परीक्षा गुरु १०

विकिस्रोत से
[ ६८ ]
परीक्षा गुरु
६८
 
प्रकरण १०+
प्रबंध(इन्तजाम)

कारज को अनुबंध लख अरु, उत्तरफल चाहि×
पुन अपनी सामर्थ्य लख करै कि न करे ताहि।

विदुरप्रजागरे.

सवेरे ही लाला मदनमोहन हवा ख़ोरी के लिये कपड़े पहन रहे थे. मुन्शी चुन्नीलाल और मास्टर शिंभूदयाल आ चुके थे.

“आजकल में हमको एक बार हाकिमों के पास जाना है। लाला मदनमोहन ने कहा.

“ठीक है, आपको म्युनिसिपेलिटी के मेम्बर बनाने की रिपोर्ट हुई थी उसकी मंजूरी भी आ गई होगी” मुन्शी चुन्नीलालबोले.

“मंज़री में क्या संदेह है? ऐसे लायक़ आदमी सरकार को कहां मिलेंगे?” मास्टर शिंभूदयालने कहा.

“अभी तो (खुशामद में) बहुत कसर है! साइराक्यूस के सभासद डायोनिस्यस का थूक चाट जाते थे और अमृत से अधिक मीठा बताते थे” लाला ब्रजकिशोर ने कमरे में आते-आते कहा. “यों हर काम में दोष निकालने की तो जुदी बात है पर


× अनुबन्धं च संप्रेक्ष्य विपाकं चैंवकर्म्मणाम्॥
उत्थान मात्मन श्चैव धीर: कुर्वीत वा नवा॥

[ ६९ ]
६९
प्रबंध(इन्तज़ाम).
 


आप ही बताइये इसमें मैंनें झूठ क्या कहा? मास्टर शिंभूदयाल पूछने लगे

"लाला साहब ने म्युनिसिपेलिटी का सालाना आमद खर्च अच्छी तरह समझ लिया होगा? आमदनी बढ़ाने के रास्ते अच्छी तरह विचार लिये होंगे? शहर की सफ़ाई के लिये अच्छे-अच्छे उपाय सोच लिये होंगे? लाला ब्रजकिशोर ने पूछा “नहीं, इन बातों में से अभी तो किसी बात पर दृष्टि नहीं पहुंचाई गई परंतु इन बातों का क्या है? ये सब बातें तो काम करते करते अपने आप मालूम हो जाएँगी” लाला मदनमोहन ने जवाब दिया.

अच्छा आप अपने घर का काम तो इतने दिन से करते हो उसके नफे नुक्सान और राह बाट से तो आप अच्छी तरह वाकिफ़ हो गये होंगे? लाला ब्रजकिशोर ने पूछा.

इस समय लाला मदनमोहन नावाकिफ़ नहीं बना चाहते थे परंतु वाकिफ़कार भी नहीं बन सकते थे इस लिये कुछ जवाब न दे सके.

“अब आप घर की तरह वहां भी औरों के भरोसे रहे तो काम कैसे चलेगा? और सब बातों से वाकिफ होने का विचार किया तो वाकिफ होंगे जितने आप के बदले काम कौन करेगा?” लाला ब्रजकिशोर ने पूछा.

“अच्छा मंजूरी आवेगी जितने में इन बातों से कुछ-कुछ बाकिफ़ हो लूंगा” लाला मदनमोहन ने कहा.

"क्या इन बातों से पहले आप को अपने घर के कामों से

वाकिफ होने की ज़रूरत नहीं है? जब आप अपने घर का [ ७० ]
परीक्षा गुरु
७०
 


प्रबन्ध उचित रीति से कर लेंगे तो प्रबन्ध करने की रीति आ जायेगी और हरेक काम का प्रबन्ध अच्छी तरह कर सकेंगे. परंतु जब तक प्रबंध करने की रीति न आवेगी कोई काम अच्छी तरह न हो सकेगा.” लाला ब्रजकिशोर कहने लगे “हाकिमों की प्रसन्नता पर आधार रख अपने मुख से अधिकार माँगने में क्या शोभा है? और अधिकार लिये पीछे वह काम अच्छी तरह पूरा न हो सके तो कैसी हँसी की बात है? और अनुभव हुए बिना कोई काम किस तरह भली भांति हो सकता है? महाभारत में कौरवों के गौ घेरने पर बिराट का राज

कुमार उत्तर बड़े अभिमान से उनको जीतने की बातें बनाता था, परंतु कौरवों की सेना देखते ही रथ छोड़कर उघाड़े पांव भाग निकला! इसी तरह सादी अपने अनुभव से लिखते हैं कि “एकबार मैं बलख से शामवालों के साथ सफर को चला. मार्ग भयंकर था. इस लिये एक बलवान पुरुष को साथ ले लिया. वह शस्त्रों से सजा रहता था और उसकी प्रत्यंचा को दस आदमी भी नहीं चढ़ा सकते थे वह बड़े-बड़े वृक्षों को हाथ से उखाड़ डालता परंतु उसने कभी शत्रु से युद्ध नहीं किया था. एक दिन मैं और वो आपस में बातें करते चले जाते थे. उस समय दो साधारण मनुष्य एक टीले के पीछे से निकल आए और हमको लूटने लगे. उसमें एक के पास लाठी थी और दूसरे के हाथ में एक पत्थर था परंतु उनको देखते ही उस बलवान पुरुष के हाथ पांव फूल गए! तीर कमान छूट पड़ी! अन्त में हमको अपने सब वस्त्र-शस्त्र देकर उनसे पीछा छुड़ाना पड़ा. बहुधा अबभ भी देखने में आता है कि अच्छे प्रबन्ध बिना घर में माल होने [ ७१ ]
७१
प्रबंध(इन्तज़ाम).
 


पर किसी साहूकार का दिवाला निकल जाता है रुपये का माल दो-दो आने को बिकता फिरता है”

“परंतु काम किये बिना अनुभव कैसे हो सकता है?” मुन्शी चुन्नीलाल ने पूछा.

"सावधान मनुष्य काम करने से पहले औरों की दशा देखकर हरेक बात का अनुभव अच्छी तरह कर सकता है और अनायास कोई नया काम भी उसको करना पड़े तो साधारण भाव से प्रबन्ध करने की रीति जानकर और और बातों के अनुभव का लाभ लेने से काम करते-करते वह मनुष्य उस विषय में अपना अनुभव अच्छी तरह बढ़ा सकता है. सो मैं प्रथम कह चुका हूं कि लाला साहब प्रबन्ध करने की रीति जान जायंगे तो हरेक काम का प्रबन्ध अच्छी तरह कर सकेंगे" लाला ब्रजकिशोर ने जवाब दिया.

"आप के निकट प्रबन्ध करने की रीति क्या है?” लाला मदनमोहन ने पूछा.

“हरेक काम के प्रबन्ध करने की रीति जुदी-जुदी हैं परंतु मैं साधारण रीति से सब का तत्व आप को सुनाता हूँ" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे "सावधानी की सहायता लेकर हरेक बात का परिणाम पहले से सोच लेना और उन सब पर एक

बार दृष्टि कर के जितना अवकाश हो उतने ही में सब बात का ब्योंत बना लेना निरर्थक चीज़ों को काम में लाने की युक्ति सोचते रहना और जो-जो बातें आगे होने वाली मालूम हों उनका प्रबन्ध पहले ही से दूर दृष्टि पहुंचा कर धीरे-धीरे इस भांति करते जाना कि समय पर सब काम तैयार मिलें, किसी [ ७२ ]
परीक्षागुरु.
७२
 


बात का समय न चूकने पावे, कोई काम उलट पलट न होने पावे, अपने आस पास वालों की उन्नति से आप पीछे न रहें, किसी नौकर का अधिकार स्वतन्त्रता की हद से आगे न बढ़ने पावे, किसी पर जुल्म न होने पावे, किसी के हक में अन्तर न आने पावे, सब बातों की सम्हाल उचित समय पर होती रहे, परंतु ये सब काम इनकी बारीकियों पर दृष्टि रखने से कोई नहीं कर सकता बल्कि इस रीति से बहुत मेंहनत करने पर भी छोटे-छोटे कामों में इतना समय जाता रहता है कि उसके बदले बहुत से ज़रूरी काम अधूरे रह जाते हैं और तत्काल प्रबन्ध बिगड़ जाता है इस लिये बुद्धिमान मनुष्य को चाहिये कि काम बांट कर उनपर योग्य आदमी मुकर्रर कर दे और उनकी कारर्वाई पर आप दृष्टि रखे, पहले अन्दाज से पिछला परिणाम मिलाकर भूल सुधारता जाय एक साथ बहुत काम न छेडे़, काम करने के समय बट रहे आमद से थोड़ा खर्च हो और कुपात्र को कुछ न दिया जाय. महाराज रामचन्द्रजी भरत से पूछते हैं “आमद पूरी होत है? खर्च अल्पदरसाय॥ देत न कबहुं कुपात्रकों कहहुं भरत समुझाय”*

इसी तरह इन्तजाम के कामों में करीआयत से बडा बिगाड़ होता है. हजरत सादी कहते हैं “जिससेे तैने दोस्ती की उससे नौकरी की आशा न रख."+


  • आयस्ते विपुल: कञ्चित्कञ्चिदल्पतरो व्यय:॥

अपात्नेपुनते कञ्चित्कोषो गच्छतिराघव।।
+ चूँ इकरारे दोस्ती कर दी तबक्के खिदमत मदार।

[ ७३ ]
७३
प्रबंध(इन्तज़ाम).
 

"लाला ब्रजकिशोर साहब आज कल की उन्नति के साथी हैं। तथापि पुरानी चाल के अनुसार रोचक और भयानक बातों को अपनी कहन में इस तरह मिला देते हैं कि किसी को बिल्कुल खबर नहीं हो पाती” मास्टर शिंभूदयाल ने कहा.

"नहीं मैं जो कुछ कहता हूँ अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार यथार्थ कहता हूँ" लाला ब्रजकिशोर कहने लगे चीन के शहंशाह होएन ने एक बार अपने मंत्री टिची से पूछा कि “राज्य के वास्ते सब से अधिक भयंकर पदार्थ क्या है?” मंत्री ने कहा "मूर्ति के भीतर का मूसा” शहंशाह ने कहा “समझा कर कह" मंत्री बोला “अपने यहां काठ की पोली मूर्ति बनाई जाती है और ऊपर से रंग दी जाती है. अब दैवयोग से कोई मूसा उसके भीतर चला गया तो मूर्ति खंडित होने के भय से उसका कुछ नहीं कर सकते. इसी तरह हरेक राज्य में बहुधा ऐसे मनुष्य होते हैं जो किसी तरह की योग्यता और गुण बिना केवल राजा की कृपा के सहारे सब कामों में दख़ल देकर सत्यानाश किया करते हैं परंतु राजा के डर से लोग उनका कुछ नहीं कर सकते” हां जो राजा आप प्रबंध करने की रीति जानते हैं वह उनलोगों के चक्कर से खूबसूरती के साथ बचे रहते हैं जैसे ईरान के बादशाह आरटाजरकसीस से एक बार उसके किसी कृपापात्र ने किसी अनुचित काम करने के लिये सवाल किया. बादशाह ने पूछा कि तुमको इससे क्या लाभ होगा?” कृपापात्र ने बता दिया तब बादशाह ने उतनी रकम उसको अपने खजाने से दिवा दी और

कहा कि ‘ये रुपये ले इनके देने से मेरा कुछ नहीं घटता परंतु तैने जो अनुचित सवाल किया था उस्के पूरा करने से मैं निस्संदेह [ ७४ ]
परीक्षा गुरु
७४
 


बहुत कुछ खो बैठता” उचित प्रबंध में जरा-सा अंतर आने से कैसा भयंकर परिणाम होता है इसपर विचार करिये कि इसी दिल्ली तख्त बाबत दाराशिकोह और औरंगजेब के बीच युद्ध हुआ. उस समय औरंगज़ेब की पराजय में कुछ संदेह न था परंतु दाराशिकोह हाथी से उतरते ही मानों तख्त से उतर गया मालिक का हाथी ख़ाली देखते ही सब सेना तत्काल भाग निकली”

"महाराज! बग्गी तैयार है.” नौकर ने आकर रिपोर्ट की.

"अच्छा चलिये रास्ते में बतलाते चलेंगे." लाला ब्रजकिशोर ले कहा. निदान सब लोग बग्गी में बैठकर रवाने हुए.


प्रकरण ११

सज्जनता.

सज्जनता न मिलै किये जतन करो किन कोय
ज्यों कर फार निहारिये लोचन बड़ो न होय

वृंद.

"आप भी कहां की बात कहां मिलाने लगे! म्यूनिसिपैलीटी के मेम्बर होने से और इन्तजाम की इन बातों से क्या संबंध है? म्यूनिसिपैलीटी के कार्य निर्वाह का बोझ एक आदमी के सिर नहीं है उसमें बहुत से मेम्बर होते हैं और उनमें कोई

This work is in the public domain in the United States because it was first published outside the United States (and not published in the U.S. within 30 days), and it was first published before 1989 without complying with U.S. copyright formalities (renewal and/or copyright notice) and it was in the public domain in its home country on the URAA date (January 1, 1996 for most countries).