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परीक्षा गुरु २५

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बाकी नहीं छोड़ी परन्तु उस्का सब श्रम व्यर्थ गया उस्के समझाने से कुछ काम न निकला.

अब आज हरकिशोर और ब्रजकिशोर दोनों इज्जत खोकर मदनमोहन के पास सै दूर हुए हैं इन्मैं सै आगै चलकर देखें कौन् कैसा बरताव करता है?


प्रकरण १८.


साहसी पुरुष.

सानुबन्ध कारज करे सब अनुबन्ध निहार
करै न साहस, बुद्धि बल पंडित करै बिचार†[]

बिदुरप्रजागरे.

हम प्रथम लिख चुके हैं कि हरकिशोर साहसी पुरुष था और दूर के सम्बन्ध मैं ब्रजकिशोर का भाई लगता था अब तक उस्के काम उस्की इच्छानुसार हुए जाते थे वह सब कामों मैं बडा उद्योगी और दृढ़ दिखाई देता था उस्का मन बढ़ता जाता था और वह लड़ाई झगडे वगैरे के भयंकर और साहसिक कामों मैं बड़ी कारगुजारी दिखलाया करता था. वह हरेक काम के अंग प्रत्यंग पर दृष्टि डालनें या सोच विचार के कामों मैं माथा खाली करनें और परिणाम सोचनें या काग़ज़ी और हिसाबी मामलों मैं मन लगाने के बदलें ऊपर, ऊपर से इन्को देख भाल कर केवल बड़े बड़े कामों मैं अपने तांई लगाये रखनें और बड़े आदमियों मैं प्रतिष्ठा पाने की विशेष रुचि रखता था. उस्नें हरेक अमीर के हां अपनी आवा जाई कर ली थी और वह सबसै मेल रखता था. उस्के स्वभाव मैं जल्दी होनें के कारण वह निर्मूल बातों पर सहसा विश्वास कर लेता था और झट पट उन्का उपाय करनें लगता था उस्के बिना बिचारे कामों सै जिस्तरह बिना बिचारा नुक्सान होजाता था इसी तरह बिना बिचारे फ़ायदे भी इतनें हो जाते थे जो बिचार कर करनें सै किसी प्रकार संभव न थे. जब तक उस्के काम अच्छी तरह सम्पन्न हुए जाते थे, उस्को प्रति दिन अपनी उन्नति दिखाई देती थी, सब लोग उस्की बात मान्ते थे, उस्का मन बढ़ता जाता था और वो अपना काम सम्पन्न करनें के लिये अधिक, अधिक परिश्रम करता था परन्तु जहां किसी बात मैं उस्का मन रुका उस्की इच्छानुसार काम न हुआ किसीनें उस्की बात दुलख दी अथवा उस्को शाबासी न मिली वहां वह तत्काल आग हो जाता था हरेक काम को बुरी निगाह सै देखनें लगता था उस्की कारगुज़ारी मैं फ़र्क आजाता था और वह नुकसान सै खुश होनें लगता था इसलिये उस्की मित्रता भय सै ख़ाली न थी.

कोई साहसी पुरुष स्वार्थ छोड़ कर संसार के हितकारी कामों में प्रबृत्त हो तो कोलम्बसकी तरह बहुत उपयोगी होसक्ता है और अब तक संसार की बहुत कुछ उन्नति ऐसे ही लोगों से हुई है इस लिये साहसी पुरुष परित्याग करनें के लायक़ नहीं हैं परन्तु युक्ति सै काम लेनें के लायक हैं हां! ऐसे मनुष्यों सै काम लेनें मैं उन्का मन बराबर बढ़ाते जांय तो आगै चल कर काबू सै बाहर होजानें का भय रहता है इसलिये कोई बुद्धिमान तो उन्का मन ऐसी रीति सै घटाते बढ़ाते रहते हैं कि न उन्का मन बिगडनें पावै न हद्दसै आगे बढ़नें पावै कोई अनुभवी मध्यम प्रकृति के मनुष्यों को बीचमैं रखते हैं कि वह उन्को वाजबी राह बताते रहैं. परन्तु लाला मदनमोहन के यहां ऐसा कुछ प्रबन्ध न था दूसरे उस्के बिचार मूजिब मदनमोहन नें अपनें झूंटे अभिमान सै भलाई के बदले जान बूझ कर उस्की इज्जत ली थी इस्कारण हरकिशोर इस्समय क्रोध के आवेश मैं लाल होरहा था और बदला लेनेंके लिये उस्के मनमैं तरंगैं उठती थीं. उस्नें मदनमोहन के मकान सै निकलते ही अपनें जी का गुबार निकालना आरम्भ किया.

पहलै उस्को निहालचन्द मोदी मिला उस्नें पूछा "आज कितने की बिक्री की?"

"ख़रीदारी की तो यहां कुछ हद ही नहीं है परन्तु माल बेच कर दाम किससै लें जिस्को बहुत नफ़े का लालच हो वह भले ही बेचै मुझको तो अपनी रक़म डबोनी मंज़ूर नहीं" हरकिशोरनें जवाब दिया. "हैं! यह क्या कहते हो? लाला साहब की रक़म मैं कुछ धोका है?"

"धोके का हाल थोड़े दिन मैं खुल जायगा मेरे जान तो होना था वह हो चुका."

"तुम यह बात क्या समझ कर कहते हो?" मोदीनें घबरा कर पूछा "कम से कम लाख, पचास हज़ार का तो शीशा बर्तन इस्समय इन्के मकान में होगा"

"समय पर शीशे बर्तन को कोई नहीं पूछता उस्की लागत मैं रुपे के दो आनें नहीं उठते इन्हीं चीजों की ख़रीदारी मैं तो सब दौलत जाती रही मैंने निश्चय सुना है कि इन चीजों की क़ीमत बाबत पचास हज़ार रुपे तो ब्राइट साहबके देनें हैं और कल एक अंग्रेज दस हज़ार रुपे मागनें आया था न जानें उस्के लेनें थे कि क़र्ज़ मांगता था परन्तु लाला साहब नें किसी सै उधार मंगा कर देनें का क़रार किया है ? फिर जहां उधार के भरोसे सब काम भुगतनें लगा वहां बाकी क्या रहा? मैंनें अपनी रक़म के लिये अभी बहुत तक़ाज़ा किया पर वे फूटी कौड़ी नहीं देते इसलिये मैं तो अपनें रुपों की नालिश अभी दायर करता हूं तुह्मारी तुम जानों."

यह बात सुन्ते ही मोदी के होश उड़ गए वह बोला "मेरे भी पांच हज़ार लेनें हैं मैंनें कई बार तगादा किया पर कुछ सुनाई न हुई मैं अभी जाकर अपनी रक़म मांगता हूं जो सूधी तरह देदैंगे तो ठीक है नहीं तो मैं भी नालिश कर दूंगा. ब्योहार मैं मुलाहिज़ा क्या?

इस्तरह बतला कर दोनों अपनें, अपनें रस्ते लगे. आगै चल कर हरकिशोर को मिस्टर ब्राइट का मुन्शी मिला वह अपनें घर भोजन करनें जाता था उसै देख कर हरकिशोर अपनें आप कहने लगा "मुझे क्या है? मेरे तो थोड़ेसे रुपे हैं मैं तो अभी नालिश करके पटा लूंगा. मुश्किल तो पचास, पचास हज़ार वालों की है देखैं वह क्या करते हैं?"

"लाला हरकिशोर किस्पर नालिश की तैयारी कर रहे हैं?" मुन्शी नें पूछा.

"कुछ नहीं साहब! मैं आप से कुछ नहीं कहता. मैं तो बिचारे मदनमोहन का विचार कर रहा हूं हा! उस्की सब दौलत थोड़े दिन मैं लुट गई अब उस्के काम मैं हल चल हो रही है लोग नालिश करनें को तैयार हैं मैंने भी कम्बख्ती के मारे हज़ार दो एक का कपड़ा दे दिया था इसलिये मैं भी अपनें रुपे पटाने की राह सोच रहा हूं. बिचारा मदनमोहन कैसा सीधा आदमी था?"

"क्या सचमुच उस्पर तक़ाज़ा हो गया? उस्पर तो हमारे साहब के भी पचास हज़ार रुपे लेनें हैं आज सवेरे तो लाला मदनमोहन की तरफ़ सै बड़े काचों सी एक जोड़ी ख़रीदनें के लिये मास्टर शिंभूदयाल हमारे साहब के पास गए थे फिर इतनी देर मैं क्या होगया? तुमनें यह बात किस्सै सुनी?".

"मैं आप वहां से आता हूं कल सै गड़बड़ हो रही है कल एक साहब दस हज़ार रुपे मांगनें आए थे इस्पर मदनमोहन नें स्पष्ट कह दिया कि मेरे पास कुछ नहीं है मैं कहीं सै उधार लेकर दो एक दिन मैं आप का बंदोबस्त कर दूंगा. मैंनें अपनें रुपे के लिये बहुत ताकीद की पर मुझको भी कोरा जवाब ही मिला अब मैं नालिश करनें जाता हूं और निहालचन्द मोदी अभी पांच हज़ार के लिये पेट पकड़े गया है वह कहता था कि मेरे रुपे इस्समय न दैंगे तो मैं भी अभी नालिश कर दूंगा जिस्की नालिश पहलै होगी उस्को पूरे रुपे मिलैंगे."

"तो मैं भी जाकर साहब सै यह हाल कह दूं तुम्हारी रक़म तो खेरोज है परंतु साहब का क़र्ज़ा बहुत बड़ा है जो साहब की इस रक़म मैं कुछ धोका हुआ तो साहब का काम चलना कठिन हो जायगा." ये कहकर मिस्टर ब्राइट का मुन्शी घर जानें के बदले साहब के पास दोड़ गया.

लाला हरकिशोर आगे बढ़े तो मार्ग मैं लाला मदनमोहन की पचपनसो की ख़रीद के तीन घोड़े लिये हुए आग़ाहसनजान लाला मदनमोहन के मकान की तरफ़ जाता मिला उस्को देखकर हरकिशोर कहनें लगे "ये ही घोड़े लाला मदनमोहन नें कल ख़रीदे थे माल तो बड़े फ़ायदे सै बिका पर दाम पट जायं तब जानिये."

"दामों की क्या है? हमारा हज़ारों रुपे का काम पहलै पड़ चुका है" आग़ाहसनजान नें जवाब दिया और मन मैं कहा "हमारी रक़म तो अपनें लालच सै चुन्नीलाल और शिंभूदयाल घर बैठे पहुंचा जायंगे"

"वह दिन गए आज लाला मदनमोहन का काम डिगमिगा रहा है. उस्के ऊपर लोगों का तगादा जारी है जो तुम किसी के भरोसे रहोगे तो धोका खाओगे जो काम करो; अच्छी तरह सोच समझकर करना."

"कल शाम को तो लाला साहब नें हमारे यहां आकर ये घोड़े पसंद किये थे फिर इतनी देर मैं क्या होगया?"

जब तेल चुक जाता है तो दिये बुझनें मैं क्या देर लगती है? चुन्नीलाल, शिंभूदयाल सब तेल चाट गए ऐसे चूहों की घात लगे पीछै भला क्या बाकी रह सक्ता था?"

"मैं जान्ता हूं कि लाला साहब का बहुतसा रुपया लोग खागए परंतु उन्के काम बिगडनें की बात मेरे मन मैं अबतक नहीं बैठती तुमनें यह हाल किस्सै सुना है?"

"मैं आप वहां से आया हूं मुझको झूंट बोलने से क्या फायदा है? मैं तो अभी जाकर नालिश करता हूं निहालचन्द मोदी नालिश करनें को तैयार है ब्राइट साहव का मुन्शी अभी सब हक़ीक़त निश्चय करके साहब के पास दौड़ा गया है तुमको भरोसा न हो निस्संदेह न मानो तुम न मानोगे इस्सै मेरी क्या हानि होगी" यह कहकर हरकिशोर वहां से चल दिया."

पर अब मदनमोहन की तरफ़ सै आग़ाहसनजान को धैर्य न रहा. असल रुपे का लालच उस्को पीछै हटाता था और नफेका लालच आगे बढाता था पहले रुपे के विचार सै तबियत और भी घबराई जाती थी निदान यह राह ठैरी कि इस्समय घोड़ों को फेर ले चलो मदनमोहन का काम बना रहैगा तो पहले रुपे वसूल हुए पीछे ये घोड़े पहुंचा दैंगे नहीं तो कुछ काम नहीं."

इधर हरकिशोरको मार्गमैं जो मिलता था उस्सै वह मदनमोहन के दिवाले का हाल बराबर कहता चला जाता था और यह सब बातैं बाज़ार मैं होती थीं इसलिये एक सैं कहने मैं पांच और सुन लेते थे और उन पांच के मुख सै पचासों को यह हाल तत्काल मालूम हो जाता था फिर पचास सै पांच सौ मैं और पांच सौ सै पांच हज़ार मैं फैलते क्या देर लगती थी? और अधिक आश्चर्य की बात यह थी कि हरेक आदमी अपनी तरफ सै भी कुछ, न कुछ नोंन मिर्च लगाही देता था जिस्को एक के कहनें सै भरोसा न आया दो के कहनें सै आगया, दो के कहनेंसै न आया चार के कहनें सै आगया मदनमोहन के चाल चलन सै अनुभवी मनुष्य तो यह परिणाम पहले ही सै समझ रहे थे जिस्पर मास्टर शिंभूदयाल नें मदनमोहन की तरफ़ सै एक दो जगह उधार लेनें की बात चीत की थी इसलिये इस चर्चा मैं किसी को संदेह न रहा. बारूद बिछ रही थी बत्ती दिखाते ही तत्काल भभक उठी:

परंतु लाला मदमोहन या ब्रजकिशोर वग़ैरे को अबत इस्का कुछ हाल मालूम न था.


 

प्रकरण २६.


दिवाला.

कीजे समझ, न कीजिए बिन बिचार ब्यवहार॥
आय रहत जानत नहीं? सिरको पायन भार॥

बृंद.

लाला मदनमोहन प्रातःकाल उठते ही कुतब जानें की तैयारी कर रहे थे. साथ जानेंवाले अपनें, अपनें कपड़े लेकर आते जाते थे इतनें मैं निहालचन्द मोदी कई तक़ाजगीरों को साथ लेकर आ पहुंचा.

इस्नें हरकिशोर सै मदनमोहन के दिवाले का हाल सुना था उसी समय सै इस्को तलामली लग रही थी कल कई बार यह मदनमोहन के मकान पर आया पर किसी नें इस्को मदनमोहन के पास तक न जानें दिया और न इस्के आनें की इत्तला की.

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  1. † अनुबन्धान पेक्षेत सानुबन्धेषु, कर्म्मसु।
    संप्रधार्य च कुर्वीत न वेगेन समाचरेत्॥