सामग्री पर जाएँ

दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग/सातवां परिच्छेद

विकिस्रोत से
दुर्गेशनन्दिनी प्रथम भाग
बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय, अनुवादक गदाधर सिंह

वाराणसी: माधोप्रसाद, पृष्ठ २७ से – २९ तक

 

सातवां परिच्छेद।
बिमला का मंत्र ।

अभिराम स्वामी अपनी कुटी में कुशासन पर बैठे थे और विमला ने खड़े २ अपना तिलोत्तमा और जगतसिंह का मन्दिर सम्बन्धी संपूर्ण समचार कह सुनाया और कहा कि आज चौदह दिन हो चुका कल पूरा पन्द्रह हो जायेगा। अभिराम स्वामी से पूछा फिर क्या इच्छा है?

बिमला ने कहा मैं तो यही पूछने को तुम्हारे पास आई हूं कि अब क्या करना उचित है।

स्वामी ने कहा कि यदि हमसे पूछती हो तो अब इस विषय को चित्त से भुलादो।

बिमला का मन उदास होगया तब अभिराम स्वामी ने पूछा 'क्यों कैसी उदास होगई?

बिमला ने कहा कि तिलोत्तमा की क्या दशा होगी!

अभिराम स्वामी ने आश्चर्य से पूछा 'क्यों, क्या तिलोत्तमा को विशेष प्रेम है?'

बिमला चुप रही और फिर बोली "मैं तुमसे क्या कहूं मैं आज चौदह दिन से उसको बिलक्षणगति देखती हूं, मुझको तो जान पड़ता है कि तिलोत्तमा दशा चित्त से आसक्त है।

परमहंस ने मुस्किरा कर कहा स्त्रियों को ऐसाही जान पड़ता है। हे बिमला! तू बहुत चिन्ता न कर अभी तिलोत्तमा लड़की है नये मनुष्य को देखने से कुछ प्रेम होही जाता है उस बात की चर्चा उड़ा दो वह आप भूल जायगी।

बिमला ने कहा 'नहीं महराज ऐसे लक्षण नहीं है। पन्द्रह दिन में उसका स्वभाव पलट गया। वह अब हमसे क्या और स्त्रियों से पूर्ववत हंसती बोलती नहीं, किसी से बात भी नहीं करती। पुस्तकैं उसकी सब पर्यक के नीचे पड़ी है, पौधे उसके पानी बिना सुखे जाते हैं पक्षियों की ओर अब उसकी रुचि नहीं है। खाना पीना सब छूट गया है रात को नींद नहीं आती भूषन बसन अच्छा नहीं लगता, रात दिन सोच में रहती है और चेहरे पर श्यामता आगई है।

अभिराम स्वामी सुनकर चुप रहे। थोड़ी देर के अनन्तर बोले "मैं जानता था कि देखते ही गहिरी प्रीत नहीं होती पर स्त्री चरित्र और विशेषतः बालिका चरित्र का मर्म्म ईश्वर ही जानता है। अब क्या करना उचित है? बीरेन्द्र तो इस सम्बन्ध को कदापि स्वीकार न करैगा बिमला ने कहा "इसी सोच में मैंने अभी तक इसका प्रकाश नहीं किया, मन्दिर में बीरेन्द्रसिंह को भी मैने कुछ पता नहीं दिया, किन्तु यदि 'सिंहजी' यह शब्द कहते समय बिमला के मुंह का रंग बदल गया, यदि "सिंहजी" मानसिंह से मित्रता करलें तो फिर जगतसिंह को जमाई बनाने में क्या हानि है?"

अ०। मानसिंह क्यों मानेगा?

बि०। न माने तो नहीं सही।

अ०। तो क्या जगतसिंह बिरेन्द्रसिंह की कन्या को स्वीकार करेगा?

बि०। जाति में तो किसी के दोष हैई नहीं, जयधरसिंह के पुर्खे भी तो यदुवंशी थे।

अ०। यदुवंशी की कन्या मुसल्मान के दोगले पुत्र की बहू होगी?

विमला ने स्वामी की ओर घूर कर कहा 'क्यों न होगी क्या यदुवंशी कुल नीच है?'

यह बात सुनकर परमहंस की आंखें क्रोध से लाल होगई और बोले 'पापिन! तू न मानैगी? दूर हो यहां से'॥

——————