परीक्षा गुरु/प्रकरण २

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परीक्षागुरु
द्वारा लाला श्रीनिवासदास

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प्रकरण २
अकाल में अधिकमास

अप्रापति के दिनन मैं खर्च होत अबिचार
घर आवत है पाहुनो बणिज न लाभ लगार

वृंद

"हैं अभी तो यहाँ के घन्टे में पौने नौ ही बजे हैं तो क्या मेंरी घड़ी आधे घंटे आगे थी?" मुंशी चुन्नीलाल ने मकान पर पहुंच[  ]
परीक्षा गुरु
 

ते ही बड़े घन्टे की तरफ़ देख कर कहा. परन्तु ये उसकी चालाकी थी उसने ब्रजकिशोर से पीछा छुड़ाने के लिये अपनी घड़ी में चाबी देने के बहाने से आधे घन्टे आगे कर दी थी!


“कदाचित् ये घंटा आधे घंटे पीछे हो" मिस्टर शिंभूदयाल ने बात साध कर कहा.


"नहीं,नहीं ये घन्टा तोप से मिला हुआ है” लाला मदनमोहन बोले.

"तो लाला ब्रजकिशोर साहब की लच्छेदार बातें नाहक अधूरी रह गई?” मुन्शी चुन्नीलाल ने कहा.


“लाला ब्रजकिशोर की बातें क्या हैं चकाबू का जाल है वह चाहते हैं कि कोई उनके चक्कर से बाहर न निकलने पाए मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.


"मैं यों तो ये कांच लेता या न लेता पर अब उनकी जिद से अद्-बद् कर लूँगा.

"निस्सन्देह जब वे अपनी ज़िद नहीं छोड़ते तो आपको अपनी बात हारनी क्या जरूर है?” मुन्शी चुन्नीलाल ने छींटा दिया.


हितोपदेश में कहा है "आज्ञालोपी सुतहु कों क्षमै न नृपति बिनीत॥ को विशेष नृप, चित्रमैं " जो न गहे यह रीति"॥ * पंडित पुरुषोत्तमदास ने मिल्ती में मिलाकर कहा.


“बहुत पढ़ने लिखने से भी आदमी की बुद्धि कुछ ऐसी निर्बल हो जाती है कि बड़े-बड़े फिलासफर छोटी बात में चक्कर खाने लगते हैं" मास्टर शिंभूदयाल कहने लगे. "सर आइज़ैक न्यूटन


  • आज्ञा भंगकरान राजा न क्षेत्र सुतानपि. विशेषह कौन राज्ञय राज्ञ श्रृच्त्नगतस्य च.. [  ]
    अकाल में अधिकमास
     


कितनी ही बार खाना खाकर भूल जाते थे, जरमन का प्रसिद्ध विद्वान लेसिंग एक बार बहुत रात गए अपने घर आया और कुन्दा खड़काने लगा, नौकर ने गैर आदमी समझ कर भीतर से कहा कि "मालिक घर में नहीं हैं कल आना" इस पर लेसिंग सचमुच लौट चला!!! इटली की मारने नामी कवि एक दिन कविता बनाने में ऐसा मग्न हुआ कि अंगीठी से उसका पैर जल गया तोभी उसे कुछ ख़बर न हुई!


"लाला ब्रजकिशोर साहब का भी कुछ ऐसा ही हाल है यह सीधी-सीधी बातों को विचार ही विचार में खींच तान कर ऐसी पेचीदा बनाइ लेते हैं कि उनका सुलझाना मुश्किल पड़ जाता है” मुन्नी चुन्नीलाल बोले.

“मैंने तो मिस्टर ब्राइट के रूबरू ही कह दिया था कि कोरी फिलासफी की बातों से दुनियादारी का काम नहीं चलता।" लाला मदनमोहन ने अपनी अकलमंदी जाहिर की.


इतने में मिस्टर रसल की गाड़ी कमरे के नीचे आ पहुंची और मिस्टर रसल खट-खट करते हुए कमरे में दाखिल हुए लाला मदनमोहन ने मिस्टर रसल से शेकिंगहैंड करके उन्हें कुर्सी पर बिठाया और मिज़ाज की खैरिआफियत पूछी.


मिस्टर रसल नील का एक हौसलेमंद सौदागर है परन्तु इसके पास रुपया नहीं है यह नील के सिवाय रूई और सन वगैरह का भी कुछ-कुछ व्यापार कर लिया करता है इसका लेन-देन डेढ़ पौने दो बरस से एक दोस्त की सिफारिश पर लाला मदनमोहन के यहां हुआ है.पहले बरस लाला मदनमोहन

का जितना रुपया लगा था माल की बिक्री से ब्याज [ १० ]
परीक्षा गुरु
१०
 

समेत वसूल हो गया, परंतु दूसरे साल रुई की भरती की जिसमें सात आठ हज़ार रुपये टूटते रहे इसका घाटा भरने के लिये पहले से दुगुनी नील बनवाई जिसमें एक तो परता कम बैठा दूसरे माल कलकते पहुंचा उस समय भाव मंदा रह गया जिसमें नफे के बदले दस-बारह हज़ार इसमें टूटते रहे.लाला मदनमोहन के लेन-देन से पहले मिस्टर रसल का लेन देन रामप्रसाद बनारसीदास से था। उनके आठ हजार रुपये अबतक इसकी तरफ़ बाक़ी थे.जब उनकी मर्याद जाने लगी तो उन्होंने नालिश करके साढ़े ग्यारह हजार की डिग्री इसपर करा ली.अब उनकी इजराय डिग्री में इसका सब कारखाना नीलाम पर चढ़ रहा है और नीलाम की तारीख में केवल चार दिन बाकी हैं इस लिये यह बड़े घबराहट में रुपये का बंदोबस्त करने के लिये लाला मदनमोहन के पास आया है.


"मेरे मिज़ाज का तो इस समय कोसों पता नहीं लगता परंतु उसको ठिकाने लाना आपके हाथ है" मिस्टर रसल ने मदनमोहन के कुशलप्रश्न ( मिज़ाजपुर्सी) पर कहा."जो आफ़त एकाएक इस समय मेरे सिर पर आ पड़ी है उसको आप अच्छी तरह जानते हैं. इस कठिन समय में आपके सिवाय मेरा सहायक कोई नहीं है. आप चाहें तो दम भर में मेरा बेड़ा पार लगा सकते हैं, नहीं तो मैं इस तूफान में ग़ारत हो चुका”


“आप इतने क्यों घबराते हैं ? ज़रा धीरज रखिये" मुन्शी चुन्नीलाल ने पहले की मिलावट के अनुसार सहारा लगाकर कहा.“लाला साहब के स्वभाव को आप अच्छी तरह जानते हैं जहां तक हो सकेगा यह आप की सहायता मै कभी कसर न करेंगे." [ ११ ]"पहले आप मुझे यह तो बताइये कि आप मुझसै किस तरह की सहायता चाहते हैं?" लाला मदनमोहन ने पूछा.

"मैं इस्समय सिर्फ इतनी सहायता चाहता हूं कि आप रामप्रसाद बनारसीदास की डिक्री का रुपया चुकादें मुझसै हो सकेगा जहां तक मैं आपका सब क़र्ज़ा एक बरस के भीतर चुका दूंगा" मिस्टर रसल ने कहा "मुझको अपनी बरबादी का इतना खयाल नहीं है जितनी आपके कर्जे़ की चिन्ता है. रामप्रसाद बनारसीदास की डिक्रीमैं मेरी जायदाद बिक गई तो और लेनदार कोरे रह जायंगे और मैंनें इन्सालवन्ट होने की दरखास्त की तो आप लोगों के पल्ले रुपे मैं चार आनें भी न पड़ेंगे"

"अफ़सोस! आपकी यह हक़ीक़त सुन् कर मेरा दिल आप सै आप उम्ड़ा आता है" लाला मदनमोहन बोले.

"सच है महा कवि शेक्सपीअर ने कहा है" मास्टर शिंभूदयाल कहने लगे:—

"कोमल मन होत न किये होत प्रकृति अनुसार।
जों पृथवी हित गगन ते वारिद द्रवति फुहार॥
वारिद द्रवित फुहार द्रवहि मन कोमलताई।
लेत, देत शुभ हेत दोउनको मन हरषाई॥
सब गुनते उतकृष्ट सकल बैभव को भूषन।
राजहु ते कछु अधिक देत शोभा कोमलमन॥"॥
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परीक्षा गुरु
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हजरत सादी कहते हैं कि "दुर्बल तपस्वी से कठिन समय में उसके दुख का हाल न पूछ और पूछे तो उसके दु:ख की दवा कर” मुंशी चुन्नीलाल ने कहा.


"अच्छा इस रूपये के लिये ये हमारी दिल जमई क्या कर देंगे?" लाला मदनमोहन ने बड़ी गंभीरता से पूछा.


हां हां लाला साहब सच कहते हैं आप इस रुपये के लिये हमारी दिल जमई क्या कर देंगे?” मुंशी चुन्नीलाल ने दिल जमई की चर्चा हुए पीछे अपनी सफाई जताने के लिए मिस्टर रसल से पूछा.


"मैं थोड़े दिन में शीशे बरतन का एक कारखाना यहाँ बनाना चाहता हूँ.अबतक शीशे बरतन की सब चीजें वलायत से आती हैं इस लिये ख़र्च और टूट-फूट के कारण उनकी लागत बहुत बढ जाती जो वह सब चीजें यहाँ तैयार की जाएंगी तो उनमें जरूर फायदा रहेगा और खुदा ने चाहा तो एक बरस के भीतर-भीतर आपकी सब रकम जमा हो जायगी परन्तु आपको इस समय इस बात पर पूरा भरोसा नहीं तो मेंरा नील का कारखाना आपकी दिल जमई के वास्ते हाज़िर है" मिस्टर रलस ने जवाब दिया.


"हिन्दुस्तान में अबतक कलों के कारखाने नहीं हैं इसलिए । हिन्दुस्तानियों को बड़ा नुकसान उठाना पड़ता है मैं जानता हूं कि इस समय हिम्मत करके जो कलों के कारख़ाने पहले जारी करेगा उसको ज़रूर फ़ायदा रहेगा" मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.


.दरवेशजईफे हालरा दरखुशकी तंगे साल मपुर्सके चुनी तर्की इल्ला बशर्त आंकि मरहमें बनेंशनिही. [ १३ ]
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अकाल में अधिकमास
 

"आपको रामप्रसाद बनारसीदस के सिवाय किसी और का रुपया तों नहीं देना!” मुन्शी चुन्नीलाल ने पूछा.


"रामप्रसाद बनारसीदास की डिग्री का रुपया चुके पीछे मुझको लाला साहब के सिवाय किसी की फूटी कौड़ी नहीं देनी होगी" मिस्टर रसल ने जवाब दिया.


परन्तु कांच का कारखाना बनाने के लिये रुपये कहां से आयेंगे? और लाला मदनमोहन के कर्जे लायक नील के कार ख़ाने की हैसियत कहां है? इन्सालवन्ट होने से लेनदारों के पल्ले चार आने भी न पड़ेंगे यह बात मिस्टर रसल अपने मुंह से अभी कह चुका है पर यहां इन बातों की याद कौन दिलावे?


"इस सूरत में रामप्रसाद बनारसीदास की डिग्री का रुपया न दिया जायगा तो उनकी डिग्री में इसका कारखाना बिक जायेगा और अपनी रकम वसूल होने की कोई सूरत न रहेगी” मुंशी चुन्नीलाल ने लाला मदनमोहन के कान में झुक कर कहा.


"परंतु इस समय इसको देने के लिये अपने पास नकद रुपया कहां है?” लाला मदनमोहन ने धीरे से जवाब दिया.


अब मेरी शर्म आप को है 'वक्त निकल जाता है बात रह जाती है’ जो आप इस समय मुझको सहारा देकर उभार लोगे मैं तो आपका अहसान जन्म भर नहीं भूलूँगा” मिस्टर रसल ने गिड़गिड़ा कर कहा.


"मैं मन से तुम्हारी सहायता किया चाहता हूं परन्तु मेरा रुपया इस समय और कामो में लग रहा है इससे मैं कुछ नहीं कर सकता" लाला मदनमोहन ने शर्माते-शर्माते कहा.


“अजी हुजूर! आप यह क्या कहते हैं? आपके वास्ते रुपये [ १४ ]
परीक्षा गुरु
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की क्या कमी है? आप कहें जितना रुपया इसी समय हाजिर हो" मास्टर शिंभूदयाल बोले.


"अच्छा! मुझसे हो सकेगा जिस तरह दस हज़ार रुपये का बंदोबस्त करके मैं कल तक आपके पास भेज दूँगा आप किसी तरह की चिन्ता न करें" लाला मदनमोहन ने कहा.


"आपने बड़ी मेंहरबानी की मैं आपकी इनायत से जी गया. अब मैं आपके भरोसे बिल्कुल निश्चिन्त रहूंगा” मिस्टर रसल ने जाते-जाते बड़ी खुशी से हाथ मिला कर कहा. और मिस्टर रसल के जाते ही लाला मदनमोहन भी भोजन करने चले गए.

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  1. The quality of mercy is not strained.
    It droppeth as the gentle rain from heaven
    Upon the place beneath, it is twice. blessed
    It blesseth him that gives, and him that takes.
    'Tis mightiest in the mightiest. it becomes
    The throned monarch better than his crown

    William Shakespeare