार संहार कर देता।

बादशाहने फरमाया कि यह लोग मेरे बीपक बढ़ाये हुए हैं मैं भी वही बरताव बरतता हूं। और फिर यह न्यायकी बात भी नहीं है कि एक मनुष्य के अपराधमें बहुतसे लोगोंको दण्ड दिया जावे।

मनसबोंका बढ़ाना।

बादशाहने ताजखां और पखताबेग काबुलीका मनसब बढ़ाकर ३ हजारी और डेढ़ हजारी कर दिया। पिछला उनके चचा मिरजा मुहम्मद हकीमके पास रहा करता था।

अबुलकासिम तमकीनका भी जो अकबर बादशाहका पुराना नौकर था डेढ़ हजारी मनसब होगया। बादशाह लिखता है कि--"ऐसा बहुपुत्नी कोईही होगा। उसके ३० लड़के हैं और लड़कियां इतनीही नहीं तो इससे आधीसे तो कम नहीं।"

पुत्र पदवी।

बादशाहने शैख सलीम चिश्तीके पोते शैख अलाउद्दीनकी बेटे की पदवी प्रदान की। यह बादशाहसे एक वर्ष छोटा था। बहुत साधु और साहसी था।

अली असगर बारहको सैफखांका खिताब और तीन हजारी, फरेदूंबरलासको दो हजारी और शैख बायजीदको तीन हजारी मनसब दिया। सैख वायजीद भी शैख सलीम चिशतीका पोता या। उसकी माने सबसे पहले बादशाहको दूध पिलाया था।

पण्डितोंसे शास्त्रार्थ।

बादशाह लिखता है--"एक दिन मैंने पण्डितोंसे कहा कि यदि ईश्वरका १० भिन्न भिन्न शरीरी में अवतार लेना तुम्हारे धर्मका परस सिद्धान्त है तो यह बुद्धिमानोंको प्रमाण नहीं। इस कल्पना से यह मानना पड़ेगा कि ईश्वर जो सब उपाधियोंसे न्यारा है लम्बाई चौड़ाई और गहराई भी रखता है। यदि यह अभिप्राय है कि उसमें ईखरका अंश था तो ईश्वरका अंश सब प्राणियों में होता है उनमें होनेको कोई विशेषता नहीं है। और जो ईश्वरके गुणोमेंसे किसी गुणके सिद्ध करनेका प्रयोजन है तो इसमें कोई मुख्य बात नहीं किस वास्ते कि प्रत्येक धर्म और पन्थमें सिद्ध पुरुष होते रहे हैं जो अपने समयके दूसरे मनुष्योंसे समझमें बढ़ चढ़ कर थे।"

"बहुतसे वाद विवादके बाद वह लोग उस परमेश्वरको मान गये जो रूप और रेखासे विभिन्न है। कहने लगे कि हमारी बुद्धि उस परमात्मा तक पहुंचने में असमर्थ है और बिना किसी आधारके उसको पहचानने का मार्ग नहीं पासकते इस लिये हमने इन अव तारोंको अपने वहां तक पहुंचनेका साधन बना रखा है।"

"मैंने कहा कि यह मूर्तियां कबतक तुम्हारे वास्ते परमात्मा तक पहुंचनेका हार होसकती हैं।"

बादशाहके घरका हाल।

इसके आगे बादशाहने अपने बाप माइयों और बहनोंका कुछ घरू वृत्तान्त लिखा है जो विलक्षण और सुहावना होनेसे यहां भी लिखा जाता है।

बादशाह लिखता है--"मेरे पिता प्रत्येक धर्म्म और पन्थके विद्वानों और विशेषकर हिन्दुस्थानके पण्डितोंका बहुधा सत्सङ्ग करते थे। वह पढ़े नहीं थे तो भी पण्डितों और विद्वानोंके पास बैठनेमे उनकी बातों में अविहत्ता नहीं दरसने पाती थी। गद्य और पद्यके गूढार्थों को ऐसे पहुंच जाते थे कि उससे बढ़कर पहुंचना सम्भव न था।"

"कद कुछ लम्बा था, वर्ण गेहुंवा, आंख भौं काली, छवि अच्छी, सिंहका सा शरीर, छाती चौड़ी, हाथ और बाई दीर्घ, नाकके बायें नथने पर सुन्दर तिल, आधे चनेके बराबर, जो सामुद्रिक जानने वालोंके मनमें धन और ऐश्वर्य्यकी वृद्धिका हेतु है, बोली गम्भीर बातें सलोनी, खरूप और छवि इस लोकके लोगोंसे भिन्न थी, देव-मूर्ति थे।"

बहन भाई।

"मेरे जन्मसे तीन महीने पीछे मेरी बहन शाहजादा खाजम एक सहेलीसे पैदा हुई। पिताने उसे अपनी माताको सौंप दिया। उसके पीछे एक लड़का दूसरी सहेलीसे फतहपुरके पहाड़ोंमें हुआ। उसका नाम तो शाह मुराद था परन्तु पिता पहाड़ी कहते थे। जब उसको दक्षिण जीतनेके वास्ते भेजा तो वह कुसङ्गतमें पड़कर इतनी अधिक शराब पीने लगा कि ३० वर्षको अवस्थामें जालनापुर के पास मर गया जो बरार देशमें है। उसका वर्ण, सांवला था बदन छरेरा कद लम्वा चालढालसे धीरता वीरता और गम्भीरता पाई जाती थी।"

"तारीख १० जमादिउलअब्बल सन् ९७९(१) वुधकी रातको फिर एक लड़का एक सहेलीसे अजमेर में दानियाल सुजावरके घर पक्ष हुआ। पिताने उसका दानियाल नाम रखा और शाह मुराद के मरने पर दक्षिणको भेजा। पीछे आप भी गये। जिन दिनों में आपने आसेरगढ़को घेरा था दानियाल खानखानां और मिरजा युसूफ आदि सरदारों सहित अहमदनगरके किलेको घेरे हुए था। जब आसेरगढ़ फतह होगया, पिता दानियालको वहां छोड़कर आगरे में आगये फिर वह भी अपने भाई शाह मुरादका अनुगामी होकर अधिक शराब पीनेसे ३३ वर्षको अवस्थामें मर गया। उसकी मृत्यु बुरी तरह हुई। उसको बन्दूक और बन्दूकको शिकारसे बहुत रुचि थी। अपनी बंदूकका नाम 'इक्का' और 'जनाजा' बखा था। जब शराब बहुत बढ़ गई और खानखानांने मेरे पिता को ताकीदसे पहरे बिठाकर शराबका आना बन्द कर दिया तो दानियालने अपने सेवकोंसे बहुत नम्रतासे कहा कि जैसे बन पड़े मेरे वास्ते शराब लाओ। और निज सेवक सुरशिदकुलीसे कहा कि इसौ बंदूक इक्का और जनाजामें भर ला। वह दुष्ट इनामके लोभसे दोआतिशा शराब उस बंदूकमें भरकर लेअाया। उसकी तेजीसे बारूत और लोहा कटकर उसमें मिल गया फिर उसका पीना और मरना साथ साथ था।"

"दानियाल बहुत सजीला जवान था। उसे हाथी घोड़ोंका बहुत शौक था। यह असम्भव था कि किसीके पास अच्छा हाथी


(१) अकबरनामेमें बुध, २ जमादिउलअव्वल ९८० है और यही सही है बुध भी इसी तारीखको था। १० जमादिउलअव्वल और तिथि आसोज सुदी ३ सम्वत् १६२९ थी १० जमादिउलअब्बल ९७९ को बुध नहीं रविवार था। या घोड़ा सुने और मंगा न ले। हिन्दुस्थानी रागोंका बड़ा रसिक या। हिन्दुओंके ढङ्ग पर हिन्दी में यदि कुछ कविता करता तो बुरी न होती थी।

"दानियालके जन्मके पीछे फिर एक लड़की बीबी दौलतशाहसे पैदा हुई। पिताने उसका नाम शकरुन्निसा बेगम रखा। वह उनके पासही पली थी इससे बहुत अच्छी निकली। भलमनसी और सब पर दया रखना उसका खाभाविक गुण है। बचपनसे अबतक मेरे स्नेहमें डूबी हुई है ऐसी प्रीति बहन भाइयों में बहुत कम होती होगी। बाल्यावस्थामें पहली बार जैसी कि मर्यादा हैं बालकोंको छाती दवानेसे दूधको बून्द निकलती है। जब मेरी इस बहनको छाती भी दवाई गई और उससे दूध निकला तो मेरे पिता ने मुझसे कहा कि बाबा इसको पो जा जिससे तेरी बहन तेरी मा को जगह भी हो जावे । ईश्वर जानता है कि जिस दिनसे मैंने उस दूधकी बून्दको पिया उसी दिनसे बहनपनेके सम्बन्धके साथ अपने में वह प्रीति भी पाता है जो लड़कोंको मासे होती है।"

"कुछ दिनों पीछे एक और लड़की उसी बीबी दौलतशाहसे पैदा हुई। पिताने उसका नाम आरामबानू बेगम रखा। उसका मिजाज कुछ गम और तेज है। पिता उसको बहुत प्यार करते थे। उसको बहुतसी बेअदबियोंको सहते थे जो अति मोह होनेके कारण बुरी नहीं लगती थीं और मुझे सावधान करके कईबार कह चुके थे कि बाबा मेरी खातिरसे अपनी इस बहनके साथ जो हिन्दुओंकी बोलीके अनुसार मेरी लाड़ली है मेरे पीछे ऐसाही बरताव बरतना जैसा कि मैं उससे बरतता है। इसका लाड़ करना और इसको वेअदबियोंसे बुरा न मानना।"

"मेरे पितामें जो उत्तम गुण थे वह कहने में नहीं आते। इतने बड़े राज्य असंख्य कोष और हाथी घोड़ोंके स्वामी होकर परमेश्वर से डरतही रहते थे और अपनेको उसको सृष्टिका एक तुच्छ जीव मानते थे।" "उनके विशाल राज्यमें जिसकी प्रत्येक सीमा समुद्रसे जामिली थी अनेक धर्म और पंथके लोग अपने अपने भिन्न भिन्न मतोंको लिये हुए सुखसे निर्भय बसते थे किसीको किसीसे कुछ बाधा न थी। जैसी कि दूसरी विलातयों में है कि शीया मुसलमानोंको ईरान और सुन्नियोंको रूम, हिन्दुस्थान और तूरानके सिवा जगह नहीं है। और यहां सुन्नी शीया एक मसजिदमें फरंगी और यहूदी एक गिरजामें नमाज पढ़ते थे।"

"सुलहकुल अर्थात् सबके साथ निबाहने वाले पंथ पर चलते थे हरेक दीन और धर्म्मके श्रेष्ठ पुरुषों से मिलते थे और जैसी जिस को समझ होती थी उसीके अनुसार उसका आदर सत्कार करते थे। उनकी रातें जागरनमें कटती थीं दिन और रातमें बहुतही कम सोते थे रात दिनका सोना एक पहरसे अधिक न था। रातोंके जागनेको गई हुई आयुका एक प्रतिकार समझते थे।"

"बीरताका यह हाल था कि मस्त और छुटे हुए हाथियों पर चढ़ जाते थे। खूनी हाथी जो अपनी हथनियोंको भी पास न आने देते थे यहांतक कि महावतों और हथनियों को मारकर निकल खड़े होते थे, उन पर राहकी किसी दीवार या पड़के ऊपरसे चढ़ जाते थे और उन्हें अपने वशमें कर लेते थे। यह बात कइबार देखी गई है।"

"१४ वर्षको अवस्थामें राज्यसिंहासन पर विराजमान हुए थे हेमू "काफिर" जिप्सने पठानोंको गद्दी पर बिठाया था हुमायूँ बाद- शाहका देहान्त होने पर एक अपूर्व सेना और बहुतसे ऐसे हाथी सजाकर जैसे उस समय हिन्दुस्थानके किसी हाकिमके पास न थे दिल्ली पर चढ़ आया। आप उस समय पञ्जाबके पहाड़ोंकी तलहटीमें पठानोंको घेरे हुए थे। वहां यह समाचार पहुंचा तो बैरम- खांने जो आपका शिक्षक था साथके सब सेनानियों को बुलाकर आप को परगने कलानूर जिले लाहौरमें तखत पर-बिठाया। तरुद्दीखां आदि मुगल जो दिल्ली में थे हेमूमे लड़े और हारकर आपके पास आये। बैरमखांने तसहीवेगको माग आनके अपराधमें मारडाला।

"हेमूं इस जीतमे घमण्ड में आकर कलानूरकी ओर बढ़ा। पानीपतके मैदान में २ मोहर्रम गुरुवार सन् ८६४(१) को तम और तेजके पुञ्ज परस्पर भिड़े। हेमूकी सेनामें ३० हजार जङ्गी सवार थे और पिताजीके पास चार पांच हजारसे अधिक न थे। हेमू हवाई नामक हाथी पर चढ़ा हुआ था कि अकस्मात उसकी आंख मे तीर लगकर सिरमेंसे निकल गया। यह दशा देखकर उसकी फौज भाग निकली। दैवयोगसे शाहकुलोखां महरम हाथोके पास पहुंचकर महावत पर तीर मारता था। वह चिल्ला उठा मुझे मत मारो हेमू इसी हाथी पर है। फिर तो लोग दौड़ पड़े और उसको उसी दशा में पिताजीके पास लाये। बैरमखांने प्रार्थना को कि हजरत इस काफिरको मारकर गिजा (धर्मयुद्ध) के पुण्यको प्राप्त हो और आज्ञापत्रों में गाजी लिखे जावें।"

"आपने फरमाया कि मैं तो इसको पहलेही टुकड़े टुकड़े कर चुका। काबुलमें जबकि मैं खाजा अबदुस्समद शौरीकलमसे चित्र- कारीका अभ्यास करता था तो एक दिन मेरी लेखनीसे एक ऐसी तसवीर निकली कि जिसके अंगप्रत्यंग भिन्नभिन्न थे। एक पास रहने वालेने पूछा कि यह किसकी मूर्ति है तो मेरे मुंहसे निकला कि हेमूकी है।"

"निदान अपने हाथको उसके लोहसे न भरकर एक सेवकको उसके मारनेका हुक्म देदिया। उसके सिपाहियोंकी ५००० लाशें तो गिनी गई थीं उनके सिवा और भी इधर उधर पड़ी थीं।"

उनके दूसरे बड़े कामोंमसे गुजरातकी फतह और दौड़ है। जब इब्राहीमहुसैन मिरजा, मुहम्मदहुसैन मिरजा और शाह मिरजा, बागी होकर गुजरातको गये और वहांके सब अमीरों (२) और दुराचारियोंसे मिलकर अहमदाबादके किले को घेरलिया जिस


(१) अगहन सुदी ३ सम्बत् १६१३।
(२) यह अमीर गुजरातके अगले बादशाह मुजफ्फरके नौकर थे। में मिरजा अजीजकोका और बादशाही लशकर था। आप

मिरजा अजीज कोकाकी मा जीजी अंगाके घबरा जानेसे तुरन्त निजसेना सहित फतहपुरसे गुजरातको रवाने होगये और दो महीने के रस्तेको कभी घोड़े कभी ऊंट और कभी घुड़वहलकी सवारीपर ९ दिनमें काटकर ५ जमादिउल अव्वलको दुश्मनको पास जापहुंचे। शुभचिन्तकोंसे सलाह पूछने लगे तो कुछ लोगोंने रात्रिमें छापे मारनेको सलाह दी। आपने फरमाया कि छापा मारना कायर और धूतोंका काम है। उसी क्षण नरसिंह बजाने और सिंहनाद करनेका हुक्म देकर साबरमती पर आये और लोगों को प्रवन्धपूर्वक नदीसे उतरनेकी आज्ञा की।"

"मुहम्मदहुसैनमिरजा कोलाहल सुनकर घबराया और स्वयं भेद लेनेको आया । इधरसे सुबहानकुली तुर्क भी इसी तलाशमें नदी पर आया था मिरजाने उसको देखकर पूछा कि यह किसकी फौज है। तुर्कने कहा कि जलालुद्दीन अकबर बादशाह हैं और उन्हीं की फौज है। मुहम्मदहुसैनमिरजाने कहा कि मेरे जासूस १४ दिन पहले बादशाहको फतहपुरमें देख आये हैं तू झूठ कहता है। सुबहानकुलीने कहा आज नवां दिन है कि हजरत फतहपुरसे धावा करके आये है। मिरजा बोला कि भला हाथी कैसे पहुँचे होंगे ? सुबहानकुलीने जवाब दिया कि हाथियोंकी क्या आवश्य- कता थी हाथियोंसे बढ़चढ़ कर पहाड़ीको तोड़ देने वाले ऐसे ऐसें शूरवीर आये हैं कि तुमको तरकशी करनेको हकीकत मालूम हो जायेगी।"

"मिरजा दूर जाकर अपनी सेनाको सजाने लगा और बादशाह शत्रुओंके हथियार बांधनेको खबर आने तक वहीं ठहरे रहे। जब किरावलोंने यह खबर पहुँचाई कि अब गनीम हथियार पहिन रहा है तो आप आगे बढ़ें और खान आजमके बुलानेको आदमी भेजे। परन्तु उसने आने में विचार करके कहलाया कि शत्रु प्रवल है जबतक गुजरातका लशकर किलेसे बाहर न आजावे नदीके पारही रहना चाहिये। आपने फरमाया कि हमको हमेशा और खास करके इस सफर में ईश्वरकी सहायताका भरोसा है जाहरी बातों पर नजर होती तो इस प्रकार छड़ी सवारीसे धावा करके नहीं आते। अब शत्रु लड़नेको तय्यार है तो हमको देर करना उचित नहीं। यह कहकर ईश्वर पर भरोसा करके अपने कई सेवकों सहित नदीमें घोड़ा डाला। नदी छिलछिली न थी तोभी कुशलपूर्वक पार होगये। फिर अपना दो बुलगा(१) मांगा तो कोरदार(२)ने धबराहटमें लाते हुए आगे डाल दिया। शुभचि- न्तकोंने इसको अपशकुन समझा। आपने कहा कि हमारा शकुन तो बहुत अच्छा हुआ है क्योंकि हमारे आगेका रस्ता खुल गया। इतने में मिरजा सेना सजाकर अपने खामीसे सामना करनेको आया।"

"खानाजमको इस बातका शान गुमान भी न था कि हजरत इतनी फुरतीसे यहां पधार जावेंगे। जब कोई उसे हजरतके आने का समाचार कहता था वह स्वीकार न करता था । निदान जब उसको अनुमानों और प्रमाणोंसे आपके पधारनेका निश्चय होगया तो गुजरातके लशकरको सजाकर किलेसे बाहर निकलनेको तय्यार हुआ। आसिफखांने भी उसको यह खबर भेजी परन्तु उसके किलेसे निकलने के पहलेही शत्रुका दल वृक्षोंमेसे निकल आया और आप उस पर चले। मुहम्मद कुलीखां तोकताई और तरदीखां दीवाना कुछ शूरवौरीसे आगे बढ़ तो गये थे पर थोड़ी दूर जाकर पीछे फिरे । तब आपने राजा भगवानदाससे फरमाया कि दुश्मन बहुत हैं और हमारे आदमी थोड़े हैं, हम सबको एक दिल होकर हमला करना चाहिये क्योंकि बंधी हुई मुट्ठी खुले हुए पंजेसे जियादा क रगार होती है। यह कहकर तलवार खेंची और साथियों सहित अल्लाहोअकबर और या मुईन कहते हुए दौड़े। दहनी


(१) दोबलगेका अर्थ कोषों में नहीं मिला यह कोई ऐसे हथि-

यार अथवा बकतर वगैरहका नाम है जो गिरनेसे खुल जाता हो।

(२) हथियार रखनेवाला। बाईं और बीचको सेनाके शूरबीर भी पहुंचकर शत्रुसे लड़ने लगे।

शत्रुकी सेनासे कौकबाई जो एक प्रकारका अग्न्यास्त्र होता है छुटा और थूहरोंके वृक्षोंमें पड़कर चकर खाने लगा। उसको कड़कसे गनीमका हाथी भड़ककर अपने लशकरमें जापड़ा जिससे वहां बड़ी गड़बड़ मची और बीचको फौजने बढ़कर मुहम्मदहुसैन मिरजा और उसके सिपाहियोंको हटा दिया । शूरबीरों ने खूब युद्ध किया। मानसिंह दरबारीने हजरतके देखते देखते अपने शत्रुको मारलिया। राघोदास कछवाहा काम आ या मुहम्मद वफा जखमी होकर घोड़े से गिरा। ईखरको कृपा और भाग्यवलसे शत्रु हार गये। आप इस विजयपर ईश्वरका धन्यवाद कररहे थे कि एक कलावन्तने सैफ खां कोकलताशके मारे जानेको खबर दी। निर्णय करनेसे विदित हुआ कि जब मिरजा गोल (बीच) की फौज पर दौड़ा था तो सैफ खां दैवसंयोगसे उसके सामने आगया और बीरतापूर्वक लड़कर काम आया। मिरजा भी गोलवालोंके हाथों घायल हुआ।"

"सैफखां जैनखां कोकाका बड़ा आई था और विचित्र बार्ता यह है कि लड़ाईसे एक दिन पहले जब बादशाह भोजन कररहे थे तो हजारेसे जो शानेको हड्डी देख जानता था पूछने लगे कहो किसकी जीत होगी? उसने कहा कि जीत तो आपकी होगी परन्तु एक अमीर इस लशकरका शहीद होगा। सैफखांने निवेदन किया कि यह सौभाग्य मुझे प्राप्त होना चाहिये।

"जब मिरजा मुहम्मद हुसैन भागा तो घोड़ेका पांव थूहरमें फंस जानेसे गिर पड़ा। उसी समय गदाअली इक्का वहां पहुंचा और उसे अपने आगे घोड़े पर बैठाकर हजूर में लाया। उस समय दो तीन आदमी और भी उसके पकड़ने में शामिल होनेकी बात कहने लगे। आपने मिरजासे पूछा तुम किसने पकड़ा ? उसने कहा "बादशाहके नमकने ।" उसके हाथ पीछेको बंधे थे आपने धागे की ओर थांधनेको फरमाया। फिर उसने पानी मांगा तो फरहत खां गुलामने उसके सिर पर दुहत्थड़ मारा। आपने उससे नाराज होकर अपने पीनेका पानी मंगाया और मिरजाको पिलाया।"

"मिरजा मुहम्मदहुसैनको पकड़े जाने पर आप धीरे धीरे अह- मदाबादको चले। मिरजाको राय रायसिंह राठोड़ेके जो ऊमद राजपूतोंमेंसे था हवाले किया कि हाथी पर डालकर साथ खाये।"

"इतने में अखतियारुलमुल्क जो गुजरातियोंकि बड़े सर- दारों से था ५००० आदमियों सहित आता हुआ दिखाई दिया। बादशाही लोग उसको देखकर घबराये। पर हजरतने अपनी स्वाभाविक वीरतासे बाजे बजानेका हुक्म दिया। शुजाअतखां राजा भगवानदास और कई बन्दे आगे जाकर लड़ने लरी और राय राय- सिंहके नौकरों ने इस विचारसे कि कहीं मिरजा सुहादहुसैनको शत्रुको सेना छुड़ा न लेजावे राजाले अनुमोदनसे उसका सिर काट दिया। अखतियारुलमुल्काको फौज भी दिखर गई। घोड़ेने उसे घहरों में गिरा दिया और सुहराबबंग इक्षा उसका सिर काटलाया। यह इतनी बड़ी जीत उन खोड़ेसे आदमियों द्वारा ईश्वरको कृपासे हुई थी।"

कारखानोंका दीवान।

"जिस दिन बादशाहने एतमादुद्दीलाको दीवान किया था कारखानोंको दीवानीका काम मुअज्जु लमुल्क को दिया था जो अकबर बादशाहके समयमें करकराकखानेका मुशरिफ था।"

"इसी तरह बंगाले चित्तोड़ रणथम्भोर खानदेश और आसेर आदि भारतके प्रसिद्ध किलोका जीतना है।"

"चित्तोड़के घेरेमें उन्होंने जयमलको जो किलेवालोंका सरदार था अपनी बन्दूकसे मारा था। यह बदूक जिसका नाम संग्राम है, जगतको अनोखी बंदूकोंमेंसे है । इससे तीन चार हजार पशु पक्षी उन्होंने मार होंगे।"

"बन्दूकका निशाना वह बहुत अच्छा लगाते थे। इस काम, मैं भी उनका योग्य शिष्य होसकता हूं। बन्दूकसे शिकार करने को सुझ बड़ी रुचि है। एक दिन १८ हरन बन्दूकसे मारे।"

[ ५ ]
 
"जिन नियमों पर पूज्य पिताजी चलते थे उनमेंसे एक मांस-

त्याग भी था। सालमें तीन मास मांस खाते थे और नौ मास न खाते थे। पशुवधको रुचि उनको कदापि न थी। उनके शुभ शासनकालमें बहुतसे दिन और महीने ऐसे नियत थे जिनमें पशुवध का सर्वथा निषेध था। अकबरनामे में उनका वर्णन है।"

रोजा ईद।

यह पहली ईद(१) थी इस लिये जब बादशाह ईदगाहको गया तो बहुत भीड़ होगई थी। आपने दौलतखाने (राजभवन) में लौट कर खैरातके वास्ते कई लाख दाम दोस्तमुहम्मदको, एक लाख(२) मीर जमालहुसैन अंजू मौरान सदरजहां, मीर मुहम्मद रजा सजवारी को और पांचहजार रुपये शैख मुहम्मदहुसैनजामीके चेलेको दिये। आज्ञाकी कि हरेक मनसबदार नित्वं एक मुन्य ५० हजार दाम(३) भिक्षुकोंको दिया करे। हाजी कोकाको हुक्म दिया कि हररोज हकदार स्त्रियोंको जमीन और नकद रुपये दिलानेके लिये महलमें भेजा करे।

फिर काई कनुष्योंको हाथी घोड़े दिये। नकीब और तवेलेके कर्म्मचारी जो ऐसे लोगोंसे कुछ रुपये जलवानेके नामसे लिया करते थे बादशाहने उनको वह रकम सरकारसे देनेको आज्ञा देकर उनसे लोगोंका पीछा छुड़ाया।

हाथी नूरगंज।

शालिवाहन बुरहानपुरसे सुलतान दानियालके हाथी घोड़े ले कर आया। उनमेंसे मस्तअलस्त नाम हाथीको बादशाहने पसन्द करके नूरगञ्ज नाम रखा। उसमें अनोखापन यह था कि उसके कानों के पास दोनो ओर दो तरबूजोंके बराबर मांस उठा हुआ था


(१) फागुन सुदी २ संवत् १६६२
(२) अढाई हजार रुपये।
(३) सवा हजार रुपये। और मस्तीके समय उनसे मद चूता था। उसका माथा भी उभरा

हुआ था।

काबुलकी जकात।

बादशाहने और सब मूबोंकी जकात जो करोड़ोंकी थी पहले ही छोड़ दी थी अब काबुलको जकात भी जिसको जमा एक करोड़ २३ लाख दामकी थी माफ कर दी और कन्धारकी भी माफ की।

काबुल और कन्धारकी बड़ी आमदनी यही थी इस माफीसे ईरान और तूरानके लोगोंको बहुत लाभ हुआ।

रुकैया बेगम।

शाहकुलीखां महरमका बाग आगरेमें था परन्तु उसका कोई वारिस नहीं रहा था। इसलिये बादशाहने अपनी सौतेली माता मिरजा हिन्दालकी बेटी स्कैया वेगमको देदिया। अकबर बादशाह ने सुलतान खुर्रमको इसे सौंपा था और वह पटक बेटेसे अधिक खुर्रम पर स्नेह रखती थीं।

पहला नौरोज।

११ जीकाद सन १०१४ हिजरी (चैत सुदी १२) मंगलवारकी रातको सूर्य्यनारायण मेखमें आये। दूसरे रोज नौरोज हुआ । उस दिन मेष राशिके १९ वें अंग तक खूब राग रंग और नाच कूद हुआ। क्योंकि यह पहला नौरोज था। बादशाहने आज्ञा दे दी थी कि इन दिनों में हर आदमी जो नशा चाहे कर कोई न रोके ।

बादशाह लिखता है--इन १७।१८ दिनोंमें हर रोज एक बड़ा अमीर मेरे पिताको अपनी मजलिसमें बुलाकर रत्न और रत्नों जड़े हुए गहने तथा हथियार और हाथी घोड़े भेट किया करता था जिनमेंसे वह कुछ तो पसन्द करके लेलेते थे और शेष उसीको बख्श देते थे।

परन्तु मैंने इस वर्ष सिपाही और प्रजाके हितसे यह भेटें नहीं ली। हां कई पास रहनेवालोंको भेंट ग्रहण की। इन दिनोंमें काई अमीरोंके मनसब बढ़े जिनमें राजा बासूका मनसब अढ़ाई हजारीसे साढ़े तीन हजारी होगया। यह पञ्जाबका पहाड़ी राजा था और लड़कपनसे निरन्तर बादशाहका भक्त रहा था।

कन्धारक हाकिम शाहबेगखांका मनसब बढ़कर पांच हजारी होगया।

रायसिंह पांच हजारी हुआ।

राना सगरको १२००० खर्च के लिये मिले।

गुजरात।

मुजफ्फर गुजरातीको सन्तानमेंसे एक मनुष्य अपनेको अधिकारी समझकर बादशाहके राज्यसिंहासन पर बैठनेके समयसे अहमदाबादक आसपास लूट खसोट करने लगा था। पेम बहादुर उजबक और राय अलीभद्दी जो उस सूबेके वीर पुरुषोंमेंसे थे उससे लड़कर मारे गये थे। इसलिये बादशाहने राजा विक्रमादित्यको कई सरदार और छः सात सौ सजे हुए सवार देकर गुजरातकी सेनाकी सहायताके लिये भेजा और कहा कि जब उस प्रांतमें शांति होजावे तो राजा गुजरातका सूबेदार रहे और कुलीचखां हजूरमें जावे। जब यह सेना वहां पहुंची तो उपद्रवी लोग 'जङ्गलों में आग गये और वह देश निर्विघ्न होगया।

रानाकी हार।

शाहजादे परवेजकी अर्जी पहुँची कि राना थाने मांडलको जो अजमेरसे ३० कोस है छोड़कर भाग गया। बादशाही फौज उसके पीछे गई है।

खुसरोका भागना।

शाहजादा खुसरो जिसे अकबरकी बीमारीके समय कुछ ऐसे अमीरोंने बहका दिया था जिन्होंने कितनीही बार कितनेही अय- राध किये थे और दण्ड से बचना चाहते थे ८वीं जिलहज्ज द्वितीय चैत्र सुदी ९ रविवारकी रातको अपने दादाकी समाधिके दर्शनका मिष करके ३५० सवारों के साथ आगरेसे निकल गया। अमीरुल- उमराने जब यह समाचार सुना तो जनानी ड्योढ़ी पर जाकर नाजिरसे अर्ज कराई कि हजरत बाहर पधारें कुछ जरूरी अर्ज करना है।

बादशाहको इस बातका खयाल भी न था। वह समझा कि गुजरात या दक्षिणसे कोई खबर आई है। बाहर आने पर यह वृत्तान्त सुना तो कहा क्या करना चाहिये ? मैं आप जाऊ या खुर्रमको भेजूं ?

अमीरूल उमराने प्रार्थना की कि यदि आज्ञा हो तो मैं जाऊं। बादशाहने कहा जाओ। तब उसने फिर पूछा कि जो समझानेसे जावे और सामना करे तो क्या किया जावे? बादशाहने कहा जो किसी तरह भी सीधे रस्ते पर न आवे तो फिर जो तुझसे हो सके उसमें कमी मत करना क्योंकि राजासे किसीका सम्बन्ध नहीं होता है।

अमीरुलउमराको बिदा करनेके पीछे बादशाहने सोचा कि इसके हमारे पास अधिक रहनेसे खुसरो नाराज है ऐसा न हो कि इसको नष्ट करदे। इसलिये मुअज्जुलमुल्कको खुसरोके लौटा लाने को भेजा। शेख फरीदबखशीको भी उन सब ओहदेदारों और मन- सबदारों के साथ जो पहरे चौकी पर थे इसी काम पर नियत किया और एहतिमामखां कोटवालको पता लगाने जानेका हुक्म दिया।

फिर समाचार लगे कि खुसरो पञ्जाबकी ओर जारहा है। उसका मामा मानसिंह बंगालेमें था इसलिये बहुधा अमीरोंका यह विचार हुआ कि वह रास्ता काटकर उधर चला जावेगा। इस पर हर तरफ आदमी भेजे गये। उसका पंजाबको जानाही निश्चय हुआ।

दिन निकलतेही बादशाह भी खुसरोके पीछे चला। ३ कोस पर अकबर बादशाहका "रौजा" (१) आया। वहां पहुंचकर जहांगीर


(१) समाधिस्थान। उनकी पवित्र आत्मासे सहायता मांगने लगा। इतने ही में मिरजा शाहरुखका बेटा मिरजा हसन जो खुसरोके पास जानेका उद्योग कर रहा था पकड़ा आया और पूछ ताछ करने पर असल बातसे इनकार न कर सका। बादशाह इसको अपने पिताके अनुग्रहका पहिला शुभशकुन समझकर आगे बढ़ा। जब दोपहर हुआ तो एक वृक्षको छायामें ठहरकर खानआजमसे बोला कि सब तरहसे शान्तचित्त होने पर भी जब हमारी यह दशा हुई है कि मामूली अफीम भी जो पहरदिन चढ़े खानी चाहिये थी अबतक नहीं खाई है न किसीने याद दिलाई है तो उस कपूतका क्या हाल होगा ? मुझे इसी बातका दुःख है कि बेटा बिना कारणही बैरी होगया। जो उसके पकड़नेकी दौड़धूप न करूं तो लुच्चे लोग बल पकड़ जावेंगे या वह भागकर उजबक(१) तथा कजलबाश(२)के पास चला जावेगा जिसमें इस राज्यकी हलकी होगी।

निदान बादशाह थोड़़ासा विश्राम लेकर फिर चला और मथुरा होकर जो आगरेसे बीस कोस है, उसी परगनेके एक गांवमें ठहरा। वह गांव मथुरासे दो तीन कोस था। वहां एक तालाब भी था।

खुसरों जब मथुरा में पहुंचा तो हुसैन बेग बदखशी जो काबुल मे दरबार में आता था दो तीन सौ सवारोंसे उसको मिला और उस लुच्चाईसे जो बदखशांके लोगों में स्वाभाविक होती है अगुआ और सेनापति बनकर साथ होगया। वह और उसके आदमी रास्ते में मुसाफिरों ब्यापारियों और प्रजाको लूटते जाते थे। खुसरो देखता था कि किस प्रकार उसके बाप दादोंके राज्य में अन्याय होरहा है और कुछ नहीं कह सकता था।

बादशाह लिखता है कि यदि उसका भाग्य बलवान होता तो लज्जित होकर बेधड़क मेरे पास चला आता और ईश्वर साक्षी है


(१) तूरानी लोग।
(२) ईरानी लोग। कि मैं सर्वथा उसके अपराधोंको क्षमा करके उसपर इतनी दया

करता कि उसके मन में बालभर भी खटका न रहता। पर पूज्यपिता के स्वर्गवास होने पर उसने कई गुण्डोंके बहकानेसे अनेक कुविचार किये थे और जानता था कि उनकी सूचना मुझको होचुकी है इस लिये मेरी दया मयाका उसको विखास न था। उसकी मा भी मेरी कुमारावस्थाके दिनों में उसके कुलक्षणों तथा अपने भाई माधवसिंहके बुरे बरतावसे तंग आकर विष खाकर मर गई थी। मैं उसके शील और गुणोंको क्या लिखूं। वह पूरी बुद्धिमान थी उसको मुझसे इतनी प्रीति थी कि हजार बेटों और भाइयोंको मेरे एक बालके अपर वारती थी। उसने अनेकबार खुसरोको उपदेश लिख और मुझसे भावभक्ति रखनेको सम्पति दी। परन्तु जब देखा कि कुछ लाभ न हुआ और आगे न जाने क्या हो तो गैरतसे जो राजपूतों में प्रतिगत होती है, मरनेको ठानली। कसी कसी उस को बावलेपनको सिड़ भी होजाती थी और यह पैतृक रोग था। उसके बाप भाई भी एक एक बार पागल होकर चिकित्सासे अच्छे हुए थे। २६ जिलहज्ज सन् १०१३ जेठ बदी १३ सम्बत १६६२ को जब में शिकारको गया हुआ था वह उन्मादमें बहुतसी अफीम खाकर मर गई। मानो वह अपने अभागे बेटेको भविष्य व्यवस्था पहलेही जान गई थी। मेरा यह पहला विवाह तरुणावस्थामें हुआ था। जब उसके खुसरो उत्पन्न होचुका तो मैंने उसे बेगम की पदवी दी थी। वह मेरे साथ भाई और बेटेको कुयात्रता न देख सकती थी इस लिये प्राण देकर उस दुःखसे छूट गई ।

मुझे उससे बड़ा प्रेम था। इस कारण उसके मरने पर मुझपर ऐसे दिन बीते कि जीनेका कुछ मजा न रहा था। ४ दिन तक ३२ प्रहर मैने कुछ खाया पिया नहीं। जब यह हाल मेरे पिता को विदित हुआ तो उन्होंने परम प्रेमसे मुझको शान्तिपत्र भेजा सिरोपाव और पगड़ी जो सिरसे उतारी थी उसी तरहसे बन्धी हुई। मेरे वास्ते भेजी। उनकी इस मेहरवानीसे मेरा शोक सन्ताप कुछ कम हुआ। चित्तने धैर्य्य पकड़ा। तात्पर्य इस लेखसे यह है कि जो लड़का अपनी कुशीलतासे माताकी मृत्यु का कारण हुआ हो और कोरे भ्रमसेही बापके पाससे भागा हो तो दैवके कोपसे उसे वही दण्ड मिलना चाहिये था जो अन्तमें उसको मिला। अर्थात् पकड़ा जाकर जन्मकैदी हुआ।

१० द्वितीय चैत्र सुदी ११ सं० १६६३ मंगलवारको बादशाह होडलमें उतरा। दोस्त मुहम्मदको आगरेके किले महलों और कोषोंकी रखवालोके वास्ते भेजकर फरमाया कि एतमादुद्दीला वजीरको तो पंजाबमें भेज दे और मिरजा हकीमके बेटोंको कैदमें रखें। जब सगे बेटोंसे यह हरकत हुई तो भतीजों और चचाके बेटीका क्या अरोसा रहा।

बुधवारको पलवलमें वृहस्पतिवारको फरीदाबादमें और १३ शुक्रवारको दिल्ली में डेरे हुए। बादशाहने हुमायूं बादशाह और निजामुद्दीन औलियाको जियारत करके बहुतसे रुपये कङ्गालोको बांटे।

१४ शनि (द्वि० चैत सुदी १५) को नरेलेको सरायमें डेरा हुआ। खुसरो उस सरायको जला गया था। यहांके लोग खुसरो की तरफ झुके हुए थे। इस लिये बादशाहने उनके मुखियोंके द्वारा उनको दोहजार रुपये दिलाकर अपना कृपाभाजन बनाया। कुछ रुपयेशैख फजलुल्लह और राजा धीरधरको देकर फरमाया कि मार्गमें फकीरों और ब्राह्मणोंको दिया करें और तीस हजार रुपये अजमेर में राणा सगरको दिलाये।

१६ (वैशाख बदी २) सोमवारको पानीपतमें डेरे हुए। बाद- शाह लिखता है--यह स्थान मेरे बापदादोंके लिये बहुत शुभकारी हुआ। यहां उनकी खूब जय हुई है। एक इब्राहीम लोदी पर बाबर बादशाहको, दूसरी हेमू पर मेरे पिताकी। यहां खुसरोके पहुंचनेसे कुछ पहले दिलावर खादिम पहुंचा था। और यह हाल सुनकर उससे पहले लाहोरमें पहुंच जानेके लिये जल्दीसे कूच कर गया था परन्तु अबदुर्रहीम जो उसी समय लाहोरसे आगया था बहादुरखांके समझाने पर भी खुसरोंसे जा मिला और मलिक अनवररायकी पदवी पाकर लड़ाईके कामोंका अधिकारी हुआ । यदि कमालखां दिल्लीमें और दिलावरखां पानीपतमें खुसरोका रास्ता रोक लेता तो उप्तके साथी बिखर जाते और वह ओ पकड़ लिया जाता।

१७ (वैशाख बदी ३) को बादशाहने वारनाल में पहुंचकर कपटी शैख निजाम थानेसरीको मक्के भिजवा दिया। उसने खुसरोको उसके मनचाहे बरदान देकर सन्तुष्ट किया था।

१९ (वैशाख बदौ ५) को परगने शाहाबादमें डेरा हुआ। बाद- साहने शैख अहमद लाहोरोको जो पुराना सेवक खानाजाद और चेला भी था मीरअदल (न्यायाध्यक्ष) का पद दिया। चेले और भक्त लोग उसके हारा बादशाहको सेवामें उपस्थित होते थे। जिसको हाथ और छातो देना चाहिये उसको निवेदन करके दिलाता(१) था। शिष्य होनेके समय चेलोसे उपदेशके कई वाक्य कहे जाते थे अर्थात--

(१) अपने समयको किसी मतके वैरभावसे दूषित न करें।
(२) सब मतमतान्तरवालोंस मेल रखें।
(३) किसी जीवको अपने हाथसे न मारें।
(४) तारोंको जो परमेश्वर के तेजको धारण करनेवाले हैं यथा

योग्य मानते रहें।

(५) परमात्माको सब कामोंमें व्यापक समझे।
(६) किसी समय और स्थानमें मनको भगवतरूपर्णसे शून्य न.

रखें।


(१) छाती और हाथ देना इलाही मतका कोई नियम था। यह मत अकबर बादशाहने चलाया था और जहांगीर भी उसे मानता ना और चेले करता था। जहांगीर लिखता है--"मेरे पिताने इन विचारों में निपुणता प्राप्त की थी और इन विचारों से वह कभी खाली न रहते थे।

२४ मंगल (बैशाख बदी ११) को ५ आदमी खुसरोके साथियों मेंसे पकड़े आये। उनमेंसे दोने खुसरोके पास नौकर होना स्वीकार किया था वह हाथीके पांवके नीचे कुचलवाये गये और तीनने इन कार किया था वह निर्णय होने तक हवालातमें रखे गये।

दिलावरखांने १२ फरवरदीन (२२ जीकाद चैत्र बदौ ,९) को लाहोर पहुंचकर किला सजाया था। फिर खुसरो भी पहुँचा और कहा कि एक दरवाजेके किवाड़ोंको जलाकर गढ़में प्रवेश करें। गढ़ जीते पीछे ७ दिन तक नगर लूटनेको आज्ञा दूंगा उसके साथियोंने एक दरवाजेके किवाड़ जलाये परन्तु भीतरवालोंने आड़ी भीत उठा कर रास्ता रोक दिया।

घेरेके ९ दिन पीछे बादशाही लशकरकी अवाई सुनी तो खुसरोने छापा मारनेके विचारसे नगरको छोड़ दिया ६|७ दिनोंमें १०|१२ हजार सवार उसके पास इकट्ठे होगये थे।

२६(१) (बैशाख नदी १३) गुरुवारको गतको खुसरोके आनेको खबर सुनकर बादशाह मेह बरसतेमें सवार हुआ। सवेरे सुलतान- पुरमें पहुंचकर दोपहर तक वहां रहे। उस समय दोनों ओरकी सेनाओं में संग्राम मचा। मुअज्जु लमुल्क एक रकाबी बिरयानी(२) की बादशाहके वास्ते लाया था। परन्तु लड़ाईके समाचार सुनतेही बादशाह कचि होने पर भी केवल एक ग्रास उसमेंसे शुकनके तौर पर खाकर सवार होगये । उसने अपना चिलता(३) बहुत मांगा पर किसीने लाकर न दिया। बरछे और तलवारके सिवा कोई हथि- यार भी पास न था। सवार भी ५० से अधिक चलनेके समय न


(१) मूलमें भूलसे १६ लिखी है।
(२) एक प्रकारका भोजन।
(३) झिलम कवच। थे। क्योंकि कोई नहीं जानता था कि आज लड़ाई होगी।

बादशाह ईश्वरके मरोसे उसो सामान और सेनासे चल पड़े। गोवि- न्दवालके पुल पर पहुंचे तबतक चार पांचसौ सवार अच्छे बुरे आ मिले थे। पर पुलसे उतरतेही शमसी तोशकची फतहको बधाई लाया और उसने खुशखबरखांकी पदवी प्राप्त की। इस पर भी मीर जमालुद्दीनहुसैनने जो खुसरोको समझानेके लिये भेजा गया था खुसरोके पास बहुतसी फौज होने का वर्णन ऐसी धूमधामसे किया कि लोग डरने लगे। जीत होनेके समाचार लगातार चले आते थे तो भी वह सीधा सादा सैयद यही कहे जाता था कि जिस धड़ल्ले का लशकर मैं देख आया हूं शैख फरीदकी थोडीसी सेनासे वह क्योंकर हारा होगा?

निदान जब खुसरोका सिंहासन उसके दो नाजिरों सहित लाया गया तो सैयद घोड़ेसे उतरकर बादशाहके पैरोंमें गिर पड़ा और कहने लगा कि भाग्य इससे बढ़कर नहीं होसकता !

लड़ाईका वृत्तान्त।

बारहके सैयद बड़े वीर थे और युद्ध में सबसे बढ़ चढ़कर काम करते थे। शैख फरीद बखशीने उन्हींको हिरावल बनाकर सेनाके आगे भेजा था। उनके सरदार सैयद महमूदके बेटे सैफखांने सतरह घाव खाये थे। सैयद जलाल माथे पर तीर खाकर कुछ दिन पीछे मरा था। सैयद कमालने वीर साथियों सहित बड़ी बहादुरी दिखाई। जब दहनी अनीके सिपाही बादशाह सलामत बादशाह सलामत कहते शत्रुओं पर दौड़े तो उनके छक्के छूटगये। भागतेही बनी ४०० के लगभग मारे गये और घायल हुए खुसरोके रात्रोका सन्दूक जिसे वह सदा अपने पास रखता था लूटमें उसके हाथ आया।

बादशाह लिखता है--कौन जानता था कि यह छोटी उमरका बालक मेरा भय और लज्जा छोड़कर ऐसा कुकर्म करेगा। ओंछे आदमी इलाहाबाद में मुझे भी बापसे लड़नेसे लिये उभारते थे। पर यह बात कभी मुझको स्वीकार न हुई । मैं जानता था कि वह राज्य जिसका आधार पिताकी शत्रुता पर हो स्थिर न होगा। अतएव मैं उन कुवुद्धि लोगोंके कहनेसे नष्ट न हुआ। अपनी समझ की प्रेरणा पिताको सेवामें पहुंचा जो गुरू तीर्थ और ईश्वर थे । फिर जो कुछ मुझे मिला वह उसी इच्छाका फल है।

खुसरोका पीछा।

जिस रात खुसरो भागा था बादशाहने उसी रात पञ्जाबके एक बड़े जमीन्दार राजा बात्तूको हुक्म दिया कि अपने देश में जाकर उसे जहां पावे पकड़नेकी चेष्टा करे।

इनायतखां और मिरजाअली अकबरशाही बहुतसी सेनाके साथ खुसरोके पीछे भेजे गये। बादशाहने यह प्रतिज्ञा की कि जो खुसरो काबुलको जावे तो जबतक पकड़ा न जावे लौटके न आवें। यदि काबुलमें न ठहरे और बदखशांको चला जावे तो महाबतखां को कावुल में छोड़ आवें। बादशाहको भय था कि बदखशां जाकर वह उजबकोंसे मिल जावेगा तो अपने राज्यको बात हलकी होगी।

२८ (बैशाख बदी ३०) शनिवारको जैपालके पड़ाव पर जो लाहोरमे ७ कोस है बादशाहको तम्बू लगे। खुसरो जब चिनाब नदीके तट पर पहुंचा तो पठानो और हिन्दुस्थानियोंने उसको हिन्दुस्थानकी तरफ लौटनेको सम्मति दी और हुसैनवेग बदखशीने काबुल जाने पर पक्का किया। पीछे पठान और हिन्दुस्थानी तो उसको छोड़ गये और वह रात्रिमें लोधरे घाटसे चिनाब नदीके पार होने लगा। मगर चौधरीके जमाई केलणने खबर पाकर खेवटियोंसे कहा जहांगीर बादशाहका हुक्म नहीं है कि रातको बिना जाने पहिचाने कोई नदीसे उतर सके। यह गड़बड़ सुनकर खेवरिये तो भाग गये और इधर उधरके आदमी आधमके। हुसैन बेगने पहिले तो रूपयेका लालच दिया फिर तीर मारना आरम्भ किया केलण भी इधरसे तीर चलाने लगा। नाव ४ कोस तक बिना खेवटियोंके चलकर रेतमें अड़ गई आगे नहीं चली। बादशाहका हुक्म जगह जगह खुसरोके रोकने और पकड़नेका पहुंच चुका था इसलिये प्रातःकाल होते ही पश्चिमी किनारेको कासिमतगीन और खिजरखां आदिने तथा पूर्वतटको जमीन्दारोंने रोक लिया।

२९ (बैशाख सुदी १) रविवारको दिन निकलतेही लोग हाथियों और नावों पर सवार होकर नदीमें गये और खुसरोको पकड़ लाये।

३० (बैशाख सुदी २) सोमवारको बादशाहने काबुल पहुंचकर मिरजा कामरांके बागमें डेरा किया और खुसरोके पकड़े जानेके समाचार सुनकर अमीरुलउमराको उसके लाने के लिये गुजरातको भेजा।

बादशाह लिखता है--मैं बहुधा अपनीही समझ बूझसे काम करता हूं दूसरेकी सलाहसे अपनी सलाहकोही ठीक समझता हूं। पहिले तो मैं अपने सब शुभचिन्तकोंकी सखाहके विरुद्ध अपनी सलाहसे जिससे इस लोक और परलोकमें मेरी भलाई हुई, पिताकी सेवामें चला गया। फल यह हुआ कि मैं बादशाह होगया। दूसरे खुसरोका पीछा करने में मुहर्त आदि किसी बातके वास्ते न रुका तो उसको पकड़ लिया। अजब बात यह है कि मैंने कूच करनेके पीछे हकीमअलीसे जो ज्योतिषके गणितमें निपुण है पूछा कि मेरे प्रस्थान करनेको घड़ी कैसी थी तो उसने कहा कि इस मनोरथकी सिद्धिके लिये वही सुइर्त्त उत्तम था जिसमें श्रीमान चल खड़े हुए! उससे उत्तम सुहर्त्त वर्षोंमें भी नहीं निकल सकता।


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दूसरा वर्ष ।

सन् १०१५। बैशाख सुदी ३ मंगलवार संवत् १६६३ मे बैशाख सुदी १ शुक्रवार संवत् १६६४ तक। खुसरोका पकड़ा आना। ३ मुहर्रम (०१५ (बैशाख सुदौ ५) गुरुवारको चङ्गेजखांकी रीति और तोरके अनुसार बादशाहके बाएं ओरसे खुसरीको दरबार में लाये। उसके हाथ बंधे थे पांवमें बेड़ी पड़ी थी। हुसैनबेगको उसके दाएं और अबदुलरहीमको बाएं हाथ पर खड़ा किया। खुसरो इन दोनोंके बीच में खड़ा हुआ कांपता और रोतो था। हुसैनबेग इस अभिप्रायसे कि कुछ सहारा लगे जल जलूल बकने लगा। बादशाहने उसका मनोरथ जानकर उसका बोलना बन्द किया। पौछ खुसरोको कारागारमें भेजकर उन दोनों दुराचारियों के लिये यह हुक्म दिया कि उनको गाय और गधेका चमड़ा पहिना कर गधेके ऊपर उलटा बिठावें और शहरके आसपास फिरावें। हुसैनबेग अन्तमें ४ पहर जीता रहकर सांस घुटजानेसे मर गया क्योंकि वह गायके चमड़ेमें था और यह जल्द सूखता है। अबदु. रहीम(१) गधेके चमड़ेमें था जो देरसे सूखता है फिर ऊपरसे भी उसको गोला किया जाता था इसलिये वह जीता रहा। इनाम और दशाए । बादशाह शुभघड़ी शुभमुहर्त न होनेसे 2 मुहर्रम (बैशाख सुदी १०) तक शहरमें नहीं गया। शैख फरीदको सुरतिजाखांकी पदवी और कसवे भेरवा मिला जहां खड़ाई हुई थी। दण्ड देनेके वास्ते (१) अबदुर्रहोमका नाम तुजुक जहांगीरी, फिर भी कई जगह आया है। बादशाहने पहचानके वास्ते उसको बदुर्रहोम गधा लिखा है। मिरजा कामरांके बागसे शहर लाहोर तक दोनों ओर मूलियां खड़ी कीगई। जो बदमाश इस फसादमें शारीक थे उनको सूलियों पर चढ़ाकर विचित्र विचित्र दण्ड दिये गये। जिन जमीन्दारों ने अच्छी सेवा की थी उनको चिनाब और भट नदीके बीच में जमीनें देकर सरदारी और चौधराई बखशी गई। हुसैनबेगके साढ़े सात लाख रुपये तो मीरमुहम्मदबाकीके घरसे निकले और जो उसने अपने पास रखे थे अथवा दूसरी जगह सौंपे थे वह इसके सिवा थे। यह जब मिरजा शाहरुखके साथ बदखशांसे आया था तो केवल एक घोड़ा पास था और फिर बढ़ते बढ़ते इस पदको पहुँचा। इतना धनवान होकर ऐसे ऐसे साहसके काम करने लगा।

परवेजको बुलाना।

बादशाहने लड़ाई के बहुत दिन तक चलने और राजधानी आगरके सूना रहनेके विचारसे शाहजादे परवेजको लिखा था कि कुछ सरदारोंको राणाको लड़ाई पर छोड़कर आसिफखां सहित आगरे चले जाओ। पर विजय होनेके बाद लिखा कि मेरे पास चले आओ।

बादशाह लाहोरमें।

९ बुध (वैसाख सुदी १०) को बादशाहने लाहोरमें प्रवेश किया। शुभचिन्तकोंने गुजरात दक्षिण और बंगालेमें उपद्रव होने से राजधानीको लौट चलनेको प्राथना की। पर बादशाहके मनमें यह बात नहीं आई क्योंकि हाकिम कन्धारको अर्जियोंसे पाया गया था कि ईरानी सीमाके सरदार कन्धार लेनेके, विचारमें हैं। साथही यह समाचार लगा कि हिरात और सीसतां आदिके हाकिमोंने आकर कन्धारके किलेको तीन तरफसे घेर लिया है और शाहबेगखां स्वस्थ चित्तसे उनका सामना कर रहा है।

कन्धारको सहायता।

बादशाहने सिन्ध और ठट्ठे के अगले अधिपति मिरजा जानीके जहांगीरनामा। बेटे मिरजा गाजीको बहुतसी फौजसे कन्धारको भेजा और अट्ठावन हजार रुपये खर्चके वास्ते दिये। - गुरु अर्जुनका वध। . ___ बादशाहने गुरु अर्जुन(१)को इस अपराधर्म कि जब :खुसरो लाहोरको जाता हुआ :गोविन्दवालमें उतरा था तो वह खुसरोसे मिला था और केसरका तिलक उसके माथे पर लगाया था, गोविन्द वाल(२)से बुलवाकर मरवा डाला और उसके घरबार और लड़के बाले मुरतिजाखांको प्रदान कर दिये। .....: :

  • अर्जुन गुरूके दो चेले राज और अम्बा दौलतखां खाजासराको

सहायतामें रहते थे और खुसरोके बलवेमें लूट मार करने लगे थे। बादशाहने राजको तो मरवा डाला और अम्बाको जो धनाढ्य था एक लाख १५ हजार रुपये लेकर छोड़ दिया। यह रुपये धर्म- शालाओंकी बांटे गये। . . . . .- ::-: . . .. परवेजका आना। . ... ..... २८ (आखिन सुदी १) गुरुवारको दो.पहर तीन घड़ी दिन चढ़े शाहजादा परवेज हाजिर हुआ। बादशाहने , मेहरबानीसे उसको छातीसे लगा कर माथा चूमा। बादशाही चिन्ह आफताब गौर तथा दस हजारी मनसब उसे दिया। दीवानों को उसे जागौर देनेका हुक्म दिया। मिरजा अलोवेगको काशमीरको हुकूमत दी। राणाको अधीनता। . . .. __परवेजके बुलाये जानेसे पहले राणाने आसिफखांसे कहलाया (१) अर्जुन गुरु नानक साहबके पांचवें उत्तराधिकारी थे। जब गुरु नानक सं० १५८५ में धाम प्राप्त हुए थे उनके पीछे गुरु अङ्गद जी हुए। अंगदजीको गद्दी पर अमरदासजी बैठे । अमरदासजीके उत्तराधिकारी गुरु रामदासजी हुए। उनके पीछे गुरु अर्जुनमल हुए। इनसे अकबर बादशाह मिला था। (२) गोविन्दवाल रावी नदी पर बसता है इसको गोंदा खत्री ने सं० १६०३ में बसाया था। पहले सोनेमें तुला तीन मन सोना चढ़ा। फिर ग्यारह बेर और पदार्थों में तुला। यह तुलादान एक साल में दो बार सूर्य्य और चन्द्र के ववर्राम्भके समय सोने चांदी धातु रेशम कपड़े और धानादि वस्तुओं में होता था। दोनोका धन अलग अलग खजाञ्चियों को पुण्य करने के लिये सौंपा जाता था।

कुतुबुद्दीनखां कोका ।(१)

इसी दिन धायभाई कुतुबुद्दीनखांको बादशाहने खासा खिलअत जड़ाऊ तलवार और खासा घोड़ा जड़ाऊ जीनका देकर बङ्गाले और बिहारको सूबेदारीपर जो पचासहजार सवारोंकी जगह थी बड़ीभारी सेनाके साथ भेजा। दो लाख रुपये उसको और तीन लाख रुपये उसके सहकारियोंको दिये। बादशाहको अपने इस धायभाई और इसकी माके साथ सगी मा और भाई बेटोंसे अधिक प्रेम था।

केशव मारू।

केशवदास मारूका मनसब डेढ़हजारी होगया।

नथमल मंझोलीका राजा।

मंझोलीके राजा नथमलको बादशाहने पांचहजार रुपये दिये।

मिरजा अजीज कोका।

मिरजा अजीजकोकाने बुरहानपुरके राजा अलीखांको एक पत्र भेजा था। उसमें अकबर बादशाहकी बहुतसी निन्दा लिखी थी। यह पत्र बुरहानपुर में राजा अलीखांके माल असबाबके साथ अबुलहसनके हाथ लगा। उसने बादशाहको दिखलाया। बादशाहको पत्र पढ़कर बहुत क्रोध हुआ। बादशाह लिखता है--जो मेरे पिताने उसकी माताका दूध न पिया होता है उसको अपने हाथसे बध करता। मेरा यही निश्चय था कि उसका वैर मुझसे खुसरोकी दामादीके कारण है। पर इस पत्रसे उसकी दुष्टता और नमकहरामी मेरे बापके साथ भी सिद्ध हुई। जिन्होंने उसको और उसके घरानेको धूलसे उठाकर आकाश


(१) कोका तुर्की में धायभाईको कहते हैं। तक पहुंचाया था। मैंने उसे बुलाकर वह पत्र उसके हाथ में दिया और उच्चस्वरसे पढ़नेको कहा। मेरा ऐसा अनुमान था कि पत्र देतेही उसका दम बन्द होजावेगा। पर वह निर्लज्जतासे उसे इस तौर पर पढ़ने लगा कि मानो उसका लिखा हुआ ही नहीं है। हुक्मसे पढ़ता है। अकबरी और जहांगीरी बन्दोंमेंसे जो उस सभा में उपस्थित थे जिस किसीने वह पत्र देखा और पढ़ा उसीने उसको धिक्कार दी। मैंने पूछा कि उस दुष्टताको छोड़कर जो मुझसे तुझको है जिसके कारणोंकी कल्पना भी तूने अपनी कुटिल बुद्धिसे कर रखी है, मेरे बापसे क्या तेरा ऐसा बिगाड़ हुआ था जिससे उनके शत्रुओंको तुम ऐसी बातें लिखनी पड़ी? मेरे साथ जो कुछ तूने किया मैंने उसे टालकर तुझे फिर तेरे मनसब पर रहने दिया। मैं जानता था कि तुझको मुझीसे बैर है पर अब जाना कि तू अपने पालकर बड़ा करनेवालेका भी द्रोही है। मैं तुझे उसी धर्म और कर्म्मको सौंपता हूं जो तेरा है और था। उसने उत्तरमें कुछ न कहा। कुछ कहता भी तो क्या कहता, कालामुंह तो होही चुका था।"

बादशाहने यह कहकर उसकी जागीर छीन लेनेका हुक्म दिया। यह अपराध क्षमाके योग्य न होने पर भी कई कारणोंसे उसे कुछ दण्ड न दिया।

परवेजका व्याह ।

२६ जमादिउस्मानी (कार्तिक बदी १३) रविवारको शाहजादे परवेजका विवाह सुलतान मुरादकी बेटीसे मरयममकानी बेगमके महलमें हुआ और उत्सवकी मजलिस परवेजके स्थान पर रची गई। जो कोई गया उसे बहुत प्रकारके सत्कारोंके सिवा सिरोपाव भी मिला।

शिकार।

१० रज्जब (कार्तिक सुदी १३) रविवारको बादशाह शिकारके लिये किरछक और नन्दनेको जाता था। रास्ते में आगरेसे चलकर चार दिन तक राजा रामदासके बागमें डेरा किया। था कि मैं अपने अपराधोंसे लज्जित हूं तुम कह सुनकर ऐसा करो कि शाहजादा मेरे लड़के बाघाका आना स्वीकार कर ले। शाह- जादा कहता था कि या तो राना आप आवे या करणको भेजे । परन्तु जब खुसरोके भागनेके समाचार पहुंचे तो आसिफखां आदि अमीर बाघाके आने पर राजी होगये। वह माण्डलगढ़में आकर शाहजादेसे मिला और शाहजादा राजा जगन्नाथ आदि सरदारों को वहां छोड़ आया।

सुलतान दानियालके बेटे।

मुकर्रबखां जो सुलतान दानियालके बेटोंको लानेके लिये बुर- हानपुर गया था ६ महीने २२ दिन पीछे उनको लेकर आगया । ९ रबीउस्मानी (सावन सुदी ११) सोमवारको बादशाहने उन्हें देखा। उन पर आशातीत कृपा की। वह सात बहन भाई थे। तीन लड़के तहमुस, बायशंकर और होशंग थे। चार लड़कियां थीं। तइमुर्सको तो बादशाहने अपनी सेवामें रख लिया बाकी अपनी बहनोंको सौंप दिये और कहा कि इनकी अच्छी तरह सम्हाल रखना।

लंगरखाने।

बादशाहने अपने राज्य भरमें लंगरखाने खोलनेका हुक्म भेजा। कहा--प्रत्येक स्थान पर चाहे वह खालसेका हो चाहे जागीरका, वहांकी व्यवस्थाके अनुसार कंगालोंके लिये साधारण खाना पक- वाया जाय जिससे मुसाफिरोंको भी लाभ हो।

राजा मानसिंह।

राजा मानसिंहके लिये बंगालमें खासा खिलअत भेजा गया।

शाहजादे खुर्रम और बेगमोंका लाहोरमें आना।

बादशाह चलते समय खुर्रमको महलों और खजानोंकी रखवाली पर आगरेमें छोड़ आया था। अब जो ख़ुसरोंके पकड़े जानेपर उसको बुलाया तो वह बेगमों सहित लाहोरमें पहुंचा। बादशाह १३ शुक्र(१) को नावमें बैठकर "घर" नामक गांवकी सीमा तक अपनी मां "मरयममकानो" के स्वागतको गया। चंगेजखां, तैमूर और बाबरके नियत किये नियमोंके अनुसार अदब और आदाब बजा लाया।

रानाकी मुहिम ।

१७ (भादों बदी ५) को मुअज्जु लमुल्क उस लशकरकी बखशी- गरी पर भेजा गया जो रानाके मुल्क में नियत था।

रायसिंह और दलपतका बदल जाना।

रायसिंह और उसके बेटे दलपतका नागोर प्रान्तमें प्रतिकूल हो जानेका वृत्तान्त सुनकर बादशाहने राजा जगन्नाथ और मुअज्जुल- मुल्कको हुक्म भेजा कि जल्द वहां जाकर फसाद मिटावें ।

इबराहीम बाबा पठान।

शैख इबराहीम बाबा नामक एक पठान लाहौरके किसी परगने में गुरु शिष्यका पन्थ चला रहा था। बहुतसे पठान उसके पास एकत्र होगये। बादशाहने उसकी दूकान उठा देनेके लिये हुक्म दिया कि शैख इब्राहीमको पकड़कर परवेजके हवाले किया जावे वह उसे चुनारके किले में कैद करे।

मनसबों में बृद्धि ।

६ (२) जमादिउलअव्वल (भादों सुदी ८) रविवारको बयालीस मनसबदारों के मनसब बढ़े और पचीस हजार रुपयेका एक माणिक्य शाहजादे परवेजको दिया गया।

सौरपक्षका तुलादान।

९ (भादों सुदी १२) बुधवारको बादशाहका ३८वां वर्ष सौरपक्ष से लगा। राजमाताके भवन में तोलने के लिये तक लगाया गया। तीन पहर चार घड़ी दिन व्यतीत होने पर बादशाह तुलामें बैठा। उसके प्रत्येक पलड़ेको दीर्घावस्थावाली स्त्रियोंने थामकर आशीर्वाद दिया।


(१) मूलमें १२ भूलसे लिखी है।
(१) मूलमें भूलसे ७ लिखा है।

परवेजका तुलादान।

१३ रज्जव(अगहन बदी १) बुधवारको परवेजकी तुला सौरपक्ष से हुई । उसको १२बार धातुओं और दूसरी वस्तुओंमें तौला गया। प्रत्येक तुला दो मन १८ सेरकी हुई।

कंधार।

उस सेनाके सिवा जो मिरजा गाजीके साथ गई थी बादशाहने तीन हजार सवार एक हजार बरकन्दाज और शाहबेगखां, मुह म्मद अमीन तथा बहादुरखांके साथ भेजे और दो लाख रुपये खर्च के लिये दिये।

हजूरी बखशी।

बादशाहने अबदुर्रज्जाक मामूरोको जो रानाके सूवेसे बुलाया गया था हजूरी बखशी बनाकर हुक्म दिया कि अबुलहसनसे मिल कर काम करें। यह अकबर बादशाहका बांधा हुआ प्रवंध था कि बड़े बड़े कामोंमें दो योग्य आदमी शामिल कर दिये जाते थे। वह लोग अविश्वासके विचारसे नहीं शामिल किये जाते थे वरञ्च इस लिये कि यदि कुछ हरज मरज हो तो सहायता करें।

रामचन्द्र बुन्देला।

बादशाहकी सुनाया गया कि अबदुल्लहखांने दसहरेके दिन अपनी जागीर कालपीसे बुन्देलोंके देशमें धावा मारा। नन्दकुमारके बेटे रामचन्द्रको जो बहुत सरायसे उधरको जङ्गलों में लूट खसोट कर रहा था पकड़ कर कालपीमें लेआया। बादशाहने इसके उपहारमें उसको झंडा, तीन हजारी जात और दो हजार सवारका मनसब दिया।

राजा संग्राम।

सूबे बिहारको अर्जियोंसे, विदित हुआ कि जहांगीर कुलीखांने संग्रामके साथ जो सूबेबिहारके बड़े जमींदारोंमें ३४ हजार सवार और बहुतसे पैदलों का स्वामी था एक विषम मैदानोंमें उसकी दुष्टता और शत्रुताके कारण युद्ध किया। संग्राम गोलीसे मारा गया। उसके आदमी जो मारे जानेसे बचे, भाग गये। बादशाहने इस कामके इनाममें उसका मनसब बढ़ाकर साढ़े चार हजारी जाती और तीन हजार सवारोंका कर दिया।

शिकारकी गिनती।

बादशाहने ३ महीने ६ दिन तक शिकार खेला। ५९१ पशु बंदूकों, चीतों, जाल और हाकेसे शिकार हुए। उनमेंसे १५८बाद- शाहकी बंदूकसे मारे गये। दो बार हाका हुआ। एक बार तो करछाकमें जहां वेगमें भी थीं १५५ पशु बध हुए। दूसरी बार नन्दने में १११। सबका व्योरा यह है--पहाड़ी मेंढ़े १८०, गोरखर नीलगाय ९, पहाड़ी बकरे २९, हरिन आदि ३४८। जोड़ ५६६। कमी रही जोड़में १५।

बादशाहने कई बड़े भारी पशुओंका तोल भी लिखा है। जैसे एक पहाड़ी बकरा २ मन २४ सेर था। एक मेंढ़ा २ मन ३ सेर और एक गोरखर ९ मन १६ सेर निकला।

बादशाह लाहोरमें।

बादशाह शिकारसे लौटकर १६ शव्वाल (फागुन बदी २) बुध- वारको लाहोरमें आया।

दलपत रायसिंहका बेटा।

इन्हीं दिनों में बादशाहको खबर पहुंची कि सादिकखांका बेटा जाहिदखां, शैख अबुलफजलका बेटा अबदुर्रहमान और मोअज्जु लमुल्क वगैरह मनसबदार दलपतका नागोरके परगने में होना सुनकर उसके ऊपर गये। वह भी भागनेका अवसर न पाकर लड़नेको खड़ा हुआ और थोड़ीसी लड़ाई में अपने बहुतसे मनुष्योंको कटाकर माल असबाब सहित भाग निकला।

धायका मरना ।

जीकाद (फागुन व चैत) में कुतुबुद्दीनकी मा जिसने बादशाह को दूध पिलाया था मर गई। बादशाह उसकी लाशका पाया अपने कन्धे पर रखकर कुछ दूर तक गया शोकके मारे कई दिन तक खाना नहीं खाया न कपड़े बदले क्योंकि उसकी गोदमें पला था और उसका मोह सगी मासे अधिक समझता था।

दूसरा नौरोज।

२२ जीकाद (चैत बदी ८) बुधवारको साढ़े तीन घड़ी दिन चढ़े सूर्य्य अपने राजभवन मेषमें आया। बादशाह राजरीतिके अनुसार दौलतखानेको सजाकर सोनेके सिंहासन पर बैठा, अमीरों और मुसाहिबोंको बहुतसा दान दिया।

कन्धार और ईरानका दूत ।

मिरजा गाजो सेना सहित १२ शव्वाल (फागुन सुदी १३) को कन्धारमें पहुंचा। कजलबाश हिलमन्द नदीके तटको जो ५०|६० कोस पर है चला गया। इन लोगोंने अकबर बादशाहका मरना सुनकर फरह और हिरातके हाकिमों और सेवस्तानके मलिकोंके कहनेसे शाहअब्बासके बिना हुकाही इतना साहस किया था। परन्तु जब यह वृत्तान्त शाहको विदित हुआ तो उससे पुरानी प्रीतिकी प्रेरणासे हुसेनबेगको उन लोगोंके रोकनेके लिये भेजा। वह रास्ते में उनको मिला और तिरस्कार करके क्षमा मांगनेके लिए लाहोरमें आया।

शाह वेग जैसा कि हुक्म या कन्धार सरदारखांको सौंपकर दरगाहमें आगया।

रामचन्द्र बुन्देला।

२७ (जोकाद चैत बदी १४) अबदुल्लहखां रामचन्द्र बुन्देलेको लेकर आया। बादशाहने उसके पांवसे बेड़ी काटकर खिलअत पहनाया और राजा बासूको सौंपकर आज्ञा दी कि जमानत लेकर उसको उसके भाई बन्धुओं सहित जो उसके साथ पकड़े आये है छोड़ दे। उसे इतनी कृपाको आशा न थी।

खुर्रमको मनसब ।

२ जिलहज्ज (चैत सुदी४ सं० १६६४) को बादशाहने खुर्रमको तूमान तोग झण्डा और नक्कारा देकर आठ हजारी जात और पांच हजार सवारोंके मनसब पर नियत किया और जागीर देनेको भी, आज्ञा दी।

पीरखां लोदीको सलाबतखां और पुत्र की पदवी।

बादशाहने दौलतखां लोदोके बेटे पीरखांको जो सुलतान दानियालके बेटोंके साथ आया था नक्कारा निशान सलाबतखां उप- नाम और ३ हजारो जात व डेढ़ हजार सवारोंका मनसब प्रदान किया और इसके सिवा पुत्रको पदवी भी दी।

इसके दादा उमरखांके चचा बड़े दौलतखांने सुलतान सिकन्दर लोदीके बेटे इब्राहीम लोदीसे नाराज होकर अपने बेटे दिलावरखां को काबुलमें बाबर बादशाहके पास भेजा था। उसकी सलाह और सहायतासे पञ्जाब जीतकर वहांको हाकिमी दौलतखांकेही पास रहने दी। दौलतखां बूढ़ा आदमी था इस लिये बाबर बादशाह उसको बाप कहता था।

दूसरी बार जब फिर काबुलसे आया तो दौलतखां उसी अवसर पर मर गया। बादशाहने दिलावरखांको खानखानांकी पदवी दी। वह सुलतान इब्राहीमकी लड़ाई में बाबर बादशाह के साथ रहा था और हुमायूं बादशाहकी सेवामें बंगालेकी लड़ाइयों में भी गया था। मुंगेरको लड़ाई में पकड़ा गया। शेरखांने उससे अपनी नौकरी कर लेनेको बहुत कहा। परन्तु उसने स्वीकार नहीं किया और कहा कि तेरे बाप सदा मेरे बड़ोंकी नौकरी करते थे फिर मैं कैसे तेरा नौकर रह सकता है। इस पर शेरखांने रोष करके उसे दीवार में चुनवा दिया।

सलाबतखांका दादा उमरखां जो दिलावरखांका चचेरा भाई था सलेमखांके राज्य में बहुत बढ़ा। पर सलोमाखांके पीछे जो उसके बेटे फीरोजको मुहम्मदखाने मार डाला इससे उमरखां शङित हो कर अपने भाइयों सहित गुजरात में चला गया और वहीं मरा । उसका बेटा दौलतखां मिरजा अबदुर्रहीम खानखानांकी सेवामें रहा। खानखानां उसको सगे भाईके समान मानता था। उसने बहुधा लड़ाइयों में इसी दौलतखांकी सहायतासे फतह पाई थी। जब अकबर बादशाहने खानदेश और आसेरगढ़ विजय करके सुलतान दानियालको दिया तो दाजियालने दौलतखांको खानखानासे अलग करके अपनी सरकारका काम सौंपा। वह वहीं मरा। उसके दो बेटे मुहम्मदखां और पीरखां थे। मुहम्मदखां बापोके पोछे तुरन्त ही मर गया और पीरखांको बादशाहने बुलाकर यह मान सन्मान दिया। उसकी खातिर यहांतक मंजूर थी कि बड़े बड़े अपराध जो किसीको प्रार्थनासे भी माफ न किये जाते थे उसके कहनेसे क्षमा होजाते थे।(१)

बादशाह काबुलमें।

बादशाहका विचार अपने बाप दादाके देश तूरान जीतनेका था और चाहता था कि हिन्दुस्तानको निविघ्न करके सुसज्जित सेना जङ्गी हाथियों और पूरे कोष सहित उधर जाय। इसीलिये परवेज को रानाके ऊपर भेजा था और आप दक्षिण जानेके उद्योगमें था कि खुसरो प्रतिकूल होगया। न राणाकी लड़ाई फतह हुई न दक्षिणको जाना हुआ। खुसरोके पीछे लाहोर आना पड़ा उसके पकड़े जाने और कजलबाशोंको कन्धार छोड़ देनेसे छुटकारा हुआ तो अपने पुराने स्थान काबुलके देखनेको रुचि हुई। तब ७ जिल- हज (चैत सुदी ९) को लाहोरसे कूच करके दिलामेजवागमें जो रावी नदीके उस पार था डेरा किया और वहीं १९ फरवरदीन रविवार (चैत सुदी ११) को मेख(२) संक्रान्तिका उत्सव करके कई आदमियोंके मनसब बढ़ाये और ईरानके दूत हसनवेगको दस ह- जार रुपये दिये।


(१) इसी पीरखांको फिर फरजन्द खानजहांकी भी पदवी मिल गई थी। इसका वृत्तान्त आगे बहुत जगह आवेगा इस लिये यह मविस्तर वर्णन उसके घरानेका किया गया है। यह शाहजहां बादशाहसे बागी होकर जुझारसिंह बुन्देलेके हाथ से मारा गया।

(२) चंडू पञ्चांगमें मेख संक्रान्ति चैत सुदी १० को लिखी है।

[ ७ ]
 

हरनकी कबर पर लेख।

बादशाहने शनिवारको उस बागसे रवाना होकर गांव हरहरपुरमें और मंगल को जहांगीरपुर में डेरा किया। बादशाह के शिकार खेलने के जो स्थान थे उनमें से एक यह गांव भी था। इसकी सीमा में बादशाह के एक प्यारे हरन हंसराज नामक की समाधि पर स्मारकस्तम्भ बनाया गया था जिस पर यह लिखा था--"इस सुरम्य बन से एक हरन नूरुद्दीन जहांगीर बादशाह के जाल में फंसा और एक महीने में पशुपन छोड़कर सब खासेके हरनोंका सरदार हुआ।" बादशाह ने उस हरनके सद्गुणोंसे जो पाले हुए हरनों से लड़ने और जङ्गली हरनोंके शिकार करने में अद्वितीय था यह हुक्म दिया कि कोई इस जंगल के हरनों को बध न करे और उनके मांसको हिन्दू मुसलमान गाय और सूअर के समान अपवित्र समझें। उसके कबरके पत्थर को हरनके आकारमें बनादे। सिकन्दर मुईनको जो उस परगनेका जागीरदार था जहांगीरपुरमें किला बनाने का हुक्म दिया।

गुजरात।

१४ गुरुवार (चैत्र सुदी १५) को बादशाह जण्डाले(१) में और १६ शनिवार को हाफिजाबाद में ठहरा। वहां के करोरी मीर कवा- मुद्दीनने वहां एक मकान बनाया था उसी में निवास किया। वहां से दो कूचमें चिनाब नदी पर पहुंचे। वहां जो पुल बांधा गया था २१ गुरुवारको उसके ऊपर से पार होकर बादशाह गुजरातमें पहुँच गया।

गुजरात नामकी उत्पत्ति।

अकबर बादशाहने कशमीर जाते हुए एक किला चिनाबके तट पर बनाया और गूजरों को जो इस प्रान्तमें चोरी धाड़ा किया


(१) जण्डयाला। करते थे उसमें बसाया। इसीसे उसका नाम गुजरात रखकर अलग परगना बना दिया।

गुजरातसे कूच ।

शुक्रवारको गुजरातसे कूच होकर ५ कोस पर खवासपुरेमें जो शेरखांके गुलाम खवासखांका बसाया हुआ था मुकाम हुआ। वहां से दो कूचों में भटके तट पर पड़ाव हुआ। रातको मेह वायुके प्रकोप और ओले गिरनेसे पुल टूट गया। बादशाहको बेगमों सहित नाव में बैठकर उस नदीसे पार होना पड़ा। फिरसे पुल बांधनेका हुक्म हुआ। एक सप्ताहमें जब पुल बंध गया तो सारी सेना कुशलपूर्वक पार होगई।

भट नदीका निकास।

भट नदी कशमीर में नरनाग नामक एक झरनेसे निकली है। नरनाग कशमीरी बीलीमें सांपको कहते हैं कभी वहां सांप होंगे।

बादशाह लिखता है--"मैंने पिताके समय में दो बार इस झरने को देखा है। कश्मीरसे यह २० कोसके लगभग है। वहां एक अठपहलू चबूतरा २० गज लम्बा और उतनाही चौड़ा बना है। उसके आसपास पत्थरकी कोठरियां और कई गुफाएं तपस्या करने वालोंके योग्य बनी हैं। इस झरनेका पानी ऐसा साफ है कि जो खसखसका एक दाना भी डालें तो तलोमें पहुंचने तक दिखाई देता रहे। इसमें मछलियां बहुत हैं। मैंने सुना था कि इस की थाह नहीं है इस लिये एक पत्थरसे रस्सी बंधवाकर उसमें डलवाई और फिर नपवाई तो मालूम हुआ कि आदमीके कदके डोढ़े से ज्यादा गहरा नहीं है।

"मैंने सिंहासनारूढ़ होनेके पीछे इसके चौतरफ बगीचे पक्के घाट और महल बहुत उत्तम बनवा दिये थे जिनके समान पृथिवीमें फिरनेवाले लोग कहीं कम बताते हैं। यह पानी गांव यमपुरमें पहुंचकर जो शहरसे दो कोस है ज्यादा होजाता है। तमाम काशमीरकी केसर इसी गांवमें होती है। मालूम नहीं कि दुनिया में कहीं इतनी केसर और होती है कि नहीं। हर साल पांचसौ मन केसर हासिलमें आती है। मैं केसर फूलनेके दिनों में पिताके साथ यहां आया हूं। संसारके सारे फूल कोंपल और पत्ते निक- लनेके पीछे खिलते हैं और केसरको सूखी जमीनसे पहले ४ उंगल लम्बी कोपल निकलती है फिर सौसनी रंगके फूल निकलते हैं। उनमें चार पंखड़ियां और चार तंतु नारंगी रंगके कुसुम जैसे एक उंगल लम्बे होते हैं यही केसर है। कहीं एक कोस और कहीं आध कोसमें केसरकी क्यारियां होती हैं। दूरसे बहुत भली लगती हैं। फूल चुनते समय उसकी तीव्र सुगन्धसे पासवालोंके सिर में दर्द होने लगा। मैं नशेमें था और प्याले पोरहा था तो भी मेरे सिरमें दर्द होगया। तब मैंने पशुप्रकृति फूल चुननेवाले काशमी- रियोंसे पूछा कि तुम्हारा क्या हाल है ? जाना गया कि उमर भर में कभी उनका सिर नहीं दुखा।"

"इस झरनेका पानी जिसको काशमीरमें भट कहते हैं दायें बायेंके नालोंके आ मिलनेसे दरिया होजाता है। यह शहरको बीचोंबीच होकर निकलता है। इसकी चौड़ाई बहुधा एक तुर्क्क के टप्पे से अधिक न होगी। इस पानीको मैला और बेमजा होनेसे कोई नहीं पीता है। काशमीरके सब लोग डल नामके तालाबका पानी पीते हैं जो शहरके पास है। भटका पानी इस तालाबमें हो कर बारामूला, पगली और दन्तोरके रास्तेसे पञ्जाबमें जाता है। काशमीरमें नदी नाले और झरने बहुत हैं मगर अच्छा पानी लार के दरेका है जो एक गांव काशमीरके अच्छे स्थानोंमेंसे भटके तट पर है। वहां एक सौके लगभग चिनारके हरे भरे वृक्ष आपसमें मिले खड़े हैं। उनकी छाया इस सारी भूमिको घेरे हुए है जो दूबसे ऐसी हरी होरही है कि उस पर बिछौना बिछाना निर्दयता और फूहरपन है।"

यह गांव सुलतान जैनुलआबिदीनका बसाया हुआ है जिसने ५२ वर्ष काशमौरका राज्य स्वतन्त्रतासे किया था। उसको बड़ा बादशाह कहते थे। उसकी बहुतप्ती करामातें कही जाती हैं काशमीरमें उसकी बहुतसी इमारतें और निशानियां हैं जिनमेसे एक जैनलङ्का तीन कोससे ज्यादा लम्बे और चौड़े उलर नाम सरोवरमें बनी है। उसने इसके तय्यार करने में बहुत परिश्रम किया था। इस सरोवरका सोता गहरा दरियामें है। पहली बार तो बहुत पत्थर नावों में भर भर कर इस जगह पर डाले गये थे जब कुछ मतलब न निकला तो कई हजार नावे पत्थरों सहित डबोई गईं तब कहीं एक टोला १०० गज चौड़ा और इतनाही लम्बा पानीके ऊपर निकला जिसे ऊंचा करके चबूतरा बांधा। उस पर एक तरफको उसने एक भवन ईश्वराराधनके लिये बनाया था। वहां वह नाव में बैठकर आता और भजन करता। कहते हैं कि उसने कई चिल्ले इस जगहमें रहकर खेंचे थे। उसके कपूत पुत्रोंमें से एक कुपात्र उसे सेवाभवनमें अकेला देखकर मारने गया। परन्तु ज्योंही उसपर नजर पड़ी डरकर निकल आया। कुछ देर पीछे रालतान बाहर आया और उसी बेटेको लेकर नावमें बैठा। रास्तेमें कहा कि मैं माला भूल आया हूं तू दूसरी नावमें बैठकर जा और लेआ। लड़का जब वहां गया और बापको बैठा पाया तो लज्जित होकर उसके पांओंमें गिर पड़ा और माफी मांगने लगा। इस प्रकार उस को और भी बहुतसी बातें लोग वर्णन करते हैं और कहते हैं कि उसने परकाय प्रवेशविद्यामें भी खूब अभ्यास किया था। निदान जब बेटोंको राज्यप्राप्त करने में आतुर देखा तो उनसे कहा--मुझे राज छोड़ना क्या प्राण त्याग करना भी सहज है लेकिन मेरे पीछे तुमसे कुछ नहीं होसकेगा। राज्य तुम्हारे पास नहीं रहेगा और तुम थोड़े ही समयमें अपनी करनीका फल पाओगे यह कहकर खाना पीना छोड़ दिया। ४० दिन तक सोया भी नहीं। भक्तों और तपस्वियोंके साथ भगवत भजन करता रहा। चालीसवें दिन परमगतिको प्राप्त हुआ। फिर उसके तीनों बेटे आदमखां हाजीखां और बहरामखां आपसमें लड़े और तीनोंही नष्ट होगये। कश्मीरका राज वहींके साधारण सिपाहियोंमेंसे चक जातिके लोगोंके हाथ लगा।"

"जैनुलआबदीनने उलर तालाबमें जो चबूतरा बनाया था उसके तीन कोनों पर वहांके तीन हाकिमीने मकान बनाये हैं। मगर उनमें से एकभी मजबूतीमें जैनुलआबिदीनको इमारतको नहीं पहुंचता।"

कशमीरकी बहार और खिजां (पतझड़) देखने योग्य है। मैंने खिजांकी ऋतु देखी है जैसी सुनी थी उससे अच्छी पाई। बहार अबतक नहीं देखी है आशा है कि वह भी देखी जावेगी।"



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तीसरा वर्ष।

सन् १०१६ ।

बैशाख सुदी २ संवत् १६६४ से बैशाख सुदी २

संवत् १६६५ तक ।

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१ मुहर्रम १०१५(बैशाख सुदी २) शनिवार(१)को बादशाह भट नदीके तटसे कूच करके तीसरे दिन रूहतासके किलेमें पहुंचा। यह किला शेरखांने उस प्रान्तके दंगई गक्खड़ोंके दबानेके लिये बनाया था। वह तो अधूराही छोड़ मरा था उसके बेटे सलेमरखांने उसे पूरा किया। जो लागत आई वह हरेक पोल पर पत्थरों में खुदा दी है। उससे ज्ञात होता है कि ४० लाख २५ हजार रुपये इसमें लगे थे।

४ मुहर्रम (बैशाख सुदी ५) मंगलको सवा चार कोस चलकर पीलेमें और वहांसे भकरामें पड़ाव हुआ। गक्खड़ोंको बोलीमें पीला टीलेको और भकरा जङ्गलको कहते हैं। पीलेसे भकरा तक सारे रस्तेमें नदी आई जिसके किनारों पर बहुतसे फूल कनेरके फूले हुए थे। बादशाहने अपने साथके सवारों और पैदलोको हुक्म दिया कि सब लोग इन फलोंके गुच्छ सिर पर टांक लें जिसके सिर पर फूल न हो उसकी पगड़ी उतार दें। बादशाह लिखता है-- "अजब बाग लग गया था।"

६ मुहर्रम (बैशाख सुदी ७) गुरुवारको शहर(२) में होकर सिहामें डेरा लगा। इस रस्तेमें पलाश बहुत फूले हुए थे। बाद- शाह उसके चमकीले रंग, बादलोंको छाया और मेंहको फुहारोंसे प्रसन्न मन होकर मदिरा का सेवन करने लगा। उसके आनन्दमें बड़ी मौजसे रस्ता कटा।


(१) मूलमें चन्द्रवार गलत लिखा है।
(२) शहरका नाम नहीं लिखा है। इस स्थानको हथिया भी कहते हैं क्योंकि हाथी नाम एक गक्खड़

का बसाया हुआ है और देशका नाम मारकल्लासे हथिया तक पून्हहार है। इधर कव्वे बहुत कम होते हैं। रुहताससे हथियो तक "भोकयाल" लोग रहते हैं जो गक्खडोंके भाई बन्द हैं।

७ मुहर्रम (बैशाख सुदी ८) शुक्रवारको सवा चार कोस चलकर पक्के में डेरा लगा। यहां एक सराय पक्की ईटोंकी बनी हुई थी इसलिये पक्का नाम हुआ। इम रस्ते में धूल बहुत उड़ती थी गाड़ियां बड़ी कठिनतासे मंजिल पर पहुंची।

८ मुहर्रम (बैशाख सुदी ९) शनिवारको साढ़े चार कोस चल कर कोरमें मुकाम हुआ। इधर वृक्ष बहुत कम थे। कोर गक्खड़ों को बोलीमें दरेको कहते हैं।

९ (बैशाख सुदी १०) रविवारको रावलपिण्डीमें मंजिल थी। यह गांव रावल नामक एक हिन्दूने बसाया था पिण्डी गांवको कहते हैं। इसके पास घाटीमें पानी बहता था और एक झालरेमें इकट्ठा होता था। बादशाहने उस जगह कुछ देर ठहर कर गक्खड़ों से पूछा कि यह पानी कितना गहरा है ? उन्होंने कहा कि इसमें एक मगर रहता है जो कोई जानवर या आदमी पानीमें जाता है वह घायल होकर निकलता है। बादशाहने पहिले एक बकरी डलवाई वह सारे तालाबमें तैरकर आगई। फिर एक फर्राशको हुक्म दिया, वह भी उसी तरह तैरकर साफ निकल आया। गक्खड़ों की बात सही न निकली।

१० (बैशाख सुदी ११) चन्द्रवारको गांव खरबूजेमें मुकाम हुआ यहां गक्खड़ोंने पिछले समयमें एक बुर्ज बनाया था और मुसाफिरों से कर लिया करते थे। उस बुर्जका आकार खरबूजेकासा था इसलिये यह नाम प्रसिद्ध होगया।

११ मंगल (बैशाख सुदी १२) को बादशाह कालापानीमें उतरे यहां एक घाटी मारकल्ला नाम है। कल्ला काफिलेको कहते हैं इस घाटीमें काफिले मारे जाते थे इस कारण ऐसा नाम हुआ। इस जगह गक्खड़ोंके देशकी सीमा समाप्त होती है। बादशाह गक्खड़ों को वास्ते लिखते हैं कि अजब पशुप्रकृतिके लोग हैं आपस में लड़ते झगड़ते रहते हैं। मैंने बहुत चाहा कि इनके झगड़े निबड़ जावें परन्तु कुछ सफलता न हुई।

१२ मुहर्रम (बैशाख सुदी १३) बुधवारको बाबा हसन अब्दाल में पड़ाव पड़ा। यहांसे एक कोस पूर्वको एक नाला है जिसका पानी बहुत बेगसे गिरता है। बादशाह लिखता है--"काबुलके तमाम रस्ते में इसके समान और कोई नाला नहीं है कशमीरके रस्ते में जरूर ऐसे तीन नाले हैं।

एक झरनेके बीच में जहांसे इस नालेका पानी आता है राजा मानसिंहने कुछ मकान बनाये थे। यहां आध आध गज और पाव पाव गजको लम्बी मछलियां बहुत थीं इसलिये बादशाह तीन दिन तक इस सुरम्य स्थानमें रहा। शराब पी और मछलियां पकड़ी। वह लिखता है--"मैंने सफरादामको जिसे हिन्दीमें भंवरजाल कहते हैं अबतक अपने हाथसे पानी में नहीं डाला था क्योंकि उसका डालना सहज नहीं है पर यहां अपने हाथ से डालकर दस बार मछलियां पकड़ी और नाकमें मोती डालकर छोड़दीं।"

"हसनबाबाका समाचार वहांके इतिहास जाननेवाले और रहने वाले कुछ नहीं बता सके यहां जो प्रसिद्ध जगह है वह एक नाला है जो पहाड़ से निकलता है बड़ा साफ सुथरा है। मानो अमीर खुसरोने उमौके वास्ते कहा है "इतना साफ है कि उसके नीचेकी रेतके कण अन्धा भी अंधेरी रातमें गिन सकता है।"

अकबर बादशाहके वजीर खाजा शमसुद्दीन खाफीने यहां चबूतरा, कुण्ड और अपनी कबरके वास्ते एक गुंबद बनाया था। कुण्ड में पानी इकट्ठा होकर बागों और खेतों में जाता था। पर मरनेके पीछे यह गुंबद ख्वाजाके कुछ काम न आया। हकीम अबुलफतह गीलानी और हकीम हमाम दोनों भाई जो अकबर बादशाहके सभासद थे मरनेके पीछे उसी बादशाहकी आज्ञासे यहां गाड़े गये।

१५ (जेठ बदी १) को अमरोहीमें मुकाम हुआ। अजब हरा भरा स्थान था। यहां ७|८ सहस्र घर "खर" और दिलाजाक जातिके रहते थे और भांति भांतिका अनाचार और लूट मार करते थे इसलिये बादशाहने वह प्रांत और अटककी सरकार जैनखां कोका के बेटे जफरखांको सौंपकर हुक्म दिया कि हमारे लौटने तक तमाम दिलाजाकोंको यहांसे उठाकर लाहोरकी तरफ चलता करें और खरों के मुखियों को पकड़कर कैद रखें।

१७ (जेठ बदी ३) सोमवारको कूच हुआ। बादशाह एक मंजिल बीचमें रहकर नीलाबके किनारे किलें अटकमें पहुंचा। यह सुदृढ़ दुर्ग अकबर बादशाहका बनाया हुआ है। अटक पर १८ नावोंका पुल बांधा गया था परन्तु काबुलमें इतने लशकरकी समाई न देख कर बादशाहने बखशियोंको हुक्म दिया कि पास रहनेवालोंके सिवा और किसीको अटकसे न उतरने दें लशकर अटकके किले में रहे।

१९ (जेठ बदी ५) बुधवारको बादशाह शाहजादों और निज सेवकों सहित जाले पर सवार होकर नीलाबसे उतरा और कामा नदीके किनारे ठहरा। उसका पानी जलालाबादके आगे बहता है।

जाला एक प्रकारकी नाव है। जो घांस और बांसोंसे बनाई जाती है और उसके नीचे मशकें हवासे भरकर बांध दीजाती हैं उस तरफ उसको शाल कहते थे। जिन नदियोंको तहमें पत्थर रहते हैं उनमें यह बड़ी काम आती थी।

अबदुलरज्जाक मामूरी और अहदियोंके बखशी विहारीदासको हुक्म हुआ कि जिन लोगोंकी जफरखांके साथ जानेको कहा गया है वह तय्यार कारके भेजे जावें।

बादशाह फिर एक मंजिल बीच में देकर बाड़ेमें पहुंचा, सरायमें ठहरा। यहां कामा नदीके उस पार जैनखां कोकाने जब वह यूसूफजई पठानोंको दण्ड देनेके वास्ते इधर आया था पचास हजार रुपये लगाकर एक किला बनाया था। उसका नाम नया शहर रखा था हुमायूं और अकबर बादशाह यहां भड़ियोंका शिकार खेला करते थे।

२५ (जेठ बदी १२) मंगलवार(१) को दौलताबादकी सरायमें डेरे हुए। यहां परशावर (पिशौर) का जागीरदार अहमदबेग यूसुफा- जई और गोरियाखैलके मलिकों (चौधरियों)को लेकर आया। उससे इस जिलेका बन्दोबस्त बादशाहको मरजीके मुवाफिक नहीं हुआ था इसलिये बादशाहने उसका काम छीनकर शेरखां अफगानको दिया।

२६ (जेठ बदी १३) बुधवारको परशावरके पास सरदारखांके बागसे डरे हुए। यहां इस प्रान्तके जोगियोंका प्रसिद्ध तीर्थ गोरख खड़ी था बादशाह इस विचारले कि कोई जोगी मिले तो उसके सतसङ्गसे लाभ उठावे वहां गया परन्तु कोई न मिला।

२७ (जेठ बदी १४) गुरुवारको जमरोदमें और शुक्रको खैबर- घाटेके पार अलीम सजिदमें और शनिको मारपेच घाटीसे उतरकर गरीबखानेमें बादशाहको मुकाम हुए। यहां जलालाबादका जागी- रदार कासमतगीन जर्दालू लाया। बादशाह लिखता है--कशमीर के जर्दालूसे अच्छे नहीं थे।" काबुलसे "केलास" भी आये जिनका नाम अकबर बादशाहने शाहआलू रख दिया था। क्योंकि केलास नाम छिपकलीका था।

२ सफर (जेठ सुदी ४) मंगलवारको पसावलके मैदानमें नदीके तट पर डर हुए। नदीसे उधर एक पहाड़ था जिसको हरयाली और वृक्ष नहीं होने से "कोहेबेदौलत" कहते थे बादशाह लिखता है कि मैंने अपने बापसे सुना है कि ऐसे पहाड़ों में सोनेकी खानें होती हैं।

आसिफखांका वजीर होना।

३ सफर (जेठ सुदी ५) बुधवारको बादशाहने अमीरुलउमराकी बीमारी बढ़ जानसे जिसे जिले लाहोरमें छोड़ आया था आसिफखां


(१) मूलमें भूलसे गुरुवार लिखा है। को भारी सिरोपाव और जड़ाऊ दवात कलम देकर वजीरका काम सौंपा। २८ वर्ष पहले अकबर बादशाहने भी इसको इसी स्थान पर मीरबखशीका पद प्रदान किया था। इसने चालीस हजार रुपयेका एक माणिक्य वजीर होनेका सलाम करते समय बादशाह को भेट किया। ख्वाजा अबुलहसन बखशी भी उसके शामिल रखा गया।

नदीमें एक सफेद पत्थर पड़ा था बादशाहने उसका हाथीं बनवाकर अपना नाम उसको छाती पर खुदवा दिया।(१)

विक्रमाजीतके बेटे कल्याणको दण्ड।

इसी दिन राजा विक्रमाजीतका बेटा कल्याण गुजरातसे आया उस पर कई दोष लगाये गये थे जिनमेंसे एक यह भी था कि एक मुसलमानी कसबनको घर में डालकर भेद छुपाने के लिये उसके मा बापको मारा और अपने घरमें गाड़ दिया। बादशाहने निर्णय करके उसकी जीभ कटवा डाली और उमरकैद करके हुक्म दिया कि कुत्ते पालनेवालों और हलालखोरोंके साथ खाना खाता रहे।

बुधको सुरखाबमें और वहांसे चलकर जगदलगमें डेरे हुए। यहां बलूतकी लकड़ी बहुत थी और रस्ते में पत्थर भी बहुत आये।

१२ (जेठ सुदी १३) शुक्रवारको आवतारीकमें १४ को यूरत बादशाहमें १५ रविवारको छोटी काबुलमें मुकाम हुआ। यहां शाह आलू गुलबहार नामक स्थानसे बहुत बढ़िया आये थे बादशाह ने १०० के लगभग खाये और कुछ अनोखे फूल भी देखे जो अबतक देखने में नहीं आये थे। "मीरमूंशा" नामक एक जानवर भी भेटमें आया जिसको आकृति गिलहरीकीसी थी। वह जिस घरमें रहता था चूहे वहां नहीं आते थे रंग काला और सफेद था। नेवले से बड़ा था सूरत बिल्लीकीसी थी। बादशाहने चित्रकारोंसे उसका


(१) ऐसाही एक बड़ा हाथी अजमेरमें भी जहांगीर बादशाहका मदार दरवाजेके बाहर एक मन्दिरमें है जिसको हाथी भाटा कहते हैं। चित्र खिंचवाया। अहमदबेगखां दो हजार बरकन्दाजोंसे बंगशके पठानों को दण्ड देने के लिये नियत हुआ। अबदुर्रज्जाक मामूरीको जो अटकमें था हुक्म लिखा गया कि दो लाख रुपये राजा विक्रा- माजीतने बेटे मोहनदासके साथ खर्चके लिये भेजदे।

शैख अबुलफजलके बेटे शेख अबदुर्रहमानको दो हजारी जात, डेढ़ हजार सवारका मनसब और अफजलखांका खिताब दिया गया।

बाग शहरआरा।

१३ (आषाढ़ बदी ५) गुरुवारको बादशाह पुलेमस्तांसे बाग शहर आरा तक दोनोंतरफ रुपये अठन्नियां चवन्नियां लुटाता गया। बागकी शोभा देखकर शराब पीने लगा। बीच में चारगज चौड़ी एक नदी बहती थी। बादशाहने मौजमें अपने मित्रों और समान वय वालोंसे उसके फलांगनेको कहा। फलांगने में कई एक नदी में गिर पड़े। बादशाह फलांग गया तो भी उसको यह लिखना पड़ा कि जिस फुरतीसे ३० वर्षको अवस्था में अपने बापके सामने कूदा था अब ४० वर्षको अवस्था में नहीं कूद सकता हूं।

फिर पैदल सात बागोंमें फिरा जो काबुलमें मुख्य थे। पके हुए शाह आलू वृक्षों में ऐसे भले लगते थे कि मानो लाल और माणिक्य लटक रहे हैं।"

इन सातों बागोंमेंसे शहरआरा बाग तो बाबर बादशाहकी चची और मिरजा अबूसईदकी बेटी शहर बानू बेगमका था। और एक बाग अकबर बादशाहकी बड़ी मा बिग्गा बेगमका और एक बादशाहको सगी मा मरयममकानीका बनाया हुआ था। पर शहरआरा बाग काबुलके सब बागों में श्रेष्ठ था। उसमें पीछेसे भी सुधार होता रहता था। बादशाह लिखता है--उसकी सरसाई यहां तक है कि जूता पहने उसके आंगन में पांव रखना शुद्ध प्रकृति और सुसभ्य बुद्धिसे दूर है।

बादशाहने उसके पास धरती मोल लेकर और उसमें पानी

[ ८ ]
 

निकालकर एक नया बाग लगानेका हुक्म दिया जिसका जहांआरा

नाम रखा।

बादशाह विशेषकर शहरआरा बागमें कभी सखाओं और कभी बेगमोंके साथ रहा करता था। रातोंको काबुलके मौलवियों और विद्यार्थियोंसे कहता था कि बगरा(१) पकानेको सभा सजाकर आजाशक(२) नाच नांचें। फिर उन लोगोंको सिरोपाव देकर एक हजार रुपये नकद भी आपसमें बांट लेनेको दिये।

बादशाहने हुक्म देदिया था कि जबतक मैं काबुलमें रइं प्रति गुरुवार को एक हजार रुपये गरीबों और कङ्गालोंको बांटे जावें।

फिर बादशाहने चिनारके वृक्षोंके बीचमें गज भर लम्बा और पौन गज चौड़ा खेत पाषाण खड़ा कराकर उसपर एक तरफ अपना नाम और अपनी पीढ़ियां अमीर तैमूर तक खुदवादीं और दूसरी तरफ यह लिखाया कि हमने काबुलके सब जकात और टैक्स माफ कर दिये। हमारे बेटों पोतोंमेंसे जो कोई उन करोंको लेगा वह ईश्वरक कोपमें पड़ेगा। बादशाहके काबुलमें आनेकी तारीख जो १३ सफर गुरुवार थी वही इस पत्थर पर खोदी गई।

यह टैक्स प्राचीन समयसे लिये जाते थे। बादशाहके आने पर माफ होजानसे प्रजा बड़ी प्रसन्न हुई।

गजनीन और उसके आसपासके जो मलिक और खान आये थे उनको सिरोपाव मिले और जो उनके काम थे कर दिये गये।

काबुलके दक्षिणको एक पहाड़में एक पत्थरका चबूतरा तख्तशाहके नामसे प्रसिद्ध था। उस पर बैठकर बाबर बादशाह मद्य पिया करता और वहीं एक कुण्ड खुदा हुआ था जिसमें दो मन मदिरा हिन्दुस्थानके तौलको आती थी। चबूतरेकी दीवार पर


(१) आईन अकबरींमें लिखा है कि बगरा एक प्रकारका पुलाव होता था जो मांस बेसन घी खांड और सिरकेसे बनाया जाता था।

(२) इस नाचका अर्थ वर्णन सहित किसी कोषमें न मिला। यह लेख खुदा था कि यह सिंहासन जहीरूद्दीन मुहम्मदबाबर बादशाहका है जिसका राज्य चिरस्थायी रहे। सन् ९१४ (सं० १५६१)

बादशाहने इसके बराबर एक सिंहासन, और वैसाही एक कुण्ड पत्थर कटवाकर बनवाया और वहां अपना और अमीर तैमर का नाम खुदवा दिया।

बादशाह जिस दिन इस सिंहासन पर बैठा था। उस दिन दोनो कुण्डों में मदिरा भरवा दी गई थी। जो नौकर वहां हाजिर थे उनको पीनेका हुक्म देदिया था।

गजनीनके एक शाइरने बादशाहके काबुलमें आनेकी यह तारीख कही थी।

बादशाहे बलाद हफ्त इकलीम (१)

अर्थात् सात विलायतोंके शहरोंका बादशाह।

बादशाहने उसको इनाम और सिरोपाव देकर यह तारीख भी उसी सिंहासनके पास दीवार पर खुदवा दी।

पचास हजार रुपये शाहजादे परवेजको दिये गये। वजीरुलमुल्क मीरबखशी हुआ और कुलीचखांके नाम हुक्म लिखा गया कि एक लाख १७ हजार रुपये लाहोरके खजानेसे कन्धारके लशकरमें खर्चके वास्ते भेजदे।

चकरीका रईस एक जङ्गको तीरसे मारकर लाया यह जानवर बादशाहने तबतक नहीं देखा था। लिखा है कि पहाड़ी बकरे में और इसमें एक सींगका फर्क है। बकरेका सींग सीधा होता है और जंगका टेढ़ा बलदा।

वाकेआत बाबरी।

काबुलके प्रसंगसे बादशाह वाकेआतबाबरीको पढ़ा करता था। वह बाबर बादशाहके हाथकी लिखी हुई थी। उसके ३२ पृष्ट बादशाहने अपने हाथसे लिखे और उनके नीचे तुरकी बोलीमें


(१) इसमें सन् १०१८ निकलते हैं और चाहिये १०९६। समाप्ति लिखी। जिससे जाना जावे कि यह ३२ पृष्ठ उसके लिखे हुए हैं।

बादशाह लिखता है--मैं हिन्दुस्थानमें बड़ा हुआ हूं तो भी तुरकी भाषा बोलने और लिखने में असमर्थ नहीं हूं। (१)

काबुल में पर्य्यटन।

२५ (अषाढ़ बदी) को बादशाह बेगमों सहित जलगाह सफेदसंगके देखनेको गया। जो अति सुरम्य और प्रफुल्लित बन था।

२६ (अषाढ़ बदी १३) शुक्रवारको बाबर बादशाहकी जियारत करने गया बहुतसा सीरा रोटी और रुपये पितृगणको पुण्य पहुं- चानेके लिये फकोरोंको बांटे। मिरजा, हिन्दालकी बेटी रूकैया सुलतान बेगमने अबतक बापकी जियारत नहीं की थी। अब वह भी करके कृतार्थ हुई। मिरजा हिन्दालकी कबर भी वहीं थी।

३ रबीउलअब्बल (अषाढ़ सुदी ४) गुरुवारकों शाहजादीं और अमीरोंने खासेके घोड़े दौड़ाये। एक अरबी बछेरा जो दक्षिणके शाह आदिलखानने भेजा था सब घोडोंसे अच्छा दौड़ा।

हजारेके सरदार मिरजा संजर और मिरजा बाशीके बेटे हाजिर हुए जंग नाम जानवरोंको तीरोंसे मारकर लाये थे वैसे बड़े जंग बादशाहने नहीं देखे थे।

बुन्देले।

वरसिंह देव बुन्देलेकी अरजी आई कि मैंने अपने फसादी भतीजेको पकड़ लिया है तथा उसके कई आदमी मार डाले हैं। बादशाहने आज्ञादी कि उसे गवालियरके किलेमें कैद रखने के लिये भेजदो।

खुसरोका छूटना।

१२ (असाढ़ सुदी १३) को बादशाहने खुसरोको बुलाकर


(१) वाकेआत बाबरी भी तुरकीमें है। शहरआरा बाग देखनेको लिये उसके पांवसे बेड़ी खुलवा दी यह काम पितृप्रेमसे हुआ।

अटकका किला अहमदबेगसे हटाकर जफरखांको दिया गया और ताजखांको जो बंगश जातिके पठानों पर भेजा गया था पचास हजार रुपये दिये गये।

मानसिंह।

राजा मानसिंहके पोते महासिंहको भी बादशाहने वंगशकी मुहिम पर भेजा और राजा रामदासको उसका शिक्षक बनाय ।

वर्षगांठकी तुला।

१८ शुजवाद (सावन बदी ४) को बादशाहकी ४० वीं सौम वर्षगांठका तुलादान दोपहर पीछे हुआ। उसमेंसे दस हजार रुपये गरीबोंको बांटे गये।

शाह ईरान।

मरदारखां हाकिम कन्धारकी अरजी हजारा और गजनीनके रास्तेसे १२ दिनमें पहुंची। लिखा था कि शाह ईरानका एलची जो दरगाहमें हाजिर होनेके लिये आता है हजारमें पहुंच गया है और शाहने अपने सेवकोंको लिखा है कि कौन दराचारी बिना हुक्म कन्धार पर गया है जो नहीं जानता है कि हमारे और हज- रत अमीर तैमूर और हुमायूं बादशाहको सन्तानमें क्या सम्बन्ध है। जो वह देश ले भी लिया हो तो मेरे भाई जहांगीर बाद- शाहके नोकरोंको देकर लौट आवे।

राना सगर व राय मनोहर।

१९ (सावन बदी ५) शनिवारको रानी शंकर (सगर) का मन- सब अढ़ाई हजारी जात दो हजार सवारका, और राय मनोहरका एक हजारी ६०० सवारोंका होगया।

कुतुबुद्दीन कोकाका मारा जाना।

२७ रविवार (सावन बदी १४) की शामको इसलामखांकी अरजी जहांगीर कुलीखांको पत्र सहित जो बिहारसे आया था आगरसे दरबार में पहुंची। उसमें लिखा था कि ३ सफर (जेठ सुदी ५) को पहर दिन चढ़े वर्दवानमें अलीकुलीने कुतुबुद्दीनखांको जखमी किया जिससे वह आधीरातको मर गया। यह अलीकुली ईरान के शाह इसमाइलका रसोइया था। शाहके मरे पीछे कुटिलप्रकृति मे कन्धारमें भाग आया। वहांसे मुलतानमें पहुंचकर खानखानां से मिला जबकि वह ठठ्ठे के ऊपर जाता था। उसने अलीकुलीखांको बादशाही चाकरी में रख लिया। फिर जब अकबर बादशाह दक्षिण जीतनेको जाता था और जहांगीर बादशाहको रानाके ऊयर जानेका हुक्म दिया था तब वह जहांगीसे मिला। जहांगीरने तब तो उसे शेरअफगनका खिताब दिया था और राजसिंहासन पर बैठने के पीछे बंगालेमें जागीर देकर भेज दिया। वहांसे लिखा आया कि ऐसे दुष्टको इस देशमें रखना उचित नहीं है। इस पर कुतुबुद्दीनखांको लिखा गया कि अलीकुलोखांको हजूरमें भेजे। और जो वह दंगा करे तो दण्ड दे। कुतुबुद्दीनखां तुरन्त उसकी जागीर वर्दवानमें गया। वह दो पुरुषोंसे अगवानीको आया तो खानके नौकरोंने उसे घेर लिया। तब उसने खानसे कहा कि तेरी यह क्या चाल बदल गई है? खानने अपने आदमियोंको अलगकर दिया और बादशाही हुक्म समझानेके लिये अकेला उसके साथ हो गया। उसने तलवार निकालकर दो तीन घाव खानके लगाये और अम्बाखां काशमीरीको भी जो सहायताके लिये आया था जखमी किया। फिर तो कुतुबुद्दीनखांके चाकरोंने उसको भी मार डाला। अम्बाखां उसी जगह मर गया और कुतुबुद्दीनखां चार पहर पौछे अपने डेरेमें मरा।

बादशाह लिखता है--"कुतुबुद्दीनखां कोका प्रियपुत्र भाई और परम मित्रकी जगह था। पर ईश्वरको इच्छा पर कुछ वश नहीं लाचार सन्तोष किया। पिताको मृत्यु के पीछे कोका और

उसको माताके दुःखके समान और दुःख मुझ पर नहीं पड़ा।

खुर्रमका तुलादान।

२(१) रबीउस्मानी (सावन सुदी ३) शुक्रवारको बादशाह खर्रम के डेरे पर जो "ओरने" बागमें था गया। अकबर बादशाह आप तो सालमें दो बार अपने जन्मकी मौर और सौम तिथिको तुला दान करता था और शारजादोंको एक बार उनके जन्मकी सौर- तिथिको तोलता था। परन्तु इस दिन जो सौमपक्षका सोलहवां साल खुर्रमको लगा था उसको ज्योतिषियोंनि भारी बताया था और वह कुछ बीमार भी था इस लिये बादशाहने उसको सोने चांदी और धातु आदि पदार्थो में विधिपूर्वक तौलकर वह सब माल पुण्य करा दिया।

काबुलसे कूच।

४(२) रविउलअब्बल (सावन सुदी५) को बादशाहने हिन्दुस्थान जानेके लिये बाहर डेरे कराये और कुछ दिन पीछे आप भी काबुल से "जलगाह संगसफेद" में आगया। उसने काबुलके मेवों और विशेष कर साहबी और किशमिशी जातिके अंगूरों, शाह आलू, जर्द आलू और शफतालुको बहुत प्रशंसा की है। अपने चचाके लगाये हुए जर्द आलूको सबसे अच्छा बताया है। एक बड़े फलको तोलमें २५ रुपये भरका कहा है। अन्त में लिखा है कि काबुली मेवोंके सरस होने पर भी मेरी रुचि में उनमेंसे एक भी आमके स्वादको नहीं पहुं- चता है।

एक समय बादशाहने चलते चलते देखा कि अलीमसजिद और गरीबखानेके पास एक बड़ी मकड़ीने जो केकड़ेके बराबर थी डेढ़ गज लम्बे सांपको गला पकड़कर अधमरा कर रखा था। बादशाह यह तमाशा देखनेको ठहर गया। थोडी देर में सांप मर गया।


(१) मूलमें ६ गलत लिखी है पृ० ५५।

(२) मूलमें ४ जमादिउलअब्वल गलत है रवीउस्मानी चाहिये

पृष्ठ ५५।

पुरानी लोथ।

बादशाहने काबुलमें सुना था कि सुलतान महमूद गजनवीके समयमें जुहाक और बामियां स्थानोंके बीच में ख्वाजा याकूत नाम एक मनुष्य मरा था जो एक गुफामें गडा हुआ है। उसका शरीर अबतक नहीं गला है।" इस पर आश्चर्य्य करके अपने भरोसके एक समाचार लिखनेवाले और एक जर्राहको बादशाहने भेजा। उन्होंने वापिस आकर निवेदन किया कि उसका आधाअंग जो जमीन से लगा हुआ है गल गया है और आधा जो नहीं लगा है वैसाही बना है। हाथोंके नख और बाल नहीं गिरे हैं एक ओरको डाढ़ी मोंछ भी ठीक है। गुफाके द्वार पर तिथि भी खुदी हुई है। उससे सुलतान महमूदके पहिले उमका मरना प्रगट होता है। पर इस बातको कोई यथार्थरूपसे नहीं जानता।

मिरजाहुसैन।

१५ (भादों बदी २) गुरुवार को कहमर्दक हाकिम अरसलांबेगने जो तूरानके स्वामी वलीमुहम्मदखांका नौकर था हाजिर होकर सलाम किया और एक मनुष्यने मिरजा शाहरुखके बेटे मिरजाहुसैन की अरजी लाकर दी और प्याजी रङ्गका एक लाल भेट किया जो १०० का था। अर्जोंमें लिखा था कि यदि कुछ फौज मिले तो बदखशांको उजबकोंसे फतह करलूं। परन्तु बादशाह कभीसे सुना करता था कि मिरजाहुसैनको उजबकोंने मारडाला है इसलिये जवाब में लिखा कि जो तू वास्तव में शाहरुखका बेटा है तो सेवामें उपस्थित हो फिर फौज देकर तुझे बदखशांको बिदा करेंगे।

बंगश

दो लाख रुपये उस सेनाकी सहायताके लिये भेजे गये जो महासिंह और रामदासके साथ वंगशके सरकश पठानों पर भेजी गई थी।

बालाहिसार।

२२ (भादों बदी ९) गुरुवारको बादशाहने बालाहिसार(१) के


(१) काबलके किलेका नाम है। मकानोंमेंसे किसीको जो अपने रहने योग्य न देखकर हुक्म दिया कि उनको गिराकर बादशाहोंकेमे राजभवन और दीवानखाने बनावें।

अस्तालिफ नाम खानसे आये हुए शफतालुओंमें से एका तोलमें ६३ रुपये अकबरी (६० तोले) का हुआ उसको गुठलीका गूदा भी मीठा था।

शाहरुखकी नृत्यु।

२५ (भादों बदी १२) को मालवेसे मिरजा शाहरुखके मरनेकी खबर आई। यह बदखशांका अमीर था। २५ वर्ष पहिले अकबर बादशाहके समयमें आया था और जबसे अबतक विनयपूर्वक सेवा करता रहा था। उसके चार बेटे हसन, हुसैन, सुलतानमिरजा और बदीउज्जमानमिरजा थे। हुसैन तो बुरहानपुरसे भागकर ईरानकी राह से बदखशांको चला गया था। बदखशियोंने उसे अपना स्वामी बना कर बहुतसा अंश अपने देशका उजबकीसे छीन लिया था। उजबकों ने उसको मारडाला फिर बदखशियोंने दूसरे आदमीको मिरजा हुसैनके नामसे अपना मुखिया बना लिया। इस प्रकार कई मनुष्य मिरजाहुसैन बने मारे गये और फिर जीगये। उनमेंसे एक मिरजा हुसैनको अर्जीका आना ऊपर लिखा गया है।

सुलतान मिरजाको बादशाहने अपने पास रखकर बेटोंके समान पाला था राज्याभिषेकके पीछे दो हजारो जात और हजार सवारोंका मनसब दिया था। उसीको अब मालवे भेजा और बदीउज्जमानको हजारी जात और ५०० सवारोंका मनसब दिया।

हाकेका शिकार।

बादशाहने काबुलमें आने के पीछे हाकेका शिकार नाही खेला था इसलिये अब फर्क नामक पहाड़को जो काबुलसे ७ कोस पर है घिरवाकर ४ जमादिउलअव्बल (भादों सुदी ६) मंगलवार को वहां गया। सौ हरन निकले उनससे ५० शिकार हुए और पांच हजार रुपये हाकेवालोंको इनाम दिये गये। शैख अबुलफजलके बेटे अबदुर्रहमानका मनसब बढ़कर दो हजारी जात और दो हजार सवारका होगया।

बाबर बादशाहका सिंहासन।

६ (भादों सुदी ८) गुरुवारको जिसके तड़केही काबुलसे कूच होनेवाला था बादशाह ईदको चान्दरातके समान पुनीत समझकर बाबर बादशाहके सिंहासनके निकट गया और वहां जो पत्थरमें कुण्ड खोदा गया था उसको मदिरासे भरकर सभासदोंको प्याले दिये। वह दिन बहुत आनन्द और हर्ष में बीता।

काबुलसे कूच।

७ (भादों सुदी ९) शुक्रवारको एक पहर दिन चढ़े बादशाह बाग शहरआरासे "जलगाह संगसफेद" तक दोनों हाथोंसे द्रव्य और चरन लुटाता गया।

११ (भादों सुदी १३) मंगलवारको एक कोस पर गिरामीमें और १८ मंगलवार (आश्विन वदी ६) को २॥ कोस पर नचाकमें डेरे हुए। यहां फिर हाकेका शिकार हुआ ११२ पशु मारे गये। जिनमें जङ्ग जातिके २४ हरन थे जो अबतक बादशाहने नहीं देखे थे। एक जङ्ग तोलमें २ मन १० सेरका हुआ और इतना भारी होकर भी ऐसा दौड़ता था कि १०|१२ कुत्ते, दौड़ते दौड़ते थक गये थे तब कहीं बड़ी मुशकिलोसे उसे पकड़ सके थे।

खुसरोका फिर कैद होना।

बादशाहने खुर्रमसे यह सुनकर कि खुसरो उसके प्राण लेनेके विचारमें है उसको हकीम अबुलफतहके बेटे फतहुल्लह सहित कैद कर दिया। गयासुद्दीनअली, आसिफखांके बेटे नूरुद्दीन और एतमादुद्दौलाके बेटे शरीफखांको जो उससे मिले हुऐ थे मरवा डाला।

हकीम मुजफ्फर।

२२ जमादिउलअव्वल (आश्विन बदी १०) शनिवारको हकीम मुजफफर अरन्दस्तानीके मरनेकी खबर पहुंची। यह अपनेको यूनानी हकीम जालीनूसको वंशमें बताता था। ईरानके शाह तुह- मासने इसके विषय में कहा था कि अच्छा हकीम है आओ हम सब बीमार होजावें।

२४ जमादिउलअब्बल (आश्विन बदी १२) को बागवफा और नीमलेको बीच में शिकार हुआ।

२ जमादिउस्मानी (आश्विन सुदी ३) को बागवफामें डेरे हुए।

अरसलांवेग उजबक जो अबदुल मोमिनखांके अमीरोंमेंसे किले काहमर्दका हाकिम था किला छोड़कर बादशाहको सेवामें हाजिर आया।

४ जमादिउत्सानी (आश्विन सुदी ५) को जलालाबादके हाकिम इज्जतखांको हाकेके शिकारका बन्दोबस्त करनेके वास्ते हुक्म दिया गया। तीन सौ जानवर शिकार हुए। गर्मी बहुत होने से अच्छे अच्छे शिकारी कुत्ते मर गये।

१२ (आश्विन सुदी १४) गुरुवार(१) को सराय अकोरामें डेरे हुए। शाह बेगखां हाकिम कन्धारने आकर मुजरा किया।

१४ शनिवार(२) (कार्त्तिक बदी १) को बादशाहने उड़ीसेकी सूबेदारी दी।

मिरजा बदीउज्जमान।

इसी दिनको यह खबर आई कि मिरजा शाह रूखका बेटा बदीउज्जमान मालवेसे भागकर रानाके पास जाता था परन्तु वहांके हाकिम अबदुल्लहखांने पीछा करके पकड़ लिया और उसके कई साथियोंको मार डाला। बादशाहने हुक्म दिया कि एहतमाम खां आगरेसे जाकर मिरजाको हजूरमें ले आवे ।

तूरान।

२५ (कार्तिक बदी १२) को खबर पहुंची कि वलीमुहम्मदखांके


(१) मूलमें शनि भूलसे लिखा है।

(२) मूलमें चन्द्र भूलसे लिखा है। भतीजे इमामकुलीखांन मिरजा शाहरूखके बेटे हुसैनको मार डाला है। बादशाह लिखता है कि सिरजा शाहरूखके बेटोंको मारना मानो दैत्यका काम होगया है जैसा कि कहते हैं कि एक दैत्यके लोइको हरेक बून्द से दूसरा दैत्य उत्पन्न होजाता है।

दिलाजाका और गक्खड़।

जफरखां दिलाजाक पठानों और गक्खड़ोंके एक लाख घरोंको, जो अटक और व्यास नदीके बीचमें उपद्रव मचाया करते थे लाहोर की तरफ कूच कराकर धक्के के डेरों में बादशाहके पास आगया।

अकबर बादशाहका तुलादान।

रज्जबके लगतेही जो अकबर बादशाहके जन्मका महीना है बादशाहने एक लाख रुपये जो उनके सौर और सौम पक्षोंके दोनों तुलादानोके थे आगरा दिल्ली लाहोर और गुजरात आदि १२ शहरों में उनकी यात्माको प्रसन्न करनेके लिये पुण्यार्थ बांटनेको भेज दिये।

पदवी।

३ रज्जब (कार्तिक सुदी ५) गुरुवारको बादशाहने खानजहांकी पदवी सलाबतखांको और खानदौरांको काबुलके सुबेदार शाहबेग को, हाथी घोड़े और सिरोपाव सहित दी। काबुल, तिराह, बंगशको तमाम सरकार और खात बिजोरको विलायत खानदौरांको जागीर में लगाई और पठानों के दबानेके वास्ते फौजदारी भी उस प्रान्तको उसीको प्रदान की। रामदास कछवाहा भी उन्हीं परगनों में जागीर पाकर इस खूबेके सहायकोंमें नियत हुआ।

मोटे राजाके बेटे किशनसिंहका मनसब हजारी जात और ५०० सवारोंका होगया।

शिकार।

बादशाहने रास्ते में कई जगह लाल हरनों का शिकार खेला जो बाबाहसन अब्दाल रावलपिण्डी कहतास करछाक और नन्दनेके सिवा कहीं नहीं होते हैं। कुछ जीते हरन भी पकड़े कि उनसे उन जातिके बच्चे पैदा कराये जावें। इन शिकारोंसें बेगमें भी शामिल थीं।

२५ (अगहन बदी १२) को रूहतासकी तलहटीमें उलालखां गक्खड़को चचा शम्सहांकी साधुताका बखान सुनकर बादशाह उसके घर गये। दो हजार रुपये उसको और इतनेही उसकी स्त्रियों बालकोंको देकर पांच आबाद गांव उसकी जीविकाके वास्ते दिये।

६ शावान (अगहन सुदी ९) को अमीरुलउमरा अच्छा होकर जण्डाले(१) में वादशाहके पास हाजिर हुआ। सब मुसलमान हकीम और हिन्दू वैद्य कह चुके थे कि वह न बचेगा। उसे अच्छा देखकर बादशाहको बहुत हर्ष हुआ।

राय रायसिंह।

राय रायसिंह जो बड़े राजपूत अमीरोंमेंसे था अमीरूलउमरा को सुफारिशसे दरबार में उपस्थित हुआ। बादशाहने उसके अप- राध क्षमा करके उसका अगला मनसब जागीर सहित बहाल कर दिया। जब बादशाह खुसरोके पीछे गया था तो रायसिंह पर भरोसाकरके उसे आगरेमें छोड़ा था और कहा था कि महलके लोग बुलाये जावें तो उनके साथ आवे। परन्तु जब ऐसा अवसर आया तो दो तीन मंजिल तक साथ रहकार मथुराले अपने देशको चला गया और देखने लगा कि यह उपद्रव जो उठा है कहांतक पौलता है। कुछ दिनों पीछे जब खुसरो पकाड़ा गया तो रायसिंह बहुत लज्जित हुआ और अमीरुलउमराका वसीला पकड़ा।

बादशाह लाहोरमें।

१२ (अगहन सुदी १५) चन्द्रवारको बादशाह दिलामेजबागमें जो रावी नदी पर था पहुंचकर अपनी मातासे मिला। मिरजागाजी कन्धारसे आया।

१३ (पौष बदी १) मंगलवारको बादशाहने लाहोरमें प्रवेश किया।


(१) जण्डयाला।

[ ९ ]
 

खुर्रमका मनसब और जागीर।

बादशाहने दीवानोंको आज्ञा की कि खुर्रमको ८ हजारी जात और ५ हजार सवारों के अनुसार जागीर तो उज्जैनमें दें और सर- कार फीरोजा (१) उसकी तनखाहमें लगा देवें।

आसिफखां वजीर।

२२ (पौष बदी ९) गुरुवारको बादशाह बेगमों सहित आसिफ- खां वजीरके घर गया। रातको वहीं रहा। उसने १० लाख रुपयेकी भेट जवाहिर जड़ाऊ गहनों हाथी घोड़ों और कपड़ों आदिकी बादशाहको दिखाई। बादशाहने कुछ लाल कुछ याकूत कुछ चीनके बढ़िया कपड़े पसन्द करके लेलिये और शेष पदार्थ उसीको बख्श दिये।

लालकी अंगूठी।

सुरतिजाखांने गुजरातसे एकही लालकी बनी हुई पूरी अंगूठी भेजी जो तोलमें एक टांक और एक रत्तीकी थी। रङ्गत और घड़त भी उसकी बहुत उत्तम थी उसके साथ एक लाल भी २ टांक और १५ रत्तीका था। बादशाहको यह अंगूठी बहुत पसन्द आई। वह लिखता है कि ऐसी अंगूठी किसी बादशाहके हाथमें नहीं सुनी गई थी।

मक्का।

मक्केके शरीफ (महन्त) ने विनयपत्र और काबे(२) का परदा भेजा। बादशाहने लानेवालेको ५ लाख दाम दिये और शरीफके वास्ते एक लाख रुपयेके उत्तम पदार्थ भेजे।

कन्धार।

१४(३) रमजान (माघ बदी १) गुरूवारको कन्धारमें अच्छा


(१) हांसी हिसार।

(२) पूज्यस्थान मुसलमानोंका।

(३) मूलमें लेखके दोषसे १० लिखी है। काम करनेके इनाममें मिरजागाजीका मनसब पूरा पांच हजारी और पांच हजार सवारका होगया। टठ्ठेका सारा देश उसके पट्टेमें था तोभी सुलतानके सूबेमें कुछ जागीर उसको मिली। कन्धारकी हुकूमत भी जो सीमा प्रान्तका सूबा था उसको समर्पित हुई। बिदा होते समय तलवार और सिरोपाव भी मिला यह मिरजा फारसी भाषाका कवि भी था।

खानखानाकी भेट।

१५ (माघ बदी ३) को खानखानांकी भेट बुरहानपुरसे पहुंची ४० हाथी कुछ जवाहिर कुछ जड़ाऊ चीजें तथा विलायत और दक्षिणके बने हुए कपड़े थे। सबका मूल्य डेढ़ लाख रुपये हुआ। ऐसीही उत्तम भेटें दूसरे अमीरोंने भी भेजी थीं जो उस देशमें नौकरी पर थे।

राय दुर्गाकी मृत्यु।

१८ (माघ बदी ५) को राय दुर्गाके मरनेको खबर पहुंची। बादशाह लिखता है कि यह मेरे पिताका बड़ा किया हुआ था। ४० वर्षसे अधिक उनकी सेवामें रहा और बढ़ते बढ़ते चार हजारी मनसब तक पहुंचा। मेरे पिताको सेवामें आनेसे पहिले राना उदयसिंहका प्रतिष्ठित सेवक था और सिपाहगरीकी समझ अच्छी रखता था।

सुलतानशाह पठान।

खुसरोका भेदू सुलतानशाह पठान खिजराबादके पहाड़से पकड़ा आया। बादशाहने उसको लाहोरको मैदानमें तीरोंसे मरवा डाला।

मुहम्मदअमीनसे मिलना।

१ शब्बाल (माघ सुदी २) को बादशाह मुहम्मदअमीन नामक एक साधुसे जाकर मिला और उसके उपदेशसे सन्तुष्ट होकर एक हजार बीघे जमीन और एक हजार रुपये देआया। हुमायूं

बादशाह भी इस साधुसे बहुत भाव रखता था।

लाहोरसे कूच।

रविवार(१) को पहर दिन चढ़े बादशाहने लाहोरसे कूच किया कुलीचखांको हाकिम, और कवासुद्दीनको दीवान, शैख यूसुफको बखशी और जमालुल्लहको कोतवाल करके हरेकको यथायोग्य सिरोपाव दिया।

२५ शब्बाल (फागुन बदी ११) को सुलतानकी नदीको उतरकर जकोदरसे २ कोस पर पड़ाव हुआ। अकबर बादशाहने तुलादानके कोषमेंसे शैख अबुलफजलको बीस हजार रुपये इन दोनों परगनों के बीच में पुल बांधकर पानी रोकनेके लिये दिये थे। बादशाह लिखता है--"सच यह है कि यह जगह बड़ी साफ और हरी भरी है।" उसने नकोदरके जागीरदार मोअज्जु लमुल्कको हुक्म दिया कि इस पुलके एक तरफ बगीचा और मकान बनावे जिसको देख कर आने जानेवाले प्रसन्न हों।

पानीपत और करनालके बीचमें मुसाफिरोंको दो सिंह सताया करते थे। बादशाहने १४ रविवार(२) (चैत्र बदी १) को दोनों सिंह हाथियोंके हलकेमें घेरकर बन्दूकसे मार दिये। रस्ता जो बन्द होरहा था खुल गया।

दिल्लीमें प्रवेश।

१८ (चैत्र सुदी ५) गुरुवारको बादशाह दिल्ली में पहुंचकर सलेमगढ़में उतरे जिसे सुलतान सलेमशाह पठानने यमुनाके बीच में


(१) इस रविवारको क्या तिथि थी यह मूलमें नहीं लिखी है शव्वालकी १ तारीख माघ सुदी २ शनिवारको थी। पीछे एक रविवार तीजको, दूसरा, एकादशीको, तीसरा फागुन बदी २ को और चौथा नवमीको था। इन चारों रविवारोंमेंसे किस रवि- वारको कूच किया? सुलतानपुर लाहोरके पासही है इससे सन्सव है कि फागुन बदी २ या, नवमीको कूच किया होगा।

(२) मूलमें भूलसे सोमवार लिखा है। बनाया था और अकबर बादशाहने मुरतिजाखांको बख्श दिया था जो दिल्लीका रहनेवाला था। मुरतिजाखांने यमुनाके तीर पर एक बड़ा चबूतरा पत्थरोंका बनाया था जिसके नीचे पानीले मिली हुई एक चोखंडी काशी(१) के कामकी हुमायूं बादशाहके हुक्मसे बनाई गई थी। उसके समान हवादार स्थान कम था । हुमायूं बहुधा अपने सखाओं और सभासदों सहित वहां बैठा करता था।

बादशाहने ४ दिन तक उन स्थानमें रहकर अपने सखाओं के साथ खूब मद्य पान किया। उसका विचार सरकार पालमके रमनों में हाकेका शिकार खेलनेका था। पर राजधानीमें प्रवेश करनेका मुहर्त निकट आगया था और दूसरा मुहर्त इन दिनोंमें नहीं था इसलिये उसने नौकामें बैठकर जलके रस्तेसे आगरेको प्रस्थान किया।

चैत्र बदी ७ को मिरजा शाहरुखको सन्तानमेंसे ४ लड़के और ३ लड़कियां जो अकबर बादशाहको नहीं दिखाई गई थीं बाद- शाहके पास लाई गईं। बादशाहने लड़के तो अपने विश्वासपात्र अमीरोंको सौंपे और लड़कियां अन्तःपुरकी टहलनियोंको पालने के वास्ते दीं।

राजा मानसिंह।

२० (चैत्र बदी ८) को राजा मानसिंह ६|७ फरमानोंके पहुंचने पर सूबे बिहारके किले रूहताससे आकर बादशाहकी सेवामें उप- स्थित हुआ। बादशाह लिखता है--"यह भी खानआजमके समान इस राज्यके पुराने खुर्रांट भेड़ियोंमेंसे है। जो कुछ इन लोगोंने मेरे साथ और मैंने इनके साथ किया है उसको ईश्वर जानता है। शायद कोई मनुष्य किसी मनुष्यसे इतनी टाला नहीं दे सकता है। राजाने १०० हथिनी और हाथी भेट किये जिनमेंसे एक भी ऐसा न था जो खासेके हाथियोंमें रखा जाता। पर यह मेरे पिताके छपापात्रोमेंसे था इसलिये मैं उसका अपराध उसके मुँह पर नहीं लाया और बादशाहोंकीसी दया मया करके उसका मान बढ़ाया।


(१) पच्चीकारी।

तीसरा नौरोज।

२ जिलहज्ज (चैत्र सुदी ५) गुरुवारको सूर्य्य मेख राशि में आया। बादशाहने रंगते गांवमें नौरोजका उत्सव करके खानजहांको पांच हजारी जात पांच हजारका मनसब और खाजाजहांको बखशीका पद दिया और वजीरखांको बंगालेसे बदलकर अबुलहसनको उसकी जगह भेजा।

५ जिलहज्ज (चैत्र सुदी ८) शनिवारको मध्यान्ह कालमें बाद- शाह पांच हजार रुपयेकी रेजगी अपने दोनों हाथोंसे लुटाता हुआ आगरेके किले में गया।

सफैद चीता।

राजा वरसिंहदेवने एक सफैद चीता भेट किया। बादशाहने और पशु पक्षी तो सफैद रंगके देखे थे पर चीता नहीं देखा था। इसलिये विशेष रूपसे उसका वर्णन अपने ग्रन्थमें किया है।

रावरतन हाडा।

इन्हीं दिनोंमें भोज हाडाके बेटे रावरतनने जो राजपूत जातिके बड़े अमीरोंमेंसे था हाजिर होकर ३ हाथी नजर किये। उनमेंसे एक जो सबसे बड़ा था १५ हजार रुपयेका सरकारमें आंका गया और खासके हाथियों में रखा गया। बादशाह लिखता है--"मैंने उसका नाम रतन गज रखा। हाथीका मोल हिन्दुस्थानके राजोंमें पच्चीस हजार रुपये अधिक नहीं होता है लेकिन आजकल हाथी बहुत मंहगे होगये हैं। रतनको मैंने सरबलन्दरायके खिताबसे सम्मानित किया।

भावसिंह।

भावसिंहका मनसब दो हजारी जात और सौ सवारका होगया।

राजा सूरजसिंह।

२५ (बैशाख बदी ११) को राजा सूरजसिंहने हाजिर होकर नजर न्यौछावर की। वह राना अमराके चचेरे भाई श्यामसिंहको भी साथ लाया था जिसके विषय में बादशाह लिखता है--"कुछ शऊरदार है हाथीकी सवारी अच्छी जानता है।"

"राजा सूरजसिंह हिन्दीभाषाके एक कविको भी लाया था जिसने मेरी प्रशंसामें इस भावको कविता भेट की--जो सुरजके कोई बेटा होता तो मदाही दिन रहता रात कभी न होती। क्योंकि सूरजको अस्त होने पर यह लड़का उसका प्रतिनिधि हो जाता और जगतको प्रकाशमान रखता। परमेश्वरका धन्यवाद है कि उसने आपके पिताको ऐसा पुत्र दिया जिससे उनके अस्त होने के पीछे मनुष्यों में शोकरूपी रात्रि नहीं व्यापी। सूरज बहुत पश्चात्ताप करता है कि हाय मेरा भी कोई ऐसा बेटा होता कि मेरी जगह बैठकर पृथ्वीमें बात न होने देता! जैसा कि आपके भाग्यके तेज और न्यायके तपसे ऐसी भारी दुर्घटना हो जाने पर भी संसार इस प्रकारसे प्रकाशमय होरहा है कि मानो रातका नाम और पताही नहीं है--ऐसी नई उक्ति हिन्दीभाषाके कवियोंकी कम सुनी गई थी। मैंने इसके इनाम में उस कविको हाथी दिया। राजपूत लोग कविको चारण(१) कहते हैं। इस समय के एक फारसीके कविने इस कविताके भावकी फारसी कविता की है।"



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(१) राजपूत कविको चारण नहीं कहते चारण तो एक जाति

जो विशेष करके कविता करती है।

चौथा वर्ष।

सन् १०१७।

बैशाख सुदी ३ संवत् १६६५ से चैत्र सुदी १ संवत् १६६६ तक।

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जलाल मसऊदकी विचित्र मृत्यु।

८ मुहर्रम (बैशाख सुदी १०) गुरुवारको जलालमसऊद जिसको चार सदी जातका मनसब मिला हुआ था और कई लड़ाइयोमें वीरतासे काम करचुका था ५०।६० वर्षको अवस्थामें दस्तोंसे मर गया। जहांगीर लिखता है--"यह अफीमको टुकड़े टुकड़े करके खाया करता था और बहुधा अपनी माके हाथसे भी अफीम खाता था। जब मरने लगा तो उसकी मा भी अति मोहसे बहुतसी वही अफीम जो बेटेको खिलाया करती थी खाकर उसके मरनेसे एक दो घड़ी पीछे मर गई। अबतक किसी माकी बेटेसे इतनी ममता नहीं सुनी गई थी। हिन्दुओंमें रीति है कि स्त्रियां पतिके मरने पर प्रेम या अपने बाप दादाकी कीर्ति तथा लोकलाजसे जल जाती हैं परन्तु हिन्दू मुसलमानोंकी किसी मासे ऐसा काम नहीं हुआ(१)।


(१) जहांगीरके इस निश्चयके अनुसार बहुतसे हिन्दू मानते हैं कि मा बेटेके साथ सती नहीं होती। जैसा कि इस सोरठेसे प्रतीत होता है—

सगो सगाई नांह, मोह पगो सोही सगो।
यह अचरज जग माहं, मा बैठी तिरिया जले॥

पर मारवाड़में प्राचानीकालमें बेटे पोतोंके साथ भी स्त्रियां सती हुई है। इसका प्रमाण वह प्राचीन पुनीत पाषाण देते हैं जो उन की चिताओं पर सैकड़ों वर्षसे खड़े हैं। उस पर तिथि संवत् नाम ठाम और संक्षिप्त वृत्तान्त उन सत्यवती स्त्रियोंका खुदा हुआ है जो

अपने बेटे या पोतोंके मोहसे उनकी लाशको गोद में लेकर जल

मानसिंहका घोड़ा।

१५ (जेठ बदी १) को बादशाहने एक घोड़ा जो सब घोड़ोंमें उत्तम था परम प्रीतिसे राजा मानसिंहको दिया। बादशाह लिखता है--"इस घोड़ेको ईरानके शाह अब्बासने कई दूसरे घोड़ों और उत्तम सौगातों सहित अपने विश्वासपात्र दास मनूचिहरके हाथ मेरे पिताके पास भेजा था। इस घोड़ेके देनेसे राजाने इतनी प्रसन्नता और प्रफुल्लता प्रगट की कि यदि मैं एक राज्य भी उसको देता तो भी शायदही इतना आनन्द उत्साह दिखाता। यह घोड़ा यहां आया उस समय ४ वर्षका था।, जब बड़ा हुआ तो सब मुगल और राजपूत चाकरोंने कहा कि इराक(१) से कोई ऐसा घोड़ा हिन्दुस्तानमें नहीं आया है। जब मेरे पिता खानदेश और दक्षिण मेरे भाई दानियाल को देकर आगरेको आने लगे तो अति कृपासे दानियालको आज्ञा की कि एक वस्तु जो तेरी मनचाही हो मुझसे मांग। उसने अवसर पाकर यह घोड़ा मांगा और उन्होंने उसको दे दिया था।"



गईं। ऐसी सतियोंको मा-सती और पोता-सती कहते हैं। पतिके साथ जलनेवालीकी पदवी महासती है। इन घटनाओंके जो चित्र पत्थरों पर दिये जाते थे उनमें पहचान के लिये सतियोंकी मूर्तियां भी भिन्न भिन्न रूपसे खोदी जाती थीं। पतिके साथ जलनेवाली की मूर्ति पतिके घोड़ेके आगे खड़ी और कहीं पतिके सामने बैठी बनाई जाती थी। बेटे पोतोंके साथ जलनेवालियोंके चित्र में वह मृत बालक उनको गोदमें दिखाये जाते थे। ऐसे कितनेही चित्र अब भी महासती मासती और पोता सतियोंके पत्थरों पर खुदे हुए मारवाड़के कितनेही गांवों में मौजूद हैं। उनका हाल हमने एक अलग पुस्तक में लिखा है।

(१) ईशानको अरब लोग ईराक कहते थे इसीसे ईरानी घोड़े

का नाम इराकी होगया था।

जहांगीरकुलीको मृत्यु।

२० (जेठ बदी ७) मंगलको इसलामखांकी अरजीसे जहांगीरकुलीखां सूबेदार बंगालेके मरनेका वृत्तान्त सुनकर बादशाहको रंज हुआ। यह उसका निजदास था और सुयोग्यतासे बड़े अमीरों को पांतिमें जा मिला था। बादशाहने बंगालेका शासन और शाहजादे जहांदारका संरक्षण इसलामखांको सौंपा और अफजल- खांको उसको जगह बिहारको सूवेदारी पर भेजा।

करनाटकके बाजीगर।

हकीमअलीका बेटा बुरहानपुरसे करनाटकके कई बाजीगरोंको लाया जो १० गोलियोंका खेल करते थे। बड़ीसे बड़ी गोली नारङ्गीके और छोटी घूंघचीके समान थी। पर एक भी इधर उधर नहीं होती थी। एसेही और भी कई करतब करते थे जिनको देखकर बुद्धि चकित होजाती थी।

देवनक पशु।

ऐसेही सिंहलदीपसे एक फकीर देवनक नामका एक पशु लाया जिसकीं सूरत बन्दरसे मिलती थी परन्तु पूंछ न थी। और कला बनमानसकीसी करता था। बादशाहने उसके कई चित्र खिचवाये जिनमें उसके कितनेही चरित्रोंको अङ्कित किया गया था।

फरङ्गी पर्दा।

मुकर्रबखांने खम्भाता बन्दरसे फरंगियोंका बनाया एक पर्दा भेजा। बादशाहने फरंगियोंका बनाया हुआ उतना कारीगरीका काम और कोई नहीं देखा था।

नजीबुन्निसा बेगम।

बादशाहको चची या फूफी (क्योंकि दोनोंके वास्ते अरबीका एकही शब्द है) ६१ वर्षको अवस्थामें मर गई। बादशाहने उसके बेटे मिरजावालीको हमारी जात और दोसौ सवारोंका मनसब

दिया।

रूमका कृत्रिम दूत।

तूरानका अकम नामक एक हाजी रूममें था वह अपनेको रूमके ख्वांदगार(१) (सुलतान) का दूत बनाकर आगरेमें बादशाह को सेवामें उपस्थित हुआ। एक जलजलूल पत्र भी उसके पास था। दरगाहके बन्दोंने उसके स्वरूप और दशाको देखकर उसके दूत होने में सन्देह किया। जहांगीर लिखता है--"हजरत अमीर तैमूरने रूमको जीता था। वहांका हाकिम एलद्रुमबायजीद पकड़ा आया। अमीरने उससे भेट और रूमकी सालभरकी उपज लेकर वह देश पूर्ववत उसको अधिकारमें रहने दिया। एलद्रुम- बायजीट उन्हीं दिनोंमें मर गया और अमीर तैमूर उसके बेटे मूसा चिलपीको वहांका देशाधिपति करके लौट आये। जबसे अबतक ऐसे उपकारके होते हुए भी वहांके कैसरों(२ की तरफसे कोई नहीं आया न उन्होंने कोई दूत भेजा। अब क्योंकर प्रतीत होसके कि यह भावरुन्नहर (तूरान) का पुरुष ख्वांदगारका भेजा हुआ है। यह बात मेरी समझमें नहीं आई और न किसीने उसकी साक्षी दी। इसलिये मैंने कह दिया कि जहां जाना चाहता हो चला जावे।"

बादशाहका ब्याह।

४ रबीउलअव्वल (अषाढ़ सुदी ६) को बादशाहका व्याह राजा मानसिंहके बड़े बेटे जगतसिंहको बेटीसे मरयममकानीके महल में हुआ। राजा मानसिंहने जो दहेज दिया उसमें ६० हाथी भी थे।

राणा।

बादशाहको राणाका विजित करना अवश्य था इसलिये महा-बतखांको इस लड़ाई पर नियत किया और निम्नलिखित सेना और रुपये उसे दिये—


(१) मुगलोंकी तवारीख में सुलतान रूम ख्वान्दगार लिखे जाते थे।

(२) रूमके सुलनानको कैसर भी कहते हैं।


राजे हुए सवार अनुभवी सरदारों सहित
अहदी
पियादा बरकन्दाज (बन्टूकची)
गजनाल और शतुरनाल तोपें
हाथी
नकद रुपये


१२००
५००
२०००
१७०
६०
२० लाख

नहानयुपके ग्राम।

बुरहानपुरके बखशीने कुछ आम भेजे थे उनमेंसे एक ५२ तोले का हुआ।

सङ्गयशमका प्याला।

महतरखांके बेटे मूनसखांने यशम जातिके पत्थरका एक खेत और स्वच्छ प्याला भेट किया जो मिरजा उलगबेग गोरगांके वास्ते बनवाया गया था और जिस पर मिरजाका नाम साल सहित खुदा था। बादशाहने भी अपना और अपने पिताका नाम उसकी कोर पर खुदा दिया।

संग्रामका देश।

१६ रबीउस्मानी (भादों बदी ३) बुधवारको हुक्म हुआ कि संग्रामका देश जो एक सालके लिये इसलामखांको इनाममें दिया गया था। एक साल अफजलखां सूबेदार बिहारके इनाममें भी रहे।

राणाकी लड़ाई।

इसी दिन महाबतखां तीन हजारी जात और अढ़ाई हजार सबारका मनसब सिरोपाव खासाहाथी और जड़ाऊ तलवार सहित पाकर भादों बदौ १२ को बिदा हुआ। उसके साथ जफरखां शुजा- अतखां, राजा बरसिंहदेव, मंगलीखां नरायणदास कछवाहा, अलीकुली, बरमन, हुजबखां तुहमतन, बहादुरखां और सुअज्जुल मुल्क बखशी आदि अमीर और सरदार उसके साथ गये। सबको यथायोग्य खासे सिरोपाव जड़ाऊ तलवारें और झंडे वगैरह मिले

राजा बरसिहदेवको खिलअत और खासेका घोड़ा मिला।

खानखानां।

इसी दिन पहरदिन चढ़े खानखानां जो बादशाहका अतालीक (शिक्षक) था बुरहानपुरसे आया उसके ऊपर हर्ष और उत्साह ऐसा छाया हुआ था कि पांवसे आता है या सिरसे यह कुछ नहीं जानता था और ब्याकुलतासे बादशाहके चरणों में गिर पड़ा। बादशाहने भी दया करके उसका सिर उठाकर छातीसे लगाया और मुंह चूमा। उसने मोतियोंकी माला कई लाल और पन्ने भेट किये जिनका मोल तीन लाख रुपयेका हुआ। इसके सिवा और भी बहुतसी बस्तु अर्पण की।

बङ्गालका दीवान।

१७ जमादिउलअब्बल (द्वितीय भादों बदी ४) को वजीरखां बङ्गालके दीवानने ६० हाथी हथनियां और कई लाल कुतुबी(१) भेट किये उससे और इसलामखांसे नहीं बनती थी इसलिये बाद- शाहने उसको बुला लिया था।

आसिफखांकी भेट।

२२ (द्वितीय आदों बदी ९ तथा १०) को आसिफखांने ७ टंक , भरका एक माणिक्य जो रंग ढंग और अंगमें अति सुन्दर था और ७५ हजार रुपये में खंभात बन्दरसे मंगाया था बादशाहकी भेट किया। वह बादशाहकी जांचमें ६० हजार रुपयेसे अधिकका न था।

दलपत।

राय रायसिंहके बेटे दलपतने बड़े बड़े अपराध किये थे तोभी वह खानजहांकी सुफारिश जान बूझकर बखश दिया गया।

खानखानांके बेटे।

२४ (द्वितीय भादों बदी १२) को खानखानांके बेटोंने बादशाह की सेवामें उपस्थित होकर पच्चीस हजार रुपये भेट किये और उसी दिन खानखानांने भी ९० हाथी नजर किये।


(१) लालकी एक जाति।

[ १० ]
 

तुलादान।

१ जमादिउस्मानी (द्वितीय भादों सुदी २) गुरुवारको बादशाह को सौर वर्षगांठका तुलादान हुआ। उसका कुछ रुपया औरतोंको बांटा गया और बाकी रक्षित देशोंके दीन दरिद्रियोंके वास्ते भेजा गया।

दूध देनेवाली हरनी।

दूध देनेवाली एक हरनी भेटमें आई जो नित्य ४ सेर दूध देती थी उसका स्वाद गाय भैंसके दूधकासा था। कहते है कि यह दूध दमेकी बीमारीके लिये लाभदायक होता है।

राजा मानसिंह।

११ (द्वितीय भादों सुदी १२) को राजा मानसिंहने दक्षिण जानेकी आवश्यकतासे जहां उसकी नौकरी बोली गई थी सेना की सामग्री प्रस्तुत करनेके लिये अपने वतन आमेर जानेकी आज्ञा मांगी। बादशाहने हुशियार मस्त नाम खासेका हाथी उसको देकर बिदा किया।

१२ (द्वितीय भादों सुदी १३) को अकबर बादशाहकी बरसी थी बादशाहने मामूली खर्चोंके सिवा चार हजार रुपये उनके रौजे में गरीबों और फकीरोंको बांट देनेके लिये भेजे।

खुसरोकी बेटी।

१७ (द्वितीय भादों सुदी १४) को बादशाहने खुसरोकी बेटीको मंगवाकर देखा। उसकी सूरत बापसे ऐसी मिलती थी कि वैसी किसीकी सूरत कभी मिलते नहीं देखी गई थी। ज्योतिषियोंने बादशाहसे कहा था कि उसका जन्म बापके वास्ते शुभ नहीं है पर आपके वास्ते शुभ है। ऐसाही हुआ। यह भी कहा था कि तीन वर्ष पीछे आप उसको देखें। अब तीन सालकी होजाने पर बादशाहने उसे मंगवाकर देखा।

खानखानांको प्रतिज्ञा।

२१ (आश्विन बदी ८) को खानखानांने निजामुलमुल्कके राज्य को जिसमें अकबर बादशाहके मरे पीछे बहुतसा उपद्रव उठ खड़ा हुआ था दो वर्षमें साफ कर देने की प्रतिज्ञा की और यह बात लिखदी कि जो दो वर्ष में यह काम न करदूं तो अपराधी समझा जाऊं। पर उस सेनाके सिवा जो दक्षिणमें है बारह हजार सवार और १२ लाख रुपये फिर मुझको मिलें। बादशाहने हुक्म दे दिया कि तुरन्त तय्यारी करके उसको बिदा करें।

पेशरौखां।

१ रज्जब (आश्विन सुदी २) को पेशरौखां मर गया। इसको शाह तुहमास्पने हुमायूं बादशाहको सेवा करनेके लिये दिया था।

इसका नाम तो आदत था पर अकबर बादशाहने फर्राशखाने का दारोगा बनाकर पेशरौखांका खिताब दिया था। इस काम में बहुत योग्य था ९० वर्षको उमरमें १४ वर्षके जवानोंसे बढ़कर साहसी था। मरते समय तक दमभरके लिये भी मद्य पिये बिना नहीं रहता था। १५ लाख रुपये छोड़ मरा। बेटा सुपात्र न था इसलिये आधा फर्राशखाना उसके रहा और आधा "तहमाक" को मिल गया।

उसी दिन कमालखां भी मर गया। वह दिल्लीके कलालोंमेंसे था। बादशाहको उसका बहुत भरोसा था इसलिये बाबर चीखाने का दारोगा बनाया था।

लालखां कलावत।

२ (आश्विन सुदी ३) को लालखां कलावत जो अकबर बाद- शाहको सेवामें छोटेसे बड़ा हुआ था ६० वर्षका होकर मर गया। अकबर बादशाह हिन्दीके जो गान सुनता वह उसे याद करा देता था। उसकी एक लौंडी इस शोकमें अफीम खाकर मर गई। बादशाह लिखता है कि ऐसी वफादार स्त्री मुसलमानोंमें कम देखनेमें आई।

ख्वाजेसराओंका निषेध।

हिन्दुस्थान और विशेषकरके बङ्गालके जिले सिलहट में बहुत कालसे यह चाल पड़ गई थी कि वहाँकी प्रजा अपने कुछ लड़कों को नपुंसक बनाकर मालगुजारीके बदले हाकिमोंको देदेती थी फैलते फैलते दूसरे देशोंमें भी यह चाल फैल गई। हर वर्ष कई हजार बालक नपुंसक बना दिये जाते थे। बादशाहने आज्ञादी कि अबसे यह खराब चाल बन्द हो। बालक ख्वाजेसराओंकी बिकरी रोकी जावे। इसलामखां और बङ्गालके सब हाकिमोंको लिखा गया कि अब जो कोई ऐसा कर्म्म करे उसे दण्ड दें और जिसके पास छोटे ख्वाजेसरा मिलें लेलिये जावें। जहांगीर लिखता है--"अबतक किसी बादशाहका इधर ध्यान नहीं गया था। जल्द यह कुरीति मिट जावेगी। जब ख्वाजेसराओंकी बिकरी बन्द हो गई तो कोई व्यर्थ बालकोंको नपुंसक क्यों बनावेगा?"

खानखानांको घोड़े हाथी।

समन्द घोड़ा जो शाह ईरानका भेजा हुआ था और उस समय तक उतना बड़ा और अच्छा कोई घोड़ा हिन्दुस्थानमें नहीं आया था बादशाहने खानखानांको दे दिया इससे वह बहुतही प्रसन्न हुआ। फिर फतूह नामक हाथी जो लड़नेमें अनुपम था २५ दूसरे हाथियों सहित उसको प्रदान किया।

किशनसिंह।

किशनसिंह महाबतखांके साथ भेजा गया था उसने अच्छा काम दिया। रानाके २० मनुष्य मारे और तीनसौके लगभग पकड़े। उसके भी पांवमें बरछा लगा था इस लिये उसका मनसब दो हजारी जात और एक हजार सवारोंका होगया।

कन्धार।

१४ (कार्तिक बदी १) को मिरजा गाजीको कन्धार जानेका हुक्म हुआ। उसके भक्करसे कूच करतेही कन्धारक हाकिम सरदा रखांके मरनेकी खबर पहुंची। वह बादशाहके चचा मिरजाहकीम

के निज नौकरोंमेंसें था।

अकबर बादशाहका रौजा।

१७ (कार्तिक बदी ४) चन्द्रवारको बादशाह अपने पिताके रौजेका दर्शन करने गया। वह लिखता है--"जो होसकता तो मैं इस मार्ग में मस्तक और पलकोंसे जाता। मेरे पिता तो मेरे वास्ते फतहपुरसे अजमेर तक १२० कोस पैदल ख्वाजे मुईनुद्दीनके दर्शनोंको गये थे। फिर मैं इस मार्गमें सिर और आंखोंसे जाऊ तो क्या बड़ी बात है।"

इस रौजेकी जो इमारत बनी थी वह बादशाहको पसन्द न आई। क्योंकि उसका यह मनोरथ था कि यहां ऐसी इमारत बने जिसके समान पृथिवीके पर्य्यटन करनेवाले कहीं नहीं बता सकें। उक्त इमारतको जब जहांगीर खुसरोकी तलाशने गया था तो उसके पीछेसे सिलावटोंने तीन चार वर्ष में अपनी समझसे बनाया था। बादशाहने उसको गिराकर नये सिरेसे बनानेका हुक्म शिल्प- निपुण मिलावटोंको दिया। बनते बनते एक विशाल भवन, बाग, ऊंची पौल ओर खेत पाषाणोंके मीनारों सहित बन गया जिसकी लागत पन्द्रह लाख रुपये बादशाहको सुनाई गई।

हकीमअलीका हौज।

२३ (कार्तिक बदी १०) रविवार को जहांगीर अकबर बादशाह के समयका बना हकीमअलीका हौज अपने उन मित्रों सहित देखने गया जिन्होंने उसको नहीं देखा था। यह छः गज लम्बा और उतनाही चौड़ा था और उसकी बगलमें एक कमरा बना था जिसमें खूब उजाला रहता था। इस कमरेका रास्ता भी पानी में होकर था लेकिन पानी उस रास्तेसे भीतर नहीं जाने पाता था। इस कमरेमें १२ आदमी बैठ सकते थे।

हकीमने अवसरके अनुसार धन माल बादशाहको नजर किया। बादशाह उसको दो हजारी मनसब देकर राजभवनमें आया।

खानखानांको दक्षिण जाना।

१४ शाबान (अगहन बदी २) रविवारको खानाखानां जड़ाऊ परतला खिलअत और खासेका हाथी पाकर दक्षिणको बिदा हुआ। राजा सूरजसिंह भी उसके साथ भेजा गया और उसका मनसब तीन हजारी जात और दोहजार सवारोंका होगया।

गुजरात।

बादशाहने मुरतिजाखांके भाइयों और नौकरोंका प्रजा पर अन्याय करना सुनकर गुजरातका सूबा उससे छीन लिया और आजमखांको दिया। आजमखां तो हुजूरमें रहा और उसका बड़ा बेटा जहांगीरकुलीखां तीन हजारी जात और अढ़ाई हजार सवारों का मनसब पाकर बापकी नायबीमें गुजरातको गया। बादशाहने उसको मोहनदास दीवान और मसऊदखां बखशीकी सलाहसे काम करनेका हुक्म दिया।

बलन्द अखतर।

४ जिलहज्ज (फागुन सुदी ६) बुधवारको खुसरोके घरमें खान- आजमको बेटीसे लड़का उत्पन्न हुआ। बादशाहने उसका नाम बलन्द अखतर रखा।

६ (फागुन सुदी ८) को मुकर्रबखांने एक तसबीर भेजी जिसे फरंगी अमीर तैमूरकी बताते थे। जब उनकी फौजने रूमके बाद- शाह एलट्रम बायजीदको पकड़ा तो अस्तम्बोलके ईसाई हाकिमने एक दूत सौगातसहित अमीरके पास भेजा था। उसके साथ एक चित्रकारभी था वह अमीरकी तसवीर खेंच लेगया था। बादशाह लिखता है--"जो यह बात कुछ भी सच होती तो कोई पदार्थ इस चित्रसे बढ़कर मेरे समीप नहीं था पर यह तो अमीर और उनके बेटों पोतोंकी सूरतसे कुछ भी नहीं मिलती इसलिये पूरी प्रतीत नहीं होती।"

चौथा नौरोज।

१४ (चैत बदी १) शनिवारको रातको सूर्य्य मेखमें आया। चौथा नौरोज हुआ।

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पांचवां वर्ष।

सन् १०१८।

चैत सुदी २ संवत् १६६६ मे चैत सुदी १

संवत् १६६७ तक।

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५ मुहर्रम (चैत सुदी ७) शुक्रवार सं० १६६६ को हकीम अली मर गया। यह बड़ा हकीम था इसने अकबर बादशाहके समयमें बू अलीसीना(१) के कानूनकी टीका लिखी थी। बादशाह लिखता है कि यह दुष्टात्मा और दुर्बुद्धि था।

खान आलम।

२० सफर (जेठ बदी ७) को मिरजा बरखुरदारको खानआलम का खिताब मिला।

३३॥ सेरका तरबूज।

फतहपुरमे इतना बड़ा एक तरबूज आया कि बादशाहने वैसा अबतक नहीं देखा था तुलवाया तो ३३॥ सेरका हुआ।

सौमतुलादान।

१८ रवीउलअव्वल (आषाढ़ बदी ५) चन्द्रवारको बादशाहकी सौम वर्षगांठका तुलादान उनकी मा मरयममकानीके भवनमें हुआ। जो स्त्रियां वहां जुड़ गई थीं उनको बादशाहने उसमेंसे कुछ रुपये दिलाये।

दक्षिण पर चढ़ाई।

बादशाहने दक्षिणके कामों पर एक शाहजादेका भेजा जाना आवश्यक समझ कर परवेजको भेजने और उसके वास्ते सफरकी तय्यारी कर देनेका हुक्म दिया।


(१) बूअलीसीना मुसलमानोंमें बड़ा हकीम होगया है उसने

जो पुस्तक वैद्यकविद्याकी बनाई है उसका नाम कानून बूअली हैं।

रानाकी लड़ाई।

बादशाहने महाबतखांको कई कामोंकी सलाहके वास्ते बुला कर उसकी जगह अबदुल्लहखांको उस लशकरका अफसर किया जो रानाके ऊपर भेजा गया था और उसको फौरोज जंगका खिताब भी दिया। बखशी अबदुर्रज्जाकको सब मनसबदारोंसे यह कहला देने के लिये भेजा कि फीरोजजंगकी आज्ञा भंग न करें और उसके अच्छे बुरे कहने में अपना भला बुरा समझें।

दूध देनेवाला बकरा।

४ जमादिउलअव्वल (सावन सुदी ६) को चरवाहे एक खस्सी बकरा लाये जिसके थन बकरीकेसे थे और वह प्रतिदिन एक प्याला दूध देता था।

सूरतकी हुकूमत।

६ (सावन सुदी ७) को बादशाहने खानआजमके बेटे खुर्रमको दो हजारी जात और पांचसौ सवारका मनसब देकर सूरतकी हुकूमत पर भेजा जो जूनागढ़के नामसे प्रसिद्ध है।

राजा मानसिंह।

१६ (भादों बदी २) को तलवारका जड़ाऊ परतला राजा मान सिंहके वास्ते भेजा गया।

दक्षिण।

१६ (भादों बदी ९) को बादशाहने २० लाख रुपये उस लश- करके खर्चके वास्ते जो परवेजकी अफसरीमें तय्यार हुआ था एक अलग खजानचीको सौंपे और पांच लाख रुपये परवेजके खर्चके लिये भी दिये।

१ जमादिउस्मानी (भादों सुदी २) को अमीरूल्लउमरा भी उसी लशकरमें नियुक्त हुआ और उसको खिलअत और घोड़ा दिया गया।

जगन्नाथका बेटा करमचन्द भी दो हजारी जात और डेढ़ हजार सवारका मनसब पाकर परवेजके साथकी सेनामें शामिल

हुआ।

रानाकी लड़ाई।

४ (भादों सुदी ५) को ३७० इक्के सवार उदयपुरके लशकरको सहायताके लिये अबदुल्लहखांको दिये गये। १०० घोड़े भी सरकारी तबेलोंसे भेजे गये कि अहदियों और मनसबदारोंमेंसे जिन जिनको अबदुल्लहखां उचित समझे देदे।

लाल।

१७ (आश्विन बदी ३) को बादशाहने एक लाल साठ हजार रुपयेका परवेजको, दूसरा लाल दो मोतियों सहित खुर्रमको दिया। इनका मूल्य चालीस हजार था।

राजा जगन्नाथ।

२८ (आश्विन सुदी १) चन्द्रवारको राजा जगन्नाथका मनसब ५ हजारी जाती और तीन सौ सवारोंका होगया।

राय जयसिंह।

८ रज्जब (आश्विन सुदी ८) को राय जयसिंहका मनसब चार हजारी जाती और तीन हजार सवारोंका होगया। वह भी दक्षिण की सेनामें भरती हुआ।

शहरयार।

८ रज्जब (आश्विन सुदी १०) गुरुवारको शाहजादा शहरयार गुजरातसे हुजूर में आया।

परवेजका दक्षिण जाना।

१४ (आश्विन सुदी १५) मंगलवारको बादशाहने परवेजको खासा खिलअत, घोड़ा, खासा हाथी, जड़ाऊ पेटी और तलवार देकर दक्षिण जीतनेको भेजा। जो अमीर और सरदार उसकी सेवा में नियत किये गये थे उनको भी घोड़े सिरोपाव जड़ाऊ पेटियां और तलवारें मिली। एक हजार अहदी भी शाहजादेके साथ भेजे गये।

रानाकी लड़ाई।

अबदुल्लहखांकी अर्जी आई कि मैंने बिकट घाटियोंमें रानाका पीछा किया। कई हाथी और उसका असबाब हाथ आया। राना रातको भागकर निकल गया परन्तु शीघ्रही पकड़ा जायगा या मारा जायगा। बादशाहने प्रसन्न होकर उसका मनसब पूरा पांच हजारी कर दिया।

परवेज।

बादशाहने दस हजार रुपयेकी एक मोतियोंकी माला परवेज को दी। खानदेश और बरार तो पहिलेसे उसको दिये जाचुके थे अब आसेरका किला भी दिया गया और तीन सौ घोड़े भी मिले कि अहदियों और मनसबदारोमेंसे जिसको योग्य समझे दिये जायें।

भङ्ग गांजेका निषेध।

२२ (अगहन बदी ९) शुक्रवारको बादशाहने हुक्म दिया कि भङ्गगांजा जो झगड़ेकी जड़ हैं बाजारमें न बेचें और जुएके अड्डे भी उठा देवें।

वृश्चिक संक्रांतिका दान।

बादशाहने वृश्चिक(१) संक्रांतिके दिन एक हजार तोले सोने चान्दी और एक हजार रुपये अपने ऊपर वार कर दान किये।

दक्षिण पर सेना।

बादशाहने एक और नई फौज जिसमें १६३ मनसबदार और ४६ अहदी बरकन्दाज थे परवेजके पास दक्षिणको बिदा को और पचास घोड़े भी भेजें।

खुर्रमकी सगाई।

१५ (पौष बदी ३) रविवारको बादशाहने पचास हजार रुपये खुर्रमको सगाईको रस्मके मिरजा मुजफ्फरहुसैनके घर भेजे। उसकी लड़कीसे खुर्रमका व्याह ठहरा था। यह बहराम मिरजा का पोता और ईरानक शाह इसमाईल सफवीका पड़पोता था।


(१) यह वृश्चिक संक्रान्ति अगहन बदी १० बुधवार सं० १६६६

को १८ घड़ी ५२ पल पर लगी थी।

दक्षिणका युद्ध।

बादशाहने आगरेके कानूंगो बिहारीचन्दके भतीजेको आगरेके किसानोंमेंसे भरती किये हुए एक हजार पैदलों सहित परवेजके पास भेजा। पांच लाख रुपये और उसके पास खर्चके लिये भेजे।

४ शब्बाल (पौष सुदी ५) गुरुवारको बादशाहने रुपये बांटे। उनमेंसे एक हजार रुपये पठान (१) मिश्रको मिले।

नक्कारा देनेका प्रवन्ध।

बादशाहने हुक्म दिया कि नक्कारा उन लोगोंको दिया जावे जिनका मनसब तीन हजारी या तीन हजारीके ऊपर हो।

चन्द्रग्रहण।

पौष सुदी १५ को चार घड़ी दिन रहे चन्द्रग्रहण लगा। गहते गहते सब चांद गह गया। पांच घड़ी रात गये तक गहाही रहा। बादशाहने उसके दोष निवारणके लिये सोने चान्दी कपड़े और धानका तुलादान किया। घोड़ोंका दान भी किया। सब मिला कर १५ हजारका माल दानपात्रोंको बांटा गया।

२५ (माघ बदी १२) को बादशाहने रामचन्द्र बुन्देलेकी बेटी उसके बापकी प्रार्थनासे अपनी सेवाके वास्ते ली।

बिहारीचन्द।

१ जीकाद (माघ सुदी ३) गुरुवारको बिहारीचन्दको पांच सदी जाती और तीन सौ सवारोंका मनसब मिला।

दक्षिण।

बादशाहने मुल्लाहयातीको खानखानांके पास भेजकर बहुतसी कृपासे भरी हुई बातें कहला भेजी थीं। मुल्ला वहां होकर लौट आया। खानखानांके भेजे एक मोती और दो लाल लाया। उनका मूल्य बीस हजार कूता गया।


(१) यह नाम फारसी लिपिमें भ्रमयुक्त होनेसे नहीं पढ़ा गया।

(१) चण्डू पंचांगमें पौष सुदी १५ शनिवारको २५ घ० ४७ प० पर चन्द्र ग्रहण लिखा है। ६ जीकाद (माघ सुदी ८) को परवेजके दक्षिण पहुंचनेसे पहले खानखानां और दूसरे अमीरोंकी यह अर्जी दक्षिणसें पहुंची कि दक्षिणी लोग फसाद किया चाहते हैं। बादशाहने परवेज और दूसरी सनाओंके भेजे जाने पर भी अधिक सहायताकी आवश्यकता समझकर स्वयं दक्षिणकी तरफ जानेका विचार किया। आसिफ खांकी अर्जी आई कि बादशाहका इधर पधारना बहुत आवश्यक है। बीजापुरके आदिलखांकी भी अर्जी पहुंची कि राजसभाके विश्वासपात्रमेंसे कोई आवे तो उससे अपने मनोरथ कहूं और वह लौटकर बादशाहसे कहे तो दासोंका कल्याण हो।

बादशाहने मन्त्रियों और शुभचिन्तकोंसे सलाह पूछी और प्रत्येककी सम्मति ली। खानजहांने कहा कि जब इतने बड़े बड़े सुभट दक्षिण जीतनेको जाचुके हैं तो हजरतका पधारना आवश्यक नहीं है। यदि आज्ञा हो तो मैं भी शाहजादेकी सेवामें जाऊं और इस कामको पूरा करूं।

बादशाहको उसका बियोग स्वीकार न था और युद्ध भी बड़ा था इस लिये शुभचिन्तकोंकी सम्मति स्वीकार करके उसको फरमाया कि फतहपुर होतेही लौट आना एक वर्षसे अधिक वहां न रहना। (१७ फागुन सुदी ५) शुक्रवारको उसके जानेका मुहर्त्त था। उस दिन बादशाहने उसको जरीका खासा खिलअत खासा घोड़ा जड़ाऊ जीनका, जड़ाऊ परतला, खासा हाथी, तूमान और तोग देकर बिदा किया। फिदाईखांको घोड़ा खिलअत और खर्च देवार खानजहांके साथ भेजा और उससे कह दिया कि जो किसी को आदिलखांके पास उसकी प्रार्थनाके अनुसार भेजनेकी आवश्य- कता हो तो इसको भेजें। लंकू पण्डितको भी जो अकबरके समय में आदिलखांकी भेट लेकर आया था घोड़ा सिरोपाव और रुपये देकर खानजहांके साथ कर दिया।

अबदुल्लहखांके पास जो अमीर रानाकी लड़ाईके वास्ते थे उनमें से राजा बरसिंह देव शुजाअतखां और राजा विक्रमाजीत आदिको चार पांच हजार सवारोंसहित बादशाहने खानजहांको सहायतापर नियत किया। मोतनिदरखांको उनके पास भेजा कि साथ जाकर उनको उज्जैनमें खानजहांके पास पहुँचा दे।

दरीखाने अर्थात दरबारमें रहनेवालोंमेंसे सैफखां आदि छः सात हजार सवारोंकी नौकरी भी खानजहांको साथ बोली गई। उनको भी मनसबकी वृद्धि मदद खर्च और सिरोपावसे सन्तुष्ट किया गया ।

मुहम्मदी बेग इस लशकरका बखशी नियत हुआ और १० लाख रुपये उसको खर्चके वास्ते दिये गये।

शिकार।

बादशाह लशकरको बिदा करके शिकार खेलनेके वास्ते शहरसे निकला। रबीकी फसल उस समय पक गई थी। इसलिये बाद-शाहने उसकी रक्षाके हेतु 'कोरियसावल(१)' को तो बहुतसे अहदियोंके साथ पहलेही भेज दिया था। अब कई मनुष्योंको हुक्म दिया कि हर कूचमें जितनी फसलकी हानि हो उसका अन्दाजा करके प्रजाको मूल्य देदिया जावे।

२२ (फागुन बदी ९) को जब कि बादशाह एक नीलगायको गोली मारना चाहता था अचानक एक जिलोदार (अर्दली) और दो कहार आगये। नीलगाय भड़ककर भाग गई। बादशाहने क्रोधमें आकर हुक्म दिया कि जिलोदारको इसी जगह मार डालें और कहारों के पांव कटवाकर उनको गधे पर चढ़ावें और लशकरके आसपास फिरावें जिससे फिर कोई ऐसा साहस न करे।

पांचवां नौरोज।

१४ जिलहज्ज (फागुन बदी ११) रविवारको दो पहर तीनघड़ी दिन चढ़े सूर्य्य देवताका रथ मेख राशि पर आया। बादशाह गांव बाकभल परगने बाड़ीमें पिताकी प्रथाके अनुसार सिंहासनपर बैठा। दूसरे दिन नौरोज था और पांचवें सनके फरवरदीन महीनेको पहली तारीख थी। बादशाहने सवेरेही आमदरबार करके सब अमीरों और कर्म्मचारियोंका सलाम लिया। बाजे अमीरोंकी


(१) बादशाही हथियार रखनेवाला चोबदार।

[ ११ ]
 

भेट भी हुई। खानआजमने चार हजार रुपयेका एक मोती नजर

किया। महाबतखांने भेटमें फरंगियोंका बनाया हुआ एक सन्दूका दिया जिसके आसपास बिल्लौरके तख्ते लगे हुए थे। उनमेंसे भीतर की वस्तु दिखाई देती थी।

फतहउल्लह शरबतचीका बेटा नसरुल्लह भेटका भाण्डारी नियत हुआ।

सारंगदेव जो दक्षिणके लशकरमें आज्ञापत्र पहुँचानेके लिये नियत हुआ था बादशाहने उसके हाथ परवेज और हरेक अमीर के वास्ते कुछ कुछ निजकी चीजें भेजीं।

दूसरे दिन बादशाहने सवारी करके दो सिंह और सिंहनीका शिकार किया। अहदियोंको जो बहादुरी करके सिंहसे जा लिपटे थे इनाम दिया और उनके वेतन बढ़ाये।

२६ (चैत बदी १३) को बादशाह रूपवास(१) में आकर कई दिन तक वहां इरनोंका शिकार खेलता रहा।


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(१) अब यह रूपबास भरतपुर राज्यमें है।

छठा वर्ष।

सन १०१९।

चैत्र सुदी ३ संवत् १६६७ से चैत्र सुदी २ संवत् १६६८ तक।

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१ मुहर्रम (चैत्र सुदी ३) शनिवारको रूपखवासने जिसका बसाया हुआ रूपवास था भेटकी सामग्री सजाकर बादशाहको दिखाई। बादशाहने उसमें से कुछ अपनी रुचिके अनुसार लेकर शेष उसीको देदी। सोमवारके दिन बादशाह मंडाकरके बागमें आगया जो आगरेके पास है।

बादशाहका आगरेमें आना।

मंगलवारको एक पहर दो घड़ी दिन चढ़े शहरमें प्रवेश होने का मुहर्त था। बादशाह बस्तीके प्रारम्भ होने तक घोड़े पर गया घागे इस अभिप्रायसे हाथी पर बैठकर चला कि जिसमें पास और दूरकी सब प्रजा देख सके। मार्गमें रुपये लुटाता चला। दोपहर बाद ज्योतिषियोंके नियत किये हुए समय पर सानन्द राजभवनमें सुशोभित हुआ जो नौरोजके निर्दिष्ट नियमोंके अनुसार अति सुन्दर और सुहावनी विधिसे सजाया गया था। बड़े बड़े भड़- कीले दल बादल डेरे और तम्बू ताने गये थे। बादशाहने सब सजावट देखकर ख्वाजेजहांकी भेटमेंसे जवाहिर और दूसरे पदार्थ स्वीकार किये शेष उसीको बखश दिये।

शिकारकी संख्या।

वादशाहने मृगयाके कर्मचारियोंको हुक्म दिया था कि जानेके दिनसे लौटनेकी तिथि तक जितने पशु शिकार हुए हों उनकी संख्या बतावें। उन्होंने बताया कि पांच महीने छः दिनमें तेरहसौ बासठ पशु पक्षी और हिंसक जन्तु मारे गये हैं—

सिंह
 
नीलगाय
७०
 

१२४

जहांगीरनामा। काले हरन काली करनी हरन, पहाड़ी बकरे और रोक ८२ मछलियां कुलंग, मोर, सुर्खाज और सब पखेरू - १२८ ... .. . . . . . . . . . जोड़ १.३६२ !! . . . नौरोजका उपहार। .:.:. :: .. ७ (चेतसुदी) शुक्रवारको मुकर्रबखा खभात.. और . सूरतके बन्दरोंसे आया। जवाहिर, जडाऊ गहने, सोने चांदी के बासन. फर- गियों के बनाये हुए, हबशी लौंडी, गुलाम, अरबी घोड़े और दूसरे उत्तमोत्तम पदार्थ लाया। वह अढ़ाई महीने तक बादशाहके दृष्टि- , गोचर होते रहे.। . . . . . . . . . . ऐसी ऐप्ती भेटें १८ दिन मेख :संक्रान्ति तक अमौरीकी ओरसे अपण होती रहीं। बादशाहने भी कई अमीरोंको झंडे कईको हाथी घोड़े और खिलअत दिये। - खाजा हुसैनको जो खाजा मुईनुद्दीन चिश्तौके पोतोंमेंसे था एक हजार कपये आधे वर्षकी बन्धानके मिले । ::. ... . खानखानांने बादशाहके लिये मुला मौरअली(१). को लिखी हुई यूसुफ जलेखा जिसके पुट्ठों और चित्रों में सोनेका काम अति. सूक्षा और स्वच्छ रीतिप्त किया था अपने वकील मासूमके हाथ भेज़ी वह एक हजार मोहरीको थी। ............ .... .. . १३ (चैत्र सुदी १५) गुरुवारको १८वीं तिथि फरवरदीन महीने की थी और मेख संक्रान्तिका दिन था बादशाहने सब प्रकारके मादक पदार्थ मंगाए और आज्ञा को कि प्रत्य के मनुष्य अपनी रुचिके अनुसार सेवन करे। बहुतीने तो मदिरा पी, कइयोने याकूती ली और कइयोंने अफीम खाई जिससे सभा खूब प्रफुमित (१) मास्त्रता फारतो अक्षर बहुत अच्छा लिहता.या । जहांगीरकुलीखांने गुजरातसे चान्दीका एक सिंहासन भेजा जिसमें पच्चीकारीका काम नये रंग ढंगसे किया गया था।

महासिंहको झण्डा मिला।

अपराधियोंको दण्ड।

अफजलखांने बिहारसे कई दुष्टोंको पकड़ कर भेजा जिन्होंने निषेध हो जाने पर भी ख्वाजासरा बनाने और बेचनेका अपराध किया था। बादशाहने उनको जन्म भरके लिये कैद कर दिया।

विचित्र घटना।

अगली रातको एक विचित्र घटना हुई। दिल्लीके कुछ गवैये हुजूरमें गारहे थे और सैदी शाहको अमीर खुसरोकी एक बेत पर जोश आरहा था जिसका यह आशय था—

हरेक कौमका एक पन्थ एक धर्म्म और एक धाम है।

मैंने तो एक टेढ़ी टोपीवालेको अपना इष्टदेव बनाया है।

बादशाह इसकी कथा पूछ रहे थे कि मुल्ला अलीअहमद मोहर खोदनेवाला जिसके बापसे बादशाह वाल्यावस्था में पढ़ा करता था और जोअपने काम में उस्ताद था आगे बढ़कर अर्ज करने लगा कि एक दिन जमनाके तट पर शेख निजामुद्दीन औलिया बांकी टोपी झुकाये किसी छतसे हिन्दुओंकी पूजा देख रहे थे। इतने में उनका शिष्य अमीर खुसरो आया शैखने फरमाया कि तूने इन लोगोंको देखा साथही फारसी में यह कहा—

हरेक जातिका एक पग्य एक धर्म्म और एक धाम है।

खुसरोने अति भक्ति से अपने गुरुकी ओर देखकर फारसीमें यह दूसरा चरण पढ़ा—

मैंने तो एक टेढ़ी टोपीवाले को अपना इष्टदेव बनाया है।

मुल्लाअली जब यह कथा कहता हुआ टेढ़ी टोपीवाले के शब्द तक पहुंचा तो उसका हाल बदल गया वह अचेत होकर गिर पड़ा। बादशाह घबराकर उनके पास गया। वैद्य हकीम जो सभामें थे मृगीका भ्रम करके नाड़ी देखने और दवा देने लगे। परन्तु उसका काम तो गिरतेही पूरा होगया था उसको उठाकर घर ले गये। बादशाहने उसके बेटोंके पास रुपये भेजे। वह लिखता है कि ऐसा मरना मैंने आजतक नहीं देखा था।

उर्छा।

२१ (बैशाख बदी ८) शुक्रवारको किशवरखां दो हजारी जात और दो हजार सवारका मनसब, इराकी घोड़ा और जगजीत नाम खासा हाथी पाकर उर्छा देशकी फौजदारी पर नियत हुआ।

राजा मानसिंहको हाथी।

राजा मानसिंहके वास्ते बादशाहने खासा हाथी आलमकमान नाम हबीबुल्लहके हाथ भेजा।

केशवमारूको खासा घोड़ा।

केशवमारूके वास्ते खासा घोड़ा बंगाल में भेजा गया।

सन्यासीके चेलेको दण्ड।

कमरदीनखांका बेटा कौकब नकौबखांके लड़के अबदुललतीफ और शरीफ जो कौकबके चचेरे भाई थे तीनों एक सन्यासीके चेले होकर उसके धर्म्म पर चलने लगे थे। बादशाहने उनको बुलाकर कुछ पूछ ताछ की। कौकब और शरीफको तो पिटवाकर कैद कर दिया और अबदुललतौफको अपने सामने सौ कोड़े लगवाये।

अमीरों पर कृपा।

पास और दूरके अमीरोंको सिरोपाव दिये और भेजे गये राजा कल्याणके वास्ते इराको घोड़ा भेजा गया।

आग।

१ सफर (बैशाख सुदी ३) चन्द्रवारकी रातको खिदमतगारोंकी भूलसे ख्वाजा अवुलहसनके घरमें आग लगी जिसमें बहुतसा माल असबाब जल गया। बादशाहने उसकी सहायतके लिये चालीस हजार रुपये दिये।

न्याय।

एक विधवा स्त्रीने मुकर्रबखां पर यह पुकार की कि खंभात बन्दरमें उसने मेरी लड़की जबरदस्ती छीन ली। जब मैंने मांगी तो कहा कि मर गई। बादशाहने बहुतसो छानबीनके पीछे मुक- र्रबखांकी एक नौकरको जो इस अन्यायका कारण हुआ था दण्ड दिया और आधा मनसब मुकर्रबखांका घटाकर उस बुढ़ियाको जीविका करदी और रास्तेका खर्च भी दिया।

दान।

७ (बैशाख सुदी १०) रविवारको दो पापग्रहों (१) का जोग हुआ। बादशाहने चांदी सोने और टूमरी धातुकी बस्तुओं और पशुओंका दान करके कई देशोंके कंगालोंको बांटनेके वास्ते भेजा।

कन्धार।

२ लाख रुपये लाहोरके खजानेमे कन्धारके किलेकी सामग्रीके वास्ते गाजीवेगतरखांके पास भेजे गये।

बिहार में उपद्रव।

१९ फरवरदीन(२) (जेठ बदी २) को पटनेमें एक विचित्र घटना हुई वहांका हाकिम अफजलखां अपनी नई जागीर गोरखपुरमें जो पटनेसे ६० कोम है गया था। उसका विचार था कि जब कोई शत्रु नहीं है तो अधिक प्रबन्ध करनेको आवश्यकता नहीं है किला और शहर शैख बनारसी तथा दीवान गयासजैनखानीको सौंपा गया था उस समय उरछाके लोगोंमेंसे कुतुब नाम एक अप्रसिद्ध पुरुष फकीर बना हुआ उज्जैनियों(३)के देशमें जो पटनेके पास


(१) चण्डू पञ्चाङ्गमें बैशाख सुदी १० को संगल और शनि कुंभ राशि पर थे शनि बैशाख बदी ७ को कुंभ राशि पर आकर मंगलके शामिल हुआ था। बादशाही पञ्चांगमें बैशाख सुदी १० को आया होगा।

(२) तुजुकजहांगीरी में १९ फरवरदील ४ सफारको लिखा है पर ४ सफर तो फरवरदीनको थी और १९ फरवरदीनको १४ थी पर आगे रविवारका दिन भी लिखा है सो रविवार १९ उर्दीबहिश्त को था इसलिये १९ और १४ ही सही है।

(३) उज्जैनियोंका देश वही गोरखपुरका प्रान्त जहां उज्जैनिया जातिके पंवार राजपूत रहते हैं। है आया और वहांवालोंसे जो पक्के दंगई हैं मेलमिलाप करके बोला कि मैं खुसरो हूं बन्दीखानेसे भागकर आया हूं। जो तुम मुझे सहायता दोगे तो कार्य्यसिद्ध होनेके पीछे तुम्ही मेरे प्रधान कार्य्यकर्ता रहोगे।

उसने अपने खुसरो होनेका निश्चय करानेके लिये उन्हें अपनी आंखके पास घावका एक चिन्ह दिखाया। कहा कि कारागारमें मेरी आंख पर एक कटोरी बांधी गई थी उसका यह चिन्ह है। इस छलसे बहुतसे पैदल और सवार उसके पास जुड़ गये और अफजलखांक पटने में न होनेको अपना अहोभाग्य समझकर चढ़ दौड़े और गत रविवारको २।३ घड़ी दिन चढ़े पटने में जा पहुंचे। किसी बातका विचार न करके सीधे किलेको गये। शैख बनारसी घबरा कर द्वार पर आया। परन्तु किवाड़ बन्द करनेका अवकाश न पाकर दीवान गयास सहित खिड़कीसे बाहर निकला और नावमें बैठकर अफजलखांको समाचार देनेको गया।

उन दुराचारियोंने किले में घुसकर अफजलखांका धनमाल बाद- शाही खजाने सहित लूट लिया। शहरके भीतरी और बाहरी बदमाश सब उससे आमिले।

अफजलखांको गोरखपुरमें यह खबर लगतेही बनारसी और गयास भी जलमार्गसे वहां पहुंचे। शहरसे लिखा आया कि यह खुसरो नहीं है। तब अफजलखां रामभरोसे शत्रुसे लड़नेको चल कर पांचवें दिन पटनेके पास पहुंचा। यह सुनकर कुतुबने भी अपने एक विश्वासपात्रको किलेमें छोड़ा और चार कोस सामने आकर पुनपुन नदीके ऊपर अफजलखांसे लड़ाई की और शीघ्रही भागकर किले में घुस गया। पर अफजलखांके पीछे लगे चले आने में किवाड़ मूंदनेका औसान न पाकर उसीकी हवेलीमें जा बैठा और दोपहर तक लड़ता रहा। तीस आदमी तीरोंसे मारे। फिर जब उसके साथी मारे गये तो शरण लेकर अफजलखांके पास चला आया। अफजलखांने उपद्रव मिटानेके लिये उसको उसी दिन मार डाला और उसके साथियोंको पकड़ लिया। बादशाहने जब यह समाचार सुने तो बनारसी गयास और दूमरे मनसबदारोंकों जिन्होंने किलेकी रखवाली नहीं की थी बुलवाया उनके सिर और मूछें मुंडवाकर ओढ़नी उढ़वाई और गधे पर बैठाकर आगरके बाहर और बाजारोंमें फिरवाया जिससे दूसरे लोगोंको डर हो।

दक्षिण।

१६ सफर (जेठ बदी ३) को बादशाहने परवेज और शुभचि- न्तक अमीरोंके लिखनेसे मीर जमालुद्दीन हुसैन अनजूको आदिल खां और दूसरे दक्षिणी जमींदारोंके मनका सन्देह दूर करने और उनको बादशाही सेवामें लगानेके लिये दस हजार रुपये देकर दक्षिणको भेजा।

बांधों पर सेना।

बांधोंके जमींदार विक्रमाजीतको दण्ड देनेके लिये जिसने अधीनता छोड़ दी थी बादशाहने राजा मानसिंहके पोते महासिंह को भेजा और यह हुक्म दिया कि उधरके दुराचारियोंको विध्वन्स करके राजाकी जागीर पर अपना दखल करलें।

राणाको मुहिम।

२८ (जेठ बदी ३०) को अबदुल्लहखां फीरोजजंगकी अरजी कई साहसी सरदारोंकी सुफारिशमें पहुँची। उन्होंने राणाकी लड़ाई में अच्छे काम किये थे। बादशाहने उनमेंसे गजनीखां जालोरीकी सेवा सबसे अधिक देखकर उसके मनसब पर जो डेढ़ हजारी जात और तीनसौ सवारोंका था पांच सदी जात और चारसौ सवार और बढ़ा दिये। ऐसेही औरोंके भी मनसब बढ़ाये।

काले पत्थरका सिंहासन।

४ महर चन्द्रवार(१) (आश्विन सुदी १०) को दौलतखां इलाहा


(१) तुजुक जहांगीरी (पृष्ठ ८५) में ४ महर बुधको लिखी है सो अशुद्ध है चन्द्रवारको चाहिये क्योंकि आगे १० आजर शुक्रकी रातको ठीक लिखी है दिनको गुरु और रातको शुक्र मुसलमानी हिसाबसे होजाता हैं। बादसे काले पत्थरका सिंहासन लाया उसे बादशाहने मंगवाया था। यह दो गिरह कम ४ गज लम्बा अढ़ाई गज और तीन तसू चौड़ा और ३ तसू मोटा बहुत काला और चमकदार था। बादशाहने उसकी कोरों पर कुछ कविता खुदवाकर पाये भी वैसेही पत्थरके लगवा दिये। बादशाह कभी कभी उस पर बैठा करता था।

दक्षिण।

१२ महर (कार्तिक बदी ३) को खानजहांकी अरजी पहुंची कि खानखानां, आज्ञानुसार महाबतखांके साथ दरबारको रवाने होगया और मीर जमालुद्दीनको आदिलखांके वकीलों सहित बीजापुरको भिजवा दिया है।

सूबेदारोंकी बदली।

२१ महर (कार्तिक बदी १३) मुरतिजाखां पंजाबकी सूबेदारी पर और ताजखां सुलतानसे काबुलकी सूबेदारी पर भेजा गया मुरतिजाखांको खासेका दुशाला मिला और ताजखांके मनसबमें पांच सौ सवार और बढ़कर तीन हजारी और दोहजार सवारोंका मन- सब होगया।

राणा सगर।

अबदुल्लहखां फीरोजजङ्गके प्रार्थना करनेसे राणा सगरके बेटेका भी मनसब बढ़ गया।

खानखानां।

१२ आबान (अगहन बदी ३।४)(१) को खानखानांने जिसे लेने महाबतखां गया था बुरहानपुरसे पाकर मुजरा किया। बादशाह लिखता है--"उसके विषयमें बहुधा शुभचिन्तकोंने यथार्थ और प्रयथार्थ बातें अपनी समझसे कही थीं और मेरा दिल उससे फिर गया था। इसलिये जो कृपा मैं सदामे उसपर करता था या अपने बापको करते देखता था वह इस समय नहीं की। ऐसा करने में मैं सच्चा था क्योंकि वह इससे पहिले दक्षिण देशके साफ करनेकी


(१) इस दिन तिथि छेद था अर्थात् दोनों तिथियां एक दिन थीं। अवधि नियत करके प्रतिज्ञापत्र देघुका था और सुलतान परवेजकी सेवामें दूसरे अमीरों सहित उस बड़े काम पर गया था। परन्तु बुरहानपुरमें पहुंचे पीछे समयानुसार रसद और दूसरी आवश्यक बस्तुओंका प्रवन्ध न किया। जब सुलतान परवेज घाटके ऊपर फौजें लेकर गया और सरदारोंकी फूटसे काम बिगड़ा तो अनाज का मिलना ऐसा कठिन हुआ कि एक मन बहुतसे रुपयोंमें नहीं मिलता था। घोड़े ऊंट और दूसरे पशु मर गये। सुलतान परवेजने देशकाल देखकर शत्रुओंसे सन्धि की और लशकरको बुर- हानपुरमें लौटा लाया। इस दुर्घटनाका कारण सब शुभचिन्तकोंने खानखानांका विरोध और कुप्रवन्ध जानकर दरबारमें अर्जियां लिखीं। उन पर विश्वास तो न हुआ परन्तु दिलमें खटका पड़ गया। अन्तमें खानजहांकी अर्जी पहुंची कि यह सब खराबी खानखानांके अन्तरद्रोहसे हुई है। अब इस काम पर या तो उसी को स्वतन्त्रतासे रखना चाहिये या उसको दरगाहमें बुलाकर मुझ कृपापात्रको यह सेवा सौंपनी चाहिये और तीस हजार सवारोंको सहायता भी देनी चाहिये। दो सालमें वह सब बादशाही मुल्क जो गनीमने लेलिया है छुड़ाकर कन्धार(१)का किला सीमाप्रान्तके दूसरे किलों सहित जीत लूंगा। बीजापुरका देश भी बादशाही राज्यमें मिला दूंगा। यह सब काम ऊपर कही अवधिमें न कर डालूं तो दरबारमें मुंह न दिखाऊंगा।

"जब सरदारों में और खानखानांमें यहांतक खिच गई तो मैंने उसका वहां रहना उचित न देखकर खानजहांको सेनापति किया और खानखानांको दरगाहमें बुला लिया। अभी तो यह कारण कृपा नहीं होनेका है आगे जैसा कुछ प्रगट होगा वैसाही बरताव होगा।"

खानखानांके बेटे दाराबखांको हजारी जात और पांच सौ सवारकी नौकरी और गाजीपुरकी सरकार जागीरमें दीगई।


(१) मुसलमानी हिसाबसे शुक्रकी रात। १७ आबान (अगहन बदी ९) मङ्गलवारको खुर्रमका व्याह मिरजा मुजफ्फरहुसैन सफवीकी बेटोसे हुआ। बादशाहांखुर्रमके घर गया। रातको वहीं रहा। बहुतसे अमीरोंको सिरोपाव मिले और कुछ कैदी भी गवालियरके किले से छोड़े गये। कुछ चांदी सोना और अन्न आगरेके फकीरोंको बांटा गया।

दक्षिण।

इसी दिन खानजहांकी अर्जी पहुंची कि खानखानांके बेटे एरज को शाहजादेकी आज्ञा लेकर दरबारमें भेजा है। अबुलफतह बीजापुरीके भेजनेका भी हुक्म था परन्तु वह कामका आदमी है और अभी उसके भेजनेसे दक्षिणी सरदारोंको आशा भङ्ग होती है जिनको बचनपत्र दिये गये हैं, इसलिये रख लिया है। राय कल्ला के बेटे केशवदास मारूके वास्ते हुक्म हुआ कि उसके भेजने में ढील भी हो तोभी जैसे बने वैसे भेजदो। शाहजादेने यह बात जानते ही उसे छुट्टी देदी और कहा कि मेरी तरफसे अर्जी में लिखना कि जब मैं अपना जीना पूज्यपिताकी सेवाहीके लिये चाहता हूं तोकेशवदासका होना न होनाही क्या जो उसे भेजनेमें ढील करूं? पर मेरे विश्वासपात्र नौकरोंके किसी न किसी प्रसङ्गसे बुला लेनेसे दूसरे आदमी निराश और हताश होते हैं इससे सीमाप्रान्तमें आपकी अप्रसन्नताका भ्रम फैलता है। आगे आपकी इच्छा।

अहमदनगरका छूटना।

जिस दिनसे अहमदनगर शाहजादे दानियालने लिया था अब तक ख्वाजाबेगसिरजा सफवीके संरक्षणमें था। यह मिरजा ईरानके शाहतुहमाल्य सफबीके भाई बन्दोंमेंसे था। अब दक्षिणियोंने आकर उस किलेको घेरा तो मिरजाने उसके बचाने में कोताही न की। खानखानां और दूसरे अमीर जो बुरहानपुरमें इकट्ठे हुए थे परवेज के साघ दक्षिणियोंसे लड़नेको गये परन्तु आपसके विरोधसे उस भारी लशकरको जो बड़े बड़े काम करनेको समर्थ था धान चारेंका प्रवन्ध किये बिना औघट घाटों और बिकट पहाड़ोंमेंसे लेगये। इससे थोड़ेही दिनोंमें यह दशा होगई कि लोग रोटीके वास्ते जान देने लगे। तब लाचार होकर रास्तेमेंसेही लौट आये और किले वाले जो इनके आनेका रास्ता देख रहे थे यह समाचार सुनतेही घबराकार निकलने लगे। ख्वाजाबेगमिरजाने उनको बहुत रोका। जब नहीं रुके तो निदान सन्धि करके अपनी सेना सहित निकाला और बुरहानपुरमें शाहजादेके पास आगया। बादशाहको जब इस हालकी अर्जी पहुंची तो उन्होंने ख्वाजाबेगका कुछ कसर न देखकर उसका मनसब जो पांच हजारी जात और सवारका था बना रखा और उसके वास्ते जागीर देनेका भी हुक्म चढ़ा दिया।

बीजापुर।

९ रमजान (अगहन सुदी ११) को दक्षिणसे कई अमीरोंकी, अर्जी पहुंची यि मीर जमालुद्दीन २२ शावान (अगहन बदी ९) को बीजापुर पहुंचा। आदिलखांने अपने वकीलको २० कोस अग- वानीमें भेजा था तीन कोस तक आप भी आकर मीरको अपने स्थान पर लेगया।

शिकार।

१५ (पौष बदी २) गुरुवारकी रात(१)को एक पहर छ: घड़ी रात गये ज्योतिषियोंके बताये हुए मुहर्तमें बादशाहने आगरेसे शिकारके वास्ते प्रयाण करके दहराबागमें डेरा किया। खेतीका बिगाड़ न होनेके अभिप्रायसे हुक्म दिया कि आवश्यक सेवकों और निज अनुचरोंके अतिरिक्त और सब लोग नगरमें रहें। नगरकी रक्षा ख्वाजेज़हांको सौंपी।

२८ आजर २१ रमजान (पौष बदी ९) को ४४ हाथी जो कासिमखांके बेटे हाशिमखांने उड़ीससे भेटके लिये भेजे थे, पहुंचे। उनमेंसे एक हाथी बादशाहके बहुत पसन्द आया। वह खासेके हाथियोंमें बांधा गया।

सूरज गहन।

२८ रमजान (पौष बदी ३०) को सूरजगहन(१) हुआ।


(१) मुसलमानी हिसाबसे शुक्रकी रात।

(२) चण्डू पञ्चांगमें यह गहन धन राशि पर १५ विश्वा लिखा है।

[ १२ ]
 

बादशाहने उसका भार निवारण करनेके वास्ते अपनेको सोने चांदी में तौला। अठारहसौ तोले सोना और उननचास सौ रुपये चढ़े। यह धन अनेक प्रकारके धान्य और हाथी घोड़े गाय आदि सहित सागर तथा अन्य नगरों में भेजकर गरीबोंको बंटवा दिया।

दक्षिण और खानआजम।

दक्षिणमें परवेजके सेनापति, खानखानांके मुखिया, राजा मान- सिंह, खानजहां, आसिफखां, अमीरूलउमरा जैसे बड़े बड़े अमीरों तथा दूसरे सरदारों और मनसबदारोंके सहायक होनेसे भी कुछ काम नहीं निकला था बल्कि यह लोग अहमदनगर जाते हुए आधे रास्ते से लौट आये थे जिसके विषयमें भरोसेके मनुष्यों और सच्चे खबरनवीसोंने बादशाहको अर्जियां लिखी थीं कि इस लशकरके तितर बितर होनेके और भी कई कारण है। परन्तु उनमें मुख्य अमीरोंकी फूट और विशेष करके खानखानांको अन्तरदुष्टता है। इसपर बादशाहने उस गड़बड़की शान्तिके लिये खानआजमको नई सेनाके साथ भेजना स्थिर करके ११ दे (माघ बदी ३) को यह सेवा उसे सौंपी और दीवानोंसे शीघ्रही उसके जानेका प्रवन्ध कराके एक हजार मनसबदार सवारों दोहजार अहदियों और खानआलम आदि अमीरोंके साथ उसको बिदा किया। कई हाथी और तीस लाख रुपये दिये। भारी सिरोपाव जड़ाऊ तलवार जड़ाऊ जीनका घोड़ा और खासा हाथी देकर पांच लाख रुपये मददखर्चके लिये दिलाये जिनके वास्ते दीवानोंको उसकी जागीरसे भरा लेनेका हुक्म हुआ। उसके साथके अमीरोंको भी घोड़े और सिरोपाव मिले। महाबतखांके मनसबके चार हजारी जात और तीन हजार सवारों पर पांचसौ सवार और बढ़ाकर हुक्म दिया कि खानआजम और इस लशकरको बुरहानपुरमें पहुंचाकर खानआजमकी सरदारीका हुक्म वहांके सब अमीरोंको सुना दे और पहले भेजे हुए लशकर में जो गड़बड़ हुई है उसका निर्णय करके खानखानांको अपने साथ

ले आवे।

अनूपरायका सिंहदलन होना।

४ शव्वाल (पौष सुदी ४) रविवारको बादशाह चीतेके शिकार में लगा हुआ था कि एक सिंह उठा और अनूपराय उससे लड़ा। इसका वृत्तान्त बादशाह यों लिखता है--"मैंने यह बात ठहराई है कि रविवार और गुरुवारको कोई जीव नहीं मारा जावे और मैं भी इन दोनो दिनों में मांस नहीं खाता हूं।"

"रविवारको तो इस हेतु कि मेरे पिता उस दिनको पवित्र जानकर मांस नहीं खाते थे। पशुहिंसाका भी निषेध था क्योंकि उस दिन रातको उनका जन्म हुआ था। वह फरमाया करते थे कि इस दिन उत्तम बात यही है कि जीव जन्तु कासाइयोंकेसे स्वभाववाले मनुष्योंकी दुष्टतासे बचे रहें।

गुरुवार मेरे राज्याभिषेकका दिन है। इस दिन मैंने भी जीवों के नहीं मारनेका हुक्म देरखा है। दोनों दिन शिकार भी मैं तीर और बन्दूकसे नहीं मारता हूं।

जब चीतेका शिकार होरहा था तो अनूपराय जो निज सेवकों मेंसे है, कई लोगोंको जो शिकार में साथ रहते हैं मुझसे कुछ दूर छोड़कर आता था। एक वृक्ष पर कई चीलें बैठी देख कमान और कई तुक्के लेकर उधर गया तो एक अधखाई गाय पड़ी देखी और साथही एक बड़ा भयङ्कर सिंह झाड़ों मेंसे निकल कर चला। उससमय दो घड़ीसे अधिक दिन नहीं था तोभी उसने उस सिंहको घेर कर मेरे पास आदमी भेजा। क्योंकि वह खूब जानता था कि मेरी रुचि सिंहके शिकार में कितनी अधिक है।

मेरे पास यह खबर पहुँची तो मैं तत्काल व्याकुलतासे घोड़ा दौड़ाता हुआ गया। बाबा खुर्रम, रामदास, एतमादराय, हयातखां तथा एक दो और मेरे साथ हुए। वहां पहुँचतेही मैंने देखा कि सिंह एक बृक्षकी छायामें बैठा है। मैंने चाहा कि घोड़े पर चढ़े ही चढ़े बन्दूक मारूं परन्तु घोड़ा एक जगह नहीं ठहरता था इस लिये मैं पैदल होगया और बन्दूक सीधी करके छोड़ी। सिंहके लगी या नहीं इसका कुछ पता न लगा। क्योंकि में ऊंचे पर था और सिंह नीचे। क्षणभर पीछे मैंने घबराहटमें दूसरी बन्दूक चलाई। शायद यह गोली उसके लगी। वह उठा और दौड़ा। एक मीर शिकारी शाहीनको हाथ पर लिये उसके सामने पड़ा। वह उसको घायल करके अपनी जगह जा बैठा। मैंने दूसरी बन्दूक तिपाये पर रखकर तोली। अनूपराय तिपायेको पकड़े खड़ा था एक तलवार उसकी कमरमें थी और लाठी हाथमें। बाबा खुर्रम बाई ओर कुछ फासिलेसे था और रामदास तथा दूसरे नौकर उसके पीछे थे। कमाल किरावल (शिकारी) ने बन्दूक भर कर मेरे हाथमें दी। मैं चलायाही चाहता था कि इतनेमें शेर गरजता हुआ हमारे ऊपर झपटा। मैंने बन्दूक मारी। गोली उसके मुंह और दांतोंमें होकर निकल गई। बन्दूककी कड़कसे वह और बिफरा। बहुतसे सेवक जो वहां आ भरे थे डरकर एक दूसरे पर गिर गये। मैं उनके धक्के से दो एक कदम पीछे जापड़ा । यह मुझे निश्चय है कि दो तीन आदमी मेरी छाती पर पांव रख कर मेरे ऊपर से निकल गये। मैं एतमादराय और कमाल किरावल के सहारेसे खड़ा हुआ इस समय सिंह उन लोगों पर गया जो बाई तरफ खड़े थे। अनपराय तिपायेको हाथसे छोड़कर सिंहके सामने हुआ। सिंह जिस फुरतीसे आरहा था उसी फुरतीसे उसकी ओर लौटा। उस पुरुष सिंहने भी वीरतासे सम्मुख जाकर वही लाठी दोनों हाथोंसे दो बार उसके सिर पर मारी। सिंहने मुंह फाड़कर अनूपरायके दोनो हाथ चबाडाले। परन्तु उस लाठी और कई अंगूठियोंसे जो हाथमें थीं बड़ा सहारा मिला और हाथ बेकार न हुए। अनूपराय सिंहके धक्के से उसके दोनो हाथोंके बीचमें चित गिर गया। उसका मुंह सिंहकी छातीके नीचे था। बाबा खुर्रम और रामदास अनूपरायकी सहायताको बढ़े। खुर्रम ने एक तलवार सिंहकी कमर पर मारी रामदासने दो मारीं। जिनमेंसे एक उसके कन्धे पर पूरी बैठी हयातखांके हाथमें लाठी थी वही उसने कई बार उनके मस्तक पर दी। अनूपरायने चल करके अपने हाथ सिंहके मुंह से छुड़ा लिये और दो तीन घूंसे जबड़े पर मारे और करवट लेकर घुटनेके बल उठ खड़ा हुआ। सिंहके दांत उसके हाथोंमें पार होगये थे इसलिये उसके मुंहसे हाथ खेंचे तो उस जगहसे फट गये और सिंहके नाखून भी उसको कन्धेसे निकल गये थे।

अनूपरायको खड़े होतेही शेर भी खड़ा होगया और उसकी छाती पर नाखून और पंजे मारने लगा। जिनके घावोंने कई दिन तक उसको व्याकुल रखा। फिर वह दोनो दो मल्लोंके समान एक दूसरे से लिपटकर उस ऊंची नीची धरतीमें लुढ़क गये। मैं जहां खड़ा था वह भूमि समान थी। अनूपराय कहता था कि पर- मेश्वरने मुझे इतना औसान दिया कि सिंहको मैं उधर लेगया और मुझे कुछ खबर नहीं है।

अब सिंह उसको छोड़कर चल देता है। अनूपराय उसी बेहोशी में तलवार सूंतकर उसके पीछे जाता है और उसके सिर पर मारता है। सिंह जो पीछेको मुंह फेरता है तो दूसरा हाथ फिर उस पर झाड़ता है जिससे दोनो आंखें उसकी कट जाती हैं और भंवोंका मांस कटकर आंखों पर आजाता है। उसी अवसर पर सालह नाम चरागची (नाई) घबराया हुआ आता है क्योंकि दीपक का समय होगया था सिंह एक ही तमांचे में उसको गिरा देता है। गिरना और मरना एक था। दूसरे आदमियोंने पहुंचकर सिंहको मार डाला।

अनूपरायसे इस प्रकारजी सेवा बन आई और उसका ऐसा जान लड़ाना देखा गया। घाव भर जानेके पीछे अच्छा होकर जब वह मुजरा करनेको आया तो मैंने उसको अनीराय सिंहदलनका खिताब दिया और कुछ उसका मनसब भी बढ़ाया। अनीराय हिन्दी भाषामें फौजके सरदारको कहते हैं ओर सिंहदलनका अर्थ

शेर मारनेवाला है।

शिकार।

२३ जीकाद (फागुन बदी ९) रविवार(१)को बादशाहने ७६६ मछलियां पकड़कर अपने सम्मुख अमीरों और दूसरे नौकरोंको बांटीं।

एक ऊंट जिस पर ५ नीलगायें ४२ मनकी लादी गई थीं उठ कर खड़ा होगया था। यह ऊंट शिकारके घरमें उत्पन्न हुए ऊंटों मेंसे था।

मुल्ला नजीरी जो फारसी भाषाका अच्छा कवि था गुजरातमें व्यापार करता था। बादशाहने प्रशंसा सुन कर उसे बुलाया। उसने आकर एक कविता सुनाई। बादशाहने एक हजार रुपये घोड़ा और सिरोपाव उसको दिया।

मुरतिजाखांने हकीम हमीद गुजरातीकी बहुत प्रशंसा की थी बादशाहने उसको बुलाया और हकीमोंसे अधिक उसमें सज्जनता देखी। परन्तु यह भी सुना कि गुजरातमें उसके सिवा कोई हकीम नहीं है और वह भी जाना चाहता था इसलिये एक हजार रुपये कई शाल दुशाले और एक गांव देकर बिदा किया।

बकरईद।

१० जिलहज्ज (फागुन सुदी १२) गुरुवारको पशुवध बन्द हो चुका था इसवास्ते बादशाहने शुक्रवारको ईदका बलिदान करनेकी आज्ञादी और तीन बकरियां अपने हाथसे बध कीं। फिर शिकार को गया एक नीलगायने बहुत थकाया जो कईबार गोली खाकर


(१) तुजुक जहांगीरीमें तारीख ३ जीकाद रविवारको लिखी हैं वह पंचांगसे नहीं मिलती जिसके हिसाबसे तारीख ३ मंगलको होती है यह तारीख ३ मूलमें २३ होगी। लेखककी भूलसे ३ लिखी रह गई। २३ को चण्डू पंचांगसे तो चन्द्रवार होता है पर बादशाही पंचांगमें रविवार होगा और शव्वालका महीना २९ दिनका माना गया होगा जो चण्डू पंचांगके हिसासे ३० दिनका होता है। चली गई थी और अब भी तीन गोलियां खाचुकी थी। बादशाह उसके पीछे पीछे फिरता रहा। निदान यह संकल्प किया कि जो यह नीलगाय गिरेगी तो इसका मांस ख्वाजे मुईनुद्दीनके अर्पण कर के फकीरोंको बांट दूंगा एक मोहर एक रूपया अपने बापके भी भेट करूंगा।

ऐसा कहतेही वह नीलगाय थककर गिरी और बादशाहने उस का मांस तथा मोहर और रुपयेका शीरा पकवाकर अपने सामने भूखों और फकीरोंको खिला दिया।

दो तीन दिन पीछे फिर एक नीलगायके पीछे बादशाह कंधे पर बन्दक रखे हुए शाम तक फिरता रहा परन्तु वह एक जगह नहीं ठहरती थी दिन छिपने पर उसके मारने से निराश होकर फिर बादशाहने कहा कि ख्वाजा यह नीली भी तुम्हारे नजर है यह कहना था कि वह बैठ गई और बादशाहने उसको बन्दूकसे मार कर उसका मांस भी उसी भांति फकीरों को खिला दिया।

चैत बदी ७ शनिवारको ३३० मछलियोंका शिकार हुआ।

१९ शनि (चैत बदी ३०) की रातको बादशाह रूपवासमें आगया। जो उसकी निज शिकारगाह थी और जिसके आसपास भी किसीको शिकार मारनेकी आज्ञा न थी। इससे वहां असंख्य हरन भर गये थे वह बस्ती में चले आते थे और सब प्रकारकी हानि से बचे रहते थे। बादशाहने दो तीन दिन वहां शिकार खेलकर बहुतसे हरन बन्दूकसे मारे और चीतोंसे मरवाये।


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सातवां वर्छ ।

सन् १०२०। चैत्र सुदौ ३ संवत् १६६८ से फागुन सुदी २ संवत् १६६८ तक। गैंडा राजधानीमें प्रवेशका मुहूर्त समीप आजानेसे बादशाह २ मुह- रंम (चैत्र सुदी ३) गुरुवारको अबदर्रज्जाक मामूरीके बाममें आया। खाजाजहां वगैरह आगरेसे वहां आगये। खानखानांके बेटे एरजने भी जो दक्षिण बुलाया गया था वहीं उपस्थित होकर मुजरा किया। शुक्राको भी बादशाह उसी बागमें रहा। अबदुरंबाकने अपनी भेट दिखाई। शिकारको संख्या। तीन महीने बीस दिन में १४१४ पशु पक्षी शिकार हुए थे- सिंह १२ खरगोश नीलगाय १०८ चिवारे मछलियाँ १०८६ कोतापाचा उकाब हरनके बच्चे तमदरी काले हरन मोर हरनी करवानक लोमड़ी तीतर कोराहरन सुरखाब १ पातख सारस रोछ ढीक १४१४ आगर में प्रवेश। ४ मुहर्रम २८ असफंदार (चैत्र सुदी ५ संवत् १६६८) शनिवार AY को बादशाह हाथीपर सवार हो अबदुर्रज्जाकके बागसे किलेके दौलतखाने तका जिसका फासिला एक कोस और २० डोरी था पन्द्रहसौ रूपये लुटाता गया और ज्योतिषियोंके दिये हुए मुहर्त्तमें नये राजभवनमें पहुंचा जिसके बनानेका हुक्म शिकारको जाते हुए देगया था। उस राजभवनको ख्वाजेजहांने इतनी थोड़ी अवधिमें,अति परिश्रमसे बनवाकर और रंग भरवाकर तैयार कर छोड़ा था और अपनी भेट भी उसमें सजा रखी थी जिससे बादशाहने कुछ लेकर शेष उसको बख्श दी और भवनको पसन्द करके उसकी कार्य्यवाहीकी प्रशंसा की।

बाजार भी नौरोजके प्रसंगसे मजाये गये थे।

छठा नौरोज।

६ मुहर्रम (चैत सुदी ७) चन्द्रवारको दो घड़ी ४० पल दिन चढ़े सूरज भगवान अपने उच्चभवन मेख राशिमें आये। बादशाह को राज्याभिषेकका छठा नौरोज हुआ जिसकी मजलिसें जुड़ीं। बादशाह तख्त पर बैठा। अमीरों और सब चाकरोंने मुजरा किया, बधाई दी। मीरान सदरजहाँ, अबदुल्लहखां, फीरोजजंग और जहांगीरकुलीखांकी भेट स्वीकार हुई।

८ (चैत सुदी १०) बुधको राजा कल्याणकी भेट जो बंगालसे आई थी दृष्टिगोचर हुई।

९ (चैत सुदी ११) गुरुवारको शुजाअतखां और कई मनसबदार जो दक्षिणसे बुलाये गये थे हाजिर आये।

मुरतिजाखांकी भेटमें बहुत तरहके बहुतसे पदार्थ थे। बादशाहने सबको देखकर कुछ जवाहिर उत्तम कपड़े और हाथी घोड़े लेलिये बाकी उसीको देदिये।

शुजाअतखां बङ्गालमें इसलामखांके पास कायममुकामीका काम करनेको भेजा गया। ख्वाजाजहां आदि कई अमीरों के मनसब बढ़े कईको सिरोपाव मिले। खुर्रमको आठ हजारी जात और

पांच हजार सवारोंके सनसब पर दो हजारी जातकी वृद्धि हुई।

ईरानका एलची।

१८(१) फरवरदीन (बैशाख बदी १०) को संक्रांति(२)का उत्सव हुआ। ईरानके शाह अब्बासके एलची यादगारअलीने हाजिर होकर मुजरा किया। शाहका पत्र दिया सौगातें जो लाया था दिखाईं। उनमें अच्छे अच्छे घोड़े और कपड़ोंके थान थे। बाद- शाहने उसको भारी खिलअत और तीस हजार रुपये दिये। पत्रमें अकबर बादशाहके मरनेका शोक और जहांगीरके गद्दी पर बैठने का हर्ष था।

खानखानांके बेटे एरजको शाहनवाजखांका खिताब मिला।

मोहरों और रुपयोंका तौल।

बादशाहने तख्त पर बैठतेही बाट और गज बढ़ा दिये थे। रुपये और मोहरका तौल तीन रत्ती अधिक कर दिया था। परन्तु अब यह बात जानकर कि प्रजाका हित मोहर और रूपयेका पुराना तौल रहनेहीमें है अपने तमाम देशों में हुक्म भेज दिया कि ११ उर्दीबहिश्त (जेठ बदी ४) से टकसालों में रुपये और मोहरें जैसे पहिले बनती थीं वैसीही बना करें।

२ सफर १०२० (बैशाख सुदी ४) शनिवारको अहदाद यह सुनकर कि काबुलमें कोई बड़ा सरदार नहीं है खानदौरां बाहर गया हुआ है केवल मुअज्जु लमुल्क थोड़ेसे आदमियोंसे है, बहुतसे सवार और पैदल लेकर काबुलपर चढ़ आया। उसके पठान अलग अलग टोलियां बांधकर शहर के बाजारों और कूचोंमें घुस गये। परन्तु मुअज्जु लमुल्क और पुरवासी काबुलियों और कजलबाशोंने लड़कर उनको भगा दिया और उनके मुखियाको जिसका नाम सकी था मार डाला। अहदाद यह दशा देखकर भाग गया उसके ८० आदमी मारे और २५० घोड़े पकड़े गये।


(१) तुजुकमें इस दिन २४ मुहर्रम लिखी है, २३ चाहिये क्योंकि १ फरवरदीन ६ मुहर्रमको थी।

(२) चण्डू पञ्चाङ्गमें भी मेख संक्रान्ति इसी दिन लिखी है। बादशाहने यह समाचार सुनकर मुअज्जु लमुल्क और नादअली के मनसब बढ़ाये और अहदादके दमन करनेमें खानदौरां और काबुलियोंकी सुस्ती देखकर बेटों सहित खानखानांके भेजनेका विचार किया जो दरबारमें बेकार बैठा था। इतनेमेंही कुलीचखां जो पञ्जाबसे बुलाया गया था आगया और खानखानांको नियत होनेसे दिल में दुखी हुआ। निदान जब उसने इस कामका स्पष्ट वचन दिया तो बादशाहने पञ्जाबका सुबा तो मुरतिजाखांको दिया और कुलीचखांको छः हजारी जात और पांच हजार सवारों का मनसब देकर काबुलको संरक्षण तथा अहदाद और पहाड़ी चोरों के शासन पर नियत किया। खानखानांसे कहा कि सूबे आगरेसे सरकार कन्नौज और कालपीको जागीरकी तनखाहसें लेकर उस देशक दुष्टोंका दमन करे। बिदा करते समय प्रत्येकको खासे खिलअत हाथी और घोड़े दिये।

महाबतखां जो दक्षिण सेनाके अमीरोंको आपसमें मेल मिलाप रखनेका हुक्म सुनानेके लिये गया था २१ रबीउस्तानी (द्वितीय आबाढ़ बदी ९) को दक्षिणसे लौट आया।

इसलामखांके लिखनेसे इनायतखांका मनसब पांच सदी जात बढ़कर दो हजारी होगया और राजा कल्याण पांच सदी जात और तीन सौ सवार बढ़नेसे डेढ़ हजारी जात और आठ सौ सवारोंके मनसबको पहुंचा।

हाशिमरखांको जो उड़ीसेमें था कशमीरकी सूबेदारी दीगई। इसके वहां पहुंचने तक काम करनेके लिये इसका चचा ख्वाजगी मुहम्मदहुसैन कशमीरमें भेजा गया। हाशिमखांके बाप मुहम्मद कासिमने अकबर बादशाहके समयमें कशमीरको जीता था।

कुलीचखांके बेटे चीनकुलीचको खान पदवी मिली। उसके बापकी प्रार्थना तथा तिराहदेशके प्रवन्धकी प्रतिज्ञा करने पर उसे पांच सदी जात और तीन सौ सवारोंकी तरक्की मिली।

१४ अमरदाद (सावन बदी १३) को एतमादुद्दौलाने पुराना और स्वामिभक्त नौकर होनेसे समग्र राज्यकी दीवानीका महत् पद पाया।

गुजरात।

अबदुल्लहखां फीरोजजङ्गने गुजरातकी ओरसे दक्षिण पर जाने का बचन दिया। इसलिये बादशाहने उसको राणाकी लड़ाईसे बदलकर गुजरातका सूबेदार कर दिया और राजा बासूको पांच सौ सवार बढ़ाकर उसकी जगह राणाकी मुहिम पर भेजा।

मालवा।

खान आजमको गुजरातके बदले मालवेका सूबा दिया गया।

दक्षिण।

अबदुल्लहखांके साथ दक्षिणको एक लशकर नासिकके मार्गसे भेजना ठहरा था उसके खर्च के वास्ते चार लाख रुपये भेजे गये।

विचित्र चित्र।

एक बादशाही गुलामने जो हाथीदांतके कारखानेमें काम करता था फिन्दकके छिलके पर हाथीकी हड्डीसे कटे हुए चित्र जोडकर चार विचित्र चित्र बनाये। पहिला चित्र मन्नोंका अखाड़ा था दो मल्ल कुश्ती लड़ रहे थे। एक हाथमें बरछा लिये खड़ा था दूसरेके हाथमें एक बड़ा पत्थर था एक और जमीन पर हाथ टेके बैठा था एक लड़का एक धनुष और एक बरतन आगे रखा था।

दूसरे चित्र में एक सिंहासन बना था ऊपर शामियाना तना था। उस सिंहासन पर एक भाग्यवान पुरुष पांव पर पांव रखे बैठा था तकिया पीठसे लगा था पांच सेवक आगे पोछे खड़े थे और एक वृक्षकी शाखा उस सिंहासन पर छाया किये हुई थी।

तीसरे चित्रमें नौंका नाटक होरहा था एक लकड़ी खड़ी थी तीन रस्से उससे बंधे थे एक नट उस पर दाहिने पांवको पीठके पीछे बांयें हाथ पकड़े खड़ा था और एक बकरा भी उस लकड़ी पर था। एक आदमी गलेमें ढोल डाले बजाता था दूसरा हाथ ऊंचा किये रस्सीको तक रहा था। पांच आदमी और खड़े थे जिनमेंसे एकके हाथ में लाठी थी। चौथे चित्रमें एक वृक्ष था उसके नीचे पैगम्बर थे। उनके पांव पर सिर रखे हुए था। एक बूढ़ा उनसे बा था चार आदमी और खड़े थे।

बादशाह लिखता है--"एसी कारीगरी अबतक मैंने न देखी थी न सुनी इस वास्ते उसको इनाम दिया और वेतन बढ़ाया।"

३० शहरेवर (भादों सुदी १५) को मिरजा सुलतान दक्षिणने बुलाया हुआ आया। सफदरखांको मनसब बढ़ाकर उस सेनाकी सहायताके वास्ते भेजा जो रानाके ऊपर गई थी।

रामदास कछवाहा।

अबदुल्लहखां बहादुर फीरोजजंगने यह इरादा किया था कि नासिकके मार्गसे दक्षिण में जावे। बादशाह लिखता है--मेरे मनमें यह आया कि रामदास काछवाहेको जो मेरे बापके स्वामि- अत सेवकोंमेंसे है उसके साथ कलं। वह सब जगह उसकी हिफा- भक्त रखे। अनुचित साहस और जल्दी न करने दे। इसके लिये मैंने उस पर बड़ी कृपा की। उसे राजाकी उपाधि दी जिसका उसे ध्यान भी न था। उसे नक्कारा दिया और रणथम्भोरका प्रसिद्ध किला दिया। उत्तम खिलत और हाथी घोड़े देकर बिदा किया।

राजा कल्याण।

बादशाहने बंगालके सूबेदार इसलामखांक लिखनेसे सरकार उड़ीसाकी सरदारी राजा कल्याणको दी। दो सदी जात और दो हजार सवार भी उसके मनसबमें बढ़ाये।

तूरान।

तूरानमें गड़बड़ होनेसे बहुतसे उजबक सरदार और सिपाही बादशाहकी सेवामें आये बादशाहने सबको सिरोपाव घोड़े मनसब रुपये और जागीर देकर नौकर रख लिया।

दक्षिणकी लड़ाई।

२ आजर (अगहन बदी ५) को पांच लाख रुपये रूपखवास और शैख अंबियाके हाथ अहमदाबादकी उस सेनाकी सहायताके वास्ते

[ १३ ]
 

भेजे गये जो अबदुल्लहखां फीरोजजंगकी अफसरीमें दक्षिण जानेको

नियत हुई थी।

शिकार।

१ दे (पौष बदी ३) को बादशाह समू नगरमें शिकार खेलने गया। दो दिन दो रात वहां रहकर रविवारकी रातको शहरमें आगया।

बादशाहकी कविता।

बादशाहने फारसी भाषाका एक शेर बनाया और चरामचियों तथा कहानी कहनेवालोंको याद कराकर फरमाया कि सलाम करने तथा कहानी कहते समय इसको पढ़ा करें। जिससे वह शेर बहुत प्रसिद्ध होगया। उसका यह आशय था—

जब तक आकाशमें सूरज चमकता है।
उसका प्रतिबिम्ब बादशाहके छचसे दूर न हो।

३ दे (पौष बदी ५) शनिवारको खानआजमकी अर्जीमें लिखा आया कि बीजापुरवाला आदिलखां अपने अपराधोंसे पछताकर पहलेसे अधिक आज्ञाकारी और शुभचिन्तक होगया है।

बादशाहकी धर्म्मनिष्ठा।

बादशाहने हुक्मदिया कि बादशाही शिकारके हरनोंके चमड़ेकी जानमाजें(१) बनाकर दीवान खास और आममें रख छोड़ें उन पर लोग नमाज पढ़ा करें। मीरअदल और काजीसे जो धर्म्माधि- कारी थे धर्म्मको प्रतिष्ठाके लिये फरमाया कि जमीन चूमकर मुजरा न किया करें। क्योंकि वह एक प्रकारकी दण्डवत है(२)।

शिकार।

समूनगरमें बहुतसे हरन इकट्ठे होगयेथे इससे बादशाहने ख्वाजेजहां


(१) जिसको बिछाकर नमाज पढ़ते हैं।

(२) मुसलमानी मतमें परमेश्वरके सिवा और किसीको दण्डवत करना मना है। को हाकेका प्रबंध करनेके लिये भेजा था। उसने डेढ़ कोममें कनातें और गुलालबादें(१) लगाकर हरनोंको हर तरफसे उनमें घेरा और बादशाहको खबर दी बादशाह २२ दे (पोष सुदी ९) गुरुवारको मलूनगर गया शुक्रवारसे शिकार शुरू हुआ। नित्य बेगमों सहित उम कनातों में जाकर मनपाने हरन तोर और बंदूकसे मारता। रविवार और गुरुवारको बंदूक नहीं चलाता था। जाल डालदार जीते हरन पकड़ता था। शुक्रवारसे गुरुवार तक ७ दिन में ९१७ हरनी और हरन शिकार हुए। उनमें ६४१ जीते पकड़े थे। जीतोंमेंसे ४०४ तो फतहपुर भेजकर वहांके रमनोंमें छुड़वा दिये। ८४ को नाकमें चांदीकी नथें पहनाकर उसीजगह छोड़ दिया। २७६ जो तीर बंदूक और चीतोंसे मारे गये थे नित्य बेगमों, महल की टहलनियों, अमीरों और ड्योढ़ीके चाकरोंको बांटे जाते थे। जब बादशाह बहुत शिकार करके उकता गया तो अमीरोंको हुक्म दे दिया कि जो बच गये हैं उन्हें वह मारलें और आप शहरमें आगया।

पुण्यशालाएं।

१ वहमन (माघ बदी ३।४) को बादशाहने हुक्म दिया कि बादशाही देशोंके बड़े बड़े शहरों में अहमदाबाद, इलाहाबाद, खाहार, आगरा और दिल्ली आदिके समान खैरातखाने बनावें। छः नगरोंमें पहलेसे थे। २४ नगरों में और नियत हुए।

राजा बरसिंहदेव।

४ (माघ बदी ६) को राजा बरसिंहदेवका मनसब बढ़कर चार हजारी जात और दो हजार सवारका होगया। बादशाहने उप्तको जड़ाऊ तलवार भी दी। दूसरी खासकी तलवार जिसका नाम शेरबच्चा था शाहनवाजखांको इनायत की।


(१) गुलालबाद लाल रंगकी बादशाही किनातेंके घेरेका नाम था।

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आठवां वर्ष।

सन् १०२१।

फागुन सुदी ३ संवत् १६६८ से फागुन सुदी २ संवत् १६६९ तक।

राणाकी लड़ाई।

फागुन सुदी ३ को मिरजा शाहरुखका बेटा बदीउज्जमान राणाके लशकरमें नियत किया गया और उसके हाथ एक तलवार राजा बासूके वास्ते भेजी गई।

जहांगीरी आईन।

बादशाहको सुनाया गया था कि सीमाप्रांतके अमीर कुछ अयोग्य बर्ताव करते हैं उनके तौर(१) तथा जाबतेका ध्यान नहीं रखते। बादशाहने बखशियोंको हुक्म दिया कि सीमाप्रान्तके अमीरोंको लिख देवें कि अबसे फिर यह बातें जो विशेष करके बादशाहोंके करनेकी हैं न किया करें।

१ झरोखेमें न बैठे।

२ अपने सहायक सरदारों और अमीरोंको सलाम करने और चौकी देनेको तकलीफ न दें।

३ हाथी न लड़ावें।

४ दण्ड देनेमें किसीको अन्धा न करें नाक कान न काटें।

५ किसी पर मुसलमान होनेके वास्ते दबाव न डालें।

६ अपने नौकरोंको खिताब न देवें।

७ बादशाही नौकरोंको कोरनिश(२) और तसलीम(३) करनेको न कहें।


(९) चङ्गेजखांके बांधे हुए प्रवन्धोंको तौरा कहते हैं।

(२) झुककर सलाम करना।

(३) गरदन आगे रखकर मुजरा करना। ८ गवैयोंको दरबारके ढ़ङ्ग पर चौकी देनेका कष्ट न देवें।

९ बाहर नक्कारा न बजावें।

१० घोड़ा हाथी चाहे बादशाही नौकरोंको देवें चाहे अपने चाकरोंको, पर बाग और अंकुश उसके कंधे पर रखाकर तसलीम न करावें।

११ सवारीमें बादशाही नौकरोंको अपनी अरदलीमें पैदल न ले जावें और जो कुछ उनको लिखें तो उस पर मोहर न करें।

यह जाबते जहांगीरी आईनके नामसे प्रचलित होगये थे।

सातवां नौरोज।

१६ मुहर्रम (चैत्र बदी ४) मंगलवारको सातवें नौरोजका आगरे में उत्सव हुआ। बादशाह चैत्र बदी ६ गुरुवारको ४ घड़ी रात गये ज्योतिषियोंके बताये हुए मुहर्तमें सिंहासन पर बैठा। अफजलखांकी भेट बिहारसे पहुंची। तीस हाथी १८ गोट(१) बंगालके कुछ कपड़े अगर चन्दनके लठ्ठे कस्तूरीके नाफे तथा अन्यान्य बहुतसी चीजें थीं।

खानदौरांको भेटमें ४५ घोड़े ऊंट दो कतार, चीनी खताई बरतन, समूरके चमड़े और वह पदार्थ जो काबुल मण्डलमें मिल सकते थे आये।

ऐसेही और अमीरोंको भेटें भी विधिपूर्वक उत्सवके दिनोंमें होती रहीं।

बङ्गालमें फतह।

१३ फरवरदीन (चैत्र बदी ३०) को इसलामखांकी अर्जी बंगाल से पहुंची उममें उसमान पठानके मारे जानेका हाल लिखा था। पहिले बंगालमें पठानोंका राज्य था। वह अकबर बादशाहने छीन लिया था। केवल यह उसमान एक कोने में स्वतन्त्र रह गया था। इसलामखांने ढाकेसे शुजाअतखांको फौज देकर उसके ऊपर भेजा। जब यह उसमानके किलेके पास पहुंचा तो दूत भेजकर उसको


(१) एक जातिके घोड़े। बादशाहके अधीन होजानेके वास्ते कहलाया परन्तु उसने नहीं माना। लड़ाईकी तैयारी की। ९(१) मुहर्रम रविवार (फागुन सुदी ११) को लड़ाई हुई उसमान बड़ी वीरतासे लड़ा। उसने बादशाही सेनाके हिरावल और दोनों भुजाओंको विध्वन्स कर डाला। तीनों फौजोंके सरदार मारे गये। फिर बीचकी अनी पर भी धावा किया और गजपति नाम लड़ाईके हाथीको शुजाअत- खां पर छोड़ा। शुजाअतखां भी उस हाथीसे खूब लड़ा और कई घाव बरछे और तलवारके लगाकर उसको भगाया तब उसमानने दूसरा हाथी बादशाही झण्डे पर दौड़ाया जिसने झंडेके घोड़ेको गिरा दिया। शुजाअतखांने पहुंचकर झंडेवालेको बचाया और उसको दूसरा घोड़ा देकर फिर झंडा खड़ा कराया। इतने में एक गोली न जाने किसके हाथकी उसमानके ललाटमें आकर लगी जिससे वह शिथिल तो होगया परन्तु दोपहर तक फिर भी अपने आदमियोंको लड़ाता रहा। अन्तको भाग निकला। उसके भाई वली और बेटे ममरेजने अपने डेरों पर बादशाही फौजका जो उसमानके पीछे गई थी तीरों और बंदूकोंसे ऐसा सामना किया कि वह अन्दर न घुस सकी। आधीरात बीतनेपर उसमान मर गया। वह लोग उसकी लाश लेकर और माल असबाब वहीं छोड़कर अपने किले में आगये।


(१) तारीख ९ मुहर्रमको रविवार नहीं मंगलवार था रविवार को तो ७, १४, २१ और २८ थी इसमें दो दिनकी भूल है आगे ९ सफार चन्द्रवारको सही है पर इसमें यह शंका होती है कि बादशाहके पास १३ फरवरदीनको जिस दिन कि २८ मुहर्रम थी और बादशाह न मालूम क्योंकर २९ लिखता है ६ सफर २१ फरवरदीन चैत्र सुदी ८।९ तकको खबरें पहिलेही कैसे आगई थीं जो उसने १३ फरवरदीनके वृत्तान्त में लिखी है यह तो २१ फरवरदीनके पीछे की तारीखोंमें लिखी जाना चाहिये थीं। दूसरे दिन चन्द्रवारको शुजाअतखांने यह समाचार किरावलों ने सुनकर पीछा किया। बलीने अब अधीन होजानाही उचित जानकार सन्धिका सन्देशा भेजा। शुजाअतखांने भी अपने साथियों को सम्मति स्वीकार कर लिया।

दूसरे दिन वली और उसमानके आई बेटे आकर मिले और ४९ हाथी भेटको लाये। शुजाअतखां कुछ लोगोंको अधार नाम उनके राज्य स्थानमें छोड़कर ६ सफर चन्द्रवार (चैत्र सुदी ८) को जहांगीरनगर में इसलामखांके पास आगया और वली आदि पठानों को भी लेआया।

बादशाह इस विजयसे बहुत प्रसन्न हुआ विशेषकर इसलिये कि बंगालका सूबा निष्कण्टक होगया। बारम्वार परमात्माका धन्यवाद करके इसलामखांका मनसब बढ़ाकर छः हजारी करदिया और शुजाअतखांको रुस्तमजमांका खिताब देकर हजारी जात और हजार सवार उनको भी अधिक कर दिये। इसी तरह दूसरे अमीरों का भी जो इस लड़ाईमें थे यथायोग्य मनसब बढ़ाया और उन्हें दूसरी कृपाओंसे सन्तुष्ट किया ।

फरंगदेशके पदार्थ।

चैत सुदी ३ को मुकर्रबखां खंभात बन्दरसे आया। वह बादशाहकी आज्ञासे गोवा बन्दर में जाकर वहां फरंगियोंसे बहुमूल्य पदार्थ मुँहमांगे दामों पर खरीद लाया था। बादशाह उनको देख कर आह्वादित हुआ। उसने कई विचित्र पक्षियों के चित्र चितेरों से जहांगीरनामे(१) में खिंचवाये और तुजुकमें लिखा कि बाबर बादशाहने कई जानवरोंकी सूरत शकल तो अपने ग्रन्थमें लिखी परन्तु चित्रकारोंको उनकी तसवीर बनानेका हुक्म नहीं दिया।


(१) जहांगीरनामा अभी हमारे देखने में नहीं आया है जो लखनऊमें मुंशी नवलकिशोरप्रेससे छापा है वह जहांगीरनामा नहीं है इकबालनामे जहांगीरीका तीसरा भाग है इकबालनामा भी वहीं छपा है फिर न जाने यह कैसे भूल होगई है। उसने एक पक्षीका (जिसे अब पीरू कहते हैं) और एक बन्दर का विशेष करके वर्णन किया है चकोरोंके वास्ते लिखा है कि मेरे पिताने इनके बच्चे लेनेका बहुत परिश्रम किया पर उस वक्त तो नहीं हुए। अब मेरे समय में इनके अंडे लिये और मुर्गियोंके नीचे रखे गये तो दो वर्षमें ६०।७० बच्चे निकले ५०।६० बड़े भी होगये जो सुनता है इसका बड़ा अचम्भा करता है।

इन दिनोंमें महाबतखां, एतमादुद्दौला, एतकादखां आदि अमीरों के मनसब बढ़े। महासिंहका मनसब पांच सदी जात और पांच सौ सवारों बढ़नेसे तीन हजारी और दो हजार सवारोंका होगया।

१९ फरवरदीन (चैत्र सुदी ६) को मेख(१) संक्रांतिका उत्सव हुआ खुर्रमका मनसब दस हजारीसे बारह हजारी होगया। ऐसेही और भी कई अमीरों के मनसब नौरोजके प्रसंगसे बढ़े।

दलपत(२)।

इसी दिन दलपत दक्षिणसे आया उसका बाप रायसिंह मर चुका था इसलिये बादशाहने उसको राय पदवी देकर खिलअत पहनाया। रायसिंहके एक बेटा और भी सूरजसिंह नामका था जिसकी मासे रायसिंहको अधिक प्रेम था। दलपत टीकाई था तोभी वह सूरजसिंहको अपनी जगह बैठाना चाहता था। बादशाह लिखता है--"जिन दिनोंमें रायसिंहके मरनेकी बात चल रही थी सूरजसिंहने अल्पबुद्धि और अल्पावस्था होनेसे प्रार्थना की कि बापने मुझे अपनी जगह बिठाकर टीका दिया है। यह बात मुझको नहीं भाई। मैंने कहा कि जो बापने तुझे टीका दिया है तो हम दलपतको टीका देते हैं।" बादशाहने अपने हाथ से दलपतको टीका देकर उसके पिताकी जागीर और वतन उसको दे दिया।


(१) चण्डू पञ्चाङ्गमें भी मेख संक्रान्ति इसी दिन लिखी है।

(२) बीकानेरका गव।

एतमादुद्दौला।

एतमादुद्दौलाको जड़ाऊ कलम दावात बादशाहने दी।

गांव।

कमाऊं का राजा लखमीचन्द पहाड़के मुख्य राजोंमेंसे था। उसका बाप राजा रुद्र भी अकबर बादशाहकी सेवामें आया था। आनेसे पहिले अर्ज कराई थी कि राजा टोडरमलका बेटा मेरा हाथ पकड़कर सेवामें लेजावे। बादशाहने वैसाही किया। इसी प्रकार लखमीचन्दने भी अर्ज कराई कि एतमादुद्दौलाका बेटा आकर मुझे दरबारमें लेजावे। बादशाहने शापूरको भेजा। राजा उसके साथ आया। गोट जातिके उत्तम घोड़े शिकारी पक्षी बाज जुर्रे शाहीन कुतास(१) कस्तूरीके नाफे कस्तूरी हरनके चमड़े जिसमें नाफे भी लगे थे तलवारें और खञ्जर जिनको वह लोग खांड़े और कटार कहते हैं और अनेक प्रकारकी चीजें भेटको लाया। पहाड़ी राजों में यह राजा इस बातके लिये अति प्रसिद्ध था कि इसके पास सोना बहुत है। लोग इसके देशमें सोनेकी खान बताते थे।

दक्षिणमें हार।

दक्षिणके काम खानआजमकी बेपरवाईसे नहीं सुधरे। अबदुल्लहखांकी हार हुई। बादशाहने इन बातोंका निरूपण करने के लिये अबुलहसनको बुलाया था। बहुतसी पूछ ताछ करने पर विदित हुआ कि अबदुल्लहखां बारहकी हार तो उसीके घमण्ड दौड़ धूप और किसीको बात नहीं सुननेसे हुई पर इसमें अमीरोंकी ईर्षा और फूटका भी अंश मिला हुआ था। बात यह ठहरी थी कि इधर अबदुल्लहखां गुजरातके लशकर और उन अमीरों के साथ जो उसकी सहायता पर नियत हुए थे नासिक त्रिम्बकके रास्तसे दक्षिणको जावे। यह लशकर राजा रामदास खानआलम सैफखां अली मरदान बहादुर तथा दूसरे नामी और साहसी सरदारोंसे


(१) सुरागायकी पंछके बाल। सजा हुआ था इसकी संख्या भी दस हजारसे बढ़कर चौदह हजार तक पहुंची थी।

उधर बरासे राजा मानसिंह खानजहां अमीरूलउमरा और दूसरे अमीर चलें। दोनो दल एक दूसरेके कूच मुकामकी खबर रखें और एक दिन नियतकर गनीमको दोनो ओरसे जाघेरें। जो उस नियत दिनका ध्यान रहता, सबके दिल एक होते और आपाधापी न होती तो आशा थी कि परमात्मा जय देता। अबदुल्लहखां जब घाटियोंसे उतर कर गनीमके देश में गया तो उसने न तो हरकारोंको भेजकर उस फौजकी खबर ली न ठहरावके अनुसार अपने कूचको उनके कूचसे मिलाया और न एकही दिन और समयमें मिलकर मनीमको मारनेका प्रवन्ध किया। वरञ्च उसने अपनेही बल और बूतेका विश्वास करके यह विचारा कि जो मुझहीसे फतह होजावे तो बहुत अच्छा हो। रामदासने बहुत चाहा कि वह धैर्य्यसे बढ़े और जल्दी न करे परन्तु कुछ फल न हुआ। गनीमने जो उससे डर रहा था बहुतसे सरदार और बरगी(१ भेज दिये थे जो दिनको तो लड़ते थे और रातको बाण तथा दूसरे अग्न्यस्त्र फेंका करते थे। यहां तक कि गनीमके पास तो पहुंच गये पर उस सेनाके कुछ समाचार नहीं पहुंचे। अम्बर चम्पूने जो दौलताबादमें बड़े जमावसे निजामुल्मुल्कके घरानेके एक लड़केको लिये बैठा था बारी बारीसे फौजें भेजीं। इस तरह दक्षिणियोंका बल बढ़ गया उन्होंने बाणों और दूसरे यन्त्रोंसे आग बरसाकर अबदुल्लहखां की नाक में दम करदिया। राजहितैषियोने यह दशा देखकर कहा कि उस फौजसे तो कुछ भी सहायता नहीं पहुंची और दक्षिणी सब हमारेही ऊपर चढ़े चले आते हैं इसलिये उचित यही है कि अभी तो लौट चलें फिर देख लेंगे। यह बात सबने स्वीकार की। तड़के ही कूच कर दिया। दक्षिणी अपनी सीमा तक पीछा करते चले आये। रोज लड़ाई होती थी। कई कामके आदमी काम आये।


(१) लुटेरे। अली मरदानखां बहादुर बहादुरीम लड़ा और घायल होकर पकड़ा गया। जब राजा भुरजी(१)के राज्य में पहुंचे जो बादशाहकी अधीनतामें था तो गनीम लौट गया। और अबदुल्लहखां गुजरातमें आया।

अबदुल्लहखांके लौटनेकी खबर सुनतेही राजा मानसिंह वगैरह भी रास्ते से लौटकर परवेजके कम्पमें चले आये जो बुरहानपुरके वास आदिलाबाद में था।

बादशाह लिखता है--जब यह समाचार आगरमें मेरे पास पहुंचे तो मेरा चित्त बहुत विक्षिप्त होगया। मैंने यह विचार किया कि आप जाकर इन खुदाके मारे हुए नौकरोंका पाप काट दूं। परन्तु शुभचिन्तक लोग सहमत न हुए और ख्वाजा अबुलहसनने प्रार्थना की कि उधरके कामोंको जैसा कुछ खानखानांने समझा है और दूसरा कोई नहीं समझा सकता। उसीको भेजना चाहिये। इस बिगड़ी हुई बाजीको सम्भाल कर गनीमसे समयके अनुसार सन्धि करले। फिर जो यथार्थ करना है की यह बात और हितैषियोंको भी जची और सबने यही सलाह दी कि खानखानांको भेजना चाहिये और अबुलहसन भी साथ जावे। निदान यह बात ठहर गई और दीवानोंने तय्यारी कर दी। खानखानां १७ उर्दीविहिश्त रविवार (बैसाख सुदी ६) को बिदा हुआ शाहनवाजखां अबुलहसन और कई सरदार उसके साथ गये। बादशाहने खानखानांका मनसब छः हजारी, शाहनवाजखांका तीन हजारी और दाराखांका दो हजारी कर दिया। छोटे बेटे रहमानदादको भी उसके योग्य मनसब मिल गया। खानखानांको सुन्दर सिरोपाव जड़ाऊ कटार खासा हाथी तलापर(२) सहित और इराकी घोड़ा मिला। उसके बेटों और साथियोंने भी यथायोग्य खिलअत और घोड़े पाये।


(१) यह बगलानेका राजा था।

(२) हाथीका गहना।

बंगश।

कुलीचखांके लिखनेसे बादशाहने श्यामसिंह और रायधर मंगत भदोरियेके मनसब बढ़ा दिये। यह बंगशमें बादशाही लशकरके साथ थे।

श्यामसिंह तो डेढ़ हजारीसे दो हजारी होगया और रायधर मंगतका भी मनसब बढ़ा।

आसिफखांको मृत्यु।

आसिफखां जो अकबर बादशाहके समयसे वजीर रहता आया था और ५ हजारी मनसबको पहुंच गया था दक्षिण में ६० वर्षका होकर मर गया यह बहुत बुद्धिमान और विचक्षण था कवि भी था। घूसने बादशाहके नाम पर नूरवाम नामक एक ग्रन्थ फारसी भाषामें रचा था जिसमें शीरीं और खुमरोके प्रेमकी प्राचीन कथा है बादशाह लिखता है कि जितनी मैंने उसकी परवरिश की उतना उसको स्वामिभक्त नहीं पाया।

मिरजागाजीकी मृत्यु।

बैसाख सुदी १५ को मिरजा गाजीके मरनेको खबर आई। यह ठट्ठे के स्वामी मिरजा जानीका बेटा था जो अकबर बादशाहका अधीन होगया था इससे अकबरने ठट्ठा उमीके पास रहने दिया था वह बुरहानपुरमें मरा तब उसके बेटे मिरजा गाजीको अकबर बादशाहने कन्धारकी हुकूमत पर भेज दिया वह वहीं मरा उसकी जगह अबुलबेग उजबक बहादुरखांका खिताब और तीन हजारी मनसब पाकर कन्धारका हाकिम हुआ।

रूपखवास।

रूपखवासको जो अकबरका निज सेवक था बादशाहने खवास खांका खिताब हजारी जात पांचसौका मनसब और सरकार कन्नौजकी फौजदारीका काम दिया।

खुर्रमका दूसरा व्याह।

बादशाहने एतमादुद्दौलाके बेटे एतकादखांकी बेटी(१) खुर्रमके


(१) यह ताज बीबी थी जिसका रौजा आगरेंमें अति सुन्दर और सुरम्य बना है। वास्ते मांगी थी और अब उसका व्याह था इस लिये १८ खुरदाद (जेठ बदी ९) गुरुवारको बादशाह खुर्रमके घर गया एक दिन और एक रात वहां रहा। खुर्रमने बादशाहको नजराने और बेगमों, अपनी माताओं और महलके सेवकोंको तोरे जोड़े और अमीरोंको सिरोपाव दिये।

ठट्ठा।

बादशाहने अबदुर्रज्जाकको जो ड्योढ़ीका बखशी था हाथी और परम नरम खासा देकर ठट्ठे की रक्षाके वास्ते भेजा जो मिरजा गाजीके मर जानेसे बिना खामीके था। मुअज्जुल्मुल्कको उसकी जगह बख्शी किया।

मिरजा ईसातरखां मिरजा गाजीके भाई बन्दोंमेंसे दक्षिणकी सेनामें था। बादशाहने उसको बुलाकर हजारी जात और पांचसौ सवारोंका मनसब दिया।

फसद लेना।

बादशाहको रक्त बिकार होगया था इस लिये बुधवारको हकीमोंकी सलाहसे फस्द खुलाकर सेर भर रक्त निकलवाया इससे शरीर हल्का होगया तो हुक्म दिया कि आगेसे फसद खुलानेको हलका होना कहा करें। सब ऐसाही कहने लगे।

मुकर्रबखांको जिसने फस्द खोली थी बादशाहने जड़ाऊ खपवा दिया।

राजा किशनदास।

किशनदास अकबर बादशाहके समयसे तबेले और हाथीखाने का कर्मचारी था और वर्षों से राजा पदवी तथा हजार मनसबकी उसको अभिलाषा थी सो पदवी तो पहले पाचुका था और हजारी मनसब अब देकर बादशाहने उसको इच्छा पूर्ण की।

ताजखां।

भक्करका हाकिम ताजखां पुराने अमीरोंमेंसे था बादशाहने उसके मनसबपर पांचसौ सदी जात और पांचसौ सवार बढ़ा दिये।

[ १४ ]
 

शुजाअतखांकी विचित्र मृत्यु।

शुजाअतखांको उसमान पर जीत पानेके पीछे इसलामखांने उड़ीसे जानेकी आज्ञा दी थी। वह एक रात चौखण्डीदार हथनी पर सवार हुआ और एक बालक नाजिरको पीछे बैठा लिया जब अपने उर्दू मे निकला तो रास्ते में एक मस्त हाथी बंधा था वह घोड़ोंको टापोंसे भड़ककर सांकलें तुड़ाने लगा जिससे बड़ा कोलाहल मचा। शुजाअतखां उस समय या तो नींदमें था या शराबके नशे में अचेत था नाजिरने घबराकर उसको जगाया और कहा कि मस्त हाथी खुल गया है इधर आता है। शुजाअतखां व्याकुल होकर चौखण्डीमेंसे कूदा पांवकी उंगली एक पत्थर पर लग कर फट गई बस इसी चोटसे दो तीन दिनमें वह मर गया।

बादशाहको सुनकर बड़ा आश्चर्य्य हुआ कि ऐसा पुरुष सिंह जो जंगी हाथियोंसे लड चुका था एक बालककी बातसे घबराकर हाथी परसे कूद पड़ा।

हाथी।

इसलामखांने बंगालसे १६० हाथी भेजे थे वह खासेके हाथियों में दाखिल किये गये।

कमाऊंका राजा।

कमाऊं के राजा टेकचन्दने बिदा चाही। उसके बापको अकबर बादशाहके समय एक सौ घोड़े दिये गये थे उसी मर्य्यादासे बादशाहनेभी उसे घोड़े दिये एक हाथीभी दिया। जबतक यहां रहा सिरोपाव पाये जड़ाऊ कटार भी मिला। उसके भाइयोंको भी खिलअत और घोड़े मिले। उसका देश उसीके पास रहा और वह सब प्रकारसे प्रसन्न और पूर्णकाम होकर गया।

अबुलफतह दक्षिणी।

१० अमरदाद (सावन सुदी ५) को अबुलफतह दक्षिणी जो आदिलखांके मुख्य सरदारोमेंसे था बादशाहकी सेवामें उपस्थित हुआ यह दो वर्ष पहले भी आया या बादशाइने खिलअत शाही घोड़ा और खांडा दिया।

ठट्ठा।

२ शहरेवर (भादों सुदी १३) को बादशाहने मिरजा रूस्तम मफवीको खासेका हाथी जड़ाऊ जीनका घोड़ा जड़ाऊ तलवार भारी सिरोपाव और पांच हजारी मनसब देकर ठट्ठे (१)को सूवेदारी पर भेजा और उसके बेटे भतीजोंको भी मनसब बढ़ाकर और हाथी घोड़े खिलअत देकर उसके साथ किया।

राय दलपत।

राय दलपतको बादशाहने मिरजा रुस्तमके सहायकोंमें इस हेतुसे नियत किया कि इसका देश उसी दिशामें है अच्छी सेना सेवाके वास्ते देगा। दलपतका मनसब पांच सदी जात और पांचसौ सवारों के बढ़नेसे दो हजारी जात और दो हजार सवारोंका होगया।

नागपुर।

अबुलफतह दक्षिणीको नागपुर में जागीर मिली।

तुलादान।

१७(२) रज्जब २२ शहरेवर (आश्विन बदी ३) बादशाहकी सौर वर्षगांठका तुलादान मरयममकानीके महल में हुआ।

उसमान पठानके भाई बन्द।

बंगालका दीवान मोतिकिदखां पदच्युत होकर आया। उसके साथ इसलामखांने उसमानके भाई बेटों और कुछ सेवकोंको भेजा था बादशाहने एक पठानको अपने एक विश्वासपात्र चाकरकी चौकसीमें रख दिया।


(१) छापेकी तुजुक जहांगीरीमें ठट्ठे की जगह भूलसे पटना छप गया है।

(२) पञ्चांगकी गणितसे १६।

मोतकिदखां।

मोतकिदखांने बादशाहको भेट दी जिसमें २५ हाथी दो लाल जड़ाऊ फूल कटारे विश्वास योग्य नाजिर और बंगाली कपड़ोंके थान थे।

११ महर (आश्विन सुदी ९) को बादशाहने उसको बखशीका उच्च पद दिया उसका मनसब हजारी जात और तीनसौ सवारका नियत हुआ।

राय मनोहर।

बादशाहने खानखानांके लिखनेसे राय मनोहरका मनसब हजारी जात और आठसौ सवारोंका कर दिया।

राजा बरसिंहदेव।

राजा बरसिंह देवका मनसब भी खानखानांकी सिफारिशसे ४ हजारी जात और बाइस सौ सवारोंका होगया।

भारत बुंदेला।

रामचन्द्र बुंदेलेके मरनेसे बादशाहने उसके पोते भारतको राजाका खिताब दिया।

अमीरूलउमराकी मृत्यु।

६ आजर ३ शव्वाल (अगहन सुदी ५) को बुरहानपुरसे खबर आई कि अमीरूलउमरा २७ आवान (अगहन बदी १०।११) को परगने निहालपुरमें मर गया उसके कोई बेटा न था।

बिहार।

बादशाहने जफरखां कोकाको बिहारकी सूबेदारी दी और उसका मनसब बढ़ाकर तीन हजारी जात और दो हजार सवारका करदिया।

शिकार।

२ जीकाद ४ दे मंगल (पौष सुदी ३) को बादशाह शिकारके वास्ते आगरेसे कूच करके चार तिन तक दहराबागमें रहा।

सलीमा सुलतानकी मृत्यु।

१० (पौष सुदी ११) को सलीमा सुलतान बेगमके मर जानेकी खबर आई यह बाबर बादशाहकी नवासी गुलरुख बेगमकी बेटी थी। बापका नाम मिरजा नूरुद्दीन था। हुमायूं बादशाहने अपनी यह भानजी अति कृपासे बैरामखांको दी थी बैरामखांके मारे जाने पर अकबर बादशाहने सलीमा सुलतानसे निकाह कर लिया था।

बादशाह लिखता है--"जितने अच्छे गुण और लक्षण इसमें थे उतने सब स्त्रियों में नहीं होते हैं।"

वादशाह एतमादद्दौलाको उसके उठाने और उसीके बनाये मण्डाकरबागमें उसको रखनेका हुक्म देकर दहराबागसे कूच कर गया बेगमकी अवस्था ६० वर्षकी थी।

काबुल।

७ दे (पौष सुदी ५) को ख्वाजाजहांने काबुलसे आकर १२ मोहरें और १२ रुपये नजर किये। बादशाहने कुलीचखां सूबेदार काबुल और खानआलमके परस्पर मेल न होनेके समाचार सुनकर इसको इस बातका निर्णय करनेके लिये कि किसका कसुर है भेजा था काबुल जाने और आने में इसको ३ महीने ११ दिन लगे थे।

राजा रामदास।

इसी दिन राजा रामदासने दक्षिणसे आकर १०१ मोहरें भेट कीं। बादशाहने इसको घोड़ा खिलअत और तीस हजार रुपये देकर कुलीचखां और दूसरे अमीरोंके समझानेके वास्ते भेजा जिनमें अनबन होगई थी।

दक्षिण।

१५ बहमन (माघ सुदी १३) को शाहनवाजखां दक्षिणसे खानखानांका भेजा हुआ आया एक सौ मोहरें और एक सौ रुपये नजर किये।

जब दक्षिणके मामले अबदुल्लहखांकी भागदौड़ और अमीरों की फूटसे ठीक नहीं हुए तो दक्षिणियोंने अवसर पाकर अमीरोंसे सन्धिको बात छेड़ी और आदिलखाने कहलाया कि जो यह काम मेरे ऊपर छोड़ाजावे तो ऐसा करूं कि जो देश बादशाही अधीनता से निकल गये हैं फिर अधीन होजावें। शुभचिन्तकोंने समयका संग ढङ्ग देखकर इस बातकी अर्जी भेजी एक प्रकारकी संधि होगई और खानखानांने वहांके कामोंको ठीक करदेनेका जिम्मा कर लिया तो बादशाहने खानाजमको जो पुण्य(१) को प्राप्तिके लिये सदा राणासे लड़नेको जानेकी प्रार्थना किया करता था हुक्म भेजा कि अपनी जागीर मालवेमें जाकर बाद तैयारीके राणाके ऊपर जावें।



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(१) कट्टर मुसलमान हिन्दुओंसे लड़ने उनको मारने या उनके हाथसे मरनेको पुण्य समझते हैं। नया व सन् १०२२। सागुन सुदौ ३ संवत् १६६८ से फागुन सुदो २ संवत् १६७० तक। ४५७ बादशाह आगरे में। बादशाह दो महीने बीस दिन शिकारमें रहकर नौरोजके समीप आजानसे २४ असफंदार (चैत बदौ ११) को बागदहरेमें लौट पाया और २७ (चैत बदौ १४) को आगर में आया। इस बार इतना शिकार हुया था- हरन आदि . २२३ करवानक आदि पक्षी ३६ नीलगाय ८५ मछलियां चूथर आठवां नौरोज। २७ मुहर्रम १ फरवरदौन (चैत बदौ ३०) गुरुवारको साढ़े तीन बड़ी रात गये सूर्य भगवान मौन मेख राशिमें पधारे। दूसरे दिन आठवें नौरोजका उत्सव हुआ पिछले दिनसे बादशाह तख्त पर बैठा। अमौरों और वजौरीने नजर और न्योछावर को। ___ बादशाह रोज आमदरबार करता था लोगोंको अर्ज सुनता था और चाकरोंको भेट लेता था। .४ फरवरदीन (चैत्र मुदी८) शुक्रवारको अफजलखान बिहारसे आकर एक सौ मोहरें और एक सौ रुपये नजर किये इस दिन एक और चौथे दिन १० हाथी उसके हाथियोंमेंसे भेट हुए। ____ मोतकिदखां एक जगह मोल लेकर कई दिन उसमें रहा तो उस पर लगातार कई दुःख और कष्ट आपड़े। यहां बादशाह लिखता है-"हमने सुना है कि १ स्त्री २ गुलाम ३ घर और ४ घोड़े में शुभाशुभ कहा जाता है। घरके शुभाशुभ देखनेको यह विधि है जो मिलती भी है कि थोड़ी धरतीको खोदकर मट्टी निकालें और उस मट्टीको उसमें भरें जो बराबर होजावे तो सम, घटे तो नष्ट और बढ़े तो श्रेष्ठ।"

मग जातिके लोग।

इसलामखांका बेटा होशंग बङ्गालसे आया। मग(१) जातिके लोगोंको भी साथ लाया था उनका देश(२) पेगू, दारजीलिङ्गके पास है बल्कि इन दिनों यह प्रदेश भी उनके अधिकारमें था।

बादशाह लिखता है कि इनके धर्म्मपन्थकी बातें निर्णय कीगई। सारांश यह है कि यह मनुष्य आकृतिके पशु हैं। जल और स्थल के सब जीवोंको भक्षण करते हैं। कोई वस्तु इनके धर्म्म निषिद्ध नहीं है। प्रत्येक मनुष्यके साथ खालेते हैं अपनी सौतेली बहनको ग्रहण करलेते हैं इनको शकलें किराकअलमाक(३) जातिके तुर्कों मे मिलती हुई हैं परन्तु बोली तिब्बतकी है जो तुरकीसे कुछ भी नहीं मिलती है। यहां एक पहाड़ है जिसका एक सिरा तो काशगरसे जामिला है दूसरा पेगूमें है। इनका कोई ठीक मत नहीं है कि जिसकी किसी मतसे तुलना कर सकें। मुसलमानी मतसे भी दूर हैं और हिन्दूधर्म्मसे भी विमुख।

बादशाह खुर्रमके घर।

मेख संक्रान्तिके दो तीन दिन रहे थे कि बादशाह खुर्रमकी प्रार्थनासे उसके घर चला गया। एक दिन एक रात रहा वहीं नौरोजको भेटें होती रहीं। खुर्रमने भी भेट की जिसमें से कुछ बादशाहने चुनकर ले ली।

मेख संक्रान्ति।

१४ फरवग्दीन (बैशाख बदी ४)(४) चन्द्रवारको मेख संक्रान्ति


(१) ब्रह्माके लोग मग कहलाते हैं।

(२) यह वृत्तान्त ब्रह्मदेशका है जो आजकल वृटिश गवर्नमेण्ट के अधिकारमें है।

(३) तुर्कोकी एक जाति।

(४) चण्डू पञ्चाङ्गमें मेख संक्रान्ति बैशाख बदी ३ को लिखी है। को बड़ा भारी उत्सव हुआ बादशाह राजसिंहासन पर बैठा। सब प्रकारके मादक पदार्य मंगाये और सब लोगोंको अपनी अपनी रुचिके अनुसार खाने पीनेकी आज्ञा दीगई। प्रायः सब लोगोंने शराब कबाबका सेवन किया। ईरानके दूत यादगारअलीको सौ तोलेकी एक मोहर जिसका नाम कोकबेताला था दीगई। मज- लिसका रंग खूब जमा। उठते समय बादशाहने हुक्म दिया कि सव सामग्री और सजावट लाद लावें।

मुकर्रबखांकी भेटमें बारह इराकी और अरबी घोड़े थे जो जहाजमें आये थे और फरंगियोंका बनाया हुआ एक जड़ाऊ जीन था।

मोमयाई।

बादशाहने मुहम्मदहुसैन चिलपीको जो जवाहिर खरीदने और अनोखे पदार्थोंके ढूंढ़ निकालने में प्रवीण था कुछ रुपये देकर ईरानके मार्गसे अस्तंबोलके उत्तम द्रव्य खरीद लानेके वास्ते भेजा था और उसको मार्गमें ईरानके शाह अब्बाससे मिलना पड़ता इस लिये एक पत्र उसके नाम भी लिखदिया था। वह मशहदके पास शाहसे मिला। शाहने पूछा कि किन किन बस्तुओंके खरीदनेका हुक्म है उसने बहुत आग्रहसे सूची दिखाई। शाहने उसमें फिरोजे और मोमयाईका नाम देखकर कहा कि यह चीजें मोल नहीं मिलती हैं मैं उनके वास्ते भेजता हूं। यह कहकर छः थैलियां जिनमें तीस सेर फिरोजोंको मट्टी थी चौदह तोले मोमयाई और चार घोड़े इराकी जिनमें एक अबलक था उसको सौंपे और एक पत्र भी लिखदिया जिसमें मट्टीके तुच्छहोने और मोमयाईके कम होनेकी क्षमा मांगी थी।

जब यह चीजें बादशाहके पास पहुंचीं तो बहुत निकम्मी निकलीं बेगड़यों और नग बनानेवालोंने बहुत छान बीन की पर एक फीरोजा भी अंगूठीके लायक नहीं निकला जैसे फिरोजे शाह तुहमारस्पके समयमें निकले थे वैसे खानमें नहीं रहे थे यही शाहने भी अपने पत्रमें लिखा था। मोमयाईके गुणकी बाबत बादशाह लिखता है कि जो बातें मैने हकीमोंसे सुनी थीं जब परीक्षा की गई तो कुछ भी प्रकट नहीं हुई मैं नहीं जानता कि हकीमोंने मोमयाईके विषयों अत्युक्ति की है या पुरानी होजानेसे वह गुणही नहीं रहा है।

मैंने हकीमोंके ठहराये हुए सिद्धान्तोंके अनुसार मुर्गेकी टांग तोड़कर उसको उनकी कही हुई मात्रासे अधिक मोमयाई खिलाई और टांग पर भी लगाई तथा तीन दिन तक रखवाली कराई। वह तो प्रातःकालसे सायंकाल तककाही समय बहुत बताते थे यहां तीन दिन पीछे देखा तो कुछ चिन्ह उस गुणका नजर नहीं आया टांग वैसीही टूटी हुई थी।

सलामुल्लह अरब।

शाह ईरानने सलामुल्लह अरबकी सुफारिश की थी बादशाहने उसी क्षण उसका मनसब और वेतन बढ़ा दिया।

अबदुल्लहखां।

अबदुल्लहखांके वास्ते बादशाहने एक खासा हाथी तलवार सहित भेजा और उसकी बिरादरीके बारह हजार सवारोंको दुअस्पे और तिअस्पेके जाबतेसे तनखाह देनेका हुक्म दिया।

सौम सालगिरह।

२७ उर्दीबहिश्त २६ रबीउलअव्वलं (जेठ बदी १२) गुरुवारको बादशाहकी सौम वर्षगांठका तुलादान उसकी माताके भवनमें हुआ। जिसमें से कुछ रुपये उन दीन स्त्रियोंको बांटे गये जो वहां जुड़ गई थीं।

मुरतिजाखांका मनसब छः हजारी जात और पांच हजार सवारका होगया।

चीते और सिंहके बच्चे।

अकबर बादशाहने एक हजार तक चीते पाले थे और बहुत चाहता था कि उनकी वंशवृद्धि हो परन्तु यह बात नहीं हुई। फिर कई बार उनके जोड़े भी पट्टे खोल खोलकर बागमें छोड़े तो वहां वह अलग अलग ही रहे। पर इन दिनों एक चीता पट्टा तुड़ा कार मादा पर जापड़ा। अढ़ाई महीने पीछे तीन बच्चे जन्मे और बड़े हुए।

इसी प्रकार एक सिंहनी भी गर्भवती हुई और तीन महीने पीछे बच्चा जना। बादशाह लिखता है कि मेरे समयमें पशुओंकी चमक निकल गई है सिंह ऐसे हिल गये हैं कि झुण्डके झुण्ड लोगोंमें खुले फिरते हैं और किसीको नहीं सताते। यह कभी नहीं हुआ या कि जङ्गली शेर पकड़े जानेके पीछे सिंहनीसे संग करे और बच्चे हो। हकीमोंसे सुना गया था कि सिंहनीका दूध आंखोंकी ज्योति के वास्ते बहुत गुण करता है मैंने बहुत परिश्रम किया कि उस ब्याई हुई सिंहनीका दूध हाथ लगे पर उसके बच्चे को पकड़वाकर थनोंमें हाथ डाला तो क्रोधसे उसका दूध सूख गया।

बादशाह खरबूजोंकी बाडी में।

ख्वाजाजहांने शहर के पास खरबूजे बोये थे। बादशाह १० सरदाद (जेठ सुदी ११) गुरुवारको नाव में बैठकर वहां गया महल के लोग भी साथ थे। दो तीन घड़ी रात गये वहां पहुंचा। रात बड़ी भयङ्कर थी। आंधी आई डेरे तम्बू उड़ गये बादशाहने नाव में रात बिताई। शुक्रवारको खरबूजे खाकर शहर में आगया।

अफजलखांकी मृत्य।

अफजलखां जो बहुत दिनोंसे फोड़े फुंसियोंका कष्ट भोग रहा था मर गया।

राजा जगमन।

राजा जगमनले दक्षिणकी नौकरोमें कुछ चूक होगई थी इस लिये बादशाहने उसकी जागीर छीनकर महाबतखांको देदी।

दीवानखानेके कटहरे।

दीवादखाने खास और आममें दो कटहरे लकड़ीके लगाये जाते थे। पहले कटहरेमें तो अमीर एलची और आबरूवाले लोग रहते थे इसमें बिना आज्ञा कोई नहीं जासकता था। दूसरा पहिलेने अधिक चौड़ा था उसमें तमाम नौकर और वह लोग जिन पर नौकरीका नाम लगा हुआ था जगह पाते थे। इस कट- हरके बाहर अमीरों और सब लोगोंके नौकर जो दीवानखानेमें आते थे खड़े रहते थे।

पहिले और दूसरे कटहरे में कोई विशेषता नहीं थी इसलिये बादशाहने पहिले कटहरेको और उस नालको जो इस कटहरेमेंसे झरोखे पर लगाई गई थी और उन दोनों हाथियों को जो झरोखे की बैठकके दोनों ओर कारीगरोंने बनाये थे चान्दीसे मढ़ देनेका हुक्म दिया। जब यह काम बन चुका तो बादशाहको सुनाया गया कि इसमें १२५ मन चान्दी लगी है। बादशाह लिखता है कि इससे बड़ी शोभा होगई और ऐसाही होना भी चाहता था।

पागल कुत्ता।

एक शाही हाथी और एक हथनीको पागल कुत्तेने काटा। कुत्ते को हाथीने मारडाला था तोभी एक महीने पांच दिन पीछे हथनी बादलकी गर्ज सुनकर चिल्लाई कांपी गिरी फिर खड़ी हुई। सात दिनतक उसके मुंहसे पानी बहता रहा। आठवें दिन मरगई। कोई दवा नहीं लगी। इससे एक महीने पीछे हाथीको पानीके किनारे जंगलमें लेजाते थे कि इतने में बादल उमड़ा और गरजने लगा हाथी उस समय मस्तीमें था तोभी कांपकर बैठ गया महावत लोग बड़ी कठिनतासे उठाकर स्थान पर लाये ७ दिन पीछे यह भी उसी प्रकारसे मर गया।

बादशाह बड़े अचरजसे लिखता है कि इतने बड़े डीलडौलका जन्तु इतने छोटे जीवके काटनेसे मर गया।

दक्षिण।

खानखानांने शाहनवाजखांको बुलाया था इसलिये बादशाहने सावन सुदी ११ को उत्ते दक्षिण जानेको आज्ञादी।

राखी।

बादशाह लिखता है--"हिन्दुओंके चार वर्ण ठहराये गये हैं संवत् १६७० । और हरका निजधर्म पर चलता है। हरेक साल में एक दिन अपना योहार मनाता है। पहला मामला अर्थात् बद्धको जाननेवाला उत्सवी छ की है- १ विद्या पढ़ना । २ दूसरों को पढ़ाना ३ आग पूजना ४ दूसरोंसे पुजाना ५ दान लेना ६ दान देना इनका त्यौहार. सावनके अन्त में होता है जो बरसातका दूसरा महीना है। इस दिनको पवित्र समझाकर पुजारौ लोग नदियों और तालाबों पर चले जाते हैं और मन्त्र पढ़कर डोरों और रंगे हुए तागों पर फूंकते हैं। दूसरे दिन जो नये साल(१) का पहिला दिन होता है उन डोरीको राजों और बड़े लोगोंके हाथों में बांधते हैं और शकुन समझते हैं। इस डोरको राखी यानी रक्षा कहते हैं। यह दिन तीरके महीने में आताहै। जब खूर्य कर्कराशियर होता है। दूसरा क्षत्रिय वर्ण है जो खत्री भी कहलाता है। क्षत्रिय वह हैं जो अन्याय करने वालोंसे दोनोंको रक्षा करें। इसके तीन धर्म हैं।- १ आप पढ़े दूसरोंको न पढ़ावे . ... .. २ श्राप भाग पूजे दूसरेको न पुजवावे। ३ श्राप दान दे दूसरीका दान न ले। ___ इसका त्यौहार विजयादशमी है इस दिन सवारी करना और शत्रु पर चढ़कर जाना इसकी समझमें शुभ होता है। रामचन्द्रन जिसको यह लोग पूजते हैं इसी दिन चढ़ाई करके अपने नैरोको जीता था। इस दिनको उत्तम समझते हैं हाथी घोड़ोंको खजाकर पूजते हैं। . . यह दशहरेका दिन शहरेवरके महीने में आता है जब सूर्य (१) इस लेखसे जाना जाता है कि ढूंढार और मेवाड़की भांति आगरेमें भी उस समय लौकिक, संबल्सर भादो बदी १ से बदला जाता था। . [ १५ ] कन्या राशि पर होता है। हाथी घोड़ोंके रक्षकोंको पारितोषिक देते हैं।

तीसरा वैश्य वर्ण है यह ऊपर लिखे दोनों वर्णोकी सेवा करता है। खेती लेन देन व्याज और सौदा इनका कर्तव्य हैं। इनका भी एक त्यौहार है उसको दीवाली कहते हैं यह दिन महर महीनेमें आता है, जब सूर्य्य तुला राशि पर होता है। इस दिनकी रातको दीपमाला कहते हैं। मित्र और बांधव एक दूसरेके घरमें जुड़कर जुआ खेलते हैं। इन लोगोंका धन्धा व्याज और लेन देनका है इसलिये इस दिन हारने जीतनेको शकुन जानते हैं।

चौंथा शूद्र वर्ण हैं। यह हिन्दुओं का संबसे नीचा जथा है। यह सबकी सेवा करता है। जो ऊपरके वर्षोंके अधिकार हैं उससे इसको कुछ प्रयोजन नहीं हैं। इसका त्यौहार होली हैं जो इसके निश्चय में वर्षका अन्तिम दिन है। यह दिन असफन्दार महीनेमें आता है जब सूर्य्य मीन राशिमें होता है। इस दिनकी रातको रास्तों और गलियों में आग जलाते हैं जब दिन निकलता है तो पहर भर तक एक दूसरे पर राख डालते हैं। फिर नहाकर कपड़े पहिनते हैं बागों और जङ्गलोंमें बिचरनेको चले जाते हैं।

हिन्दुओंमें मुर्दा जलानको रीति हैं इसलिये इस रातको आग जलानेसे यह अभिप्राय है कि पिछला वर्ष जो मरेके समान होगया है उसे जलाते हैं।

मेरे पिताके समयमें हिन्दू अमीरों और दूसरे लोगोंने ब्राह्मणों की देखादेखी राखीको रीति इतनी फैलादी थी कि रत्न मोतियों और जड़ाऊ फूलोंको डोरों में पिरोकर उनके हाथमें बांधा करते थे। कई वर्ष तक ऐसा होता रहा। फिर जब यह आडम्बर बहुतही बढ़ गया तो उन्होंने उकता कर बन्द कर दिया। ब्राह्मण अपने डोरों और रेशनके धागोंको निज नियमानुसार शकुनके वास्ते बांधते रहे। मैंने भी इस वर्ष उन्हींके शिष्टाचरणका बरताव करके हुक्म दिया कि हिन्दू अमीर और हिन्दुओंके मुखिया मेरे हाथोंमें राखी न बांधे। परन्तु राखीके दिन जो ९ वीं(१) अमरदादको था और वही दङ्गल हुआ दूसरे लोगोंने वह देखादेखीकी बात हठसे नहीं छोड़ी। तब मैंने इसी वर्षके लिये स्वीकार करके कहा कि ब्राह्मण लोग उसी प्राचीन रीतिसे डोरे और रेशम बांधा करें।"

इसी दिन अकबर बादशाहका उर्स(२) था बादशाहने खुर्गमको उसके रौजे पर उर्स करनेको भेजा और दस हजार रुपये अपने दस विश्वासपात्रोंको फकीरोंके लिये दिये।

इसलामकी भेट।

१४ अमरदाद (भादों बदी ७) को इसलामखांकी भेट बादशाह की सेवामें उपस्थित हुई उसने बङ्गालसे २८ हाथी ४० टांगन ५० नाजिर और पांच सौ उत्तम बस्त्र सितारगांवके भेजे थे।

समाचारपत्र।

यह प्रवन्ध किया गया था कि सब सूबों और विशेषकरके सीमा प्रान्तके समाचार कर्णगोचर होते रहें और इस काम पर दरबारसे वाकआनवीस (समाचार लिखनेवाले) भेजे जाते थे। बादशाह लिखता है कि यह जाबता मेरे बापका बांधा हुआ है। मैं भी


(१) ९ अमरदादको भादों बदी १ थी।

(२) हिन्दुस्थानके मुसलमानोंमें यह रीति है कि जिस दिन कोई बड़ा या प्यारा पुरुष मरता है तो सालभरके बाद उसी दिन मौलवियों और दूसरे लोगोंको बुलाकर खाना खिलाते हैं। सुगन्ध लगाते हैं गानाबजाना करते हैं खैरात बांटते हैं इसीको उर्स कहते हैं। कहीं कहीं एक सप्ताह तक भी उर्सकी मजलिसें होती रहती हैं। परन्तु ९ अमरदादको अकबर बादशाहका उर्स कैसे हुआ? वह तो ३ आबानकी रातको मरा था यह कुछ समझ नहीं आता। हां १९ अमरदादको १३ जमदिउस्मानी थी और उसके देहान्तके दिन भी यही तारीख थी इसलिये इस साल ९ अमरदादको हुआ होगा। उसीका अनुसरण करता है। इसमें बहुतसे लाभ देखे जाते हैं। संसारके और मनुष्योंके वृत्तान्त विदित होते हैं। जो इसके गुण सविस्तर लिखे जावें तो बात बढ़ती है। उन दिनोंमें लाहोरके विकायानवीमने लिखा था कि तीर(१) महीनेके अन्तमें दस आदमी शहरसे अमनाबादको गये जो १२ कोस है। जब लू चलने लगी तो एक वृक्षकी छायामें ठहर गये। फिर ऐसी हवा चली कि उसके लगतेही कांपकर नौ तो वहीं मर गये और दसवां बहुत दिनों तक कष्ट पाकर अच्छा हुआ। पक्षी जो उस वृक्ष पर बैठे थे सब गिरकर मर गये। उस प्रान्तमें इस वायुसे ऐसी हानि हुई कि जंगलके जन्तु खेतोंमें आकर घास पर लोटे और मर गये।

शिकार।

३१ अमरदाद गुरुवार (भादों सुदी ७) को बादशाह नावमें बैठ कर समूनगर गया।

३ शहरेवर (भादों सुदी ११) को खानआलमने दक्षिणसे आकर एक सौ मोहरें नजर कीं। बादशाहने इसको ईरान भेजने के लिये बुलाया था।

समूनगर महाबतखांकी जागीरमें था और उसने नदीके तट पर एक सुरम्य स्थान बनाया था, वह बादशाहको प्रिय लगा। महाबतखांने एक हाथी और एक पन्नेकी अंगूठी भेट की।

६ (भादों सुदी १४) तक बादशाहने शिकार किया। ४७ हरन आदि पशु मारे।

सौर तुलादान।

२० (आश्विन बदी १३) गुरुवारको मरयममंकानीके महलमें बादशाहके सौर जन्मदिवसका तुलादान हुआ। वह लिखता है कि इस बरस मेरा ४४वां सौरवर्ष पूरा हुआ।

ईरानके दूतकी बिदाई।

इसी दिन शाह ईरानका ऐलची यादगारअली और खानआलम


(१) यह महीना सावन सुदी ६ को समाप्त हुआ था। ईरानको बिदा हुआ। बादशाहने उसे जड़ाऊ जीनका घोड़ा जड़ाऊ परतला चार कुब्ब सुनहरी कलंगी पर तथा जीगे सहित और तीस हजार रुपये दिये। सब माल चालीस हजार रुपयेका होगा। खानआलमको जड़ाऊ खपवा फूल कटारे सहित जिसमें मोतियोंकी लड़ी लगी थी मिला।

पितृदर्शन।

२२ (आश्विन बदी ३०)को बादशाह पांच हजार रुपये लुटाता हुआ हाथी पर सवार हो अपने पिताके दर्शनको बहिश्ताबाद(१)में गया और पांच हजार रुपये ख्वाजाजहांको फकीरोंको बांटनेके लिये दिये। एतमादुद्दौलाको घर रहा जो जमनाके तट पर था। दूसरे दिन एतकादवांके नये बनाये मकानमें बेगमों सहित ठहरा। उसने जवाहिर और दूसरी उत्तम चीजें भेट कीं जिनमेंसे बादशाह कुछ अपनी रूचिके अनुसार लेकर सायंकालको राजमन्दिरमें आगया।

अजमेरको कूच।

२(२) शाबान २४ शहरेवर (आश्विन सुदी २) चन्द्रवारको सात घड़ी रात गया बादशाहने आगरेसे अजमेरको कूच किया। वह लिखता है कि इस यात्रासे मेरे दो मनोरथथे--एक ख्वाजामुईनुद्दीन चिश्तीके दर्शन करना जिनकी आत्माके प्रतापसे इस घरानेका बहुत कल्याण हुआ है, और मैं तख्त पर बैठनेके पीछे यह पुण्य प्राप्त न कर सका था, दूसरे राणा अमरसिंहका सर करना, जो हिन्दुस्थानके मुख्य राजोंमेंसे है और जिसको सरदारी और बड़ाईको इस विलायतके राजा और राव सब मानते हैं। बहुत दिनसे राज्य और ऐश्वर्य्य इसके घरानेमें चला आता है। पहले पूर्व दिशा में


(१) सिकन्दरा जहां अकबरकी समाधि है।

(२) चण्डू पञ्चांगकी गणितसे १ शाबान, मगर मुसलमानी मत से रातको २ ही थी। इनका राज्य था और राजा कहलाते थे फिर दक्षिणको चले गये और वहांको अधिक भूमिको जीतकर राजाके बदले रावल कहलाने लगे। वहांसे मेवात(१)के पहाड़ोंमें आये और होते होते चित्तौड़गढ़के मालिक होगये। उस दिनसे आजतक (आठवां साल मेरे राज्य पर बैठनेका है) १४७१ वर्ष होते हैं। इस वंशके २६ पुरुष जिनका राज्य १०१० वर्ष रहा रावल कहलाते रहे। रावल(२) से जो पहिला पुरुष इस पदवीका हुआ है राना अमरसिंह तक जो आज राना है--२६ राना ४६१ वर्षमें हुए हैं और इतने लम्बे समयमें हिन्दुस्थानके किसी बादशाहके आगे नहीं झुके हैं, बल्कि बहुधा सिर उठाते और सामना करते रहे हैं वाबर बादशाहके समय में राणा सांगाने इस देशके सब राजा राव और जमीन्दारोंको एकत्र करके एक लाख अस्सी हजार सवारों और कई लाख पैदलों से वयानेके पास मैदानकी लड़ाई कीथी। ईश्वरकी कृपा और भाग्य के बलसे मुसलमानोंकी काफिरों पर जीत हुई जिसका वृत्तान्त तवारीखके विश्वासौ ग्रन्थों और विशेष करके बाबर बादशाहके वाकेआतमें जो उन्हींके लिखे हुए हैं सविस्तर लिखा है। मेरे पूज्य पिताने इन दंगई लोगोंके दबानेमें पूरा परिश्रम किया और कई बार इनके ऊपर सेना भेजी अपने राज्यशासनके बारहवें वर्ष में आप चित्तौड़गढ़ जीतनेको गये जो दुनियाभर के सुदृढ़ दुर्गेमेंसे है और ४ महीने एक दिन तक उसको घेरे रहे। फिर उसको राणा अमर- सिंहके पिता(३) के मनुष्योंसे बल पूर्वक छीनकर और नष्टभ्रष्ट करके चले आये। जब जब बादशाही फौजें उसको(४) घेरकर ऐसा कर देती थीं कि या तो पकड़ा जाय या मारा जाय तबही कोई ऐसी बात होजाती थी कि जिससे यह श्रम सफल नहीं होने पाता था। निदान अपने राज्यके पिछले समयमें आप तो


(१) मेवाड़ चाहिये। (२) महाराना चाहिये।

(३) पिता नहीं दादा।

(४) राणा प्रतापसिंह अमरसिंहके पिताको।

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संवत् १६७०।

दक्षिण जीतनेको गये और उसी सुहर्तमें मुझे भी विशाल सेना और मुख्य मुख्य अमीरों के साथ राणाके ऊपर भेजा। दैवयोगसे यह दोनो काम नहीं बने यहांतक कि मेरा समय आया और यह लड़ाई मेरीही अधूरी छोड़ी हुई थी इसलिये मैंने अपने पहिले वर्ष में जो सेना अपने राज्यको सीमा पर भेजी वह वही थी जिस पर परवेजको सेनापति किया था। बड़े बड़े अमौरीको जो राज- थानौमं उपस्थित थे उसमें नियत करके प्रचुरद्रव्य और तोपखाना साथ दिया । परन्तु प्रत्येक कार्यके सिद्ध होनेका एक समय होता है उसी अवसर पर दुर्बुद्धि खुसरोका उपद्रव उठ खड़ा हुआ और मुझे उसके पीछे पंजाबको जाना पड़ा। राज्य और राजधानीके सूने रहनेसे मैंने परवेजकोलिखा कि कुछ अमीरों सहित लौट आवे और आगरेको रखवाली करे। सारांश यह है कि उस समयभी राना का झगड़ा जैसा चाहिये था वैसांनहीं निबड़ा । जब खुसरोके बखेड़े से चित्तको शांति हुई और मैं उर्दू सहित आगरेमें आया तो महावत खां, अबदुल्लह खां और दूसरे सरदारों के साथ फिर फौजें भेजी। उस तिथि से मेरै अजमेरको प्रस्थान करनेके वक्त तक उसके देश तो लशकरोंके पैरों में रौंदे गये पर लड़ाईका रूप मेरी पसन्दके योग्य नहीं बंधा। मैंने सोचा कि आगर में कोई काम नहीं है और यह 'भी मुझको निश्चय होहो गया था कि जबतक मैं आप नहीं जाऊं इस लड़ाई में सफलता नहीं होती इमलिये निर्दिष्ट समयमैं आगरके किलेसे निकलकर दहराबागमें मुकाम किया।

दूसर(१) दिन दशहरेका उत्सव था बादशाहने नियमानुसार हाथी घोड़ोंको सजवाकर देखा।

खुसरोका छूटना।"

खुसरोको मा बहनें बादशाहसे कहा करती थीं और बादशाह को भी पुत्रमोहसें करुणोः आई तो खुसरोको बुलाया और कहा कि सलाम करनेको आया करे।


(१) आश्विन सुदी ३ को दशहरेका उत्सव न जाने कैसे हुआ ! जहांगीरनामा। ‘राजां रामदासको मृत्यु | . . . . . २८ (आश्विन सुदी ७) को खबर आई कि राजा रामदास जो बंगश और काबुलको कौमामें कुलीचवांके साथ था सर गया। . .........: दहले बागमे कूच । ... महर (आश्विन सुदी ११) को हर बागमे कूच हुश्रा उझान- जहांको आगरेको, महलोंकी और जानोंकी रखवाली पर छोड़ा गया। गजा बामको मृत्य। २. (आजिन सुदी १३).को खबर पहुंची कि राजा बाम थाने शाहबादमें जो अमराराणाको विलायतकी सीमा पर था मर गया। . . ... रूपवास। ... ...... ... . १० (कातिक बदी ४) को रूपवाममें जिसका नाम अब अमना- बाद होगया था डेरे हुए। . पहिले रूपवास रूपखवासको जागीर में था फिर बादशाहने. महाबतखांके वेटे अमानुलहकी . जागीरने देकर फरमा दिया था कि अब इसको अमनाबादके नामरी पुकारा करें। यहां ९१ दिन डेरे रहे यह शिकारको जगई थी. इसलिये बादशाह रोज शिकार खेलने को जाया करता था । १५८ हरन और दूसरे पशु शिकार हुए। . अमनाबादसे कूच । . . २५ (कार्तिक सुदी ५) को अमनाबादसे कूच हुआ। ३१ महर ८ रमजान (कार्तिक सुदौ १०) को खाजा अवुलहसन दक्षिणसे बुलाया हुआ पाया। ५० मोहरे १५ जड़ाऊ पदार्थ और एक हाथी नजर किया। कुलीचखांको मृत्यु । २ आबान १० रमजान (कार्तिक सुदी १०) को कुलीचवांक मरनेको खबर पहुंची। वह पुराना नौकर था ८० वर्षका होकर 'परशावरू(१)में मरा जहां पठानों के प्रवन्धके वास्ते, ठहरा हुआ था। उसका मनसब छः हजारो जात और पांच हजार सवारोंका था।

(१) पेशावर। ".

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संवत् १६७० ।

मुरतिजाखां दक्षिणी।

बादशाहने सुरतिजाखां दक्खिनीको जिमसे वर्षों तक उन्होंने पटेबाजी सौखी थी वरजिशखांका खिताब दिया।

पालन ।

दीन दरिद्र.और पालन करनेके योग्य लोग बादशाहकी आजा- नुसार रात्रि में उनके सम्मुख लाये जाते थे और वह प्रत्येककी दशा देखकर जमौन रुपये और कपड़े देता था।

अजमेर में प्रवेश।

५ शञ्चाल २६ आधान (अगहन सुदी ७) चन्द्रवारको अजमेरमें प्रवेश करनेका मुंहत्तं था इसलिये बादशाह. इस दिन तड़केही सवार हुआ। जब किला और खाजाजीका रोजा नजर आनेलगा तो एक कोससे पैदल चलने लगा विश्वासपात्र नौकर. आज्ञानुसार दोनों ओरसे मांगनेवालीको रुपये, देते जाते थे। चारघड़ी दिन चढ़े शहरमें पहुंचा और पांचवीं घडीमें जियारत करके दौलतखानको लौट आया।

दूसरे दिन हुक्म दिया कि इस पुण्यस्थानों सब रहनेवालों और शास्ते चलनेवालोंको. लावें और हरेकको योग्यताके अनुसार दान दिया जावे।

पुष्कर।

७ आजर (पौष बदौ ३). को बादशाह हिन्दुओंके तीर्थ पुष्करके देखनेको जो अजमेरसे तीन कोस है गया और जलमुरगियां मारी। तालाबके तट पर नये पुराने मन्दिर भौ देंखे जिनमें अमराराणाके चचा राणा सगरने जो बादशाही दरबारका बड़ा अमौर था लाख रुपये लगाकर एक भड़कीला मन्दिर बनवाया था। बादशाह उसमें गया और वहां बाराह अवतारकौं मूर्ति देखकार हुक्म दिया कि इसको तोड़कर तालाबमें डाल देवें। फिर एक पहाड़ीपर सफेद बुझ और उसमें हर तरफसे आदमियोंको जाते हुए देखकर हाल

घूछा तो लोगोंने कहा कि वहां एक योगी रहता है, जो सूर्ख

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जहांगीरनामा।

लोग उसके पास जाते हैं उनके हाथमें मुट्ठीभर घाटा देकर उस जानवरकी बोली बोलनेको कहता है जिसको उसने कभी सताया हो। ऐसा करनेसे पापको निहत्ति होजाती है।

बादशाहने उस स्थानको गिरवाकर योगीको निकलवा दिया और मूर्ति जो वहां थी तुड़वा डाली। फिर यह सुनकर कि तालाब की गहराईका पता नहीं है निर्णय किया तो कहीं भी बारह गज से अधिक गहरा नहीं निकला। उसके घेरेको भी नपवाया तो डेढ़ कोसका हुआ।

शिकार।

१६ (पौष बदौ १२) को खबर पहुंची कि शिकारियोंने एक सिंहनीको घेर रखा है। बादशाह गया और उसको बन्दूकसे मार कर आगया।

फरंगियोंका अत्याचार।

इस महीने में खबर पहुंची कि गोवा बन्दरके फरंगियोंने बचन छोड़कर सूरत बन्दरके आनेवाले जहाजोंमेंसे चार परदेशी जहाजों को लूटा और बहुतसे मुसलमानोंको पकड़कर उनके जहाजीका सब मालभी लेलिया। यह बात बादशाहको बुरी लगी। १६ आजर (पौष बदी १४) को उसने लुटेरोंको दण्ड देनेके लिये मुकर्रबखांको हाथी घोड़ा और सिरोपाव देकर बिदा किया।

खुर्रमका राना पर जाना।

बादशाहका मूल अभिप्राय इस यात्रासः रानाको. अंधीनः करने का था इस लिये आप तो अजमेर में ठहर गया। और खुर्रमको आगे भेजने का विचार करके ६ दे (पौष सुदी १५) का मुहूर्त निक- लवाया। उस दिन उसको जरोको सिलो हुई जड़ाऊ फूलोको वाबा(१) जिन फूलोंको कोरों पर मोती टंके हुए थे, जरीका चौरा मोतियोंकी लड़ियोंदार - जरीका .. पटका. .::, मोतियोंकी झालरका, फतहगज, नाम खासेका हाथी : तलापर सहित,


(१) अचकन।

१७८
संवत् १६७०।

खासेका घोड़ा, जड़ाऊ तलवार, जड़ाज खपवा, फूल कठारे सहित देकर बिदा किया अगले सिपाहियोंके सिवा जो पहलेसे खाना- जमकी सरदारीमें इस मुहिम पर लगे हुए थे बारह हजार सवार और दिये। उनके अफसरों को खासेके घोड़े खासके हाथी और श्रेष्ठ सिरोपावोंसे सुशोभित करके उसके साथ दिया। फिदाईखां इस लशकरका बखशी नियत हुआ।

काशमीर।

उसी मुहूर्तमें सफ़दरखांको हाशिमखांकी जगह काशमीरको को मूबेदारी पर घोड़ा खिलअत देकर भेजा।

बखशीकुल।

११ दे (माध बदी ५।६) बुधवारको खाजा अबुलहसन बखशो- कुल अर्थात् मौरबखशौ हुआ।

देग।

बादशाहने खाजाजीको दरगाहके वास्ते एक बड़ी देग(१) आगरेमें बनवाई थी। वह इन दिनों में आई तो उसमें खाना पकवाकर पांच हजार फकीरोंको अपने सामने खिलाया और सबको रुपये भी दिये।

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(१) यह देग अबतक मौजूद है इसमें कई मन चावल खांड़ और घी डालकर रातको पकाते हैं और तड़केही लुटा देते हैं। साल भरमें दोचार देगें चढ़ा करती हैं। उसके मेले में बड़े आदमी

अपने नाम के वास्ते देग चढ़ाते और लुटाते हैं।

दशवां वर्ष।

सन् १०२३

फागुन सुदी ३ संवत् १६७० से माघ सुदी १ संवत् १६७१ तक।

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१ असफंदार १०(१) सुहर्रम (फागुन सुदी १०) को बादशाह अजमेरसे नीलगायोंके शिकारको गया। नवें दिन लौट आया। फिर हाफिज जमालके चश्म पर गया जो शहर से दो कोस है जुर्मको रातको वहां रहा।

इसलामखांकी मृत्यु ।

३ (फागुन सुदी १२ )को इसलामखांके मरनेको खबर आई कि वह ५रज्जब (गुरुवार भादों(२) सुदी)को मरगया। बंगालमें इसने बादशाही राज्यको खूब बढ़ाया था इसका मनसब भी छः हजारी जात और छः हजार सवारका था।

खानाजम पर कोप।

बादशाहने ख'माजमको शाहजादेसे अनबन सुनकर इब्रा- होम हुसैनको उसके समझानेके वास्ते भेजा और कहलाया कि जब तू बुरहानपुर में था तो तूने मुझसे यह काम मांगा था। तू इसमें अपना कल्याण समझता था ओर लोगों में बैठकर कहा करता था कि जो इप्स लड़ाई में मारा जाऊंगा तो शहीद इंया और जीतूंगा तो गाजी कहलाऊंगा। फिर तूने लिखा कि बाद- शाही सवारीको आये बिना यह फतह होनी मुशकिल है और तेरी सलाहसे हमारा अजमेर में आना हुआ। अब तूने शाहजादेको बुलाया। मैंने बाबा खुर्रमको जिसे कभी अलग नहीं किया था, तेरे भरोसे पर भेजा। यह सब काम तेरोही सलोहसे हुए हैं।


(१) पञ्चाङ्ग के गणितसे ।

(२) यह खबर न जाने क्यों छः महीने पोछे आई थी।

१८१
संवत् १६७०

फिर क्या सबब है कि तू अब इस लड़ाई अपना पांव खेंचता है। चाहिये कि शुभचिन्तक और खामिसत रहकर शाहजादेको रात दिन सेवा करता रहे अगर इसके विरुद्ध किया तो याद रख कि अपना बिगाड़ तू आपहो करेगा।

इब्राहीमने जाकर यह सब बातें खानाजमसे कहीं परन्तु कुछ लाभ न हुआ। वह अपनी हठसे नहीं हटा। तब खुर्रमने उसको पहरे में रखकर बादशाहसे अर्ज कराई कि इसका यहां रहना अच्छा नहीं है। क्योंकि यह खुसरोके संबंधसे काम बिगाड़नेको चेष्टाम है। बादशाहने महाबतखांको हुक्म दिया कि जाकरः उदयपुरसे उसको लेआवे और उसके बालबच्चोंको मंदसोरसे अजमेर में लानेक लिये वधूतात(१) के दीवान सुहम्मद तकीको भेजा।

दलपतरायका मारा जान्ग।

११ (चैत्र बदी ६) को पहले खबर पहुंची कि रायसिंहका बेटा दलपत जो दुष्ट खभाव था अपने भाई सूरजसिंहसे जिसे बादशाहने उसके जपर भेजा था लड़ाई हारकर सरकार हिमारके एक किले में घिरा हुआ है और इसके साथही वहां फौजदार हाशिम और उप्त जिलेके जागौरदारोंने दलपतको पकड़कर भेज दिया। बाद- शाहने उसको मरवा(२) डाला क्योंकि उसने कई बार कुराई को थी। इस कामके इनाममें सूरजसिंहके मनसबमें पांच सदी जात और दो हजार सवारको वृद्धि हुई।

अलमकमान हाथी।

१४ (चैत्र बदौ ८) को खुर्रमको अर्जी पहुँचौ कि आलमकमान हाथी जिस पर रानाको बड़ा घमण्ड था सतरह दूसरे हाथियों


(१) कारखानों।

(२) दलपतसे क्या क्या अपराध हुए थे इसका कुछ व्योरा ऊपर नहीं आया है, और न इस बातका कुछ उल्लेख है कि सूरजसिंह दलपतके अपर कब और क्यों भेजा गया था।

[ १६ ]

१८२
जहांगीरनामा।

सहित फौजमें पकड़ा आया है और उसका स्वामी भी शीघ्रही पकड़ा जायगा।

नवां नौरोज।

2 सफर (चैत्र सुदी १०) गुरुवारको दोपहर एक घड़ी रात जाने परं सूर्य मेख राशि पर आया। दूसरे दिन नवां नौरोज हुआ। अजमेरमें सभा जुड़ी। राजभवन दिव्य वस्त्रों रत्नों और जड़ाऊ पदार्थों से सजाया गया। बादशाह राजसिंहासन पर बैठा। उसोसमय खुर्रम बाबाके भेजे हुए आलमकमान हाथी और सतरह दूसरे हाथो हथनियोंके आनेसे सभाको शोभा बढ़ गई। बड़ा आनन्दमंगल हुआ।

दूसरे दिन बादशाहने शुभशकुन समझकर उस हाथी पर सवारी को। उस समय बहुतसे रुपये न्यौछावर हुए।

तीसरे दिन एतकादखांका मनसब दोहजारीसे तीनहजारी हो गया और उसको आसिफखांका खिताब मिला जो पहले भी उसके घरानेके दो पुरुषोंको मिल चुका था। उसके बाप एतमादुद्दौलाका भी मनसब बढ़कर पांच हजारी जात और दो हजार सवारोंका होगया।

खुर्रमके लिखनेसे सैफखांके बारह और दिलावरखांके पांच पांच सदी जात तथा दो दो सौ सवार और किशनसिंहके पांचसौ. सवार बढ़े।

इसी तरह और अमीरों के मनसबौंमें भी वृद्धि हुई।

१५ फरवरदीन (बैसाख बदौ ११) को महाबतखां खानआजम और उसके बेटे अबदुलहको लेकर आगया। बादशाहने खानाजमको, यह सोचकर कि कहीं खुसरोके पक्षपातसे रानाको फतहमें विघ्न न डाले आसिफखांके हवाले किया और कहा कि गवालियरके किले में आरामसे. नजरबन्द रखे।

खुसरो।

१८ उर्दी वहित (प्रथम जेठ बदौ ३०) को खुसरोकी ड्योढ़ी

१८३
संवत् १.६७१ ।

बन्द होगई क्योंकि वह दरबार में तो आता था परन्तु उदास रहा करता था।

मिरजा रुस्तम।

मिरजा रुस्तम(१) सफवीके अन्यायसे ठडे की प्रजाने पुकार को। बादशाहने उसे बुलाया वह २६ उर्दीबहिश्त (प्रथम जेठ सुदी. ७) को आया तो वह अनौराय सिंहदलनको सौंप दिया गया कि निर्णय होने तक कुछ दुःख पावे और दूसरे लोग भी सहम जावें।

अहदादको हार।

मोतकिदखां पोलमको घाटीमें जो परशावरके पास है और . खानदौरां कावुलके पास अहदादका रास्ता रोके हुए थे। इतने में अहदाद बहुतसे सवारों और पैदलोंके साथ : जलालाबादसे आठ कोस कोटतिराहमें आकर ठहरा और वहांके जो लोग अधीन होगये धे उनमें से कुछको मार और कुछको पकड़कर जलालाबाद और येशबुलागके ऊपर आनेका विचार करने लगा।

मोतकिदखाने यह सुनकर.६ फरवरदीन (बैसाख बदी १) बुध- वारको उमपर चढ़ाई की। वह खानदौरांके सिवा और किसी सेना के उम प्रान्तमें विद्यमान होने की सूचना न होनेसे निश्चिन्त बैठा था, तो भी खूब लड़ा। अन्तको बन्दूकोंकी मारसे घबराकर भाग निकला। मोतकिदखाने तीन चार कोस तक पीछा करके उसके पन्द्रह मी आदमी मारी। शेष हथियार डालकर भाग गये। मोत. किदखा रातको तो रणभूमिमें रहा और तड़के छः सौ. सिर पठानों के लेकर परशावरमें आया और वहां उनका बबर(२) कोट बन. वाया। पांचमी गाय बैल बकरी घोड़े और बहुतसा धन मालं


(१) यह ईरानके शाह तुहमास्य, सफवोके भतीजे सुलतान हुसैन मिरजाका बेटा था इमका बाप कन्धार और, ज़मीनदावरका हाकिम था मगर तूरानके बादशाह अबदुल्लहखां उजबकके डरसे अपना मुल्क अकबर बादशाहको देकर हिन्दुस्थानमें आगया था।

(२) बैरियोंके सस्तकोंका स्तम्भ।

१८४
जहांगीरनामा।

हाथ आया। तिराहके जो बन्दी थे वह भी छूट गये। इधरसे कोई बड़ा आदमी नहीं भरा। बादशाहने मोतकिदखांको लश- करखांका खिताब दिया।

शिकार।

१ खुरदाद (प्रथम जेठ सुदी १.४) गुरुवारको रातको बाट शाह शिकारके वास्ते पुष्करको गया और शुक्रवारको दो शेर बन्दूकसे मारी।।

नकौवखांकी मृत्यु।

इमौ दिन नकोबखांके मरनेकी अर्जी हुई।" उसको खौं दो महीने पहले मर गई थी दोनो मियां बीबीमें बड़ा प्यार था। इम लिये बादशाहने इमको भौ बीबीको पास खाजाजी की दरगाहमें गाड़नेका हुक्म दिया। "

रानाकी लड़ाई।

बादशाहने दियानतखाको उदयपुरमें खुर्रमके पास हुक्म पहुंचाने के वास्ते भेजा था उसने आकर खुर्रमके साहस और प्रवन्धको बड़ी तारीफ की।

फिदाईखांकी मृत्यु ।

'फिदाईखां जो खुर्रमके लशकरका बखशी था १२ (द्वितीय जेठ बदौ ५०) को मर गया। यह बादशाहका लड़कपनका नौकर था।

मिरजा रुस्तम।

"मिरजा रुस्तम अपने कुकमोंसे लज्जित होकर पछताने लगा था इसलिये बादशाहने उसका अपराध क्षमा करके उसको सम्मुख बुलाकर खिलअंत पहनाया और दरबार में आनेको आज्ञा दी।

हथनाका बच्चा देना।

११ तौर (आषाढ़ बदौं ३०) रविवारको रातको शाही हथनीने बादशाहके सम्मुख बच्चा दिया । बादशाहने गर्भको अवधि निर्णय को तो विदित हुआ कि जो बच्चा नर हो तो डेढ़ सालमें और

मादा हो तो उन्नीस महीने में जनतो है। आदमीका बच्चा तो

१८५
संवत् १६७१।

विशेष करके सिरको ओरसे जन्मता है और हथनीका टांगोंकी ओरसे।

बच्चे के जन्मतेही हथनी उस पर धूल डालकर प्यार करने लगी और बच्चा भी क्षण भर पीछे उठकर दूध पौने लगा।

राजा मानसिंहको.मृत्यु,।

५ अमरदाद (सावन बदी ७) को दक्षिणसे राजा मानसिंह मरनेको खबर आई। बादशाहने भावमिहको जो उसके बेटीमेंसे बहुत सुशील था बुलाया। गज्यका :अधिकारी तो हिन्दुओंको . रोति और इस घरानेको मर्यादासे राजा मानसिंहके बड़े बेटे जगत मिहका बेटा महासिंह था क्योंवि जगतसिंह बापके जीतेजी मर चुका था। परन्तु भावसिंह बादशाहको सेवामें लडकपनसे बहुत रहा था इसलिये बादशाहने उमको चार हजारी जात तीन हजार मवारका मनमब मिरजा गजाका खिताब और अजमेरका राज्य - दिया। इसके बदले में महासिंहको गढेका राज - देकर पांच सदी मनसब भी उसका बढ़ाया- घोड़ा सिरोपाव और जड़ाऊ कमरपट्टा भी उसके लिये भेजा।

बादशाहको बीमारी।

८ अमरदाद (सावन बदी १०) को बादशाहकी तबीयत खराब हुई। माथा दखने और ज्वर आने लगा। परन्तु राज्यमें विघ्न पड़नेको आशंकासे नूरजहां(१) बेगमके सिवा और किसीको अपनी दशा नहीं कही। · खुराक घट गई थी तो भी नित्य नियमानुसार दवास, आम, दीवानखाने, झरोखे और गुसलखानेमें जाता आता रहा.। निदान जब थक गया तो हकीमोंसे कहा और खाजाजी . की दरगाहमें जाकर परमेश्वरसे अपने अच्छे होनेको प्रार्थना की। प्रमाद और मन्नत मानौं तब आगम हुआ। सिरका कुछ दर्द बाकी था वह हकीम अबदुलशकूरको दवासे जाता रहा।


(९) बादशाहने नूरजहांका नाम पहले पहल यहां लिखा है

अहलमें तो वह तीन वर्ष पहलेही.आँगई थी।

१८६
जहांगीरनामा।

बाहशाह लिखता है कि नौकर चाकर क्या प्रजाने भी इस प्रसन्नतामें दान पुण्यके लिये बहुतसा द्रव्य देना चाहा परन्तु. मैंने किसीका कुछ नहीं लिया। सबस कह दिया कि अपने अपने घरों में जो चाहें फकीरीको बांटें।

कर्ण छेदन।

१२ शहरेवर २८(१) वज्जव (भादी बदी ३०) गुरुवार को बाद- शाहने दोनो कान छिदवाकर मोती पहने। क्योंकि बीमारी में यह मन्नत मानी थी कि जो खाजाजीक प्रभावसे अच्छा होजाऊंगा तो जैसे अन्तःकरणसे उनकी भक्ति करूंगा वैसही प्रत्यक्षमें कान छिदवा कर उनके दामों में मिल जाऊंगा।

बादशाहको कान छिदातें देख कर बहुत लोगोंने भी क्या दूर क्या हजूर में अपने कान छिदवा लिये। बादशाहने भी अपने रत्न- भाण्डारसे उनको मोती दिये । होते होत सर्वसाधारणमें भी कान छिदवानको चाल चल पड़ी।

२२ गुरुवार १० शाबान (भादी सुदी ११) को बादशाहको मौर वर्षगांठका तुलादान हुआ। इसी दिन मिरजा राजा भावसिंह हतार्थ और पूर्णकाल होकर अपने देशको गया। दो तीन महीने से अधिक न ठहरनेको प्रतिज्ञा करने पर उसको छुट्टी मिली थी।

६ आबान (कार्तिक बदौ ११) को किरावलोंने छः कोस पर तीन सिंहों को खबर दी। बादशाह दोपहर ढलतहो गया और तीनोंको बन्दुकसे मार लाया।

८ (कार्तिक बदौ १३) को दिवालीका. हन्द मचा। दरबारी लोग बादशाहकी आज्ञासे उनके समक्ष दो तीन रात जुआ खेलते रहे। खूब हार जीत हुई।;


(१) चंडूपंञ्चाङ्गको गणित से २७ ।:"

२) तु० ज० पृ. १३१ में २२ शहरेवर १० श बान गुरुवारको तुलादान होना लिखा है इसमें इतनी भूल है कि २२ शहरेवर तो

गुरुवारको नहीं रविवारको थी और शाबानको वीं तारीख थी।

१८७
संवत् १६७१ ।

१८ (कार्तिक सुदी ११) को सिकन्दर मंकीन किरावलको लाश उदयपुरसे जहां खुर्रमके डेरे थे अजमेर में आई। यह पुराना नौकर था इलिये बादशाहने हुक्म दिया कि सब किरावल साथ जाकर आना सागर(१)के तट पर गाड़ देवें ।

१२ आजर (अगहन सुदी ३) को २ लड़कियां (जो इसलामखां ने कोचके जमींदारोंसे, जिनको विलायत पूर्वके अन्तिम सीमा पर है ली थी) और ८४ हाथी भेष्ट हुए और उसके बेटे होशंगने दो हाथौ सौ मोहर और एक सौ रुपये नजर किये।

सपना।

बादशाहने एक रात अपने पिताको सपने में यह कहते हुए देखा कि बाबा खानाजम अजीजखांके गुनाह मेरी खातिरसे बख्श दे।

नूर चशमा।

"अजमेरको तलहटीमें हाफिज जमालके नाम एक दरा और चश्मा प्रसिद्ध हैं बादशाहने उस सुरम्य स्थानको पसन्द करके वहांक योग्य राजभवन बनागेका हुक्म दिया था। एक वर्ष में ऐसा उत्तम भवन बना कि पृथ्वी पर्यटन करनेवाले उसके ममान कोई स्थान नहीं बताते थे। वहां ४० गज लम्बा और उतनाही चौड़ा एक झालरा निर्माण हुआ था जिसमें चशमका पानी फव्वारसे डाला गया था। इसका पानी १०११२ गज ऊचा उछलकर गिरता था। झालरके ऊपर बैठकें बनी थीं। : ऐसेही जपरके खण्डमें भी जहां तालाब और चश्मा था मनोहर मन्दिर सुखद सदन और ऊंचे झरोखे झके थे कईएकमें तो चतुर चित्रकारोंने विचित्र चित्र- कारी की थी। बादशाहने उस स्थानका नाम नरचश्या रखा जो उसके नाम नूरुद्दीनसे मिलता हुआ था। वह लिखता है-"इसमें यही दोष है कि किसी बड़े नगर में या ऐसी जगह पर न · हुआ


(१) आना सागरका नाम सना शंकर तु० ज० में लेखको दोषसे लिखा गया है। जहाँ वहुत लोग आते जाते। बन जानेके पीछे मैं गुरुवार और शुक्रवारको वहुधा वहीं रहता है। मैंने कवियोंको प्रशस्ति लिखनेको आज्ञा को तो भूषणागारको कर्मचारी गईदाय गोलानीने जो प्रशस्ति भेट को वही मैंने पत्थर पर खुदवाकर नीचे के भवन पर लगवादी ।(१)

अनार और खरबूजे।

माघ महीने के लगतेही विलायतले व्यापारी आये और यज्द(२) के अनार और कोरेज(३) के खरबूजे लाये जो खुरामानके देश सर्वोत्तम होते हैं। बादशाह लिखता है-"दरगाहके मव बन्दा और सीमा प्रान्तके अमौरोंने इस मैवेका हिस्सा पाकर परमेश्वरका धन्यवाद किया। अबतक मुझको उत्तम अनार और खरबूजे नहीं मिले थे। यों तो वर्षभर बदखशांमे खरबूजे और कावुलसे अनार आया करते हैं पर वह यजदके अनार और कारेजके रखरवजोंके ममान नहीं होते। मेरे पिताको मेवेको बहुन रुचि थी मुझे बड़ा अफसोस हुआ कि यह मेवे उनके समयमें नहीं आये। आत तो वह बहुत प्रसन्न होते।

जहांगीरी अतर।

ऐसाही अफसोस मुझे अतर जहांगौरीका भी है कि जो उनके सूंघने में नहीं आया। यह अतर मेरै राज्यमें नूरजहां वेगमको माके


(१) यह स्थान प्रशस्ति सहित नूरचशममें अब भी है। झालग और फव्वारा टूट गया है। तीस वर्ष पहले अंगरेजी सरकार मे कुछ मरम्मत हुई थी पर न अब वैसी घटा है न वह पानी है। न फव्वारा चलता है न चादर गिरती है। सब मकान मूने और उजड़े पड़े हैं। नूरचश्मेको जामनें मशहूर थीं अब कई वर्षसे अच्छी वर्षा न होनेसे वह भी वैसी नहीं होती।

(२)'यज्द' ईरानमें एक पुराना प्रदेश है।

(३) कारेज, हिरातमें खरबूजोंके खेत हैं हिरात अब काबुलके राज्य में है। परिश्रम से नया निकला है। जब गुलाबका जल निकालते हैं तो उस के ऊपर कुछ चिकनाई आजाती है। उसको थोड़ा थोड़ा लेकर यह अतर बनाया गया है इसमें इतनी अधिक सुगन्ध होती है कि एक बंद हथेलीमें मल लोजाय तो मजलिसभर महकाउठती है और ऐसा मालूम होता है कि वहुतसे गुलाबके फूल खिलगये हैं। इसका तीव्र सौरभ ऐसा सुन्दर और सुरम्य होता है कि जिससे मुरझाया हुआ हृदय कमलसा प्रफुलित होजाता है। मैंने इस अतरके इनाममें एक माला मोतियोंकी उसको इनायत की। सलोमा मुलतान बेगम उस समय जीती थी उसने इस तेलका नाम. जहांगीरी अतर रखा।

हिन्दुस्थानको विचित्रता।

बादशाह लिखता है-"हिन्दुस्थानको हवा में बहुत विचित्रता देखी जाती है लाहोर जो हिन्दुस्थान और विलायतके बीच में है वहां इस ऋतु में तूत बहुत फला। और वैमाही मोठा और रमोला हुआ जैसा कि अपनी ऋतु गरमी में होता है।

कई दिन लोग उनके खानेसे प्रसन्न रहे। यह बात वहांके अखबार लिखनेवालोंने लिखी थी।

बखतरखां कलांवत।

बखतरखां कलांवत जिंसको आदिलखांने अपनी बेटी व्याही श्री और जो भ्रं पद गाने में उसका मुख्य शिष्य था फकीरी भेषमें प्रगट हुआ। बादशाहने उसको बुलाकर हाल पूछा । बहुत आदर किया। दस हजार रुपये सब प्रकारके ५० पदार्थ और एक मोतियों की माला देकर आसिफखांके घरमें ठहराया। बादशाहको समझा में यह आदिलका भेजा हुआ भेद लेनेको आया था और इस बात का पुष्टि मोर जमालुद्दीनको अर्जीसे भी हुई जो आदिलखांक पास गया हुआ था ।.उसने अर्जी में लिखा था कि आदिलखांन कहा है कि जो कुछ मान मर्यादा बखतरखांकी हुई है वह मरोही हुई

हैं। यह जानकर बादशाहने और भी उस पर कृपा की। : वह

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जहांगीरनामा।

रातोंको सेवामें रहता था और, आदिलखांके बनाये हुए ध्रुपद जिनका नाम उसने नवरस रखा था सुनाया करता था।

एक विचित्न पक्षी।

इन दिनों में जेरबाद देशसे एक पक्षी बादशाहके पास लाया गया जिबका रंग तोतेकासा था परन्तु आकार में उससे छोटा था। उसमें विशेष बात यह थी कि जिस लकड़ी या वृक्षको शाखा पर उसे बैठाते उसको वह एक पांवसे पकड़कर औंधा लटक जाता और सारी रात गाया करता। जब दिन निकलता तो.फिर उस शाखा पर जा बैठता। बादशाह लिखता है कि लोग पशु पक्षियोंकी भी एक तपस्या बताते हैं। पर इसका यह काम स्वाभाविक जाना जाता है।

वह पक्षी पानी नहीं पीता था जो और सब जीवोंके वास्ते जीवनका मूल है. वह इसके लिये विष था।

राणाका अधौन होना।

इन्हीं दिनों में बादशाहको लगातार कई बधाइयां पहुंचीं जिनमें मुख्य राणा अमरमिंहके अधीन होजानेको थी। खुर्रमने जगह जगह और विशेष करके उन कई स्थानों में जहां जल वायुके विकार और विकट घाटियोंको कठिनतासे लोग थानोंका बैठना संभव नहीं समझते थे थाने बैठाने शिशिर ग्रीष्म और पावस ऋतुमें भी सेनाके पीछे सेना दौडाने तथा वहांको अधिक प्रजाके बालबच्चे पकड़ लेनेसे रानाको ऐसा कायर कर दिया था कि उसको यह निश्चय होगया कि जो इस दशामें कुछ दिन और बीतेंगे तो या तो मैं अपने देशसे निकाला जाऊंगा या पकड़ा जाऊंगा।


  • नवरस इब्राहीम आदिलखांके ग्रन्थका नाम है जिसमें संगीत

का विषय है। जहरी नाम मुसलमान कविने. इसको व्याख्या में एक काव्य फारसी भाषाका रचा है आदिलखां गानविद्यामें निपुण था। और कुछ उपाय न देखकर अधीन होनाही खीकार करके अपने मामा शुभकरणको हरदास झालाके साथ जो उसका एक बुद्धिमान सचिव था खुर्रमके पास भेजा और यह कहलाया कि जो आप बादशाहसे प्रार्थना करके मेरे अपराध क्षमा कर देवें और मेरे चित्तकी शान्तिके लिये बादशाहके पंजेकी काप मंगवा देवें तो मैं आपके पास आऊ और टीकाई बेटे कर्णको बादशाहकी सेवामें भेजूं वह दूसरे सब राजोंकी रीतिके अनुसार सेवा किया करेगा। मुझे बुढ़ापेके कारण दरगाहकी हाजिरीसे माफी दीजावे।

खुर्रमने उनको अपने दीवान शुकलह और मीर सामानसुन्दर के साथ बादशाहके पास भेजा। बादशाह लिखता है कि मेरी नियत शुरूसे यथासाध्य पुराने घरानोंके बिगाडनेकी नहीं रही है मुख्य मन्तव्य यही था कि राणा अमरसिंह और उसके बाप दादोंने अपने बिकट पहाड़ों और सुदृढ़ स्थानोंके घमण्डसे न तो हिन्दुस्थानके किसी बादशाहको देखा है और न सेवा की है। मेरे राज्यमें उनकी वह बात न रहे। मैंने लड़केको प्रार्थनासे राणाके अपराध क्षमा करदिये। उसको शांतिके लिये प्रसादपत्र और अपनी हथेलीकी छाप भी भेजी और खुर्रमको लिखा कि तुम ऐसा करो जो यह काम बन जावे। जिससे यह प्रगट हो कि तुमने मेरे एक मनचाहे कामको पूरा किया।

खुर्रमने भी उनको मुल्ला शुक्रुल्लह और सुन्दरदासके साथ राणाके पास भेजा। उसने उसको बादशाही दयापात्र करके वह कृपापत्र और पंजेका चिन्ह दिया और यह बात ठहराई कि २६ बहमन (फागुन बदी २) रविवारको राणा अपने बेटों सहित आकर खुर्रमसे मेट करे।

बहादुरका मरना।

दूसरी बधाई यह थी कि बहादुर जो गुजरातके अगले बाद-शाहोंके वंशमें था और वहां उपद्रव किया करता था मरगया।

मीरजाई।

तीसरी बधाई मीरजाईकी हार थी यह सूरत बन्दर लेने को बड़े ठस्मेसे आया था। उससे और अंगरेजोंसे जो इस बन्दरके शरणागत आये थे लड़ाई हुई। उसके बहुतसे जहाज अंगरेजों के गोलोंसे जल गये। तब वह भाग गया और बन्दरोंके हाकिम मुकर्रबखांके पास आदमी भेजकर सन्धि करली। .कहलाया कि मैं लड़नेके विचारसे नहीं आया था मिलाप करनेको आया था अङ्ग्रेजोंने यह लड़ाई खड़ी करदी।

अंबर चम्पू।

कई राजपूतोंने अंबरके मारनेका बोड़ा उठाया था वह अवसर पाकर उसके ऊपर गये और एक राजपूतने उसके एक चोट भी दी परन्तु जो मनुष्य अंबरके साथ थे वह उन राजपूतोंको मारकर अंबरको बचा लेगये नहीं तो उसके मारेजानेमे कुछ कसरं न थी।


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यह कोई फरंगी मालूम होता है।

सन् १०२४ ।

माघ सुदी २ संवत् १६७१ ता० २१ जनवरी सम् १६१५ से

माघ सुदी २ सं० १६७२ ता० १० जनवरौ ९६१६ तक।

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रानाका खुर्रमके पास आना।

इस महीनेके अन्तमें बादशाह अजमेरके बाहर शिकार खेल रहा था कि खुर्रमका नौकर मुहम्मदवेग उसकी अर्जी लेकर आया । उसमें लिखा था कि रानाने बेटों सहित आकर मुजरा किया। इस बातके ज्ञात होतेही बादशाइने खुदाको दरगाहमें शुक्रका सिजदा किया और मुहम्मद बेगको हाथी घोड़ा तथा जुलफिकार खांका खिताब दिया।

रानाके अधीन होने का हत्तान्त।

अर्जी में यह लिखा था कि २६ बहमन (फागुन वदी २) रवि- वारको रानाने जिस अदबसे बादशाही तावेदार मुजरा करते हैं उसो तौरेता से खुर्रमको मुजरा किया। एक बड़ा प्रसिद्ध माणिक्य जो उसके घरमें था कुछ जड़ाऊ पदार्थ, अपने पासके शेष सात हाथी और ८ घोड़े नजर किये। खुर्रमने भी उसके ऊपर लपा दिखाई। रागा जब उसका पांव पकड़ कर अपने अपराधोंको क्षमा मांगने लगा तो शाहजादेने उसका सिर बगलमें उठा उसको ऐसी तसल्ली की जिससे उसको शान्ति होगई। फिर बढ़िया खिलश्रत -जड़ाऊ तलवार जड़ाऊ सजाईका घोड़ा और चान्दोको सौंजका हाथी उसको दिया। उसके साथके मनष्योंमें सिरोपाव पानेके योग्य एक सौसे अधिक नहीं थे इस लिये सौ सिरोपाव पचास घोड़े और १२ जड़ाऊ खपवे उनको दिये। जमींदारोंको यह चाल है कि बाद-


पा कायदा।'

[१७]

शाहोंकी सेवामें टीकाई बेटा बापके साथ नहीं आता है उसीके अनुसार राना भी अपने बड़े बेटे कर्णको साथ नहीं लाया था परन्तु खुर्नसके कूच कर जानेका मुहर्त उसीदिन सायंकालको था इससे उसने रानाको कर्ण के भेजनेके लिये शीघ्र ही बिदा करदिया ।

रानाके जानेके बाद कर्णने मुजरा किया। उसको भी खुर्रम ने उत्तम सिरोपाव जड़ाऊ तलवार, कटार, सोनेकी जीनका घोड़ा और खासेका हाथी दिया और उसीदिन उसको साथ लेकर अजमेर को प्रस्थान किया।

शिकार।

३ असफंदार (फागुन बदी ८) को बादशाह शिकारसे लौटकर अजमेर में आया। १७ बहमन माघ सुदी ८ को गया था। १६ दिन में एकसिंहनी तीन बच्चों सहित और तेरह नीलगायका शिकार हुआ।

खुर्रमका सम्मान।

१० (फागुन सुदी १) शनिवारको खुर्रमके डेरे देवरानीगांव में हुए जो अजमेरके पास है। बादशाह ने हुक्म दिया कि सब अमीर अगवानीको जावें और यथायोग्य शाहजादेको भेट दें।

खुर्रमका दरबारमें आना।

११ (फागुन सुदी २ रविवार) दूसरे दिन खुर्रमने बड़े दबदबे से सब सेनाओं के साथ खासोआम दौलतखाने में प्रवेश किया। दो पहर पर दो घड़ी दिन आये उसके मुजरा करनेका मुहूर्त था। उसने बादशाहकी सेवामें उपस्थित होकर बार बार सिजदे किये। १०००, और १००० मोहरें नजर तथा इतनेही रुपये और मोहरें न्योछावर की।

बादशाहने उसको पास बुलाकर छातीसे लगाया। उसका सिर और मुंह चूमा। उसने प्रार्थना की कि हुक्म हो तो कर्ण मुजरा करनेको आवे। बादशाहने फरमाया कि हां उसको लावें। बखशियोंने नियमानुसार लाकर उसको खड़ा किया। उसने मुजरा

१८५
संवत् १६७१।

करके मिर कसाया। खुरमको पासे हुक्म हुआ कि उसबो दहने हाथकी श्रेणी में सवके ऊपर खड़ा करें।

फिर बादशाहने खुर्रमसे फरमाया कि जाकर अपनी माताओंसे मिलो। खिलअत खासा जो चार जड़ाऊ कुब्द का था, जरोको बनी हुई कवा और एक मोतियों की माला उसको इनायत हुई। खिलअतका मुजरा करनेके पीछे खासेका घोड़ा जड़ाऊ जीनका, और खामका हाथी उसको दिया। कर्णको भी उत्तम खिलात और जड़ाजतलवार मिली।

जो अमौर साथ गये थे उनपर भी यथायोग्य पा हुई।

कर्ण पर छपा।

बादशाह लिखता है कि कर्णका मन लगाना जरूर था वह पशु प्रति जा की सभा नहीं देखी थी और पहाड़ों में रहा आया था इसलिये मैं नित्य नई कृषा उसके जपर करता था। मुजरा करने के दूसरे दिन जड़ाऊ कटार और तीसरे दिन जड़ाऊ जोनका खासा इराकी घोड़ा उसको दिया। इसी दिन वह जनानी ड्योढ़ी पर गया तो जूरजहां बेगमको ओरसे भी उत्तम सिरोपाव जड़ाऊ तल- वार घोड़ा और हाथो उसे मिले। फिर मैंने बहुमूल्य मोतियोंको माला दी। दूसरे दिन खासेका हाथो तलापर सहित दिया । मैं चाहता था कि उसको अनेक प्रकारके पदार्थ दिये जावें। इस लिये तीन वाज तीन जुरै एक शाही तलवार इक्कीस बखतर एक शाही कवच एक अंगूठी लालको और एक पन्ने की उसे दी । महीने के अन्तमें मैंने सब भांतिके कपड़े कालीन नमद तकिये सब जाति को सुगन्ध सोनेके बर्तन २ गुजरातो बहल मंगाये। इन सब पदार्थों को अहदी लोग सौ थालों में सिरों और कन्धों पर उठाकर दीवान- खाने खासोआममें लाये और मैंने सब कर्णको बख्श दिये।"

बादशाहका दान।

बादशाहने यह नियम बांधा था कि जो लोग कुछ मांगनेको

दरबारमें आते थे.उनको दोपहर बाल ब्यतीत होने पर बादशाहको

१९६
जहांगीरनामा।

मेवामें लेजाते थे। इस वर्ष ऐसे लोगोंको बादशाहने नीचे लिखे अनुसार दान दिये थे।

नकद ५५०००) खेत २६ हल . जमीन १८०००० बौधे धान ११००० गोन। मोती ७३२ नग ३६०.००के कान छिदानेवालोंको।

पोता।

इन्ही दिनों में बधाई आई कि ११ असफन्दार (फागुन सुदी २) रविवारको बुरहानपुरमें शाह मुरादको बेटोसे परवेजको ईश्वरने वेटा दिया है। बादशाहने उसका नाम सुलतान दूरन्देश रखा।

१ फरवरदौन २० सफर (चैत्र बंदी ७) को ५५ घड़ी दिन चढ़े सूर्य मौन राशिसे मेख में आया। बादशाह तीन घड़ी रात गये नौरोजको सभामें सिंहासन पर बैठा। सब लोगोंने मुजरा किया। एतमाद्दौलाके पांच हजारौं जांत और दो हजार सवारोंके मनसब पर हजारो जात और एक हजार सवारं बढ़े। कुंवर कर्ण, जहां- गौर कुलोखां और राजा बरसिंह देवको शाही घोड़े मिले।

आसिफखांको भेट रत्नों और रत्नजड़ित सोनेके पदाथोंकी थी। दूसरे दिन बादशाहने उसमें पंचासौ हजारको चौ0 पसन्द करके ले ली। इसी दिन जड़ाऊ तलवार परतले. सहित कर्णको दी।

माडौं (मंडू)।

‘बादशाहका विचार दक्षिण जानेका था इसलिये अबदुहोम मामूरीको हुका हुआ कि मांडोंमें जाकर नया राजभवन' बनावें और अगले बादशाहोंके स्थानोंका भी जीर्णोद्धार करें।

तीसरे दिन राजा बरसिंह देवको भेट हुई। बादशाहने उसमेंमे एक लाल कई मोती और एक हाथी लेलिया ।

चौथे दिन सुरतिजाखांका मनसव पांच सदी जात और दो

सौ सवारोंक बढ़ानेसे दो हजारो जात और अढ़ाई सौ सवारोंका

१९७
संवत् १६७१ ।

होगया। पांचवें दिन एतमादुद्दौलाको नकारा और झण्डा मिला साथही नकारा बजानेकी आज्ञा होगई।

असिफखांका मनसब बढ़कर चार हजारी जात और दो हजार सवारोंका होगया ।

राजा वरसिंहदेवके सात सौ सवार बढ़े और घर जानेकी छुट्टी नियत समय पर उपस्थित होजानेके इकरार पर मिलो।

उसी दिन इब्राहीमखांकी भेट हुई।

किशनचन्दको जो नगरकोटके राजोंकी सन्तानमें था राजाकी पदवी दी गई।

छठे दिन गुरुवारको एतमादुद्दौलाकी भेट नूरचशमेमें हुई । बादशाहने एक लाख रुपयेके जवाहिर और जड़ाऊ पदार्थ लेकर शेष उसके वास्ते छोड़ दिये। इस दिन बड़ा उत्सव हुआ था।

सातवें दिन किशनसिंहका मनसब हजारी जात बढ़कर तीन हजारी जात और डेढ़ हजार सवारका होगया। इसी दिन नूर चश्मेकी तलहटीमें एक सिंह शिकार हुआ।

आठवें दिन (चैत्र बदी १४) को बादशाहने कर्णको पांचहजारी जात और पांच हजार सवारोंका मनसब देकर हीरों और मोतियों की एक छोटी माला दी जिसमें मोतियोंकी सुमरनी लगी थी।

राजा श्यामसिंहका मनसब पांच सदी जातके बढ़नेसे अढ़ाई हजारी जात और चौदहसौ सवारोंका होगया।

सूर्यग्रहण ।

दसवें दिन (चैत्र बदी ३०) रविवारको १२ घड़ी दिन बीतने पर पश्चिमसे सूर्य ग्रहण लगा। पांच भागमेंसे चार भागका ग्रास हुआ। आठघड़ीमें मोक्ष हुआ। बादशाहने नाना प्रकारके दान दिये।

इसी दिन राजा सूरजसिंहकी भेट हुई। उसमेंसे जो माल बादशाहने लिया वह तेतालिस हजार रुपयेका था।

चौदह हजार रुपयेकी भेट कन्धारके हाकिम बहादुरखांकी भी पहुंची। १४ सफर (चैत्र सुदी १) चन्द्रवार संवत् १९७२ को आधीरात गये धन लग्न में खुर्रमके घर में आसिफखांको बेटोसे पुन जन्मा । बादशाहने उसका नाम दाराशिकोह रखा।

इसी दिन एतबारखांकी भेंटमेंसे चालीस हजार रुपयेका माल लिया गया।

ग्यारहवें दिन सुरतिजाखांको भेटसे सात लाल एक मोतियोंकी माला और २७० मोती एक लाख ४५ हजार रुपयेक खोशात हुए।

बारहवें दिन मिरजा राजा माऊसिंह और रावतशंकर (राना सगर) को भेट हुई।

तेरहवें दिन खाजा अबुलहसनने बत्तीस सौ रुपयेके रत्न भेट किये।

चौदहवें दिन अबुल्लहसनका मनसब चार हजारी जात और बारह सौ सवारोंका होगया।

ईरानका दूत।

इसी दिन ईरानका वकौल मुस्तफा बेग आया। उसको शाहने गुर्जिस्तान फतह करके भेजा था। कई घोड़े जंट और कुछ हलब देशके कपड़े जो रूमसे शाहके वास्ते आये थे और नौ बड़े फरंगी कुत्ते फाड़नेवाले (जो मंगाये गये थे) उसके हाथ पहुंचे

कांगड़े पर सेना।

इसीदिन (चैत्र सुदी ५ शुक्रवार)को मुरतिजाखां किले कांगड़ेको फतह करने के लिये. बिदा हुआ। उक्त किला संसारके सुदृढ़ दुर्गा मेंसे या और मुसलमानी राज्य होनेके समयसे अबतक किसी बाद- शाहने उसको नहीं जीता था। एक बार अकबर बादशाहके हुकम से पन्जाबको सेजाने उसको घेरा भी था परन्तु फतह न हुआ।

मुरतिजाखांको जाते समय हाथो तलापर समेत मिला और

  • यह वही सगर है जिसको पहले रानाको पदवी मिली पर

रानाले सन्धि होजाने पर यह रावतही रह गया। । राजा बासूका वेटा सूरजमल भी जिसका देश इस किलेसे मिला हुआ था वहां भेजा गया। उसके मनसबमें पांच सदी जात और पांचसौ सवार बढ़ाये गये।

राय सुरजसिंहने अपनी जगह और जागीर से आकर सौ मोहरें भेट कींं।

सतरहवें दिन मिरजा स्तमने अपनी भेट दिखाई उसमेंसे पन्द्रह हजार रुपयेका और एतकादखांकी भेटमेंसे अठारह हजार रुपयेका माल बादशाहने लिया।

अठारवें दिन पन्द्रह हजार रुपयेका माल जहांगीरकुलीखांकी भेटमेंसे पमन्द हुआ।

बीसवें दिन चैत्र सुदी ११ गुरुवारको दोपहर साढ़े चार बड़ी दिन बीतने पर मेख संक्रान्ति लगौ । बादशाहने दरबार किया । जब पहर भर दिन रहा तो नूरचशमको चला गया। महाबत खांकी भेट वहां हुई जो बड़ी कोमती थी। बादशाहने एक लाख अड़तालिस हजार रूपयेका माल उसमें लेलिया एक लाख रुपयेका तो एक जड़ाऊ खपवाही था जिसे उसकी प्रार्थनासे सरकारी सुनारोंने बनाया था।

ईरानके दूत मुस्तफा बेगको दस हजार रुपये और बीस हजार दरब दिये गये।

२१ (चैत्र सुदी १२) को अबदुलगफूरके हाथ दक्षिणके पन्द्रह अमीरोंको सिरोपाव भेजे गये।'

राजा विक्रमाजीत अपनी नागौरको बिदा हुआ. परम नरम खासा उसको मिला।

२३ (चैत्र सुदी १४) को इब्राहीमखां बिहारका सूबेदार हुआ। जफरखांको दरबारमें अानेका हुक्म गया।


- जोधपुर

- चण्ड पञ्चांग, मेख संक्रान्ति चैत्र सुदीको ४६ घड़ी ३४

पल पर लिखी है।

२००
जहांगीरनामा।

खर्रमकी भेट।

बैशाख बदी ३ गुरुवारको पिछले दिनसे बादशाह खुर्रमके घर गया। उसने दूसरी भेट फिर दिखाई। पहले जब उसने मेवाड़ से आकर मुजरा किया था तो एक प्रसिद्ध माणिक्य जो रानाने मुजरा करते समय उसको भेटमें दिया था बादशाहको नजर किया उसका मूल्य जीहरियोंने साठ हजार बताया था परन्तु जैसी उनकीं तारीफ होती थी वैसा नहीं था। तौलमें ८ टंक था। यह लाल पहले राव मालदेवके पास था जो राठौड़के कौमका सरदार और हिन्दुस्थानके बड़े राजोंमेंसे था। उसमे उसके बेटे चन्द्रसेनको मिला। चन्द्रसेनने विपदमें राना उदयसिंहको बेच दिया। उससे राना प्रताप ने पाया। प्रतापसे गना अमरसिंहको मिला था। इसके वरमें इसमे बढकर कोई पदार्थ नहीं था। इसलिये इसने जब राना खुर्रमसे मेल किया तो इस माणिक्य को अपने सारे हाथियों समेत खेचार (भेट)में दिया था। बादशाहने उस पर यह लेख खदवाया “सुलतान खुर्रमको रानाने सेट किया।"

उसी दिन और पदार्थ भी खुर्रमको भेटमेंसे बादशाहने लिये थे। उनमें फरंगियोंका बनाया हुआ एक बहुत सुन्दर बिल्लौरी सन्दूकचा, कई पने, तीन अंगूठियां, चार इराकी घोड़े और दूसरी फुटकर चीजें अस्सी हजार रुपयेकी थीं।

इस दिन बादशाह उसके घर गया तो उसने बहुत बड़ी भेट चार पांच लाख रुपयेकी सजाई थी। जिसमेंसे बादशाहने एक लाख रुपयेके पदार्थ उठा लिये।

कुंवर कर्ण ।

बादशाह लिखता है-"कुंवर कर्णके बिदा होनेका मुहूर्त समीप आगया था और मैं चाहता था कि उसको अपने बन्दूक लगानेसे भी कुछ परिचित करू। इतनेहीमें शिकारी लोग एक सिंहजीकी खबर लाये। मेरा यह नियम है कि शेरके सिवा औरको नहीं


यह शब्द योंही लिखा है।

२०१
संवत्१६७२।

मारता हूं तोभी इस विचारस कि कदाचित कुँवरके जाने तक सिंह न मिले, उसो सिंहजीके ऊपर गया। कर्ण भी साथ था। उससे कहा कि जिप्त जगह तू कई मैं उसी जगह उसके गोली मारू। उसने अांख पर मारनेको कहा। जहां वह सिंहनी घेरी हुई थी वहां पहुंचे तो पवन प्रचण्ड वेगसे चलने लगा और मेरी हथिनी भी सिंहनजीके भयसे एक जगह नहीं ठहरती थी। इन दोनों बड़ी बाबा के होते हुए भी मैंने उसकी आंखको ताककर बंदूक चलाई ।परमेश्वरने अपनी कृपासे मुझे उस राजकुमारके सामने लज्जित नहीं किया क्योंकि मैने उसकी आंखमें गोली मारकर गिरा दिया।

कर्णने इसी दिन खानेकी वंदूबा मांगी तो मैंने अपनी रूमी बंदूक उसको इनायत को।"

८ उर्दबहित (बैशाख सुदी १) को बादशाहका सौम तुलादान हुआ।

(बैशाख सुदी २) को खानआजम बादशाहके हुक्मसे आगरेसे (जो वह गवालियरसे छूटकर आगया था) दरबार में लाया गया। उमसे कई अपराध किये थे तोभी बादशाह ही उसको देखकर लजित हुआ। उसने अपनी शाल उसको ओढ़ादी और उसके सब अपराध क्षमा कर दिये।

कर्णको एक लाख दरब इनायत हुए।

इसी दिन राजा सूरजसिंहने रणरावत नामक एक बड़ा हाथी जो उसके नामो हाथियोंमेंसे था लाकर नजर किया। बादशाहने उसको बड़ा अनोखा देखकर अपने निजके हाथियोंमें रखवा लिया।

१२ (बैशाख सुदी ४) को राजा सूरजसिंहने फिर सात हाथी भेट किये। वह भी शाही हाथियोंमें शामिल किये गये।

बखतरखा चार महीने तक बादशाहकी सेवामें रहकर बिदा

हुआ। बादशाहने आदिलखांको कहनेके लिये उससे बहुत ही

२०२
जहांगीरनामा।

बातें मित्रताके लाभ और शत्रुताको हानिकी कहीं और इस समय भी उसको बहुत कुछ माल दिया। उसको बादशाह, शाहजादी और अमीरोंकी सरकारोंसे जिन्होंने आज्ञानुसार उसकी मनुहार की थीं सब मिलाकर एक लाख रुपया मिला था।

१४ (बैशाख सुदी ६) को खरपके मनसब और इनामका निरू- पण हुआ। उसका मनसब १२ हजारी जात, और छः हजार सवार का और परवेजका :१५ हजारी जात और आठ हजार सवारका था। बादशाहने खुर्गमका अनसब भी परवेजके बराबर कर दिया। उस पर भी एक सवाई इनामको बढ़ाई। पंछीगज नामक खासेका हाथी उसको दिया जो सामान सहित बारह हजार रुपयेका था।

१७ (बैशाख सुदी ८) को राजा खरंजसिंहका मनसब जो चार हजारो जात और तीन हजार सवारोका था एक हजारौ जातके बढ़नेप्से पांच हजारो होगया।

खानाजसका बेटा अबदुल्लह जो रणथम्भोरके किले में कैद था खानआजमको प्रार्थनासे बुलाया गया और पांवको वेडी. कटवाकर बापके घर भेजा गया।

२४ (जेठ बदी १२) को राजा सूरजसिंहने फिर एक हाथी फौज सिंगार नामक बादशाहके भेट किया। वह शाही हाथियों में बंध गया परन्तु अगले हाथोके समान न था। मूल्य बीस हजार कूता गया।

कजलवाशखां जिसकी नौकरी गुजरातमें थी सुबेदार की आज्ञा बिनाही वह दरबारमें आगया। बादशाहने अहदी को हुक्म दिया कि उसको पकड़कर फिर सूबेदारके पास पहुंचादे।

२८ (जेठ बदो ७) को बादशाहने एक लाख रुपये खानाजम को दिलाये और डासना तथा कासनाके परमने जिनकी जमा पांच हजारी मनसबके बराबर थी उसको जागीरमें लगा दिये।

३१ (जेठ बदौ ८) को बीस घोड़े परम नरम खासेको कबा

बारह हरन और दस ताजी कुत्ते बादशाहने कर्णको दिये।

२०३
संवत् १६७२।

१ खुरदाद (जेठ बदी १०) को ४०, जेठ बदी ११ को ४१ और १२ को २० कुल १०१ घोड़े तीन दिनमें कर्णको फिर मिले।

बादशाहने फौजसिँगार हाथोके बदले में दस हजार रुपयेको कीमतका एक शाही हाथी राजा सूरजसिंहको दिया।

(जेठ बदी १४) को १० चौरे १० कबा और १० कमरबन्द कर्णको इनायत हुए। जेठ सुदी १० को एक और हाथी उसको मिला।

करमसेनका मनसब दो सदी जात और पचास सवारोंको वृद्धि से एक हजारी जात और तीनसौ सवारीका होगया।

१२ (जेठ सुदी ६) को कलगी जो दो हजार रुपये की थी कर्ण को इनायत हुई।

१४ (जेठ सुदी ८) को बादशाहने सरवुलन्दरायको खिलअत देकर दक्षिणको बिदा किया।

गोयन्दास और किशनसिंहका मारा जाना।

बादशाह लिखता है-“१५ (जेठ सुदी ८) शुक्रवारको रातको एक अजीब बात बुई। मैं उस रात देवसंयोगसे पुहोकर में था। राजा सुरजसिंहका सगा भाई किशनसिंह राजाके वकील गोयन्दास पर · अपने जवान भतीजे. गोपालदासके मारे जानेसे बहुत नाराज था। गोपालदास मुहत पहले गोय- न्दासके हाथसे मारा गया था। इस झगड़ेको कथा बहुत लम्बी है। किशनसिंहको यह अरोता था कि गोणलदास राजाका भौ भतीजा लगता है इस लिये वह गोयन्दासको उसके बैरमें मार डालेगा। राजा गोयन्दासको कार्यकुशलता और योग्यतासे भतीजेका बदला लेनेमें टालटूल करता था । किशनसिंहने जब राजाकी ओर से आनाकानी देखो तो अपने दिल में यह ठानी कि मैंही भतीजेका बदला लूंगा और इस खूनको योही नहीं जाने दूंगा। यह बिचार बहुत दिनोंसे उसके दिलमें था निदान इस रानमें अपने भाइयों

सहायकों और नौकरोंको एकत्र करके कहा कि आज गोयन्दासको ..

२०४
जहांगीरनामा।

मारने चलें चाहे जो हो । उसका यह मनोरथ न था कि राजाको कुछ हानि पहुंचे। उधर राजा भी इस घटनासे अज्ञात था। किशन-सिंह बड़े तड़केही अपने भतीजे कर्ण और दूसरे साथियोंको लेकर चला जब राजाको हवेलीके दरवाजे पर पहुंचा तो अपने कई अनुचरोंको घोड़ोंसे उतारकर गोयन्दासके घर भेजा। जो राजाके घरके पास था। वह अाप बैसाही घोड़े पर चढ़ा हुआ ड्योढ़ीमें खड़ा रहा। वह प्यादे गोयन्दासके घर में घुसकर पहरेवालों पर तलवार चलाने लगे। गोयन्दास इस मारा मारीसे जाग उठा और तलवार लेकर.,घबनाया हुआ घरके एक कोनेसे बाहर निकला। प्यादे जब उन पहरेवालोंको मार चुके तो गोयन्दासको ढूंढ़ने लगे। सामने पाकर उसका काम पूरा कर दिया। किशनसिंह गोयन्दासके मारे जानेका निश्चय होनेके पहले ही घबराहटमें घोड़ेसे उतरकर हवेलीके भीतर गया। उसके साथियोंने बहुतेरा कहा कि इस समय पैदल होना ठीक नहीं है परन्तु उसने कुछ नहीं सुना। यदि कुछ देर ठहरता और शत्रुके मारे जाने के समाचार पहुंच जाते तो सन्भव था कि वैसाही घोड़े पर सवार अपना काम करके कुशलपूर्वक लौट जाता परन्तु भाग्यमें कुछ औरही लिखा था। उसके पैदल होकर अन्दर जातेही राजा जो अपने महल में था बाहरवालोंके कोलाहलसे जांग गया और नंगी तलवार हाथ में लेकर अपने घरके दरवाजे पर आया। लोग हर तरफसे सावधान होकर उन पैदलोंके ऊपर दौड़े। पैदल थोडेसे थे और राजाके आदमियोंको कुछ गिनती न थी। किशनसिंहके एक एक आदमी के सम्मुख दस दस आगये। जब कर्ण और किशनसिंह राजाके घर पहुंचे तो उसके आदमियोंने उनको घेरकर मार डाला। किशनसिंहके ७ और कर्णसिंहले घाव लगे थे । इस बखेड़ेमें ६६ आदमी दोनों पक्षके मारे गये। राजाको तीस और किशनसिंह के छत्तीस मरे। जब दिन निकला तो इस झगड़े


पुष्कर।

२०५
संवत् १६७२।

का पता लगा। राजाने अपने भाई अतीजे और प्रिय पारिषदों को हारा देखा। बाकी लोग बिखरकर अपनी अपनी जगह पर चले गये थे।

यह खबर पहोकरमें मेरे पास पहुंची तो मैंने हुदा दिया कि जो लोग मारे गये हैं उनको उनकी रीतिके अनुसार जला देवं और इस झगड़ेका पूरा पूरा निर्णय करें। पीछे प्रगट हुआ कि बात वही थी जो लिखी गई।

राय चूरजसिंह।

२०* (जेठ सदी १४) को राय सूरजसिंह दक्षिणको बिदा हुआ। बादशाहने उसको कानोंके वास्ते एक जोड़ी मोतियोंको और एक परम नरम खासा इनायत किया। खानजहांके वास्ते भी एक जोड़ी सोतियोंको उसके हाथ भेजी।

कर्णको बिदाई।

२५ (आषाढ़ बदी ४।५) को कर्ण अपनी जागीरको विदा हुआ। बादशाहने शाही हाथी घोड़े पचास हजार रुपयेको मोतियोंको कण्ठो और दो हजार रुपयेको जड़ाऊ कटार उसको विदाई में दी। सुजरा करनेके दिन बिदा होने तक जो अछ नकद माल जवाहिर और जड़ाऊ पदार्थ बादशाहने उसको दिवे घे वह सब इस प्रकार थे

रुपये २ लाख, हाथो ५ और घोड़े ११०।

खुर्रमने जो कुछ दिया था वह इससे अलग था।

बादशाहने मुबारकखां सजावलको. हाथी घोड़ा देकर उसको साथ किया और कुछ बातें राणाको भी कहला भेजी।

राजा सूरजसिंहको छुट्टी।

राजा सूरजसिंहने भी घरजानेके वास्ते दो महीनेकी छुट्टी ली। शाह ईरानका अपने बेटेको मारना।

बादशाहको यह खबर सुनकर बड़ा विस्मय हुआ कि ईरानके


  • असल पोथो में लेखकके दोषसे ८ लिखी है।

[१८ ]

२०६
जहांगीरमामा।

शाहने अपने बड़े बेटे सफो मिरजाको मरवा डाला है। वह मुहर्रम सन् १०२४ (पौष सुदी १२ संवत् १६७१) को हम्मामसे निकलते समय बहबूद नामक एक दासके हायसे मारा गया। बाद- शाहने ईरानके आनेवालोंसे इसका कारण बहुत पूछा परन्तु किसी ने कोई सन्तोषदायक बात नहीं कही।

३ तौर (आषाढ़ सुदी) को पानी छिड़कनेका त्यौहार हुआ। बादशाहो सेवकोंने एक दूसरे पर गुलाबजल डालकर खुशी मनाई।

१८ (भाषाढ़ सुदी १५) को खानखानां और शाह नवाजखांकी भेट बादशाहके पास पहुंची । खानखानाको भेटमें इतने पदार्थ थे-

लाल ३, मोती १०३, याकूत १०२, जड़ाऊ कटार २, कलगी जड़ाज याकूत और मोतियोंको १, जड़ाऊ सुराही १, जड़ाऊ तल- वार १, तरकश मखमलका मढ़ा हुआ १, कञ्चन जड़ाऊ १, अंगूठी होरेको ।

यह सब एक लाख रुपयेके हुए। इनके सिवा यह चीज भी थीं-

'दक्षिणी कपड़े सादे और जरीके, कर्नाटकके कपड़े सादे और जरीके, ५ हाथी और एक घोड़ा जिसकी गरदनके बाल जमीन तक पहुंचते थे।

शाह नवाजखांको भेटमें ५ हाथी और ३०० थान नाना प्रकार के कपड़ोंके थे।

राजा रोजअफजूं।

राजा संग्राम बादशाहो अमौरोंसे लड़कर मारा गया था। उसका बेटा बचपनसे बादशाहके पास रहता था। बादशाहने उसको मुसलमान करके राजा रोजअफजंको पदवी दी। उसके बायका राज्य भी उसको देदिया और एक हाथी इनायत करके घर उ.निकी छुट्टी दी।

जगतसिंहका आना।

२४ (सावन बदी ६) को कुंवर कर्ण के बेटे जगतसिंहने जो १२

२०७
संवत् १६७२।

वर्षका या आकर बादशाहसे मुजरा किया। अपने पिता और दादा राणा अमरसिंहकी अर्जी पेश की। बादशाह लिखता है कि कुलीनता और बड़े घर में जन्मनेके चिन्ह उसके चेहरेसे पाये जाते हैं। मैंने सिरोपाव और मधुर वाक्योंसे उसका चित्त प्रसन्न किया।

राजा नशामल।

५ अमरदाद (सावन सुदी ३) को राजा नथमलके मनसब पर जो डेढ़ हजारो जात और ग्यारह सौ सवारोंका था पांच सदी जात और एक सौ सवार बढ़ाये गये।

केशव मारू।

७ (सावन सदौ ५) को कोशव मारूने आकर मुजरा किया। ४ हाथी नजर किये। इसको सरकार उड़ीसमें जागीर दीगई थी परन्तु वहांके सूबेदारने शिकायत लिखी थी इसलिये वादशाहने उसे बुला लिया।

खानजहां लोदी।

८ (सावन सुदी ६) शुक्रवार को खानजहां लोदीने दक्षिसे उपस्थित होकर एवा हजार मोहर एक हजार रुपये नजर और चार लाल, एक पजा जड़ाऊ फूल कटारा और २० मोती सेट किये। यह सब चीजें पचास हजार रुपयेको थीं।

सावन मुदी ८ रविवारको रातको बादशाह खाजाजीके उर्समें गया। आधीरात तक रहा। छः हजार रुपये कुछ कुरते मोती मूंगे और कहरूबाईको ७० मालायें अपने हाथसे मुजावरीको दे पाया।


  • असल.पोधोके पृष्ठ १४५ में मंगल ८ तिथिको गलत लिखा है

शुक्र चाहिये। क्योंकि धागे उर्स रविवार (६ रज्जव) को लिखा है वह सही है।

श्री एन प्रकारको मणि।

२०८
जहांगीरनामा।

महासिंहको राजाको पदवी।

राजा मानसिंहके पोते महासिंहको बादशाहने राजाका खिताब नकारा और भाण्डा दिया।

केशव मारू।

२० (भादों बदी ४) को केशवमारूके अनसन पर जो दोहजारों जात और एका हजार सवारका या दो सौ सवार बढ़े और खिल- अत भी मिला।

मिरजा राजा भावसिंह।

२२ (भादों बदौ ६) को मिरजा राजा भावसिंइने अपने घर आमेर जानेको छुट्टी ली। बादशाहने पहुपमा काशमौरीका शाही जामा इनायत किया।

गिरधर।

१ शहरेवर (भादों वदी ३०) को दक्षिण जानेवाले अमीरों के मनसब बादशाहने बढ़ाये। उनमें राय साल दरबारौके बेटे गिरि- घरका मनसब आठ सदो जात और सवारोंका होगया।

इतनाही मनसब अलफखां क्यामखानीका भी हुआ। ।

जूरजहानी मोहर।

८ (भादों सुदी ७) को जूरजहानी :मोहर जो ६४०० रुपये को थी बादशाहने ईरानके दूत सुस्तफा बेगको दी। शबरातकी दीपमालिका।

आश्विन बदौ १ को रातको शजरातका त्योहार था। बाद- शाहक हुवासे आनासागरके किनारों और उसके आसपासके पहाड़ों पर दीपमालिका की गई। बादशाह भी देखनेको गया था और बड़ी रात तक वेगों सहित भानासागरके तट पर रहा। चिरागों का प्रतिबिम्ब पानीमें पड़कर अनोखो शोभा दिखाता था।

आदिलखांकी भेंट।

१७ (आखिन बदौ २) को मिरजा जमालुद्दीन -----


का एक प्रकारका कपड़ा।

२०८
संवत् १६७२।

वकील होकर दोजापुरको गया था वहांसे आकर तीन जहाज अंगूठियां नजर की। एक बहुत बढ़िया चौक, यमन देशको खानका जड़ा था। आदिलखांने भी सैयद कबीर नामक एक मनुथको अपनी तर मासे भेंट सहित भेजा था।

२४ (आश्विन बदौ ८) को आदिलखाको भेट बादशाहके दृष्टि- गत हुई। चांदी सोनेको ओंजको हाथी.. इराकी छोड़े, जवा- जिर, जड़ाज पदार्थ और अनेक प्रशारके कपड़े थे जो उस देश में होते है।

इशो दिन बादशाहने सौरपक्षकी वर्षगांठका तुलादान किया।

ईरानके दूतको बिदाई।

१६ (आश्विन बदौ ११) को ईरानका दूत मुस्तफावग बिदा हुश्रा। बादशाह उसको बीस हजार रुपये और सिरोपाव देकर शाइ ईरानके प्रेमपत्रका उत्तर प्रौतिपूर्वक लिख दिया।

दक्षिण पर सेना ।

५ महर (घाखिन सुदी ६) को महाबतखां और १० (आश्विन सुदी ११) को खानजहां दक्षिणको विदा हुआ। बादशाहने दोनो को हाथो घोड़े हथियार और सिरोपाव दिये। महाबतखांके सत- रहसौ अवारोंको दुस्पा और तिअत्याको तनखाह देनेको आज्ञादी।

इसबार इतनी खेना दक्षिणको और भेजी गई-

मनसबदार ३३० अहदी ३००० उवेमाक* ७०० सवार दिलाजाक पठान ३०० सवार तोपखान जंगीहाथी और ३० लाख रुपये।

सरबुलन्दराय।

स्वरवुलन्दराय का अनसब पांच सदी जात और २६० सवारों के बढ़नेसे दो हजारो जात और पन्द्रहसौ सवागेका होग-

राजा किशनदाखक मनसबमें पांच सदी जातको


  • एक जातिके तुर्क।

राव रतन हाडा।

२१०
जहांगीरनामा।

राजा सूरजसिंह ।

१८ (कार्तिक बदौ ६) को राजा सूरजसिंहने जो अपने पुत्र गजसिंह सहित घरको गया था वापस आकर मुजरा किया। सो मोहर और एक हजार रुपये नजर किये।


आदिलखखांके वकील सैयद कबीरको एक नूरजहानी मोहर पांचसौ तोले सोनेको इनायत हुई।

२३ (कार्तिक बदी ) को नव्वे हाथी कासिमखांके भेजे हुए पहुंचे जो उसने कोच और मगके देशोंको जीतकर तथा उड़ौसेके जमींदारोंसे लेकर भेजे थे।

बीजापुर।

२६ (कार्तिक बदौ १२) को सैयद कबीर हाथी घोड़ा और सिरोपाव पाकर बीजापुरको बिदा हुआ यह आदिलखांका भेजा हुआ दक्षिणके दुनियादारों के अपराध क्षमा कराने और किले अहमदनगर और दूसरे बादशाही मुल्कोंको छुड़ा देनेको प्रतिज्ञा करनेको आया था जो बादशाही अधिकारसे निकल गये थे।

रामदास कछवाहा ।

उसी दिन राजा राजसिंह कछवाहा (जो दक्षिणमें मारा गया था) के बेटे रामदासको बादशाहने एक हजारी जात और चार हजार सवारका मनसब दिया।

राजा मान ।

४ आबान (कार्तिक सुदी ५) को राजा मान .जो गवालियरके किले में कैद था मुरतिजाखांको जमानत पर छोड़ा गया। वह अपने मनसब पर बहाल होकर मुरतिजाखांके पास कांगड़ेको लड़ाई में भेजा गया।

राजा सूरजसिंह।

१६ (अगहन बदौ ३) को राजा सूरजसिंह भी दक्षिणकी मुहिम पर भेजा गया। उसका मनसब तीनसौ सवारके बढ़नेसे पांच


  • दक्षिणके बादशाहोंको दिल्लीके बादशाह'दुनियादार कहते थे ।
    २११
    संवत् १६७२।

हजारो जात और तेतीससौ सवारोंका होगया। घोड़ा और सिरो- पाव भी, मिला।

राजा सारंगदेव।।

अगहन सुदी ७ को दाराबखांको जड़ाज खञ्जर इनायत हुआ और राजा सारंगदेवके हाथ दक्षिणके अमीरोंको खिलअत भेजेगये।

काशमीर ।

बादशाहने सफदरखां की ऐसी कुछ बातें सुनी थीं कि जिससे उसको कशमीरको सूवेदारीसे हटाकर अहमदवेगखांको उसको जगह पर भेजा।

बङ्गाल।

बसालेको सूबेदार कासिमखां और वहांको अमीरोंके वास्ते एह- तमामखांके हाथ जड़ावलय भेजी गई।

सूत्ररका शिकार।

७ दे (पौष सुदीट) को पोहकरसे अजमेरको आते हुए बादशाह ने रास्ते में बयालीस सूअर मारे।

खुर्रमको मद्य पिलाला।

२५ (माघ बदौ ११) शुक्रवारको खुर्रमका तुलादान हुआ। बादशाह लिखता है कि २४ वर्षका हो गया है कई विवाह होगये हैं बच्चे भी जन्म गये हैं तोभी अबतक इसने कभी मद्यपान नहीं किया था। इस तुलादानको सभामें मैंने इससे कहा कि बाबा तू वेटीका बाप होगया है बादशाह और शाहजादे शराब पीते रहे हैं, 'आज तेरे तुलादानका उत्सव है मैं तुझे शराब पिलाता हूं और आज्ञा देता हूं कि उत्सवके दिन नौरोजके उत्सवों और बड़े बड़े त्योहारों में तू शराब पिया कर। परन्तु कम पौनेका ध्यान रखना । बुद्धिमानीने इतनी पौनेकी आज्ञा नहीं दी है कि जो बुद्धिको भ्रष्ट करदे। इसके पौनेसे गुण और लाभको इच्छा रखना चाहिये। बूअलीसोनान जो एक बड़ा भारी हकीम होगया है.कहाँ है.


जाड़े में पहननेकी पोशाकें।...

२१२
जहांगीरनामा।

"मद्य मतवालेका तो शत्न है और सावधानका मित्र है। थोड़ा तो औषधि है और ज्यादा सांपका विष । बहुत पीने में थोड़ी हानि नहीं है और थोड़ीमें बहुत लाभ है।"

निदान बहुत हठसे उसको शराब दीगई।

जहांगीर के शराबीपनकी कहानी।

इतना लिखने के पक्षात् बादशाह अपने शराबी होने की कहानी इम प्रकार लिखता है-

"मैंने १५ वर्षको अवस्था होजाने तक शराब नहीं पी थी परन्तु बचपनमें दो तीन बार मेरो मा और दाइयोंने दूसरे बच्चोंको देनेके बहाने मेरे पिताले अर्क मंगवाकर उसमेंसे एक. तोला गुलाबजलमें मिलाकर और खांसीको दवा कहकर मुझे पिलाया था। जब मेरे बापका उर्दू यूलपाजई पठानोंका दंगा दबानेके लिये नौलाब नदीके तट पर अटकके किले में था। तब एक दिन मैं शिकारको गया। श्रम बहुत करना पड़ा था इससे बड़ी थकावट आगई थी। उस्ताद शाहकुली नामक तोपचौने जो मेरे चचा मिरजा हकीसके तोपचियों का नायक था मुझसे कहा कि आप एक प्याला शराव पोलें यह थकावट जाती रहेगी।

वह जवानीके दिन थे और चित्त में ऐसी बातोंका चाव था। मैंने महसूद आबदारसे कहा कि हकीमअलौके घर जाकर नशेका शरबत लेगा।

इकौमने पोले रङ्गको डेढ़ प्याला मोठी शराब छोटे शीशेमें भेजी। मैंने उसको पी लिया। उसका नशा सुहावना लगा। फिर तो मैं शराब पीने लगा। यहांतक कि अंगूरी शराबंका नशा नहीं आने लगा तब अर्क पौना शुरू किया। नौ वर्षमें यह भी. इतना बढ़ गया कि बीस प्याले तक दुअआतिशा अर्कके पौनाता था.! चौदह प्याले दिनमें और ६ रात्रिमें पीता था जिनमें हिन्दुस्थानको तौलसे ६ सेर और ईरानको तौलसे डेढ़.मन शराब समाती थी। मैं उन

दिनों में एका मुर्गका मांस रोटी और. मूलौके साथ खालेता था।

२१३
संवत् १६७२।

किसीको मजा करनेकी सामर्थ्य नहीं थी। मेरी यह दशां होगई थौ कि जब नशा उतरता तो वदन कांपने लगता। हाथमें प्याला नहीं ठहर सकता था। दूसरे लोग मुझको अपने हाथसे पिलाते थे। निटान मैंने पिताके मन्त्री हकीम अबुन्न फतड़के भाई हकीम हमामको बुलाकर अपना हाल कहा। उसने अत्यन्त करुणा और भक्तिभावसे स्पष्ट कह दिया कि साहिवालम ! इस प्रकार जो आपको शगव पोते हुए ६ महीने और निकले तो फिर यह रोग अन्साध्य होजावेगा। यह बात उसने हितकी कही और जान प्यारी होती है इस वास्ते मैंने मान ली। उस दिनसे मैं अर्क घटाने और फलोनिया खाने लगा। जितनी शराब घटाता था उतनोंहों फलोनिया बढ़ती जाती थी। तब मैंने कहा कि अर्कको अंगूरी शराबमें मिला दिया करें। दो आग तो शराब हो और एक आग अक रहे। मैं इसोको पीता था और कुछ कुछ घटाता भी जाता था। सात वर्षमें ६ प्याले पर पारहा। एक प्याले में १८॥ मिसकाल' शराव होती है अब पन्द्रह वर्ष होगये इसौ ढंगसे शराब पौता हूं न कम होती है न अधिक। रातको पौता हूं परन्तु गुरुवारके दिन जो मेरे राज्याभिषेकका दिन है पिछले पहरसे पो लेता हूं, रातको नहीं पोता। क्योंकि यह रात जो सप्ताह भरको रातों में पवित्र है और एक पवित्र दिन (शुक्र) को लानेवाली है, मैं नहीं चाहता कि मतवालेपनों व्यतीत हो और सुख सम्पत्ति. देने वाले प्रभुको भजन और स्मरण में चूक पड़ जाये।

मैं गुरुवार और रविवारको मांस भी नहीं खाता। गुरुवार तो


  • जैसे बादशाहोंको जहांपनाह कहते ॥ वैसेही शाहजादीको

साहिब आलम कहते थे।

फलोनिया भंग और अफीमसे बनी हुई माजून।

एक मिसकाल ४॥ माशेका होता है १८ मिसकालके ६ तोले

८ माशे होते है ६ ग्यालेके ४०॥ तोले हुए।

२१४
जहांगीरनामा।

मेरे राज्यतिलकका और रविवार मेरे पिताका जन्मदिन है। यह : उनको बहुत प्रिय था वह इसको पर्वके समान मानते थे।

कुछ दिनों पीछे मैंने फलोनियाको अफीमसे बदल दिया। अब मेरो श्रायु सौर पक्षसे ४६ वर्ष ४ सहौनकी और सौम पक्षसे ४७ वर्ष ८ मासको होगई है। आठ रत्ती अफीम पांच घड़ी दिन चढ़े और छः रत्तौ एक पहर रात गये खाता है।



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बारहवां वर्ष।

सन् १०२५।

माघ सुदी ३ सं० १६७२ ता. ११ जनवरी १६९६ से पौष सुदौ १ सं० १६७३ ता. २८ दिसम्बर मम् १६१६ तक।

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ईरानको सौगात।

८ बहमन (माघ सुदी ११) को ईरानको बादशाहको भेजी हुई.. एक अकोकको माला और कारवन्दीका की एक रकेची जो बहुत सुन्दर और उत्तम यो खाजा अबदुलकरौम व्यापारीके हाथ वाद- शाहको पास पहुंची।

भंवर जगतसिंहको विदा ।

१. बहमन (फागुन सुदी ११) को कुंवर बर्णका बेटा जगत सिंह अपने घरको बिदा हुआ। बादशाहने बीस हजार रुपये एक घोड़ा एक हाथी खिलभत और शाही दुशाला उसको दिया और उसके रक्षक हरदास झालाको भी पांच हजार रुपये घोड़ा और सिरोपाव इनायत किया। उसके हाथ सोनको छः परोपा रानाके वास्ते भेजी।

राजा सूरजमल ।

२० (चैत बदौ ६) को राजा वासूदा वेटा सूरजमल बादशाह की सेवा में उपस्थित हुआ। इसका राज्य कांगड़ेके पड़ोसमें था इस लिये सुरतिजाखांके साथ कांगड़ा फतह करनेको भेजा गया था परन्तु मुरतिजाखांको इससे कुछ सन्देह होगया था और उसने इसके वहां रहने में हानि देखकर बादशाहको कई अजियां भेजी धीं इससे बादशाहने इसे बुलाया था।


एक प्रकारका जड़ावका काम ।

पा इस वस्तुका कुछ व्योरा नहीं मिला।

२१६
जहांगीरनामा।

अहदाद पठानको हार।

अकबर बादशाहके समयसे अबतक ग्रहदादका उपद्रव काबुल के पहाड़ों में चला जाता था । दस वर्षसे लगातार फौजें उसके ऊपर जारही थीं जिनसे वह लड़ लड़कर अन्तको जरखी नामक एक पहाड़ौमें जा बैठा था। उसको भी खानदौरांने घेर रखा था। अहदाद रातको अनाज और चारा लानेके वास्ते निकला करता था। कभी कभी उनके साथी मवेशी चरांनेको पहाड़ीसे उतरते थे। एक रात जरखौको तराईमें अहहादसे और खानदौरांसे मुठभेड़ होगई। अहदाद दोपहर तक लड़कर भागा। परन्तु जरखोम जानेका अवसर न पाकर कन्धारको ओर निकल गया। बादशाही फौजने जरखोमें प्रवेश करके उसके घर जला दिये तीनसौ पठान मारे गये और एकासौ कैद हुए।

अम्बरको हार।

बहुतसे बरगी जो दक्षिण में उपयुक्त और मजबूत लोग हैं अंबर से रूठकर बालापुरमें शाह नवाजखांके पास चले आये थे। शाह नवाजखांने आदमखां, याकूतखां, जादूराय बापूकाटिया आदि उनके सरदारोंकों हाथी घोड़े रुपये और सिरोपाव देकर शाही नौकरी में लगा लिया और फिर इनको साथ लेकर अंवरके ऊपर कूच किया । उधरसे दक्षिणी सरदार महलदार, दानिश, दिलावर, बिजली और फीरोज सेना लेकर आये। परन्तु लड़ाई में परास्त होकर अंगरके पास लौट गये। अंबरने बड़े अभिमान से लड़नेका उद्योग करके बादशाहो छावनी पर चढ़ाई को । कुतुबु- लसुल्क और आदिलखांको सेनाएं भी एक तरख तोपखाने सहित उसके साथ थीं। २५ बहमन (फागुन बदौ १२) रविवारको पिछले दिनसे अन्धेरे और उजालेके दो दलों में दंगल हुअा। पहले बाण -और गोले चले। फिर दाराबखांने जो. अगली सेनाका अफसर था राजा बरसिंहदेव रायचन्द अलोखां तातारी और जहांगीरकुलो आदि सरदारों के साथ तलवारें सूतकर शत्रुको अगली सेनापर भावा किया और उसको हराकर गोल अर्थात् बीचकी सेनाको जा दबाया। वहां दो घड़ी तक ऐसे वमासानका युद्ध हुआ कि देखने बाले दङ्ग होगये। लाशोंके ढेर लग गये अंबर सम्मुख ठहर न सका भागा। जो अन्धेरी रात उसके बचानेको बीच में न आजाती तो वह और उसके साथियोंमे से कोई न बचता। बादशाही सवार दोतीन कोसतक तो पीछे गये फिर घोड़ोंके थक जानेसे आगे न जा सके। शत्रुका पूरा तोपखाना तीनसौ ऊंटबानोंसे भरे हुए जंगी हाथी ताजी घोड़े और बहुतसे हथियार हाथ आये । बहुतसे सरदार पकड़े गये। जो कटकर या घायल होकर पड़े थे उनकी कुछ गिनती न थी। फिर बादशाही सेना करकी पर गई जहां शत्रुकी छावनी थी। परन्तु वहां किसीको न देखा क्योंकि सब लोग खबर पाकर भाग गये थे। सेना कई दिन करकीमें रही और शत्रुओंके घर जलाकर रोहनखंडकी घाटीसे उतर आई।

बादशाहने इस सेवाके बदले में अपने नौकरोंके मनसब बढ़ाये।

खोखरा और हीरेकी खान।

तीसरी बधाई बादशाहको यह पहुंची कि खोखरेकी विलायत और हीरेकी खान इब्राहीमखांके परिश्रमसे फतह हुई। बादशाह लिखता है -- “यह विलायत तथा खान बिहार और पटनेके अर्न्तगत है। वहां एक नदी बहती है। जब उसका पानी कम होता है तो उसमें खडडे और गढ़े निकल आते हैं उनमेंसे जिसके नीचे हीरे होते हैं उस पर बहुतसे झींगें उड़ा करते हैं। इस पहचानसे वह लोग जो इस कामको जानते हैं नदी तक उन गढ़ीके किनारों में पत्थर चुन देते हैं और फिर उनको कुदाल फावड़ोंसे दो डेढ़ गज गहरा खोदते हैं और वहां जो रेत और कंकर निकलते हैं उसमें ढूंढकर छोटे बड़े हीरे निकालते हैं। कभी कभी ऐसे हीरे भी निकलते हैं जिसका मूल्य एक लाख रुपये तक होता है।

यह भूमि और खान दुर्जनसाल नामक एक हिन्दूके अधिकार में थी। बिहारके हाकिम उसके ऊपर बहुत सेना भेजते थे और आय

[१८]

भी जाते थे परन्तु रास्ता विकट था जंगल बहुत · पड़ते थे। इस

लिये दो तौन होरोंके लेने पर सन्तोष करके चले आते थे। जब यह सूबा जाफरखांसे उतरकर इब्राहौसखांको मिला तो मैंने बिदा करते समय उससे कहा कि उस विलायत पर जाकर उसको उस अधम पुरुषसे छीन ले। इब्राहीमखां बिहार में पहुँचतही सेना सजकर उस जमीन्दारके ऊपर गया और उसने पूर्ववत् अपने आदमी भेजकर कई होरों और हाथियोंके देनेको प्रार्थना की । पर खानने खौकार न करके शीघ्रतासे उसके देशमें प्रवेश किया और उसको सेनाके तय्यार होनेसे पहलेही धावा किया। उसको समा- चार पहुँचते पंहुंचते उछ घाटीमें जा पहुंचा जहां उसका घर था। घाटीको घेरकर उसको खोजमें आदमों भेजे वह एक गुफामें छिपा हुआ मिला और अपनी सगी तथा सौतेली दो माता और एक भाईके साथ पकड़ा गया। जो होर उसके पास थे वह सब लेलिये गये। २३ हाथो हथिनी भी हाथ आये।

इस सेवाके बदले में इब्राहीमखांका मनसब बढ़कर चार हजारी जात और सवारोंका होगया और उसको फतहजंगकी पदवी मिली। जो लोग साथ थे उनको भी वद्धि हुई। अब वह विला- यत राज पारिषदोंके अधीन है। लोग उस नदी में काम करते हैं। जितने होर निकलते हैं दरगाह में आते हैं। इन्हीं दिनों में एक बड़ा होरा पचास हजार रुपयेका मिला था। जब कुछ और काम होगा तो आशा है कि अच्छे अच्छे हौर मेरे निजके रत्न भाण्डारमें आने लगेंगे।

ग्यारहवां नौरोज।

१ रबीउलअब्बल (चैत्र सुदी ३) रविवार संवत् १६७३ को सूर्य मौनसे मेख राशिमें पाया। दीवानखाने खासोामका आंगन बहुमूल्य डरों तम्बुओं और फरंगी .परदों तथा जरीके दिव्य बस्त्रोंसे सजाया गया था बादशाह वहीं राज्यसिंहासन पर बैठा। शाहजादों अमीरों मन्त्रियों और सब नौकरोंने झुककर सलाम किया और बधाई दी। हाफिज नादअली कलावत पुराने सेवकों में से था इसलिये बाद- शाहने हुम्ल दिया कि सोमवारको जो सेट आवे वह सब इसको दोजावे।

चौथे दिन खानजहांको भेट आगरेसे आई उनमें हीरे मोती एक हागे और कुछ जड़ाज पदार्थ पचास हजार रुपयेके थे। पांचवें दिन कंवर कर्णने अपने देशसे आकर मुजरा किया। एक सौ मुहरें और एक हजार रुपये नजर तथा एक हाथो सोंज सहित और चार घोड़े भेट किये।

सातवें दिन आमिफखांके मनसब पर जो चार हजारी जात और दो हजार सवारका था हजारी जात और दो हजार सवार और बढ़ाये गये। उसको नकारा और झण्डा ओ इनायत हुआ। इसौ दिन भोर जमालुद्दीनको भेंट हुई वह सवही बादशाहको पसन्द आगई। उसमें एक खञ्जरको जड़ाऊ मूठ पचास हजार रुपये की थी जिसमें दौर मोतियोंके सिवा पोलेरङ्गका एक बड़ा अपूर्व याकूल जड़ा हुआ था वह मुर्गी के अंडके बराबर.था। बादशाहने उसके मनसब पर एक हजार सवार बढ़ा दिये जो पांचहजारो जात और साढ़े तीन हजार सवारोंका होगया।

नवें दिन अबुल हसनको भेटमें चालीस हजार रुपयेवो जवाहिर जड़ाज़ चीजें और उत्तम कपड़े लिये गये।

तातारखां बकावलवेगी (बाबरचौखानेके दारोगा) को भेट हुई उसमें लाल, याकूत, एक जड़ाऊ तखती और कपड़े थे।

दसवें दिन दक्षिणसे तीन हाथी राजा महासिंहके और लाहोर से एक सौ कई जरीके थान मुरतिजाखांके भेजे हुए पहुंचे।

दियानतखाने भी दो मोतियोंको माला. दो लाल छः बड़ मोती और सोनेका थाल भेट किया। सब २८ हजार रुपये थे।

११ फरवरदौन (चैत्र सुदी १२) गुरुवारको पिछले दिनसे बाद-


    • यात एक प्रकारका रन है जिसका रङ्ग पोला नोला और

सफेद होता है। शाह एतमादुद्दौलाके घर गया और उसकी भेटका एक एक पदार्थ देखकर दो मोती तीस हजार रुपयेके एक लाल बाइस हजार रुपये का तथा और भी कई लाल और मोती एक लाख दस हजार रुपये के और पन्द्रह हजार रुपयेके कपड़े पसन्द करके लेलिये। भेंट लेनेके पीछे बादशाह पहर रात गये तक वहां बैठा। सुन्दर सभा जुड़ी थी जो अमौर और अनुचर सेवामें थे उनको प्याले. देनेका हुक्म हुआ। महलके लोग भी साथ थे।

सभा विसर्जन होने पर बादशाह एतमादुद्दौलासे विदा होकर राजभवनमें आगया।

नूरमहलसे नूरजहां बेगम।

इन्हीं दिनों में बादशाहने हुक्म दिया कि नूरमहल बेगमको नूरजहां बेगम कहा करें।

१२ (चैत्र सुदी १४) को एतबारखाँको भेट हुई उसमेंसे बाद- शाहने छप्पन हजार रुपयेके वाहिर और जडाऊ पदार्थ लिये। जिनमें मछलोके आकारका एक जड़ाज बर्तन बहुत सुन्दर और सुडौल बादशाहके नित्यप्रति पौनेको मदिराके अन्दाजका था।

कन्धारके हाकिम बहादुरखांके भेजे हुए सात इराकी घोड़ और नौ थान कपड़ोंके पहुंचे।

१३ चैत्र सुदी १४) को इरादतखां और राजा बासूके बेटे सूरजमलको भैष्ट आई।

१५ (बैशाख बदौ २) कोठंडे की सूवेदारी शमशेरखासे उतरकर मुजफ्फरखांको मिली।

१६ (बैशाख बदौ ३) को एतमादुद्दौलाके बेटे एतकादखांको भेट बादशाहको दिखाई गई उसमेंसे बत्तीस हजार रुपयेकौ चौजें बादशाहने उठाई।

१७ (बैशाख बदौ ४।५) को तरबीयतखांको भेट बादशाहने देखो। उसमेंसे सतरह, हजार रुपये जवाहिर और कपड़े पसन्द

किये।

२२१
संवत् १६७३।

१८ (बैशालु नदी ६) को बादशाह आप्तिफखांके घर गया जो बोलावखानी एक कोज था। प्राप्तिमा जाने प्राधे रास्ते में सादे और जरी मखमल विछा दिये थे जिनका सूज्य दस हजार रुपये बाद- शाहको सुनाया गया। बादशाह उस दिन प्राधीरात तक वेगमों सहित वहां रहा। उसने जो भेंट सजाई थी वह सब अच्छी तरह बादशाहजे देखो। एक लाख चौदह हजार रूपयेको जवाहिर जड़ाज पदाय, कपड़े, एक जंट गौर चार घोड़े पसन्द करके लिये।

मेत संक्रान्ति ।

१८ (वैशाख वदी ७) को सूर्यको मेख संक्रान्तिका उत्सव था। हौलतखान बड़ी आवो मगलिक जुड़ी। बादशाह मुहर्तके अनु- सार अढ़ाई बड़ी पिले दिनले सिंहासन पर बैठा। उसी समय बाबा दर्रमाणे ८००००) का एक लाल भेट किया। बादशाहने औ उसका सनान बढ़ाकर बीस हजारी जात और दस हजार सवारोंका कार दिया।

इसी दिन बादशाहके मौन जन्मदिवप्तका तुलादानषा हुआ।

एतमादुद्दौलाको पदहद्धि।

उलो दिन बादशाहने एतमादुद्दौलाका अनसन सात हजारी नात और पांच हजार सवारं का करके उसको तुमन और तौग भी इनायत किया और यह हुक्म दिया कि खुरमक नकारके पीछे उसका नकारा बजे।

पोता।

२१ (बैशाख बदी ) को महतर फाजिल रकाबदारके बेटे सुकोमकी बेटौसे खुसरोके घर पुन जन्मा।

अलहदाद पठानका अधीन होना।

अलहदाद पठान अहहादसे माटदार दरबार में आया। बाद-


  • चंडूपञ्चाङ्गमें यह मेख संक्रान्ति नैशाख बदौ ६ को लिखी है।

पा यह तुलादान १७ रबीउल शब्बल अर्थात् बैशाख बदौ ३ को

होना चाहिये था सप्तमीको सुइत हुआ होगा।

२२२
जहांगीरनामा।

शाहने २००००० दरब उसको इनायत किये और कुछ दिन पीछे एक जड़ाऊ खपवा भी दिया।

रायमनोहरको मृत्यु।

२५ (बैशाख बदौ १२) को दक्षिणसे राय मनोहरको मृत्युका समाचार पहुंचा। बादशाहने उनके बेटेको पांच सदी जात और तौनसौ सवारीका मनसब देकर बापको जागौर भी देदी।

काबुलमें उपद्रव।

कदम नाम अफरीदी पठान खैबरकै घाटेका मार्गरक्षक था। उसने थोड़ेसे सन्दहमें सेवा छोड़कर सिर उठाया और अपने आदमी प्रत्येक थाने पर भेज दिये जिन्होंने थानेवालोंको मारकर लूट मार मचा दी। नये सिरसे काबुलके पहाड़ोंमें अशान्ति फैल गई। जब यह समाचार बादशाहको सुनाया गया तो उसने । कदमके माई हारून और बेटे जलालको जो दरबारमें हाजिर थे. पकड़वाकर ग्वालियरके किले में कैद रखनेके लिये आसिफखांको सौंपा।

भुजबन्ध।

खुश्मने ६००००) का एक लाल रानाका दिया हुआ बादशाह को भेट किया था। बादशाह उसको अपने हाथ में बांधना चाहता था परन्तु उसके आसपास पिरोनेके लिये वैसेही उत्तम मोतियोंकी जोड़ी भी दरकार थी। एक मोती तो मुकर्रबखांने बीस हजार रुपयम लेकर नौरोजको भेटमें अर्पण कर दिया था उसीके समान एक और मोतीको आवश्यकता थी। खर्रम जो बचपनमें रातदिन अकबर बादशाहके पास रहता था उसने उतनीही तौल और आकृति का मोती पुराने सरपेचमें बताया। बादशाहने सरपंच मंगाया तो वैसाही मोती निकल आया। मानो दोनो एकही सांचे में ढाले हुए थे। इससे सब लोगोंको बड़ा आश्चर्य हुआ। बादशाहने इस बातको ईश्वरको कपा समझकर बहुत धन्यवाद किया और उज मोतियोंको उस लालो दोनो ओर पिरोकर प्रसन्नतापूर्वक अपने हाथ बांधा।

देशान्तरको लौगातें।

५ उर्दीवहिपत (बैशाख सुदी ८) को तीम इराकी और तुर्को घोड़े लाहोरसे मुरतिजाखांके भेजे हुए पहुंचे।

खानदौरांने जो काबुलसे भेंट भेजी थी उसमेंसे तिरसठ घोड़े पन्द्रह जंट ऊंटनी, कलगोके परीका एक दस्ता आकरी ८, चौनी खताई , मछलीके दांत जौहरदार और तीन बन्दूकें बादशाह को पसन्द आई।

एक छोटा हाथी जो हबश देशसे जहाजमें आया था मुलरंबखां ने भेंट में भेजा। हिन्दुस्थानके हाथियों से उसके कान बड़े थे सूंड और पूंछ भी लम्बी थी।

अकबर बादशाहके समयमें एतमादखाने गुजरातसे हाथोका एक बच्चा भेजा था। वह जब बड़ा हुआ तो बहुत क्रूर और बद. माश निकला।

पठानोंका उपद्रव।

पगाना और बंकाना जातिके अफरीदी पठानोंने जो दङ्गा मचाया था उसमें खानाजमका आई अबदुल सुबहान जो एक थाने पर था वीरता पूर्वक उन लोगोंसे लड़कर मारा गया। खानबालम ईरानमें गया हुआ था। इसलिये बादशाहने वहीं उसके वास्ते शोकनिवारक पत्र और सिरोपाव भेजा।

अलहदाद पठान।

२१ (नेठ बदौ १०) को अलहदाद पठान खानका खिताब मिलनेसे अलहदादखां होगया और उसका मनसब भी बढ़कर दो हजारौ जात और एक हजार सवारों तक पहुंचा।


  • आकरीका अर्थ कोशमें नहीं मिला।

• चीनको मट्टीके उत्तम पात्र ।

२२४
जहांगीरनामा।

खानदौरां।

खानदौरांने पठानोंका बलवा मिटाने में बड़ा परिश्रम किया था इसलिये उसको लाहोरके खजानेसे तीन लाख रुपये इनाम और मदद खर्चके दिलाये गये।

कंवर कर्णको विदाई।

२८ (जेठ सुदी २) को कुंवर कर्ण अपना विवाह करनेके वास्ते बिदा हुआ। बादशाहने खिलअत खासा इराकी घोड़ा जीन सहित, हाथी और जड़ाऊ परतला तलवारका उसको दिया।

सुरतिजाखां और सैफखांकी मृत्यु।

३ खुरदाद (जेठ सुदी ७) को मुरतिजाखांके मरनेकी खबर पहुंची। बादशाह सुनकर दुःखी हुआ क्योंकि वह अकबर बादशाह के समयका नौकर था। खुमरोके पकड़नेका बड़ा काम इसी ने किया था। छः हजागे जात और पांच हजार सवारके मनसब को पहुंचा था। इन दिनों में किले कांगड़ेके फतह करने में लगा हुआ था।

७ (जेठ सुदी ११) को सैफखां बारहके भी मरनेकी खबर दक्षिणसे पहुंची, वह हैजैसे मरा था। उसने भी खुसरोंके पकड़ने में परिश्रम करके तरक्की पाई थी। बादशाहने उसके बेटे अली मुहम्मद और बहादुरको मनसब दिया और भतीजे सय्यदअलीका मनसब बढ़ाया। शहबाजखां कम्बोके बेटे खूबउल्लहको रणबाजका खिताब मिला ।

राजा विक्रमाजीत।

८ (जेठ सुदी १२) को बांधोंगढ़के राजा विक्रमाजीतने खुरमके वसीलेसे दरबारमें आकर मुजरा किया। बादशाहने इसके अपराध क्षमा कर दिये। इसके बाप दादे हिन्दुस्थानके नामी राजाओं मेंसे थे।

कल्याण जैसलमेरी।

2 (जेठ सुदी९३) को कल्याण जैसलमेरीने जिसके खाने के लिये

२२५
संवत् १६७३ ।

राजा किशनदास गया था आकर मुजरा किया। एक हजार मोहरें और एक हजार रुपये नजर किये। उपका बड़ा आई राव भौम था। जब वह मरा तो उसका लड़का दो महीने का वालक या। वह भी ज्यादा न जिया। बादशाहने पिछली पीढ़ियोंके 5वंवसे इसको बुलाकर राजतिलक और रावलका खिताब दिया।

राजामान।

बादशाहको खबर पहुंचौ कि मुरतिज्ञाखांके मरने पर राजा मानने कांगड़े के किलेवालोंको ढारस देकर वहांके राजकुमारको जो २८ वर्षका था दरबारमें लेजाने की बात ठहराई है।

बादशाहने इम उत्साहके बदले में उसका मनसब जो हजारी जात और आठ सौ सवारोंका था बढ़ाकर डेढ़ हजारो जात और एक हजार सवारोंका कर दिया।

पोतीको मृत्यु ।

बादशाह लिखता है कि इसपा तारीखको एक देवघटना हुई। उसके लिखनेको मैंने बहुत चाहा परन्तु हाथ और हृदयने साथ नहीं दिया। जब लेखनी पकड़ता था औरही दशा होजाती थी। विवश होकर एतमादुद्दौलाको लिखनेका हुक्म दिया।

एतमादुद्दौलाका लेख।

बूढ़ा भल्ल गुलाम एतमादुद्दौला हुक्मसे इस तेजमय गन्धमें लिखता है कि ११ तारीख खुरदाद (जेठ सुदी १४) को श्रीमान् शाह खुर्रमको श्रीमती राजकुमारीको जिसे बादशाह बहुत प्यार करते थे बुखार चढ़ा। तीन दिन पौछे छाले निकल आये और २६ बुधवार २८ जमादिउलअव्वल (आश्विन सुदी १) को उसका प्राणपक्षी पंचभूतके पी रेसे खर्गको उड़ गया। इसलिये हुका हुआ कि अब चारशंबे (बुधवार) को कमशंबा लिखा करें। मैं क्या लिखू कि इस हृदयदाहक दुर्घटनासे हजरतको कितना दुःख हुआ।


ना तारीखका अङ्ख नहीं दिया है।

२२६
जहांगीरनामा।

दूसरे लोगोंके शोकका तो कहनाहौ क्या है जिनके प्राण श्रीमान को पवित्रामासे बंधे हुए हैं। दो दिन तक - किसीका मुजरा न हुआ। जिन घरमें राजकुमारीका उठना बैठना था उसके आगे दीवार उठा देनेका हुक्म हुआ जिससे दिखाई न दे। तीसरे दिन बादशाह बड़ो व्याकुलतासे शाहजादेके घर पधारे। वहां सब बन्द मुजरा करके निहाल हुए। रास्ते में हजरतने अपनेको बहुत रोका तोमो आंसू आँखोंसे चले आते थे. और बहुत दिनों तक यही दशा रहो कि जब कोई दुः खसूचक अक्षर सुनने में आता. तो अधौर होज़ाते थे।

शाहजादेके घर कई दिन रहे। फिर सोमवार (६) तौर* को आसिफखांके घर पधारे। वहांसे लौटकर नरचशीमें गये। दो तीन दिन वहां दिल बहलाया। परन्तु जबतक अजमेरमें डेरे रहे अपनेको सम्हाल न सके। जब कभी राजकुमारोके नामको भनक कानमें पड़ती तो सहसा आंसू टपकने लगते थे और राज- अतोंका कलेजा टुकड़े टुकड़े होजाता था। · जब दक्षिणको कूच हुआ तो कुछ शान्ति हुई।

राय पृथ्वीचन्द।

इस तारीख में राय मनोहरके बेटे पृथ्वीचन्दको राय पदवी, पांच सदी जात चार सौ. सवोरकां मनसब और . जागोर बैतनमें मिली।


  • मूलमें तारीखका अङ्ख नहीं लिखा है पर सोमवार ६ तौरको

था. इसलिये हमने कोष्ट में ६ बना दिया है। वह लड़को आसिफखांको दौहित्रौ और एतमादुद्दौलाको परदौहित्री थी।

  • मूलमें तारीखका अङ्क नहीं है यहांसे तु० जहांगीरी में फिर

बादशाहका लेख है।

२२७
संवत् १६७३

सावन बदौ ३ शनिवारको बादाइ नूरचणमेसे अजमरके राज- भवनमें आया।

शुजाला जन्म।

१२ तौर (सावन बदी ७) रवियरको ३७ पल रात गये जबकि हिन्दू ज्योतिषियोंके मतसे धन लग्न २७ अंश और यूनानियोंके मत से मकर लग्न १५ अंश था आसिफखांकी वेटौम खुर्गमके घर फिर एक लड़का हुआ। बादशाहने सोच विचार कर उसका नाम शाह शुजा रखा इसके जन्नसे सबलोग हर्षित हुए।

रावल कल्याण ।

इसी दिन बादशाहने राव कल्याणको जड़ाऊ सूटको एक तल. वार और एक हासो दिया।

राय कुंवर ।

गुजरातको दीवान राय कुंवरको हाथो दिया गया।

राजा महासिंह।

२२ (सावन बदी ३०) को राजा महासिंहका मनसब पांच सदी जातको हाधि होनेसे चार हजारी जात और तीन हजार सवारोंका होगया।

मोनेका कटहरा।

बादशाहने कई मनोरथोंको सिद्धिके लिये खाजाजीको कबर पर सोनेका कटहरा चढ़ानेका संकल्प किया था। वह एक लाख दल हजार रुपये में बनकर तय्यार हुआ और सावन सुदी ४ को बादशाहके हुक्मसे वहां लेजाकर लगाया गया।

परवेजका बुलाया जाना।

परवेजसे दक्षिणको मुहिम बादशाहके मन मुआफिक नहीं सुधरी थी। बादशाहने खुर्रमका उत्साह देखकर उसको वहां भेजने और पौछेसे आप भी कूच करनेका विचार करके परवेजको इलाहाबाद जानेका हुक्म इस आशयले लिखा था कि जबतक हम

सफरमें रहें वहांको रक्षा करे। २८ तौर (सावन सुदी ६) को

२२८
जहांगीरनामा।

बिहारीदास वाकानवौसको अर्जी बुरहानपुरसे आई जिसमें लिखा था कि शाहजादेने २० तौर (सावन बदी १३०) को यहांसे इलाहाबादको कूच कर दिया है।

राजा आवसिंह।

१ अमरदाद (सावन सुदौ ) को बादशाहने राजा भावसिंह को जड़ाऊ तुर्रा दिया।

कन्नौज और सन्भल।

खवासखांके मरनेसे कन्नौजको हुकूमत सम्भलके फौजदार सय्यद अबदुल वहाबको मिली थी। अब मोर मुगल उसकी जगह सम्भलका फौजदार नियत हुआ और फौजदार रहने तक उसका मनसब पांच सदी जात और सवारका होगया।

रावल कल्याण ।

२१ (भादों बदी ३०) को रावल कल्याणने बादशाहको तीन सौ मोहरें घोड़े २५ ऊंट और १ हाथी भेंट किया। महामारी।

इस साल हिन्दुस्थानके शहरों में महामारी फैल रही थी जो पिछले वर्ष पंजाबके परगनोंमें प्रगट हुई थी। बढ़ते बढ़ते लाहोर में जा पहुंची। जिसमें बहुतसे हिन्दू मुसलमान मर गये। फिर सरहिन्द होकर दिल्ली तक फैल गई और उसकी तलहटीमें बहुतसे गांव और परगने उजड़ गये। बड़ी उमरके आदमियों और पुरानो तवारीोसे विदित हुआ कि यह रोग इस देशमें कभी नहीं आया था। उसका कारण हकीमों और विहानोंसे पूछा गया तो किसी किसी ने कहा कि दो वर्ष लगातार सूखे निकले और मेह कम बरसा। कोई बोला कि सूखा पड़ने और बरसात कम होनेसे हवा


यह खबर १० दिनमें आई थी शायद पहिले ही आगई हो। बादशाहके पास कागज पेश होने में भी कुछ देर लगतीही रही

होगी।

२२८
संवत् १६७३।

विगड़कर यह रोग फैला है। कुछ लोगोंने और और बातें कहीं। पूरा ज्ञान परमेश्वरको है।

शाह ईरानकी बेटी।

५ शहरेवर (भादों सुदी १५ तथा आखिन बदौ १) को पांच हजार रुपये मौरमौरांको माके वास्ते जो ईरानके शाह दूसरे इस- माईलकी बेटी थी व्यापारियोंके हाथ ईरानमें भेजे गये।

अबदुलहखां पर कोप।

६ (आश्विन बदौ २) को अहमदाबादकै बखशी और वाका नवीसको अर्जी आई। उसमें लिखा था कि अबदुल्लहखां फौरोज जङ्गको इच्छाके विरुद्ध मैंने कई समाचार, समाचारपत्रमें लिख दिये थे इस पर उसने मुझसे बुरा मानकर कुछ सिपाही मेरे ऊपर भेजे और अपने घर बुलाकर मेरा अपमान किया।

बादशाहने पहले क्रोध आकर उसको मरवा डालना चाहा परन्तु फिर दियानतखांको अहमदाबाद भेजा और उससे कहा कि वहांक निष्पक्ष पुरुषोंसे निर्णय करे। जो सच्ची बात हो तो अब: दुलहखांको अपने साथ ले आवे और अहमदाबादका शासन उसके भाई सरदारखांके अधिकारमें रहे ।

दियानतखांके जानेके पहलेहो यह समाचार अबदुल्लहखांको पहुंच गये और वह डरके मारे अपनेको अपराधी ठहराकर पैदल हो राजद्दारको चल दिया। दियानतखां मार्गमें उसको मिला और उसकी यह अद्भुत दशा देखकर सवार होनेको आज्ञा दी क्यों कि पैदल चलनेसे उसके पांव घायल होगये थे।

मुकर्रबखांको गुजरात।

मुकर्रबखां पुराना सेवक था और बादशाहको युवराजावस्थासे ही गुजरात देशके लिये प्रार्थना किया करता था। अब जो अबदुल्लहखांसे ऐसा अपराध बन आया तो बादशाहने अपने पुराने सेवकको आशा पूरी करके उसको गुजरातको सूबेदारी देदी। :

[ २० ]

२३०
जहांगीरनामा।

अनन्दंखां तमूरची।

शौकी तमूरा बजानेवालेको बादशाहने आनन्दखांकी उपाधि दी। बादशाह लिखता है-यह तमूरा बजाने में अजीब है और हिन्दी फारसी गतीको ऐसा बजाता है कि दिलोंके दुःख दूर कर देता है। इस लिये मैने इसको आनन्दखांका खिताब दिया। हिन्दी भाषामें आनन्दका अर्थ खुशी है और खुशौके दिन हिन्दुस्थान में तौर महीने (बैशाख जेठ) से आगे नहीं होते। राना और कर्णकी मूर्ति ।

बादशाहने राना और उसके बेटे कर्णको सर्वाङ्ग मूर्तियां सफेद पत्थरों से गढ़नेको सिलावटोंको आज्ञा दी थी । वह तैयार होकर १०(प्र० आश्विन बदौ ४) को बादशाहके पास आई। बादशाहने देखकर हुक्म दिया कि आगरे में लेजाकर दर्शनके झरोखेके नीचे बाग में खड़ी कर देवें।

तुलादान।

२६ (प्रथम आखिन सुदी ६)को बादशाहके सौर पक्षीय जन्म दिवसका पहिला तुलादान सोने का दूसरा पारका तीसरा रेशमका चौथा अब्बर कस्तूरी चन्दन और लोबान शादि सुगन्धिब द्रव्यका हुआ। इसी प्रकार १२ तुलादान बहुमूल्य पदार्थोके होते थे जिन का मूल्य एक लाख रुपयेसे कम नहीं होता था। इसके सिवा बादशाह बकरे और मुरगे अपनी उमरके वर्षों के बराबर छू.छू कर फकौरोको देता।

महाबतखांकी भेंट।

उसी दिन महाबतखाने एक लाल जो ६५०००) में अबदुल्लह खांसे बुरहानपुर में खरीदा था बादशाहको भेंट किया। खानआजम और दियानतखां, ।

खानआजमका मनसब सात हजारो हुआ और उसके अनुसार


आगरेमें अब यह मूर्तियां नहीं हैं. होती तो चीजें बहुत

अनोखी थीं।

२३१
संवत् १६७३।

जागीर देनेका हुक्म दीवानीको दिया गया। दियानलखांका मन- सब पिछली बदचलनियोंसे घट गया था। एतमादुद्दौलाके कहने से पूरा होगया।

रावल कल्याण जैसलमेरो।

रावल कल्याणका मनसब दो हजारी जात और दो हजार सवारों का हुआ। उसका वेतन भी उसीके देशमें लगाया गया। उसको बिदाका मुहर्त भी उसी दिन था इसलिये हाथी, घोड़ा, जड़ाज खपवा, परम नरम खासा और खिलअत उसको मिला और राजी खुशी अपने देशको गया।

मुकर्रबखां।

३१ (प्रथम आखिनसुदी १३) को मुकर्रबखां पांच हजारी जात पांच हजार सवारका मनसब, खासा खिलात, नादरी और मोती के तुकमें सहित एक खासेके हाथी और खासेका घोड़ा · पाकर आनन्दपूर्वक अहमदाबादको बिदा हुआ।

जगतसिंह।

हितोय आखिन बदौ ८ को कुंवर कर्णका बेटा जगतसिंह खदेशस आया।

"कुतुबुलमुल्कको भेंट।

११ महर (द्वितीय आश्विन मुदी ३) को गोलकुंडके शाह कुतुबुलमुल्कको भेंट बादशाहके सामने पेश हुई।

मिरजा अलौवेगं अकबरशाही।

मिरजा अलीबेग अपनी जागोरसे जो अवधौ धौ १६ (द्वितीय आश्विन बी १३) को आया उसने एक हाथो जिसे वह शाही आज्ञानुसार वहांके किसी जागीरदारसे लाया था भेंट किया। उसकी उमर ७५ वर्षकी थी और अच्छे काम करनेसे चार हजारी मनसबको पहुंचा था। २२ (द्वितीय आखिन सुंदी ४) शुक्रवार को रातको वह खाजा साहिबकी जियारतको गया था। वहीं

मर गया और वहीं बादशाहके हुक्मसे गाड़ा गया।

२३२
जहांगीरनामा।

पहलवान “पाये तख्त”।

बादशाहने बीजापुरके दूतोंको विदा करते समय कहा था कि तुम्हारे यहां कोई नामी पहलवान या खांडत हो तो आदिलखांसे कहकर हमारे वास्ते भिजवाना। बहुत दिन पोछे दूत फिरकर आये तो शेरअली पहलवान और कई खांडेतीको साथ लाये । खांडत तो कुछ यौहौस निकले पर शेरअलौने कुश्ती में बादशाही पहलवानोंको पछाड़ दिया। बादशाहने उसको एक हजार रूपये सिरोपाव, हामी, मनसब जागौर सहित देकर अपने पास रखलिया और पहलवान “पाये तख्त" का खिताब दिया।

दियानतखां।

२४ (द्वितीय आखिन सुदी ६) को दियानतखा. अबदुल्लहखां को लेकर आया और एकसौ मोहरे भेंट की।

रामदास।

इसी दिन राजा राजसिंहके बेटे रामदासको हजारो जात और पांच सौ सवारोंका मनसब मिला।

अवदुल्लहवां फौरोज़जङ्ग।

२६ (द्वितीय आखिन सुदी ८) को बाबा खुर्रमको सिफारिशसे. अबदुलहखांका मुजरा हुआ। बहुत सङ्कोच और पछतावेके साथ उसने एकसौ मोहरें और एक हजार रुपये भेंट किये।

बीजापुरके दूत।।

बादशाहने बीजापुरके दूतोंके पहुंचनेसे पहले निश्चय कर लिया था कि खुर्रमको आगे भेजकर आप भी दक्षिणको प्रयाण करें और बिगड़े हुए कामको सम्हालें। यह भी हुका दे रखा था कि दक्षिणके दुनियादारोंकी बात खुर्रमके सिवा और कोई न करे। इसलिये शाहजादा खुरंम उस दिन बीजापुरके दूतीको हुजूरमें लेगया। वह लोग जो प्रार्थनापत्र लाये थे वह भी बादशाहको दिखाये।

राजा मान और कांगड़ेको मुहिम ।।

मुरतिजाखांके मरे पोछे राजा मान और दूसरे सहायक सरदार

२३३
संवत् १६७३।

दरगाहमें आगये थे। बादशाहने एतमादुद्दौलाको प्रार्थनासे राजा भानयो कांगड़ा जीतके वास्ते भेजा और उन सब सहायकोंको उनसे लाय कर दिया। सबको यथायोग्य हाथी, घोड़े, सिरोपाव और रुपये दिये।

अवटुलइखां।

बादशाहने खुर्रमको प्रार्थनासे अबदुल्लहखांको फिर अगला मनसब देकर शाहजादेके साथ दक्षिण जानेवाली सेनामें भरती कर दिया ।

खुसरो।

खुसरो अनौराय सिंहदलनंके पहरे में था उसे ४ आवान (कार्तिक बदौ २) को बादशाहने किसी कारण विशेषसे आसिफण्डा को सौंपा और एक खासेका शाल भी दिया।

ईरानका दूत।

१ आबान १७ शव्वाल (द्वितीय आखिन सुदी ५) को ईरानका दूत मुहम्मद रजा अपने बादशाहका प्रेमपत्र घोड़े और दूसरे पदार्थ लेकर आया । बादशाहने उसको जड़ाऊ मुकुट और सिरो- पाव प्रदान किया। उस पत्र में ईरानके शाहने बहुत कुछ प्रीति और एकता दरसाई थी इसलिये बादशाहने उसको अपनी 'तुजुक' में लिख लिया। उसके सुललित पदोंमसे एक पद यह भी था- इम तुम ऐसे एक होगये हैं कि मुझे यह सुध नहीं रही है कि तुम हो सो मैं इंया मैं हंसो तुम हो-दोनोमें कुछ भेद भाव . इस लोकमें क्या परलोकमें भी नहीं रहा है।

खुर्रमका दक्षिण जाना ।

१८ शव्वाल २० आंबान (कार्तिक बदौ ६) रविवारकों बाबा खुरमका पेशखौमा अजमेरसे दक्षिण भेजनेके वास्ते बाहर निकाला गया।

(कार्तिकं बंदी ७) सोमवारको ३ घड़ी दिन चढ़ें बादशाहका

दौलतखाना (कपड़ीका राजभवन) भी उसी दिशाको रवाने हुआ।

२३४
जहांगीरनामा।

१८/८ (कार्तिक बदी ८) को, राजा सूरजमलका मनसब दो हजारो जात और दोसौ सवारोंका होगया। वह शाहजादेके साथ भेजा गया था।

उल का शिकार।

१८ आबान (कार्तिक सुदी १) को छः घड़ी रात गये एक उल्ल, महलको ऊंची छत पर आकर बैठा जो बहुत कम दिखाई देता था। बादशाहने बन्दूक मंगाकर जिधर लोग उसको : बताते थे छोड़ी। उल्ल के टकड़े टुकड़े उड़ गये। इस पर सब लोगोंने जिनमें ईरानका दूत रजावेग भी था बड़ा आनन्द-घोष किया।

शाह ईरानका बेटेको मारनेका कारण ।

इसी रातको बादशाहने बातोंही बातों में सफीमिरजाके मारनेका . कारण पूछा तो वजावेगने कहा कि वह बापके मारनेके विचारमें था। उन दिनों में वह न मारा जाता तो शाहको मार डालता। यही जानकर शाहने उसको मरवा डाला।

२० शुक्रवार (कार्तिक सुदी २) को खुर्रमके बिदा होनेका मुहर्त था इस लिये वह अपने सजे हुए सेवकोंको लेकर राजभवन में सुजरा करने आया। बादशाहने अति अनुग्रहसे उसको इतनी चीजें दीं-

१-शाह सुलतान खुरंमका खिताब।

२-खिलअत ज़ड़ाज चार कुब्बका जिसके दामन और गिरेबान में मोती टंके हुए थे।

३-एक इराको घोड़ा जीन सहित।

४-एक तुरको घोड़ा।

५-खासेका बंसोबदन नामक एक हाथी।

६-रथ अगरेजी चालका बैठकर चलनेके लिये।

७-जड़ाऊ तलवार खायेके परतले सहित जो अहमदनगरको पहली जीतमें हाथ आई थी और: जिसका. परतला. बहुत उमदा

और नामी था।:

२३५
संवत् १६७३!

८-जड़ाऊ कटार।

इस प्रकार खुर्रमने बड़ी धूमसे दक्षिणके देशोंके जीतनेको प्रयाण किया।

उसके साथियों को भी यथायोग्य घोड़े और सिरोपाव मिले।

अवटुल्लह फौरोजजङ्गको बादशाहने अपनी कमरसे तलवार खोल कर इनायत की।

चोरोंको दण्ड और नवलका हायौसे लड़ना।

कई धाड़ी कोटवालोके चबूतरे पर धाड़ा डालकर बादशाही खजाना लूट लेगये थे उनमेंसे सात आदमी कुछ रुपयों सहित पकड़े आये। बादशाहने सबको तरह तरहका दण्ड दिया। जब उनके सरदार नवलको हाथोके पांवों में डालने लगे तो उसने अर्ज को कि हुक्म हो तो मैं हाथोसे लड़। बादशाहने कहा ठीक है। एक मस्त हाथी भंगाकर नवलके हाथ में कटार दिया और हाथोके सामने किया। हाथीने कई बार उसको गिराया तो भी वह निडर बौर अपने साथियोंको भांति भांतिके कष्टोसे मरते देखकर भी पांव रोपकर दृढ़तासे मरदांना हाथोके संड पर कटारें मारता रहा। हाथीको ऐसा वेबस कर दिया कि वह उसपर हमला करनेसे . रुककर खड़ा होगया। बादशाहने उसको बहादुरी और मर- दानमो देखकर पहरमें रखनेका हुक्म दिया। परन्तु थोड़ेही दिनों में वह दुष्टतासे अपने घरको भाग गया। बादशाहने इस बातसे अग्रसन्न होकर उधरके जागीरदारोंको उसे ढूंढकर पकड़नेका हुक्म लिखा। दैवयोगसे वह फिर पकड़ा आया। बादशाहने उसका सिर उड़वा दिया।

बादशाहका अजमेरसे कूच।।

१ जीकाद २१ आबान (कार्तिक सुदी ३) शनिवारपा. को दो पहर पर ५ घड़ों दिनं आये बादशाहने चार घोड़ोंके फरंगी रथ


पा तुजुक पृष्ठ १६८ में भूलसे संगल लिखा है।

२३६
जहांगीरनामा।

(बग्यौ) में बैठकर अजमेरसे प्रस्थान किया। अमौरीको भी रथों में बैठकर साथ आनेका हुक्म दिया।'

पौने दो कोस चलकर शामको गांव दोराईमें मुकाम हुआ।

बादशाह लिखता है-"हिन्दुस्थानियोंने ऐसा स्थिर कर रखा

है कि जो राजा और बादशाह पूर्वकी ओर जावें तो दन्तीले हाधी पर सवार हों। पश्चिमको जावें तो इकरंगे घोड़े पर बैठे, उत्तर को जावें तो पालकी या सिंहासन पर और इक्षिणको जावें तो रथ पर सवारी करें।

अजमेर।

बादशाह पांच दिन कम तीन वर्ष अजमेर में रहा। अजमेरके वास्ते लिखा है कि "यहां खाजा मुईनुद्दीनको पवित्र : समाधि है यह दूसरी इकलोममें गिना जाता है। हवा यहांको समभावको है। पूर्व में आगरा, उत्तरमें दिल्लौके परगने दक्षिण में गुजरात और पश्चिममें मुलतान तथा देपालपुर है। यह सूबा तमाम रेतीला है। खेती बरसातके पानीसे होती है। जाड़ा समभावका और गरमौ आगरसे कम है। ८६००० सवार और ३०४००० पैदल राजपूत लड़ाईके समय इस खूबसे निकलते हैं। इस बस्ती में दो बड़े तालाब हैं, एक बौसल ताल और, दूसरा आनासागर । . बौसल ताल सूखा है और उसका बान्ध टूट गया है। मैंने बांधनेका हुक्म दिया है आनासागर जिस पर इतने दिनों तक रहना हुआ था हमेशा पानौसे भरा रहा, यह डेढ़ कोच और पांच डोरीका है।

अजमेर ठहरनेके दिनों में 2 बार खाजाजीको जियारतको गया . और १५ बार पुष्कर देखने । ३८ बार नूरचममें जाना हुआ । ५० नार शिकारको गया।. १५ सिंह १. चौता १ स्याहगोश ५३ नौल गायें ३३ गेंडे ८० हरन ३४० मुरगाबों और ८० सूअर शिकार हुए”..


  • दुनियाको बस्तीका सातवां टुकड़ा।
    २३७
    संवत् १६७३।

दोराई।

दोराई में सात दिन डेरा रहा। २८ (कार्तिक सुदी १२) को दोराई में कूच होकर सवा दो कोसपर गांव दासावलीमें डेरा हुआ।

३ आजर (अगहन बदी १) को फिर सवा दो कोस पर गांव मावलमें मुकाम हुआ।

राममर।

४ आजर (अगहन बदी २) को डेढ़ कोस चलकर बादशाह रामसर में आठ दिन रहा। उक्त गांव नूरजहांबेगमको जागीरमें था। छठे दिन कुंवर कर्णका बेटा जगतसिंह हाथी और घोड़ा पाकर अपने परको बिदा हुआ । केशव मारूको भी घोड़ा इनायत हआ।

इन्ही दिनों में राजा श्यामसिंहके मरनेको खवर सुनी गई जो बंगशक लशकरमें तैनात था।

"आतिथ्यसत्कार।

गुरुवारको नूरजहां बेगमने बादशाहका आतिथ्यसत्कार किया। रत्नों, जड़ाऊ आभूषणों, दिव्य वस्त्रोंसे सिले हुए जोड़ों और नाना प्रकारके पदार्थोसे सजी हुई भेंट दी। रातको वहांके विशाल तालाब पर रोशनी हुई बहुत अच्छौ मजलिस जुड़ी थी। बादशाह ने अमीरोंको बुलाकर प्याले दिये।

बादशाहके साथ खुशकोमें भी कई नावें रहा करती थीं जिनको मल्लाह लोग गाड़ियों पर लादे चलते थे। शुक्रवारको बादशाह उन्हीं नावों पर बैठकर रामसरके तालाबमें मछलियां पकड़ने गया और एकही जालमें २०८ मछलियां पकड़ लाया। उनमें आधी रोह मछलियां थीं। वह सब रातको अपने सामने नौकरोंको बांट दीं।

१३ (अगहनं बदौ ११) रामसरसे कूच होकर चार कोस पर गांव बलोदेमें और १६ (अगहन बदौ १४) को सवा तीन कोस चल . कर गांव निहालमें डेरे हुए। १८ (अगहन सुदी १) को सवादो कोस पर गाँव जोंसेमें मुकाम हुआ। वहां बादशाहने ईरानके

दूतको एक हाथो दिया।

२३८
जहांगीरनामा।

सारसोंकी पुकार।

२७ (अगहन सुदी २) को बादशाह शिकार खेलता सवा तीन कोस चलकर देवगांवमें उतरा। यहां यह विचित्र बात उसके देखनमें आई कि सवारो आनेसे पहले एक खोजा तालाबसे दो बच्चे सारसके पकड़ लाया था। रातको दो सारस गुसलखानेके पास जो उसी बड़े तालाब पर लगाया गया था चिल्लाते हुए आये और निर्भय होकर फरयादीको भांति पुकारने लगे। बादशाहने अपने दिलमें कहा कि अवश्य इनके ऊपर अन्याय हुआ है। शायद कोई इनके बच्चे पकड़ लाया होगा। जब इस बातकी खोज की गई तो उस खोजेने वह दोनो बच्चे लाकर भेंट किये। ज्योंही सारसोंने बच्चोंको बोली सुनो दौड़कर उनके ऊपर आगिर और भूखा समझकर अपनी चोंचसे चुग्गा उनके मुंहमें देने लगे। फिर उनको बीच में लेकर पर फटकारते हुए प्रसन्नतापूर्वक चले गये।

२३ (अगहन सुदी ६) को देवगांवसे कूच होकर सवातीन कोस पर गांव मालूमें दो दिन तक सवारी ठहरौ।

२६ (अगहन सुदी १०) को दो हो कोसको मञ्जिल हुई बाद. शाह दो दिन गांव काकलमें ठहरा।

२८ (अगहन सुदौ १२) को (उस दिन त्रयोदशी भी थौ) पौने तीन कोस सवारो चलो और गांव लासेमें पड़ाव हुआ। इसी दिन बकराईद भी थी।

३० (अगहन झुदी १४) को “अजर का महीना पूरा हुआ। वादशाहने अजमेर छोड़नेके पीछे इस महीने में ६७: नील गायें तथा हरन और ३७ मुर्गाबियां और जलकी मार थे।

२६ (पौष बदौ १) को लाससे डेरे उखड़े। तीन कोस दस नरौब पर गांव कानड़े में लगे ।

४ (दूसरी तौज) को कूच होकर सवा तीन कोस गांव सूरठमें सुकाम. हुआ। चौथ को साढ़े चार कोस पर गांव बरदड़ामें

सवारी उतरी।

२३०
संवत १६७३!

राजाको हाजिरी।

पौष बदी ५ को मोतमिदखांको अर्जी आई जिसमें लिखा था कि जब शाह खुर्रम राणाको विलायतके पास पहुंचा और उधरका कुछ उद्योग नहीं था तोभी राणा बादशाही सेनाको धाकसे उदय- पुरमें आकर पूरा पूरा आदाब बजा लाया।

शाहखुमने भी उसका पूरा सत्कार किया। खिलअत, चारकुब्द नड़ाज तन्नवार, जड़ाऊ खपवा, तुरकी और इराकी घोड़े तथा हाथी देकर बड़े मानते बिदा किया। उसके बेटे और पास वालों को भी सिरोपाव दिये । राणाने जो पांच हाथी २४ वोड़े जवाहिर और जड़ाऊ पदार्थ एक थालमें भरकर भेट किये थे उसमेंसे केवल तीन घोड़े लेकर बाकी उसीको देदिये और यह बात ठहरी कि उसका बेटा पन्द्रह सौ सवारोंसे इस दिग्विजयमें साथ रहे।

राजा महासिंहले बेटे।

१० (पौष बदौ ८) को राजा महासिंहके बेटोंने अपने वतनसे आकर रणथन्भोरके पास बादशाहको मुजरा किया। तीन हाथी और ८ घोड़े भेट किये। बादशाहने उनको यथायोग्य मनसब दिये।

बादशाह रणथम्भोरमें।

जब बादशाह रणथम्भोरमें पहुंचा तो उस किलेके बहुतसे कैदी छुड़वा दिये। यहां दो दिन डेरे रहे। बादशाह रोज शिकारको जाता था ३८ मुर्गाबियां और जलकव्वे शिकार हुए।

१२ (पौष बदौं १०) को चार कोस चलकर गांव कोयलेमें सवारी ठहरौ १४ (१२) को सवा तीन कोस पर गांव एकटोरमें सुकाम हुआ। यहांका तालाब जिस पर बादशाहो दौलतखाना खड़ा हुआ था बादशाहके पसन्द आगया। इससे दो दिन मुकाम रहा। रणथम्भोर महाबतखांको जागीरमें था उसका बेटा बहरीवर किले में रहता था। उसने आकर दो हाथी भेट किये दोनोंही

खासके हाथियों में रखे गये।

२४०
जहांगीरनामा।

१७ (पौष बदौ ३०) को बादशाह साढ़े चार कीस चलकर गांव लप्साये में और सुदी २ को सवा दोकोसकी मंजिल करके गांव कोरांमें चम्बल नदीके ऊपर उतरा। यह रमणीक स्थान भी बाद- शाहको पसन्द आगया था इसलिये तीन दिन वहां ठहरा। रोज नावों में बैठकर शिकार और जलबिहार करनेको जाया करता। २२ (पौष सुदी ६) को वहांसे प्रयाण करके साढ़े चार कोस तक शिकार खेलता गया और मुलतानपुर और चौलामोलामें , उतरा। २५ (पौष सुदौ ८) को साढ़े तीन कोस पर गांव मानपुरमें ठहरा। यहांसे मर्यादा पूर्वक एक दिन मुकाम और दूसरे दिन कूच करना निश्चय हुआ।



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तेरहवां वर्ष ।

सन् १०२६ हिजरी।

अगहन सुदौ २ संवत् १६७३ से पौंष सुदी २ सं० १६७४ तक । ता० ३ दिसम्बर सन् १६१६ से ता० १८ नवम्बर १६१७ तक।

२० (पौष सुदी ११) को सवा चार कोस चलकर गांव 'वरधामें दो मुकाम हुए पौष सुदी १३ को दे का महीना पूरा हुआ। इस महीन- ४९६ पशु पक्षी शिकार हुए थे।

तीतर ८७ मारस जन्न कव्वे १८२ करवानकं मुरगावी ११८ खरगोश

१२ मुहर्रम १ बहमन (पौष सुदी १४) को बादशाह बेगमों सहित नावों में बैठकर एक घड़ी दिन रहे गांव रूपहेड़ेमें उतरा। चार कोस पन्द्रह डोरी चला था। यह भी बहुत रोचक और सुरम्य स्थान था।

इन दिनों में वादशाहने “कोजगना" नाम सेवकके हाथ दक्षिण में २१ अमीरोंको जड़ावल भेजी और उसकी बधाई में उनले दो हजार रुपये लेनेको आज्ञा हुई।

३ (माघ बदी १) को फिर बादशाह नावों में बैठकर मवा दो कोस पर गांव काखावासमें उतरा। यहां एक विचित्र घटना देखनेमें आई। बादशाहने रास्तेमें एक तौतरके पकड़नेका हुन दिया था और दूसरा तीतर बाज हारा पकड़वाया था। जब डेरे पर पहुंचा तो पहला तीतर भी पकड़ा आया। उसको देखकर फरमाथा कि इसे तो बाजको खिलादो और दूसरेको रहने दो क्योंकि वह जवान है। परन्तु इस हुक्मके पहुंचनेसे पहलेही वह तीतर बाजको खिला दिया गया था। तब इस तौतरके लिये घड़ी भर पीछे ही शिकारीने अर्ज की कि जो इसे मैं नहीं मारूंगा तो यह

[ २५ ]

२४२
जहांगीरनामा।

आप मर जावेगा। बादशाहने कहा कि जो ऐसाही है तो जिबहकर डालो। पर जब उसके गले पर छुरी रखी गई तो वह फारसे उड़ गया। फिर जब बादशाह नावसे उतरकर घोड़े पर बैठा तो एक चिड़िया हवाके झोंकेसे एक शिकारी बरके पर गिरी और उसकी आलमें छिद कर मर गई। बादशाहने दैवगतिको इस विचित्रता से अति अाश्चर्य करके कहा “वहां. तो मृत्युबिहीन तोतरको थोड़े ही समय में वैसे तौल संकट से बचाया और यहां मृत्युवश चिड़ियाको इस प्रकार भालेमें पिरोकर मारा।" जलवायु और.. स्थलको उत्तमता देखकर यहां सौ दो दिन बादशाहने विश्वास- किया।

रावत सगरके मनसब पर इब्राहीमखां फोरोजजंगको प्रार्थनासे पांच सदी जात और एक हजार सवारको वृद्धि हुई।

६ (साध बदी ४) को कूच हुआ। बादशाह डेढ़ पाव चार कोम चलकर चांदाके घाटेसे गांव अमजार में पहुंचा। यह घाटा हरे भरे वृक्षोंसे बहुत शोभायमान था। वहां तया अजमेरको सीमा ८४ कोस थी। अब इस गांवसे मालवेका सूबा लगता था। यहां नूरजहाने एक कुरीशा (पक्षी) बन्दूकसे मारा था। अबतक वैसा बड़ा और जुरंग कुरोशा बादशाहने नहीं देखा था तुलवाया तो १८ तोले ५ माशेका उतरा

सूबा मालवा।

बादशाह लिखता है--- "मालवा दूसरी इकलोममें है इसको ल- बाई विलायत “करने” (ग)के नौवेसे बांसवाड़ेको विलायत तस २४५ कोस और चौड़ाई चंदेरीसे नंदखार परगनेतक २३० कोसको है। इसके पूर्वने बांधोंको विलायत उत्तरमें नरवरका किला दक्षिण ब- गलाना और पश्चिममें गुजरात तथा अजमेरके सूबेहैं। यह बहुत सजल विलायत है जलवायु अच्छा है नहरों नदियों और झरनोंके सिवा . इसमें पांच बड़े दरिया बहते हैं-१ गोदावरी २.भीमा ३ कालो-

सिन्ध ४ नोरा (बेतवा) ५ नर्वदा। यहां वायु समभाव रहता है भूमि

२४३
संवत् १६७३।

पान पड़ोजने कुछ अंची है। दासको बैलें एका वर्षमें दोबाद पाली -दा बार जौनका संज्ञान्ति लगनेक समय और दूसरे सिंह संक्रान्तिक पार। परन्तु पहजो रतुया अंगूर अधिक मोठा है। मालवेको जमा चौबीस करोड़ सात लाख दामकी है और शान पड़ने पर नौ हजार तीन सौ काई सवार चार लाख सत्तर हजार तीन सौ पैदल और एक सौ हाथी इस सूबेसे निकलते हैं।

८ (माघ वदी ५) को ४ कोस अढ़ाई पान रास्ता काटवार बादशाह गांव खैराबादके पास उतरा। फिर तीन कोसतका शिकार खेलता हुआ गांव सिधारेमें पहुंचा और माध बदौ ८ को वहीं रहा।

१२ (नाव बदौ ८) को गांव बछयाडौमें ठहरा। यहां राना अमरसिंहक भेजे हुए कई टोकरे शंजीर पहुंचे। बादशाह लिखता है-“सच तो यह है कि अच्छा मेवा है। अबतक मैंने हिन्दुख्यानके अंजीर ऐसे सरस नहीं देखे थे परन्तु थोड़े खाने चाहिये बहुत खानेमें हानि है।"

१४ (माघ वदी ११) को कूच हुआ। डेढ़पाव चार कोस चलकर गांव बनवलीमें पड़ाव पड़ा। राजाने जो उसप्रान्तके बड़े जमीन्दारों मेंसे था दो हाथी बादशाहके नजरको भेजे थे वह यहां देखे गये और यहीं हिरातके खरबूजे भी आये। पचास ऊंट भरकर खाज- पालमने भी मेजे थे। पिछले वर्षों में कभी पूतने अधिक खरबूजे नहीं आये थे। एक थालमें कई प्रकारके वे लगकार ऑये जैसे-

हिरात. बदहशां और काबुलके खरबूजे।"

समरकन्द और बदखशांके अंगूर।

समरकन्द, बदहाशा, कशमीर, काबुल और जलालाबादके सेब।

'अनन्नास जो फरक देशके टापुओंका मेवा है और आगरेमें उनकी पौद लगाई गई थी। हरसाल कई हजार वहाक सरकारी बागों में फलता है। २४४ । जहांगीरनामा। कोला जो नारगोस छोटा, बहुत मोठा और बङ्गालमें अच्छा होता है।" ..... . . .... .. बादशाह लिखता है-"इन न्यामतोंका शुक्र मैं किस जबानसे अदा करू। मेरे बापको मेवेका बहुत शौक था खासकरके खरबूजे अनार और अंगूरका। . उनके समयमें हिरातको उत्तम खरबूजे यज्दके अनार, जो जगत प्रसिद्ध हैं और समरकन्दके अंगूर हिन्दु- स्थानमें नहीं आये थे। यह मेवे देखकर अफसोस होता है, कि उस समयमें आते तो वह भी इनका स्वाद लेते।" . 1. :१६ (माधं बदौ १३१४) को कूच होकर डेढ़ पाव चार कोस पर गांव गिरीमें बादशाहको सवारी ठहरी। यहां बादशाहने बंदूकसे एक शेरबबर मारा। इस सिंहको वीरता बहुत. मानी जाती है इसलिये बादशाहने.उसका पेट चिरवाकर देखा। और सब पशुओंका पित्ता तो कलेजेके बाहर होता है पर इसका कलेजेके भीतर या इससे उसने अनुमान किया कि इसको वीरता इसी कारणसे होती है।

१८ (माघ सुदी १) को २॥ कोस पर गांव अमरियामें डेरा

हुआ दूसरे दिन बादशाह शिकारको गया तो दो कोस पर एक गांव बहुत सुन्दर और सुथरा मिला। एक बागमें आमके एक सौ पेड़ इतने बड़े और डहडहे थे कि वैसे कम देखे गये थे उसी बागमें एक बड़ भी बहुतही बड़ा था । बादशाहने उसको नपवाया तो वह जमोनसे ७४ गज ऊंचा और १७५॥ गज चौड़ा निकला। तनेकी गोलाई:४४॥ गजकी थी। ___एतमादुद्दौलासे परदा न करनेका हुक्म। २० (माघ युदौ ३) को कूच और ४ को मुकाम हुआ। एत- मादुद्दौलाके घरमें खाजा खिजरका उत्सव था। बादशाह भी वहां गया और खाना खाकर एक पहर रात गये लौट आया। एतमा- दुद्दौलासे कुछ भेद भाव नहीं रहा था। इसलिये बादशाहने बेगमों को उनसे मुंह न छिपानेकी आज्ञा देकर उसकी और प्रतिष्ठा बढ़ाई। संवत् १६७३। २४५ reamworrrrrrrmmmmmmmmmmmmmmmmm दुधारिया ! २२ (माव मुदी ३) को तीन कोत आध पाव चलकर बाद. आह नवलखेडीमें ठहरा। २३(७) को पांच कोस चलकर कामि- अखड़े में उतरा। एक सफेद जानवर मारा जिसके सिर पर चार सींग थे। दो तो आंखोंके पिछले कोयोंके पास दो दो उनल ऊंचे थे। बाकी दो जो पहलेसे चार उङ्गल पीछेको थे चार चार ङ्गल जंचे थे। हिन्दुस्थानी इसको दुधारिया कहते हैं। नरके चार सींग होते हैं मादाके सींग नहीं होते। ___ लोग कहते थे कि इसके पित्ता नहीं होता। बादशाहने चिरवा कर देखा तो पित्ता या। लोगोंका कहना झूठ निकला। कुलोचहां। २५ (माघ सुदी ८) को बादशाहने कुलीचखांके भतीजे मालजू को दो हजारो जात दो हजार सवारका मनसब और कुलोचखां का खिताब देकर अवधसे जहां उसको जागीर थी बङ्गालमें भेज दिया। ____२६ (माघ सुदी ) को सवारी ४॥ कोस चलकर काजियोंके गांवमें उतरी जो उज्ज नो पास था। यहां बहुतसे वृक्ष आमोंके बौराये हुए थे और डेरा नदौके तट पर बहुत सुन्दरतासे लगाया गया था। पहाड़ जालौरीको प्राणदण्ड । गजनीखांका वेटा पहाड़ इस स्थान पर मारा गया। बादशाह लिखता है-“इस कुपात्रको मैंने उसके बापके मरे पछि कपाकरके जालौरका किला और इलाका जो इसके बाप दादाका संस्थान था इनायत किया था। यह बालक था। इसकी माता इसे कई बुराइयोंसे बचानेको चेष्टा करती थी। इससे इस कलौने एक रात कई नौकरी के साथ अपनी जननीके घरमें जाकर उसे अपने इथिमे मारा। यह खबर जब मुझे मिली तो मैंने उसे बुलाया और अपराध साबित होने पर प्रापदण्डका हुका दिया। .

खजरका पेड़।

यहां. बादशाहने एक विचित्र खजूरका पेड़ देखा। जड़में उसका तना एक था। ६ गज ऊपर जाकर वह दोहरा होगया था। एक तरफ दस गज ऊंचा था दूसरी तरफ ॥ गज। बीच में ४॥ गजका अन्तर था। जमीनसे फल पत्तों तक एक तनेको ऊंचाई १६ गज और दूसरेको १५॥ गज यो। पत्तोंसे चोटी तक अढ़ाई गज अचाई थी। गोलाई पौने तीन गज थी। बादशाहने उसके नीचे तीन गज ऊंचा एक चबूतरा बनवाकर चित्रकारोंको आज्ञा . दी कि जहांगीरनाममें उसका चिन खेंचलें।

२७ (माघ सुदौ १०) को कूच होकर आधपाव दो कोस पर गांव हिन्दुवालमें सवारी ठहरौ।

• २८ (माघ सुदी १.१) को बादशाह दो कोस चलकर कालिया- दहमें ठहरा।

कालियादह।

कालियादह एक राजभवन है जो मालवेके सुलतान महसूद खिलजीके पोते. सुलतान गयासुद्दीनके वेटे सुलतान नासिरुद्दीनने उज्जैन में बनवाया था। : कहते हैं कि गरमी उसके मिजाजमें बहुत बढ़ गई थी। इससे पानी में रहा करता था और इस भवनको नदीमें बनवाकर पानीको नहरें हर तरफसे अन्दर लाया था। उचित स्थानों पर छोटे छोटे हौज बनवाये थे उनमें वह नहरें गिरती थीं।

बादशाह लिखता है, यह बहुत: सनोहर और आनन्दप्रद बिलासस्थान है। हिन्दुस्थानके उत्तमोत्तम विशाल भवनों मेंसे. एक भवन यह भी है। मैंने अपने आनेसे पहिले सिलावटीको भेजकर इस स्थानको सुधरवा दिया था। मैं इसकी शोभा पर मोहित होकर तीन दिन तक वहां ठहरा रहा।"

उज्जैन।

उज्जनके विषयमें बादशाह लिखता है-"उज्जैन पुराने शहरों २४७ संवत् १६७३। मह है हिन्दुओं पूज्य त्याजामौ रक यह भी है। राजा विक्रामा- नीत जिलजे सगोलका शोधन कराया था इमो नगर और देश में हुधा है। उस समय से अबतक कि हिजरी सन् १०२६ है और ११ वर्प मेरे राज्याभिषेकको हुए हैं १६७५ वर्ष बीते हैं। हिन्दु- न्यानो ज्योतिषियोंका अाधार उसो शोधन पर है। सपरा नदी। यह नगर नपरा नदी पर बसा है हिन्दुओं का ऐसा विश्वास है कि माल मरमें एक बार जिसका कोई दिन निश्चित नहीं है इस नदीका पालो दूध होजाता है। मेरे पिताके तमयमें शेख अबुल- फजल न आई शाहमुरादको सम्हालके वास्ते यहां भेजा गया था। तब उसने इस शहरसे अर्जी लिखी थी कि बहुतमे हिन्दू मुसलमानी ने शाक्षी दी है कि मेरे आजैसे पहिले एक रातको यह पानी दूध होगया था। उस रानिमें जिन लोगोंने उस पानीको भरा था तड़के उनके घड़ों में दूध था, परन्तु मेरी बुद्धि इस बातको नहीं मानती है।" ___जदरूप सन्चासी। बादशाह लिखता है-“२२ असफन्दार (माव सुदी १५) को नाव बैठकर मैंने कालियादहसे प्रयाण किया। यह बात अनेक बाद सुनाई गई थी कि जदरूप नाम एक तपस्वी सन्यासी कई वर्षों से उज्ज नसे कुछ दूर जङ्गलमें अगवन् भजन करता है। मुझे उसके मत्सङ्गको बड़ी इच्छा थी। जब मैं प्रागरे में था तो चाहता था कि उसको बुलाकर मिलूं परन्तु उनकी तकलीफामा विचार करके नहीं बुलाया था। अब उज्ज न पहुंचकर नावसे उतरकर आधपाव कोस. पैदल उसके देखनेको गया। वह एक गुफामें रहता है जो एक गज लम्बी दस गज चौड़ी एक टेकरीम खुदी हुई है। पहला हार उसमें जानेको महराबके आकारका है। यहांसे उस गढ़े तक किं जिसमें वह बैठता है दो गज पांच गिरह लम्बाई और सवा ग्यारह गिरह चौड़ाई है. और ऊंचाई धरतीसे छत तक एक गज २४८ जहांगीरनामा। तीन गिरह है। जो सुरङ्ग उस खोहमें जाती है वह साढ़े पांच गिरह लम्बी और साढ़े तीन गिरह.चौड़ी है। उसमें एक दुबला पतला पुरुष भी बड़े परिश्रमसे प्रवेश कर सकता है और उसकी लम्बाई चौड़ाई भी इसी प्रमाणको होगी। न उसमें चटाई है न कोई घासका बिल्लौना है। वह अकेला उसो अन्धेरै, गढ़ेमें रहता है। निपट नङ्गा होकर भी जाड़े और, शीतल वायुमें कभी सिवा एक लंगोटीके और कोई कपड़ा नहीं रखता। न आग जलाता है जैसा कि मौलवी रूमने किसी एक तपस्वीका वाक्य लिखा है- .. 'हमारा बस्त्र दिनमें धूप है, सनि बिछौना और चान्दनी ओढ़ना है।' वही गति इसकी भी है। इस विश्रामस्थानके पासही पानी बहता है वह उसमें नित्य दोबार जाकर नहाता है और एकबार बस्तीमें आकर सात ब्राह्मणों के घरोंमेंसे जो उसने अङ्गीकार कर रखे हैं तीन घरोंसे पांच ग्रास भोजनके (जो उन्होंने अपने वास्ते बनाया हो) हथेलीपर लेकर बिना चबाये और स्वाद लियेही निगल जाता है। यह ब्राह्मण भी एहस्थ हैं और उसके भक्त हैं पर इसके साथ यह कई नियम भी हैं कि उन तीन घरों में शोक और सूतक न लगा हो न कोई स्त्री रजस्वला हुई हो। उसको यही जीवनवृत्ति है। वह लोगोसे नहीं मिलना चाहता है परन्तु बहुत बिख्यात होजानेसे लोग आपही. उसके दर्शनको आते हैं। बुद्दिसे शून्य नहीं है वेदान्तविद्यामें निपुण है। "मैं छः घड़ी तक उसके पामारहा उसने अच्छी अच्छी बातें कहीं जिनका मुझ पर बड़ा प्रभाव हुआ और उप्तको भी मेरा मिलना अच्छा लगा। मेरे पिता भी जबकि वह आसेग्गढ़ और खानदेश जीतकर आगरेको लौटे थे. उससे इसी जगह पर मिले थे और उसे सदा याद किया करते थे।" . ब्राह्मणों को वर्णव्यवस्था। ... हिन्दुस्थानके विद्वानोंने हिन्दुओं में उत्तम वर्ण वाणके जीवन के चार आश्रम नियतं किये हैं। ब्राह्मणोंके घर में जो, बालक जन्म मंवत १६०३। a n ...AAA- - - - - - - - arrrrrrrrr. n-crmon लेता है उसको सात वर्ष तक ब्राह्मण नहीं कहते न कोई बन्धन उनके वाते है। जन अाठवां वर्ष लगता है तो एक सभा रचकर ब्राह्मणों को बुलाते हैं जो मन पढ़कर सुजको सवादो गज लम्बी 'एक रस्सीम तीन गांठें अपने पूज्य तीन देवताओंके जामको लगाते हैं और उस लड़केको कटिमें बांधते हैं। फिर कच्चे सूतका जनज बटकर उसके दहने कन्धेर्मे बधौकी भांति डालते हैं और एक गजसे कुछ अधिक लम्बी लकड़ी और एक कमण्डल आत्मरक्षा और पानी पौने लिये उसके हाथमें देकर उसे किसी विद्वान ब्राह्मणको मौंप देते हैं। वह बारह वर्ष तक उसके घरमें रहकर वेद पढ़ता है। उस दिनसे वह ब्राह्मण कहलाता है उसका यह कर्तव्य है कि भूलकर भी विषयवासनामें न पड़े। जब आधा दिन बीत जावे तो किमी दूमरे ब्राह्मणके घर में जाकर जो कुछ भिक्षा मिले गुरुके पास ले आवे और उसकी आज्ञासे (आप भी) भक्षण करे और सिवा एक लङ्गोटौ और दो तीन गज गजौके और कुछ कपड़ा अपने पास न रखे। इस अवस्थाको ब्रह्मचर्य अर्थात् वेदपाठ कहते हैं। इसके पीछे गुरु और पिताको आज्ञासे विवाह करे और जबतक पुत्र न हो पांचों इन्द्रियोंका सुख भोगे। · पुत्र न होनेको दशामें ४८ वर्ष की उमर तक पांचों इन्द्रियोंके राख भोगनेका निषेध नहीं है। इस दशाको ग्रहस्थाश्रम कहते हैं। इसके पीछे भाई बन्धु इष्ट मित्र तथा भोग विलासको छोड़कर.घरसे निकल जाना और जङ्गलमें रहना पड़ता है. इसका नाम. वाणप्रस्था है। हिन्दुओंमें यह भी विधान है कि धर्मका कोई काम. बिना स्त्रीके जिसको अर्द्धांगिनी बोलते हैं सिद्ध नहीं होता है और, वाणप्रस्थाश्रमामें भी कई कृत्य: करने पड़ते हैं इसलिये स्त्रीको साथ लेजाना आवश्यक है। पर वह गर्भवती हो तो घर रहे। जब बालक जन्नो और पांच वर्षका होजावे तो उसे बड़े पुत्र या कुटम्बियोको सौंपकर सपनौक वाणप्रस्थमें होजावे और ऐसाही स्त्रोके रजखला होनेपरभी करे जब तक कि वह पवित्र न होजावे। वाणग्रस्थ हुए पीछे स्त्रीका सङ्ग न २५० जहांगीरनामा। करे और रातको अलग सोवे इस प्रकार बारह वर्ष जंगल में रहे और कन्द मूल खाकर उदर पूर्ण करे। जनेऊ पहने रहे और अग्निहोत्र भी करे, नख और दाढ़ी मूछ तथा मस्तक के बाल लेनेमें वृथा समय न खोवे। जब इस आश्रमको भी अवधि ऊपर लिखे विधानसे पूरो होजावे तो फिर अपने घरमें शवे और खौको बेटों वा भाई बन्धुओंके पास छोड़कर सतगुरुको सेवामें जावे और उसके आगे जनेऊ और जटा आदिको आगमें जलाकर कहे कि मैंने सब बंधन और जप तप अपने मनसे अलग कर दिये। ऐसा करके फिर कोई वासना चिंत्तमें न रखे सदा परमेश्वरके ध्यानमें लगा रहे और जो किमी विद्याकी भी बात करे तो वह भी वेदान्तविद्याकीही हो जिसका तात्पर्य “बाबां फुगानी" ने इस प्रकार कहा है। . . . . . . . . . ___इस घरमें एकही दीपक है कि जिसके प्रकाशसे जिधर देखता हूं उधरही एक समाज बनाया हुआ है।' और इस दशाको सर्वविनाश और उसके खामोको सर्वविनाशी कहते हैं। .. . ... ... जदरूपके मिलापके पीछे मैं हाथै पर चढ़कर उज्जैनके बीचमें से निकला और साढ़े तीन हजार रुपये दायें बायें लुटाये। फिर . संवा कोस चलकर दाऊदखेड़े में जहां लशकर पड़ा था उतरा। . ३ (फागुन बदौ १) को मुकामका दिन था। फिर जदरूपसे मिलनेकी इच्छा हुई। दोपहर पीछे उसके दर्शनंको गया और ६ धड़ी तक उसके सत्संगसे अपने चित्तको प्रसन्न करता रहा। इस दिन भी अच्छो अच्छो बातें हुई। 'संध्या समय राजभवनमें लौट आया। . . ... ... .. .. :: ... .. . . . . . . आगेको कूच। . फागुन बदौ ३ को बादशाह सवातीज कोस चलकर गांव जराव के पास बाग परानिया में पहुंचा। यह पड़ाव भी बहुत सुरग्य और हरा भरा था।" . Horror संवत् १६७३। २५१ wwra.mm मागुन नदौ ३ को साढ़े तीन कोन पर देपालपुरमें भेरिये तालाब गरी हुए। यह उजला और सरप्त रयान था इसलिये वादशाह चार दिन तका यही रहकर जलजन्तुषोंका शिकार खेलता रहा। वहा अहमदनगरले बढ़िया अंगूर आये जो वड़ाई में तो कावुलने पड़िया अंगूरों को नहीं पहुंचते थे परन्तु उसमें उनसे वाम न थे। एक बड़ा वटवृक्ष। ११ (पागुन वदी १०) को बूच होकर सवातीन कोस पर दौल- तामाटो परगजेने डेरे हुए। ११ को मुकाम रहा। बादशाह शिक्षारको गया। गांव शेखोपुरेको सीमामें उसने एक बटलक्ष देखा जो बहुत ही बड़ा था। मोटाई १८॥ गज और ऊंचाई जड़मे डालियोंगो चोटी तक १२८। गजको घो। शाखाएं जो उनमें पाटी थीं उनका पोसाय २० ३॥ गजमें था। उनमेंसे एक शाखा जो हाथी दांतो आकारमें थी चालीस गज लम्बी थी। अकबर बादशाह मन इधर होकर निकला था तो उसने एका जड़के डालेमें सवा तीन माजके ऊपर अपना पञ्जा स्मृतिके वास्ते खुदवा दिया था। अब इस जान्दशाहने भी दूसरी जड़वो शाखामें ८ गजको ऊपर अपनी हथेली मा चिन्ह खुदवा दिया और चिरस्यायो रहनेके लिये दोनों पक्षीको मकराने पर भी खुदवाकर उस बड़की जड़में लगा देनेका हुन्न फरमाया। फिर उसके नीचे एक सुन्दर चबूतरा बना देगेका हुक्म दिया। बादशाह जब युवराज था तो मौर जियाउद्दीन कजनीनी (मुस्तफाखां) से मालदह का परगना देने की प्रतिज्ञा को थो अब इस स्थान पर उसका पालतमगा कर दिया। केशव मारू कमालपुरा। यहांसे लशकर तो १३ (फागुन बदौ ११) को बालछमें गया. और बादशाह कुछ वेगमों. पारिषदों और निन्न सेवकों सहित बन ___* मालदह एक प्रसिद्ध परगना बंगालमें है जहां शाम बहुत विख्यात हैं। । लाल मोहरका पट्टा। २५२ जहांगीरनामा। बिहार और शिकारके लिये हासिलपुरको कूच करके गांव सांगोर में पहुंचा। वहांको हरियाली और आमोंकी छटाने उसको ऐसा मोहित किया कि तीन दिन तक वहीं रह गया। यह गांव केशो मारूसे छीनकर कमालखां किरावलको देदिया और फरमाया कि आजसे इसको कमालपुरा कहा करें। :: . . . .. शिवरात्वि। यहीं शिवरात्रि हुई। बहुतप्ते योगी जमा होगये थे। बाद- शाहने इस रात्निका विधान और विहान योगियोंका सत्संग किया। राजा मानका सारा जाना। __ राजा मानको वादशाहने कांगड़े पर भेजा था। जब लाहोरमें पहुंचा तो सुना कि संग्राम जो पञ्जाबके पहाड़ी राजोमसे था उसके राज्य में आकर कुछ विभाग उसका दबा बैठा है। ___राजा मान पहिले संग्राम पर चढ़कर गया। संग्राममें उससे लड़नेको शक्ति न थी। इसलिये उसके परगनोको छोड़कर बिकट पहाड़ोंमें जाछिपा । मान अभिमानसे आगे पीछेका विचार न करके उसकी तलाशमें गया और थोड़ेसे सैनिकोंसे उस पर जापहुंचा। वह भी बच निकलनेका मार्ग न पाकर लड़नेको आया। दैवसंयोग से एक पत्थर राजा मानके लगा जिससे उसके प्राण निकल गये। उसके साथी बहुतसे तो मारे गये और जो बाकी बचे वह घोड़े और हथियार छोड़कर बड़े कष्टसे निकल भागे ! बादशाहका कूच ! १७ (फागुन बदौ ३०)को बादशाह सांगोरसे तीन कोस चलकर हासिलपुरमें पहुंचा जो मालवेका प्रसिद्ध परगना है। वहां अंगूर और आमके वृक्षोंकी सीमा न थी। नदियां बह रही थीं अंगूर विलायतकी ऋतुसे बिरुद्ध इस ऋतु में भी यहां इतने आए हुए थे कि एक “पाजी, भी जितने चाहता उतने मोल ले सकता था। अफीमको क्यारियां भी खूब खिली हुई थीं। जिन में रंग संवत् १६७३। २५२ गर्क फूल देखकर वादशाह प्रसन्न होगया। अपने रोजनामडे में यह बात लिखे बिना न रहा कि ऐसी शोमाका गांव बाम होता है। २१ (फागुन सुदी ४१५)को बादशाह हासिलपुरसे चलकर दो कूच में बड़े उर्दू (लशकर) से जामिला। सिंहका शिकार । । २२ (फागुन सुदी ६) रविवारको बादशाह लालचेसे कूच करके मांडीगढ़के नीचे एक तालाबके जपर ठहरा। शिकारियों ने आकर तीन कोस पर एक सिंहके होनेको खबर दी। बादशाह लिखता है कि मैं रविवार और गुरुवारको बन्दूँकका शिकार नहीं करता हूं तो भी वह सोचकर कि सिंह हिंसक जन्तुं है मारनाडी चाहिये, उसके ऊपर गया। वह एक वृक्षको छायामें बैठा था। मैंने हाथी पर से उसके अधखुले मुंहको ताककर बन्दूक मारी। गोली उसके मुंहमें लगकर जबड़े और सिरमें बैठ गई और उसका कामं तमाम होगया। जो आदमी साथ थे उन्होने इसबातकी बहुतही खोज की कि गोली काहां लगी। परन्तु कुछ पता न लगा. क्योंकि उसके अङ्ग प्रत्यङ्ग पर कहीं भी गोली लगनेका चिन्ह न धा। तब मैंने कहा कि इसके मुंहमें देखो। मुंह देखा तो गोली मुंहमें लगी थी और उसीसे वह मरा। .... भेड़ियेका पित्ता। इतने में मिरजा रुस्तम एक भेड़ियेको मारकर लाया। बाद- शाह यह देखना चाहता था कि उसका पित्ता भी सिंहकी भांति कलेजेके भितर होता है या बाहर जैसा कि और पशुओंला होता है। देखने से याया गया कि उसका पित्ता भी कलेजेके अन्दरही होता है। ...माडोंगढ़में प्रवेश। २३(फागुन सुदी 9) सोमवारको शुभ घड़ीमें बादशाह मांडोमें [ २२ 1 २५४ जहांगीरनामा। प्रवेश करनेको हाथी पर सवार हुआ और एक पहर ३ घड़ी दिन चढे वहां पहुंचकर उस राजभवन में उतरा जो उसके वास्ते बना था। डेढ़ हजार रुपये रास्ते में लुटाये। मांडी अजमरसे १५८ कोस है बादशाह चार महीने दो दिनमें ४६ कूच और ७८ विश्राम करके वहां पहुंचा था। इन ४६ कूचों में डेरा भी दैवयोग से सुरम्य स्थानों तालाबों नदियों और बड़ी बड़ी नहरोंके तट पर होता था जहां हरभरे वृक्ष, लहलहाते खेत और अफीमको फलीहुई क्यारियां मिलती थीं। कोई दिन शिकारसे खाली नहीं गया। बादशाह लिखता है कि मैं तमाम रास्ते हाथी और घोड़े पर बैठा बनविहार करता और शिकार खेलताहुआ आता था। यात्रामें कुछ कष्ट नहीं मालूम हुआ मानो एक बागसे दूसरे बागमें बदली होती थी। इन शिकारों में आसिफखां, मिरजा रुस्तम, मौरमोरां, अनौराय, हिदा- यतउल्लह, राजा सारंगदेव, सय्यद कासू और खवासखां हमेशा मेरी अर्दली में रहते थे। मांडोंक रानभवन। बादशाहने अजमेरसे अबदुलकरीम मामूरीको मांडोंमें अगले हाकिमौकी इमारतोंके सुधारके वास्ते भेजा था। उसने बादशाह के अजमेर में रहने तक कई पुराने मकानों की मरम्मत करादी थी और कई स्थान नये बनवाये थे। बादशाह लिखता है-"उस ने ऐसा निवासस्थान प्रस्तुत करदिया था कि उस समय किसी जगह वैसा सुन्दर और सुरम्य भवन न था। तीनलाख रुपये इसमें लगे थे। ऐसो बिशाल इमारत उन बड़े शहरों में होना चाहिये थी जो हमारे निवास करनेको योग्यता रखते हैं।" मांडीगढ़का विवरण। बादशाह लिखता है-"यह गढ़ एक पहाड़के ऊपर बना है। इसका घेरा दस कोस नापा गया। बरसातके दिनों में इस गढ़ के समान कोई स्थान स्वच्छवायु और सुन्दरतासे पूर्ण नहीं होता। यहां सिंह संक्रान्तिमें रातको ऐसौ ठण्ड पड़ती है कि रजाई ओढ़े २१५ संवत् १६७३। चिना निर्वाह नहीं होता। दिनको पंखेको आवश्यकता नहीं जड़ती। कहते हैं कि राजा विक्रमाजीतसे पहिले जयसिंहदेव जामक एक राजा था उसके समय में एक मनुष्य घास काटनेको जङ्गल गया। देवसंयोगसे उसका हंसवा सुनहरा होगया उसने मांडन नाम लुहारको दिखाया। लुहारने पहिलेसे सुन. रखा था कि इसदेश में पारस पत्थर है जिसके छूजानेसे लोहा और तांबा सोना होजाता है। इसलिये वह उस घसियारेके साथ उस जगह गया और उस पारसको ढूंढकर राजाके पास लाया। राजाने उससे बहुतमा सोना पैदा करके किला बनवाया और उस लुहारको प्रार्थनासे बहुतसे पत्यर अहरनले प्राकारको तरशवाकर कोटमें लगाये। अन्तावस्था में संसारको त्यागकर नर्मदाके निकट एक बड़ी सभा की ओर ब्रा- ह्मणोंको बुलाकर धनमाल दिया। पारस पत्थर अपने पुराने पुरो- हितको दिया परन्तु उसने अज्ञतासे तड़ककर नदी में फेंक दिया। पर जर यथार्थ बात जानो तो उमरमर पछताता और ढूंढ़ता रहा पर वह कहीं न मिला। यह कथा लिखो नहीं है जबानी सुनी गई है मेरी बुद्धि इसको खोकार नहीं करती मेरी समझमें यह गप्प जान पड़ती है। मालवेको बड़ी सरकारोंमेंसे एक सरकार मांडोंकी है। इसकी जमा १ करोड ३८ लाखको है। यह बहुत वर्षों तक इस देश के बादशाहोंका राजस्थान रहा है जिनकी बहुतसी इमारतें और निशानियां यहां हैं। उनमें कुछ टूटा फूटा नहीं है। २४ असफदार (फागुन सुदी ८) को मैं पिछले बादशाहोंके स्थान देखनेको सवार हुआ। पहिले सुलतान होशंग गौरीको बनाई हुई 'जामिमसजिद' में गया जिसकी इमारत बहुत बड़ी है। इसको बने हुए १८० वर्ष बीत गये हैं तोभी ऐसा मालूम होता है कि मानो आजही मेमार काम करके गये हैं। फिर मैं खिलजी हाकिमोंको कबरें देखने गया। इस लोक २५६ जहांगीरनामा और परलोकमें जिसका काला मुंह हुआ ऐसे नसीरुद्दीनकी कबर भी वहीं थी। यह प्रसिद्ध है कि इस कपूतने अपने ८० वर्षेके बूढ़े बाप सुलतान गयासुद्दौनको दोबार विष दिया जो उसने अपने भुजबन्दके जहरमोहरीसे मार दिया। तीसरी बार फिर उसने शर- बतमें जहर मिलाकर अपने हाथसे बापको दिया कि इसको पो जाना चाहिये। बापने जब उसका यह आग्रह उस काममें देखा तो जहरमोहरा भुजासे खोलकर उसके आगे डाल दिया और पर- मेश्वरको दण्डवत करके कहा कि हे प्रभो ! मैं ८० वर्षका होगया हूं मैने अपनी अवस्थाको बड़े ऐश्वर्य और सुखचैनमें बिताया है वैसा सुख किसौ बादशाशको प्राप्त नहीं हुआ. अब मेरा अन्तिम समय था पहुंचा है इसलिये यह प्रार्थना करता हूं कि नसौरको मेरे खूनमें न पकड़ना और मेरी मृत्युको खाभाविक मानकर उसको दण्ड न देना। यह कहकर उसने वह विष मिश्रित शरबत पौलिया और प्राण देदिया। .... ........::.:. . . . इस बातके कहनेसे कि मैंने अपने राजत्वकालको ऐसे सुख और बिलासमें व्यतीत किया है जो किसी बादशाहके भाग्यमें नहीं था उसका यह अभिप्राय था कि. जब वह ४८ वर्षको अवस्थामें सिंहा- सनारूढ़ हुआ तो अपने मित्रोंसे कहा कि मैंने बापके राज्यमें तीस वर्ष खूब लड़ाइयां की हैं और परिश्रम करनेमें कुछ कसर नहीं रखी है। अब मुंभे राज्य मिला है .मेरा विचार किसी मुल्कके लेनका नहीं है। मैं चाहता हूं कि शेषावस्था सुख चैनमें व्यतीत करूं। कहते हैं कि उसने पन्द्रह हजारं स्त्रियां अपने रनवासमें भरती करके उनका एक गांव बसा दिया था। उसमें हाकिम पेशकार काजौ कोतवाल आदि कर्मचारी जो एक नगरीके प्रवन्धके लिये श्रा- वश्यक होते हैं सब स्त्रियोंमेंसेही नियत किये थे। वह जहां कहीं सुन्दरदासी सुनता जबतक उसको हस्तगत न कर लेता निश्चिन्त न बैठता । उसने नानाप्रकारको विद्या और कलाएं उन दासियोंको संवत् १६७३। शिखादी थीं। उसको शिकारको बडी लत थी। एक शिकारखाना एनवाया था जिसमें अनेक प्रकारके पशु एकन किये थे। वह बहुधा त्रियों सहित वहां जाकर शिकार खेलता था। उप्तने जैमा स्थिर किया था उसीके अनुसार अपने राज्यशासनको ३२ वर्षों में कभी किसी शत्रुके ऊपर चढ़ाई नहीं की और अपने समयको बड़ी मौज में बिताया। वैसेही और कोई शत्न भी उसके जपर चढ़कर नहीं पाया। __ लोग कहते हैं कि जब शेरखां पठान अपने समयमें नसीरुद्दीन की कानन पर पहुंचा था तो स्वयं पशुप्रतति होने पर भी उसने नसीरको बुरी करनौके वास्ते अपने साथियोंको हुक्ल दिया कि इस कबरको लकड़ियोंसे पोटो। मैंने भी उसकी कबरपर पहुंच कर कई लातें मारी और मेरे, सेवकोंने भी मेरी आज्ञासे लातें लगाई। तोभी मुझे सन्तोष न हुआ और कहा कि कबरको खोदकर उसमें जो अपवित्र हड्डियां हों उनको आगमें जलादें। फिर यह विचारा कि आग तो परमेश्वरका रूप है उसके मलिन शरीरके जलानेसे यह दिव्य पदार्थ अपवित्न हो तो बड़े खेदको बात है और ऐसा न हो कि काहीं इस जलानेसे उसके परलोकके सन्तापमें कमी हो जावे। इसलिये मैंने यह हुक्म दिया कि इसकी गलोज अस्थियों और मट्टी में मिले हुए अवयवोंको नर्मदा नदी में डालदें। यह प्रसिद्ध है कि नसोल्द्दीनको प्रकृतिमें गर्मी बहुत भगे हुई थी इसलिये वह हमेशा पानी में रहा करता था। कहते हैं कि एक बार वह उन्मत्ततासें कालियांदहके टांकेमें जो बहुत गहरा था कूद पड़ा था । अन्तःपुरके सेवकोंने बड़े परिश्रमसे उसके बाल पकड़े और बाहर निकाला। . जब कुछ सुध आई और लोगोंने कहा कि ऐसी घटना हुई थी तो बाल. पकड़कर निकाले आनका नाम सुनतेही ऐसा क्रोधित हुआ कि उस सेवकके हाथ कटवा डाले जिसने बाल पकड़े थे। जहांगीरनामा। दूसरी बार.जब फिर वैसी दशा हुई तो क्रिसौने उसको पानीस निकालने का साहस नहीं किया और वह डूबकर मर गया। अब दैवकोपसे.११० वर्ष बाद उसको देहके गले हुए टुकड़े भी पानीमें मिल-गये।" . .. ... २८ (फागुन सुदी १२) को बादशाहने मांडौंको इमारतें तैयार करनेकी खुशो में अबदुलकरीमका मनसब आठ सदी जात और चारसौ सवारीका करके उसको मासूरखांकी पदवी दी। . ......... सुलतान खुर्रम और दक्षिणको व्यवस्था । जिस दिन बादशाहने मांडोंमें प्रवेश किया उसी दिन सुलतान खुर्रम भी बुरहानपुरमें जो खानदेशके सूबेका मुख्य स्थान है. पहुंचा था। कई दिन पीछे अफजलखां और रायरायांको अर्जियां पहुंची। वह खुर्रमके अजमेरसे प्रस्थान करने पर आदिलखांके प्रतिनिधिक साथ बिदाहुए थे। इन अर्जियोंमें लिखा था कि जब हमारे आनेकी खबर . आदिलखांको पहुंची तो सात कोस फरमान और निशान की अगवानीको आया। दरबारमें. सिजदा करनेको जो रौति बरती जाती है उसमें उसने जरा भी कसर न को। उसी मुलाकातमें बड़ी सेवा.. और अधीनता दिखाकर यह प्रतिज्ञा की कि जो देश बादशाही अधिकारसे निकल गये हैं उन सबको अभागे अम्बरसे छीनकर राजकीय अनुचरों के अधिकारमें कर दूंगा और यह भी स्वीकार किया कि एक उत्तम भेट बड़े ठाठसे अपने दूतोंके साथ दरबारमें भेजूंगा। यह कहकर राजदूतों को अति आदर सत्कारसे योग्य स्थानोंमें लेजाकर उतारा और उसी दिन अम्बरके पास आदमी भेजकर उचित सन्देसा उसको कहलाया। शिकारको संख्या ....... अजमेरसे मांडों पहुंचनेतक चार मासमें बादशाहने जो शिकार किया उसका व्यौरा यह हैं-............. ..

*बादशाहका आजपत्र फरमान कहलाता था और शाहजादों

का निशान। संवत १६७३। २५८ चीतन्ज सिंह २ हरन नीलगाय २७ खरगोश और लोमड़ी २३ ६ जलमुर्गी और दूसरे जन्तु १२०० बादशाह लिखता है कि जिन रातोंमें मैं पिछले शिकारों और उसकी रुचिकी बातें उन लोगोंसे कह रहा था जो राजसिंहासनके नीचे खड़े थे, तो मेरे मन में पाया कि क्या होश सम्हालनेसे अबतक अपने शिकारको संख्या हस्तगत कर सकता हूं। इसकी वास्ते मैने समाचार लिखनेवालों, ऋगयाध्यक्षों, शिकारियों और इस खातके कर्मचारियोंको हुक्म दिया कि निर्णय करके जितने जानवर शिकार हुए ही वह सब मुलाको सुनावें। मालूम हुआ कि मेरी १२ वर्ष की अवखासे जबकि हिजरी सन् ८८८ (संवत्१६३७) था इत्त वर्षके समाप्त होने तक जो ११वां वर्ष मेरे राज्याभिषेकका है और मेरो अवस्था ५० वर्षको चांद्रमासके लेखेसे हुई है २८५३२ जानवर मेरे सामने शिकार हुए हैं जिनमेंसे १७१६७ जानवर मैंने वन्टूक आदि शरनों इस प्रकार मार हैं- बनचर पशु २२०३ जिनका व्योरा यों है। सिंह रोछ, चौत, लोमड़ी; ऊदबिलाव. जरख नीलगाय ८८८ म्हा-जो गेंडेको जातिसे नीलगायके बराबर होता है ३५ हरन चिकार चौंतल पहाड़ी बकर आदि . १६७० मेढ़े और लालहरन" . ' भेड़िये . जंगली भैंसे सूर' : : जंग : . . . पहाड़ो मेढ़े अरगलौ ANA Pune . -NN. '२६० जहांगीरनामा। गोरखर . . . . ६

खरगोश ... .......:

... २३ ___. - पक्षी १३८६४ जिनका व्यौरा यों है। ...:. कबूतर , : . . . . . . . . १०३४८ खगड़झगड़ . :: ...:.:.:.३ . उकाब कलेवाज (चौल) ::, ... ... . .. .: २३ । । जुगद : ... ... . .. ... .. .. .. .३६. .. कौतान " ::...:..:: :.:. .........१२ मूशजोज ... ... ... . : . .: - ५ . चिड़ियां . . .. ..:, ४१ . फाखता:...::.:.:... . . . . :: ..: : : २५:: .. उल्ल . ... ... .... : ..३० मुर्गाबी कुजं करवानक आदि . . . . . . . .. :१:५० काग ... .. ३२७६ मगरमच्छ . . . . . . . . : ... १० बारहवां नौरोज। ३० असफंदार १२ रबीउलअब्बल १०३६ (फागुन सुदी १३) सोमवारको एक घड़ी दिनसे सूर्य मौन राशिसे मेखमें आया। बादशाह उसी शुभमुहर्तमें सिंहासन पर बैठा। आमखास दीवान- खाना कीमती कपड़ोंसे सजाया गया था : अधिकांश .अमीर और बड़े बड़े आदमी खुर्रमके पास दक्षिणमें थे तोभी ऐसौ. मजलिस जुड़ गई थी कि पिछले वर्षों से कुछ न्य नता नहीं रही थी मंगल- वारको भेंट आनन्दखांको देनेका हुक्म हुआ। ... इसी दिन शाह खुर्रमको अर्जी पहुंचौ कि लोग सफर और लड़ाई में हैं इसलिये वर्षभरको भेटें माफ होजाना चाहिये। इस पर वादशाहने हुक्म देदिया कि इस नौरोजमें कोई कुछ भेट न करे। संवत् १६७३ । NA~- सवारुका जिनेव। बादशाह लिखता है-"तम्बाके अवगुण देखकर मैंने हुवाम दिया था कि कोई आदमी उमला लेवन न करे और मेरे भाई बाब्बासने भी उनको वुगइयोंको जानकर ईरानमें अनाही कर दी थी। परन्तु पलानालमको तम्बाकूका व्यमन था इसलिये ईशानको दूत यादगारअन्ली सुलतानने शाहसे प्रार्थना की कि यनान- आलम दम भर भौ तम्बाकू विना नहीं रह सकता है। शाहने उमको अब.जी पर पद्यमें हुकम लिखा-"जो दोस्तका दूत तम्बाकू येना चाहता है तो उसको दोस्तीम आज्ञा देता हूं।" ३ फरवरदीन (चैत्र वदी १) को बंगालेके दीवान इमैनबेगने मुजरा करके १२ हायो भेट किये और वहां के बखशी ताहिरने भी जिन पर कई कुसूरोने कारण बादशाहका कोप था २१ हाथी भेट दिये उनमेंसे १२ पसन्द होकर रख लिये गये। ४ (चैत्र बदौ २) को बादशाहने किले के शकर तालाब पर एक बड़ा सिंह जिसने १२ अहदियों और अरदलीवालोंको घायल किया था तीन गोलियों में मारा। ८ (चैत्र वदौ ७) को शाह खुर्रमको अर्जीसे खानजहांका मन- सव छः हजारो जात और छ: हजार सवारोंका होगया ऐसेही और भी कई अमीरोंके मनसब बढ़ाये गये। . ईरानका दूत । __११ (चैत्र बदौ ८) को ईरानका दूत हुसैनबेग तबरेजी जिसे शाहने गोल कँडेके हाकिमके पास भेजा था और जो कजलबाशों और फरंगियों में झगड़ा होनेके कारण समुद्रका मार्ग बन्द होनेसे वापिस न जासका था। गोलकुंडेके वकीलके.साथ बादशाहको सेवा में आया। दो घोड़े और कुछ कपड़े दक्षिण तथा गुजरातके उसने अट किये। १५ (चैत्न बदौ १३) को एक हजारो जातक बढ़ जानसे मिरजा जहांगीरनामा। राजा भावसिंहका मनसब पांच हजारो और तीन हजार सवारोंका होगया। ____ अनीरायके मनसबमें भी पांच सदी जात, और एक सौ सवार बढ़े जिससे वह डेढ़ हजारो जात और पांच सौ सवारोंका मनसब- दार होगया। १८ (चैत्र सुदौ ३) शनिवारको तीन घड़ी दिन रहे मेख संक्रांति लगी। बादशाहने फिर राजसिंहासन पर सुशोभित होकर उत्सव किया। . .. ... .. .. . . . . . . . . . . . . . कैदीका भागना।. . . . . . . . . जब शाह नवाजखाने अंबरको लड़ाई में हराया तो उसकी सेनाके बाईस सिपाही पकड़े आये थे। उनमेंसे एक जो एतकादखां को सौंपा गया था पहरेवालोंको गफलतसे भाग गया । बाद- शाहने जमादारको सजा देकर तीन महीनेसे एतकादखांकी ड्योढ़ी बन्द कर रखी थी। अब वह एतमादुद्दौलाको प्रार्थनासे मुजरा करनेको आने पाया। ' संबेदारों को बदली। बंगालेका हाल और कासिमखांका चलन ठीक नहीं सुना गया था और बिहारके 'सूबेदार इब्राहीमखां फतहगने अच्छा प्रवन्ध करके होरकों खान भी बादशाही अधिकारमें करदी थी इस लिये बादशाहने जहांगीरकुलोको उसको जागौर सूबे इलाहाबादसे विहारमें और इब्राहीमखांके बिहारसे बङ्गालमें जाने और कासिम खांके दरबारमें आनेके हुक्म लिखकर सजावलोंके हाथ भेज दिये। ' २१ (चैत्र सुदौ ५) को ईरानका एलची मुहम्मदरज्जाक बिदा हुआ। उसको साठ हजार दरब * जो तोस हजार रुपयेके थे मिले। एक लाख रुपयेकी सौगात जो दक्षिणके दुनियादारोंके भेजे हुए जड़ाऊ पदार्थों और उत्तम बस्वोस सज्जित कीगई थी इसके साथ शाह अब्बासके वास्ते भेजी गई। __अठन्नीका नाम दरब था। . .. संवत् १६७२। पहले शाहने एक बिल्लोरी ज्याला इस अभिप्रा दिल मेरै आई इसमें शराब पीकर उत्ते लौटादें तो बड़ा . बादशाहने दूतो मामने कई बार उसमें शराब पीकर उसको मा एकावी और ढकने सहित सौगातमें रख दिया था। यह दोनों चीजें नई बनी थीं। ढकनेके जपर मौनाका काम हुअा था। २१ (चैत्र सुदी ६) को बादशाहने एक सिंह बन्दूकसे मारा। २५ (चैत्र सुदी ) को एतमादुद्दौलाको फौजको हाजिरी दर्शन के झरोलेके मैदानमें हुई। दो हजार अच्छे घुड़सवार जिनमें बहुधा मुगल थे पांच सौ तौरन्दाज तोपची और चौदह हाथी थे। बखशियोने गिनती करदी बादशाहसे कहा कि सब सेना ठीक सजी हुई है। ___ चैत्र सुदौ १५ गुरुवारको मुकर्रबखांका भेजा हुआ एक हीरा जो २३ रत्तो था जौहरियोंने तीस हजार रुपयेका कूता। बादशाह ने पसन्द करके अंगूठीमें जड़वाया। नूरजहांका चार शेर मारना। २ उर्दीबहिश्त (बैशाख बदौ ६) को किरावलीने अर्ज कराई कि हमने चार शेर घेर रखे हैं। बादशाह दो पहर तीन बड़ी दिन चढ़े राजमहिषियों सहित शिकार खेलने गया। जब शेर दिखाई दिये तो नूरजहां बेगमने बादशाहसे अर्ज की कि आज्ञा हो तो मैं इन शेरोंको बन्दूकसे मारू। बादशाहने कह दिया कि मारो। बेगम ने दोको बन्दूकसे और दोको दो दो तौरोंसे मारकर गिरा दिया। बादशाह लिखता है-"अबतक ऐसौ निशानेबाजी नहीं देखी गई थी कि हाथोके ऊपर अम्मारी से छः तीर मारे जावें जिनमेंसे एक भी खाली न जावे और ४ सिंह हिलने चलने और उछलनेका अव- काश भी न पावें। मैंने इससे प्रसन्न होकर एक हजार मोहरें नूरजहांके ऊपरसे न्यौछावर की और एक लाख रुपयके .होरीको पहुंचियां उसे दीं। जहांगीरनामा। ५ खुरदाद (जेठ बदी५) को मिरजाहुसैन, केशवकी जगह गुज- रातका दीवान हुआ। ....... ..... . .. . . नाई गवैया। . . . . . • उस्ताद मुहम्मद नाई गवैयेको सुलतान खुरमने बादशाहके.पास भेजा था बादशाहने कई मजलिसों में उसके बाज सुने। उसने बादशाहके नामकी रागनियां गजल्लमें बनाई थीं। वह भी गाई। १२ (जेठ बदी १३) को बादशाहने उसे रुपयों में तुलवाया। पैंसठसौ रुपये और हौदे सहित हाथी देकर फरमाया कि हाथी. पर बैठकर रुपये दायें बायें रखले और लुटाता हुआ अपने डेरेको चला जा। . . मुल्ला असद कहानी.कहनेवाला। . . मुल्ला असद कहानी कहनेवाला जो मिरजागाजीके नौकरों में से था इन्हीं दिनों में ठढे से बादशाहके पास आया। उसकी मोठी कहानियों और मीठी बातों में बादशाहका मन लग गया। इसलिये उसे महजूजखांका खिताब देकर एक हजार रुपये हाथी घोड़ा पालको और सिरोपाव दिया। कई दिन पीछे उसे रुपयों में तोलकर दो सदी जात और बोस सवारका मनसब भी बखशा और फरमाया, कि हमेशा "गप”को मजलिसमें हाजिर रहा करे । वह तोलमें चार हजार चार, सौ रुपये भरका हुआ। . .. ... . . ___... .महासिंहको मृत्य। . . . . .:: २४ (जेठ.सुदी १०) को खबर पहुंचौ कि राजा मानसिंहका पोता महासिंह जो बड़े अमौरीमसे था बालापुर बराड़में शराब ज्यादा पौनेसे मर गया। उसका बाप भी ३२ वर्षको अवस्था होमें अधिक मद्य पान. करनेसे मरा था। . . . . . : ..: श्रामीको परीक्षा। .:: - . .. ___इन दिनों में बहुतसे आम दक्षिण गुजरात बुरहानपुर और मालवेसे बादशाही मेवेखनिमें आये थे। बादशाह लिखता है- “ये सब देश अच्छे आमों के वास्ते प्रमिद्ध हैं मिठास, बडापनः और रेशा कम निकलने में थोड़े ही स्थानोंके आम इन देशोंके आमीको संवत् १६७४। तुलना कर सकते हैं। कई बार अंजे अपने सामने यहांके आम सुलवाये तो सवा सवा सेरसे अधिक हुए। पर सच यह है कि रस बाद मिठास और कम गुठियल होने में अपरामऊ जिले आगरेके माम यहांको और हिन्दुस्थानके दूसरे स्थानोंके आमोसे बढ़कर हैं। नादिरो (सदरी)। २८ (जेठ सुदौ १३) को खासको नादिरी जिसके समान जरीको दूसरी नादिरी बादशाही सरकारमें नहीं मिली थी बादशाहने खुरमके वास्ते भेजी और लेजानेवालेको जबानी कहलाया कि इस नादिरी में यह विशेषता है कि मैं दक्षिणदेश जीतनेके विचारमें अजमेरसे कूच करने के दिन इसको पहिने हुए था। इमो दिन बादशाहने अपनी पगड़ी वैसौको वैसी बंधी हुई एत- मादुद्दौलाको पहिनाकर भारी इज्जत दी। तीन पन्ने, एक जड़ाज उर्बसौ और एक अंगूठी याकूती महा- बतखांको भेजी हुई बादशाहको नजर हुई। यह सब माल सात हजार त्पका था। ___ इत्ती दिन वर्षा हुई। मांडोंमें जल कम होजानेमे प्रजा टुःखित यो। बादशाहने ईश्वर से प्रार्थना की। उसकी बापासे इतना जल बरला कि नदी नाले तालाब सब.मर गये । __१ तौर (आषाढ़ बदौ ४) को राणाके भेजे हुए दो घोड़े गुज- रातो कपड़े और कई घड़े अचार तथा सुरब्ब के बादशाहको सेवा में पहुंचे। . . .. ३ (आषाढ़ बदौ ६) को अबदुल्लतोफके पकड़े जानेको खबर आई जो गुजरातके पिछले हाकिमोको सन्तानमेंसे था और वहां सदा उपद्रव करता रहता था। बादशाइने उसके पकड़े जानेसे प्रजाको सुखी होता देखकर परमेश्वरका धन्यवाद करके मुकरबलां को लिखा कि उसको किसी मनसबदारके साथ राजहारमें अजदे। .. मांडीको तलहटीके बहुधा भूपति भेटें लेकर आये। . . [ २३ ] जहांगीरनामा। ८ (आषाढ़ बदी ११) को बादशाहने राजा राजसिंह कछवाहे के बेटे रामदासको राजतिलक देकर राजाको पदवी दी। कन्धारके हाकिम बहादुरखांने नौ घोड़े, नौ थान कपड़ोंके और दो चमड़े काली लोमड़ियोंके भेटमें भेजे। . इसी दिन गढ़ेके राजा पेमनारायणने आकर सात हाथी भेट किये। १३ (आषाढ़ सुदी २) को गुलाब छिड़कनेका त्यौहार हुआ। . १४ (आषाढ़ सुदी ३) को बांसवाड़ेके रावल उदयसिंहो बेटे रावल समरसिंहने आकर तीस हजार रुपये तीन हाथी एक जड़ाज पानदान और एक जड़ाऊ-कमरपट्टा भेट किया। . १५ (आषाढ़ सुदी ४) को बिहारके सूबेदार इब्राहीमखां फत- हजंगने ८ हीरे वहांको खानसे निकले हुए तथा वहांके जमीन्दार.. के संग्रह किये हुए भेजे । उनमें एक हीरा १४॥ टांकका था वह एक लाख रुपयेका आंका गया। दक्षिण में सफलता। २८ (सावन बदौ २) गुरुवारको बारहका सैयद अबदुलह सुल- तान खुर्रमको अर्जी लेकर आया जिसमें लिखा था कि दक्षिणके सब दुनियादार अधीन होगये। अहमदनगर आदि किलोंको कुञ्जियां आगई। बादशाहने खुदाका शुक्र करके टोड़ेका परगना जिसकी उपज दो लाख रुपयेको थौ नूरजहां वेगमको दिया। क्योंकि यह बधाई उसके द्वारा उसके पास पहुंची थी। इससे २५ दिन पहले एक रातको बादशाहने दीवानहाफिजमें फाल देखी थी तो काम बन जानेकी बात निकली थी। बादशाह लिखता है- "मैंने बहुत कामों में दीवानहाफिजको देखा है। जो उसमें निकला वही हुआ। ___ दोपहर बाद बादशाह बेगमों सहित “हफ्तसंजर" महलको देखने गया संध्याको लौट आया। यह सतखण्डा प्रासाद सुलतान महमूद खिलजीका बनाया हुआ है। प्रत्येक खण्डमें चार चार ranA 'संवत् १६७४। झरोखे हैं। ५४॥ गज ऊंचा और ५० गज चौड़ा है। नौचेसे सातवें खण्ड तक १७९ सीढ़ियां हैं। बादशाहने आनेजानेमें चौदह सौ रुपये लुटाये। ३९ (सावन बदी ४।५) को बादशाहने सौस हजार रुपयेका एक लाल जो अपने सिर पर बांधा करता था सुलतान खुर्रम वास्ते भेजा। ५% अमरदाद (सांवन बदी १०) गुरुवारको बादशाह रनवास सहित नौलकुंडे के देखनेको गया जो मांडोगढ़में एक सुरम्य स्थान है। अकबर बादशाहके समयमें शाह मदाकखांने जब कि यह प्रान्त उसको जागीरमें था यहां एक मनोहर महल बनाया था बादशाह दो तीन बड़ी संत तक वहां ठहर कर राजभवनमें आगया । राण अमरसिंहको हाथो। ___७ (सावन बदौ १२) को आदिलखांके भेजे हुए हाथियों से एक मस्त हाथो बादशाहने राणा अमरसिंहके वास्ते भेजा।

... .. शिकार।

': ११ (सावन सुदी १) को वादशाह शिकारके वास्ते किलेसे उतरा था। परन्तु मेहा और कीचड़से रास्ता बन्द था इसलिये आद- मियों और जानवरों के सुखके विचारसे गुरुवारको बाहर रहकर शुक्रकी रातको लौट आया , ...: ... अति वर्षा । .......... इस बरसातमें इतना पानी बरसा कि बूढ़े बूढ़ोंने वैसी वर्षा न देखी थी। ४० दिन बादल घिरे रहे। सूर्य कभी कभी दिखाई दिया। आंधौ पानीके जोरसे बहुतसे नये पुराने मकान गिर गये। पहली रातको वा होते समय बिजली ऐसी कड़ककर गिरी कि बीस स्त्री पुरुष मरे। कई दृढ़ मकान टूट गये। आधे साधन तक जल वायुका जोर रहा। फिर धीरे धीरे कम होगया।

  • असलमें तारीख रह गई है परन्तु गुरुवार लिखा है। गुरु-

वारको ५ तारीख थी। जहांगीरनामा। . : मांडोंको हरियाली और फुलवार। . . .. . ___ बादशाह लिखता है-"हरयाली और बनस्पतिको बात क्या लिखी जाय सब पहाड़ और जंगल उप्तसे छिप गये हैं। मालूम नहीं कि पृथ्वी पर शीतल वायु और सुन्दर छटावाली कोई जगह मांडोंके समान हो। विशेषकर बरसातमें रातको रजाई ओढ़नी पड़ती है और दिन में पंखे या स्थान बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। इस विषयमें जितना लिखा जाय, उसको उत्तमताको देखते हुए थोड़ा है। यहां दो वस्तु एसो देखो गई जो हिन्दुस्थानमें मैंने कहीं नहीं देखी थीं। एक जङ्गलो केले जो इस किलेके पासके जंगनी में उगे हुए हैं, दूसरे समोले (खंजन) के घोंसले जिनका पता किसी चिड़ीमारने भी नहीं दिया था, जहां मैं रहता था वहीं उसका घोंसला था और दो बच्चे भी उसमें थे ! : ... . । .... . एतमादुद्दौलाको हाथो । .. ... .. .. १८ (सावन सुदी ८) को तीसरे पहर बादशाह वेगमों सहित शक्करतालाबके महल देखने गया जो पिछले पृथ्वीपतियोंके बनाये हुए हैं। रास्ते में जगजोत नाम एक खांसेका हाथी एतमादुद्दौलाको दिया। उसे पञ्जाबको सूवेदारी पहले मिल, गई थी पर हाथी नहीं मिला था जो सूबेदारको मिला करता था। . . . खास बादशाही कपड़े। .. .. . . जहांगीर लिखता है-"नीचे लिखे कईएक कपड़े मैंने शाही पोशाकमें दाखिल कर दिये थे और हुक्म देदिया था कि वैसे कपड़े बनवाकर कोई न पहने। केवल वही लोग उन कपड़ोंको पहनने पावें जिनेको मैं इनायत करू... ... .. १-दगला नादिरी यह कलां के ऊपर पहनां :जाता है। यह कमरसे नीचे जांघों तक लम्बा होता है। : इसके अस्तीने नहीं होती और इसका प्रांगा तुमसे बांधा जाता है। विलायतमें इसका नाम करदी था मैंने नादिरी रखा.... ... .

  • आचकन। संवत १६७४।

२-तूसी शालका जामा जिसे मेरे पिताने शाही लिबासमें दाखिल किया था। '३-पट्टको कबा, जिसके गले और आस्तीनों में चिकनका काम हो। इसको भी मेरे पिताने अपने लिये रखा था। __४-हाशियेदार कबा, जिसके पल्लों गले और आस्तोनों में मह- रमात मा के कपड़ोंकी धज्जियां काट काटकर सौगई हों। . ५--गुजराती अतलसको कवा। .. -रेशमी चौरे और पंटके, जो चान्दी और सोनेके लखावतून से बने हों। सवारोंकी तनखाइ। महाबतखांके कुछ सवारोंका महीना दोअस्या और तित्रस्याके नियमसे दक्षिणमें चाकरी देनेके गस्ते बढ़ाया गया था। वह काम उसमे नहीं बना इसलिये बादशाहने दीवानोंको हुक्म दिया कि तनखाहको बढ़तौके वह रुपये महाबतको जागौरसे काटलिये जावें । . . . उत्सव और दीपमालिका। ___२६ (भादों बदौ १६) गुरुवार १४ शाबानको शबबरात थी। बादशाहने नूरजहां बेगमके एक सहलमें जो बड़े बड़े तालाबोंके बीचमें था नूरजहांकी सजाई एक बड़ी मजलिसके लिये अमीरों और मुसाहिबोंको बुलाया। हुक्म दिया कि जिसे जो नशा पसन्द हो उसे वही दिया जावे। बहुत लोगोंने शराबके म्यालोंकी प्रार्थना की। बादशाहने फरमाया कि जो प्याले पियें वह अपने मनसब और दरजेसे बैठ जावें और उनके आगे नाना प्रकार के कबाब और - तूस खुरासानके एक शहरका नाम है। प्रमहरमातक दो अर्थ हैं एक पून्य स्त्रियां दूसरे पूज्य स्थान मक्के मदीने आदिमें बरता हुआ कपड़ा। ...

  • गुरुबारको भादी बदौ १ चण्ड पञ्चाङ्गसे. हमने लिखी है।

बादशाही पञ्चाङ्गसे तो इस दिन साधन सुदी १५ थी। । २७०. जहांगीरनामा। norma मेवे गज़क के वास्त.रजःदिये.जानें। बात होतेही तालाबों और मकानों पर चिराग और फानूस लगा दिये गये थे। बड़ी : सुन्दर दीपमालिका होगई थी। बादशाह.लिखता है. जबसे यह चाल चलो है कहीं ऐ.सी दीपमालिका, नहीं हुई होगी। सब, चिरागों और फानूमीका प्रतिबिम्ब पानी में पड़ने ऐसा प्रतीत होता था कि मानो सारा तालाब अग्निका एक मांगन बन गया है.। .. मजलिसः खूब खिली हुई थी। प्याले पौनेवालोंने अपनी रूचिसे अधिक प्याले पिये। तीन चार घड़ी रात जाने पर. मैंने सब लोगोंको विटा कारके रनवासको बुलाया और एक पहर रात तक इस सरस: स्थानमें मौज उडाई।" ____ गुरुवार और बुधवारके शुभाशुभ नाम... इस गुरुवारको कई विशेष बातें एकत्र होगई थी जैसे कि- एक तो मेरे राज्यसिंहासनारूढ़ होनेका दिन था। दूसते शब- वरात थी। तोसरे राखी थी। . . इसलिये मैंने इसका नाम मुबारकशंबा रखा और जैसा गुरुवार मेरे वास्ते शुभ हुआ वैसेही बुधवार अशुभ हुआ इससे उसका नामं कमशंचा रख दिया जिससे उता बार एथिवीमें न्य न रहे। __महासिंहके बेटे जयसिंहका आना। बादशाहने महासिंहके बेटे जयसिंहको बुलाया था वह इन्हीं दिनों में आया और हाथो नजर किया। यह बौस वर्षको अवस्था में था। । नीलकण्डको शोमा . . - २ शहरेवर गुरुवार (भादी बदौ ८) को बादशाह एक पहर तौन धड़ो दिनसे नीलकंडको गया वहांसे ईदगाहक टोलेपर आया। चम्या और दूसरे जङ्गली फूल खूब खिले हुए थे जिधर नजर पड़ती थो उधरही हरियाली और फुलवार दिखाई देती थोः। 'एक पहर रात गये. राजसवनमें आगया। .. :

  • मद्यपान के साथ साथ खानेको चटपटौ चीजें । .. संवत् १६७४..

लेको लिाई। .... बादशाह शुला करता था कि जागी केलेले एक प्रकारको मिठाई निकलती है जिसको लाधु और गरीव लोग खाया करते हैं। वादशाइने उसको खोज को तो पता लगा कि जहांले केला निशाता है वहां एक कड़ी गांठ बंधी हुई होती है जिसका स्वाद फाटेके समान फौका होता है लोग उसे खाकर उसके खाद से सन्तुष्ट होते हैं। ..पत्र पहुंचानेवाले कबूतर । बादशाह लिखता है-“पन: पहुंचानेवाले कबूतरोंके विषयमें भी बहुत कुछ सुजा गया था। अब्बासौ खलीफाओंके समय में , बगदादी कजूतवोंको जो नामाबर कहलाते थे और जङ्गली कबूतरोंले द्योढ़े होते थे यह काम सिखाया जाता था। मैंने कबू- तरबाजोंने कहा कि इन जङ्गली कबूतरोंको सौ सिखावें। उन्होंने कई जोड़ोंको ऐसी शिक्षादौ कि जब हम उनको मांडोंने उड़ाते ये तो बरसातमें दोपहर में बुरहानपुर पहुंचते थे और जो बादल नहीं होते तो बहुधा कबूतर एक पहर और कोई कोई तो चार घड़ोहीमें पहुँच जाते थे । ____ आदिलखांको पुत्र पदवी। - ३ (भादों बदौ १०) को शाह खुर्रमको अर्जी पहुंची कि अफजलखां रायरायां और आंदिलखांके दूत आये रत्नोंके जड़ाऊ पदार्थों और . हाथियोंको भेट लाये। वसो भेट भी नहीं आई थी। आदिलखांने अच्छी सेवाको 'और अपने बचनको पूरा किया अब उसके लिये पुत्न पदवी और वह कृपा होनी चाहिये जो अबतक नहीं हुई थी। बादशाहने शाह खुरसकी बात मान कर मुंशियोंको आदिलखांका अलकाब

  • सुना है कि जोधपुर और नागोर, श्री महाराजा बखतसिंह

जौ और विजयसिंहजीके हुक्मसे उपाध्या जातिके पुष्करना ब्राह्मण काबूतरोंसे यह काम लेते थे। २०२ नहांगीरनामा । सवाया करके पुत्रको उपमासे फरमान लिखने की आज्ञा दी और उसके सिर पर अपनी लेखनौसे लिखा-"तू शाह खुर्रमको प्रार्थना से हमारा पुत्र होकर जगतमें विख्यात हुआ। ... ४ (भादों बदी ११) को यह फरमान लिखाकर नकल' सहित खुर्रमके पास भेजा गया कि वह नकल देखकर असल आदिलखांके पास भेज दे। आसिफखांके डेरे पर जाना। " 2 गुरुवार (भादों बदौ ३०) को बादशाह वेगमों सहित आमिफ खांके डेरे पर गया जो एक स्वच्छ और सुहानी घाटी में था। उसके याम और भी कई घाटियां थीं जहां पानीके झरने थे और आम आदि हरे भरे वृक्षोंको छाया थी। दो तीन सौ केवड़े भी एक घाटौमें फूले हुए थे। यह दिन बड़ी प्रफुल्लतामें निकला। मद्य- पानकी मजलिस भी जड़ी। बादशाहने अमीरों और मुसाहिबों को प्याले दिये। आसिफखाने भेट दिखाई। उसमेंसे कुछ चीजें वादशाहने पसन्द करके लेली शेष फेर दीं। राजा पेमनारायणको मनसब। गढ़े के जमींदार राजा पेमनारायणको हजारौ जात और पांच सौ सवारीका मनसब मिला। और जागौरकी तनखाह भी उसीके वतनमें लगाई गई। राजा सूरजमलको प्रतिज्ञा। १२ (भादों सुदी ३) को खुर्रमको अर्जी पहुंचौ कि राजा बासू का बेटा सूरजमल जिसका राज्य कांगड़ेके पास है प्रातज्ञा करता है कि मैं एक वर्षके अन्दर कांगड़ेका किला बादशाहो अधिकारमें करां दंगा। शाहजादेने उसका प्रतिज्ञापत्र भी लिखाकर भेज दिया था। बादशाहने जवाबमें लिखा कि उसकी बातोंको समझकर उसे यहां भेज दो। वह अपने मनोरथों का साधन करके उस काम पर चला जावे। संवत् १६७४। २७३ ma- रोशनारा। इसी दिन रमजानको पहली तारीख और रविवार था। चार घड़ी ७ पल दिन चढ़े आसिफख की पुत्रीले खुर्रम के एक लड़की पैदा हुई जिसका नाम रोशनगारा रखा गया। जमीन्दार,जैतपुर पर चढ़ाई। जैतपुरका जमीन्दार मांडोंके पास रहने पर भी बादशाहको सेवामें नहीं आया था इसलिये बादशाहने फिदाईखांको कई मनसब- दारों और चार पांच सौ बन्दूकचियों सहित उसके देश पर धावा करनको आज्ञादी। - जयसिंहको मनमब'। - १६ (मादों सुदी ७) को राजा महासिंहके बेटे जयसिंहको जो - १२ वर्ष की अवस्था में था हजारो जात और पांचसौ सवारीका मनसब मिला। ... .":.: भोज भदौरिया. .. राजा विक्रमाजीत अंदौरियाके बेटे भोजने बापके मरे पीछे दक्षिणसे आकर मुजरा किया और एकसौ मोहरें भेट की। राजा कल्याण। -भादों सुदी ८ को अर्ज हुई कि राजा कल्याण उड़ीसासे आकर मुजरा करनेके विचारमें है। परन्तु उसको कुछ बुरी बातें बाद- शाहके सुनने में आई थीं इसलिये वह पुत्र सहित आसिफखांको उन वातोंका निर्णय करादेने के लिये सौंपा गया। ा चण्डू पञ्चाङ्गके अनुसार १: रमज़ान शनिको थी।

. तुज़ुक पृष्ठ १८१. में जसिंहको उमर बीस वर्षको और

यहां १२ वर्षको लिखी है दोनों में कौन, सही है इसका निर्णय प्राचीन जन्मपत्रियों के संग्रह में किया गया तो. जयसिंहका जन्म आषाढ़ बदी १ सं० १६६१ को होना पाया गया। इस लेखे से

उसको अवस्था बारह वर्षको ही थी। बीस वर्ष लिखना भूल है।

२७४
जहांगीरनामा।

जयसिंहको हाथी।

१८ (भादी सुदी १०) को बादशाहने जयसिंहको हाथो दिया।

केशव मारू।

२० (भादों सुदी ११) को केशव मारूका मनसब बढ़कर दो हजारो जात और बारह सौ सवारोंका होगया।

अहदाद पठान ।

२३ (भादों सुदी १४) को बादशाहने अहदाद पठानको रशीद- खांका खिताब और खासा. परम नरम दिया।

राजा कल्याणको हाथी।

राजा कल्याणसिंहकी ओरसे १८ हाथी नजर हुए जिनमेंसे सोलह तो बादशाहने निज गजशालामें भेजे और दो उसोको लौटा दिये।

जैतपुर पर चढ़ाई।

२५ (आश्विन बदौ २) को फिदाईखां सिरोपाव पाकर अपने भाई राहुलह और दूसरी मनसबदारों के साथ जैतपुरके जमीन्दारको दण्ड देनेको बिदा हुआ।

नर्मदाको जाना।

२८ (आश्विन बदौ ५) को बादशाह बेगमों सहित किलेसे उतर कर नर्मदाको देखने और शिकार खेलनेको गया। दो मजिलोंमें वहां पहुंचा। परन्तु मच्छरों और खटमलोंके मारे. एक रातसे अधिक न रह सका। दूसरे दिन तारापुरमें आगया और आखिन बदी ८ शुक्रवारको लौट आया।

राजा कल्याणको भेट।

राजा कल्याण श्रामिफखांकी तहकीकातमें, निर्दोष निकला. इसलिये २ महर (आश्विन बदौ १०) को उसका मुजरा' हुआ उसने इतने पदार्थ भेट किये।-

१ मोतियोंको एक लड़ निसमें ८० मोती थे।

२ लाल दो। नंवत् १६७४। २७५ ....... ३पमा लाल और दो मोतियोंको पहुंची। जवाहिरातना रक बड़ाज घोड़ा। जैतपुरले जीत। निदाईखांकी अर्जी पहुंची कि जैतपुरका जमींदार बादशाही कोजको सामने न ठहर सका माग गया। उसकी विलायत लुट गई। अब वह अपने कियेको पछताकर सेवाम उपस्थित हुआ चाहता है। रूहुलह उसके पीछे गया है। या तो उसको पकड़ कर दरगाहमें ले ग्रावेगा या नष्ट करदेगा। उसको त्रियां जो पड़ौलको जनींदारोंके यहां चली गई थीं पकड़ी जाचुकी हैं। मोखा बन्दरके अनार । ८ (आश्विन गुदी १) को खाजा निजाम १४ अनार मोखाबंदर के लाया जो चौदह दिनमें सूरत पहुंचे थे और आठ दिनमें वहांसे मांडोंमें आये थे। बादशाह लिखता है-"यह अनार ठट्टे के अनारों में बड़े हैं ठट्टे के अनारों में गुठली नहीं होती इनमें है। कोमल हैं रस उठेके अनारोंसे अधिक है।" जैतपुर। ८ (आश्विन मुदौ २) को समाचार मिला कि राहुलह एक गाँव में पहुंचकार और यह सुनकर कि जैतपुरवालोंको त्रियां और कुछ संबंधी यहां हैं वहां ठहर गया और गांव वालोंको बुलाया। वह हथियार खोलकर कुछ लोगों सहित एक गलीचे पर बैठा था कि एक घातकने उसके पीछे आकर बरछा मारा जो उसकी छातीके पार होगया। बरछेके खेंचतेही रूहुलहको रूह भी खिंच गई जो लोग वहां थे उन्होंने उस घातकको भी मार डाला। फिर सब हथियार बांधकर उस गांवमें गये ओर शत्रुओंको रखने के अपराधमें सबको घड़ी भरमें काट छांटकर स्त्रियों तथा चड़कियोंको पकड़ लाये। गांवमें आग लगादी जिससे राखको ढेरीके सिवा और कुछ न रहा। फिर रूहुलहको लाश लेकर फिदाईखांके पास आये। रूहुल्लहको वीरतामें तो कुछ कसर न थी पर गफलतसे मारा गया। जहांगीरनामां। २७४ जब उस विलायतमें कुछ बस्ती न रही तो वहांका जमीन्दार यहाड़ों और जंगलों में जाछिपा और दूतं भेजकर फिदाईखांसे अप- राध क्षमा करा देनेको कहलाया। बादशाहने हुक्म दिया कि उसको बचन देकर दरगाहमें ले आवें। . . . . . . - हरान जमीन्दार चन्द्रकोटा। मुरव्वतखांने चन्द्रकोटेके जमीन्दार, हरभानको नष्ट करनेको प्रतिज्ञा की जो मुसाफिरों को सताया करता था। इस पर उसका मनसब दो हजारो जात और पन्द्रह सौ सवारोंका होगया। राजा सूरजमल। ... .. १३ (आश्विन सुदी ५) को राजा सूरजमलने खुर्रमके बखशी . तकीके साथ उपस्थित होकर अपने मनोरथ निवेदन किये उनका साधन उस सेवाके वास्ते जो उसने खौकार को थौ अच्छी तरहसे होगया और खुर्रमको .प्रार्थनाके अनुसार उसको झण्डा और नकारा दिया गया। तकीको भी जो उसके साथ जानेके लिये नियत हुआ था जड़ाऊ खपवा मिला। हुक्म हुआ कि अपने काम का प्रवन्ध करके शौवही कूच कर जावे। . सूरजमलका कांगड़े जाना। १७ ( आखिन सुदी १० ) को बादशाहने राजा सूरजमलको हाथी सिरोपाव जड़ाज खपवा और तकीको सिरोपाव देकर कांग- डेको बिदा किया। . . . . खुर्रमका दक्षिणसे कूच । . . शाह खुरमके दूत आदिलखांके वकीलों और उसकी भेजी हुई भेटको लेकर बुरहानपुर में आये और उसका चित्त दक्षिणके कामों से निश्चिन्त होगया तो उसने बराड़, खानदेश और अहमदनगरको सूबेदारी सेनापति खानखानांके वास्ते बांदशाहसे मांगकर उसके बेटे शाहनवाजखांको जो जवान खानखाना था बारह हजार सवारीसे नये जीते हुए देशोंको रक्षाके लिये भेजा। प्रत्येक ठौर और स्थानोंको विश्वासपात्र पुरुषों को जागीरमें देकर वहांका प्रवन्ध संवत् १६७४। २७७ जैसा उचित था कर दिया। जो सना उसके साथ थी उसमेंसे तौरस हजार सवारों और सात हजार वन्दनचौ पदातियोंको वहां छोड़ कार भेष पचौत हजार सवारों और दो हजार तोपचियोको साथ पिताको सेवामें उपस्थित होनेके लिये कूच किया। खुर्रमका दक्षिण विजय करके आना। बादशाह लिखता है-"मेरे राज्यशासनके बारहवें वर्ष २० महर गुरवार ११ शब्बाल सन १०३६ हिजरी (अाखिन सुदी १३ संवत् १६७3) को तीन पहर एक घड़ौ दिन व्यतीत होने पर मांडोंके किले में खुर्रम कुशल और विजय पूर्वक पन्द्रह महीने ग्यारह दिन का वियोग रहनेके पीछे सेवामें उपस्थित हुआ। जब “कोरनिश" और "जमीं बोस” विधि पूर्वक कर चुका तो मैंने उसको झरोके पर बुलाया। अति स्नेह और अनुराग वश अपनी जगइसे उठकर छातीसे लगाया। वह जितना कुछ विनय और जनतामें अग्रह करता था उतनाहौमैं कृपा और अनुग्रह में बढ़ता जाता था। मैंने उसको अपने पास बैठनेका हुक्म दिया। उमने एक हजार मोहरें और १००० रूपये नजर तथा एक हजार मोहरे और १००० रुपये न्योछावर किये। उस समय इतना अवकाश न था कि वह अपनी सारी भेंट दिखाता । इसलिये “सर- नाक" नामक हाथी जो आदिलखांको भेटके हाथियोंभ शिरोमणि था, उत्तम रत्नोंकी पेटौके साथ भेट किया। फिर बखशियोंको हुक्म हुआ कि जो अमौर उसके साथ आये हैं वह मनसबोंके क्रमसे सेवामें आवें। पहले खानजहां उपस्थित हुआ। मैंने उसको ऊपर बुलाकर पद्मकनलोंके चूमनेका मान प्रदान किया। उसने एक हजार मोहरें २००० रुपये रत्नों और जड़ाऊ पदार्थों की पेटी सहित भेट किये। उसमेंसे जो मैंने स्वीकार किये उनका मूल्य ४५००० था।" . फिर अबदुल्लहखांने चौखट चमकर एक हजार मोहरें नजर की उसके पीछे महाबतखांने जमीन चमकर एक सौ मोहरें एक हजार रुपये और एक गठड़ी रत्नों तथा जड़ाऊ-पदार्थोंको भेट की। वह [ २४ ] २७८ जहांगीरनामा। एक लाख २४ हजार रुपयेके आंके गये। उनमें एक लाल . ११ मिसकाल (४८॥ रत्ती ) का है जिसको पिछले वर्ष अजमेरमें एक फरंगी लाया था। दो लाख मूख्य मांगता था जौहरी ८० हजार देते थे इससे सौदा नहीं बना था। फिर वह बुरहानपुरमें गया और महाबतखाने एक लाख रुपयेमें उसको लेलिया। फिर राजा भावसिंहने सेवा आकर १ हजार रुपये कुछ रत्न और कुछ जड़ाऊ पदार्थ भेट किये। ऐसेही खानखानांका बेटा, दाराबखां, याबदुलहखांका भाई, सरदारखां, शुजाअतखां अरब, दियानतखां, मोतमिदखां बखशी, और उदाराम, जो निजासुलमुल्कके श्रेष्ठ सरदारों में थे और खुरमके बचन देनेसे शुभचिन्तकोंको श्रेणीमें प्रविष्ट हुए थे और दूसरे अमौर अपने अपने मनसबोंके क्रमसे मुजरा करनेको आये। इनके पीछे भादिलखांके वकीलोंने जमीन चूमकर उसकी अरजी येश को। इससे पहिले रानाको विजय करनेके प्रसादमें बीस हजारी जात और १० हजार सवारीका मनसब इस उग्रभागी पुत्रको मैंने प्रदान किया था और जब दक्षिण जीतनको जाता था तो शाह की पदवी दी थी अब इस उत्तम सेवाके बदले में मैंने तीस हजारी जात और बीस हजार सवारोंका मनसब और शाहजहांका खिताब इनायत फरमाया और हुक्म दिया कि अबसे दरबार में एक चौको सिंहासनके पास रखदी जाय जिस पर यह पुच बैठा करे। यह एक सपा इसौके वास्त कौगई जो पहिले हमार बंशमें प्रचलित न थी। ५० हजार रुपयेका एक खासा खिलअत जिसमें ४ कुब्ब ( पान ) जरीके सिले हुए थे और जिसके गले, बांहों, और पल्लोंमें, मोती टके हुए थे, जड़ाऊ तलवार जड़ाऊ परतला और जड़ाऊ कटार उसको दिया और उसका मान बढ़ानेके लिये झरोकेसे नीचे आकर एक थाल जवाहिरातका और एक मोहरीका उसके ऊपर २७८ • संवत १६७४। न्यौछावर किया। "सरनाक हाथोको पास मंगाकर देखा निस्संदेह उसके जो गुण सुने धे सब ठोके थे। • डीलडौल सुंदरता और सजीलेपनमें पूरा था। ऐसी छबिका हाथी कम देखा था। मेरी आंखोंको बहुतही भला लगा। इसलिये मैं खयं सवार होकर उसे खास दौलतख नेके भीतर तक लेगया और कुछ रुपये भी उस पर न्यौछावर किये। हुक्म दिया कि दौलतखाने में ही बंधा करे। उसका नाम नूरबखत रखा गया।।: . . . :: .. ..' बगलाणेका भरजीव। . “कार्तिक बदौ २ चन्द्रवारपाको बगलाणके जमीदार भरजीवने आकर प्रणाम किया बादशाह लिखता है-"इसका नाम प्रताप है। जो कोई वहांका राजा होता है उसको भरजीव कहते हैं। बग- लाणकी बिलायत गुजरात खानदेश और दक्षिणके बीचमें है। इस देशमै पानीके झरने अच्छे हैं। पानी बहुत बहता है। यहां प्राम अत्यंतरसौले और बड़े होते हैं। ८ महीने तक मिलते है। अंगूर भी बहुत होते हैं परन्तु उत्तम नहीं होते। यह राजा गुजरात दक्षिण और खानदेशक हाकिमोंसे मेल तो रखता था पर आज तक किसी के पास नहीं गया था। जब गुजरात दक्षिण और खानदेशमें स्वर्गवासी इजरत का अधिकार हुआ तो यह बुरहान पुरमें उपस्थित होकर सेवकोंमें शामिल हुआ था। उसे तीन हजारौ जातका मनसब मिला था। अब जो शाहजहां बुरहानपुरमें पहुंचा तो ११ हाथी भेट करके मिला और उसके साथ दरबारमें आकर अपनी भक्तिके अनुसार राजकीय कपासे सन्मानित हुआ। जंडाऊ खङ्ग हाथी घोड़ा और खिलअत तो मिलाही था कई दिन पोछे तीन अंगूठियां लाल होरे और याकूतको भी मैंने उसको दीं।" नूरजहांका उत्सव। २७ (कार्तिक बदौ ५) गुरुवारको नूरजहां बेगमने दक्षिण को विजयका उत्सव करके शाहजहांको इतने दिव्य पदार्थ दिय- . सा मूलमें इस दिन शुक्रवार लिखा है सो गलत है। + अकबर बादशाह। २८० जहांगीरनामा। ____ बहुमूल्य सिरोपाव नादिरी सहित जिसमें रत्नों और मोति के फूल टके थे, रत्नोंका जड़ाऊ सरपेच मोतियोंके तुईको पगड़ी मोती की लड़ियोका पटका, तलवार जड़ाऊ परतलेको फूलकटार सहित. दो घोड़े जिनमेंसे एक जड़ाऊ जोनका था एक खासा हाथी दो हथ- जियां, इसीप्रकार बहुतसे सुनहरी सजावटोके जोड़े और कपड़े उसको खियोंको भी दिये। भड़कौले वत्व और रत्न जडित शस्त्र इसके प्रधान पारिषदोंको प्रदान किये। इस महोत्सव में सब मिला कर ३ लाख रूपये लगे थे । ___ महाबतखांकों काबुल। खांनदौरां बहुत बूढ़ा हो गया था इस लिये बादशाहने इसको ठढे में बदल कर महावतखांको काबुल और बंगशको सूबेदारी दी। वहां सदा पठानोंका उपद्रव रहनेसे बराबर दौड़ धूप करना पड़ती थी। ५८ हाथियोंको भेट। इब्राहीमखां फतहजंगने बिहारसे ४८ हाथी भेजे थे वह भेट मोनकले। . . बादशाह लिखना है-“नन, दिनों सोनकेले. मेरे वास्ते आये जो आज तक मैंने कभी नहीं खाये थे। लंबाई में एक उंगलके गलभग हैं कुछ मीठे और मजेदार हैं। अन्य प्रकार के केलोंसे इनको कुछ तुलना नहीं है पर बादी हैं। .मैंने दो खाये थे पंटमें बोझ मालूम हुआ। लोग तो कहते है कि ७८ तक खाना चाहिये। वास्तवमें केला खाने योग्य नहीं है, परन्तु उत्तको अनेक जातियों में से अगर कुछ खाने लायक है तो यही मोनक्षेला है। गुजरातके आम। . मुकर्रबखां गुजरातके आम २३ महर ( कार्ति बदी १ ) तक डाकचौकीमें भेजता रहा। संवत् १६७४। २८१ जदाराज दक्षिणी। मावान (कार्ति बदौ १२) गुरुवार को. बादशाहने जदा- सनकी तीन हजारो जात और पन्द्रहत्ती सवारीका अनन्तव दिया। यह ब्राह्म ग अंबरके पास बड़ी इज्जतसे रहता था। जब शाहनवाजखाने अंबर पर चढ़ाईको तो आदमवां हबशी. जादू- राय, बाबु राय कायस्थ, और ऊदाराम आदि निजामुलमुल्कके कई सरदार अंबरको छोड़ कर शाहनवाजखांके पास चले आये थे। अंदरको हार होने पर यह लोग आदिलग्वांके कहने और अंबरको घोव में आकर बादशाही नौकरी छोड़ बैठे। अंबरने आदमहांको तो कुरानको कसम खाकर बुलाया और छलसे पकड़ कर मारडाला। बाबू राय और जदाराम : निकल कर आदिल खां. की सीमामें आये पर उसने अाने न दिया। बाबू राय कायस्थ तो उन्हीं दिनों में अपने एक मित्रके धोखसे सारा गया। जदाराम रर अंबरने सेना भेजी जिसको वह. हरा कर बादशाही सौमामें आ गया और बचन लेकर अपने बालबच्चों भाई बन्दोंको भी ले आया। शाहजहां उस को ३ हजारो जात और हजार सवार मनसब दिखानकी प्रतिज्ञाकर अपने साथ लेाया। बादशाहने ५०० सवार अधिक दिये। शाहजहांको भेट। .. १० ( कार्तिक सुदी ४ ) बृहस्पतिवार को शाहजहांने अपनी मेट बदशाहको दिखाई। जवाहिरात, जड़ाऊ चौजें और सब बहु- मुन्य द्रव्य झरोखेके चौको सजाये गये थे। हाथी और घोड़े सोने चांदौके साजोंसे सजे हुए बराबर बराबर खड़े थे। ___ बादशाह लिखता हैं कि "मैंने शाहजहांका मन प्रसन्न करनेके लिये झरोखेसे उतर कर सब चीजें व्यौरवार देखीं। उनमें एक सुन्दर लाल है जो शाहजहां लिये गोका बंदरमें २ लाखको मोल . तुज़ुक जहांगी में इस दिन १३ आंबान गलत लिखी है ३. चाहिये। जहांगीरनामा। लिया गया था। तौलमें १८ टांक शरती है। मेरी सरकारमें कोई लाल १२ टांकसे अधिक न था। जौहरियोंने उसका वही मूल्य स्वीकारः किया। . . . . . (२) एक. नौलम आदिलखांकी भेटÈसे ६ टांक ७ रतीका है अब तक इतना बड़ा और ऐसे. रंग रूपका नीलम नहीं देखा गया था। . . . . . .. (३) चमकोड़ा होरा अादिलखांको भेटमेंसे १ टांक ६ रतीका है। इसका मोल ४० हजार बताया गया है। दक्षिण में चमकोड़ा एक सागका नाम है। जब मुरतिजा निजामशाहने बरारका देश जौता था तो एक दिन स्त्रियों सहित बागमे गया। वहां एक युवतीने चमकोड़ेके सागमें इस होरेको पड़ापाया। उस दिनसे इसका नाम चमकोड़ा हुआ। अहमदनगरका राज छिन्न भिन्न होने पर इब्राहीम आदिलखांदके हाथ आया। . (४) एक पन्ना अदिलखांकी भेटमेंसे है जोनिकला तो नई खांनमेंसे है पर इतना सुंरङ्ग और स्वच्छ है कि वैसा अब तक देखने में नहीं आया था। (५) दो मोती एक तो ६४ रत्ती भरका है पच्चीस हजार रुपये उसका मोल ठहरा और दूसरा १६ रतौ भरका बहुत चम- कोला और उज्वल है इसका मोल बारह हजार रुपये हुआ। (६) कुतुबुलमुल्कको भेटमेंसे एक होरा एक टांक भरका जो पचीस हजार रुपयेका आंका गया। (७) १५० हाथी जिनमें ३ के साजनो सांकलों तक सोनेके और के चांदौके थे। उनमेंसे २० हाथी लिये गये जिनमें ५ बहुत बड़े और विख्यात हैं। ... नूरवखत् कि जिसको शाहजहांने. पहिले दिन भेट किया था सवा लाखका आंका गया। बीजापुरपति। । मंवत् १६७४-1 • महीपति-आदिलखांका मेजा हुआ जिसका मोल मैंने १ लाख रुपये नियत करके दुर्जनसाल नाम रखा। . .:: बखत्बलन्द-यह भी आदिलखांकी हौ भेटमेंका है एक लाख रुपयेका बांका गया। मैंने इसका नाम “गरांबार रखा। चौध और पांचवें हाथोका नाम कद्दमखां और इमामरा था। (८) एक सौ अर्बी और इराकी घोड़े जिनमें ३ जड़ाऊ साजदार हैं। 'शाहजहांने जो भेट अपनी, और दक्षिणके दुनियादारोंसे ली हुई बादशाहको दिखाई थी बहुत बडी थौ। उसमें से जो बाद- शाहने छांट करलौव्ह २० लाख रुपयेकी थी।। २ लाख रुपये को भेट उसने अपनी मा नूरजहांको दी । ३००००) की भेट दूसरी मताओं और वेगमोंको दी.। सबका मूल्य २२ लाख ६० हजार रुपयेः हुआ। बादशाइ लिखताः पेट कभी इस राज्यमें नहीं देखी गई थी। _ 'गुजरातको कुच। १२ (कार्तिक सुदौ ५) शुक्रवारको बादशाइने अपनी माता और वेगोको तो सब कारखानोंके साथ आगरे भेजा और आप रातको अहमदाबाद और समुद्रको शोभा देखने तथा लौटते हुए हाथियोंका शिकार खेलनेके बिचारसे गुजरातको रवाना हुआ मांडोसे उतर कर नालछमें ठहरा : .. . . . . . महाबतखां। शनिवारको रातको महाबतखांको काबुल जानेको पाना हुई घोड़ा और खासा हाथौ चलते समय मिला। : .:...: कल्याण टोडरमलका बेटा। .. राजा टोडरमलका बेटा कल्याण उड़ीसेसे आकर कई दिनों तक दरबार में प्रानेसे विमुख रहा था क्योंकि उस पर कई दोष लगाये गये थे। परन्तु निर्णय होने पर निर्दोष निकला । बादशाह ने घोड़ा और खिलअत देकर उसे महाबतखांके साथ बंगशमें भेजा । २८४ जहांगीरनामा। आदिलखांके वकौल। . सोमवारको श्रादिलखांके वकीलोंको जड़ाऊ तुरे दक्षिणी चाल के मिले। एक पांच हजार और दूसरा चार हजारका था। . रामरायांको विक्रमाजीतको पदवी। दक्षिण में अच्छा काम करनेसे. बादशाहने शाहजहांके वकील अफजलखां और रायरायांके मनसब बढ़ाये। रायरायांको विक्र- माजीतको पदवी दी। बादशाह लिखतो है-"हिन्दुओं में यह उत्तम ‘पदवी है और रायरायां अच्छा बन्दा कदर · करनेके योग्य है। .. . . .. . ... __ इसी दिन बादशाह ४॥ कोस चलकर गांव केदहसनमें ठहरा। १५ (कार्तिक सुदी) मङ्गलको बादशाहने ".१२ मनकी एक नौल गाय मारी। दूसरे दिन डेरोंके पास पहाड़को घाटीमें एक नदीः पर जो बीम गजको ऊंचाई से गिरती थी 'जाकर दारू पी और रातको लशकर में आगया। तपुरका जमींदार ।। शाहजहांको प्रार्थनासे जैतपुरके जमींदारके अपराध क्षमा किये गये थे। वह बादशाहको सेवामें उपस्थित हुआ। • हासिलपुरमें जाना। . बादशाह तीन कोस पर हासिलपुरमें शिकारको बहुतायत सुन कर बड़े लशकरको वहीं छोड़कर २० (कार्तिक सुदी १५) उधर गया। काबुलके अंगूर । हुसैनी नासके बिना गुठलीके अंगूर काबुलसे आये । खूब ताजा थ। बादशाह लिखता है कि मेरी जीभ परमेश्वरका गुणानुवाद कर में असमर्थ है कि ३ महीने का रास्ता होने पर भी कावुझके ताजा अंगूर दक्षिणमें पहुंचते हैं। प्याले। २४ (अगहन बदौ ४) बहस्पतिवारको हासिलपुरके तालाब पर

संवत् १६७४२
८५।

बादशाहने सभा सजाकर शाहजहां और बड़े बड़े अमौरीको प्याले दिये। यूसुफखांका मनसब तीन हजारो जात और पन्द्रहसौ सवारोंका करके उसको गोंडवानेकी फौजदारी पर भेजा। . राय विहांगदास।। दक्षिणके सूबेका दीवान बिहारीदास दरबार में आया। . ___बाईम गज पर गोकौं। . बादशाहने कुरीशा नामक पक्षीको वृक्ष पर बैठा देखकर बंदूक मारी। गोली वाईस गज पर लगी पक्षीको केवल कुछ छाती दिखती थी। • कमालपुर। ...... .. . २६ (अंगहन बदौ ६) शनिवारको बादशाह दो कोस चलकर कमालपुरमें उतरा।::.. .

. . . . गौंडोंकी भेट .. ( . . .

· शाहजहांका नौकर रुस्तमखां बुरहानपुरसे गौण्डवानेके जमीं- दारों पर भेजा गया था। वह ११० हाथी और एक लाख बीस हजार रुपये लेकर दरबारमें उf भा... . .. . दांतवाली दो हापमा गोलायी। ::::: १ अाजर (अंगहन वदी १०) बुधवारको कोशमौरके ममाचार पत्रसे विदित हुआ कि एक रेशम वेचनेवालेके घरमें दो लड़कि जन्मी जिनके मुंह में दांत धे पौउसे कमर तक जुड़ी हुई थीं। परन्तु मिर हाथ और पांव दोनोके अलग अलग थे कुछ समय तक जीतो रहकर सर गई। . . . . . . . . ; गुरुवारको एक तालाब पर डेरे होकर प्यालोंको मजलिस जुड़ी। आदिलखांके वकीलोंको पाँचसौ तोलेको एक मुहर दौ गई । शुक्रवारको साढ़े चार कोम चलकर परंगने दकनामें डेरे लंग। शनिवारको भी इतनाही कूच होकर धारमें मुकाम हुआ । । धार। बादशाह लिखता है-"धार पुराने शहरोंसेसे है। सुप्रसिद्ध २८६ जहांगीरनामा। राजा भोज यहीं रहता था। उसके समयरी एक हजार वर्ष व्यतीत हुए हैं। मालवेके बादशाह भी बहुत वर्षातक धार में रहे । सुलतान मुहम्मद तुगलक जब दक्षिण विजय करने को जाता था तो उसने यहां छिले हुए पत्थरोंका किया एक टोलेपर बनाया जो बाहरसे तो बहुत सुन्दर है परन्तु मौतर सूना है। मैंने लम्बाई चौड़ाई मापनेका हुक्म दिया तो किला मौतरसे लंबा १२ जरीब ७ गज और चौड़ा ७ जरीव १३ गज हुआ। कोटको चौड़ाई १८१ गज और ऊंचाई कंगूरों तक १७॥ गज: निकली। किलेके बाहरका आग पचास जौबका था। अमीदशाह गौरी जिसका दिलावरखां खिताब था दिल्लीके बादशाह सुलतान फोरोजक बेटे सुलतान मुहम्मदके समय में मालवे का खतन्त्र सूबेदार था। उसने किलेके बाहरको बस्ती में जामा मसजिद बनाई थी जिसके सामने लोहेको एक लाठ गाड़ी थौ । जब सुलतान बहादुर गुजरातीने मालवेको अपने अधीन किया तो इस लाठको गुजरातमें लेजाना चाहा। पर कर्मचारियोंने उखाड़ते समय सावधानी नहीं रखी जिससे जीन पर गिरकर उसके ७॥ गज और ४३ गजके दो टकड़े होगये । वाम सवा गज़की है यह टुकड़े वहां योही पड़े थे इम लिये मैंने हुक्म दिया कि बड़े टुकड़े को आगरेमे लेजाकर खर्गवासी श्रीमानके रौजे में खड़ा करदें और रातको दीपक उस पर जला करे ।[]


इस मसजिदके दी दहलीजें हैं। एकको ऊपर यह लेख खुदा है कि अमोदशाह गौरीने सन् ८७० में यह मसजिद बनाई और दूसरोके ऊपर कवितामें भी यही वर्ष खुदा हुआ है। जब दिलावरखां मरा तो उस समय हिन्दुस्थानमें कोई प्रवल २८७ । संवत् १६७४ । बादशाह न था और अफरातफरीके दिन थे। इसलिये दिलावर खांका बेटा होशंग जो योग्य और साहसौ था अवसर पाकर मालवे के सिंहासन पर बैठ गया। उसके मरने पर यह राज्य उसके वजीर "खानजहां" के बेटे महमूद खिलजीके हाथमें चला गया। उससे उसके बेटे गयासुद्दीनको मिला। उसको विष देकर उसका बेटां नासिरुद्दीनं गद्दी पर बैठा। उसके पीछे उसका बेटा सहमूद उत्तरा- धिकारी हुआ। उससे सुलतान बहादुर गुंजरांतीने मालवा छौन लिया और मालवेके बादशाहोंकी परम्परा नष्ट होगई। ", ". कटाराम . ६ (अगहन बदौ १४) सोमवारको 'बादशाहने जड़ाऊ तलवार, एक सौ तोलेकी मोहर और बीस हजार दरब ऊदारासको दिये। . . सादलपुर। .. .: . ___ बादशाह ४॥ कोस चलकर सादलपुरमें ठहरा। इस गांव में एक नदी है जिसपर नासिरुद्दीन खिलजाने पुल बांधकर कालि. यादहके समान विलासभवन बनाये थे । : बादशाहने रातको उस नदी और उसके कुण्डों पर दौपमालिका कराई। । . . : . शाहजहांको लाल और मोती। .. ८ (गहन सुदौ २) गुरुवारको प्यालोंकी सजलिस हुई। बाद- शाइने एक लाल और दो मोती शाहजहांको दिये। लाल पच्चीस हजार रुपयेका टांक और ५ रत्ती भरका था। बादशाह लिखता है-“यह लाल मेरे जन्मकालमें मेरी दादौने मेरो मुंह दिखाई में दिया था। वर्षों तक मेरे पिताके सरपेचमें रहा। उनके पीछे मैंने भी सरपेचहीमें रखा था। बहुमूल्य और सुन्दर होनेके सिवा यह इस राज्य के वास्ते शभ भी रहता आया है इसीलिये शाह जहांको दिया गया।" ___उदाराम दक्षिण। इसौ दिन बादशाहने खिलअत हाथी और इराको घोड़े देकर २८८ जहांगीरनामा। जदारामको दक्षिण नियत किया और उसके हाथ एक खास सुन- हरी कटार खानखानांके वास्ते भी भेजा। केशव मारू। ११ (अगहन सुदी ४) शनिवारको ४। कोसका कूच होकर गांव नलोतमें और दूसरे दिन पांच कोस पर मदलोरमें डेरे हुए। बाद- शाह लिखता है-“यह परगना. मेरे पिताके समयसे केशवदास मारूको जागीर में है और उसके वतनके समान होगया है उसने बाग और भवन बनाये हैं। उनमेंसे एक बावलो जो रास्ते पर है बहुत सुन्दर और सजौली बनी है। मेरी समझमें अगर कहीं कोई बावली रास्ते पर बनाई जावे तो चाहिये कि इसी ढङ्गको बनावे पर इससे दूनी हो।" __हाथीको गर्म पानी। जबसे नूरबखत हाथौ आया था खासोआम दौलतखाने में बांधा जाता था। हाथो जाड़ेमें भी पानौसे प्रसन्न होता है इसलिये जहां कहीं नदौ तालाब नहीं मिलता तो नूरबख्त मशकमेंसे पानी लेकर अपने शरीर पर डालता। जाड़े में पानी ठण्डा होता है इसलिये बादशाहने अपने मनमें ठण्डका बिचार करके गुनगुना पानी उसकी संडमें डलवाया। और दिनों तो ठण्डोपानीसे कांपने लगता था अब जो गर्म पानी मिला तो खस्थ और प्रसन्न हुआ। बादशाह लिखता है-"यह मेरोही उपजाई हुई बात है।" . सबलगढ़। १४ (अगहन सुदी ७) मङ्गलवारको ६ कोस चलकर सबलगढ़में और ८ बुधका मही नदौसे उतरकर रायगढ़में डेरे हुए यह भी ६ कोशका पड़ाव था। _____ राजा पेमनारायण। १६ (अगहन सुदी १०) गुरुवारको गढ़ेका राजा पेमनारायण जिसका एक हजारी मनसब था अपनी जागौरको बिदा हुआ। राजा भरजौव। . . · बगलाणेके राजा भरजीवको बादशाहने चार हजारी. मनसब ' संवत ९६७४ २८८. देकर विदा किया और यह हुक्म दिया कि जब अपने देश में पहुंचे तो बड़े वेटेको दरंगाहमें भेजदे कि वह हुजूरमें रहा करे।' . . . . . . . धावला।: । : १७ (अगहन बदौ १९) शुक्रवारको बादशाह पांच कोस चल कर गांव धावलेमें ठहरा।' बकरईद। १८ (अगहन सुदी १२) शनिवारको बकरईद थी। बादशाह उमका काय करके ३। कोस चला और गांव नागोरमें तालाबके तट पर उतरा। - गांव ससरिया। . ..: १८ (अगहन सुदी १३) रविवारको ५ कोस.चलकर गांव सम- रियाके तालाब पर डेरे हुए। दोहद। २. (अगहन सुदी १४) सोमवारको ४। कोस पर परगने दोहद में पड़ाव हुया। यह परगना गुजरात और मालवेका सिवाना है। जवसे बादशाहने बदनोर छोड़ा था सारे रास्ते में जंगल और पहाड़ पाये थे। रेनाव। - १९ (पौष बदौ १) बुधवारको ५। कोस चलकर गांव रेनावमें मंजिल हुई। दूसरे दिन सुकाम हुआ। जालोत। २४ (पौष सुदी ३) शुक्रवारको अढाई कोस कूच हुआ गांव जालोतमें डेरा लगा। यहां करनाटकके.बाजीगरोंने पहुंचकर बाद- शाहको अपने खेल दिखाये। एक बाजीगर ॥ गज 'लग्बी और एक सेर दो दाम वजनकी जनौरको मुंहमें रखकर धीरे धीरे पानी के घोंसे निगल गया। घड़ी भर तक पेट में रखकर फिर बाहर लेप्राया। [ २५ ] २८० जहांगीरनामा। • नीमदह । २६ (पौष बदौ ५) रविवारको बादशाह पांच कोसका सफर करके गांव नौमदहमें ठहरा । सोमवारको भी पांचचौ कोस चला। और एक तालाबके निकट उतरा। सहरा। मंगलको पौने चार कोसको ही यात्रा हुई। गांव सहराके पास एक सरोवरो किनारे तव तने। कुमुदिनी और कमला। बादशाह लिखता है-कुमुदिनौ तीन रंगको होती है सफेद नीली और लाल । हमने सफेद और नौलो तो देखी थी लाल नहीं देखी थी। इस तालमें लाल फूलोंकी खिली कुमुदिनी देखने में आई। बहुतही कोमल और मंजुल फूल थे। कमलका फूल कुमुदिनीसे बड़ा होता है। उसका चेहरा लाल होता है। मैंने काशमौर में सौ सौ पंवड़ियों के भी कमल बहुत देखे हैं। यह बंधी हुई बात है कि कमल दिनको फूलता है और रातको बन्दं हो जाता है । कुमुदिनी दिनको बन्द होजाती है और रातको खिलती है। औरा सदा इन फूलों पर बैठता है और इनके भीतर जो मिठास होता है उसके चूसनेके लिये इनको नालियों में भी घुस जाता है। बहुधा ऐसा होता है कि कमल मुंद जाता है और औरा सारी रात उमौमें बैठा रहता है । इसी तरह कुमुदिनीमें भी । उनवी खिलने पर भौंरा निकलकर उड़ जाता है। ___ इसी वास्ते हिन्दुस्थानके कवीखरोंने बुलबलके समान उसको फूलका प्रेसी मानकर अपनी कवितामें उत्तम उत्तियोंसे उसका वर्णन किया है। ___ तानसेन कलावत मेरे बापको सेवामें रहता था वह अपने समय में अद्वितीयही नहीं था वरच्च किषी समयमें भी उनके तुल्य गया नहीं हुआ है। उसने अपने ध्रुपदमें नायिकाके मुखको सूर्यको, उसके आंख खोलनको कमलके खिलने और उससे भौंरके: उड़नेको संवत् १६७४। २८१ उपमा दी है। दूसरी जगह कनखियोंसे देखनेको भौंरके बैठनसे कमलका हिलना कहा है। .. . .. अंजीर 1 . . . यहां अहमदाबादके अंजौर आये। बादशाह लिखता है कि बुरहानपुरके अंजीर भी मोठे और बड़े होते हैं। परन्तु यह अंजीर उनसे कम दानेदार और अधिक मोठे हैं स्वादमें अच्छे हैं। बुध और वृहस्पतिवारको भी वहीं पडाव रहा। .. . - सरफराजखांकी भेटः।। सरफराजखांने गुजरातसे आकर भेट दिखाई ! उसमेंसे बाद- शाइने भोतियोंकी एक माला जो ११ हजार रुपयेमें खरीदी गई थो, दो हाथी, दो घोड़े, ७ बैल, बहल और कई थान गुजराती कपड़ोंके अंगीकार किये। शेष पदार्थ उसौको लौटा दिये। यह तौन पौढ़ीका नौकर था। .: : : रोह मझली। . ' .१ दे (पौष बदी १०) शुक्रवारको बादशाह सवा चार कोस चलकर गांव झसोदके तालाब पर उतरा। यहां खिदमतिये प्यादों का सरदार राय मान रोह मछली पकड़कर लाया जो वादशाह को बहुत रुचिकर.यौ । बादशाह सब प्रकारको हिन्दुस्थानी मछ. लियोंमें रोहको उत्तम समझता है और इधर ११ महीनेसे बहुत खोजने परभी नहीं मिली थीं। इसलिये उसको देखकर अति प्रसन्न हुधा और राय मानको एक. घोड़ा दिया। .:: .. .:: : अहमदाबाद गर्दावाद ।:: ...... ., बादशाह लिखता है कि दोहदका परगना गुजरातमें है यहां से सब-वस्तुओंमें, भिवता विदित होती है। जंगल और भूमि और तरहको, मनुष्य भी पृथक प्रकृतिक तथा बोलियां औरहौ तौरको हैं.।, बन जो इस मार्गमें देखे गये उनमें ग्राम खिरनी और इमली आदि फलोंके वृक्ष थे। खेतोंकी रक्षा थूहरके झाड़ोंसे कोजाती है। किसानोंने खेतियोंके चारों ओर थूहरको बारें लगाकर अपनी २८२ जहांगीरनामा। अपनी भूमि पृथक पृथक करली है। बीच में आने जानेके लिये तंग गलियां छोड़दी हैं। यह देश सारा रेतौला है। थोड़े चलने और भीड़ होजानसे यहां इतनी धूल उड़ती है कि आदमौका चेहरा मुशकिलसे नजर आता है। मेरे जीमें आया कि अहमदा- बादको अबसे “गर्दीबाद" कहना चाहिये न कि अहमदाबाद। २ (पौष बदी ११) शनिवारको बादशाह ३॥ कोस चलकर महो: नदौके किनारे पहुंचा। रविवारको फिर २m कोस चला और गांव वर्दलेमें ठहरा। जो मनसबदार गुजरातके सूबेमें नियत थे इस स्थान पर हाजिर हुए थे। ४ (सोमवार) को ५ कोस पर चिचमीमामै और मङ्गलवारको ५॥ कोस पर परगने मौदे में लशकरके डेरे लगे। यहां एक नील- गाय १३ मनको शिकार हुई। ६ (बुध) को छः कोसका कूच होकर परगने नौलावमें मुकाम हुआ। बादशाह कसवेमें होकर निकला और १५००, लुटाये। नौलाव। . ... पौष सुदौ १ गुरुवारको ६॥ कोस चलकर बादशाह परगने नौलावमें उतरा। गुजरातमें इससे बड़ा कोई परगना नहीं था। इसकी उपज ७ लाख रुपयेको थी बसती भी अच्छी थी। बादशाह उनमें होकर आया और एक हजार रुपये लुटाये। वह लिखता है-"मेरी इच्छा रहती है कि हर बहानेसे जगतको लाभ हो।" गुजरातमें गाडीको सवारो देखकर बादशाहका भौ जी चाहा और दो कोस तक गाड़ी में बैठे। परन्तु रेत और धूलसे बहुत कष्ट पाया । इसलिये फिर पड़ाव तक घोड़े पर गया। रास्ते में मुंक- बखांने अहमदाबादसे आकर तीस हजार एक मोती भेट किया। ८(पौष सुदौ २) शुक्रवारको बादशाह ६॥ कोस चलकर संमुद के तट पर (खंभात) में उतरा। चौदत्रयां दर्ज। सन् १०२७ हिजरी। पौष उदो ३ संवत् १६७४ से पोष सुदी १ सं० १६७५ नका । मा० २० दिसम्बर सन् १६१७ से ता० ८ दिसम्बर १६१८ तक। रखंभात। बादशाह लिखता है-"खंभात पुराने बन्दरोंमसे है। ब्राह्मणों के कायनानुसार कई हजार वर्ष इसको बसे होगये। पहले इसका नाम नंवावती था। बाजा त्यम्बक कुमारका इस देश में राज्य था। यदि सविस्तर बतास इस बाजाका जैसा कि ब्राहाण लोग कहते हैं लिता जावे तो बहुत बड़ा होता है। उधको पोतलिमे जब राजा अभयशुमारका शाज्य था तो दैव प्रकोपले इतनी पाख और धूल बरनी कि तब बस्ती उससे भर गई और बहुतसे मनुष्य भी दब जर ! इस अनर्थपात होने के समाचार राजाको पहलेही उसके ए- टवने वन दर्शन देकर कह दिये थे। राजा उस देवताको मूर्ति को होकर सकुटुश्व जहाजमें बैठ गया। वह जहाज भी भंवर में फंस गया। परन्तु राजाको आयु थी इसलिये एक खोके सहारे जिस पर वह मूर्ति टिकाई गई थी किनारे जालगा और उसने फिर नगर वसानेका विचार करके बस्तौके चिन्ह और मनुष्यों एकत्र होनेके लिये उसौ स्तम्भको गाड़ दिया जिससे विंबावतीका नाम खंभावती पड़गया। वही बिगड़कर खंआत हुआ है। यह हिन्दुस्थान के बड़े बन्दरोंमेंसे है और समुद्रके जोरों से एक बड़े जोर के पास है जो सात कोस चौड़ा और चालीस कोस लम्बा अनुमान किया

  • जिसको अङ्ग्रेजीमें डोवर कहते हैं अर्थात् समुद्रके किनारे

पर वह जगह जहांसे नाव में बैठकर या माल लादकर जहाज पर जात हैं। २८४ जहांगीरनामा। जाता है। जहाज जोरमें नहीं आता.। बन्दर गोगमें ठहरता है जो खंभातक अन्तर्गत और समुद्रके निकट है। वहांसे माल गिराबों (नावों) में लादकर खंभातमें लाते हैं। और जब जहाजोंको भरते हैं तो उसी तरह यहांका माल लेजाकर उनमें डालते हैं। मेरे आनसे पहले कई गिराब फरङ्गदेशक बन्दरोंसे खंभातमें आये थे और लौट जानेके विचारमें थे। १० (पौष सुदी ४) रविवार को उन्हें सजाकर मेरे देखने के लिये लाये और आज्ञा लेकर अपने जानेके स्थानको गये। सोमवारको मैं भी गिराबमें बैठकर एक कोस तक पानी पर फिरा मङ्गलको शिकारके वास्ते जाकर चौतेसे दो हरन पकड़वाये।" १३ (पौष सुदी ७) बुधको नारङ्गसर तालाबके देखनेको बाजार ' में होकर गया और ५०००) न्यौछावर किये। स्वर्गवासी श्रीमान्को समयमै इस बन्दरके कर्मचारी कल्याणराय ने उनको आज्ञासे इस नगरका पक्का कोट ईंट और चूनेका चुन- वाया है और बहुतसे व्यापारी देशान्तरसे आकर यहां बसे हैं जो सुरस्य स्थान और सुन्दर हय बनाकर सुख सम्पत्ति भोगते हैं। बाजार छोटा तो है पर खच्छ और खूब' बसा हुआ है। गुज- राती बादशाहोंके समयमें इस बन्दरको जकातो बहुत रुपये थे। अब इस राज्यमें यह हुक्म है कि चालीसमें १० से अधिक न लें। दूसरे बन्दरों में 'अशूर' को नामसे १०) में १, और ८ मा में भौ १ लेते हैं और नाना प्रकारका कष्ट व्यापारियों तथा यात्रियों को देते हैं। जद्दे में जो मक्के का बन्दर है 855 में १) लेते हैं, बरन इससे भी अधिक। इससे जान लेना चाहिये कि गुजरातके बन्दरों का तमगा अगले हाकिमोंके समयमें कितना था। भगवत कपासे मैंने अपने सब देशोंमें तमगा जो बहुत अधिक था छोड़ दिया है। मेरे राज्यसे तमगेका नामही उठ गया है।

  • २॥ सैकड़ा। १०) सैकड़ा। पा १२॥ सैकड़ा।

६२५) सैंकड़ा। दरियाका महसूल। जंवत् १६७४। २८५ rrrrrrrrrrrrrrrrr ... चाग्दो नोजेके टके। यहां बादशाहगे चान्दो मोके उ चलाये। जिनका तोल जालौ रुपवी और मोहरोंसे दूना था। सोनेको टोले एक ओर जहांगीरशाही, सन १०२७ और दूमरो गोर जवखंभात खन १२ जिलूच जुदा था। चांदौके टको में एक तरफ जहां गौरशाही, सन १०२७ और उसकी जपर गोलाकार एक पन्य खुदा था जिसका यह अथ था-- विजय प्रकाशका जहांगीरने चांदौके ऊपर यह काप मारी। और दूसरी तरफ बीचमें जबखंभात सन १२ जिलूस और उसके ऊपर गोलाईमें यह दूसना पद्य था- जबकि दक्षिण जीतकर मंडूसे गुजरात में पाया। बादशाइ लिखता है-"भरे सिवा किमो समय भी टके पर सिका नहीं लगा था चांदी और सोनका टका मेराही निकाला हुआ है।” मेट। १४ गुरुवार (पौष सुदी ८) को बन्दर रवंभातके कर्मचारी अमानतखांकी भेट हुई। उसका मनसब कुछ बढ़कर डेढ़ हजारो जात और चारसौ सवारोंका होगया। हाथीको दौड़। १५ शुक्रवार (पौष मुदी ८.) को बादशाहने सवार होकर नूर- बख्त हाथीको घोड़के पीछे दौड़ाया। बहुत अच्छा दौड़ा। जब ठहराया तो झट खड़ा होगया। बादशाह लिखता है मेरी यह सवारी तीसरी बार यो।। रामदास । १६ शनिवार (पौष सुदी १०) को जयसिंहके बेटे रामदास * . * रामसिंह आमेरके राजा जयसिंहका बेटा था अगर वह तो संवत् १६८२ में पैदा हुआथा । यह रामदास राजा राजसिंहका बेटा होगा यहां गलतीसे राजसिंहको जगह जयसिंह लिखा गया है ऐसा जाना जाता है। । .. २७६ - जहाँगीरनामा । का मनसब कुछ बढ़कर डेढ़ हजारो जात और सात सौ संवारोंका होगया। खंभातसे प्रयाण। .. .:. बादशाह समुद्र और ज्वार भाटा देखनको १० दिन खंभातमें रहा और वहांके रहने वाले व्यापारियों, कारीगरों और पालने योग्य प्रजाको खिलात, घोड़े, खर्च और जीविका देकर १८ (पौष सुदी १४) मङ्गलके दिन अहमदाबादको गया। - अरबी मछली। बादशाह लिखता है-“उत्तम जातिको मछली खम्भातमें अरबी नामका है जिसको मकवे अनेक बार पकड़कर मेरे वास्ते लाये। वह स्वाद भी बहुत होती है पर रोइको नहीं पहुंचती। बाजरकी खिचड़ी। गुजरातवालोंके निज भोजनों में से बाजरेकी खिचड़ी है जिसको लजीजा भी कहते हैं। बाजरा मोटा अनाज है। हिन्दुस्थानके सिवा दूसरी विलायतमें नहीं होता। हिन्दुस्थानके सब प्रान्तोंसे अधिक गुजरात में होता है और सब अनाजोंमे सस्ता रहता है। बाजरेको खि बड़ी मैंने कभी नहीं खाई थौ अब हुक्म दिया तो पका कर लाये। बैखाद नहीं थी मुझे तो अच्छी लगी। मैंने कह दिया कि सूफियानापा दिनों में जबकि पशु संवंधो भोजन छोड़े हुए हों और बिना मांसके खाना खाता हूं तब यह खिचड़ी विशेष करके 'लाया करें।" बादशाह मङ्गलको ६। कोस चलकर कोसालेमें और बुधको परगने बाबरेमें होकर समुद्रके किनारे उतरा। यह मंजिल भी ६ कोसको थी। गुरुवारको वहीं रहकर प्यालेको सभा खज़ाई ____पा मुसलमानोंके भक्त सूफी कहलाते हैं वह जब कोई अनुष्ठान करते हैं तो मांस क्या घी, दूध और दही तक नहीं खाते हैं इसको भी एक प्रकारको पशुहिंसा समझते हैं।। २६७ और बलुत अलिबा शिकार की और सब समासदीको बाटो गाई: गाने दीवार। शुक्रबारको चार कोखका अच और गांव बाड़ों में मुकाम हुमा रास्तेने बादशाहने कई जगह दीवारें देखी जो दो दो गज तक जंची थीं। पूछा तो मालूम हुआ कि यह दीवारें लोगोंने पुण्याथः बनाई हैं कि जो कोई बोझ लेजाने वाला थक जावे तो अपना बोझ इन पर रखकर सुस्ता ले और फिर बिना किसीके सहारही उठाकर अपना रस्ता ले। यह बात बादशाहके बहुत पसन्द आई। उसने हुक्म दिया कि सब बड़े बड़े शहरों में इसी प्रकार दीवारें बादशाही व्ययसे बनवा दें। कांकरिया ताल । २३ (नाव बदौ ३) शनिवार को पौने पांच कोम चलकर कांक- रियाताल पर डेरा हुआ जो अहमदाबादके बसानेवाले सुलतान अहम के पोते कुतुबुद्दौनका बनाया हुआ है। उसका घाट पत्थर धौर यूनेसे पक्का बंधा है। तालके बीच में छोटासा नागोचा और एक अवन है। तालके किनारसे वहांतका जानेके लिये पुल बना है। बहुत वर्षो से यह स्थान टूट फूट गया था और कोई ठोर बादशाहो रहनेके योग्य नहीं रही थी इसलिये गुजरातके बखशी सफोलांने सरकारसे जीर्णोद्धार करके बागीचा भी सजवा दिया था और एक नया झरोखा भो. ताल और बागोवेके ऊपर झुका दिया था। वह बादशाहको बहुत पसन्द आया। पुलके पासही निजामुद्दीनने जो अकबर बादशाहके राज्य में कुछ समय तक यहां बखशो रहा था एक बाग लगाया था। __ अबदुलहखांको दरह।

बादशाहसे अर्ज हुई कि निजामुद्दीनके बेटे आबिदसे और अब-

दुलहखांसे बिगाड़ है। इससे अबदुलहने इस बागके पेड़ कटवा झाले हैं। यह भी सुना गया कि जब अबदुल्लहखां यहांका हाकिम । २८८ जहांगीरनामा। १६:३४, २४ दिसम्बर २०१९ (UTC)~~ था तो एक दिन शराबको मजलिसमें एक गरीब आदमीको जो कुछ ठठोल भी था, बेसमझौसे हंसी को कोई बात कहने पर उसी जगह मरवा डाला था। इन दोनों बातोंके सुननेसे बादशाह ने कोप कार के बखशियोंको हुक्म दिया कि उसके १००० दुअख्ये और तिअस्यै सवारोंको इकाही रखकर ७० लाख दाम जो बढ़ें वह जागीरमेंसे काटलें। शाहआलमका मकबरा। इसी जगह कुतुबपालमर्क बेटे शाहपालमका मकबरा भी है जिसको सुलतान महमूद बेगड़ेके पोते सुलतान मुजफ्फरके अमीर ताजखां नामौने एक लाख रुपये लगाकर बनाया था। शाहा- लम सुलतान महमूदके समय में सन ८८० ( संवत् १५३२ ) में मरा . था गुजरातियोंका उस पर बड़ा प्रेम था और वह कहते थे कि शाहआलम मुर्दो को जिला दिया करता था। उसके बापने मना कर दिया था तोभी एक सेवकके मृतपुत्रको अपने पुत्रके प्राण देकर . जिला दिया। उसका पुत्र उसी समय मर गया और सेवकका पुव जो उठा। बादशाह लिखता है-"मैने यह बात उसके गद्दीनशीन सैयद महमूदसे पूछी थी। उसने कहा कि मैं अपने बाप दादशि ऐसाही सुनता आया हूं। आगे ईश्वरं जाने। यह बात अकलसे दूर तो है पर लोगों में बहुत विख्यात है इसलिये अद्भुत समझकर लिखी गई।" सुहत। बादशाहक अहमदाबाद में प्रवेश करनेका मुहर्त सोमवारको था इस लिये रविवारको भी बादशाह कांकरिया तालही पर ठहरा रहा। , - हजार सवार दुपस्था और तिअस्याको तनखाहके, ७० लाख दाम अर्थात् पौने दो लाख रुपये होते थे वह जागोरसे काटे गये एक सवारका १७५० सालाना और १४:४०४ पाई महोना हुआ। २८८ संगत् १६७४। wirrrrrrrrrrrrrrrrr.ran जारेजो बुरा तजे। हिरातमें "कारज" एक स्थान है जहांके गवरबूजोंके बराबर तारे दुरासाजन कहीं अच्छे खरबजे नहीं होते हैं। वहांकी रहर- बूजे १४०० कोससे पांच महीने में आने पर मी तर ताजा आये। आये भी इतनी बहुतायतसे ति सब नौकरोंको दिये जासके। बंगालका कोला। ऐमेही बंगालके कोले भी एक हजार कोस चलकर ताजा पहुंचे। बादशाह लिखता है-यह फल बहुत कोमल होता है इससे भैरे निजके खाने लायक प्यादोंको डाकसे हाथों हाथ पहु- चता है। हाथोके दांत। इसी दिन दमानतखाने दो हाथी दांत भेट किये जो बहुत बड़े थे। एक ३ गज ८ तन्नू लम्बा और १६ तसू मोटा था। तौलमें ३ मन २ सेर निकला। ___ अहमदाबादमें प्रवेश। २५ (माय बदौ ५) चन्द्रवारको छः घडी दिन चढ़े पोछे बाद- शाह अपने सुन्दर और सुशील हाथी सूरत गज पर सवार होकर अहमदाबादमें दाखिल हुआ। लिखता है-“यह हाथी उस समय मल होरहा था तो भी उसके सरल खभावका विश्वास था। बत से स्त्री पुरुष, गलियों बाजारों छतों और दीवारों पर बैठे बाट देख रहे थे । अहमदाबादको जैसी प्रशंसा सुनी थी वैसा न निकला। बाजार चौड़ा लम्बा है परन्तु दुकानें बाजारको चौड़ाईके तुल्य नहीं हैं। सब घर लकड़ीके हैं, दुकानोंके खम्बे पतले और अहे हैं। बाजार और गलियों में धूल उड़ती है। मैं कांकरिया तालसे किले तक जिसको भद्र कहते हैं रूपये लुटाता हुघा गया । भद्रका अर्थ शुभ है। गुजराती बादशाहोंके भवन जो भद्र में थे वह शब इन ५६ पा वर्षो में गिर गये हैं। बर्तमान मकान हमारे नौकरोंने बनाये हैं जो . या अर्थात् जबसे कि उनका राज्य नष्ट हुआ है। . जहांगीरनामा। इस देश में शासन करने को आते रहे हैं। अब जो मैं मंडूसे अह- मदाबादको चला तो मुकर्रबखांने पुराने स्थानीको नये सिरसे ठीक किया और जरूरी नये मकान ी बनवाये जैसे झरोखा मामखास आदि। आज शाहजहांके तुलादानका शुभदिन था। मैंने नियमानुसार सुवर्ण और दूसरे पदार्थों में उसको तोला। उसे अबसे २७ वां वर्ष लगा है। आजही गुजरातका देश भी उसको जांगौर में दिया गया। मांडूको किलेसे बन्दर खम्भात जिस रास्ते में प्रायो धा १२४ कोस था २८ कूच और ३० मुकाम हुए ये खम्भातमें दंख दिन रहा था-वहांसे अहमदाबाद २१ कोस था जो ५ कूच और दो मुकाम में काटे गये। इस तरह पर हम मांडूसे खम्भात होकर १४५ कोस २ महीने १५ दिनमें पाये। सब मिलाकर ३३ कूच और ४२ सुकाम हुए। जामा सजिद। २६ (माघ सुदी ) मंगलको बादशाह नामा मसजिद देखनेको गया जो अहमदाबादके बाजारों है। वहांके फकीरोंको पांच सौ रुपये दिये। वह लिखता है-यह मसजिद सुलतान अहमदको बनाई हुई है उसीने अहमदाबाद बसाया है। इसके तीन दरवाजे हैं और तीनोंके आगे बाजार हैं। जो दरवाजा पूर्वको है उसके सामने उक्त सुलतानका कबरस्तान है जिसमें वह, उसका बेटा मुहम्मद और पोता कुतुबुद्दीन सोये हुए हैं। मसजिदके चौकको लम्बाई कोठड़ियोंको छोड़कर १०३ और चौड़ाई ८० गज है। फिर ४॥ गज चौड़े दालान हैं। चौकों किली हुई ई टोंका फर्श है। दालानों के खम्बे लाल पत्थरके हैं और कोउड़ियोंके खम्बे ३५४ हैं। खम्बों के ऊपर गुस्बद बने हैं। कोठड़ियोंकी लम्बाई ७५ गज है और चौड़ाई संवत् १६७४। rememmmmmmmmmmmmmmmmmmm २७ गज है। कोठड़ियोंका फाश, बहराव और जिमवर, अरमान पत्थरके हैं। पारीको दो मोनार लीगलौज खण्डके हैं उगी पावाणों में वेलबूटे बड़ी कारीगरीके बने हैं। निमवरणी दहगी गुजामें कोठडीके कोनेसे मिली हुई एक बैठक छांट दी है जो खन्नोंकी बीच पत्थरके तख्तोंसे ढकी हुई है और उसके गिर्द छत तका पत्यरका कटहरा लगा हुआ है। तात्पर्य यह है कि जज बादशाह जुम्ने या ईदको नमाजके वास्ते आवे तो अपने सभासदी उशित उसपर जा कर नमाज पढ़े। उसको यहांवाले अपनी बोलीमें अलूकखाना (राजभवन) कंचते हैं। भीड़से बचने के लिये ऐसौ युक्ति की गई है सच यह है कि यह बात बड़ी मसजिद है। रोख वजीदको खानकाह । २७ (बाघ सुदी १०) बुधवारको बादशाह पोख वजीहीनको । खानकाहको देखने गया, जो राजभवनको समीपही थी। उसके चौकमें उसको कबर पर फालहा पढ़ा। यह खानकाह सादिका खांने जो अकबर बादशाहक बड़े हामी में था वनवाई थी। शैम्बू ३० वर्ष पहले मरा था। वह शैक्ष शुहम्मदगीस खलोगों में • से शा। शैखके बेटे तया पोते अबदुलह और अतडुलाइ भी सर के थे। असदलका भाई शेख हैदर दादाको महीपर था। बादशाह ने उसको पन्द्रहसौ रूपये मृत शैखका उर्स करनेको दिये जो उन्हीं दिनों में होनेवाला था और उतनेही रुपये वहांके पाको को अपने हाथसे खैरात किये। पांच सौ रुपये रोख हैदरको माई वजोहुद्दीन को दिये। ऐसेही उसके दूसरे सम्बन्धियोंको रूपये और भूमि. दी। ख हैदरसे कहा कि जिन फकोरों और गरीबोंको वह जानता हो . हुजूरमें लाकर खर्च और जमीन दिलानको प्रार्थना करे। रुस्तम बाड़ी। २८ (माघ सुदी ११) गुरुवारको बादशाह रुखमबाडोमें गया । पन्द्रहसौ रुपये मार्गमें लुटाये। यह बाग बादशाहके भाई शाह

  • मकरानेको रंगतके खेत पाषाणको मरमर कहते हैं ।

[ २६ ] ३०२ जहांगीरनामा। सुरादने अपने बेटे रुस्तमके नामसे बनाया था और गुरुवारका उत्सव वहीं करके कई निज सेवकोंको प्याले दिये। . दिनढले शैख सिकन्दरको हवेलौके बागीचे में गया जो रुस्तम बाग के पड़ौसमें था । उसमें अजीर खूब पके हुए थे। बादशाह लिखता है कि अपने हाथसे मेवा तोड़ने में बड़ा मजा आता है । मैंने आज तक हाथसे अञ्जौर नहीं तोड़े थे और इस प्रसंगसे धौख सिकन्दरका मान बढ़ाना भी अभीष्ट था इसलिये सीधा चला गया। शेख सिकन्दर गुजराती है और सज्जनतासे शून्य नहीं हैं। गुजरातके बादशाहोंका वृत्तान्त खूब जानता है। ५ वर्षसे मेरे बन्दोंमें, नौकार है। . . . . . . . .:. रुस्तमखांको रुस्तमबाड़ी। ___ बादशाह शाहजहांकी प्रार्थनास रुस्तमबाड़ी उसके नौकर कसुर मखांको देदी। वह अहमदाबादका हाकिम बनाया गया था । ईडरका राजा कल्याण । इसी दिन ईडरके राजा कल्याणने उपस्थित होकर एक हाथी और घोड़े भेट किये। बादशाहने हाथी उसीको बखश दिया। वह लिखता है-"यह गुजरातके सीमाप्रान्सका मोतबिर, जमींदार है। इसका राज्य रानाके पहाड़ोंसे मिला हुआ है। गुजरातके बादशाह सदा उस पर चढ़ाई करते रहे हैं। यद्यपि किती विभीने. झुछ अधीनताभी स्वीकार को और मेटभी भेजी पर आप कभी किसी के मिलनेशो नहीं गया। जब स्वर्गवासी श्रीमाजने गुजरात विजय. को तो राजा पर भी सेना भेजी थी। जव उसने अधीन होनेके शिवा अपला बचाव न देखा तो सेका खोकार करके चौखट चूमने को पाया। उस दिनसे अबतक सेवकोंमें शामिल है और जो कोई अहमदाबादके शासन पर नियत होता है और जब काम पड़ता है तो सेना सहित उपस्थित होजाता है।

  • इसने मिरात सिकन्दरौ नामक एक अच्छी तवारीख गुजरात

की बनाई है। संवत् १६७४। चन्द्रसेन । १ बहमन (माघ बदौ ८) शनिवारको चन्द्रसैन ने जो इस देश . के मुख्य जमींदारों से था चौखट चूसकर ८ घोड़े थेट विाये । . . , राजा कल्याणको हाथौ । २ (माघ वदी १०) रविवारको बादशाहने ईडरके राजा कल्याण और सय्यद मुस्तफा तथा मौरफाजिलको हाथो दिये। शैख अहमद खट्टको जियारत। ___३ (माध बदौ ११) चन्द्रवारको बादशाह बाज और जुरों के शिकारको निकला। रास्ते में पांच सौ रुपये न्यौछावर दिये । उधर हो शख अहमद खटूको नियारत थी। बादशाइने वहां जाकर फातहा पढ़ा। यह शैख गांव खट्टू परगने नागोरमें पैदा हुअा। अहमदाबाद का बसानेवाला सुलतान अहमद इसका भक्त था। यहांके लोगोंकी इसमें बड़ी श्रधा है। शुक्रवारको रातको बहुतसे छोटे बड़े मनुष्य जियारत करने पाते हैं। .. सुलतान अहमदका वेश्य सुलतान मुहम्मद उसकी कबर पर एक बड़ा मठ बनाने लगा था जो उसके बेटे सुलतान कुतुबुद्दीनके समयमें पूरा हुआ। यहां दक्षिण दिशा में एक बड़ा पका तालाव उसौका बनाया हुआ है। गुजराती बादशाहोंको कबरें इसी तालाब पर हैं जिनसें सुलतान महमूद बैगड़ा, उसका बेटा सुज- फ्फर, सुजफ्फरका पोता महमूदशहौद जो गुजरातका अन्तिम बादशाह था सोये हुए हैं। महसूदको मूंछे मोटी और सुड़ी हुई थौं जिससे उसको वैगड़ा कहते थे। इन कबरों के पासही इनके सरदारोंजो भी कबरें हैं। बादशाह लिखता है-"शैखका मकबरा अति विशाल और विमल है ५ लाख रुपये इसमें लगे होंगे।" + यह हलवदका झाला राजा था। जहांगीरनामा। फतहबाड़ी। जियारत करके बादशाह फतहबागमें गया। यह उस जगह पर है जहां खानखानाने नन्हसे जो अपनेको सुलतान सुजफ्फर कहलाता था युद्ध करके जीत पाई थी। गुजरातवाले इसको पति- हबाड़ी कहते हैं। .. . ::. नन्हू। एतमादखां गुजरातीने अकबर बादशाहमे कहा था कि यह नन्हू बहलवानका बेटा था। जब सुलतान महमूद तथा गुजरातके और किसी बादशाहको सन्तान न रही थी तो हमने इसको सुस- तान महमूदका बेटा बनाकर सिंहासन पर बिठा दिया क्योंकि वह समय ऐसाही था। .इस प्रसङ्गसे बादशाहने सविस्तर वृत्तान्त. खानखानांके गुजरात विजय करनेका लिखा है परन्तु वह अकबरनामे में लिखा जाचुका है इसलिये यहां अनावश्यक समझकर छोड़ दिया गया। खानखानाने विजय प्राप्त होनेके पक्षात् साबरमती नदीके तट पर यह बाग १२० डोरी भूमिमें लगाया था। इसके आसपास पक्का कोट बना है। बादशाह लिखता है:-अति उत्तम विहार- स्थान है दो लाख रुपये इसमें लगे होंगे। मुझको बहुत पसन्द प्राया। यह कहना चाहिये कि गुजरात.भर में कोई बाग इसके समान न होगा। मैंने यहां गुरुवारका उत्सव करके निज पारि- पदोंको प्याले दिये और रातको वहीं रहकर शुक्रको पिछले दिन से शहरमें आया। १०००) रास्ते में लुटाये। ..... उस समय बागबानने प्रार्धमा की कि कई चम्पाके झाड़ जो नदी पर बने हुए चबूतरे में लगे थे,सुकरबलांझे नौकरने काट डाले हैं। बादशाहको यह बात बहुत बुरी खगी और खयं निर्णय करके साबित होने पर उसकी दो उङ्गलियां काटनेका हुक्म दिया जिससे दूसरोको भय हो। बादशाह लिखता है-"सुकर्रबखा को खबर नहीं हुई होगी नहीं तो वह उसी समय दण्ड देदेता। संवत् १६७४। __११ (माघ बदौ १२) मंगलके दिन कोतवाल एक चोरको पकड़ कर लाया जो पहले कईबार चोरियां करचुका था और प्रति चोरी में उसका एक एक अंग काटा गया था। पहली बार दहना हाथ , दूसरी बार बाई उङ्गलौ, तीसरी बार बायां कान और चौथी बार दोनों पावोंको फौचें काटी गई थीं। तोभी उसने अपनी आदत नहीं छोड़ी थीं। रातको एक घसियारेक घरमें घुसा था उसने जागकर पकड़ लिया पर इसने उसे कुरियोंसे मार डाला। इस पर बड़ा कोलाहल हुआ और घसियारके भाईबन्दोंने आ पकड़ा। बादशाह ने उन्हींको सौंपकर-दण्ड देनेको आज्ञा देदी। १२ (माघ वदी १३) वुधको बादशाहने तीन हजार रुपये अज- मतखां और मोतविादखाको दिये कि अलग अलग शैख खष्ट की कबर पर जाकर वहांके मुजावरों और गरीबोंको बांटदें। . १३ (माघ बदौ ४) गुरुवारको बादशाहने शाहजहांके डेरे पर जाकर गुरुवारका उत्सव किया और मुख्य मुख्य सेवकीको प्याले दिये। शाहजहां सुन्दर मथन हाथोको मांगा करता था जिसे अकबर बादशाह बहुत प्यार करता था और जो घोड़ेके साथ खूब दौड़ता था। अब बादशाह वह हाथी सोनेके गहनों, सांकलों और एक हथनी सहित उसको देआया। । खुर्दा। . इन दिनों में समाचार मिला कि मुअज्जमखांके बेटे मुकरमखां उड़ीसाके सूबेदारने खुर्दाको विलायत जीत ली और वहांका राजा भागकर राजमहेन्द्रौमें चला गया। बादशाहने मुकर्रमखांका मन- सब बढ़ाकर तीन हजारो और दो हजार सवारोंका कर दिया। घोड़ा सिरोपाव और नकारा भी बखशा। बादशाह लिखता है कि उड़ीसा और गोलकुंड के बीचमें दो जमींदारोंकी आड़ थी एक खुका दूसरा गजमहेन्द्रीका। सो खुदी तो बादशाही बन्दोंके अधीन होगया है अब दूसरेको बारी है। नहांगीरनामा।

कुतुबुलमुल्काको अर्जी।

.. इन्हीं दिनों में कुतुबुलमुल्कको अर्नी शाहजहाँके नाम पहुंची। जिसमें लिखा था कि अब मेरा राज्य बादशाही सीमाके निकटवर्ती होगया है और मैं बादशाहो बन्दा हूं इसलिये मुकरमखांको मेरे । राज्यमें हस्तक्षेप न करने का हुक्म होजावे।. ... . . . बादशाह लिखता है कि यह दृष्टान्त उसी मुकर्रमखांके बल वीर्यका है कि जिससे कुतुबुलमुल्क जैसा पड़ौसी घबड़ा गया। ... . . हलवदका चन्द्रसेन । हलवदके जमींदार चन्द्रसेनको घोड़ा सिरोपाव और हाथी मिला। मुजफ्फर। . . ठढे के अगले बादशाह मिरजा बाकौतरखांका बेटा मुजफ्फर जो. मिरजा बाकौके मरने पर उस. राज्य पर मिरजा जानीका अधिकार होजानेसे अपने नाना कच्छके राव भाराके पास रहा करता था बादशाहका प्रधाश्ना सुनकर सेवामें उपस्थित हुआ। अमीर तैमूर के समयले उसके पूर्वज अधीन रहते आये थे। इसलिये बादशाह ने उसका पालन करना उचित समझकर खर्चके वास्ते दो हजार रुपये खिलअत सहित दिये। ____ फतहबागके अनौर। . माघ सुदी १४) गुरुवारको बादशाह फतहबांगमें गुलाबको बहार देखनेको गया जो एक क्यारोमें खूब फूला हुपा था। बाद- शाह लिखता है कि “गुलाब इस मुल्कमें कम होता है आशीर.. भी पके हुए थे कई अपने हाथ से तोड़े। उनमेंसे एक बड़ा था वह तौलमें ॥ तोलेका हुा ।" - . कारंजके खरबूजे ।। इसी दिन खाने आजमके भेजे कारेजके १५०० खरबूजे बाद- शाहके पास पहुंचे। . बादशाहने १००० तो उन सेवकोंको दिये जो सेवासें उपश्थित थे और ५०० अन्तःपुरमें भेजे।. ... . बादशाह चार दिन भोग विलासमें व्यतीत करको २४, (फागुन नदी ३) चन्द्रवारको रातिको नगर में आया और कारंजके कुछ मनुरबुजे अहमदावादको बड़े बूढ़ोंको दिये। वह उनको 'खाकर अचम्भेने रह गये कि दुनिया में ऐमी चामत भी होती है। क्योंकि बादशाहके कथनानुसार गुजगतमें खरबूजे बहुत खराब होते हैं।

गजातके अंगूर।

२७ (फागुन बदौ ६) गुरुवारको बकोना नामक बागीचे में बादशाहने प्यालेकी मजलिस जोड़ी, और निजसेवकोंको प्याले भर भर कर दिये। यह बागीचा राजभवनमें ही किमी गुजराती बादशाहका लगाया हुआ था और इस समय एक क्यारोमें पके हुए दाख देखकर बादशाहने कह दिया कि जिन बन्दोंने प्याले पिये हैं वह अपने हाथमे तोड़ तोड़कर दाखोंका भी खाद लें।

अहमदाबादसे मालवेको लौटना ।

१ आसफन्दार (फागन बदौ ८) चन्द्रवारको अहमदाबादी मालवे को कूच हुअा। बादशाह रुपये लुटाता हुआ कांकरिया ताल तक गया जहां डर जग थे। वहां तीन दिन तक रहा।

मुकर्रबखांको भेट।

४ (फागुन वदी १२) वृहस्पतिवार को मुकर्रबखांको भेट हुई । बादशाह लिखता है कि कोई उत्तम पदार्थ न था जिसके लेनेकी रुचि मनमें होती। उसने इसी संकोचसे यह मेट अपने बेटीको दी थी कि अन्तःपुरमें पहुंचा दें। मैंने एक लाख रुपयेके रत्न और रत्नमड़ित आभूषण लेकर शेष उसोको फेर दिये। कच्छी घोड़ोंमेंसे १०० लिये परन्तु कोई घोड़ा ऐसा न था कि जिसको प्रशंसा की जावे।

रुस्तमखांको कड़ा और नकारा।

५ असफन्दार शुक्रवार (फागुन सुदी. १३) को ५ कोस चलकर अहमदाबादकी नदी पर डेरे हुए। बादशाहने रुस्तमखांको शाह- जहांको प्रार्थनाके अनुसार जो उसने उसे गुजरातको सूवेदारी पर छोड़ते समय को थौ झण्डा नकारा सिरोपाव और जड़ाऊ , खञ्जर, सूनायत किया । रुस्तमखां शाहजहांके मुख्य सेवी से था । बादशाह लिखता है कि इस राज्य में यह प्रथा नहीं थी कि शाह. जादोंके सेवकोंको झण्डा और नकारा दिया जाये। मेरे पिताको मुझ पर बहुत कपा थी तो भी उन्होंने मेरे अनुचरोंको वास्त की पदवी नक्कारे और झण्डे देनेकी चेष्टा नहीं की। परन्तु मुझ शाह- जहाँसे इतना अधिक छह है कि मैं लेशमात्र ी कभी उसकी मनोकामना पूर्ण करनेसे विमख नहीं रहता है। वास्तवमें वह. मेरा सपूत बेटा है और सम्पूर्ण कपाओंका पात्र है। युवावस्था और राजलक्ष्मी प्राप्त होनेके पीछे जिधर उसने चढ़ाई की है. उधर मेरी इच्छाके अनुमार लड़ाई जीती है।

इसी दिन मुकर्रबखांको घर जानेकी आज्ञा हुई ।

बादशाहने कुतुबालमको कबर पर जाकर वहां के मुजावरीको पांच सौ रुपये दिये।.

६ असान्दार शनिवार ( फागन बदी १४ तथा अमावस ) को बादशाहने महमूदाबादको नदीमें नाय पर जाकर मछलोका शिकार किया।

सैयद मुबारकका सवाबरा ।

इसी नदीके तट पर सैयद मुबारकका मकबरा उसके बेटे सैयद मोराने दो लाख रुपयेसे अधिक लगाकर बहुत पक्का और ऊंचा बनाया था। बादशाह उसके विषयमें लिखता है कि गुजराती बादशाहोंके मकबरे जो देखे गये तो उनमें कोई इसका दशमांश भी नहीं है अथच वह देशाधिपति थे और यह नौकर था। श्रद्धा और साहस परमेश्वरका दिया हुआ होता है। सहस्रों धन्यवाद है ऐसे पुत्रको जिसने अपने पिसाका ऐसा मकबरा बनाया है।

सकलोमें मछली।

रविवार (फागुन सुदी १) को भी वहीं डेरे रहे। चारसौ मछ- लियां शिकार हुई। एक बिना छिलके की थी जिसे संगमाहौ कहते हैं। ‘बादशाहने उनका पेट बहुत बड़ा देखकरं चिरवाया तो उसमें में एक छिलकेदार मछली निकाली जो तुरन्त निगली हुई थी। संगमाही तौलमें ६॥ सेरकी और दूसरी २ सेरकी हुई।

गुजरातकी वर्षा।

८ सोमवार (फागुन सुदी १) को बादशाह डेढ़ पाव चार कोस चलकर गांव मोदेके पास ठहरा। लोग गुजरातकी बरसातकी बहुत तारीफ करते थे पिछली रातसे दोपहर दिन तक कुछ मेह बरसा--धूल बैठ गई और बादशाहने यहांकी वर्षा भी देख ली।

मंगलवारको ५॥ कोस कूच होकार जरीसमा गांवके पास डेरे लगे। यहां मानसिंह सेवड़ाके मरनेका समाचार मिला।

मानसिंह सेवड़ा।

बादशाह लिखता है कि सेवड़े हिन्दू नास्तिकों से हैं जो सदैव नंगे सिर और नंगे पांव रहते हैं। उनमें कोई तो सिर और डाढ़ी मूछके बाल उखाड़ते हैं और कोई मुंडाते हैं। सिला हुआ कपड़ा नहीं पहनते। उनके धर्मका मूलमन्त्र यह है कि किसी जीवको दुःख न दिया जावे। बनिये लोम इनको अपना गुरु मानते हैं दण्डवत करते हैं, और पूजते हैं। इन सेवड़ोके दो पन्थ हैं। एक तपा दूसरा करतल (खरतर)। मानसिंह करतलवालों का सरदार था और बालचन्द तपाका। दोनों सदा स्वर्गवासी श्रीमानकी सेवामें रहते थे। जब श्रीमानक स्वर्गारोहण पर खुसरो भागा और मैं उसके पीछे दौड़ा तो उस समय बीकानेरका जमीदार रायसिंह अरटिया जो उक्ता श्रीमानके प्रतापसे अमीरोके पदको पहुंचा था मानसिंहसे मेरे राज्यकी अवधि और दिन दशा पूछ्ता है और वह कलजीभा जो अपनेको ज्योतिषविद्या और मोदन मारण वशीकरणादिमें निपुण कहा करता था उससे कहता है कि इसके राज्यकी अवधि दो वर्षकी है। वह तुच्छ जीव उसकी बात का विश्वास करके बिना छुट्टीही अपने देशको चला गया। फिर जब पवित्र परमात्मा प्रभुने मुझ निज भक्ताको अपनी दयासे सुशोभित किया और मैं विजयी होकर राजधानी आगरे में उपस्थित हुआ तो लज्जित होकर सिर नीचा किये हुए दरबारमें पाया। शेष वृत्तान्त उसका अपनी जगह पर लिखा जाचुका है। और मानसिंह उन्हीं तोन चार महीने में कोढ़ी होगया। उसके अंग प्रत्यङ्ग गिरने लगे वह अबतक अपना जीवन बीकानेर में ऐप्तौ दुर्दशासे व्यतीत कर रहा था कि जिससे मृत्यु कई अंशों में उत्तम थी। इन दिनों में जो.मुझको उसकी याद आई तो उसके बुलानेका हुक्म दिया उसको दरगाहमें लाते थे पर वह डरके मारे रास्ते ही जहर खाकर नरकगामी होगया।

जब मम भगवद्भताको इच्छा न्याय और नीतिमें लीन हो तो.जी कोई मेरा बुरा लेतेगा वह अपनी इच्छाके अनुसारही फल पावेगा। , सेवड़े हिन्दुस्थानके बहुधा नगरों में रहते हैं। गुजरात देशमें व्यापार और लेनदेनका आधार बमियों पर है इस लिये सेवड़े यहां अधिमतर हैं।

मन्दिरोंके सिवा इनके रहने और तपस्या करनेके लिये स्थान बने हुए हैं जो वास्तवमें दुराचारके आगार हैं। बनिये अपनी स्तिषों और वैटियोंको सेवड़ोंके पास भेजते हैं लज्जा और शील-. बत्ति बिलकुल नहीं है। नाना प्रकारको अनौति और निर्लज्जता इनसे होती है। इस लिये मैंने मेवड़ों के निकालनेका हुक्म देदिया है और मब जगह शाज्ञापत्र भेजे गये हैं कि जहां कहीं सेवड़ा हो मेरे राज्य में निकाल दिया जाये।

कच्छी घोड़ा।

१० बुधवार (फागुन सुदी ४) को दिलावरखांके बेटेने अपने बोपको जागौर पट्टनसे आकर एक सुन्दर कच्छी घोड़ा भेट किया। बादशाह लिखता है शि जबसे मैं गुजरातसे आया हूं ऐसा अंच्छा घोड़ा कोई मनुष्य भेटमें नहीं लागथा एक हजार रुपयेका था।

सेवकों पर आपा।

११ गुरुवार (फागुन सुदी ५) को उसी,तालाबके तट पर प्यान्नों को मजलिस जुड़ी। बादशाहने शुजाअतखां, सफीखां आदि. कई । तिवीको जो इस खूबेक कामों पर निवत थे घोड़े सिरोपात्र और नाश देकर बिदा किया। बाईको मानना भी बढ़ाये गये।

सुतुबुलमुल्जायी वकीलको जो उत्तमो अट लेकर चाया घा तीस हजार दरब मिले।

अनार और बिही।

इसी दिन शाहजहांने बिही और अनार जो कराहन से उसके वास्ते लाये गये थे भेट किये। बादशाह लिखता है कि अवतक इतने बड़े अनार नहीं देखे थे बिही तो तौलमें २८ तोला ८ माशा और अनार ४०॥ तोलेके हुए।

शैखोंको उपहार।

१६ सोमवार (फागुन सुदी) को बादशाहने गुजरातको शैली को जो पहुंचाने आये थे फिर सिरोपाव खर्च और भूमि देवार बिदा किया और हरेकसो एका एका धम्मपुरखका दो निज पुस्तकालयसे दी जिनकी पीठ पर अपने गुजरातमें अाने और पुस्तक देनेशी मिती लिखदी।

बादशाह लिखता है-"इस समय जबतक अहमदाबाद मेरी सवारी उतरजेसे शोभायमान रहा दिन रात मेग यही वाम था कि मुपानीको अपनी आंखोंसे देखकर धन और पृथिवी प्रदान करूं। शैख अहमद सदर (दानाध्यक्ष) और दूसरे बाई मिजाजदां सेवक निबत कर दिये गये थे कि फकीरों और हवादारीको मेरी सेवामें लाते रहें। तोभी शोख मुहमदगौसके बेटों, शैख वजीहद्दीनके पोते और दूसरे मशायख यो यी हुक्ता देदिया था कि उनके जानने में जहां कहीं कोई हकदार हो उसको खिदमतमें हाजिर करें। ऐसही सहलमें काईलियां क्लो काम पर लगाई हुई थीं कि दोन और दरिद्री अबलाओंको मेर- पास लाया करें। क्योंकि यह उद्देश्य संपूर्ण रूपसे था कि जब बहुत वर्षों के पीछे मुझ जैसा बादशाह इस देशको गरीबोंके आग्यसे + खुरासानका एक नगर। ३१२ जहांगीरनामा। यहां पागया हो तो चाहिये कि कोई भी विमुख न रहे। खुदा गवाह है कि इस उद्योगमें मैंने कोई कसर नहीं रखी है और किसी समय भी इस काम करनेसे निश्चिन्त नहीं बैठ रहा ३। यद्यपि अहमदाबादमें भानेले कुछ वर्ष नहीं हुआ है तो भी अपने ज्ञानी मनको इस अनुभवसे प्रसन्न रखता कि मेरा आना दौन दरिट्रोंके एक बड़े अण्डको जीविकाका हेतु हुआ है और बहुत लोग निहाल होगये हैं। . कोकबको विचित घटना। १६ अंगलवार (फागुन सुदी १०) को कमरखांका बेटा और मौर अबदुललतीफ कजवीनीका पोता कोकब पकड़ पाया। यह पीढ़िवोंका मौकार था दक्षिणको सेना संयुका था। कई दिन तक वहां रह से संग रहा और इसके अतिरिक्ता बहुत वर्षों तक मनसब में कुछ भी सद्धि नहीं हुई थी इस लिये बादशाहको सपा न होने के अमले विरा होकर बुरहानपुरसे निकल गया और ६ महीने तक दक्षिणके सब देशी दौलताबादसे बिदुर बीजापुर करनाटक. और गोलकुण्डे पर्यन्त फिरकार दावुल बन्दरमें गया। वहांसे. भावमें बैठदार बन्दर मोघेने आया। . सूरल बन्दर भड़ौच और मार्गको दूसरी बस्तियोंको देवडता छुअा अहमवाबादमें पाया था कि शाह- जहांका एक नौकर जाहिद उसको पकड़कर दरगाहमें लाया । बादशाहने देखकर पूछा कि तुमने वंशपरम्परासे सेवामें रहने पर भी ऐसा कपूतपन क्यों किया ? उसने अर्ज की कि सतगुरु और सच्चे खासीको सेवा प्रसव्य नहीं कहा जाता। सत्य यह है कि पहले तो हापाभिलाषी था परन्तु जब आग्य अनुकूल न हुआ तो घर छोड़कर अंगलको निकख गया। बादशाह बिखता है कि उस की बाणोको सत्यता मेरे दिल खुब गई और मैंने क्रूरता छोड़कर पूछा कि इस नसणमें “तूमे पादिलखां, कुतुबुलमुल्का और अंबरको भी देखा था? उसने सविनय कहा-जब मेरे प्रारब्बने इस दरगाहमेंही सहायता न की और अपार समुद्र कंपो तंवत् १६७४ । ३१२ सम्व राज्य में भी मेरो प्यास नहीं बुझी तो मैं उन छोटे नालो खोलों में बाब होंठ उबोनेवाला था। वह मस्तकाही छिद जाय कि जो इस दरगाहमें न झुकाकर दूसरी जगह अकी। 'मैं जिस दिनसे निकला हूं आजतकाकी दिनचर्या एक बही में शिक्षता रहा हूं। उससे मेरा वृत्तान्त विदित होजावेगा।" उसका यह कहना और भी कपाका कारण हुआ। मैंने उसके लेखोंको अंगादार पढ़ा तो ज्ञात हुआ कि इस पर्यटनमें उसको बहुत कष्ट हुआ है। बहुधा पैदल फिरा है। खाना भी नहीं मिला है। इससे मेरा मन उस पर मेहरबान हुआ। दूसरे दिन मैंने अपने सम्मुख बुलाकर उसके हाथ पांवको बेड़ियां खुलवा दीं। खिलअत घोड़ा और १०००, खुर्चले वास्ते देकर उसका मनसब पहलेसे द्योढ़ा कर दिया। उसके ऊपर इतनी हाया और अनुग्रह को जिसका उसको कसी ध्यान भी न हुआ था। काशमौरको मरी। १७ वुधवार (फागुन सुदी ११) को ६ कोस चलकर गांव बारा- सिनोरमें काम्य लगा। काशमीरको मरीके विषयमें तो पहले लिखा हो गया। इस दिन वहांके समाचारलेखकको विनयपत्रिका पहुंची कि इन देशोंमें मरीका बड़ा जोर है। बहुतसे मनुष्य इस प्रकारसे मरते हैं कि पहले दिन सिरमें पौड़ा और ज्वर होता है नाकसे लहू बहुत निकलता है। दूसरे दिन प्राण निकल जाता है। जिस घरमें एक मनुष्य मरता है फिर उस घरके सब प्राणी मर जाते है। जो कोई रोगी या मृतकके पास जाता है वह भी रोगग्रस्त होजाता है। एक मनुष्य मर गया था उसको घासके ऊपर रखकार धोया था। एक गायने वह घास खाई और मर गई। उसका मांस कई कुत्तोंने खाया वह भी सब मरगये। यहांतक होगया है कि मरनेके भयसे बेटा बापके और बाप बेटेके पास नहीं जाता है। अनोखी बात यह है कि जिस बस्तीसे यह रोग फैला था वहां तीन हजार घर जल गये। बस विपदके पीछे तड़केही जो नगर animaanaanamannaam जहांगीरनामा गांवों और आसपासके लोग उठे तो क्या देखते हैं कि घरोंके हारी पर एक लंबी चौकोरको शकल बनी है २ बड़े चक्र एक दूसरेके सामने, २ चक्र मझोले एक चक्र छोटा और फिर दूसरे चक्र जिन के बीच में सफेदी नहीं थी। यह शकलें सब घरों में होगई थीं और मसजिदोंमें भी। कहते हैं कि तभीसे मरीमें भी न्यूनता होगई है। बादशाह लिखता है कि यह वृत्तान्त बहुत विचित्र था इस लिये लिख दिया है परन्तु मेरी बुद्धि इसको स्वीकार नहीं करती है। रांजा जाम। १८ गुरुवार (फागुन सुदी १२) को २। कोस चलकर मही नदी के तट पर ठहरना हुआ। बादशाह लिखता है-इस दिन जमों- दार जामने जमीन चूमकर ५० घोड़े १०० मुहरें और १०० रुपये अट किये। इसका नाम जस्मा है जाम पदवी है जो कोई गद्दी पर बैठता है उसको जाम कहते हैं। यह गुजरात देशके बड़े नामो जमींदारोंमेंसे है। इसका देश समुद्रसे मिला हुआ है पांच छ; सहस्र संवार सदा अपने समीप रखता है। काम पड़ने पर दस हजार तक ला सकता है। इसको विलायतमें घोड़े बहुत होते हैं कच्छी घोड़ा दो हजार तकका होता है। मैंने इस राजा को सिरोपाव दिया। कूचबिहारका राजा , इसी दिन कूचके राजा लक्ष्मीनारायणने जो बंगालके कोने में है बादशाही चौखटको चूमकर ५०० मुहमें नजर कौं, खिलत और जड़ाऊ खंजर पाया। • सईदखांका बेटा नवाजिशखां जो जूनागढ़का हाकिम था उप- स्थित होकर जमीन चूमनेके सौभाग्यको प्राप्त हुआ। । १८ शुक्रवार (फागुन सुदी १३) को मुकाम रहा। २० शनि. वारको ३॥ 'कोस चलकर झनूदके तालाब और २१ रविवारको ४॥ कोस घर बदरवालेके तालाब पर मुकाम हुमा। यहां अजमतखां संवत् १६७४। .. गुजगतीक रनेका समाचार उम्दामादसे आया। अच्छा सेवक

  • मुजालको व्यवसका पूरा नाता था। इससे बाधाहका

वित्त उदात जुधा! सजवन्ती। बादशाह लिखता है कि इस तालमें एक दूब देखी गई जिसको परो उंगली या लकड़ीकी नोक लगतेही सुकड़ जाते हैं और कुछ देर पोछे पिनर खिल जाते हैं। यह इमलीके पत्तोले मिलते हुए होते हैं। इसका नाम अरबी भाषामें लज्जाका वृच है हिन्दी लजवन्ती कहते हैं। यह भी अनोखी है और नाम भी अनोखा है। सिंहका शिकार। २२ सोमवार (जेच बदी १) को वहीं सुकाम रहा। बादशाह ने बन्दूक एका वड़ा शेष मारा जो ७॥ अनका था। वह इससे भी बड़े बड़े बहुत मार चुका था। जो माण्डोंगढ़में मारा था वह ८॥ मनका था। २३ (मंगलवार) को ३॥ बोस चलकर बायव नदी और २४ इधवारको ६ कोसके लगभग हमदहके तालाब पर मुकाम हुआ । २५ को वहां प्यालेको मजलिस हुई। प्याले देवार निज सेवकों का मान बढ़ाया गया। नवाजिशखां पांच सदी जातके बढ़नेसे तीन हजारो जात दो हजार सवारका मनसब और हाथो सिरोपाव पाकर अपनी नागौर को बिदा हुद्या। बलखके घोड़े। ' मुहन्यदहुसैन सबजक घोड़े खरीदनेके लिये बलखाको अजा गया था। उसने इसी दिन श्राकर योढ़ी चूमौ । उसको लाये हुए घोड़ोभिसे एक अबरश घोड़ा बादशाहको बहुत पसन्द पाया। वैशा सुरंग और सुडौल घोड़ा अबतक उसने नहीं देखा था। वह और भी पाई राहवार घोड़े अच्छे लाया था। बांग्याइने उसको

तिजारतखांकी पदवी दौं।

कूचका राजा।

२६ शक्रवार (चैव बदौ ५) को ५॥ कोस पर गांव जालोदमें डेरे हुए। बादशाहने कूचनरेशके चचा लक्ष्मीनारायणको जिसे अब गुजरातका मुल्क दिया गया था घोड़ा दिया ।

लंगूरका बच्चा और बकरी ।

२८ रविवार (चैत्र बदौ ७) को बादशाह पांच कोस चलकर कमवे दोहदमें ठहरा जो गुजरात और मालवेको सीमा पर है। यहां पहलवान बहाउहीन बरकन्दाजने एक लंगूरका बच्चा बकरीके साथ लाकर प्रार्थना की कि रास्ते में मेरे एक निर्दयी तोपचौने किसी वृक्ष पर लंगूरनौको गोदमें बच्चा लिये देखकर बन्दूक मारी। लंगूरनी गोली लगतेही बच्चे को एक डालो पर छोड़कर गिर पड़ी और मर गई । मैं उस बच्चेको उतारकर इस बकरीके पास लेगया । परमेश्वरने बकरीके दिल में दया उपजाई वह उसको चाटने लगी और विभिन्न जाति होने पर भी इसको लंगूरके बच्चेसे ऐसा मोह होगया है कि जैसे पेटका बच्चा हो।

बादशाह लिखता है-“मैंने बच्चे को बकरीसे अलग कराया तो वह व्याकुल होकर चिल्लाने लगी। उधर बच्चा भी बहुत घबराया। लंगूरके बच्चे का मोह तो जो दूध पीनेसे है उतना अधिक विस्मयजनक नहीं है जितना बकरीका मोह लंगूरके बच्चे के साथ होनेसे होता है और इसी आश्चर्यसे यह बात लिखी गई है।

२९ सोम और ३० मंगल (चैत्र बदौ ८ और ९) को भी वहीं डेरे रहे।

इति प्रथम भाग समाप्त ।

बादशाहकी आज्ञा।

"मैंने आज्ञा की कि इस बारह वर्षके वृत्तान्तका एक अन्य बना कर कई प्रतियां तैयार करें जिन्हें मैं निज सेवकोंको दूं और समग्र देशों में भेजूं और राजवर्गीय तथा विहान लोग इसको अपने कामोंका पथदर्शक बनावें।"


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  1. अब यह लोहेको लाठ अमबर बादशाहके रौजमें नहीं हैं जो आगरे के पास सिकन्दरे में है। उसको दोनों टुकड़े धारभही हैं बड़ा तो अपनी जगहहो पड़ा है और दूसरा एजेण्टको कोठीमें अखड़ा है धारके लोग इसको तेलोको लाठ कहते हैं।