(१०४ ) (देखो शिल्प रत्न १६, ५० वेसरम् बेष्य उच्यते')। नागर और वेसर दोनों ही शब्दों में मूल शब्द नाग और वेष में देशी भाषा के नियमानुसार उसी प्रकार र अक्षर जोड़ दिया गया है जिस प्रकार ग्रंथ (गाँठ ) शब्द से बने गट्ठर शब्द में जुड़ा है। इसी प्रकार नागर में मूल शब्द नाग है । धार्मिक भवनों या मंदिरों आदि की वह शैली वेसर कहलाती है जिसमें ऊपरी या बनावटी सजावट और बेल-बूटे आदि बहुत होते हैं । इसके विपरीत नागर वह सीधी-सादी शैली है जो हमें गुप्तों के बनवाए हुए चौकोर मंदिरो, नचना नामक स्थान के पार्वती के वाकाटक मंदिर और भूमरा (भूभरा, देखो परिशिष्ट क ) के भार-शिव मंदिर में मिलती है। वह एक कमरे या कोठरीवाला गृह (निवास-स्थान ) था ( मत्स्यपुराण २५२, ५१, २५३. २)। यद्यपि नागों की पुरानी इमारतों की अभी तक अच्छी तरह जाँच-पड़ताल नहीं की गई है, तो भी हम जानते हैं कि मालव प्रजातंत्र की राजधानी कर्कोट नागर में असलो वेसर शैली की इमारतें भी थीं । कारलेले ने A. S. R. खंड ६, पृ० १८६ में उस मंदिर का वर्णन किया है जिसकी उसने खुदाई की थी और उसे अद्भुत आकृतिवाला बतलाया है। वह लिखता है- "इस छोटे से मंदिर में यह विशेषता है कि बाहर से देखने में प्रायः बिलकुल गोल है अथवा अनेक पाश्वों से युक्त गोलाकार है, और इसक ऊपर किसी समय संभवतः एक शिखर रहा होगा १. मिलाअो हार्थीगुफावाले शिलालेख E. I. २०, पृ० ८०, पंक्ति १३ का विशिक शब्द जो राज या इमारत बनानेवाले के अर्थ में प्रयुक्त हुअा है। हिंदी में (वेसर ) एक गहने का नाम है जो नाक में पहना जाता है।
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