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दीवान-ए-ग़ालिब/१ नक़्श फ़रियादी है, किसकी शोख़ि-ए-तहरीर का

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दीवान-ए-ग़ालिब
मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ाँ 'ग़ालिब', अनुवादक सरदार जाफ़री

पृष्ठ १ से – २ तक

 

 

नक़्श फ़रियादी है, किसकी शोख़ि-ए-तहरीर का
काग्जी है पैरहन, हर पैकर-ए-तस्वीर का

काव-ए-काव-ए-सख्त जानीहा-ए-तन्हाई न पूछ
सुबह करना शाम का, लाना है जू-ए-शीर का

जज्ब-ए-बे इख्तियार-ए-शौक देखा चाहिये
सीन-ए-शमशीर से बाहर है, दम शमशीर का

 

आगही, दाम-ए-शनीदन, जिस क़दर चाहे, बिछाये
मुद्द'आ 'अंक़ा है, अपने 'आलम-ए-तक़रीर का
बसकि हूँ, ग़ालिब, असीरी में भी आतश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतश दीदः, है हल्क़ः मिरी ज़ंजीर का