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दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग

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दुर्गेशनन्दिनी द्वितीय भाग  (1918) 
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, अनुवादक गदाधर सिंह

वाराणसी: माधोप्रसाद, पृष्ठ — से – ३ तक

 
दुर्गेशनन्दिनी
द्वितीय भाग।

बङ्ग भाषा के प्रसिद्ध उपन्यास लेखक बाबू

बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय कृत बङ्गला

दुर्गेशनन्दिनी का भाषा अनुवाद

बाबू गदाधरसिंह कृत।

बाबू माधोप्रसाद

धर्मकूप, बनारस सिटी ने

काशी नागरी प्रचारिणी सभा से अधिकार

लेकर छपवाया और प्रकाश किया।


बी०एल्० पावगी द्वारा हितचिन्तक प्रेस,

रामधाट, बनारस सिटी में मुद्रित।

चौथीबार १०००) १९१८
 

कुछ बहुत ही उपयोगी पुस्तकें
महाराज श्रीकृष्णचन्द्र का जीवन चरित्र।

इस पुस्तक को पंजाब के लीडर लाला लाजपत राय की लिखी उर्दू पुस्तक से हिन्दी में बा॰ केशव प्रसाद सिंह ने अनुवाद किया है। यह पुस्तक हिन्दी में नये ढङ्ग की है। इस में ग्रन्थकार ने शास्त्रों के प्रमाणों और युक्तियों से इसबात को सिद्ध कर दिया है कि श्रीकृष्णजी कैसे राजनैतिक और नीति कुशल सचरित्र थे। इस पुस्तक में श्रीकृष्णचन्द्र के जन्म से अंतपर्य्यन्त का पूरा पूरा हाल लिखा गया है। पुस्तक हिन्दी पढ़े लिखे लोगों को अवश्य मंगानी चाहिये मूल्य॥)

धर्म और विज्ञान।

यह पुस्तक हिन्दी के प्रेमी राजासाहब भिङ्गा की अनुमती और सहायता से प्रकाशित हुई है। इसको 'लक्ष्मी' के सम्पादक लाला भगवानदीनजी ने विलायत के मशहूर लेखक मिस्टर ड्रेपर की लिखी एक अंग्रेजी पुस्तक "Connflict between religion and science" का अनुवाद किया है। रायल आठपेजी २८७ पन्ने की सुन्दर पुस्तक है। यह पुस्तक नई रोशनी और विज्ञान का प्रचार करती है और इसने विलायत के अंधविश्वास को दूर करने में बड़ी मदद दी है। मूल्य २)

प्राचीन भारत वर्ष की सभ्यता का इतिहास।
चार भाग में छपकर समाप्त होगया।

(मि॰ रमेशचन्द्रदत्त की लिखी हुई पुस्तक का अनुवाद)

यह पुस्तक काशी "इतिहास प्रकाशक समिति" की ओर से छपी है। हिन्दी भाषा में अपने ढंग का नया इतिहास हैं और भाषा में इतिहास के अभाव को दूर कर रहा है। इस पुस्तक के अधिक बिकने से नये २ इतिहास छपेंगे इसे अवश्य मंगाइये।

मूल्य-भाग पहिला १) भाग दूसरा १) ३ रा १) ४ था १) चारों भाग का मूल्य ४)

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