परीक्षा गुरु २३
प्रकरण २३.
प्रामाणिकता.
"एक प्रामाणिक मनुष्य परमेश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है"÷[१]
पोप.
ब्रजकिशोर कौन हैं? मदनमोहन की क्यों इतनी सहानुभूति (हमदर्दी) करते हैं?
अच्छा! अब थोड़ी देर और कुछ काम नहीं है जितने थोडा सा हाल इन्का सुनिये.
लाला ब्रजकिशोर गरीब मा बाप के पुत्र हैं परन्तु प्रामाणिक, सावधान, विद्वान और सरल स्वभाव हैं इन्की अवस्था छोटी है तथापि अनुभव बहुत है यह जो कहते हैं उसी के अनुसार चलते हैं इन्की बहुत सी बातें अब तक इस पुस्तक मैं आचुकी हैं इसलिये कुछ विशेष लिखनें की जरूरत नहीं है तथापि इतना कहे बिना नहीं रहा जाता कि यह परमेश्वर की सृष्टि का एक उत्तम पदार्थ हैं यह वकील हैं परन्तु अपनी तरफ़ के मुक़द्दमेवालों का झूंटा पक्षपात नहीं करते झूंटे मुकद्दमे नहीं लेते बूते सै ज्याद काम नहीं उठाते, परन्तु जो मुक़द्दमे लेते हैं उन्की पैरवी बाजबी तौर पर बहुत अच्छी तरह करते हैं. और बहुधा अन्याय सै सताए हुए ग़रीबों के मुक़दमों मैं बेमहन्ताना लिये पैरवी किया करते हैं हाकिम और नगरनिवासियों को इन्की बात पर बहुत विश्वास है. यह स्वतन्त्र मनुष्य हैं परन्तु स्वेच्छाचारी और अहंकारी नहीं हैं अपनी स्वतन्त्रता को उचित मर्यादा सै आगे नहीं बढ़नें देते परमेश्वर और स्वधर्म पर दृढ़ विश्वास रखते हैं, बात सच कहते हैं परन्तु ऐसी चतुराई सै कहते हैं कि इन्का कहना किसी को बुरा नहीं लगता और किसी की हक़ तल्फ़ी भी नहीं होनें पाती. यह थोथी बातों पर विवाद नहीं करते और इन्के कर्तव्य मैं अन्तर न आता हो तो ये दूसरे की प्रसन्नता के लिये अकारण भी चुप हो रहते हैं अथवा केवल संकेत सा कर देते हैं. जहां तक औरों के हक़ में अन्तर न आय; ये अपनें उपर दु:ख उठा कर भी परोपकार करते हैं वैरी सै सावधान रहते हैं परन्तु अपनें मन मैं उस्की तरफ़ का बैर भाव नहीं रखते, अपनी ठसक किसी को नहीं दिखलाया चाहते. यह मध्यम भाव सै रहनें को पसन्द करते हैं और इन्की भलमनलात सै सब लोग प्रसन्न हैं परन्तु मदनमोहन को इन्की बातें अच्छी नहीं लगतीं और लोगों सै यह केवल इतनी बात करते हैं जिस्मैं यह प्रसन्न रहैं और इन्हें झूंंट न बोलनी पड़े परन्तु मदनमोहन सै ऐसा सम्बन्ध नहीं है. उस्की हानि लाभ को यह अपनी हानि लाभ सै अधिक समझते हैं इसी वास्तै इन्की उस्सै नहीं बन्ती. यह कहते हैं कि "जब तक कुछ काम न हो; अपने पल्ले मैं किसी तरह का दाग लगाए बिना हर तरह के आदमी सै अच्छी तरह मित्रता निभा सक्ती है परन्तु काम पडे पर उचित रीति बिना काम नहीं चलता”
यह अपनी भूल जान्ते ही प्रसन्नता सै उस्को अंगीकार करके उस्के सुधारनें का उद्योग करते हैं इसी तरह जो बात नहीं जान्ते उस्मैं अपनी झूंटी निपुणता दिखाने पर काम पड़नें पर उस्का अभ्यास करके जेम्सवाट की तरह अपनी सच्ची सावधानी सै लोगों को आश्चर्य मैं डालते हैं.
(बहुधा लोग जान्ते होंगे कि जेम्सवाट कलों के काम मैं एक प्रसिद्ध मनुष्य हो गया है उस्के समान काल मैं उस्की अपेक्षा बहुत लोग अधिक विद्वान् थे परन्तु अपनें ज्ञान को काम मैं लानें के वास्ते जेम्सवाट नें जितनी महनत की उतनी और किसी ने नहीं की. उस्ने हरेक पदार्थ की बारीकियों पर दृष्टि पहुंचाने के लिये खूब अभ्यास बढ़ाया वह बढई का पुत्र था जब वह बालक था तब ही अपनें खिलोनों मैं सै बिद्या विषय ढूंड निकालता था. उस्के बाप की दुकान मैं ग्रहों के देखनें की कलें रक्खी थीं जिस्सै उस्को प्रकाश और जोतिष विद्या का व्यसन हुआ. उस्के शरीर मैं रोग उत्पन्न होनें से उस्को बैद्यक सीखनें की रुचि हुई और बाहर गांव में एकान्त फिरनें की आदत सै उस्ने बनस्पति विद्या और इतिहास का अभ्यास किया. गणित शास्त्र के औजार बनाते, बनाते उस्को एक आर्गन बाजा बनानें को फ़र्मायश हुई परन्तु उस्को उस्समय तक गाना नहीं आता था इसलिये उस्ने प्रथम संगीत विद्या का अभ्यास करके पीछे सै एक आर्गन बाजा बहुत अच्छा बना दिया. इसी तरह एक बाफ़ की कल उस्की दुकान पर सुधरनें आई तब उस्नें गर्मी और बाफ़ विषयक वृतान्त् सीखनें पर मन लगाया और किसी तरह की आशा अथवा किसी के उत्तेजन बिना इस काम मैं दस बरस परिश्रम करके बाफ़ की एक नई कल ढूंड निकाली जिस्सै उस्का नाम सदा के लिये अमर होगया।
लाला ब्रजकिशोर को संसारी सुख भोगनें की तृष्णा नहीं है और द्रव्य की आवश्यकता यह केवल सांसारिक कार्य निर्वाह के लिये समझते हैं इस्वास्तै संसारी कामों की ज़रूरत के लायक़ परिश्रम और धर्म्म सै रुपया पैदा किये पीछे बाक़ी का समय यह विद्याभ्यास और देशोपकारी बातों मैं लगाते हैं.
इन्के निकट उन ग़रीबों की सहायता करनें मैं सच्चा पुन्य है जो सचमुच अपना निर्वाह आप नहीं कर सक्ते, या जिन रोगियों के पास इलाज करानें के लिये रुपया अथवा सेवा करनें के लिये कोइ आदमी नहीं होता. ये उन अन्समझ बच्चों को पढ़ाने लिखाने मैं, अथवा कारीगरी इत्यादि सिखा कर कमानें खानें के लायक बना देनें मैं, सच्चा धर्म समझते हैं जिन्के मा बाप दरिद्रता अथवा मूर्खता सै कुछ नहीं कर सक्ते. ये अपनें देश मैं उपयोगी विद्याओं की चर्चा फैलानें, अच्छी, अच्छी पुस्तकों का और भाषाओं से अनुवाद करवा कर अथवा नई वनवा कर अपनें देश मैं प्रचार करनें, और देश के सच्चे शुभचिन्तक और योग्य पुरुषों को उत्तेजन देनें, और कलों की अथवा खेती आदि की सच्ची देश हितकारी बातों के प्रचलित करने मैं सच्चा धर्म्म समझते हैं. परन्तु शर्त यह है कि इन सब बातों मैं अपना कुछ स्वार्थ न हो, अपनी नामवरी का लालच न हो, किसी पर उपकार करनें का बोझ न डाला जाय वल्कि किसी को ख़बर हीन होनें पाय.
इन्नें थोड़ी आमद मैं अपनें घरका प्रबन्ध बहुत अच्छा बांध रक्खा है इन्की आमदनी मामूली नहीं है तथापि जितनी आमदनी आती है उस्सै खंर्च कम किया जाता है और उसी ख़र्च मैं भावी विवाह आदि का ख़र्च समझ कर उन्के वास्तै क्रम; क्रम सै सीग़ेबार रक़म जमा होती जाती है बिवाहादि के ख़र्चो का मामूल बन्ध रहा है उन्मैं फ़िजूल खर्ची सर्वथा नहीं होनें पाती परन्तु वाजबी बातोंमैं कसर भी नहीं रहती, इन्के सिवाय जो कुछ थोडा बहुत बचता है वह बिना बिचारे ख़र्च और नुक्सानादि के लिए अमानत रक्खा जाता है और विश्वास योग्य फायदे के कामों मैं लगानैं सैं उस्की वृद्धि भी की जाती हैं.
इन्के दो छोटे भाइयों के पढ़ानें लिखानें का बोझ इन्के सिर है इस लिये ये उन्को प्रचलित विद्याभ्यास की रूढ़ी के सिवाय उन्के मानसिक विचारों के सुधारनें पर सब सै अधिक दृष्टि रखते हैं. ये कहते हैं कि “मनुष्य के मनके विचार न सुधरे तो पढ़नें लिखनें से क्या लाभ हुआ?” इन्नें इतिहास और वर्तमान काल की दशा दिखा, दिखा कर भले बुरे कामों के परिणाम और उन्की बारीकी उन्के मन पर अच्छी तरह बैठा दी है तथापि ये अपनी दूर दृष्टि सै अपनी सम्हाल मैं ग़फ़लत नहीं करते उन्हें कुसंगति मैं नहीं बैठनें देते. यह उन्के संग ऐसी युक्ति सै बरतते हैं जिस्मैं न वो उद्धत होकर ढिठाई करनें योग्य होनें पावैं न भय सै उचित बात करनें मैं संकोच करैं. ये जान्ते हैं कि बच्चों के मनमैं गुरु के उपदेश सै इतना असर नहीं होता जितना अपनें बड़ों का आचरण देखनें सै होता है इस लिये ये उन्को मुखसैं उपदेश देकर उतनी बात नहीं सिखाते जितनी अपनी चाल चलन सैं उनके मन पर बैठाते हैं.
ब्रजकिशोर को सच्ची सावधानी सै हरेक काममैं सहायता मिहती है. सच्ची सावधानी मानों परमेश्वरकी तरफ़सै इन्को हरेक कामकी राह बतानें वाली उपदेष्टा है परन्तु लोग सच्ची सावधानी और चालाकीका भेद नहीं समझते. क्या सच्ची सावधानी और चालाकी एक है.?
मनुष्यकी प्रकृतिमैं बहुतसी उत्तमोत्तम वृत्ति मोजूद हैं परन्तु सावधानीके बराबर कोई हितकारी नहीं है. सावधान मनुष्य केवल अपनी तबियत पर ही नहीं औरोंकी तबियत पर भी अधिकार रखसक्ता है वह दूसरेसै बात करते ही उसका स्वभाव पहचान जाता है और उस्सै काम निकालनें का ढंग जान्ता है. यदि मनुष्यमैं और गुण साधारण हों और सावधानी अधिक हो तो वह अच्छी तरह काम चला सक्ता है परन्तु सावधानी बिना और गुणोंसे काम निकालना बहुत कठिन है.
जिस्तरह सावधानी उत्तम पुरुषोंके स्वभावमैं होती है इसी तरह चालाकी तुच्छ और कमीने आदमियोंकी तबियतमैं पाई जाती है. सावधानी हमको उत्तमोत्तम बातें बताती है और उन्के प्राप्त करनें के लिये उचित मार्ग दिखाती है वह हर कामके परिणाम पर दृष्टि पहुंचाती है और आगे कुछ बिगाड़की सूरत मालूम हो तो झूंटे लालचके कामों को प्रारंभ सै पहले ही अटका देती है परन्तु चालाकी अपने आसपास की छोटी, छोटी चीजों को देख सक्ती है और केवल वर्तमान समयके फ़ायदोंका विचार रखती है. वह लदा अपनें स्वार्थ की तरफ झुकती है और जिस तरह हो सके, अपनें काम निकाल लेनें पर दृष्टि रखती है. सावधानी आदमी की दृढ बुद्धिको कहते हैं और वह जों, जों लोगोंमैं प्रगट होती जाती है, सावधान मनुष्यकी प्रतिष्ठा बढ़ती जाती है परन्तु चालाकी प्रगट हुए पीछे उसकी बातका असर नही रहता. चालाकी होशियारीकी नक़ल है और वह बहुधा जान्वरों की सी प्रकृतिके मनुष्योंमैं पाई जाती है इस लिये उस्मैं मनुष्य जन्मको भूषित करनें के लायक़ कोई बात नहीं है वह अज्ञानियोंके निकट ऐसी समझी जाती है जैसे ठट्ठेबाजी, चतुराई और भारी भरकम पना बुद्धिमानी समझे जायं.
लाला ब्रजकिशोर सञ्ची सावधानी के कारण किसी के उपक़ार का बोझ अपनें ऊपर नहीं उठाया चाहते, किसी सै सिफ़ारश आदि की सहायता नहीं लिया चाहते, कोई काम अपनें आग्रह सै नहीं कराया चाहते, किसी को कच्ची सलाह नहीं देते, ईश्वर के सिवाय किसी भरोसे पर काम नहीं उठाते, अपने अधिकार सै बढ़कर किसी काम मैं दस्तंदाज़ी नहीं करते. औरों की मारफ़त मामला करनें के बदले रोबरू बातचीत करनें को अधिक पसंद करते हैं वह लेनदेन मैं बड़े खरे हैं परंतु ईश्वर के नियमानुसार कोई मनुष्य सब के उपकारों सै उऋण नहीं हो सकता. ईश्वर, गुरु और माता पितादि के उपकारों का बदला किसी तरह नहीं दिया जा सक्ता परंतु ब्रजकिशोर पर केवल इन्हीं के उपकार का बोझ नहीं हैं वह इस्सै सिवाय एक और मनुष्य के उपकार मैं भी बँध रहे हैं.
ब्रजकिशोर का पिता अत्यंत दरिद्री था अपनें पास सै फ़ीस देकर ब्रजकिशोर की मदरसे मैं पढ़ानें की उस्की सामर्थ्य न थी और न वह इतनें दिन खाली रखकर ब्रजकिशोर को बिद्या मैं निपुण किया चाहता था परन्तु मदनमोहन के पिता ने ब्रजकिशोर की बुद्धि और आचरण देखकर उसे अपनी तरफ सै ऊंचे दर्जे तक विद्या पढ़ाई थी उस्की फ़ीस अपने पास सै दी थी उस्की पुस्तकैं अपनें पास सै ले दी थीं बल्कि उस्के घर का ख़र्च तक अपनें पास सै दिया था और यह सब बातैं ऐसी गुप्त रीति सै हुईं कि इन्का हाल स्पष्ट रीति सै मदनमोहन को भी मालूम न होनें पाया था ब्रजकिशोर उसी उपकार के बंधन से इस्समय मदनमोहन के लिये इतनी कोशिश करते हैं.
प्रकरण २४.
हाथसै पैदा करने वाले
और पोतड़ों के अमीर
अमिल द्रव्यहू यत्नते मिले सु अवसर पाय।
संचितहू रक्षाबिना स्वतः नष्ट होजाय॥÷[२]
हितोपदेशे.
मदनमोहन का पिता पुरानी चाल का आदमी था वह अपना बूता देखकर काम करता था और जो करता था वह कहता नहीं फिरता था उस्नें केवल हिन्दी पढ़ी थी वह बहुत सीधा सादा मनुष्य था परन्तु व्यापार मैं बड़ा निपुण था साहूकारे मैं उस्की बड़ी साख थी. वह लोगों की देखा देखी नहीं; अपनी बुद्धि सैं व्यापार करता था उस्नें थोडे व्यापार मैं अपनी सावधानी सै
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