परीक्षा गुरु/५

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परीक्षा गुरु
द्वारा लाला श्रीनिवासदास
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प्रकरण-५.

विषयासक्त[१]

इच्छा फलके लाभसों कबहुँ न पूरहि आश
जैसे पावक घृत मिले बहु विधि करत प्रकाश

हरिवंश.

लाला मदनमोहन बाग़ सै आए पीछे ब्यालू करके अपनें कमरे मैं आए उस्समय लाला ब्रजकिशोर, मुन्शी चुन्नीलाल, मास्टर शिंभूदयाल, बाबू बैजनाथ, पंडित पुरुषोत्तमदास, हकीम अहमदहुसैन वगैरह सब दरबारी लोग मौजूद थे. लाला साहब के आते ही ग्वालियर के गवैयौं का गाना होने लगा.

"मैं जान्ता हूं कि आप इस निर्दोष दिल्लगी को तो अवश्य पसंद करते होंगे देखिये इस्सै दिन भर की थकान उतर जाती है और चित्त प्रसन्न हो जाता है" लाला मदनमोहन नें थोड़ी देर पीछै लाला ब्रजकिशोर सै कहा.

"सब बातें काम के पीछे अच्छी लगती हैं जो सब तरह का प्रबंध बंध रहा हो, काम के उसूलों पर दृष्टि हो, भले बुरे काम और भले बुरे आदमियों की पहचान हो, तो अपना काम किये पीछै घड़ी, दो घड़ी की दिल्लगी मैं कुछ बिगाड़ नहीं है पर उस्समय भी इस्का व्यसन न होना चाहिये" लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.


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अमीरों को ऐश के सिवाय और क्या काम है?” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.


"राजनीति में कहा है "राजा सुख भोगहि सदा मंत्री करहि सम्हार॥ राजकाज बिगरे कछू तो मंत्री सिर भार।" पंडित पुरुषोत्तमदास बोले.


“हां यहां के अमीरों का ढंग तो यही है, पर यह ढंग दुनिया से निराला है. जो बात सब संसार के लिये अनुचित गिनी जाती है वही उनके लिये उचित समझी जाती है! उनकी एक-एक बात पर सुननेवाले लोट-पोट हो जाते हैं! उनकी कोई बात हिकमत से खाली नहीं ठहरती! जिन बातों को सब लोग बुरी जानते हैं, जिन बातों के करने में कमीने भी लजाते हैं, जिन बातों के प्रकट होने से बदचलन भी शर्माते हैं, उनका करना यहां के धनवानों के लिये कुछ अनुचित नहीं है! इन लोगों को न किसी काम के प्रारंभ की चिन्ता होती है! न किसी काम के परिणाम का विचार होता है! यहां के धनपति तो अपने को लक्ष्मी पति समझते हैं परंतु ईश्वर के यहां का यह नियम नहीं है उस्ने अपनी सृष्टि में सब गरीब अमीरों को एक-सा बनाया है” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “जो मनुष्य ईश्वर का नियम तोड़ेगा उसको अपने पाप का अवश्य दंड मिलेगा. जो लोग सुख भोग में पड़ कर अपने शरीर या मन को कुछ परिश्रम नहीं देते प्रथम तो असावधान्ता के कारण उनका वह वैभव ही नहीं रहता और रहा भी तो कुदरती कायदे के मूजिब उनका


भोग्यस्य भाजनं राजा मन्त्री कार्यस्य भाजनम्॥ राजकार्यपरिध्वंसी मंत्री दोषेण लिप्यते॥ [ ३३ ]
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शरीर और मन क्रम से दुर्बल होकर किसी काम का नहीं रहता, पाचन शक्ति के घटने से तरह-तरह के रोग उत्पन्न होते हैं और मानसिक शक्ति घटने से चित्त की विकलता, बुद्धि की अस्थिरता, और काम करने की अरुचि उत्पन्न हो जाती है जिससे थोड़े दिन में संसार दु:खरूप मालूम होने लगता है."


“परंतु अत्यंत मेंहनत करने से भी तो शिथिलता हो जाती है” बाबू बैजनाथ ने कहा.


“इससे यह बात नहीं निकलती कि बिल्कुल मेंहनत न करो सब काम अंदाजसिर करने चाहिये" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे "लिडिया का बादशाह कारून साईरस से हारा उस समय साईरस उसकी प्रजा को दास बनाने लगा तब कारून ने कहा "हमको दास किस लिये बनाते हो? हमारे नाश करने का सीधा उपाय यह है कि हमारे शस्त्र ले लो, हम को उत्तमोत्तम वस्त्र भूषण पहनने दो, नाच रंग देखने दो, श्रृंगार रस का अनुभव करने दो, फिर थोड़े दिन में देखोगे कि हमारे शूरबीर अबला बन जायेंगे और सर्वथा तुम से युद्ध न कर सकेंगे” निदान ऐसा ही हुआ. पृथ्वीराज का संयोगिता से विवाह हुए पीछे वह इसी सुख में लिपट कर हिन्दुस्तान का राज खो बैठा और मुसलमानों का राज भी अंत में इसी भोग विलास के कारण नष्ट हुआ.


“आप तो ज़िस बात को कहते हैं हद्द के दरजे पर पहुंचा देते हैं भला! पृथ्वीराज और मुसलमानों की बादशाहत का लाला साहब के काम काज से क्या संबंध है? उनका द्रव्य बहुत कर के अपने भोग विलास में खर्च होता था परंतु लाला [ ३४ ]
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साहब का तो परोपकार में होता है” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.


"देखिये लाला साहब का मन पहले नाच तमाशे में बिल्कुल नहीं लगता था पर इन्होंने चार मित्रों का मेल मिलाप बढ़ाने के लिये अपना मन रोक कर उनकी प्रसन्नता की." पंडित पुरुषोत्तमदास बोले.


“बुरे कामों के प्रसंग मात्र से मनुष्य के मन में पाप की ग्लानि घटती जाती है. पहले लाला साहब को नाच रंग अच्छा नहीं लगता था पर अब देखते-देखते व्यसन हो गया फिर जिन लोगों की सोहबत से यह व्यसन हुआ उनको मैं लाला साहब का मित्र कैसे समझूँ? मित्रता का काम करे वह मित्र समझा जाता है अपने मतलब के लिये लंबी-लंबी बातें बनाने से कोई मित्र नहीं हो सकता." लाला ब्रजकिशोर कहने लगे. सादी ने कहा है “एक दिवस में मनुज की विद्या जानी जाय! पै न भूल, मन को कपट बरसन लग न लखाय!!"


"तो क्या आप इन सब को स्वार्थ पर ठहरा कर इनका अपमान करते हैं?" लाला मदनमोहन ने जरा तेज होकर कहा.


“नहीं, मैं सब को एक-सा नहीं ठहराता परंतु परीक्षा हुए बिना किसी को सच्चा मित्र भी नहीं कह सकता” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे. “केलीप्स नामी एक एथीनियन से साइराक्यूस के बादशाह डियोन की बड़ी मित्रता थी. डिओन बहुधा


तवां शनाख्त बयकरोज़ दर शमायल मरद. किता कुजाश रसीदस्त पायगाह उलूम. वले ज़ बातिनश एमन मवाशो गर्रा मशो. के खुब्स नफ्स नगदर्द बसालहा मालूम. [ ३५ ]
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केलीप्स के मकान पर जाकर महीनों रहा करता था. एक बार डिओन को मालूम हुआ कि केलीप्स उसका राज छीनने के लिये कुछ उद्योग कर रहा है. डिओन ने केलीप्स से इसका वृत्तांत पूछा. तब वह डिओन के पांव पकड़कर रोने लगा और देवमंदिर में जाकर अपनी सच्ची मित्रता के लिये कठिन से कठिन सौगंध खा गया पर असल में यह बात झूठी न थी. अंत में केलीप्स ने साइराक्यूस पर चढ़ाई की और डिओन को महल ही में मरवा डाला! इस लिये मैं कहता हूं कि दूसरे की बातों में आकर अपना कर्तव्य भूलना बड़ी भूल की बात है”


“अच्छा! फिर आप खुलकर क्यों नहीं कहते आप के निकट लाला साहब को बहकाने वाला कौन-कौन है?” पंडित जी ने जुगत से पूछा.


“मैं यह नहीं कह सकता जो बहकाते होंगे; अपने जी में आप समझते होंगे मुझको लाल साहब के फायदे से काम है और लोगों के जी दुखाने से कुछ काम नहीं है. मनुस्मृति में कहा है 'सत्य कहहु अरु प्रिय कहहु अप्रिय सत्य न भाख॥ प्रियहु असत्य न बोलिये धर्म सनातन राख.' इसलिये मैं इस समय इतना ही कहना उचित समझता हूं." लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.

और इसपर थोडी देर सब चुप रहे.




सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम्॥
प्रियं च नानृतं ब्रूया देशधर्मस्सनातन:॥

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